३ फरवरी महावीर वनस्थली दोराहा में जीतो द्वारा ‘‘रंगला पंजाब’’ एवं नई टीम द्वारा शपथ समारोह

जैन इंटरनैशनल ट्रेड ऑर्गेनाईजेशन (जीतो) लुधियाना चेप्टर, लेडीज़ विंग एवं यूथ विंग के सहयोग से भगवान महावीर वनस्थली एवं ध्यान साधना केन्द्र दोराहा में एक भव्य कार्यक्रम ‘‘रंगला पंजाब’’ एवं जीतो की नई टीम का शपथ समारोह का आयोजन ३ फरवरी २०१९, दिन रविवार, प्रातः १०ः०० बजे से दोपहर १ः३० बजे तक हुआ, यह कार्यक्रम जीतो के पांच लक्ष्य शिक्षा, संस्कार, सेवा, सुरक्षा एवं स्वावलंबन आदि विषयों पर आधारित था, जिसमें मनोरंजन हेतु वैलकम डांस, प्रोफैशनल गु्रप द्वारा गिद्दा, पंजाबी थीम, जीतो लेडीज़ विंग द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम, फॉक डांस एवं बहुत से अन्य कार्यक्रम के साथ-साथ समय पर पहुंचने वालों को लक्की ड्रा द्वारा सोने का सिक्के दिये गये, कार्यक्रम के मुख्य सहयोगी श्री रोशन लाल जैन खानगाडोगरा वाले, श्री सरदारी लाल भूषण लाल रमेश कुमार जैन ‘स्वास्तिक’ एवं श्रीमति मुक्ता जैन – भूषण कुमार जैन, राजीव जैन ‘चमन’, सुधीर जैन रहे, कार्यक्रम का मकसद जैन समाज के लोगों को अधिक से अधिक शिक्षित कर उनको समाज में अग्रणीय स्थान प्रदान किया जा सके, उनमें अच्छे संस्कारों का समावेश किया जा सके इसी के साथ-साथ सेवा एवं सुरक्षा का अहसास करा सकते हैं, कार्यक्रम मन और आत्मा को सुकून प्रदान करने वाला रहा, उपयुक्त उपलक्ष्य में जैन मंदिर, सिविल लाईन्ज़ में समाज को सम्पूर्ण जानकारी देने के लिये प्रचार-प्रसार सामग्री आबंटित की गई, कार्यक्रम को सुव्यवस्थित बनाने के लिये प्रवेश पास की व्यवस्था की गई थी तथा बिना पास के प्रवेश निषेध रहा।
कार्यक्रम के समापन से पहले प्रीति भोज की व्यवस्था भी थी, इस अवसर पर जीतो लुधियाना चेप्टर के चेयरमैन भूषण कुमार जैन, महामंत्री राजीव जैन, उप-प्रधान रमेश जैन ‘स्वास्तिक’, कोषाध्यक्ष सुधीर जैन, कोमल जैन ‘ड्यूक’, सुरेश जैन, राकेश जैन, जीतो लेडीज़ विंग की चेयर पर्सन अभिलाष ओसवाल, मंजु ओसवाल, मंत्री सोनिया जैन, कंचन जैन, रंजना जैन, सीरत जैन, करुणा ओसवाल, नीरा जैन, भानु जैन, वीना जैन आदि गणमान्य उपस्थित थे।

- राजीव जैन (चमन) महामंत्री-जीतो लुधियाना चेप्टर

मेरे गुरूवर: पंचम युग के भगवान

बंदऊँ गुरू पद पद्म परागा।
सुरूचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमि अ म्रियम चूरा चारू।
सुमन सकल भव रूज परिवारू।।

