समीक्षा-अक्टूबर-२०१८

जय जिनेन्द्र ! जिनागम

जयदिप पटवा जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
बीनासर निवासी-कोलकाता प्रवासी
भ्रमणध्वनि:९८३१२०४९३५

जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है, इन चार माह में साधु-संतों के साथ श्रावक-श्राविका भी पूरी तरह से ध्यान व्रत धर्म-तप आदि में लगे रहते हैं जो नियम हजारों वर्ष पूर्व बनें, उनका आज भी पूरी निष्ठा से पालन किया जाता है, चार माह बरसात के होते हैं अत: जीव-जन्तुओं की वृद्धि अधिक प्रमाण में होती है, उनका विचरण अधिक होता है अत: साधु-संत एक स्थान पर रहकर धर्म आराधना करते हैं व उनकी सेवा सुश्रुषा कर व उनसे धर्म ज्ञान की बातों का लाभ उठाकर कर श्रावक-श्राविका गण धर्म आराधना करते हैं, जो कि स्वास्थ्य के लिए भी अधिक लाभदायक है, जहां तक बात युवा पिढ़ी की है तो आज की युवा पिढ़ी भी अपने समयानुसार धर्म-कर्म के प्रति इतनी निष्ठा दिखती है कि मात्र ११-१५ वर्ष की आयु में ही दिक्षा लेते व साधु बन जाते हैं।
राजस्थान की बीकानेर स्थित बीनासर मेरा मूल निवास स्थान है, जहां से हमारा परिवार कई वर्ष पूर्व कोलकाता आकर बस गया, मेरा जन्म व शिक्षा कोलकाता में ही सम्पन्न हुई, यहां हमारा मैकेनिकल वस्तुओं के निर्माण का कारोबार है।

कारोबार के साथ धार्मिक व सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय भागीदारी निभाता हूँ, कोलकाता स्थित एस. एस. जैन सभा व टी.एच.के कॉलेज में कार्यकारी सदस्य के रूप में सेवारत हूँ, जैन धर्म का एक भाग स्थानकवासी समाज से जुड़ा हूँ, अन्य कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं में पद पर व सदस्य के रूप में सेवारत हूँ।
‘जैन एकता’ के लिए प्रयास जारी है, पर यह असंभव प्रतित होता है, क्योंकि हर सम्प्रदाय की अपनी-अपनी विचार धारा है, इन विचार धाराओं का एकत्रित होना संभव नहीं लगता, अत: ‘जैन एकता’ की हम सिर्फ बाते कर सकते हैं, यदि ‘जैन एकता’ स्थापित हो जाती है, इससे बढ़िया और कोई बात नहीं। जिनागम अच्छी पत्रिका है, पत्रिका में प्रकाशित लेख उत्तम होते हैं, पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का प्रयास किया जा रहा है जो बहुत ही बढ़िया व अनुमोदनीय प्रयास है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए यह हम सबका व देश का दोनों का ही गौरव है। जय जिनेंद्र!

अखिल भारतीय पुलक जन चेतना मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदिप बड़जात्या ने समाजसेवा के क्षेत्र में उच्च मुकाम पाया है। लगभग ३५-४० वर्षों से आप इंदौर के निवासी हैं, आपका परिवार मूलत: धार जिले के कुक्षी ग्राम का निवासी जो मध्यप्रदेश में स्थित है, यही आपकी जन्मस्थली भी है, आपके पिताजी मंदसौर जिले के नीमच शहर में प्रोफेसर थे और यहीं आपकी शिक्षा भी हुई है। शिक्षा सम्पन्न करने के पश्चात आप व्यवसाय निमित्त इंदौर आकर बस गए, यहां आप ट्रान्सपोर्ट व मार्बल के कारोबार से जुड़े हैं। आप समाज सेवा के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाते हैं, मुनि पुलक सागर जी के प्रवचनों से आप काफी प्रभावित हुए जिस कारण आप २००४ से पुलक मंच से जुड़े व लगातार सेवारत हैं, विभिन्न पदों पर कार्यरत रहने के पश्चात वर्तमान में आप राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं, यह मंच चातुर्मास में गुरू-भगवंतों की पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ, जीव दया, मानव सेवा, धार्मिक परिचय, जरूरतमंदों की यथासंभव सहायता जैसे अनेक समाजिक कार्यों में लगा रहता है, वर्तमान में इंदौर में आचार्य अनेकांत सागरजी म. सा. चातुर्मास चल रहा है, जिसकी सम्पूर्ण व्यवस्था पुलक मंच के माध्यम से की जा रही है।

