जैन कॉन्फ्रेंस के आगामी कार्यकाल के लिए की शपथ विधि समारोह का आयोजन

अहमदनगर (महाराष्ट्र) : श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन एवं१४ प्रांतों से १४ प्रांतीय अध्यक्ष, प्रांतीय महामंत्री कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों का शपथ विधि समारोह मंगलवार, दिनांक १५ जनवरी २०१९ को राष्ट्रसंत, आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आनंदऋषि जी म. सा. के समाधि स्थल आनंदधाम, अहमदनगर में महाराष्ट्र प्रवर्तक पू. श्री कुंदनऋषिजी म. सा., प्रबुद्ध विचारक पूज्य श्री आदर्शऋषि जी म. सा. एवं अन्य संत-सतियों के पावन सान्निध्य में हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ। शपथ विधि समारोह के पूर्व नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारस मोदी जैन ने जैन कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ पदाधिकारीगण एवं सहयोगियों के साथ राष्ट्रसंत, प. पू. आचार्य सम्राट श्री आनंदऋषिजी म. सा. की समाधि स्थल पर नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप किया व दर्शन कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। देशभर से आये हुये हजारों दर्शनार्थियों का दिनभर आनंदधाम में तांता लगा रहा।

सर्वप्रथम समारोह की शुरुआत प्रबुद्ध विचारक पूज्य श्री आदर्शऋषि जी म. सा. ने नवकार महामंत्र के जाप द्वारा की, इसके पश्चात् श्रीमती छाया पारसजी मोदी जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर कार्यक्रम की शुरुआत की, उसके पश्चात् पी. एच. जैन परिवार की पोता बहुओं ने गुरु भगवंतों का स्वागत गीत से अभिवादन किया एवं बेटा बहुओं ने समारोह में पधारे हुए महानुभावों के लिए स्वागत गीत प्रस्तुत किया, इस मंगलमय प्रसंग पर राष्ट्रीय अध्यक्षजी की पोती कु. इशिता अतीशजी मोदी जैन ने अपने दादाजी के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने पर गीत द्वारा अपने भाव प्रस्तुत किये, जिस पर सभी ने हर्ष-हर्ष के साथ उनका उत्साहवर्धन किया।
राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी श्री धरमचंदजी धनराजजी खाबिया जैन, राष्ट्रीय सह-चुनाव अधिकारी श्री राजीवजी जैन एवं श्री अजितजी छल्लाणी जैन उपस्थित थे। राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी धरमचंदजी खाबिया जैन ने नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री पारस मोदी जैन को अपने पद के प्रति निष्ठा, कर्तव्य पालन की शपथ दिलवाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का निर्वाचन घोषणा पत्र पारसजी मोदी जैन को राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी एवं दोनों राष्ट्रीय सह-चुनाव अधिकारियों द्वारा सौंपा गया, इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय पारस मोदी जैन ने जैन कॉन्फ्रेंस के राष्ट्रीय महामंत्री पद पर युवा हृदय सम्राट् श्री शशिकुमारजी ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन एवं राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद पर विमलचंदजी जैन ‘मुणोत’ तथा राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष पद पर सागरजी कुंदनमलजी साखला जैन को मनोनीत करने की घोषणा की। कु. आरवी अमितजी मोदी जैन ने अपने दादाजी के लिए शुभ भावनाएं प्रकट की, इसके बाद मंच पर राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय महामंत्री, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष महोदय ने अपने पद, प्रतिष्ठा की शपथ लेकर जैन कॉन्फ्रेंस के प्रति अपने दायित्व को निभाने का प्रण लिया। शपथ ग्रहण के दौरान हर्ष-हर्ष, जय-जय के नारों के साथ संपूर्ण पांडाल गुंजायमान हो उठा। अपने उद्बोधन के दौरान राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी श्री धरमचंदजी धनराजजी खाबिया जैन ने चुनाव के दौरान समस्त वरिष्ठ पदाधिकारियों व सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया, इस अवसर पर लगभग ३५०० महानुभावों की उपस्थिति देखने को मिली।
राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री एवं पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आदि कई पदों का निर्वहन करने वाले तथा पिछले ३५ सालों से लगातार जैन कॉन्फ्रेंस को अपनी निरंतर सेवाएं देने वाले आदरणीय श्रीमान् बालचंदजी खरवड़ जैन-मुंबई को राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष पद पर मनोनीत किया, उनकी इस घोषणा से संपूर्ण सभाग्रह में हर्ष की लहर दौड़ गई और सभी ने हर्ष-हर्ष से इस घोषणा का स्वागत अभिनंदन किया। श्री बालचंदजी खरवड़ जैन ने प्रत्युत्तर में कहा कि वे इस दायित्व का संपूर्ण क्षमता के साथ निर्वहन करने का हर संभव प्रयास करेगें। नवमनोनीत राष्ट्रीय महामंत्री शशिकुमारजी ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन, नवमनोनीत राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विमलचंदजी जैन ‘मुणोत’ एवं नवमनोनीत राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष सागरजी कुंदनमलजी साखला जैन ने भी मंच संचालन में सहयोग प्रदान किया।

नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा प्रथम कार्य गुरु भगवंतों की वैय्यावच्च सेवा को प्राथमिकता देना है, जिसके अंतर्गत संत-सतियों के साथ सेवा देने वाले सेवादार के वेतन की व्यवस्था करना, जो संत-सतीयाँजी विशेष पढ़ाई, ज्ञान अर्जन आदि करना चाहते हैं उनके लिए अध्यापक/अध्यापिका, स्वाध्यायी व पाठ्य सामग्री की व्यवस्था करना, पूजनीय वृद्ध एवं शारिरिक कठिनाईयों के कारण विहार नहीं कर पाने वाले संत-सतियों के स्थायी आवास की व्यवस्था करना आदि रहेगा, इसके अलावा बच्चों के लिए धार्मिक पाठशालाओं की व्यवस्था करना एवं विशेष रूप से स्वाध्याय को बढ़ावा देना हमारा लक्ष्य होगा। अपने सारगर्भित उद्बोधन में अपने पदाधिकारियों एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों का साथ लेकर नई आशा, नई दिशा व नए विश्वास के साथ कार्य करने का भरोसा दिलाया व अपनी इच्छा जाहिर की कि वे अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर कई नवीन कार्यों की शुरूआत करेंगे तथा नया उज्जवल भविष्य निर्माण के कार्य करेंगे। निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलालजी चोपड़ा जैन, निवर्तमान राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अशोककुमारजी एन. पगारिया जैन एवं निवर्तमान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष महेन्द्रजी बोकारिया जैन, नवनिवर्त मान राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष श्री शशिकुमारजी ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन व नवनिवर्तमान राष्ट्रीय महिला अध्यक्षा सौ. रूचिराजी सुराणा जैन एवं वरिष्ठ पदाधिकारीगण तथा प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी पदाधिकारीगण/सहयोगियों के प्रति आभार जताते हुये उन्होंने कहा कि वे भाऊसा द्वारा जारी किये गये कार्यों को और अधिक तन्मयता के साथ आगे बढ़ायेगें। राष्ट्रीय अध्यक्षजी की भावनाओं की उपस्थितजनों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। राष्ट्रीय चुनाव अधिकारियों ने नवीन कार्यकाल के लिए सभी को शुभकानाएं प्रेषित करते हुए अपने भाव व्यक्त किये।

इस अवसर पर केंद्रीय चुनाव अधिकारियों ने जैन कॉन्फ्रेंस के महा-प्रबंधक मानकजी शाह जैन के प्रति भी आभार प्रकट किया कि उन्होंने चुनाव समिति के सचिव पद का दायित्व कुशलतापूर्वक निर्वहन किया व संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया में पूर्ण सहयोग प्रदान किया।
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने केंद्रीय चुनाव अधिकारियों की उपस्थिति में मानकजी शाह जैन को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।

तत्पश्चात् नवगठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के राष्ट्रीय प्रमुख मार्गदर्शक, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सभी योजनाओं के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय मंत्री, १४ प्रांत के प्रांतीय अध्यक्ष एवं उनके द्वारा मनोनीत प्रांतीय महामंत्री/प्रांतीय कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय मंत्री, राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार मंत्री, राष्ट्रीय संगठन मंत्री एवं सभी प्रांत के राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों का शपथ विधि का कार्यक्रम सुचारू रूप से पूर्ण हुआ, सभी ने एक नये सकंल्प व लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जैन कॉन्प्रेंâस को अपना संपूर्ण योगदान देने की शपथ ली । हर्ष-हर्ष व जय-जय के नारों के साथ पारस्परिक बधाई व शुभ-कामनाओं का आदान-प्रदान हुआ।