गुरू जितना छोटा सा शब्द है उतनी ही गहराई समायी हुई है उसमें।
गुरू वे होते हैं जो अपने ज्ञान के सागर की बूँद-बूँद भी शिष्य को देने के लिए लालायित रहते हैं, ऐसे मेरे गुरू साक्षात एक भगवान का रूप लिये इस पंचम काल में भी अपनी चर्या को साधते हुये हम जैसे शिष्यों की ज्ञान पिपासा को शांत कर रहे हैं। वर्तमान में जैन मुनियों की चर्या पद्धति ही एक ऐसी पद्धति है जिसे देख लोग दाँतों तले उँâगली दबा लेते हैं। जैन समाज के लिये हर्ष की बात है कि आज भी हमें भगवान महावीर का अवतरण देखने मिल रहा है। आचार्य श्री विद्यासागर जी की यदि जीवन गाथा पढ़ी जाये तो लगता ही नहीं कि हम वर्तमान के किसी मुनि की गाथा पढ़ रहे हैं। अपने व्रत, नियमों का कठोरता से पालन करने वाले ऐसे आचार्य तो चतुर्थ काल में ही संभव थे। पंचम काल में भी स्वयं को एवं अपने शिष्यों को मुनि धर्म के नियम के अनुसार ढालना जैसे कार्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के लिये असंभव नहीं है। अपने स्वाध्याय में तल्लीन रह कर भी मानव व पशु कल्याण की पहल करना एवं उसे किस तरह उपयोग में लाना, ऐसे विचार तो दुर्लभ व्यक्तियों में ही देखने मिलते हैं, वो माता-पिता धन्य हैं जिन्होंने ऐसे विलक्षण प्रतिभा वाले बालक को जन्म दिया।
आचार्य विद्यासागर जी का जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ, उनके पिता श्री मल्लप्पा जी थे जो बाद में दीक्षित होकर मुनि मल्लिसागर बनें। माता श्रीमती श्रीमंति थी जो दीक्षित होकर आर्यिका समयामति बनीं। विद्याधर जी ने २२ वर्ष की अवस्था में आचार्य ज्ञानसागर जी से दीक्षा ली, उन्हें मुनि विद्यासागर नाम से संबोधन किया गया। सन् १९७२ में मुनि विद्यासागर आचार्य विद्यासागर बन गये। नाम के अनुरूप आचार्य विद्यासागर जी को संस्कृत, प्राकृत सहित मराठी, कन्नड़ एवं हिन्दी भाषाओं का विशेष ज्ञान प्राप्त है, उनके द्वारा महान काव्य ‘मूकमाटी’ की रचना की गई, साथ ही उनके कार्यों में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह, जाया शतक, सुनीति शतक इत्यादि सम्मिलित हैं।
भारत भूमि पर ‘जन्म सुधारो’ की भावना की वर्षा करने वाले अनेक महापुरूष और संत कवि जन्म ले चुके हैं इन सभी ने अपनी वाणी से विघटित समाज को नवीन संबल प्रदान किया है, जिससे राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में क्रांतिक परिवर्तन हुये हैं। भगवान महावीर, आचार्य कूंदकुंद, पूज्यपाद मुनि, बनारसी दास, धानतराय जैसे महामना साधकों ने अपनी आत्मसाधना के बल पर संपूर्ण मानवता को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है, इसी क्रम में वर्तमान में अपने उत्तम त्याग, संयम से एवं अपनी सुभाषित वाणी से समाज का हित करने वाले शिखर पुरूष आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का नाम सर्वोपरि आता है।
पंचम काल में समाज के लिये एक सटिक उदाहरण के रूप में तप, त्याग, साधना क्या होती है यह बताने के लिये आचार्य श्री का नाम ही काफी है। अपनी साधना में लीन होने के बावजूद आचार्य श्री सामाजिक विकास एवं गौ संरक्षक के लिये सचेत रहे एवं जागरूकता विस्तारित की।
गुरू के चरणों में स्वर्ग होता है, यह पंक्ति आचार्य श्री पर चरितार्थ होती है। समस्यायें तो जैसे उनके नाम से ही समाप्त हो जाती है। वर्तमान में हम जैसे तुच्छ प्राणियों के भगवन बने आचार्य श्री संयम रथ पर सवार होकर मोक्ष के पथ पर बढते चले जा रहे हैं। मानव शरीर के लिये भोजन में रसों का महत्व होता है क्योंकि उनसे ही हमें पोषक तत्व प्राप्त होते हैं परंतु हमारे गुरूवर का शरीर तो जैसे आध्यात्मिक ज्योति से चल रहा है। वैज्ञानिक हैरान हैं कि कोई इंसान बिना नमक, शक्कर, घी, तेल, दूध के कैसे जीवित है? हम सभी बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें अपने जीवन काल में ऐसे गुरू का सानिध्य प्राप्त हुआ, जो अपना उद्धार तो कर ही रहे हैं, साथ ही अपने से जुड़े सभी लोगों को भी सन्मार्ग पर चलने की बहुमूल्य शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नम:।।
-डा. श्रीमती सुजाता जैन ‘आदित्य’