प्रदिप बड़जात्या जैन

राष्ट्रीय अध्यक्ष,
अखिल भारतीय पुलक जन चेतना मंच,
इंदौर
भ्रमणध्वनि: ८७७०१३३१२२

चातुर्मास के परिपेक्ष में आपका कहना है कि चातुर्मास के चार माह साधुसंतों की सेवा के साथ उनके आर्शीवचनों का सुअवसर का लाभ मिलता है, जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास करते हैं, मनुष्य सांसारिक प्रपंचों में पड़ धर्म से दूर होता जाता है, इन चार माह में हम पूर्ण रूप से धार्मिक जीवन अपना लेते हैं, इस अवसर पूरा परिवार धर्म की परभावना में लग जाता है जिससे सभी में धार्मिक संस्कारों का निर्माण होता है, ये महीने हमें प्रकृति के और करीब ले जाता है व अहिंसा के नियमों का प्रत्यक्ष रूप में पालन करवाता है, अत: सम्पूर्ण जैन समाज के लिए यह किसी पर्व से कम नहीं होता। जैन समाज में ‘एकता’ लाना अति आवश्यक है, क्योंकि जैन समाज व धर्म का वास्तविक अस्तित्व हमारी एकता में ही निहित है, इसके लिए हमारे गुरू महाराज को सर्वप्रथम आगे आकर कार्य करना होगा तभी संभवत: ‘जैन एकता’ संभव है, अन्यथा जैन समाज के पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जैन धर्म अपना मूल तत्व खोता जा रहा है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान बहुत पूर्व में ही मिल जाना चाहिए था। ‘हिंदी’ हम भारत वासियों की पहचान है, हिंदी में हमारी एकता नजर आती है, ‘हिंदी’ के माध्यम से ही विभिन्न भाषायी वाले भारत में लोग आपस में सम्पर्क स्थापित कर पाते हैं, ‘हिंदी’ सरल व सहज भाषा है जिसे हर कोई आसानी से अपना लेता है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।

विजय कुमार जैन

वकील व समाजसेवी
बिदर निवासी
भ्रमणध्वनि: ९८४५३३४४५६

जैन समाज में चातुर्मास का विशेष महत्व है, इन चार महिनो में जैन समाज के सभी पंथ धर्म परभावना व उपवास तप व धार्मिक कार्यों में लगे रहते हैं। चातुर्मास के नियमों का पालन कर अपने को धर्म कार्यों में संलग्न रखते हैं। अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करते हैं व पुण्य प्राप्त कर अपने इह लोक को सुधारने का प्रयास करते हैं। मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं, साथ ही गुरू-भगवंतों के आर्शीवचन व धर्मज्ञान का अवसर भी प्राप्त होता है।
विजय जी मुलत: बिदर कर्नाटक के निवासी हैं व व्यवसायिक तौर पर आयकर वकील के रूप में कार्यरत हैं। आप सामाजिक सेवाओं में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन कमिटी के कर्नाटक प्रांत में सह सचिव व कर्नाटका जैन असोसियेशन बैंगलोर में कार्यकारिणी सदस्य, जैन अध्ययन श्रवणबेला संस्था में जिला अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं। ‘जय जिनेन्द्र टाइम्स’ में बिदर क्षेत्र के पत्रकार के रूप में भी कार्यरत हैं, साथ ही अन्य कई संस्थाओं से जुड़े हैं।

‘जिनागम’ एक उच्च कोटि की पत्रिका है, पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय, लेख व सभी जैन पंथों की जानकारी बहुत ही ज्ञानवर्धक होती है। पत्रिका ने हमेशा से जैन समाज को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया है, जिसके लिए ‘जिनागम’ पत्रिका परिवार धन्यवाद का पात्र है।
‘हिंदी’ हम सभी को आपस में जोड़ती है। दो भिन्न भाषा बोलने वालों के बीच सम्पर्क का मुख्य माध्यम ‘हिंदी’ हैं। हिंदी से प्रत्येक भारतीय जुड़ा है अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए। सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा ‘हिंदी बने राष्ट्रभाषा’ अभियान सराहनीय है, उन्हें सफलता अवश्य मिले, यही मंगल कामना करता हूँ।

चातुर्मास का समय धर्म की परभावना का समय है, इस समय साधु-संत एक स्थान पर निवास करते हैं, उनकी सेवा व उनके प्रवचन धर्म ज्ञान सानिध्य का हमें सुअवसर प्राप्त होता है, ये चार माह जैन समाज पूरी तरह से आचारों-विचारों का नियम पूर्वक पालन कर, धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा-निष्ठा को व्यक्त करता है, इस माध्यम से अपने मानव जीवन को सुधारने का प्रयत्न करता है। साधु-भगवंत भी एक ही स्थान पर रहकर धर्म आराधना करते हैं, धार्मिक क्रियाओं के साथ सामाजिक उत्थान में भी श्रावकगण प्रयत्नशील रहते हैं, ये हमारे जीवन में नई ऊर्जा व प्रेरणा लाते हैं, वर्तमान
में हमारे वसई क्षेत्र में आचार्य निश्चयसागर म.सा. का चातुर्मास चल रहा है जिससे धर्मज्ञान का लाभ यहां सम्पूर्ण जैन समाज प्राप्त कर रहा है।
लगभग ३५ वर्षों से मुंबई के वसई का प्रवासी हूँ, मूलत: राजस्थान के डुंगरपुर स्थित खड़गदा का निवासी हूँ, मेरा जन्म व शिक्षा यहीं सम्पन्न हुयी है, व्यवसाय के उद्देश्य से मुंबई आना हुआ, तभी से सपरिवार व मुंबई में निवासित हूँ।

मुकेश जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
खडगदा निवासी, मुंबई प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८६७३९५६६७

मुंबई में एक गु्रप के साथ मिल कर स्वयं के कारोबार से जुड़ा हूँ, वसई स्थित छोटी-बड़ी सभी सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ, यहां स्थित अमृतधाम में ट्रस्टी व वसई स्थित जैन मंदिर में कार्यकारिणी सदस्य के रूप में सेवारत हूँ।
जैन समाज में एकता लानी अति आवश्यक है, सर्वप्रथम हमारे पर्युषण पर्व ‘क्षमावाणी पर्व’ एक साथ-एक समय में होना चाहिए, सर्वप्रथम हमारे गुरू भगवंतों को इस ओर ध्यान देना होगा।
‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से भारत भर की खबरें प्राप्त होती हैं जो हमारे लिए उत्तम जानकारी होती है, इसमें जैन समाज के सभी सम्प्रदायों की भी जानकारी मिलती है, सम्पादक बिजय कुमार जैन को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।
हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक गौरव प्राप्त हो यह हम सभी चाहते हैं। सम्पादक बिजय कुमार जैन का ‘हिंदी बने राष्ट्रभाषा’ अभियान अवश्य सफल होगा इसकी मंगल कामना करता हूँ।

पाहिल जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
खजुराहो निवासी
भ्रमणध्वनि: ९४०७३३६५६६

जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है, यह जैन समाज के लिए बड़ा समय होता है जब इंसान साल भर के पापों से खुद को ४ महिनों में अलग कर लेता है। गुरू भगवंतों के सानिध्य उनकी सेवा व प्रवचन का अवसर प्राप्त होता है, उनके मार्गदर्शन, उनके उपदेश हमारे जीवन को उच्चता प्रदान करने के लिए होते हैं। ये चार माह पूर्णरूप से संयम जीवन व नियमों का पालन कर आध्यात्म व धर्म की ओर अग्रसर होने का काल है, आज का परिपेक्ष बदल चुका है, आज के युवाओं में धर्म के प्रति उतनी दृढ़ता नहीं है जितनी होनी चाहिए, इसका मुख्य कारण उनका धर्म के प्रति उचित मार्गदर्शन का न होना है।

हमारा परिवार मूलत: खजुराहो का निवासी है, यह मेरी जन्मस्थली भी है, मेरी प्रारंभिक शिक्षा खजुराहो में ही सम्पन्न हुई है व उच्च शिक्षा के लिए १० वर्षों तक भोपाल रहा, तत्पश्चात अपने पारिवारिक कारोबार कपड़ों के व्यवसाय जुड़ा हूँ। खजुराहो स्थित सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ा हूँ।

वर्तमान में हमारे खजुराहो में आचार्य श्री विद्यासागर जी म.सा. का चातुर्मास चल रहा है, उनके चातुर्मास के दौरान भोजनशाला की व्यवस्था यहां के युवाओं द्वारा की जा रही है। ‘जैन एकता’ ही जैन समाज की ताकत है, हमारे समाज की एकता में ही जैन धर्म का वास्तविक मूलतत्व निहित है, जैन समाज के सभी सम्प्रदायों को एकत्र होकर ‘जैन एकता’ के प्रयास को सफल बनाना होगा, अत: हमारी पहली कोशिश ‘जैन एकता’ के लिए होनी चाहिए क्योंकि जैन धर्म की छवि विश्व में सबसे अच्छी व साफ है अत: इसे कायम रखना हमारा परम कर्तव्य है। हमारी पूरी श्रद्धा अपने गुरू में होनी चाहिए, उनके चरणों में बैठकर उनके आशीर्वाद से हमें जैन एकता का प्रयास करना चाहिए।
‘हिंदी’ को अभी तक राष्ट्रभाषा का संवैधानिक अधिकार नहीं प्राप्त है यह हमारे लिए बड़े दु:ख का विषय है, ‘हिंदी’ ही हमारी पहचान है, ‘हिंदी’ भाषा के कारण ही आज विश्व में हमारी पहचान स्थापित हुयी है। हिंदी का विरोध करनेवाले स्वयं भारतीय है जिस कारण आज तक हिंदी को राष्ट्र भाषा का सम्मान नहीं मिल पाया, अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का अधिकार दिलाने के लिए हम सभी को प्रयास करना होगा। सर्वप्रथम हमें ही हिंदी को उसका वास्तविक सम्मान दिलाना होगा, अत: ‘हिंदी बनें राष्ट्रभाषा’ अभियान में सम्पादक बिजय कुमार जैन का मैं पूरा समर्थन करता हूँ।

मेरा मूल निवास स्थान मध्यप्रदेश स्थित ललपुर जिला फतेहपुर है, जहां मेरा जन्म व शिक्षा सम्पन्न हुई। १९७३ में हमारा पूरा परिवार कटनी आकर बस गया। हम पांच भाई हैं, मेरे बड़े भाई साहब खजुराहो तीर्थ क्षेत्र में महामंत्री व स्वर्णउदय तीर्थ नवनिर्मित में भी महामंत्री के पद पर सेवारत है, मैं प्रबंधन कार्यकारिणी में कार्यकारी सदस्य के रूप में सेवारत हूँ। आचार्य श्री विद्यासागर जी के आशीर्वाद से पूरे भारत में १३० गौशालाओं का संचालन ‘दयोदय महासंघ’ के माध्यम से किया जाता है, इस महासंघ में प्रभारी मंत्री के रूप में सेवारत हूँ, वर्तमान में कोषाध्यक्ष के रूप कार्यरत हूँ। व्यवसायिक रूप में लाजेस्टिक व मिनिरल वस्तुओं के निर्माण के कारोबार से जुड़ा हूँ। कटनी दिगम्बर जैन समाज में संरक्षक, शाश्वत ट्रस्ट सम्मेदशिखर में गुणायतन व सेवायतन में ट्रस्टी के रूप में सेवारत हूँ।चातुर्मास के संदर्भ मेरा यही कहना है कि चातुर्मास का जैन समाज के साथ-साथ जैनेतर लोगों में भी इसका उतना ही महत्व होता है क्योंकि वे भी शाकाहार जीवन का पालन करते हैं। 

