क्षमा यज्ञ है

अपनी आत्मा को विकार (राग-द्वेष, ईष्र्यादि) रहित एवम् ज्ञान स्वभाव से परिपूर्ण करना ही क्षमा है, यदि कोई आकर हमें गालियाँ देने लगे या मारपीट करे तो उस समय पर क्रोध न करना, सभी से क्षमा माँगना, सभी के प्रति मैत्री एवम् समभाव रखना, वैर का परित्याग करना और स्वयं निर्विकारी बने रहना ही ‘क्षमा’ है। हमारे भारतवर्ष में ‘क्षमा भाव’ को धारण कर, हम सभी जैनी भाई-बहन पर्व के रुप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाते हैं। ‘क्षमा’ हमारे पारस्परिक वैमनस्य को समाप्त करके हमें निर्विकारी बने रहने की प्रेरणा देती है। जिस प्रकार हम क्षमापना पर्व मनाते हैं उसी तरह यह दिवस पूरे विश्व में अलग-अलग तिथियों एवम नामों से मनाया जाता है। पश्चिम एशिया के कोने में बसा एक छोटा सा नगर शक्तिशाली देश इजरायल, हर वर्ष १६ सितम्बर को ‘प्रायश्चित दिवस’ मनाते हैं। राष्ट्रीय दिवस के रूप में संस्थान आदि बंद रखते हैं, इस दिन सभी आत्मचिन्तन करते हैं तथा अपनी सामाजिक समस्याओं को हल करते हैं। इससे देशवासियों का नैतिक व राष्ट्रीय चरित्र ऊँचा होता है, शायद यही कारण है कि इजरायल देश में व्यक्तिगत व सामाजिक विवाद बहुत कम होता है और उनका सामाजिक व राष्ट्रीय संगठन बहुत ही मजबूत है।

गुरु रामदास प्रतिदिन दो-तीन घर से भोजन मांग लिया करते और जो कुछ मिल जाता उसी को पूरे दिन का भोजन समझ लिया करते, एक दिन वे भोजन के लिए एक दरवाजे पर जाकर खड़े हुए और भिक्षा के लिए गृहस्वामिनी को आवाज लगाई, उस दिन घर की मालकिन किसी कारणवश क्रोध से भरी हुई थी, ऐसी स्थिति में गुरु की आवाज ने अग्नि में घी का काम किया। गुरु की आवाज सुनकर वह क्रोध से उबल पड़ी और जिस पोतने (सफाई करने वाला कपड़ा) से चौका धो रही थी, वही उनके मुख पर दे मारा।

यह सब देख गुरु रामदास न तो दु:खी हुए और न हीं रुष्ट हुए। मुस्कराते हुए उस पोतने को लेकर वह नदी के किनारे पहुँचे, वहाँ जाकर उन्होंने पहले स्नान किया, फिर उसने पोतने को खूब अच्छी तरह धोकर, सुखाकर घर ले आये और शाम को उस कपड़े से आरती के लिए बत्ती बनाकर भगवान से प्रार्थना की कि ‘हे प्रभु! जिस तरह ये बत्तियाँ प्रकाश दे रही हैं, उसी तरह उस माता का हृदय भी प्रकाशमान रहे।’

‘क्षमाशील’ व्यक्ति अपने कष्टों को नहीं देखते अपितु दूसरों की पीड़ा को देखकर द्रवित होकर, उनको भी दु:ख से दूर रहने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं।

क्षमा पर्व / पर्युषण पर्व के उपलक्ष्य में... क्षमा धारो.....क्षमा करो.....

चाल – दुनिया में रहना है तो …(२) सायोनारा ………

क्षमा धारो भाई क्षमा धारो…मन-वचन-काय से क्षमा धारो

रत्नत्रय युक्त क्षमा धारो…क्रोध-मान-माया-लोभ छोड़ो…(१)

पहले स्वयं को क्षमा करो…मोह शोभ रहित क्षमा धारो

हर जीव प्रति क्षमा करो…क्षमा-याचना भी सभी से करो…(२)

अन्यथावाणी से न होती क्षमा…क्षमा-भाव बिन न होती क्षमा…

मित्रों से ही क्षमा न होती क्षमा…

क्षमावाणी कार्ड से (में) न होती क्षमा…(३)

अक्षमा भाव ही न करो उत्पन्न…स्व-भाव को ही करो मलिन

मोह क्षोभ से भाव होता मलिन…

मलिन भाव से होती क्षमा मलिन…(४)

क्षमा है आत्मा का शुद्ध भाव…राग-द्वेष-मोह आदि अशुद्ध-भाव

अशुद्ध भाव त्याग से होती क्षमा…अन्य जीव यदि न करें क्षमा…(५)

पारस प्रभु ने तो क्षमा धारा…कमठ दुष्ट ने न क्षमाधारा…

पाश्र्व प्रभु पर उपसर्ग किया…पाश्र्व प्रभु को तो मोक्ष मिला…(६)

क्षमा से पाप भी दूर होता…मानसिक-ताप भी दूर होता

विविध रोग भी दूर होते…तन-मन…आत्मा स्वस्थ होते…(७)

क्षमा है ‘‘वीरस्य भूषणम’’ अक्षमा से है आत्म पतनम्

संक्लेश-कलह भी नाशनम…वैर-विरोध भी प्रणाशनम…(८)

उत्तम क्षमा तो मुनि धारे…आंशिक श्रावक जन धारे…

संकल्पी हिंसा सम त्याग करे…व्यर्थ-संक्लेश-श्रावक न करें…(९)

उत्तम क्षमा का भाव धरे…श्रमण बनने का भाव धरे…

श्रमण बनकर साम्य धरे…साधना से मोक्ष प्राप्त करें…(१०)

उत्तम क्षमादि है दश धर्म…आत्मिक-शाश्वतिक-विश्व-धर्म…

परस्पर में करते ये सहयोग…सम-उत्पन्न ये आत्म-भाव…(११)

सम्यग्दृष्टि में ये होते उत्पन्न…सर्वज्ञ में ये होते संपूर्ण…

आत्मिक वैभव मिले इसी से…

‘कनक’ चाहे ये नवकोटि से…(१२)

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