महाराष्ट्र प्रवर्तक पूज्य श्री कुंदनऋषि जी म. सा., प्रबुद्ध विचारक पू. श्री आदर्शऋषि जी म. सा. एवं अत्र विराजित सभी संत-सतियाँजी म. सा. ने नवीन कार्यकारिणी को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए समाज विकास व उत्थान के कार्य करने के लिए प्रेरित किया। संपूर्ण कार्यक्रम के मंच का बहुत ही सुंदर संचालन राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष बालचंदजी खरवड़ जैन ने किया, उनके मंच संचालन की प्रशंसा सभी ने बढ़-चढ़कर की। संपूर्ण कार्यक्रम गुरु भगवंतों के आशीर्वाद एवं महामांगलिक के साथ बहुत ही सादगी के साथ सुंदर माहौल में संपन्न हुआ, शाम की ‘गौतम प्रसादी’ की सुंदर व्यवस्था सौ. सविताजी रमेशजी फिरोदिया जैन परिवार की ओर से बहुत ही प्रशंसनीय रही, पहले दिन का भोजन एवं दूसरे दिन के सुबह का नाश्ता तथा दोपहर के भोजन की व्यवस्था ‘गुरु आनंद भक्त मंडल-अहमदनगर’ ने लिया। संपूर्ण समारोह का सीधा प्रसारण १२५ देशों में पारस चैनल पर प्रदर्शित हुआ, जिसके लाभार्थी बनें ‘जैन कॉन्फ्रेंस के युवा साथी श्रीमान् कमलेशजी भंवरलालजी नाहर जैन परिवार-अहमदाबाद, इनका परिवार पिछले २५ वर्षों से जैन कॉन्फ्रेंस में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। पारस मोदी जैन मित्र परिवार की ओर से सभी के सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद व अभिनंदन अर्पित किया गया गया। आचार्य भगवन् व युवाचार्यश्री जी के पावन सान्निध्य में ७ मई २०१९ के अक्षय-तृतीया पारणे के गौतम प्रसादी के लाभार्थी जैन कॉन्फ्रेंस के पूर्व राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष श्रीमान् शांतिलालजी दुग्गड़ जैन-नाशिक का सम्मान किया गया। अहमदनगर के श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष श्रीमान् हस्तीमलजी मुणोत जैन, महामंत्री संतोषजी बोथरा जैन, उपाध्यक्ष सतीशजी (बाबुसेठ) लोढ़ा जैन एवं सभी पदाधिकारियों का तथा बड़ी साजन सांस्कृतिक भवन के अध्यक्ष विलासजी लोढ़ा जैन का समारोह को ऐतिहासिक बनाने में बहुत बड़ा योगदान रहा।

बुधवार, दिनांक १६ जनवरी २०१९ को प्रातः जैन कॉन्फ्रेंस परिवार के सभी सदस्य चिंचोड़ी की ओर अग्रसर हुए, स्मरण रहे कि चिंचोड़ी आचार्य सम्राट पू. श्री आनंदऋषिजी म. सा. की जन्म भूमि हैं। उपाध्याय श्री प्रवीणऋषि जी म. सा. की प्रेरणा से नवनिर्मित ‘आनंद तीर्थ’ में नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप हुआ, उसके पश्चात् चिंचोड़ी में आनंद तीर्थ ट्रस्ट द्वारा सुंदर नास्ता का आनंद लिया गया। जैन कॉन्फ्रेंस परिवार चिंचोडी गांव में आचार्य भगवन की जन्म स्थली पर दर्शनार्थ एकत्रित हुए और नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप हुआ, यहां पर श्री आनंद गुरुभ्ये नमः के जाप के बाद अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने श्रीमान् रमेशजी फिरोदिया जैन परिवार एवं पी. एच. जैन परिवार द्वारा चिंचोड़ी श्रीसंघ के सहयोग से नव-निर्मित भवन के उद्घाटन की तिथि २८ मार्च २०१९ को सायं ४.०० बजे किए जाने की घोषणा की तथा उपस्थित जनसमूह से उक्त दिनांक को भारी संख्या में चिंचोड़ी आने का निवेदन किया।

उसके पश्चात् आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आनंदऋषि जी म. की दीक्षा भूमि एवं महाराष्ट्र प्रवर्तक, महाश्रमण, परम पूज्य गुरुदेव श्री कुंदनऋषि जी म. सा. की जन्म भूमि ‘मिरी’ में दर्शन किए। चिंचोड़ी व मिरी दर्शन के बाद विशाल जनसमूह ने जालना के लिये प्रस्थान किया। वहाँ कर्नाटक गजकेसरी, खद्दरधारी, घोर तपस्वी प. पू. श्री गणेशीलालजी म. सा. की समाधि स्थल के सभी ने दर्शन किये व पू. गुरुदेव के प्रति अपनी आस्था व श्रद्धा अर्पित की, इस अवसर पर ओम श्री सद्गुरुनाथाये नमः के मंत्र का जाप किया गया। आयोजित स्वागत समारोह में संघपति स्वरूपचंदजी रूणवाल जैन, जालना श्रीसंघ अध्यक्ष गौतमजी रूणवाल जैन, महामंत्री स्वरूपचंदजी ललवानी जैन व मनोनीत राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्य आनंदजी सुराणा जैन ने जैन कॉन्प्रेंâस परिवार के साथ और अधिक सक्रियता से जुड़ने का उल्लेख किया। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाशजी चोरड़िया जैन व वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने कहा कि हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। आचार्य सम्राट प. पू. श्री आनंदऋषिजी म. सा. व कर्नाटक गजकेसरी पू. गुरुदेव श्री गणेशीलालजी म. सा. निःसंदेह हमारी आस्थाओं के केंद्र है। श्रमण संघ के ये दो अनमोल रत्न हमारे लिये सदैव स्मरणीय हैं, इस अवसर पर सहमंत्री भरतकुमारजी गादिया जैन, कोषाध्यक्ष विजयराजजी सुराणा जैन, विश्वस्त संजयकुमारजी मुथा जैन, सुरेशकुमारजी सकलेचा जैन, डी. धरमचंदजी गादिया जैन, कचरुलालजी कुंकुलोल

