स्थानकवासी संप्रदाय के श्रमण संघ के
आचार्य डॉ. शिवमुनि क्रांतीकारी संतपुरूष हैं

सूरत: भारत की रत्नगर्भा वसुंधरा ने अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है, जो युग के साथ बहते नहीं, बल्कि युग को अपने बहाव के साथ ले चलते हैं, ऐसे लोग सच्चे जीवन के धनी होते हैं। उनमें जीवन-चैतन्य होता है, वे स्वयं आगे बढ़ते हैं, जन-जन को आगे बढ़ाते हैं। उनका जीवन साधनामय होता है और जन-जन को वे साधना की पगडंडी पर ले जाते हैं, प्रकाश स्तंभ की तरह उन्हें जीवन पथ का निर्देशन देते हैं एवं प्रेरणास्रोत बनते हैं। आचार्य सम्राट डॉ. शिव मुनिजी महाराज एक ऐसे ही क्रांतिकारी महापुरुष एवं संतपुरुष हैं, जिनका इस वर्ष हीरक जयन्ती महोत्सव वर्ष मनाया जा रहा है, हाल ही में उन्हें इन्दोर-मध्यप्रदेश में एक भव्य समारोह में अध्यात्म ज्योति के अलंकरण से सम्मानित किया गया।
आचार्य डॉ. शिव मुनि जी पारसमणि हैं, उनके सानिध्य में हजारों मनुष्यों का जीवन सर्वोत्तम और स्वर्णिम हुआ है, वे युगद्रष्टा एवं युगस्रष्टा धर्माचार्य हैं, उन्होंने युग की समस्याओं को समझा और उनका समाधान प्रदान किया। देश में सांप्रदायिकता, अराजकता, भोगवाद और अंधविश्वास का विष फैलाने वाले धर्माचार्य बहुत हैं। धर्म का यथार्थ स्वरूप बताने वाले आचार्य शिव मुनि जैसे धर्माचार्य कम ही हैं, उन्होंने धर्म के वैज्ञानिक और जीवनोपयोगी स्वरूप का मार्गदर्शन किया, वे प्रगतिशील हैं क्योंकि उन्होंने धर्म के क्षेत्र में नये-नये प्रयोग किये हैं, आप महान परिव्राजक हैं।
कठोर चर्या भूख और प्यास से अविचलित रहकर गांव-गांव घूमे, हजारों किलोमीटर की पदयात्रा की, विशाल दृष्टि के धारक हैं, क्योंकि वे सबके होकर ही सबके पास पहुंचे, स्वयं में ज्ञान के सागर विद्यापीठ हैं, क्योंकि अध्ययन, अध्यापन, स्वाध्याय और साहित्य निर्माण उनकी सहज प्रवृत्तियां हैं, आप महान हैं क्योंकि गति महान लक्ष्य की ओर है, सिद्ध हैं, आस्थाशील हैं और विलक्षण हैं, इसलिये जन-जन के लिये पूजनीय हैं।
धार्मिक जगत के इतिहास में आचार्य शिव मुनि इन शताब्दियों का एक दुर्लभ व्यक्तित्व हैं, आपकी जीवनगाथा भारतीय चेतना का एक एक अभिनव उन्मेष है। आपके जीवन से आपके दर्शन और मार्गदर्शन से असंख्य लोगों ने शांति एवं संतुलन का अपूर्व अनुभव किया।
आपका जन्म ८ सितम्बर १९४२ को भादवा सुदी पंचमी के दिन पंजाब एवं हरियाणा की सीमा पर बसे ‘रानिया’ नामक गांव में, आपके ननिहाल में हुआ। आपके पिता सेठ चिरंजीलाल जैन एवं माता श्रीमती विद्यादेवी जैन एक धार्मिक, संस्कारी, कुलीन एवं संपन्न परिवार के श्रावक-श्राविका थे। धर्म के प्रति यह परिवार ५ पीढ़ियों से समर्पित रहा है। यही कारण है कि पारिवारिक संस्कारों एवं धार्मिक निष्ठा की पृष्ठभूमि में आपने एवं आपकी बहन ने ४७ मई १९७२ को मलोठ मगण्डी में दीक्षा स्वीकार की। आप शिव मुनि बने एवं बहन महासाध्वी निर्मलाजी महाराज के नाम से साधना के पथ पर अग्रसर हुयीं। तृतीय पट्टधर आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी के देवलोकगमन के पश्चात ९ जून १९९९ को अहमदनगर (महाराष्ट्र) में श्रमण संघ के विधानानुसार आपश्री को श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर आचार्य के रूप में अभिषिक्त किया गया, इससे पूर्व द्वितीय पट्टथधर आचार्य श्री आनंद ऋषि जी महाराज ने ३ मई १९८७ को आपको युवाचार्य घोषित किया था। लगभग २०० साधु-साध्वियों तथा लाखों श्रावकों वाले इस विशाल चतुर्विद श्रीसंघ के नेतृत्व का दायित्व आपने संभालने के पश्चात संपूर्ण भारत को अपने नन्हे पांव से नापा।
आचार्य बनने के पश्चात आपने श्रमण संघ को नये-नये आयाम दिये।
