जैन धर्म की मान्यताएँ, विशेषताएँ और चातुर्मास (Beliefs, Characteristics and Chaturmas of Jainism in hindi)
जैन धर्म किसी एक धार्मिक पुस्तक या शास्त्र पर निर्भर नहीं है, इस धर्म में ‘विवेक’ ही धर्म है
जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है
देश, काल और भाव के अनुसार ज्ञान दर्शन से विवेचन कर, उचित-अनुचित, अच्छे-बुरे का निर्णय करना और धर्म का
रास्ता तय करना
आत्मा और जीव तथा शरीर अलग-अलग हैं, आत्मा बुरे कर्मों का क्षय कर शुद्ध-बुद्ध परमात्मा स्वरुप बन सकता है,
यही जैन धर्म दर्शन का सार है, आधार है
जैन दर्शन में प्रत्येक जीवन आत्मा को अपने-अपने कर्मफल अच्छे-बुरे स्वतंत्र रुप में भोगने पड़ते हैं, यहाँ परमात्मा
को, कर्मों को क्षय कर आत्मा स्वरुप प्राप्त किया जा सकता है
जिनवाणी में किसी व्यक्ति की स्तुति नहीं है, बल्कि समस्त आत्मागत गुणों का महत्व दिया गया है, जिनधर्म गुणों का उपासक है। हमारे बाहर कोई हमारा शत्रु नहीं है, शत्रु हमारे अंदर है, काम क्रोध, राग-द्वेष आदि विकार ही आत्मा के शत्रु हैं, हम राग और द्वेष को जीत कर अविचल निर्मल वीतरागी बन सकते हैं ज्ञान और दर्शन के सभी दरवाजे खुले हैं। अनेकान्तवाद के अनुसार कोई दूसरा धर्म पन्थ भी सही हो सकता है क्योंकि सत्य सीमित या एकान्तिक नहीं है अन्य धर्मों की तुलना में जैन धर्म में अपरिग्रह पर अधिक जोर दिया है, आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह और उनके प्रति मोह आसक्ति वर्जित है जैन धर्म में नगर और नारी को समान स्थान दिया गया है, श्रावक-श्राविका, श्रमण-श्रमणियों के रुप में बराबर स्थान तथा नारी को भी मुक्ति पाने का अधिकारी माना गया है
जैन धर्म, जैन दर्शन के अनुसार जन्म, जाति, रंग, लिंग का कोई भेदभाव नहीं, मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से पहचाना
जाना चाहिए,
जैन दर्शन, जैन धर्म, जैन आचार निवृत्ति परक है, इसमें त्याग और तपस्या, अनासक्ति और अपरिग्रह पर बड़ा जोर
है, प्रवृत्ति सूचक कर्मों से उच्चौत्तर आत्माओं को दूर रहने की सलाह दी गई है
जैन धर्म में रुढ़िवादिता नहीं है, चूंकि एक किसी गुरु, तीर्थंकर, आचार्य या संत को ही सर्वोपरि नहीं माना गया है,
समयानुसार विवेकमुक्त बदलाव मुख्य सिद्धांतों की अवहेलना किये बिना मान्य किया गया है
किसी तरह के प्रलोभन से जैनमत में धर्म परिवर्तन के कोई नियम नहीं है, स्वत: जिन धर्म संयत आचरण करने पर
व्यक्ति जिनोपासक बन सकता है
जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, आकाश, पृथ्वी, ६ प्रकार के जीवों की रक्षा का संकल्प लेना तथा जीवन यापन के लिए
आवश्यकता से कम, उपयुक्त साधनों का प्रयोग करना, यतनापूर्वक पाप रहित जीवन जीना ‘जैन धर्म’ का मुख्य
सिद्धांत है
जैन धर्म में कोई देव भाषा नहीं है, भगवान महावीर के अनुसार जन भाषा में धार्मिक क्रियाएँ और ज्ञान प्राप्ति की
जानी चाहिए, सामान्य जन भाषा भगवान महावीर के समय में प्राकृत और पाली थी, लेकिन आज ये भाषायें भी जन
भाषायें नहीं रही, अत: अपने क्षेत्र की भाषा में चिंतन, मनन और धर्म आराधना होनी चाहिए, यही भगवान महावीर के
