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जवेरीलाल भंसाली
व्यवसायी व समाजसेवी
(बाडमेर) निवासी-अहमदाबाद प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२६३५४३११
पिछले १५ वर्षों से गुजरात के अहमदाबाद में सह परिवार प्रवासी हूँ, यहां हमारा कपड़ों का कारोबार है। मूलत: हम राजस्थान असादा के बाड़मेर के निवासी है, मेरा जन्म व सम्पूर्ण श्जिाक्षा बाड़मेर में ही सम्पन्न हुई। बाड़मेर के साथ-साथ अहमदाबाद स्थित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। जैन समाज में ‘एकता’ स्थापित होना बहुत जरूरी है। समाज में पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जैन धर्म को जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई करना असंभव है। जैन धर्म व इसके मूल्यों की रक्षा करने हेतु समाज के सभी पंथों व सम्प्रदायों में एकता स्थापित होना अति आवश्यक है अत: जैन धर्म में एकता स्थापित करने के लिए हम सभी को प्रयास करना होगा, एकता स्थापित होने से समाज के वर्गों को इसका लाभ प्राप्त होगा।
जिनागम पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का प्रयास सराहनीय है। सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए किया जाने वाला प्रयास प्रशंसनीय है।हिंदी’ एकमात्र वह भाषा है जो सभी भारतीयों को आपस में जोड़ती है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
जैन समाज में एकता की कमी जैन धर्म के लिए चिंता का विषय है, जो आपसी समन्वय से ही संभव हो पाएगा, जब तक जैन समाज में पंथवाद व सम्प्रदायवाद समाप्त नहीं होगा तब तक जैन एकता स्थापित होना असंभव सा लगता है, सभी पंथ सम्प्रदाय के लोगों को एक छत्र के नीचे आकर ‘जैन एकता’ प्रयास करना होगा। उत्तर प्रदेश का फर्रुखाबाद मेरा मूल निवास स्थल है, मेरा जन्म व सम्पूर्ण शिक्षा यहीं सम्पन्न हुई है, पिछले ५० वर्षों से लखनऊ में सहपरिवार प्रवासी हूँ, यहां मेरा इत्र का कारोबार है जिसका इस्तेमाल अगरबत्ती व साबुन में किया जाता है। कारोबार से वक्त निकालकर सामाजिक व धार्मिक उत्थान के लिए लगा रहता हूँ। भगवान पाश्र्वनाथ धाम ट्रस्ट में ट्रस्टी हूँ, इस धाम से विहार करने पर साधु-मुनियों के लिए सभी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती हैं व उनकी सेवा-सुश्रुषा करता हूँ।
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कैलाशचंद जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
लखनऊ निवासी
भ्रमणध्वनि: ९४५२०१७९८५
‘जिनागम’ एक उत्तम पत्रिका है जो सभी सम्प्रदायों को साथ लेकर चलती है, पिछले कई वर्षों से मैं ‘जिनागम’
पत्रिका से जुड़ा हुआ हूँ, जैन धर्म के सभी पंथों को जोड़ने वाली विश्वस्तरीय एकमात्र पत्रिका है। बिजय कुमार जी जैन द्वारा ‘हिंदी’ बने राष्ट्रभाषा अभियान देशहित में है, मैं इस अभियान का पूर्णरूप से समर्थन करता हूँ। ‘हिंदी’ ही सम्पूर्ण देश को आपस में जोड़ने में सहायक है, ‘हिंदी’ सबसे सरल भाषा है अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।
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निहालचंद गोलेच्छा जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
फलोदी निवासी-मुंबई प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२०१२०४८२
जैन समाज मे एकता स्थापित होना अति आवश्यक है, समाज में फैले पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जैन धर्म का वास्तविक महत्व खोता जा रहा है, हमारे सभी सम्प्रदायों व पंथों के गुरु-भगवंतों को एक-साथ आना होगा, अगर वे एक-साथ आ कर जैन एकता स्थापित करने का प्रयास करें तो अवश्य ही जैन एकता होगी, हमारे त्यौहार, संवत्सरी एक साथ एक ही दिन मनायी जानी चाहिए, श्रावकों व उपासकों में पंथवाद केवल जिनालयों में ही नजर आता है, अन्य रुप में सभी एक है, ये कहना है निहालचंद जी का। आप लगभग ४५ वर्षों से मुंबई के प्रवासी हैं, मूलत: राजस्थान के जोधपुर स्थित फलोदी के निवासी हैं, आपका जन्म व शिक्षा तामिलनाडु के उटी में सम्पन्न हुई। मुंबई आप रोजगार के उद्देश्य आए व स्वयं का कारोबार स्थापित किया जो अब आपका पुत्र संभाल रहा है|
