युगपुरूष राष्ट्रसंत प. पू. श्री. आनंदऋषिजी म.सा
गुरू आनंद के पुण्य स्मृति पर हम सभी प्रेमी श्रावकगण
धार्मिक भावोें के दीप जलायें, भवसागर से तिर जायें…
हमने इस युग में चलते-फिरते तीर्थंकर के रूप में गुरूवरजी को देखा है, माना है। हमारे दु:ख, दर्द वो ही पहचाने हैं, उनको हम शीश झुकाकर त्रिवार वंदना कर आशिष चाहते हैं। गुरू आनंद की ज्योति हमें प्रकाश दिलाती है, जीवन जीने की राह दिखाती है। हमारी जीवन नैया मांझी बनकर पार लगाती है। आचार्य सम्राट प.पू. आनंद गुरूवर को पाकर यह धरा भी धन्य हो गयी। हमारे गुरूवर अंबर के भव्य दिवाकर थे। चांद से धवल किर्ती और मिश्री सी मिठी वाणी गुरूवर की थी। मरूस्थल में भी आपने नंदनवन सजाया। राष्ट्रसंत आचार्य सम्राट प.पू. आनंदगुरूवरजी की जन्मभूमि ‘चिंचौडी’ बहुत ही पवित्र पावन हुई है, कण-कण पूजनीय बन गया है। आचार्य भगवन ने समस्त जैनियों को एवम् जैनेत्तर जनता को अपने आचार-विचार प्रवचन द्वारा प्रभावित किया। आप आज भी राष्ट्रसंत की तरह पुजे जाते हैं। आचार्य भगवंत समन्वय में विश्वास करते थे, आपका पुरा जीवन पावन रहा, आप ब्रम्हचारी थे, संयमी पंच महाव्रतधारी महान मानवतावादी महात्मा थे। उच्च वैराग्य भावना से जीवन जीया, कईयों को सार्थक बनाया। जिन शासन की सेवा में हमेशा लगे रहे, आपकी कर्मभूमि हम सभी को बारंबार धर्म की ओर प्रेरित करती है।
प्रेरणादायी व्यक्तित्व के धनी थे पूज्य गुरूवर, हजारों आनंद भक्त इस तीर्थ की यात्रा कर, अपने आपको धन्य समझते हैं। गुरूवर में बहुत कुछ करके दिखलाया। आनंदगुरू आज हमारे बीच नहीं हैं, उनकी अमर कहानी, पावन स्मृति आज भी यादगार बनी हुई है, प्रेरणा देती है। आनंद गुरू सदा प्रसन्नता के प्रतिक रहे, आपकी जिन्दगी का हर प्रयास अभय का वरदान रहा, हर प्रकाश हृदय की मुस्कान रही, हर प्रयास विजय का गान रहा।
महापुरूष मानव समाज के बगीया में कभी न मुरझाने वाले फुल होते हैं, ऐसे ही महापुरूष थे हमारे गुरू आनंद, हम सभी के जीवन में अपनी मधुर वाणी से आनंद भर देते थे, आपका जीवन ही आनंद से ओत-प्रोत था। दीर्घकाल तपस्या कर जीवन को अत्युच्च शिखर पर पहँुचाया। माँ हुलसा ने आपको बचपन में सुसंस्कार दिये। जीवन की नींव सुदृढ बनायी, बालक नेमीचंद को एक वीर पुरूष बनाना चाहा, पं.रत्नऋषिजी म. की सेवा में तीर्थंकर महावीर के चरणों में समर्पित कर दिया और आप महावीर के अनुयायी बन गये। आनंद ऋषिवरजी ने ज्ञान, धर्म, दर्शन, आगम, काव्य संगीत का गहरा अध्ययन पुरा किया। अज्ञानी लोगों का मार्गदर्शन किया। आपका लोकसंग्रह बहुत विशाल ही था। आप कईयों के केंद्र बिंदु बन गये। समाज संगठन आपका लक्ष्य रहा, संघ को, साधु-वृंद को संगठित करने का महान कार्य किया। जीवन साधना के बल पर शानदार आत्मविकास किया। प.पू. आनंद ऋषिजी श्रमण संघ के प्राण थे। राष्ट्रसंत गुरूदेव के आशीर्वाद एवम् प्रेरणा से अनेकों ने आध्यात्म के अमृत का पान किया। शाश्वत आनंद, अनुपम अनुभुति को प्राप्त किया तथा उन्मत बनें। आनंद गुरूवर भक्तों की भक्ती श्रद्धास्थान, गुणरत्नों की खान, समता के सागर, ध्यानीध्यान थे, आपको सारा जहॉ आज भी याद करता है, आपने पर उपकार में जीवन बिताया, हर मुरझाया फूल खिलाया, आखों में अमृत भरा था, कंचन सी काया थी, गगन जैसा विशाल मन था, शांती के सागर थे। आपकी दृष्टि में अमीर-गरीब सरीखे थे, कोई भेद नहीं था। राष्ट्रसंत आचार्य आनंदऋषि जी हॉस्पीटल एण्ड मेडिकल रिसर्च सेंटर द्वारा नगर (महाराष्ट्र) में अनवरत मानव सेवा यज्ञ कार्यरत है, हजारों मरिजोें को आरोग्य लाभ मिल रहा है, जो की मानव सेवा के पथ पर अग्रसर है।