सुमंगला माता जी का हुआ देवलोकगमन

परम पुज्य प्रज्ञाश्रमण सारस्वताचार्य श्री देवनंदीजी महाराज जी की सुशिष्या आर्यिका मालेगांव में विराजीत सुमंगलाश्री माताजी का देवलोकगमन हो गया है।
आर्यिका श्री१०५ सुमंगला श्री माताजी का अंतिम संस्कार ज्योति नगर त्यागी भवन से कौलाना शांतिवन में अंतिम संस्कार हुआ।
आर्यिका सुमंगलाश्री माता जी का जन्म मालेगांव में हुआ था, मालेगांव में ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के सुअवसर पर १९९४ में आचार्य श्री देवनन्दी जी महाराज के द्वारा आर्यिका दीक्षा ली थी। आज माताजी की समाधिमरण भी मालेगांव में बहुत ही समता पूर्वक ध्यान करते हुयी, बहुत ही पुण्यशाली ओर भव्य थी वो जिनका जन्म, दीक्षा और समाधि एक ही स्थान पर हुआ।

तेरापंथ महिला मंडल पूरे माह करवाएगा स्वास्थ्य चिकित्सा शिबिर

मुंबई: शहर के विभिन्न क्षेत्रों में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल की ओर से एक से २८ फरवरी तक लगातार स्वास्थ जांच शिबिर का आयोजन हो रहा है, इसी के अंतर्गत १४ फरवरी को गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के लिए मेगा डेंटल चेकअप ड्राइव का भी आयोजन किया जाएगा। शिबिर में मुंबईकरों की विभिन्न बीमारियों के सन्दर्भ में चिकित्सकीय परामर्श प्रदान करने के साथ-साथ उत्तम स्वास्थ के लिए जागरूकता की जा रही है। स्वास्थ्य जांच के इस महाअभियान को लोगों तक पहुंचाने के लिए मेगा मन्थ ऑफ वेलनेस के अंतर्गत २८ दिन २८ आयोजन पर कलेंडर प्रकाशित किया गया है, इसमें समाज के अन्य सामाजिक कार्यों का भी जिक्र किया गया है।
कैलेंडर का विमोचन हाल ही में महाराष्ट्र सरकार की महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री विद्या ठाकूर ने किया, इसमें मुंबई से तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष जयश्री बडाला, मंत्री श्वेता सुराणा, गोरेगांव संयोजिका सरोज चंडालिया, मलाड सहसंयोजिका लीला परमार, प्रीति धाकड़ एवं राकेश धाकड़ विमोचन कार्यक्रम में सहभागी रहे।

श्री मज्जिनेंद्र त्रिमुर्ति एवं चौबिसो जिन बिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा

चिकलठाणा (महाराष्ट्र): महाराष्ट्र का प्रख्यात श्री १००८ संकटहार पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जैनागिरी जटवाडा में दि. २ फरवरी २०१९ से ६ फरवरी २०१९ से श्री मज्जिनेंद्र त्रिमुर्ति एवम चौबिसी जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन प्रज्ञाश्रमण, सारस्वताचार्य राष्ट्रसंत देवनंदिजी महाराज एवम ससंघ सान्निध्य में, प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र. ऋषभकुमार जी के तत्वावधान में संपन्न हुआ।
माता-पिता बनने का बहुमान सौ. कालूदेवी महेंद्र कुमारजी सोनी, सौधर्म इंद्र-इंद्राणी का सम्मान सौ. सुचिता निरज कुमार जी पाटणी, धनवर्षा कुबेर बनने का सम्मान सौ. चंदा प्रकाशचंद कासलीवाल, इशान-इंद्र-इंद्राणी का सम्मान सौ. संगिता भरतकुमार डोंगरे को प्राप्त हुआ।
सौ. शकुंतलाबाई माणिकचंद जैन को धर्मध्वजारोहण का सम्मान प्राप्त हुआ, इस अवसर पर वेदी शुद्धी एवं विश्वशांति महायज्ञ का आयोजन किया गया था। खडगासन चौबिसी प्रतिमाओं का निर्माण किया गया, संघस्त मुनि एवम आर्यिका जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