आप सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं, मुंबई के पायधुनी स्थित महावीर स्वामी जैन देरासर चिंतामणि पाश्र्वनाथ देरासर में मैनेजींग ट्रस्टी के पद पर सेवारत हैं। अखिल भारतीय खतरगच्छ महासंघ के महाराष्ट्र प्रभारी होने के साथ अखिल भारतीय फलोदी जैन संघ के भी ट्रस्टी है। साथ ही अन्य संस्थाओं में विशिष्ट पदों पर कार्यरत हैं। ‘जिनागम’ एक उत्कृष्ट पत्रिका है, पत्रिका के माध्यम से जैन एकता के लिये किये जाने वाला प्रयास अति उत्तम है, पत्रिका में प्रकाशित लेख व विभिन्न सम्प्रदायों की जानकारी रोचक होती है। ‘हिंदी’ हमारी राष्ट्रभाषा के रुप में जानी जाती है, यह सभी राज्यों में समान रुप से बोली व अपनायी जाती है। अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
१९६७ से बीड़ के प्रवासी सुभाषचंद जी मूलत: जालना के निवासी हैं। आपका जन्म व बी.एससी. मैथमेटिक्स तक की शिक्षा जालना से सम्पन्न हुई, शिक्षा प्राप्ति के पश्चात शुरू में आप पारिवारिक कारोबार से जुड़े व तत्पश्चात १९७२ में स्वयं का मराठवाड़ा टेक्स्टाइल नामक कपड़ों का कारोबार प्रारंभ किया। कारोबार के साथ-साथ आप सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़े हैं। तेरापंथी सभा, बीड में अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। पूर्व में ५ वर्षों के लिए जैन विश्व भारती क्लासेस के बीड वेंâद्र के व्यवस्थापक रहे, इसके साथ ही अन्य कई संस्थाओं से जुड़े हैं। ‘जैन एकता’ के संदर्भ में आपका कहना है कि आज जैन समाज में एकता की कमी अर्थात पंथवाद के कारण समाज में कई समस्यायें निर्माण हो रही हैं,
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सुभाषचंद समदरिया जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
जालना निवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२२२४३९७५
इस अलगावाद के कारण जैन धर्म का मूल तत्व खोता जा रहा है, अत: समाज के सभी सम्प्रदायों को आपसी भेद-भाव भूलाकर ‘जैन एकता’ स्थापित करने के लिए एक-साथ, एक-मंच पर आना होगा व हमारे साधु-संतों को भी अपनी अहम भूमिका निभानी होगी, तभी ‘जैन एकता’ का सपना साकार होगा। ‘जिनागम’ पत्रिका सभी जैन समाज का प्रतिनिधित्व करती है, इसमें प्रकाशित लेख रोचक होते हैं, जिसके लिए पत्रिका परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।हिंदी’ हमारी अपनी भाषा है ‘हिंदी’ के माध्यम से सम्पूर्ण देश एक सूत्र में बंधा है, देश का प्रत्येक नागरिक ‘हिंदी’ से जुड़ा है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
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सुमेरचंद छाबड़ा जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
मारोठ (नागौर) निवासी
भ्रमणध्वनि: ९४१४०१२३१०
६० वर्षीय सुमेरचंद जी जेम्स स्टोन की व्यवसायिक दुनिया में जाना-माना नाम है आप पिछले ३० वर्षों से जेम्स स्टोन की जैन मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं, गिनिज बुक में दर्ज सिद्धायतन मूर्ति का निर्माण भी आपके द्वारा किया गया था, कुछ अलग करने के उद्देश्य से आपका इस क्षेत्र में आना हुआ, आप मूलत: नागौर स्थित मारोठ के निवासी हैं व कई वर्षों से किशनगढ में बसे हैं, आप तीन भाई हैं, सभी अपने-अपने कार्य में संलग्न हैं, आपके पुत्र ने भी स्वयं का स्टोन ज्वेलरी का कारोबार प्रारंभ किया है। आप पुलक मंच में राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद पर सेवारत हैं, साथ ही अन्य संस्थाओं से भी जुड़े हैं।
