अहिंसावादी थे तीर्थंकर महावीर -साध्वी रचना श्री (Tirthankara Mahavir was a non-violenceist – Sadhvi Rachna Shri in hindi)

अहिंसावादी थे तीर्थंकर महावीर -साध्वी रचना श्री (Tirthankara Mahavir was a non-violenceist - Sadhvi Rachna Shri in hindi )

अहिंसावादी थे तीर्थंकर महावीर -साध्वी रचना श्री (Tirthankara Mahavir was a non-violenceist – Sadhvi Rachna Shri in hindi ) : निरभ्र नील गगन, शांत-प्रशांत उज्ज्वल चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की रात्रि राजा सिद्धार्थ का गृह आंगन, माता
त्रिशला की कुक्षि से २४वें तीर्थंकर महावीर (Tirthankara Mahavir) का जन्म हुआ था। श्रमण परंपरा के आकाश में एक ऐसा दैदीप्यमान सूर्य अंधकार को प्रकाश में बदलने के लिए क्षत्रिय कुंडग्राम में १४ महा विशिष्ट स्वप्नों के साथ धरा धाम को पावन सुपावन करने के लिए आया। अर्ताद्रिय ज्ञान से संपन्न तीर्थंकर महावीर का जन्म, जन-जन के लिए आह्लाद पैदा करने वाला था। महावीर स्वनाम धन्य थे फिर भी उनकी अनेक विशेषताओं को ध्यान में रखकर अनेक नामों से पुकारा गया, उनके गुण निष्पन्न नाम थे- वर्द्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर, ज्ञातपुत्र, समन
(श्रमण), महावीर।

महावीर ने चिदात्मा की प्राप्ति के लिए चढ़ती यौवन अवस्था में सन्यास मार्ग की ओर चरणों को गतिमान बनाया। महावीर की साधना में स्वस्वरुप की प्राप्ति तथा साथ ही साथ पर कल्याण की भावना का समावेश था।
परम आलोक से साक्षात्कार के लिए महावीर के चरण साधना पथ पर निरंतर गतिशील थे। विघ्नों और बाधाओं ने उपस्थित होकर परीक्षा लेनी प्रारंभ की। महाबली महावीर उस विकट परिस्थिति के क्षणों में एक क्षण के लिए भी
संत्रस्त नहीं हुए। महावीर का मन पुलकित था, तन पर होने वाले कष्टों में वे अभय और मैत्री को साथ लेकर विजयी बनते गए। महावीर के तप तेज के आगे देवकृत, मनुष्य कृत, तिर्यंच कृत उपसर्ग निस्तेज होते चले गए और एक दिन वह आया, जिसमें महावीर ने पाया कि सब द्रव्यों और सब पर्यायों को जानने की अपूर्व क्षमता से युक्त केवल ज्ञान, लंबे समय से चला आ रहा विघ्नों का ज्वार शांत हो गया। वैâवल्य प्राप्ति के साथ ही महावीर ने अखिल भारतीय विश्व को अिंहसा, अपरिग्रह और अनेकांत का आलोक प्रदान किया। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की त्रिपदी से आत्मवाद के सत्य को स्पष्टता से उजागर किया। पर्यावरण के प्रणेता पुरुष ने आज से लगभग २६०० वर्षों पूर्व वर्तमान की एक ज्वलंत समस्या ‘बढ़ता हुआ प्रदूषण एवम् पर्यावरण शुद्धि’ का समाधान दिया।

महावीर ने कहा- (Tirthankara Mahavir says )
१. वणकम्मे- जंगलों की कटाई न हो
२. फोडीकम्मे-भूमि का उत्खनन न हो
व्यक्ति अपनी सुख-सुविधा के लिए असंयम को बढ़ावा दे रहा है, अगर वह महावीर के ‘संजमम्यि ये वीरयं’ के सूत्र को आत्मसात कर ले तो निश्चित ही पैâलते प्रदूषण को रोका जा सकता है। तीर्थंकर महावीर ने अहिंसा की
अत्यंत सूक्ष्म व्याख्या प्रस्तुत की है।
‘‘आय तुले पयासु’’ सब जीवों को अपनी तुलना से तोलो।
‘‘हिंसा प्रसूतानि सर्व दु:खानि’’
समस्त कष्टों के मूल में हिंसा है। प्रत्येक प्राणी जीने की इच्छा रखता है फिर क्यों किसी के प्राणों का हनन हो?
वर्तमान में बढ़ते हुए हिंसक कारनामों को रोकने के लिए महावीर के अहिंसा दर्शन को समझना जरुरी है। भगवान महावीर का अपरिग्रह सिद्धांत बढ़ते हुए पूँजीवाद को रोकने में समाधायक है।

‘इच्छा निरोध: तप:’ इच्छाएं आकाश के समान अनंत हैं। बढ़ती हुई इच्छाओं को विवेक के द्वारा रोकना सीखें या यों कहें कि विवेक के द्वारा रोका जा सकता है। वर्तमान में व्यक्ति की लालसा पेट नहीं पेटी भरने की है, फलत: भ्रष्टाचार चारों ओर व्याप्त हो रहा है। करप्शन को रोकने के लिए आंदोलन किए जा रहे हैं। महावीर दर्शन का अपरिग्रह सिद्धांत समाधान है। बढ़ते भ्रष्टाचार को रोकने के लिए महावीर का अनेकांत दर्शन सामुदायिक जीवन को सरसता एवम् मधुरता दे सकता है। एडजेस्टमेंट का महत्वपूर्ण आलंबन बनता है- अनेकांत। सामंजस्य का प्रशिक्षण प्राप्त होता है- अनेकांत से। सामूूहिक जीवन में रहने, कहने और सहने का अवबोध देता है- अनेकांत। टूटते-बिखरते परिवारों के लिए अनेकांत आधार-स्तंभ बन सकता है, महावीर नाम में अंग्रेजी के ७ अक्षर आते हैं।

अहिंसावादी थे तीर्थंकर महावीर -साध्वी रचना श्री (Tirthankara Mahavir was a non-violenceist - Sadhvi Rachna Shri in hindi )

MAHAVIR –
M for Magnanimity उदारता
A for Abnegation त्याग (संयम)
H for Hardihood निडरता
A for Abstemious संयमी
V for Verity सत्य
I for Imperturbable शांत
R for Remit क्षमा करना

जीवन की राह को आसान बनाने के लिए ये सात शब्द स्वर्णिम सूत्र है। विश्व स्तर की समस्याओं को समाधान प्राप्त होता है कि आप उदार बनें, त्याग की चेतना को पुष्ट करें। निडरता से सत्यवृत्ति में प्रवृत्त बनें। संयमी बनकर बढ़ती आकांक्षाओं पर नियंत्रण करें। सत्य के आलोक में सफल होना सीखें। प्रत्येक परिस्थिति में शांत बने रहें और क्षमा की सरिता में स्नान कर निर्मल, पवित्र, पावन बनें। भगवान महावीर परम अहिंसावादी, उत्कृष्ट सहिष्णु, धीर-वीर गंभीर थे। उन्होंने रूढ़ धारणाओं, अंधपरंपराओं, अंधविश्वासों पर तीव्र प्रहार कर जन-जन की आस्था के आस्थान बनें।

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