नीतिशास्त्री डब्ल्यू, सी. लूसमोर ने विकसित व्यक्तित्व को तीन भागों में बांटा है- विवेक, पराक्रम और साहचर्य।
नीतिशास्त्री ग्रीन ने नैतिक प्रगति के दो लक्षण बतलाए हैं-सामंजस्य और व्यापकता, इनके विकास से मनुष्य आधिकारिक महान बनता है। व्यक्तित्व के विकास के लिए अपने आपको स्वार्थ की सीमा से हटाकर दूसरों से जोड़ देने वाला सचमुच महानता का वरण करता है। आचार्य सम्राट शिव मुनि का व्यक्तित्व इसलिए महान है कि वे पारमार्थिक दृष्टि वाले हैं। श्रेष्ठता और महानता आपकी ओढनी नहीं है, कृत्रिम भी नहीं, बल्कि व्यक्तित्व की सहज पहचान है। पुरुषार्थ की इतिहास परम्परा में इतने बड़े पुरुषार्थी पुरुष का उदाहरण कम ही है, जो अपनी सुख-सुविधाओं को गौण मानकर जन-कल्याण के लिए जीवन जी रहे हैं।
अध्यात्म क्रांति के साथ-साथ समाज क्रांति के स्वर और संकल्प भी आपके आस-पास मुखरित होते रहे हैं। संत वही है जो अपने जीवन को स्व परकल्याण में नियोजित कर देता है। आचार्य शिव मुनि साधना के पथ पर अग्रसर होते ही धर्म को क्रियाकांड से निकालकर आत्म-कल्याण और जनकल्याण के पथ पर अग्रसर किया, आपका मानना है कि धर्म न स्वर्ग के प्रलोभन से हो, न नरक के भय से, जिसका उद्देश्य हो जीवन की सहजता और मानवीय आचारसंहिता का धुव्रीकरण, आपने धर्म को अंधविश्वास की काया से मुक्त कर प्रबुद्ध लोकचेतना के साथ जोड़ा। समाज सुधार के क्षेत्र में पिछले बारह वर्षों से आप त्रि-सूत्रीय कार्यक्रम को लेकर सक्रिय हैं, यह त्रि-सूत्रीय कार्यक्रम हैं- व्यसनमुक्त जीवन, जन-जागरण तथा बाल संस्कार इन्हीं तीन मूल्यों पर आदर्श समाज की रचना संभव है, आपने अपने धर्मसंघ के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते हुए जन-जन को ध्यान का प्रशिक्षण दिया। आप महान ध्यान योगी हैं। ध्यान और मुनि ये दो शब्द ऐसे हैं जैसे दीपक की लौ और उसका प्रकाश, सूर्य की किरणें और उसकी उष्मा। साधुत्व की सार्थकता और साधुत्व का बीज आपकी साधना में है जो निरंतर स्वाध्याय और ध्यान में संलग्न रहता है, स्वाध्याय से ज्ञान के द्वार उद्घाटित होते हैं, उसी ज्ञान को स्व की अनुभूतियों पर उतारने का नाम ध्यान है, इसी साधना को आचार्य सम्राट शिव मुनि ने अपने अस्तित्व का अभिन्न अंग बनाया है। स्वयं तो साधना की गहराइयों में उतरते ही हैं, हजारों-हजारों श्रावकों को भी ध्यान की गहराइयों में ले जाते हैं। इस वैज्ञानिक युग में उस धर्म की अपेक्षा है जो पदार्थवादी दृष्टिकोण से उत्पन्न मानसिक तनाव जैसी भयंकर समस्या का समाधान कर सके, पदार्थ से न मिलने वाली सुखानुभूति करा सके। नैतिकता की चेतना जगा सके। आचार्य शिव मुनि जी ने अपने ध्यान के विभिन्न प्रयोगों से धर्म को जीवंत किया है।
आचार्य सम्राट शिवमुनि जी का जीवन विलक्षण विविधताओं का समवाय है, आप कुशल प्रवचनकार, ध्यानयोगी, तपस्वी, साहित्यकार और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं। सृजनात्मक शक्ति, सकारात्मक चिंतन, स्वच्छ भाव, सघन श्रद्धा, शुभंकर संकल्प, सम्यक‌ पुरुषार्थ, साधनामय जीवन, उन्नत विचार इन सबके समुच्चय से गुम्फित है आपका जीवन। आप महान‌ साधक एवं कठोर तपस्वी संत हैं। लगभग पिछले ४० वर्षों से लगातार एकांतर तप कर रहे हैं। इक्कीसवीं शताब्दी को अपने विलक्षण व्यक्तित्व, अपरिमेय कर्तत्व एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण से प्रभावित करने वाले युगद्रष्टा ऋषि एवं महर्षि हैं, आपकी साधना जितनी अलौकिक हैं, उतने ही अलौकिक हैं आपके अवदान, धर्म को अंधविश्वास एवं कुरीढ़ियों से मुक्त कर जीवन व्यवहार का अंग बनाने का अभिनव प्रयत्न आपने किया है।
‘जैन एकता’ की दृष्टि से आपने निरंतर उदारता का परिचय दिया है। जय भारत!

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