-एम.सी.जैन

रजत गुरूदेव के सान्निध्य में मेरे जीवन का अभ्युदय

हर एक के जीवन में उत्थान में विकास में किसी ना किसी महापुरूष का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है संसार में जितने भी प्राणी हैं उनके पीछे कोई न कोई शक्ति अवश्य होती है वह शक्ति है गुरु की, यह शब्द इस महान भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इस भारत देश में जितने भी कर्मवीर धर्मवीर हुए हैं उन सबके पीछे गुरु की शक्ति निहित है। गुरु के बिना किसी के भी जीवन में प्रवाह नहीं मिलता, ऐसे ही एक महान गुरु के बारे में यह भारत देश विख्यात है वो है लोकमान्य सन्त शेरे राजस्थान अहिंसा दिवाकर प्रज्ञा पुरुषोत्तम वरिष्ठ प्रवर्तक गुरुदेव श्री रूप मुनि जी म. सा. ‘रजत’, ये नाम किसी पहचान की मोहताज नहीं रखता, ये नाम अपने आप में विराट है, सागर है। आप माँ मोती बाई की कुक्षि से जन्म लेकर, गुरु मोती के सान्निध्य में धर्मपथ पर बढ़ चले।
अनहोनी को कोई टाल नहीं सकता, सहसा एक दिन गुरुदेव सबको छोड़ कर परभव गमन किया, एकांकी होने के बावजूद भी धैर्य समता आपमें सुदृढ थी। गुरु के अल्पकाल सान्निध्य में आपने ज्ञानार्जन किया, पर उस ज्ञान में निखार लाने के लिए एक ऐसे महान संत की छांव मिली, जिनके सहारे आपके जीवन की दिशा ही बदल गई, वो परम उपकारी गुरुदेव बनकर आये श्रमण सूर्य दिव्य विभूति भारत भूषण वरिष्ठ प्रवर्तक आराध्य भगवान मरूधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म. सा, इस महान संत ने ही आपको प्रेम वात्सल्य स्नेह की छांव के साथ-साथ जीवन विकास हेतु अनुशासन में रखते हुए आपको ज्ञान-ध्यानतप के क्षेत्र में शिखरों तक पहुँचाया। गुरु मोती के आशीष से व गुरु मिश्री के सहयोग सहकार से बाबा रूप रजत के जीवन में निरन्तर निखार आया था। गुरु मिश्री आपको कभी अकेले नहीं छोड़ते थे और आप भी इस कल्पवृक्ष की छांव को कभी नही छोड़ते थे। ज्ञान के क्षेत्र में विकास करते-करते आपने कई भाषाओं में महारथ हासिल करने लगे, आपने कई मारवाड़ी भाषा में महाकाव्य लिखे। लगभग १३ वर्ष की आयु में प्रथम बार आपके दर्शन किया। गुरु अमृत ने मेरा परिचय आपसे करवाया तो आपने तत्क्षण मेरे सारे पूर्वजों का नामोल्लेख कर दिया, मैं दंग रह गया, आप में ज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपशम था।

आपके सान्निध्य काल में मैंने आपके जीवन से कई सारी शिक्षाएं ली हंै जिसका मैं निम्न उपदेशी क्रम से उल्लेख कर रहा हैं:
(१) गौसेवा ये शिक्षा आपने गुरु मिश्री से प्राप्त की, इसी ओर आपने अपने कदम बढ़ाए और अब तक लगभग १ लाख से अधिक गौवंश का पालन पोषण हो रहा है।
(२) शिक्षा-प्रत्येक साधु-संतों को आगम ज्ञान के साथ-साथ सर्वदर्शनों पर पकड़ रखने की आप प्रेरणा देते हैं आपका कहना है जहां से भी ज्ञान मिले ले लेना चाहिए।
(३) मानव सेवा- तुम चाहे कितने भी मंदिर चले जाओ पर तुमने मानव रूपी मंदिर में सेवा के भाव नहीं जगाए तो व्यर्थ है, तुम्हारे मानव होने के रूप का।
(४) सामर्थ्य- तुम्हारे भीतर भले ही हजारों शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की ताकत हो पर वो सामथ्र्य किसी के रक्षण में उपयोगी न हो तो व्यर्थ है तुम्हारा सामर्थ्य।