प्रेमचंद्र जैन ‘प्रेमी’

व्यवसायी व समाजसेवी
खजुराहो निवासी-कटनी प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९३२९४४०५३३

साधु-साध्वी एकस्थान पर रहकर धर्म आराधना करते हैं, ‘चातुर्मास’ में अहिंसा का मूल सिद्धांत निहित है। अहिंसा के व्रत का पालन करना, आत्मशुद्धी व आत्मकल्याण के साथ आत्मा का सम्पूर्ण विकास होता है चातुर्मास में,वर्तमान में हमारे यहां आचार्य विद्यासागर जी का चातुर्मास चल रहा है जो हमारे चलते-फिरते तीर्थंकर है, उनके प्रवचन हमारे जीवन में नया उत्साह भर देते हैं। खजुराहो में पूरे विश्व के जैन जैनेतर लोंगो को चातुर्मास का लाभ मिल रहा हैं क्योंकि खजुराहो पर्यटन स्थल होने से संसार के सभी देशों से लोग आते है, जैन समाज में ‘एकता’ स्थापित होना आवश्यक है, आज भारत भर में डेढ़ करोड़ जैन हैं पर लिखित रूप में मात्र ४४ लाख जैन ही हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि कुछ जैन अपने नाम के आगे जैन शब्द नहीं जोड़ते, वे मात्र गोत्र ही लिखते हैं, ‘जैन एकता’ के लिए सभी वर्गों द्वारा प्रयास जारी है अत: इसमें सफलता अवश्य मिलेगी। सम्पादक बिजय कुमार जैन जी के ‘हिंदी बने राष्ट्रभाषा’ से मैं काफी प्रभावित हूँ, उनके ‘पहले मातृभाषा-फिर राष्ट्रभाषा’ के नारे का मैं पूरा समर्थन करता हूँ क्योंकि बच्चों का मौलिक विकास उसकी अपनी मातृभाषा से ही संभव है, राष्ट्र का पूर्ण विकास राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही संभव है, अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।

निर्मल कुमार मोठ्या जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
आगरा निवासी
भ्रमणध्वनि: ९८३७०२३०९०

जैन धर्म में चातुर्मास का बहुत महत्व होता है, ये पवित्र महिने होते हैं, इस दौरान कई सारे नियमों का पालन करना होता है। ध्यान, तप, पुजा-पाठ, विधि-विपन पर अधिक ध्यान दिया जाता है, इस दौरान गुरू-भगवंतों के सानिध्य में रहने का अवसर प्राप्त होता है। वर्तमान समय भाग-दौड़ भरा जीवन का है, इसमें धर्म-कर्म के साथ सामंजस्य स्थापित करना थोड़ा कठिन होता है, पर धर्म-कर्म भी आवश्यक है, नहीं तो धर्म का वास्तविक महत्व खो जाएगा, अत: सभी श्रावक-श्राविकाओं के साथ बच्चों को इस ओर विशेष ध्यान देने-दिलाने की आवश्यकता है। उत्तरप्रदेश का आगरा मेरी जन्मभूमि व कर्मभूमि दोनो है, यहां हमारा आभूषणों का कारोबार है। आगरा खण्डेलवाल दिगम्बर जैन समाज में अध्यक्ष व आगरा दिगम्बर जैन संसद में उपाध्यक्ष के पद पर सेवारत हूँ, इसके साथ ही अन्य कई संस्थाओं में सदस्य व पद पर सेवारत हूँ।

