‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन गौवंश की रक्षा में अपना कर्त्तव्य निभायें (A request to the enlightened readers of ‘Jinagam’ Do your duty in protecting cows)

‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन गौवंश की रक्षा में अपना कर्त्तव्य निभायें (A request to the enlightened readers of ‘Jinagam’ Do your duty in protecting cows)
भारत के पांच राज्यों में घोषित चुनाव में हमें यह भी वायदा चाहिए क्योंकि गाय का दूध हम मानव के लिए जीवन ही तो है……. उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा राज्य में १० फरवरी से ७ मार्च २०२२ में होने वाले चुनाव के प्रत्याशी उक्त विधानसभा में जाकर गौवंश का वध करने वालों को आजीवन कारावास की घोषणा करवाएंगे हम उन्हें ही उक्त विधानसभा में भेजेंगे।

-बिजय कुमार जैन
-राष्ट्रीय अध्यक्ष
– मैं भारत हूँ फाउंडेशन

वर्तमान समय में गोरक्षा का प्रश्न भारत के लिए एक अहम मुद्दा है। गोरक्षा के लिए देश में अनेक लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी। ‘अखिल भारतवर्षीय गो-महासभा’ का गठन भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ तथा गोधन को विदेशों में मांसाहार के लिए की जानेवाली तस्करी पर रोक लगाने और सरकार पर इसके लिए दबाव डालने का प्रयास हुआ, परन्तु वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में यह केवल कोरी कल्पना रह गई है।
मैं ताराचंद जैन, उपाध्यक्ष, झारखंड राज्य गौशाला प्रादेशिक संघ एवं उपाध्यक्ष, वैद्यनाथधाम गौशाला एवं संरक्षक एकल श्रीहरि गौ ग्राम योजना, दुम्मा, देवघर। इस आलेख के माध्यम से गौवंश के साथ वर्त्तमान समय में हो रहे क्रूर व्यवहार की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। देवघर मेरा निवास स्थान है और वर्षों से इस दिशा में अथक प्रयास एवं निस्वार्थ सेवा भाव के कारण मुझे देवघरिया संत बतौर भी जानते हैं।
आज इस आलेख में मैं अपना मार्मिक अभ्यावेदन करना चाहता हूँ कि ऐसे पावन पुण्य स्थल के रास्ते हजारों की संख्या में हिन्दू संस्कृति में माता स्वरूप गौ वंश पड़ोसी जिले दुमका होते हुए रामपुरहाट, नलहटी, अहमदपुर एवं लोहापुर तक तस्करों द्वारा गौवंश को हाँक कर पैदल मार्ग से अनेक तस्करों द्वारा ले जाये जाते हैं एवं अपने सहयोगियों के द्वारा बंगाल की सीमा तक ले जाकर वहाँ से गंगा नदी में पार कराकर बांगलादेश तक ले जाते हैं, जो इन गायों का जो हश्र होता है वह अवर्णनीय एवं अकथनीय है। गत समय पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में कतलगाह ले जाने से (९०००) नौ हजार बाछियों को मैंने अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल एवं अपने कर्मयोगी सदस्यों के मार्फत से छुड़ाया एवं उन्हें झारखण्ड के गौशालाओं में नि:शुल्क वितरित किया। गौवंश को नष्ट करने का यह गोरखधंधा वर्षों से लगातार चलता आ रहा है, जो रूकने के बजाय दिनोदिन तीव्रतर गति से फल-फूल रहा है।
आज इस आलेख में मैं अपना मार्मिक अभ्यावेदन करना चाहता हूँ कि ऐसे पावन पुण्य स्थल के रास्ते हजारों की संख्या में हिन्दू संस्कृति में माता स्वरूप गौ वंश पड़ोसी जिले दुमका होते हुए रामपुरहाट, नलहटी, अहमदपुर एवं लोहापुर तक तस्करों द्वारा गौवंश को हाँक कर पैदल मार्ग से अनेक तस्करों द्वारा ले जाये जाते हैं एवं अपने सहयोगियों के द्वारा बंगाल की सीमा तक ले जाकर वहाँ से गंगा नदी में पार कराकर बांगलादेश तक ले जाते हैं, जो इन गायों का जो हश्र होता है वह अवर्णनीय एवं अकथनीय है। गत समय पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में कतलगाह ले जाने से (९०००) नौ हजार बाछियों को मैंने अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल एवं अपने कर्मयोगी सदस्यों के मार्फत से छुड़ाया एवं उन्हें झारखण्ड के गौशालाओं में नि:शुल्क वितरित किया। गौवंश को नष्ट करने का यह गोरखधंधा वर्षों से लगातार चलता आ रहा है, जो रूकने के बजाय दिनोदिन तीव्रतर गति से फल-फूल रहा है।
