मैं भारत हूँ परिवार द्वारा सुरेश नावंदर पुणे रत्न से सम्मानित (Suresh Navandar honored with Pune Ratna by main bharat hun family)
श्री माहेश्वरी बालाजी मंदिर, कसबा पेठ, तथा महेश सेवा संघ पुणे के भूतपूर्व अध्यक्ष एवं विश्वस्त सुरेश
नावंदर को मैं भारत हूँ परिवार द्वारा सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में उत्कृष्ठ सेवा के लिए पुणे रत्न
सम्मान दिया गया।
‘मैं भारत हूँ’ परिवार की ओर से जूम मिटींग पर ‘भारत को ‘भारत’ कहें वेबिनार में अध्यक्ष ज्येष्ठ
पत्रकार बिजय कुमार जैन इस विषय में अपनी भूमिका बतायी। कार्यक्रम के दौरान पुणे रत्न पुरस्कार से
२५ लोगों को जूम पर सन्मानित किया गया। प्रमुख रूप से शाकाहार एवं व्यसन मुक्ति आंदोलन के
प्रमुख डॉ. कल्याण गंगवाल, ज्येष्ठ समाजसेवी जेठमल दाधीच, संतोष व्यास, जैन कॉन्फरेन्स की महिला
अध्यक्षा विमला बाफना, राजेंद्र भट्टड, डॉ. अशोक पगारीया, प्रविण चोरबेले आदि अपने विचार रखे।
राष्ट्रीय अध्यक्ष बिजय कुमार जैन करिबन १०० से ज्यादा वेबिनार का आयोजन कर लाखों लोगों को
अपने साथ भारत को ‘भारत’ ही बोला जाए, अभियान में जोड़ लिया है। अंत में संगठन मंत्री कानबिहारी
अग्रवाल ने आभार प्रदर्शन किया। निशा लड्डा ने सुत्र संचालन किया। सुरेश नावंदर हाल में माहेश्वरी
विद्या प्रचारक मंडल के शिष्यवृत्ती समिती के तथा पुणे पश्चिम परिवार प्रतिष्ठान में सदस्य रूप में
कार्यरत हैं।
मैं भारत हूँ परिवार द्वारा सुरेश नावंदर पुणे रत्न से सम्मानित (Suresh Navandar honored with Pune Ratna by main bharat hun family)
बिजय कुमार जैन
वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
महावीर जन्म कल्याणक पर्व ‘जैन एकता’ के साथ मनाएं
२६ साल पहले मेरे मन में एक ख्याल आया कि २४ तीर्थंकरों के अनुयायी हम सभी अहिंसाप्रेमी कई-कई पंथों में क्यों बंटे हुए हैं, जबकि हमारी जनसंख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब५० लाख ही है और ५० लाख में हम ५० पंथों में बंटे हुए हैं, हर कोई अपने आपको एकदूसरे से बड़ा दिखाने की कोशीश करता है जबकि बड़े केवल २४ तीर्थंकर ही हैं, २५वॉ तीर्थंकरहो नहीं सकता पंचम काल में, जबकि सभी के लिए प्रात: वंदनीय ‘णमोकार मंत्र’ ही है, फिर भी इतना अलगाववाद क्यों?
कलम का धनी होने के कारण मन में यह ख्याल आया कि क्यों न एक पत्रिका का प्रकाशन करâं और वो ‘जैन एकता’ के लिए ही हो, पत्रिका का नाम रखा ‘जिनागम’। लगातार प्रकाशन करना आज के इलेक्ट्रानिक व सोशल मिडिया के युग में बहुत ही मुश्किल भरा कार्य था पर आज तक
यह सफर जारी है इसका मुख्य कारण आज जैन समाज में कई ऐसे भाग्यशाली हैं जो मात्र जैन समाज का हित चाहते हैं, संगठन चाहते हैं, एकता चाहते हैं अपने पद तक की परवाह नहीं करते, पर कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें केवल स्वयं से प्यार है, समाज से कोई लेना-देना नहीं, यह तो हुयी श्रावकों की बात, यदि साधु-संतों की बात की जाए तो उनकी तो बात ही निराली है। साधु-संत भले ही अपने परिवार का परित्याग कर मोक्षमार्ग को स्वीकार कर लिया पर लोभ-लालच से आज भी संलग्न हैं, अपने-अपने मठ, नाम, आचार्य पद हो या अवतरण (जन्म) दिवस या हो दिक्षा दिवस, श्रावकों को विवश कर लाखों ही नहीं, करोड़ों की राशी खर्च करवाते हैं।
सचमुच कलयुग का समय है, जो हो रहा है सही नहीं हो रहा है, जो होना चाहिए वह हो नहीं पा रहा। पिछले २६ सालों में मैंने जो कुछ जाना, सुना, देखा, मन व्यथित हो जाता है कि क्या हो गया है, अहिंसामयी जिन शासन को…
‘जैन एकता’ आज के समय की ही नहीं युग की मांग है, बड़े बड़े मंदिर, आलिशान मठ आदि का निर्माण तो हर जरूर कर रहे हैं जिसकी भविष्य में सुरक्षा व रख-रखाव की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके लिए एक ही हथियार काम आयेगा वह होगा ‘जैन एकता’ जिसके द्वारा आने वाली पिढ़ी तीर्थों, मंदिरों, मठों की सुरक्षा करेगी जो कि हमारे पूजनीय साधु-संतों द्वारा निर्मित किया गया या जा रहा है।
समय आ गया है समस्त जैन समाज की विश्वसनीय घोषित विश्वस्तरीय ‘जैन एकता’ के लिए प्रयासरत ‘जिनागम’ पत्रिका का आव्हान ‘ना हम दिगम्बर-ना हम श्वेताम्बर हम-सब जैन हैं’। तीर्थंकर महावीर जन्म कल्याणक पर्व पर ३ मार्च २०२३ को ‘जैन एकता’ की जय-जयकार करें ताकि विश्व में पैâले जिन धर्मावलम्बी बोलें कि ‘हम-सब जैन हैं’। भारत को Bharat ही बोला जाए अभियान की सफलता के लिए भारत के हर राज्य की राजधानी में Principal Conclave का आयोजन कर रहे हैं, यदि आप भी इस अभियान में सम्मिलित
होकर नाम की स्वतंत्रता में शामिल होना चाहते हैं तो मुझसे जरूर संपर्क करें। जय जिनेंद्र!
लेटेस्ट अपडेटस प्राप्त करने के लिए खुद को सब्सक्राइब करें