जैन धर्म में ‘एकता’ है पर इनमें कई पंथ व सम्प्रदाय बन चुके हैं जिनमें आपसी वैचारिक मतभेद अधिक है, जिसके कारण हमें अलगावाद नजर आता है इसे समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम हमारे गुरू-भगवंतों को एक साथ-एक मंच पर आना होगा, तभी ‘जैन एकता’ संभव है।‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का जो प्रयास किया जा रहा है वह सराहनीय है, इसमें जैन धर्म से संबंधित सभी जानकारी मिलती है। ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं मिलना यह हमारे लिए गंभीर विषय है, हिंदी हमारे देश की पहचान है, ‘हिंदी’ के माध्यम से हम आपस में आसानी से सम्पर्वâ स्थापित कर सकते हैं, ‘हिंदी’ से ही देश का सम्पूर्ण विकास संभव है, ‘हिंदी’ से देश का प्रत्येक नागरिक जुड़ा है अत: हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए। 

चातुर्मास के समय साधु-संतों के कठोर जीवन को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर प्राप्त होता है, उनके आचारविचारों, प्रवचन व उनकी सेवा का सुअवसर प्राप्त होता है, जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को सफल बनाने का प्रयास कर सकते हैं। ध्यान-तप, धर्म-आराधना करने का हमें अधिक समय प्राप्त होता है, इस समय धर्म की
परभावना अधिक बढ़ जाती है, हमारे अंदर सच्चे व अच्छे विचार पनपते हैं, हम लोगों की बड़ी से बड़ी गलतियों को माफ कर देते हैं। ‘जियो और जीने दो’ की भावना का पूरा समाज पालन करता है, जिसमें स्वकल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण भी निहित है। जैन समाज में ‘एकता’ की बहुत जरूरत है, क्योंकि एकता में ही जैन धर्म सुरक्षित रह सकता है। जैन धर्म का मूल तत्व जैन धर्म में ही संभव है, इसके लिए सभी गुरू-भगवंतों के साथ श्रावक-श्राविकाओं को भी विशेष प्रयास करना होगा, हमारे सभी पर्व एक साथ एक ही समय में मनाने चाहिए।

सूरजमल जैन

समाजसेवी
उदयपुर निवासी-नाशिक प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२२७५४६०३

हमारा परिवार लगभग १०४ वर्ष से मांगीतुंगी का निवासी है, मूलत: हम राजस्थान के उदयपुर से है। मेरे पिता गणेशीलाल जी, जो बाद में मुनि-प्रबोध सागरजी बन गए। मैं व्यवसायिक रूप से डॉ. के पेशे से जुड़ा रहा, वर्तमान में सेवानिवृत्त ले ली है, अभी पूर्णत: समाजसेवा में लगा रहता हूँ, अखिल भारतीय जैन सभा से भी जुड़ा रहा, साथ ही अन्य कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। ‘हिंदी राष्ट्रभाषा बने’ यह हम सभी की कामना है, सम्पादक बिजय कुमार जैन ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए जो प्रयास कर रहे हैं वह सराहनीय है।

धनराज तातेड़ जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
जसोल (मारवाड) निवासी-
अहमदाबाद प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२७५२२२४०