जैन, डी. कांतिलाल मांडोत जैन, सूरजमलजी मुथा जैन आदि गणमान्यजन उपस्थित थे। जालना के बाद औरंगाबाद जैन कॉन्फ्रेंस एवम् श्रीसंघ अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन के स्वागत हेतु प्रतीक्षारत थे। औरंगाबाद में दक्षिण केसरी परम पूज्य गुरुदेव श्री मिश्रीमल जी म. की समाधि के दर्शन किए। औरंगाबाद जिमखाना क्लब में आयोजित सम्मान समारोह का संचालन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तनसुखजी झाबड़ जैन ने किया। उपस्थित सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों का शॉल-माला व साफे के साथ अभिनंदन किया गया। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाशजी चोरड़िया जैन ने अपने उद्बोधन में अपनी पूर्व में की गई औरंगाबाद यात्राओं का उल्लेख किया व औरंगाबाद श्रीसंघ की जैन कॉन्फ्रेंस परिवार को समय-समय पर दिये गये सहयोग की सराहना की। अपने संबोधन में राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने अपनी टीम की ओर से श्रीसंघ औरंगाबाद के प्रति भावभीना आभार प्रकट किया।
विशेष रूप से उपस्थित आमदार श्री सुभाषजी झाबड़ जैन ने आशा व्यक्त करते हुये कहा कि श्री पारसजी मोदी जैन एक अलग ही व्यक्तित्व के धनी है उनके रूप में जैन कॉन्फ्रेंस को एक ऐसा राष्ट्रीय अध्यक्ष मिला है, जो निश्चित ही जैन समाज को राष्ट्रीय स्तर पर अपना महत्वपूर्ण स्थान दिलायेगें।
अहमदनगर, चिंचोड़ी, जालना एवं औरंगाबाद के सभी कार्यक्रमों में एक उल्लेखनीय बात यह रही कि सभी आयोजकों ने ‘एक सफल पुरुष के पीछे एक स्री के योगदान’ का उल्लेख किया, ऐसे में स्वाभाविक रूप से नाम आता है सौ. छाया पारसजी मोदी जैन का, प्रत्येक कार्यक्रम में सौ. छायाजी का उत्साह के साथ स्वागत सत्कार किया गया, इस समारोह को सफल बनाने के लिए विलासजी लोढ़ा जैन, सतीशजी (बाबूसेठ) लोढ़ा जैन, मनोजजी सेठिया जैन, रमेशजी बाफना जैन, सतीशजी चोपड़ा जैन आदि महानुभावों का सहयोग रहा।

- शशिकुमार ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन, राष्ट्रीय महामंत्री

राष्ट्रसंत मुनी देवनंदिजी का भव्य स्वागत

चिकलठाणा (महाराष्ट्र): सुविख्यात दिगम्बर जैन मुनी, ‘णमोकार तीर्थ’ प्रणेता, ‘जैन नॉलेज सिटी’ मालसाने (चांदवड) के निर्माता, राष्ट्रसंत, प्रज्ञाश्रमण, सारस्वताचार्य देवनंदिजी का भारतवर्ष के प्रख्यात भ. चिंतामणि पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कचनेरजी (महाराष्ट्र) में ससंघ आगमन हुआ तो जैन-अजैन समाज ने भव्य स्वागत किया, मुनीश्री ने समाज को उद्बोधन किया कि समाजसेवी साप्ताहिक जैन गजट के राष्ट्रीय प्रतिनिधि एम.सी.जैन, सौ. हेमलताजी, प्राचार्य डॉ. राजेश एम. पाटणी, दर्शनार्थ मुनीश्री के दर्शन करने पहुंचे तो मुनीश्री शुभार्शिवाद प्रदान किया।

