सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व (Paryushan festival is the king of all festivals)

सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व (Paryushan festival is the king of all festivals)
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म में कुल २४ तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्‍हंतों में से ही होते हैं। जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व। पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है आत्मा में अवस्थित होना। पर्युषण का एक अर्थ है कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी अतः यह पर्युषण पर्व आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है। यह सभी पर्वों का राजा है, इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दिवाली की भी संज्ञा दी गई है, जिस तरह दिवाली पर व्यापारी अपने संपूर्ण वर्ष का आय व्यय का पूरा हिसाब करते हैं, गृहस्थ अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण पर्व के आने पर जैन धर्म को मानने वाले लोग अपने वर्ष भर के पुण्य पाप का पूरा हिसाब करते हैं, वे अपनी आत्मा पर लगे कर्म रूपी मैल की साफ-सफाई करते हैं। पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है, पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है। पर्युषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है। पर्युषण पर्व जैन धर्मावलंबियों का आध्यात्मिक त्योहार है। पर्व शुरू होने के साथ ही ऐसा लगता है मानो किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो, यह पर्व मैत्री और शांति का पर्व है। जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्युषण ८ दिन चलते हैं, उसके बाद दिगम्बर संप्रदाय वाले १० दिन तक पर्युषण मनाते हैं, उन्हें वे दसलक्षण के नाम से भी संबोधित करते हैं, यह पर्व अपने आप में ही क्षमा का पर्व है, इसलिए जिस किसी से भी आपका बैरभाव है, उससे शुद्ध हृदय से क्षमा मांग कर मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें।
भारतीय संस्कृति का मूल आधार तप, त्याग और संयम हैं, संसार के सारे तीर्थ जिस प्रकार समुद्र में समाहित हो जाते हैं, उसी प्रकार दुनिया भर के संयम, सदाचार एवं शील ब्रह्मचर्य में समाहित हो जाते हैं। मानव की सोई हुई अन्तः चेतना को जागृत करने, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार, सामाजिक सद्भावना एवं सर्व धर्म समभाव के कथन को बल प्रदान करने के लिए पर्यूषण पर्व मनाया जाता है, साथ ही यह पर्व सिखाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में ज्ञान व भक्ति के साथ सद्भावना का होना भी अनिवार्य है, जैन धर्म में दस दिवसीय पर्युषण पर्व एक ऐसा पर्व है जो उत्तम क्षमा से प्रारंभ होता है और क्षमा वाणी पर ही उसका समापन होता है। क्षमा वाणी शब्द का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति और उसकी वाणी में क्रोध, बैर, अभिमान, कपट व लोभ न हो।
दशलक्षण पर्व, जैन धर्म का प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण पर्व है। दशलक्षण पर्व संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। दशलक्षण पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है। दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं। जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है। संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र त्यौहार पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत-उपवास रखते हैं। मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं तथा भगवान महावीर का अभिषेक कर विशाल शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं, इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं जैसे बाहर का खाना पूर्णतः वर्जित होता है, दिन में केवल एक समय ही भोजन करना आदि। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैन धर्मावलंबी अपने यहां पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं और फिर उसी मार्ग पर चलकर अपने अगले भव को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। आइए! हम सभी अपने राग-द्वेष और कषायों को त्याग कर भगवान महावीर के दिखाए मार्ग पर चलकर विश्व में अहिंसा और शांति का ध्वज फैलाएं। क्षमा करें और कराएं साथ ही भारत को ‘भारत’ ही बोलें।

सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व  (Paryushan festival is the king of all festivals)

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