उद्घोष का सार है, हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषा या अन्य कोई भी भाषा प्रयोग में ली जा सकती है
‘‘जियो और जीने दो’’ ‘‘परस्परोपग्रह जीवनाम्’’ दयाभाव युक्त और उसी के तहत जीवों के जीने में सहयोग करना
अहिंसा का व्यवहारिक रुप है
जैन धर्म के सिद्धांतों की वैज्ञानिक प्रामाणिकता एक के बाद एक स्वयंसिद्ध है, जैसे वनस्पति में जीव है, जीव और
जीवाणु है, पानी, भोजन, हवा में जीव है, यह सब बातें वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके हैं, इससे सिद्ध होता है कि जैनाचार्य
और जैन दर्शन द्वारा प्रदत्त ज्ञान अंधविश््वासों से मुक्त व सच्चा है।
जैन श्रमण, साधु, साध्वी भ्रमण करते रहते हैं, एक स्थान पर नहीं रहते, मठ नहीं बनाते, आश्रम नहीं बनाते, पैसा
कौड़ी अपने नाम से संग्रह नहीं करते।
जैन धर्म में गृहस्थों के लिए, श्रावक-श्राविका के लिए, सन्त-साध्वी के लिए अलग-अलग आचार मर्यादायें तय की गई
हैं
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह यह पाँच महाव्रत हैं, शाकाहारी भोजन हो, नशा-मुक्त जीवन हो, शिकार
और जुए से दूर रहें, झूठ और चोरी का व्यवहार न करें, व्यभिचार मुक्त जीवन जीएं
मुक्ति का मार्ग अहिंसा, तप दान और शील के द्वारा बताया गया है, किसी से वैर न हो, सभी प्राणियों से प्रेम हो, इन
मर्यादाओं के पालन के लिए विवेक प्राप्ति हेतु ज्ञान दर्शन स्वाध्याय के द्वारा प्राप्त करना हमारा आवश्यक कर्तव्य है
जैन दर्शन सत्यनिवेषी है, सत्य ही धर्म है, परिस्थितिवश विवेक से सत्य को ढूंढना और उचित-अनुचित, धर्म- अधर्म,
पाप-पुण्य का निर्णय करना, ये मुख्य शिक्षाएँ हैं।
-डॉ रिखब चन्द जैन
(चेयरमैन टी.टी. ग्रुप)
जैन धर्म की मान्यताएँ, विशेषताएँ और चातुर्मास (Beliefs, Characteristics and Chaturmas of Jainism in hindi)
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जुलाई 2024
बिजय कुमार जैन वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
अमेरिका का हर जैन कहता है ‘हम सब जैन हैं’
मेरी १५ दिनों की अमेरिका में स्थापित ‘न्यू जर्सी’ की यात्रा अभूतपूर्व व सुखदपूर्वक रही, मुझे भी जीवन
में पहली बार ‘अमेरिका’ घूमने को मौका मिला, क्योंकि मेरा सुपुत्र ‘निहाल’ (२५) वर्तमान में अमेरिका
के ‘न्यू जर्सी’ में निवासित है और विश्व प्रसिद्ध ‘अमेजॉन’ कंपनी में कार्यरत है। बहुत ही अच्छा माहौल
अमेरिका का देखने को मिला, विशेषकर जब अमेरिका में स्थापित जैन मंदिरों के दर्शन किए, तो वहां पर
जो देखने को मिला, बरबस यह लिखने को मन कर गया, क्योंकि हर अमेरिका निवासी कहता है ‘हम
सब जैन हैं’। अमेरिका में दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथ समुदाय के निवासित हर श्रावकश्राविका को यह कहते देखा गया कि ‘हम सब जैन हैं’। कई लोगों से वार्तालाप भी हुई, बोले की हम
जरूर अमेरिका के निवासी हैं, पर ‘हम सब जैन हैं’।
काश! अमेरिका में निवासित जैनों के जो विचार हैं, वे विचार ‘भारत’ के जैनों के भी बनें तो कितना
अच्छा हो?
