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जनवरी २०२4
वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
‘जैन एकता’ के परम समर्थक आचार्य पुष्पदंत जी के शिष्य मुनि आचार्य पुलक सागर जी की विहंगम सोच के साथ ‘जिनशरणं’ संपूर्ण जैन पंथों की निधि से बना है, जिसे देखने व दर्शनार्थ देश ही नहीं विदेशों से भी दर्शनार्थी पहुंच रहे हैं। विदित हो की ‘जिनशरणं’ की प्राण प्रतिष्ठा १७ फरवरी २०२४ से होने जा रही है।
‘जिनशरणं’ भारत के दो राज्यों यानी महाराष्ट्र व गुजरात के मध्य में है,जहां जैनों की संख्या अधिकतम है। ‘जिनशरणं’ के दर्शनार्थ जैन ही नहीं जैनेत्तर भी भारी संख्या में पहुंच रहे हैं और अपने आप को धन्य कर रहे हैं। ‘जिनशरणं’ की भव्यता को निखारने के लिए ‘जिनशरणं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति’ के पदाधिकारियों में विशेषकर पुणे रहवासी शोभाताई रसिकलाल जी धारीवाल, गौरवाध्यक्ष संघपति प्रदीप जैन ‘मामा’ भोपाल, मुख्य परामर्शक निर्मल गोधा मुंबई, हेमचंद झांझरी इंदौर, मुख्य संयोजक अशोक बोहरा बांसवाड़ा, संयोजक प्रदीप बड़जात्या इंदौर, कार्याध्यक्ष विनोद फांदोत उदयपुर, स्वागताध्यक्ष राहुल जैन भोपाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष कुशल ठोलिया जयपुर, उपाध्यक्ष सोहन कलावत उदयपुर, प्रचार मंत्री अंकित जैन ‘प्रिंस’ दिल्ली आदि आदि हैं।
कहते हैं कोई भी सोच तब भव्य बनती है जब सोचने वाले आसमान की ओर दृष्टि रखते हैं, ऐसी ही सोच ‘जिनशरणं’ के पदाधिकारीयों की है, तभी तो भव्यता को निखार मिला है।
‘जैन एकता’ के परम समर्थक युग पुरुष, युग निर्माता, तरुण तपस्वी आचार्य रामलाल जी महाराज साहब का दीक्षा दिवस इस वर्ष हम सभी २१ फरवरी २०२४ को मनाएंगे। देश विदेश में फैले साधुमार्गी संप्रदाय के श्रावक-श्राविकाएं गुरुदेव रामलाल जी के दर्शन करने पहुंच रहे हैं, जो नहीं पहुंच पा रहे हैं वह अपने नजदीक स्थानक या अपने निवास में आचार्य श्री रामलाल जी के दर्शन मन ही मन कर आस्था स्वरूप नमन होकर आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। यहां यह बता देना भी उचित होगा कि परम तपस्वी ने अपने उवाच में कहा भी है कि ‘जैन एकता’ लिए जिस दिन ‘संवतसरी’ मनाना चाहेंगे, साधुमार्गी संप्रदाय भी उसी दिन ‘संवतसरी’ मनाएगा, यह सोच जैन समाज को और भी संगठित कर रहा है।
सबसे खुशी की बात यह भी है कि आचार्य श्री रामलाल जी म.सा. का आगामी ‘होली चातुर्मास मंगलवाड़ चौराहा, जिला चित्तौड़गढ में मुंबई प्रवासी उमरावमल ओस्तवाल को मिला है जिससे मुंबई वासियों में हर्ष-हर्ष का माहौल व्यापत हुआ हैं।
सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर संप्रदाय के आचार्य-मुनि-आर्यिका-साध्वी के चरणों में नमन होते हुए एक ही प्रार्थना करता हूँ कि ‘जैन एकता’ के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान करें, ताकि हम विश्व को बता सकें कि ‘हम सब जैन हैं’, २४ तीर्थंकर के अनुयाई हैं, ‘णमोकार मंत्र’ हमारा एक है, ‘अहिंसा परमो धर्म’ हमारा संदेश है, ‘जियो और जीने दो’ हमारा नारा है।
‘भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए’ इंडिया नहीं,अभियान गतिमान में है, एक दिन इस अभियान को जरुर सफलता मिलेगी और विश्व को भारत माँ कह सकेगी कि ‘मैं भारत हूं’ इंडिया नहीं।