गौवंश के निर्यात का यह सिलसिला पड़ोसी राज्यों बिहार, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों के संपर्क से होता है, जहाँ गौवंश के स्थानांतरण पर आंशिक प्रतिबन्ध है। हमारे राज्य के गौ तस्कर व्यापारी इन राज्यों से संपर्क साधकर गायों को पड़ोसी राज्य बंगाल के रास्ते बांग्लादेश तक पहुँचाने में सफल हो रहे हैं और गौ हत्या चरम सीमा पर है। यों तो बिहार में गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, परन्तु आंशिक प्रतिबंध तो क्रियान्वित है ही। हमारे राज्य की झारखंड सरकार ने २००५ में एक अध्यादेश लाकर गौ हत्या निषेध अधिनियम पारित किया था। सरकार के इस अधिनियम का कुछ वर्षों तक तो अक्षरश: पालन भी हुआ और गौवंश को तस्करों से जब्त कर स्थानीय गौशालाओं को सुपुर्द भी किया गया, हम लोगों ने २७ गौशालाओं से संपर्क साधकर एक प्रादेशिक संघ बनाकर गौ पालन में सहयोग किया, परन्तु बड़े ही अफसोस के साथ यह सूचित करना पड रहा है कि कालांतर में पुलिस महकमें द्वारा कोई हल्की धारा बैठाकर जब्त ट्रकों को छोड़ा जाने लगा, इससे तस्करों के मनोबल बढ़े।
इस गोरखधंधा को अमलीजामा पहनाने के लिए संलिप्त तस्करों ने गौ हस्तांतरण का नया तरीका ढूंढ निकाला और गायों के झुंड बनाकर पैदल यात्रा कर स्वयं अपने सहयोगियों के साथ उन्हें गंतव्य स्थल तक स्थानांतरित करने लगे जो वर्त्तमान में चरमोत्कर्ष पर है। मार्ग में जो भी गश्तीदल होते हैं उनके साथ इनकी सांठ-गाँठ होती है और पैसों का लेन-देन चलता रहता है। वर्त्तमान समय में यह क्रम चौबीस घंटे क्रियान्वित है जिसका देवघर-दुमका पथ पर किसी भी समय अवलोकन किया जा सकता है। ऐसी निर्मम गौ हत्या से हमारा पशुधन विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गया है। गाय जो हमारी राष्ट्रीय निधि है उसी पर कुठाराघात देखने को मिल रहा है। वर्त्तमान समय में झारखंड गोवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम २००५ शिथिल पड़ता जा रहा है। भारत के संविधान के अनुच्छेद ४८ में राज्यों को गायों और बछड़ों और अन्य पशुधनों और मवेशियों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। २६ अक्टूबर २००५ को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। वर्त्तमान में २९ राज्यों के बीच से २० राज्यों में हत्या या बिक्री प्रतिबंधित है, किन्तु प्रतिबंधित करने वालों में केरल की तरह बंगाल भी शामिल नहीं है। केन्द्र सरकार के घोषणा पत्र में भी गौवंश संरक्षण के लिए कदम उठाने का वादा किया गया है।
इस गोरखधंधा को अमलीजामा पहनाने के लिए संलिप्त तस्करों ने गौ हस्तांतरण का नया तरीका ढूंढ निकाला और गायों के झुंड बनाकर पैदल यात्रा कर स्वयं अपने सहयोगियों के साथ उन्हें गंतव्य स्थल तक स्थानांतरित करने लगे जो वर्त्तमान में चरमोत्कर्ष पर है। मार्ग में जो भी गश्तीदल होते हैं उनके साथ इनकी सांठ-गाँठ होती है और पैसों का लेन-देन चलता रहता है। वर्त्तमान समय में यह क्रम चौबीस घंटे क्रियान्वित है जिसका देवघर-दुमका पथ पर किसी भी समय अवलोकन किया जा सकता है। ऐसी निर्मम गौ हत्या से हमारा पशुधन विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गया है। गाय जो हमारी राष्ट्रीय निधि है उसी पर कुठाराघात देखने को मिल रहा है। वर्त्तमान समय में झारखंड गोवंशीय पशु हत्या प्रतिषेध अधिनियम २००५ शिथिल पड़ता जा रहा है। भारत के संविधान के अनुच्छेद ४८ में राज्यों को गायों और बछड़ों और अन्य पशुधनों और मवेशियों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। २६ अक्टूबर २००५ को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। वर्त्तमान में २९ राज्यों के बीच से २० राज्यों में हत्या या बिक्री प्रतिबंधित है, किन्तु प्रतिबंधित करने वालों में केरल की तरह बंगाल भी शामिल नहीं है। केन्द्र सरकार के घोषणा पत्र में भी गौवंश संरक्षण के लिए कदम उठाने का वादा किया गया है।