मैं ‘चातुर्मास’ के पावन पर्व पर हर गुरु भगवंतो के चरणों में निवेदन करता हूं कि हम श्रावक-श्राविकाओं
का मार्गदर्शन करें, हमें आशीर्वाद दें कि हम केवल ‘जैन’ रहें, ‘दिगम्बर और श्वेताम्बर’ यह तो केवल
आमनायें हैं, वह अपनी जगह पर जरूर रहे, लेकिन धर्म के अनुसार हम सभी २४ तीर्थंकर की अनुयाई
रहें, क्योंकि ‘णमोकार मंत्र’ हम सभी का एक ही है।
समस्त जैन पंथों की एकमात्र पत्रिका ‘जैन एकता’ के लिए प्रयासरत ‘जिनागम’ के प्रस्तुत अंक में हमने
जैन तेरापंथ धर्मसंघ का संक्षिप्त इतिहास प्रकाशित करने का प्रयास किया है, साथ ही तेरापंथ धर्मसंघ
के संस्थापक आचार्य श्री भिक्षु के बारे में भी संक्षिप्त परिचय लिखा है, विश्वास है मुझे, की आप सभी
को अच्छा लगेगा।
निवेदन यह भी है कि जहां-जहां इस वर्ष चातुर्मास आयोजित किए गए हैं, वहां के सभी श्रावक-श्राविका
गुरु भगवंत के चरणों में निवेदन करें कि दिगम्बर समुदाय का यदि चातुर्मास हो रहा है तो वहां पर
श्वेताम्बर समुदाय के श्रावक-श्राविकाओं का सम्मान करें, उन्हें ससम्मान निमंत्रित करें, श्वेताम्बर समुदाय
का चातुर्मास है तो दिगम्बर समुदाय के श्रावक-श्राविकाओं को बुलाएं, सम्मानित करें, तो बहुत ही अच्छा
होगा, प्यार बढ़ेगा, समन्वय बढ़ेगा और समन्वय के साथ व्यापार भी बढ़ेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा
होने से २०२४ के चातुर्मास समापन पर ‘भारत’ के हर चातुर्मास स्थल से घोषणा होगी कि ‘हम सब जैन
हैं’, २४ तीर्थंकर के अनुयाई हैं, ‘णमोकार मंत्र’ हमारा एक है, ‘जियो और जीने दो’ संदेश है हमारा,
‘अहिंसा परमो धर्म’ नारा है हमारा।
‘भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए’ घ्र्Dघ्A नहीं, अभियान की सफलता के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्था
‘मैं भारत हूँ फाउंडेशन’ ने विभिन्न २२ भारतीय भाषाओं का गीत ‘भारत नाम सम्मान’ का निर्माण किया है,
जिसकी प्रति हम बहुत जल्द भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ विभिन्न मंत्रालयों
व ‘भारत’ के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री को भी एक प्रति सदिच्छा पूर्वक भेंट करेंगे और निवेदन करेंगे
कि ‘भारत’ के साथ विदेशों में रहने वाले हर भारतीय चाहते हैं कि अब हमारे देश का नाम एक ही रहे
‘भारत’, इंडिया नाम में गुलामी की झलक मिलती है, विश्व के मानचित्र उथ्ध्ँE में हमारे देश का नाम
जहां घ्र्Dघ्A लिखा है वहां पर ँप्ARAऊ लिखा जाए। आप सभी के सहयोग व मार्गदर्शन से ही ‘भारत
को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए’ घ्र्Dघ्A नहीं अभियान सफल हो सकेगा। – जय जिनेंद्र!