विकसित विश्व और नारी

नारी समाज का केन्द्रबिन्दु है, बाल संस्कार और व्यक्तित्व निर्माण का बीज नारी के आचार विचार और व्यक्तित्व में समाहित है उन्हीं बीजों का प्रत्यारोपण होता है, उन बालजीवों के कोमल ह्रदय पर जो नारी को मातृत्व का स्थान प्रदान करते हैं। समाज ने नारी को अनेक दृष्टियों से देखा है सम्मानित किया है। कभी माँ, कभी पत्नी, कभी बहन, कभी एक जीवन संगिनी के रूप में समाज की यही संस्कारिता और उसके आदर्शो की उच्चता की झलक, नारी के प्रति उस समाज की दृष्टि से स्पष्ट होती है, इसी तरह नारी के पतन और उत्थान का इतिहास समाज के धर्म और नीति की उन्नति और अवनति का भी प्रत्यारोपण कराता है।
जिस समय २४वें तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म हुआ तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियां और नारी का उसमें स्थान और वहां से लेकर समयसमय पर आये हुए नारी के गौरव में परिवर्तन की झलक वस्तुत: देखने योग्य है, तब के समाज में सामान्य जनजीवन जकड़ा हुआ था, झूठे जड़ रीति रिवाजों में सड़ी-गली परम्पराओं में दृष्टि धुंधली थी, अन्धविश्वासों की धूल से मिथ्यात्व की अति प्रबलता थी, लाखों मूक पशुओं की देह बलिदेवी पर चढ़ रही थी, शुद्र जाति सामान्य मानवीय अधिकारों से वंचित था, समाज आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, समधर्म का ऐसा अध:पतन क्यों था? मिथ्यात्व की ऐसी आंधी क्यों चली, इसका प्रमुख कारण नारी जाति की करूणा दशा थी किन्तु जैसे मनु ने कहा है ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता रमण करते हैं, अर्थात् वहां मंगल का वास होता है, इसके विपरीत जहां नारीत्व का शोषण होगा, अपमान होगा वहां अधर्म का साम्राज्य होगा। स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में कितनी सत्यता झलक रही है कि ‘‘स्त्रियों की पूजा करके ही सब जातियां बड़ी हुई हैं जिस देश, जिस जाति में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह देश वह जाति कभी बड़ी न हुई और न हो सकेगी, हमारी जाति का जो अध:पतन हुआ है, उसका प्रधान कारण इन्हीं शक्तिमूर्तियों की अवहेलना है’’ जिस समय राजकुमार वर्धमान का जन्म हुआ, वह नारी के जीवन का पतन का काल था। नारी का जीवन तमस से घिरा हुआ व दासता से परिपूर्ण था। नारी को पैर की जूती से अधिक या भोग की वस्तु से अधिक और कुछ नहीं समझा जाता था। युद्धों में हारी हुई सुन्दर सुकुमार स्त्रियां किस प्रकार बाजारों में पशुओं की तरह बोली लगाकर बेच दी जाती थी, राजकुमारी चन्दनबाला उसकी ज्वलंत उदाहरण थी। उस समय कौमार्य में लड़की पिता पर, यौवन में पति पर तो वृद्धावस्था में पुत्रों पर आश्रित रहे, ऐसा सोचना था। धार्मिक कार्यों में भाग लेने का उन्हें कोई अधिकार न था। स्त्री कभी मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकती, ऐसी भी मान्यता थी, इसी तरह विवश नारी अपना तिरस्कृत जीवन सिसक-सिसक कर काट देती थी।

मैथिलीशरण गुप्त ने तभी तो कहा है:
अबला नारी हाय, तुम्हारी यही कहानी।

आंचल में है दूध और आँखों में पानी।।

दुर्भाग्य से यदि छोटी उम्र में पति का वियोग हो जाये, तो उसे अपने मृत पति के साथ जीवित ही जल जाना पड़ता था, अर्थात् ‘सती प्रथा’, उस समय यह धारणा थी कि पति के साथ मरने पर मुक्ति मिलती है, इस कारण उसे सती बनने के लिए बाध्य किया जाता था। जीने की आशा में यदि कोई सती न भी होती तो उसे विधवा के रूप में अमानवीय जीवन के लिए तत्पर रहना पड़ता, बाल मुड़वा कर सफेद वस्त्रों में लिपटी वह विधवा रूखा-सूखा भोजन कर दीन स्थिति में सारा जीवन व्यतीत करती थी। शुभ प्रसंगों में व धार्मिक कार्यो में विधवा स्त्री को अमांगलिक समझा जाता था।
साधना काल के बारहवें वर्ष में भगवान् ने एक कठोर तप किया, जिसमें १३ अभिग्रह समाविष्ट थे। एक राजकुमारी दासी बनकर जी रही हो, हाथ पांव बंधे हों, मुंडित हों, तीन दिन की भूखी-प्यासी हो, एक पैर दहलीज के बाहर और एक पैर अन्दर हो, आँखें सजल हों इत्यादि।

उनका यह अभिग्रह था तो आत्मशुद्धि के लिए, स्वयं के उत्थान के लिए परन्तु इस अभिग्रह ने नारी उत्थान को भी अत्यधिक संबल दिया, एक लाचार दीन दासता की बेड़ियों से जकड़ी हुई नारी का उत्थान हुआ।