जैन धर्म में चातुर्मास का समय गुरूओं के प्रवचन, सेवा व धर्म आराधना से हमारा मन पवित्र हो जाता है, पापों से मुक्त होता है व सत्य की ओर अग्रसर होता है, हम किसी को बड़ी से बड़ी गलतियों को सहज ही माफ कर सकते है, समय-समय पर इसका स्वरूप बदलता रहा है, इसका महत्व जितना पूर्व में रहा उतना आज भी है। आज की युवा पिढ़ी भी धर्म के प्रति समर्पित है, चौमासा में होने वाले कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर सहभागी होते हैं, वर्तमान में हमारे यहां रतनश्रीजी म.सा. का चातुर्मास चल रहा है व धर्म की परभावना बढ़ रही है। सन १९९८ से अहमदाबाद गुजरात का प्रवासी हूँ, मूलत: हमारा परिवार राजस्थान के जसोल (मारवाड) का निवासी है, मेरी जन्मस्थली भी है, व्यवसाय के निमित्त अहमदाबाद आना हुआ, मेरी कर्मस्थली बनी, यहां हमारा स्टोन का कारोबार है, अहमदाबाद स्थित सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ।‘जिनागम’ एक अच्छी पत्रिका है जिसमें सभी जैन समाज की जानकारी प्राप्त होती है व विभिन्न लेखों के माध्यम से जैन समाज के विभिन्न तत्वों की जानकारी भी मिलती है।

 पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का उत्तम प्रयास किया जा रहा है जो आज जैन समाज के लिए बहुत जरूरी है। ‘हिंदी’ भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य करती है, हिंदी से देश का प्रत्येक नागरिक जुड़ा है। ‘हिंदी’ देश की प्रमुख सम्पर्वâ भाषा है अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए। ‘हिंदी बने राष्ट्रभाषा अभियान’ के माध्यम से सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास कियाजा रहा है वह सराहनीय ही नहीं अनुमोदनीय भी है।

हम मूलत: राजस्थान के मेड़ता के निवासी हैं। मेरा जन्म व प्रारंभिक शिक्षा यहीं सम्पन्न हुई, तत्पश्चात स्नातक की शिक्षा ब्यावर से ग्रहण की, व्यवसाय के उद्देश्य से लगभग १५ वर्ष पूर्व हैदराबाद आना हुआ, तब से यहीं का प्रवासी हूँ, यहां ग्रेनाईट के कारोबार से जुड़ा हूँ। व्यक्तिगत रूप से सामाजिक संस्थाओं में सेवारत हूँ। चातुर्मास के संदर्भ में मेरा यही कहना है कि जैन धर्म में चातुर्मास को विशेष महत्व प्रदान है, इस अवसर पर गुरूओं की सेवा व प्रवचन का अवसर प्राप्त होता है, इस समय में संयमित जीवन व नियमों का पालन करते हुए धर्म आराधना की जाती है, इस समय धर्म की परभावना अधिक होती है, विशेषत: जैन धर्म का मूल ‘अहिंसा जीओ और जीने दो’ का अधिक पालन होता है, इस अवसर पर आत्मशुद्धि व आत्मकल्याण का अवसर प्राप्त होता है। वर्तमान समय में चातुर्मास के समय लोगों का ध्यान कम हो गया है परंतु महत्व आज भी कायम है, वर्तमान हमारे आगापुरा क्षेत्र में महाराज गिरनार सागर जी का चातुर्मास चल रहा है।

पवन जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
मेडता निवासी-हैदराबाद प्रवासी
भ्रवनध्वनि: ९४४०८९३४११

जैन समाज में एकता की सबसे बड़ी आवश्यकता है, समाज में फैले पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जैन धर्म का वास्तविक स्वरूप खोता नजर आ रहा है, समाज में यदि एकता निर्माण हो जाए तो जैन धर्म सबसे श्रेष्ठ धर्म कहलाए। ‘जैन एकता’ स्थापित होना जरूरी है इसके लिए बिजय कुमार जी जैन द्वारा किया जा रहा प्रयास अवश्य सफल होगा। ‘हिंदी’ हमारी व हमारे देश की पहचान है, आज विदेशों में भी ‘हिंदी’ को जाना व समझा जाने लगा है, ‘हिंदी’ के कारण ही विश्व पटल पर भारत की अलग पहचान बनी है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।