क्षमा वीरस्य भूषणम

क्षमा नयन का नीर है, हरे जो भव की पीर

घाव भरे कटुवाणी का. शीतल करे शरीर

पर्युषण का अर्थ है- परि-उपसर्ग, वसधातु और अन प्रत्यय, इन तीनों के संयोग से पर्युषण शब्द निष्पन्न हुआ है। परि-समन्तात् समग्रतया उषणं वसनं निवास करणं अर्थात् सम्पूर्ण रुप से निवास करना, विभाव से हटकर स्वभाव में रमण करना। शास्त्रों में पर्व एक ही दिन का स्वीकृत हुआ है, बाकी दिन तो पर्व की सम्यक आराधना की तैयारी के लिए पूर्वाचार्यों के द्वारा नियत किए गये हैं, अत: वे भी उपेक्षनीय नहीं है, जैसे बलवान पर धावा बोलने के लिए बल का संचय करना आवश्यक है उसी प्रकार रागादि शत्रुओं की घात के लिए सात दिन आध्यात्मिक बल संग्रह का समझना चाहिए, यह पर्व मात्र जैन सन्स्कृति का ही नहीं, मानव संस्कृति पर्व है।

एक संवत्सर यानि एक वर्ष के बाद आने वाले महानतम दिन को व्यवहार से ‘संवत्सरी’ कह दिया गया है, वस्तुत: इस पर्व का नाम ‘‘पर्युषण’’ भगवान महावीर ने चातुर्मास के ५० दिन बीतने पर और ७० दिन बाकी रहने पर पर्युषण पर्व की आराधना की थी, ऐसा समवायांग में उल्लेख है। तिथियों की घट-बढ़ के कारण कभी-कभी इधर ४९ दिन और उधर ७१ दिन हो जाते हैं।

पर्युषण पर्व को ८ दिनों में जैन लोग अधिकतर सांसारिक कार्यो से निवृत होते है, इस पर्व में प्रात:कालीन प्रवचन, श्रवण, स्वाध्याय, प्रेक्षाध्यान, जप, द्रव्यों का परिमाण, रात्रि भोजन का परित्याग, ब्रह्मचर्य का पालन, अणुव्रत साधना, सामायिक, मौन, सामूहिक प्रतिक्रमण, पौषध साधना आदि करते हैं साथ ही भगवान महावीर का जीवन दर्शन पढ़ा जाता है, ८ वें दिन संवत्सरी महापर्व यथाशक्ति उपवास एवम् पोषध कर, सभी धर्माराधना करते हैं, सभी से क्षमायाचना (खमत-खामणा) करते हैं। क्षमा का अर्थ है सहना, सहने को अपना धर्म मानकर विरोधी भाव को सहना क्षमा है, क्षमा शक्तिशाली का अस्त्र है। अपनी शक्ति के उन्माद पर नियन्त्रण रखना क्षमा है, इसके द्वारा व्यक्ति वर्ष भर में एकत्रित तनाव से मुक्त हो जाता है, शान्ति उसे मिलती है जिसके ह्रदय में क्षमा लहराये, दूसरों की कमजोरियों, अपराधों और भूलों को भूला सके, वही आनन्द का स्रोत बन सकता है, अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगने में जो न सकुचाये वह महान है। शान्तिदूत वही है, जो अपनी भूलों से उत्पन्न वेदना को भुला देने का नम्र अनुरोध करे। गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी ने कहा था क्षमाशील वह होता है जो अतीत को विस्मृत करता है, वर्तमान की चिन्तनधारा बदलता है और भविष्य में किसी प्रकार की थलना न करने का संकल्प करता है, क्षमा वही व्यक्ति कर सकता है, जिसका ह्रदय विशाल हो जिसमें सहज, सरलता हो और जीवन को अभिभूत करनेवाली मृदुता हो”|

एक बार चीन के सम्राट मगफू को सूचना मिली की उसके राज्य में विद्रोह हो गया है, सम्राट ने प्रतिज्ञा की कि वह विद्रोहियों को समुल नष्ट कर देगा। सम्राट प्रतिज्ञा करके सेना सहित विद्रोहग्रस्त क्षेत्र में पहुँचा। सम्राट के विशाल सेना सहित आने की सूचना पाकर विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण कर दिया और सम्राट ने भी सभी को क्षमा कर दिया, यह देखकर सम्राट के वफादार सैनिकों को बड़ा आश्चर्य हुआ। एक सेनापति ने साहस करके पूछा- ‘‘महाराज आपकी प्रतिज्ञा का क्या हुआ?’’ सम्राट बोला ‘‘मैं अपनी प्रतिज्ञा पर अटल हूँ, मैंने सारे विद्रोहियों को नष्ट कर दिया है, अब वो मेरे शत्रु नहीं रहे, बल्कि मेरे मित्र बन गये हैं।’’ यह है दया-क्षमा-शालीनतायुक्त व्यवहार का सुपरिणाम।

भगवान महावीर ने कहा है कि ‘‘कोहो पिईयपणा सई’’ क्रोध प्रीति का नाश करता है। क्रोध पर विजय पाने के लिए एक मात्र उपाय ‘क्षमा’ है। क्षमा से ही जीव को मानसिक शान्ति मिलती है। क्षमापना से वैमनस्य दूर हो जाता है, मन हल्का हो जाता है, हमारी वर्तमान जीवन शैली सुख-सुविधा एवम् स्वार्थ भरी है यही यह पर्व है जिससे हटकर, आत्म दर्शन याने बाहर की नहीं भीतर की यात्रा के लिए प्रेरीत करता है तो आईए ‘जिनागम’ के सभी धर्म प्रेमी भाईयों एवम् बहनों! इस महापर्व के ‘क्षमा’ कुम्भ में गोते लगाकर, मन को पवित्र बनाएँ और इस जीवन रुपी बगीचा के फूलों को और अधिक तप, त्याग, संयम, आराधना, प्रार्थना, जप, सामायिक ध्यान आदि से महकाएँ, क्योंकि क्षमा से बढ़कर इस संसार से मुक्त करनेवाला अन्य कोई तप नहीं इसीलिए तो कहा जाता है कि ‘‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’’

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