क्षमा माँग कर बैरभाव खत्म करें

Michami Dukham

जैन धर्मावलंबियों के पर्युषण पर्व समाप्त होने के बाद बारी आती है क्षमावाणी पर्व की, पर्युषण का पहला दिन उत्तम क्षमा का दिन होता है और इस दिन से शुरू हुए पयुर्षण पर्व के दस दिन हमें धर्म को आत्मसात कर बैरभाव को दूर करके क्षमा भाव बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं। दसलक्षण पर्व के अंतर्गत की गई पूजा-अर्चना हमें अहंकार से दूर कर मानवीयता की ओर ले जाती है, यह मानवीयता भी एक माँ के समान ही है, जिस प्रकार कोई भी माता अत्यंत क्षमाशील होती है, हमारी किसी भी अच्छी-बुरी बात को भूलकर तुरंत हमें क्षमा (माफी) प्रदान करती है, वैसे ही ‘दसलक्षण पर्व’ हमें उत्तम क्षमा की अनंत शक्ति का आभास कराता है, यह पर्व हमें शिक्षा देता है कि सांसारिक मानवीय जीवन में छोटी-मोटी भूलें होती ही रहती हैं, किसी भी कारणवश एक-दूसरे किसी के भी मन का सहज ही दुखी होना संभव है, ऐसे में हमें बैरभाव को परे रखकर क्षमा का मार्ग अपनाना चाहिए। क्षमा का मार्ग अतुलनीय होता है, क्षमा हमें हमारे पापों से दूर करके मोक्ष का रास्ता दिखाती है। किसी भी धर्म की किताब का अगर हम अनुसरण करते हैं तो उसमें भी क्षमा भाव को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है, फिर चाहे वो हिंदू हो या जैन, कुरान हो या गीता…। सभी के अनुसार एक दिन यह सृष्टि नष्ट होने वाली है और मिटना यानि नष्‍ट होने का परिवर्तन ही संसार का स्वभाव है, परिवर्तन ही सृष्टि की देन है, ऐसे में हमें परिवर्तन का मार्ग अपना कर धर्म के सही रास्ते पर चलना चाहिए, हम रोजमर्रा के जीवन में देखते है कि जब-जब किसी से भी हमारी दुश्मनी बढ़ती है तब-तब हमारा क्रोध, अहंकार सामने वाले दुश्मन को मरने-मारने पर उतारू हो जाता है, ऐसे में हमारी दुश्मनी कभी खत्म नहीं होती, दुश्मन को मारने से अच्छा है कि हम हमारे अंतरात्मा में पनप रही उस दुश्मनी को ही मार डालें, तब जाकर हम किसी को क्षमा करने योग्य और किसी की क्षमा पाने योग्य बन पाएँगे।

ऐसे में दुश्मनी से छूटने का एकमात्र उपाय है, हमारी सोच का बदलना, जब तक हम हमारी सोच नहीं बदल पाएँगे, हमारे चेहरे और दिल के बैरभाव को भुलाकर हम मुस्कुराहट नहीं ला पाएँगे तब तक क्षमा पाना और करना संभव नहीं है। क्षमा भाव में एक आत्मीयता छिपी होती है, और वह हमारे चेहरे पर दिखाई देनी चाहिए। हमारे दिल को झकझोर देने वाली एक निरंतर सोच हमें अपने आप में डुबोकर रखती है, ऐसी बैरभाव वाली इस सोच को बदल कर हमें निश्छल मुस्कुराहट बिखेरकर सामने वाले के क्रोध को जड़ से समाप्त कर देना चाहिए।

ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमेशा सामने वाला व्यक्ति ही आपसे क्षमा माँगे। चाहे वो फिर आपसे उम्र में छोटा ही क्यों न हो.। आप भी पहल करके, उसके सामने झुककर उससे क्षमा माँग लेंगे तो उसमें आपका मान-सम्मान बिलकुल भी कम नहीं होगा। बल्कि आपके इस व्यवहार से सामने वाला भी पिघल जाएगा। उसका गुस्सा, क्रोध, अहंकार सबकुछ अपने आप ही खत्म हो जाएगा, और वह स्वयं भी आपके आगे झुक जाएगा।

क्षमा का यह मार्ग भगवान द्वारा बताया गया मार्ग है। तभी तो पर्युषण पर्व के बहाने प्रति वर्ष यह दसलक्षण पर्व आकर हमें अपने सही-गलत कर्मों की याद दिलाता है और दस दिन के तप, पूजा से हमें यह सीख देता है कि क्रोध से जीवन नहीं चलता, क्रोध से घर नहीं चलते, क्रोध अहं से तो अच्छे से अच्छे परिवार, देश, दुनिया सब नष्‍ट हो जाते हैं।

सम्मिलित परिवार बिखरकर अलग-अलग घरों में तब्दील हो जाते हैं, ऐसे ही फिर दिल के भी टुकड़े-टुकड़े होकर वह बिखर जाता है, घर बँट गए, परिवार बँट गए, प्यार बँट गया और फिर संसार बँट गए। वैसे ही परिवार के बिखरकर टुकड़े हो जाते है, जैसे एक बच्चे का खिलौना टूटकर बिखर जाता है, इन सबसे बचने और अपने क्रोध, अहं से मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है क्षमा का मार्ग। क्षमा का मार्ग अपना कर ही हम सही और सत्य के रास्ते पर चल सकते हैं और यही हमारे जीवन का सही मार्ग भी होना चाहिए। हम सब क्षमा, अहिंसा के रास्ते पर चले तो निश्चित ही सभी का कल्याण होगा, चाहे मामला फिर अयोध्या में मंदिर या मस्जिद बनने का क्यों न हो, सत्य, अहिंसा और क्षमा का रास्ता ही देश, दुनिया को बचाने और शांतिपूर्ण जीवन जीने का सही रास्ता है, अत: अहिंसा और क्षमा के रास्ते को अपनाते हुए ही अयोध्या के फैसले का स्वागत करके विश्व में शांति, अमन और चैन कायम रखें।

सभी को जैन पयुर्षण के क्षमावाणी पर्व पर ‘उत्तम क्षमा’।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *