
हम करें सच्ची क्षमायाचना
संवत्सरी के इस महापर्व पर भले ही हम कई सालों से एक दूसरे के क्षमायाचक बने हैं, एक-दूसरे से क्षमा मांगी है, किन्तु सच्चे अर्थों में हमें प्रकृति के श्रृंगार, राष्ट्र की अमूल्य निधि मूक-मासूम, जीवों से जिनकी रक्षा-सुरक्षा का दायित्व सौंपा था हमें हमारे पूर्वजों गुरूओं, विद्वानों, मुनीषियों से क्षमा मांगनी चाहिए, सही मायनों में आज मूक-मासूम जीवों की रक्षा-सुरक्षा के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों को कैसे पूरा करें? संवत्सरी के पुनीत पावन पर्व पर आज आवश्यकता है इस सम्बन्ध में आत्म चिन्तन की, क्योंकि दया, करुणा और अनुकम्पा का स्वामी मानव मूक व असहाय जीवों के साथ क्रूर...
क्षमा मोक्ष का द्वार है
क्षमा व स्नेह क्षमा व स्नेह स्वाभाविक गुण है जबकि ईर्ष्या अथवा कटुता, विभाव दशा की देन है इसी कारण द्वेष अथवा वैर से उत्पन्न क्रोध को ज्यादा समय तक कोई टीकाकर नहीं रख सकता, कुछ ही समय बाद वह स्वत: समाप्त हो जाता है। क्रोध जब आता है तब ज्वाला का काम करता है, न मालूम क्या-क्या जलाकर राख कर दे। स्नेह जीवन में अमृत तुल्य है, जबकि क्रोध हलाहल विष, स्नेह जीवन को मधुर सुगन्धमय व बिना किसी बोझ व तनाव के स्वाभाविक रुप से विकसित करता है, जबकि द्वेष से जीवन मलिन ग्लानियुक्त व कटुता से कलुषित...
क्षमा वीरस्य भूषणम
क्षमा नयन का नीर है, हरे जो भव की पीर घाव भरे कटुवाणी का. शीतल करे शरीर पर्युषण का अर्थ है- परि-उपसर्ग, वसधातु और अन प्रत्यय, इन तीनों के संयोग से पर्युषण शब्द निष्पन्न हुआ है। परि-समन्तात् समग्रतया उषणं वसनं निवास करणं अर्थात् सम्पूर्ण रुप से निवास करना, विभाव से हटकर स्वभाव में रमण करना। शास्त्रों में पर्व एक ही दिन का स्वीकृत हुआ है, बाकी दिन तो पर्व की सम्यक आराधना की तैयारी के लिए पूर्वाचार्यों के द्वारा नियत किए गये हैं, अत: वे भी उपेक्षनीय नहीं है, जैसे बलवान पर धावा बोलने के लिए बल का संचय करना...
क्षमा यज्ञ है
अपनी आत्मा को विकार (राग-द्वेष, ईष्र्यादि) रहित एवम् ज्ञान स्वभाव से परिपूर्ण करना ही क्षमा है, यदि कोई आकर हमें गालियाँ देने लगे या मारपीट करे तो उस समय पर क्रोध न करना, सभी से क्षमा माँगना, सभी के प्रति मैत्री एवम् समभाव रखना, वैर का परित्याग करना और स्वयं निर्विकारी बने रहना ही ‘क्षमा’ है। हमारे भारतवर्ष में ‘क्षमा भाव’ को धारण कर, हम सभी जैनी भाई-बहन पर्व के रुप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाते हैं। ‘क्षमा’ हमारे पारस्परिक वैमनस्य को समाप्त करके हमें निर्विकारी बने रहने की प्रेरणा देती है। जिस प्रकार हम क्षमापना पर्व मनाते हैं उसी...
आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान, गंगाशहर
नैतिकता का शक्तिपीठ आचार्य तुलसी की अजर-अमर स्मृतियां आचार्य तुलसी का महाप्रयाण २३ जून १९९७ आषाढ कृष्णा तृतीया वि.सं. २०५४ को हुआ। आचार्य तुलसी के महाप्रयाण के बाद उनके अन्तिम संस्कार स्थल पर आचार्यश्री महाप्रज्ञ के पावन सान्निध्य में स्मारक हेतु शिलान्यास किया गया। श्रद्धेय आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने इस परिसर का नामकरण नैतिकता का शक्तिपीठ किया, जो आज इस रूप में प्रतिष्ठित है। आचार्य तुलसी का समाधि स्थल उनके द्वारा प्रदत्त नैतिक मूल्यों के विकास प्रचार-प्रसार एवं संस्कारों के जागरण की प्रेरणा देता है, इस शक्तिपीठ की स्थापत्य कला अपनी वैशिष्ट्यता लिए हुए है, यह समाधि स्थल श्रद्धालुओं के...