‘जैन एकता’ के बारे में कहते हैं कि समाज में फैला पंथवाद व सम्प्रदायवाद जैन समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जैन समाज में एकता स्थापित करने के लिए इस ओर समाज के साधु-संतों के साथ श्रावकों को भी इस ओर प्रयास करना होगा, समाज के सभी बंधुओं को आपसी सामंजस्य स्थापित करना होगा, अन्यथा जैन धर्म व समाज का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। ‘जिनागम’ पत्रिका की अपनी विशेषता है जो अन्य जैन समाज की पत्रिका में देखने को नहीं मिलती, इसकी छपाई व लेख बहुत ही आकर्षक हैं। भाषा हमारा व हमारे देश का वजुद है, पहचान है, बिना भाषा के हम अधूरे हैं, यही हमारी संस्कृति है। ‘हिंदी’ में जो अपनत्व है वह अन्य भाषा में नहीं मिलती, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक अधिकार अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
राजस्थान के बीकानेर के मूल निवासी शुभकरण जैन कई वर्षों से कोलकाता के प्रवासी हैं। आपका जन्म व प्रारंभिक शिक्षा बीकानेर में ही सम्पन्न हुई, तत्पश्चात सी.ए. की शिक्षा कोलकाता से प्राप्त की। अम्बिकापुर में १९८९ से प्रवासी है व स्वयं का कारोबार स्थापित किया, आज कई नामांकित कम्पनियों की वस्तुओं के वितरण कारोबार से जुड़े है, साथ ही आप कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए है, तेरापंथ महासभा अम्बिकापुर व ओस्तवाल समाज अम्बिकापुर में अध्यक्ष पद पर सेवारत हैं। ‘जैन एकता’ के संदर्भ में आपका कहना है कि एकता चाहे वह कहीं भी हो परिवार, समाज सभी जगह महत्वपूर्ण होती है, एकता होने से बड़े-बड़े मसले आसानी से हल हो जाते हैं, उसी तरह जैन समाज में भी एकता की अत्यंत आवश्यकता है, समाज में फैला पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जो नुकसान हो रहा है वह सम्पूर्ण समाज भुगत रहा है।
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शुभकरण जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
बीकानेर निवासी-छत्तीसगढ़ प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२५५८०२०१
जैन धर्म का अस्तित्व इस अनेकांतवाद के कारण खतरे में आ गया है, सर्वप्रथम समाज के सभी वर्गों को इसे रोकने की आवश्यकता है यदि सम्पूर्ण समाज एकसाथ-एकछत्र के नीचे आ जाए तो इससे अच्छी बात और कोई नहीं हो सकती। ‘जिनागम’ एक उत्कृष्ठ पत्रिका है, इसके द्वारा जैन एकता के लिए किया जाने वाला प्रयास प्रशंसनीय है। आज हर जगह हिंदी का महत्व बढ़ता रहा है। देश का प्रत्येक नागरिक हिंदी बोलता व समझता है, प्रत्येक नागरिक को सर्वप्रथम अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाहिए व राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को अपनाना चाहिए, हिंदी हम सभी को आपस में जोड़ती है।
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विलास पहाड़े जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
सिकर निवासी-औरंगाबाद प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२२२०४४९७
आपका परिवार लगभग १०० वर्षों से महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित पैठण का प्रवासी है, आपका जन्म व शिक्षा पैठण में ही सम्पन्न हुई है। आप बीएससी अग्रीकल्चर में शिक्षित हैं। आपका खाद्य व बीज का होलसेल व मेडिकल का कारोबार है। शनि अरिष्ठ निवारक मुनि सुब्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पैठण जिला औरंगाबाद में २५ वर्षों से महामंत्री के पद पर कार्यरत हैं। मिश्रीलाल पहाड़े जैन विद्यालय का संचालन करते हैं जो आपके पिता के नाम पर है, इस विद्यालय में जैन बच्चों को २०³ की छूट दी जाती है। झुंबरलाल काला मोफत नेत्रालय में अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। सुरजभाई पुनमचंद बाकलीवाल अतिथि भवन का निर्माण करवाया है, साथ ही अन्य कई संस्थाओं से जुड़े हैं।
‘जैन एकता’ के संदर्भ में आपका कहना है कि जैन एकता जैन समाज के लिए जरूरी है हमारे गुरू प्रसन्नसागर
जी भी ‘जैन एकता’ के लिए प्रयासरत हैं। ‘जैन एकता’ के लिए शहरी क्षेत्रों में प्रयास किए जा रहे है, पर ग्रामीण क्षेत्र अभी भी इस दिशा में पिछड़े हैं उन्हें भी इस ओर आगे आना होगा, आज हमारी संख्या इतनी कम है उसमें भी हमारा समाज बंटा हुआ है जो हमारे समाज व जैन धर्म के लिए खतरा साबित होगा, अत: ‘जैन एकता’ के लिए समाज के सभी वर्गों व पंथों को इस ओर प्रयास करना होगा। आज अंग्रेजी का महत्व बढ़ रहा है इसका मूल कारण अंग्रेजी माध्यम में रोजगार की अधिकता है, इसलिए लोग अंग्रेजी की ओर अधिक आकर्षित हैं पर राष्ट्रभाषा के रूप में ‘हिंदी’ को प्रधानता देनी चाहिए, ‘हिंदी’ हमारी अपनी भाषा है जिसके माध्यम से हमारी पहचान बढ़ी है, अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।
मूलत: उदयपुर के निवासी ७५ वर्षीय प्रताप जैन १९६२ से मुंबई के प्रवासी हैं, आपका जन्म व वाणिज्य संकाय से स्नातक की शिक्षा उदयपुर में ही सम्पन्न हुई, तत्पश्चात मुंबई के लॉ कॉलेज से कानून व लेखापरिक्षक (सी.ए.) की शिक्षा प्राप्त की व सी.ए. के रूप में कार्यरत रहे, वर्तमान में आपने इस क्षेत्र से पूर्णत: सेवानिवृत्ति ले ली है व समाजिक कार्यों में सक्रिय है। जीतो के संस्थापक सी.ई.ओ. व ६ वर्षों से अधिक जीतो में कम्पन्नी सचिव के पद पर कार्यरत है, वर्तमान में जीओ में महाराज श्री नयपद्म सागर जी से जुड़े हैं व डायरेक्टर व कोषाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं, भारत जैन महामंडल व रोटरी क्लब बॉम्बे सेंट्रल से जुड़े हैं, साथ ही कई अन्य सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। जैन समाज में ‘एकता’ समाज के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है, इसके लिए कई संस्थाएं कार्यरत है पर जो सफलता मिलनी चाहिए वह अभी तक नहीं मिल पायी है, वैसे भी हमारी संख्या बहुत कम है, यदि उसमें भी हम बंटे रहेंगे, अलग-अलग रहेंगे तो यह जैन समाज व जैन धर्म के लिए सबसे बड़ी विकट परिस्थिति बनी रहेगी|
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प्रताप जैन, सेवानिवृत्त,
उदयपुर निवासी-मुंबई प्रवासी
समाजसेवी
भ्रमणध्वनि:९८२००७०५०५
जैन समाज का युवा वर्ग अपने धर्म व संस्कृति के प्रति उदासीन नजर आता है, उन्हें अपने समाज के लिए विशेष भूमिका निभानी होगी। ‘जिनागम’ पत्रिका में सभी महावीर पथकों के विषयों को मुख्य रूप से प्रकाशित करनी चाहिए, क्योंकि सभी जैन भगवान महावीर के अनुयायी हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक हिंदी जानता व समझता है, हिंदी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा की अधिकारिणी है, यह केवल राजभाषा बन कर रह गयी है, अत: ‘हिंदी’ को संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
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श्रीपाल जैन
नौकरी पेशा
देह (नागौर) निवासी-कोलकाता प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८३००४९९८०
