मुख्यपृष्ठ

‘मिच्छामी दुक्कड़म’ का अर्थ

‘मिच्छामी दुक्कड़म’ का अर्थ

कृपया मुझे क्षमा करें, क्या अपने परिवार, रिश्तेदारों-और दोस्तों से क्षमा मांगना अच्छा नहीं है? यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि सभी अपने नाज़ुक रिश्तों को सुधारें और नकारात्मक संबंधों के रिश्तों को साफ रखें और घृणा से दूर रहें। दरअसल, ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ एक सामुदायिक तरीके से व्यक्तिगत माफी की औपचारिकता है, यह व्यक्तिगत क्षमा की तुलना में मानवीय करुणा को बढ़ाने का एक माध्यम है, इसमें एक संपूर्ण समुदाय शामिल है, एक संपूर्ण समाज, माफी वास्तव में एक सबसे महत्वपूर्ण मानव मूल्य है। यह मानव जाति को उनकी पिछली गलतियों को सुधारने की अनुमति / मौका देता है और...
आत्मशुद्धि का पर्व – पर्वाधिराज पर्युषण पर्व

आत्मशुद्धि का पर्व – पर्वाधिराज पर्युषण पर्व

लहरों को मझधार नहीं, किनारा चाहिए हमें चांद सुरज नहीं, सितारा चाहिए मोह-माया में भटकी, इस आत्मा को प्रभु महावीर के संदेशों का सहारा चाहिए जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का नाम लेते ही व्यक्ति नहीं, सत्य का आभास होने लगता है। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांतवाद, ब्रह्मचर्य, अभय, क्षमा के प्रतीक भगवान महावीर के उपदेशों, सिद्धांतों के प्रसार-प्रचार की आज अत्यंत आवश्यकता है। आज समस्त विश्व हिंसा की कगार पर खड़ा है, ऐसे में जरूरत है ‘विश्व मैत्री दिवस’ ‘क्षमा-याचना’ दिवस मनाने की। जैनों का महत्वपूर्ण महापर्व पर्वाधिराज ‘पर्युषण’ एवम् क्षमापर्व ‘संवत्सरी दिवस’ फिर एक बार दुनिया को क्षमा...
हम करें सच्ची क्षमायाचना

हम करें सच्ची क्षमायाचना

संवत्सरी के इस महापर्व पर भले ही हम कई सालों से एक दूसरे के क्षमायाचक बने हैं, एक-दूसरे से क्षमा मांगी है, किन्तु सच्चे अर्थों में हमें प्रकृति के श्रृंगार, राष्ट्र की अमूल्य निधि मूक-मासूम, जीवों से जिनकी रक्षा-सुरक्षा का दायित्व सौंपा था हमें हमारे पूर्वजों गुरूओं, विद्वानों, मुनीषियों से क्षमा मांगनी चाहिए, सही मायनों में आज मूक-मासूम जीवों की रक्षा-सुरक्षा के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों को कैसे पूरा करें? संवत्सरी के पुनीत पावन पर्व पर आज आवश्यकता है इस सम्बन्ध में आत्म चिन्तन की, क्योंकि दया, करुणा और अनुकम्पा का स्वामी मानव मूक व असहाय जीवों के साथ क्रूर...
क्षमा मोक्ष का द्वार है

क्षमा मोक्ष का द्वार है

क्षमा व स्नेह क्षमा व स्नेह स्वाभाविक गुण है जबकि ईर्ष्या अथवा कटुता, विभाव दशा की देन है इसी कारण द्वेष अथवा वैर से उत्पन्न क्रोध को ज्यादा समय तक कोई टीकाकर नहीं रख सकता, कुछ ही समय बाद वह स्वत: समाप्त हो जाता है। क्रोध जब आता है तब ज्वाला का काम करता है, न मालूम क्या-क्या जलाकर राख कर दे। स्नेह जीवन में अमृत तुल्य है, जबकि क्रोध हलाहल विष, स्नेह जीवन को मधुर सुगन्धमय व बिना किसी बोझ व तनाव के स्वाभाविक रुप से विकसित करता है, जबकि द्वेष से जीवन मलिन ग्लानियुक्त व कटुता से कलुषित...
क्षमा वीरस्य भूषणम

क्षमा वीरस्य भूषणम

क्षमा नयन का नीर है, हरे जो भव की पीर घाव भरे कटुवाणी का. शीतल करे शरीर पर्युषण का अर्थ है- परि-उपसर्ग, वसधातु और अन प्रत्यय, इन तीनों के संयोग से पर्युषण शब्द निष्पन्न हुआ है। परि-समन्तात् समग्रतया उषणं वसनं निवास करणं अर्थात् सम्पूर्ण रुप से निवास करना, विभाव से हटकर स्वभाव में रमण करना। शास्त्रों में पर्व एक ही दिन का स्वीकृत हुआ है, बाकी दिन तो पर्व की सम्यक आराधना की तैयारी के लिए पूर्वाचार्यों के द्वारा नियत किए गये हैं, अत: वे भी उपेक्षनीय नहीं है, जैसे बलवान पर धावा बोलने के लिए बल का संचय करना...
?>