भगवान् महावीर की दृष्टि में स्त्री और पुरूष दोनों का स्थान समान था, क्योंकि उन्होंने इस नश्वर शरीर के भीतर विराजमान अनश्वर आत्म तत्त्व को पहचान लिया था, उन्होंने देखा कि ‘‘चाहे देह स्त्री का हो या पुरूष का, वही आत्मतत्व सभी में विराजमान है और देह भिन्नता से आत्मत्व की शक्ति में भी कोई अन्तर नहीं आता, सभी आत्माओं में समान बल वीर्य और शक्ति है।’’
इसीलिए भगवान् फरमाते हैं ‘‘पुरूष के समान ही स्त्री को भी प्रत्येक धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में बराबर का अधिकार है, स्त्री जाति को हीन पतित समझना निरी भ्रांति है, इसीलिए भगवान् के संघ में श्रमणों की संख्या १४००० थी तो श्रमणियों की संख्या ३६००० थी, जहां श्रावकों की संख्या १,५६००० थीं वहां श्राविकाओं की संख्या ३,१९००० थी, इससे हम अन्दाज लगा सकते हैं कि जहां समाज नारी को धार्मिक एवं सामाजिक कार्यो में अशुभ व अमांगलिक मानता था, वहां भगवान् ने स्त्री जाति को किन उच्च स्थानों पर स्थित किया व उनके व्यक्तित्व को स्वाभिमानपूर्ण गौरवान्वित किया।

अधूरा है पुरूष : पुरूष बलवीर्य का प्रतीक होते हुए भी नारी के बिना अधुरा है। राधा बिन कृष्ण, सीता बिना राम और गौरी के शंकर अद्र्धांग है। नारी वास्तव में एक महान शक्ति है। भारतवर्ष में तो नारी में परमात्मा के दर्शन किये हैं और जगद्जननी भगवती के रूपों में नारी पूजा है। नारी का असीम प्रेम और सहानुभूति नर के लिये सदा ही प्रेरणा का स्त्रोत रहा है, एक कवि के शब्दों में-

नारी के बिनु नर विवश, है पाषाण समान।
नर का वैभव नारी बिन, शव सा है निष्प्राण।।

नारी परोपकार, सेवा, क्षमा की मूर्ति है। माँ के रूप में बच्चे के, पत्नी  के रूप में पति के और बहन के रूप में भाई के सुख-दुख में ही स्वयं का सुख-दु:ख मानती है। नारी का सुख व्यक्तिगत नहीं वरन पारिवारिक होता है, वह परिवार के सुख से सुखी और परिवार के दु:ख से दु:खी होती है, उसके लिये पति, पुत्र, परिवार प्रथम है और फिर है स्वयं का व्यक्तित्व।
…इसलिये नारी के उत्थान का अर्थ है एक परिवार का उत्थान और यही समाज व राष्ट्र के विकास की जड़ है।
जब नारी पुत्रवधु बनकर आती है तो दो कुलों को अपनी सहज सरलता से मिलाकर एक कर देती है। बहन के रूप में भाई को राखी बांधते हुए भाई की रक्षा, विकास की अमृत कामना करती हैं। अद्र्धांगिनी के रूप में अवतरित होती है तो जननी बनकर बच्चों के लिए संजीवनी समान सहगामिनी व वात्सल्य के पावन संस्कारों को जीवन में संचित कर उसके व्यक्तित्व को उन्नत शिखरों का स्पर्श कराती है, इस तरह नारी का प्रत्येक रूप स्वयं के अस्तित्व को मीटा कर अन्य के व्यक्ति को उन्नत शिखरों का स्पर्श कराता है, इस तरह नारी का प्रत्येक रूप स्वयं के अस्तित्व को मिटा कर अन्य को शीतल छाया और दीपक की तरह स्वयं जल कर अन्य के जीवन पथ को उजागर करने के रूप में क्रियान्वित होती है। ऐसा व्यक्तित्व जो संसार में रहते हुए भी कत्र्तव्य पथ पर अग्रसर रहता है। तपस्विनी सा जीवन व्यतीत करता है, उसके सम्मान, सत्कार व पूजा से व्यक्ति के भाव सहज ही पवित्र हो जाते हैं जबकि उसकी अवहेलना, अपमान करने वाला व्यक्ति स्वयं नरक के दु:खों का भागी बन जाता है।

