क्षमावणी पर्व -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी (Ganini Shri Gyanmati Mataji)
दशलक्षण पर्व का प्रारम्भ भी क्षमाधर्म से होता है और समापन भी क्षमाधर्म पर्व से किया जाता है। दस दिन धर्मों की
पूजा करके, जाप्य करके जो परिणाम निर्मल किये जाते है और दश धर्मों का उपदेश श्रवण कर जो आत्म शोधन होता
है उसी के फलस्वरूप सभी श्रावक-श्राविकायें किसी भी निमित्त परस्पर में होने वाली मनो-मलिनता को दूर कर आपस
में क्षमा मांगते हैं, क्योंकि यह क्रोध कषाय प्रत्यक्ष में ही अग्नि के समान भयंकर है।
क्रोध आते ही मनुष्य का चेहरा लाल हो जाता है, होंठ काँपने लगते हैं, मुखमुद्रा विकृत और भयंकर हो जाती है, किन्तु
प्रसन्नता में मुख मुद्रा सौम्य, सुन्दर दिखती है, चेहरे पर शांति दिखती है, वास्तव में शांत भाव का आश्रय लेने वाले
महामुनियों को देखकर जन्मजात बैरी ऐसे क्रूर पशुगण भी क्रूरता छोड़ देते हैं। यथा-
हरिणी सिंह के बच्चे को पुत्र की बुद्धि से स्पर्श करती है, गाय व्याघ्र के बच्चे को दूध पिलाती है, बिल्ली हंसों के बच्चों
को प्रीति से पालन करती है एवं मयूरी सर्पों को प्यार करने लगती है, इस प्रकार से जन्मजात भी बैर को क्रूर जंतुगण
छोड़ देते हैं, कब? जबकि वे पापों को शान्त करने वाले मोहरहित और समताभाव में परिणत ऐसे योगियों का आश्रय
पा लेते हैं अर्थात् ऐसे महामुनियों के प्रभाव से हिंसक पशु अपनी द्वेष भावना छोड़कर आपस में प्रीति करने लगते हैं,
ऐसी शांत भावना का अभ्यास इस क्षमा के अवलंबन से ही होता है।
क्रोध कषाय को दूर कर इस क्षमाभाव को हृदय में धारण करने के लिये भगवान् पार्श्वनाथ का चरित्र, श्री संजयंत मुनि
का चरित्र और तुंकारी की कथायें पढ़नी चाहिये तथा क्षमाशील साधु पुरुषों का आदर्श जीवन देखना चाहिये।
आचार्य शांतिसागर जी आदि साधुओं ने इस युग में भी उपसर्ग करने वालों पर क्षमाभाव धारण कर प्राचीन आदर्श
प्रस्तुत किया, बहुत से श्रावक भी क्षमा करके-कराके अपने में अपूर्व आनंद का अनुभव करते हैं, अत: हृदय से क्षमा
करना तथा दूसरों से क्षमा का निवेदन करना ही ‘क्षमावणी पर्व’ है।
क्षमावणी पर्व -गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी (Ganini Shri Gyanmati Mataji)
बिजय कुमार जैन
वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
तीर्थंकर आदिनाथ का पारणा दिवस जैन समाज का सर्वाधिक पावन पर्व है
कहते हैं कि वर्ष में कुछ दिवस अति उत्तम होते हैं जिस दिवस पर कुछ भी शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इस दिन कार्यों की शुरुआत अति शुभ होता है, सफल होता है, यह दिवस है अक्षय तृतीया…
‘अक्षय तृतीया’ के दिन जैन धर्मावलंबी तो शुभ कार्य करते ही हैं, सनातन धर्मावलंबी भी पीछे नहीं रहते। हर भारतीय इस शुभ दिवस का इंतजार करता है, इस वर्ष यह शुभ दिवस अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार २२ अप्रैल को है। ‘अक्षय तृतीया’ को जैन धर्मावलंबी तप, त्याग, दान, धर्म आदि में लिप्त रहेंगे। सत्य, अहिंसा, किसी का दिल ना दुखाना, जिनालयों में गुरु-भगवंतों के सानिध्य में रहकर ईक्षु रस का दान भी करेंगे क्योंकि इसी पावन दिवस पर तीर्थंकर आदिनाथ को राजकुमार श्रेयांस ने ईक्षु रस से पारणा करवाया था और आदिनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाया था।
हम सभी जैन धर्मावलंबी भी अक्षय तृतीया के पावन दिवस पर एक प्रण करें कि इस दिन सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर पंथ के धर्मावलंबी मिलकर पारणा दिवस मनाएं। दिगम्बर, श्वेताम्बर
जिनालय में जाएं, श्वेताम्बर, दिगम्बर जिनालय में जाएं, एक दूसरे के आयामों का सम्मान करें, सीखें, समझें व दिल से अपनाएं।
वर्तमान के साधु-संत, आर्यिकाएं-साध्वी, मुमुक्षु आदि भी अपने दिलों में सम्मान के साथ हर दूसरे पंथ के पंथावलम्बी की भावना को शिरोधार्य कर आशीर्वाद प्रदान करें तो मुझे
विश्वास है कि तीर्थंकर आदिनाथ के साथ और भी २३ तीर्थंकर का हम सभी को आशीर्वाद मिलेगा, हम सभी का जीवन भी सफल हो जाएगा और हम सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर के साथ ‘जैन’ कहलाएंगे, क्योंकि हम सभी ‘जैन’ ही तो हैं। २४ तीर्थंकरों के ही तो अनुयाई हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि हम सबका ‘णमोकार’ मंत्र तो एक ही है।
विश्व में फैले २४ तीर्थंकर के अनुयायियों ने जो प्रण लिया है कि तीर्थंकर आदिनाथ के जेष्ठ पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा था, जो कि आज विश्व में इंडिया के नाम से जाना जाता है, उसे वापस ‘भारत’ बनाना है तो हमें भी ‘जैन’ बनना होगा, भले ही हम जनसंख्या में कम हैं, लेकिन हमारे पास २४ तीर्थंकर का दिया हुआ आशीर्वाद ‘अहिंसा’ है, हम सभी अहिंसा के पथ पर चलकर ‘भारत’ को केवल ‘भारत’ ही बनवा लेंगे, इंडिया को विलुप्त करवा देंगे, क्योंकि हम सभी ‘भारत माता की ही जय’ बोलते हैं।
जय भारत!
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