ऐसे समय में मेरी यह करबद्ध प्रार्थना होगी कि गौ मांस का निर्यात कर अर्जित धन के बजाय इसके उपयोगिता को चिन्हित कर आय के अन्य स्रोत बनाये जायें। गाय न केवल हमारे देश की राष्ट्रीय निधि है, इसे केवल हिन्दू धर्म से जोड़ा न जाये वरन्‌ा अन्य संप्रदाय के लोग इनके अवशिष्ट पदार्थों जैसे गोबर, गो-मूत्र आदि का व्यवसायिक उपयोग कर एक विशाल धनराशि अर्जित कर सकते हैं। गाय के गोबर से कई फायदे हैं। एक गाय का गोबर ७ एकड़ भूमि का खाद बना सकता है और मूत्र से भूमि की फसल का कीटों से बचाव हो सकता हे। गोबर के कई तरह के फायदे हैं। खादी इंडिया के द्वारा गाय के गोबर से वैदिक पेंट लांच किया जाएगा, ऐसी जानकारी केन्द्रीय मंत्री नितीन गडकरी ने दी की, इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी। केवल खाद के रूप में नहीं, बल्कि पेपर, बैग, मैट से लेकर ईंट तक सारे उत्पाद गोबर से बनाए जा सकते हैं। एकल ग्राम योजना के तहत हमलोग इस दिशा में यह काम कर भी रहे हैं। गौ मूत्र एवं गोबर का पेटेंट तैयार कर विदेशों में निर्यात कर आय का स्त्रोत बढ़ा रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने ऊप ज्rानहूग्दह दf म्rलत्ग्त्ब्ूद Aहग्स्aत्े (Rल्ूिaूग्दह दf थ्ग्fा ेूदम्व् स्arवू के नियम २०१७ को शिथिल कर दिया है, इसके मुताबिक मवेशी बाजारों में जानवरों की खरीद बिक्री को रेगुलेट करने के साथ मवेशियों के खिलाफ क्रूरता रोकना है। पूरे देश में इसको लेकर बहस शुरू हो गई है। राजनीतिक गलियारों में इस कानून को लेकर विरोध हो रहा है, जिसमें सबसे आगे केरल है। अब सवाल यह है कि आखिर इस कानून को लेकर संशय की स्थिति क्‍यों है? इसका मूल कारण है कि किसी राज्य में अक्षरश: पालन, तो किसी राज्य में आंशिक तो किसी में कोई प्रतिबंध नहीं है, इसके लिए केन्द्रीय स्तर पर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। गोबर एवं गौ मूत्र की विदेशों में भी माँग है, इनके उत्पादों से कई बीमारियाँ दूर होती हैं, इनके औषधियों का निर्माण कर हम आय को बढ़ा सकते हैं।
झारखंड के १०० गाँवों में गायें बाँटी जाने का प्रावधान बनाया गया है। एकल ग्राम योजना के तहत प्रत्येक गाँव को ५० गाएं उपलब्ध कराई जाएगी, जिन किसानों को गाएं उपलब्ध कराई जाएगी उन्हें छह महीने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसके तहत निबंधित किसानों को गोबर व गो-मूत्र से गैस व अन्य सामग्री तैयार कर लाभ कमाने का स्वरोजगार प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, इसके लिये एक वर्ष तक गायों की सेवा सुश्रुषा करने व उनसे होनेवाले व्यवसाय को लाभकारी बनाने के लिए एक वर्ष तक २५,०००/- रुपये बतौर मानदेय भुगतान किया जा रहा है। ऐसे किसानों के घर में बायो गैस प्लांट भी समिति के द्वारा ही निर्मित किया जाएगा। एकल अभियान श्री हरि गौ ग्राम योजना के तहत देशभर में २०,००० गौवंश-गौशाला से निकालकर ग्रामीण इलाकों में पहुँचा कर गौ संरक्षण का संकल्प लिया गया है। देवघर के बाबा नगरी होने की वजह से देश-विदेश से पर्यटकों का आगमन होता है, इसे जोड़कर भी इस योजना को मूर्तरूप देकर गौवंश का संरक्षण किया जा सकता है। केन्द्रीय ग्रामोत्थान योजना के तहत‌ ३० से ५० गायों को पहुँचाने की योजना है, जिससे प्रत्येक किसान को एक-एक गाय दी जाएगी और तीन वर्षों तक इसके चारे का प्रबंध एकल अभियान गौ भक्तों के जरिए किया जाएगा। ५०० से अधिक गाँवों के गौपालकों से भारतीय नस्ल की गायों का दूध बाजार मूल्य से उच्च मूल्य पर क्रय कर यज्ञ, पूजा, अनुष्ठान एवं आरोग्य हेतु पूरे देश के गौ-भक्‍तों को उचित मूल्य पर वितरित किया जा रहा है। पूज्य गौमाता के प्रतिदिन पालन-पोषण हेतु गोपालक योजना