जननी, भगिनी, कामिनी, रच बहुरूपा देह।
सहे, सहन कर लुटाए केवल देह-स्नेह।।

राष्ट्रों के उत्थान पतन के इतिहास में भी नारी का योगदान पुरूषों की अपेक्षा किसी भी प्रकार कम नहीं है, इतिहास के पन्नों पर दृष्टव्य हैं उन महान नारियों के त्याग और बलिदान, जहां नारी शान्ति और क्रांति, ज्योति और ज्वाला दोनों रूपों में समाज के रंगमंच पर अभिनय करती आई है।
यह शताब्दियों का सत्य है कि ‘‘नारी नर की खान’’ इस लोक के सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर पद पर आसीन महान आत्माओं को जन्म देने वाली स्त्री ही होती है। देवता भी सर्वप्रथम उन्हें ही वंदन करते हैं, इसीलिए जैन दर्शन में कहा भी है नारी कभी सातवें नरक में नहीं आ सकती क्योंकि उसके ह्रदय में ऐसी कठोरता, क्रुरता आ ही नहीं सकती जो उसे सातवें नरक के बंधक में बांधे।
नारी का सर्वोत्कृष्ट रूप माँ है। मातृत्व ही नारी का चरम विकास है, यही अंतरग चेतना है, मातृत्व ही नारी ह्य्दय का सार है। वात्सल्य का निर्झर प्रत्येक नारी ह्रदय का अविमूर्त गान है। नारी प्रतीक है श्रद्धा की, भक्ति की, कोमलता की, मृदुलता की, प्रत्येक मानव के भीतर एक अटूट अभिसा है प्रेम की, नारी ह्रदय इस प्रेम की पूर्ति के लिए सदा ही प्रवाहमान रहा है। नारी का यही प्रेम और वात्सल्य मानव जाति को हरा भरा रखता है, मनुष्य ह्रदय को जीवित रखता है, अन्यथा मनुष्य शायद जड़ हो जाए, उसके भीतर रही हुई संवेदनशीलता शायद लुप्त हो जाए, जो स्नेह और सहानुभूति एक स्त्री दे सकती है, वह पुरूष नहीं दे सकता, क्योंकि प्रेम मांगता है समर्पण और नारी प्रतीक है समर्पण की…
रूस के एक वैज्ञानिक ने नवजात शिशु बन्दरों को लेकर एक प्रयोग किया, उसने एक बड़ा यंत्र बनाया, उसमें तार लगाये गये, बन्दरों के कूदने के सभी उपाय रखे गये, कुछ कृत्रिम बंदरियों को भी उस यन्त्र में रखा गया।

छोटे बन्दर उछलते कूदते हैं। कृत्रिम बन्दरियों को माता समझकर उनके साथ चिकपते, उन्हें दूध पिलाने एवं खिलाने के सभी प्रकार के साधन रखे गये।
समय बीतने पर वैज्ञानिक ने देखा कि बन्दर बड़े हो गये हैं, किन्तु सभी विक्षिप्त हो गये, कारण वो स्नेह प्रतिमाएं हटा ली गई थीं, इसीलिए प्राचीन युग में जो गुरूकुल होते थे, उनमें ऋषि प्रवर शिष्यजनों को शिक्षा प्रदान कर उनकी बुद्धि को विकसित करते थे, जबकि ऋषि पत्नी, गुरू माता अपनी वात्सल्यमय धारा से उनके ह्रदय को विकसित करती थी, वह माता मदालसा ही थी जिसके संस्कारों ने सात भव्य आत्माओं को महापथ पर लगा दिया था।
माता जीजीबाई की प्रेरक कहानियों से ही बाल शिवाजी छत्रपति शिवाजी बने, राजीमति ने ही रथनेमि की वासना पर अंकुश लगाया, वह मदनरेखा ही थी जिसकी गोद में पड़ी है पति की खून से लथपथ देह, लेकिन उसने अद्भुत धैर्य से, क्षमता से अपने पति के मन को मैत्री व करूणा में स्थिर कर उच्च गति प्रदान की। वह रानी कैकयी थी जिसने देवासुर संग्राम में दशरथ के रथ की खूंटी खिसकने पर उस स्थान पर अपनी उंगली लगा दी थी। साधु मार्ग से च्युत होने वाले गवदेव को स्थित करने वाली नागिला ही थी, तुलसी से महाकवि तुलसी बनने के पीछे नारी रत्नावलि का ही मर्मस्पर्शी वचन था।