मूलत: राजस्थान के नागौर स्थित देह के निवासी श्रीपाल जैन लगभग १५ वर्षों से कोलकाता के प्रवासी हैं वह कोलकाता स्थित एक मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत है, व्यक्तिगत स्तर पर सामाजिक कार्यों में सहभागी होते रहते हैं। जैन एकता के बारे में कहते हैं कि सर्वप्रथम हमारे गुरू साधु-संतों को एकमंच पर आना होगा, यदि वे एक हो गए तो सभी श्रावकगण एक हो जाएंगे, क्योंकि हम सभी अपने गुरू भगवंतों के अनुयायी होते हैं, वे जैसा कहते हैं श्रावक उन्हीं का अनुसरण करते हैं। हमें महावीर के सिद्धांतों व विचारों को आगे बढ़ाना होगा, न कि किसी पंथ विशेष को। हम सभी महावीर के अनुयायी हैं जो हम सभी के आराध्य हैं। अगर पंथवाद इसी तरह चलता रहा तो एक दिन जैन धर्म का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा, हमें आपसी मतभेद भुलकर हमारे समाज व धर्म को आगे बढ़ाना होगा, तभी जैन एकता संभव है।
‘जिनागम’ पत्रिका श्रेष्ठ है, इसमें सभी पंथों के बारे में जानकारियां मिल जाती है, ‘जैन एकता’ के लिए प्रयास सराहनीय है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मातृभाषा होती है, मातृभाषा में जो सहजता सरलता व अपनत्व होता है वह अन्य भाषा में नहीं होता। विश्व विकसित देशों की सफलता का मुख्य कारण उनके राष्ट्र की राष्ट्रभाषा है, जिन देशों में राष्ट्रभाषा को प्रधानता दी जाती है उनके प्रत्येक काम-काज उनकी राष्ट्रभाषा में ही सम्पन्न होते हैं, पर अपने देश में किसी एक भाषा को प्रधानता न मिलने के कारण भारत अभी तक विकासशील देशों में गिना नहीं जा रहा है, अत: सर्वप्रथम ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा घोषित की जानी चाहिए, ‘हिंदी’ से देश का प्रत्येक नागरिक जुड़ा है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य ही मिलना चाहिए।
‘जैन एकता’ का मुद्दा आज समाज में बृहद चर्चित है व समाज के विभिन्न संगठन इस ओर प्रयासरत भी हैं, फिर भी अभी भी कुछ लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आया है, अभी भी कुछ लोग अपना, अपने लोग के चक्कर में ही पड़े हैं, यह नहीं सोचते कि हम महावीर के अनुयायी हैं, हमें एक साथ चलना है, तभी हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ व हमारा समाज उच्च मुकाम पाएगा। पंथवाद व सम्प्रदायवाद के चक्कर में पड़ कर जैन धर्म का मूलतत्व खोते जा रहा है जिसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, इसे समझने की भी आवश्यकता है। हमारे समाज के सभी पंथों को एक बैनर के नीचे आना ही होगा चाहे वो श्वेताम्बर हो या दिगम्बर जबकि सभी ‘जैन’ है। जिनागम पत्रिका ‘जैन एकता’ के लिए प्रयासरत है जो सराहनीय सोच है। आज का युवा वर्ग अपने धर्म व समाज के प्रति जागरूक है, विहार करने वाले साधु-संतों की सेवा व अन्य धार्मिक व सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाता है।
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श्रीकांत जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
यवतमाल महाराष्ट्र निवासी
भ्रमणध्वनि:९८२२००४६६६
हम महाराष्ट्र के यवतमाल स्थित पुबाद के रहने वाले हैं। हमारे दादाजी की यहां ४०० एकड़ जमीन थी, हमारा पूरा परिवार किसान के रूप में कार्यरत रहा, वर्तमान में हमारा होटल व्यवसाय व साथ में खेती का कारोबार भी है, हमारे पूर्वज लगभग २०० साल पूर्व राजस्थान से यहां आकर बसे थे, अपने व्यवसाय के साथ सामाजिक संस्थाओं में भी सक्रिय रूप से कार्यरत हूँ। श्री दिगम्बर जैन सर्वोदय गौशाला में ट्रस्टी, पुषद अरबन बैंक में डायरेक्टर, दिगम्बर जैन पाश्र्वनाथ मंदिर में सदस्य के साथ अन्य सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। ‘हिंदी’ का प्रचार-प्रसार अधिक होना चाहिए, ‘हिंदी’ के राष्ट्रभाषा बनने से सभी राज्यों में इसे प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे विभिन्न राज्यों में बसने वाले लोगों को भाषा की वजह से होनेवाली परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।