है, जिसमें प्रतिगाय प्रतिमाह १५००/- रुपये तथा प्रतिवर्ष घास-चारा का व्यय १८,०००/- रुपये निश्चित किया गया है। आज समय के साथ गोधन विलुप्त होने के कगार पर है। गोचर भूमि-विलुप्त हो रही है। जबकि २ या ३ गोवंश के सहारे ही कोई भी परिवार अपनी गाड़ी खींच सकता है। पशुधन के अभाव में नकली दूध से बनी मिठाईयों से जीवन चक्र चल रहा है, जैविक खाद के स्थान पर रासायनिक खाद के प्रयोग से खाद्यान्न दूषित हो रहा है। आज डॉलर की भूख हमें किसी भी नीचता की ओर ले जा रही है। बीफ निर्यातकों की श्रेणी में आगे बढ़ रहा देश महात्मा गाँधी के उस सपने को अधूरा साबित कर रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारे लक्ष्य तब तक पूरे नहीं हो सकते जब तक भारत में एक भी कत्लगाह कारगाह रहेगा। यह मानवीय हिंसा मानवीय असंतोष तब तक धरती पर रहेगा जब तक गौ-माता का अंर्तनाद जारी रहेगा। मनुष्य को गौ यज्ञ का फल तभी मिलेगा, जब कत्लखाने जा रही गाय को छुड़ाकर उसके पालन-पोषण की व्यवस्था हो। ईसामसीह ने भी कहा था एक गाय का मरना एक मनुष्य को मारने के समान है। मदन मोहन मालवीय जी की अंतिम इच्छा भी कि गोवंश हत्या निषेध नियम भारतीय संविधान में बने। गौ हत्या भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं आस्था की हत्या के स्वरूप है, ऐसी घिनौनी हरकत करनेवालों की न तो कोई जाति होती है और न धर्म। आज जो बड़े पैमाने पर गौ-मांस के लिए गायों की हत्या की जा रही है, इससे दुधारू गायों की भी संख्या प्रभावित हो रही है जो सवा अरब की आबादी वाले देश के लिए महज सिकुड़ कर १६ करोड़ तक हो गई है।
गौ हत्या से जुड़े तमाम अनसुलझें सवाल-जवाबों की इस कशमकश से केवल यही प्रश्न उपजता है कि आखिर देश में गौ हत्या क्‍यों? संविधान निर्मिताओं ने राज्यों को दिए नीति-निर्देशक सिद्धांतों में गौवंश एव्ां अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाने का परामर्श भी दिया है। यह अच्छी बात है कि राज्यसभा में भी सत्ता पार्टी के सदस्यों द्वारा गौ हत्या पर रोक लगाने संबंधी केन्द्रीय कानून की वकालत करते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग चली आ रही है। ऐसा पहली बार नहीं है कि ‘गौ संरक्षण’ चर्चा के केन्द्र में है। गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए करपात्री जी महाराज ने भी स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जी से करबद्ध प्रार्थना की थी और उन्होंने प्रधानमंत्री पद पर काबिज हो जाने के बाद देश के सारे कतलखाने बंद करवाने का वादा भी किया था, परन्तु कालान्तर में वे ऐसा न कर पाई और जब संतों ने उस वादों को याद दिलाया तो वे अनशनकारी निहत्थे संतों के साथ बेहरमी से पेश आयी, जिसका खामियाजा उन्हें संतों के श्राप से भुगतना पड़ा। गौ हत्या पर रोक और गौ रक्षा के लिए कई आंदोलन होते आये हैं, जो इतिहास के पन्ने में आज भी द़र्ज हैं। गाय केवल एक हिन्दू जाति से संलग्न राष्ट्रीय निधि नहीं, जिसकी रक्षा की जानी है, बल्कि यह राष्ट्रीय धरोहर है और इसकी रक्षा करना हमारा धर्म है। सवा अरब देशवासियों का परम कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व है कि इस पशुधन को बचाकर गौवंश का संरक्षण किया जाए। ऐसे में मेरी यह करबद्ध प्रार्थना है कि गौ-हत्या पर रोक लगे एवं पड़ोसी देशों में गौ माता के स्थानांतरण पर प्रतिबंध हो, केन्द्र स्तर पर जो भी कानून बनाने पड़े उन्हें अविलंब लागू करें, ताकि हमारी राष्ट्रीय धरोहर मिटने से बच सके। मैं इसी विनती के साथ अपनी आत्म अभिव्यक्ति को विराम देता हूँ।

– ताराचन्द जैन
देवघर 

‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन गौवंश की रक्षा में अपना कर्त्तव्य निभायें (A request to the enlightened readers of 'Jinagam' Do your duty in protecting cows)

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