वर्तमान में नारी किसी भी बात के पीछे नहीं है, पुरूष के कंधे से कंधा मिलाने वाली विजयलक्ष्मी पंडित, मदर टैरेसा, इन्दिरा गांधी जैसी महान नारियां जागृत और सत्यनिष्ठ नारी शक्ति की परिचायक है। देशभक्ति का उदाहरण झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, मेवाड़ की पद्मिनी इत्यादि सुकुमार नारियों का जौहर याद करें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पन्ना धाय के अपूर्व त्याग ने ही महाराणा उदयसिंह को मेवाड़ का सिंहासन दिलाया और जिससे इतिहास ने नया मोड़ लिया, इसी तरह अनेक नारी रत्नों ने अपने त्याग व बलिदान व सतीत्व के तेज से भारतवर्ष की संस्कृति को समुज्जवल बनाया है। वर्तमान में नारी पूर्व से अधिक स्वतंत्र है तथा झूठी परंपराओं से बंधी हुई न होते हुए भी उसके जीवन में अनेक समस्यायें, अनेक उलझने जगी हैं, इस समस्याओं और उलझनों की मूल जड़ शिक्षा का अभाव है, इस ओर कुछ समाज का भी दुर्लभ्य रहा तो कुछ नारी की अपनी परिस्थितियों ने भी उसे शिक्षा से वंचित रखा, शिक्षा के अभाव में उसका बौद्धिक विकास पूर्णरूपेण नहीं हो पाया, जिस कारण अनेक क्षेत्रों में वह पुरूष के अधीन भी है। नारी को अपनी समस्याओं का हल स्वयं करना होगा कोई किसी की समस्या का हल नहीं कर सकता, प्रत्येक को स्वयं ही अपने प्रश्नों का उत्तर ढूंढना होता है, दूसरा तो उत्तर ढूंढने में केवल मार्गदर्शन कर सकता है, उत्तर नहीं दे सकता, अत: नारी को स्वयं ही इन उलझनों को सुलझाना होगा और इसके लिए आवश्यक है कि वह शिक्षित हो, यहां पर शिक्षा का अर्थ शब्दों को रटना मात्र नहीं है, किताबों को पढ़ लेना मात्र नहीं है, शिक्षा का अर्थ है ‘‘मानसिक शक्तियों का विकास’’ नारी की मानसिक शक्तियां इस प्रकार विकसित हो जाएं कि वह स्वयंमेव स्वतंत्रतापूर्वक जीवन के विविध पहलुओं पर आत्म-विश्वास पूर्वक निर्णय ले सके, उन्हें सुलझा सके।
शिक्षा से नारी विकास संभव है लेकिन वह तब, जब वह उसके पवित्र जीवन और सतीत्व को अखण्डित रखता हो। पाश्चात्य स्त्री शिक्षित तो है किन्तु भारतीय स्त्रियों के आचार-आचार कहीं अधिक पवित्र है, केवल बौद्धिक विकास से ही मानव का परम कल्याण सिद्ध नहीं हो सकता उसके लिये आवश्यक है कि बौद्धिक विकास के साथ-साथ आचार-विचार भी पवित्र बना रहे।

सत्य

डागलिया ने पूरे भारत में वर्ष के पहले दिन में ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया
भारत में वर्ष के पहले दिन में LIC का MDRT-USA का (अंतर्राष्ट्रीय) टारगेट कर बने नं.१

मुंबई: इंश्योरेंस एडवाइजर के तौर पर LIC में एक टारगेट होता है जिसे MDRT-USA कहते हैं, इस टारगेट को साल भर में कड़ी मेहनत के बाद इंश्योरेंस एडवाइजर इस मुकाम को हाशिल करते हैं, उसमें भी गिने-चुने लोग ही इस लक्ष्य को हाशिल करने में कामयाब होते हैं, उसी लक्ष्य को चिराग गणपत डागलिया की कंपनी नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क ने २०१९ की शुरुआत के पहले दिन ही MDRT-USA का टारगेट हासील किया, फिलहाल LIC में करीब ११ लाख इंश्योरेंस एडवाइजर है जिसमें से एक चिराग डागलिया ही हैं कि जिन्होंने इस मुकाम को एक ही दिन में हासिल किया है, इस मौके पर LIC से SDM प्रदीप महापात्रा, MM वी. के शर्मा, सेल्स मैनेजर तुषार पंड्या आदि ने बधाई दी। चीफ मैनेजर श्रीमती प्रभा उत्तेकर, शाखा प्रबंधक शैलेश राजे व अस्सिस्टेंट ब्रांच मैनेजर अविन हड़के, अनिल शर्मा (A.D.M.) एवं विकास अधिकारी रमेश बोहरा ने विघ्नहर्ता अवार्ड देकर सम्मानित किया और अत्यंत सराहना की।
लाइफ इंश्योरेंस हो, ज्वेलर्स हो, मेडिक्लेम व कार से जुड़ी पॉलिसी हो या फिर किसी और इंश्योरेंस की बात हो, लोगों की जुबां पर ‘नाईस इंश्योरेंस लैंडमार्क’ का ही नाम होता हैं, इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नाइस इंश्योरेंस लैंड मार्क की सेवा कितनी बेहतरीन हैं, इंश्योरेंस के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में चिराग डागलिया ने सर्वोच्च अवार्ड हासिल किया है, उसकी एक ही वजह है कि उनकी कंपनी नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क द्वारा लोगों को दी जा रही बेहतरीन सर्विसेज। एलआईसी, हेल्थ इंश्योरेंस, वेहिकल इंश्योरेंस, शॉप/फैक्ट्री इंश्योरेंस जैसे क्षेत्रों में बिना किसी रुकावट के पीड़ित पक्ष को समय पर राहत पहुंचाते हैं, यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में ही एलआईसी से जुड़े सभी बड़े आयामों पर अपना परचम लहराया है नाइस इंस्यूरेंस लेण्डमार्क ने…

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