(५) अनुशासन- मैंने अधिकतर बार देखा है कई साधु-साध्वी अनुशासन में नहीं रहते, उन्हें तत्काल अपनी नीति से मार्ग पर लाना आपका बाएं हाथ का खेल रहा।
(६) निर्भीक व्यक्तित्व संघ समाज हो या छतीसी कौन की समस्या हो या उलझन, उनको साहस के साथ समाधान देना आपके निर्भीक होने का प्रमाण है।
(७) ‘हिम्मत न हारो’ ये उदाहरण तो हम प्रतिदिन देखते हैं सप्ताह में ३ बार डायलिसिस, उसके उपरांत अनेक वेदना होते हुए भी जीवन के प्रति कितना सकारात्मक होना, ‘हिम्मत नहीं हारना’ ये आपके आंतरिक शक्ति का उदाहरण रहा है।
(८) आपके जीवन में गुरुभक्ति कूट कूट कर भरी हुई है, प्रवचन में हर बार आप फरमाते हैं, म्हारा माथा रा सिरमौर मरूधर केसरी, ये पंक्ति मैं जब भी सुनता हूँ, कितनी भक्ति गजब।
(९) साधना- आपके जीवन में साधना और उसका प्रभाव गुरु मिश्री के आपके सिर पर अंतिम हाथ आशीर्वाद स्वरूप रखने के पश्चात ही हुआ है, गुरु मिश्री के आशीष से आपने धीरे-धीरे आचार्य रघुनाथ सम्प्रदाय और श्रमण संघ को कई ऊँचाईयों तक पहुँचाया।
(१०) – ‘कभी कड़क कभी नरम’ ये विरल व्यक्तित्व आपने गुरु मोती मिश्री से मिला, मोती गुरु नरम तो मिश्री गुरु कड़क ये दोनों स्वभावों के कारण आपका व्यक्तित्व विरल रहा है, आपके चित्रपट को जब भी कोई देखता है तो आंखों से भिन्न प्रकार का ओज व्याप्त होता है, हम तो केवल आपके नेत्रों में छुपी अलौकिक ओज को ग्रहण करते हैं।
उपर्युक्त कुछ बातें जो मैंने आंखों देखी है अनुभव किया है।
आपकी महिमा का अगर वर्णन करें तो सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है, आप साधुत्व जीवन के प्रति बड़े ही प्रतिबद्ध रहे हैं, मेरा अनंत-अनंत सौभाग्य है कि मुझे आपका सान्निध्य का लाभ मिला, आपके वटवृक्ष में रहकर आपके पदचिन्हों पर चलने का साहस किया, मैं तो ह्य्दय की अंतर शुद्ध निर्मल भावनाओं से यही प्रतिपल कामना करता हूँ कि आपका वरदहस्त मुझ पर आजीवन बना रहे।

-डॉ वरूण मुनि

अतीत के आंगन में...

पूर्व नाम – दिलीप कुमार जैन (पप्पू)
जन्म तिथि – २३ जुलाई १९७०
दीक्षा तिथि/स्थल – १८ अप्रैल १९८९, राजस्थान
पिताश्री – श्री अभय कुमार जी जैन
मातुश्री – श्रीमती शोभा देवी जैन
जाति – परवार गौत्र
सहोदर – श्री संजय कुमार जैन
सहोदरी – श्रीमती पिंकी, श्रीमती लाली
वैराग्य उदय – पुष्पगिरि प्रणेता गुरूदेव श्री पुष्पदन्त सागरजी के
दर्शन चरण एवं पादमूल स्पर्श करने मात्र से

उपाधियों के पार उपाधि

अंतर्मना मुनि श्री अपनी चिंतन धारा एवं सलिल वाणी प्रवाह के लिए क्रांति दस्ता के रूप में श्रद्धास्पद स्थान रखते हैं, आपका जीवन उस प्रयोगशाला की भांति है जिस प्रयोगशाला में आत्म दर्शन, आत्म विश्लेषण और आंतरिक शुद्धि के अनुरूप प्रयोग होते हैं।
आपका जीवन अन्र्तोमुखी होते हुए सरस वाणी प्रवाह सहित करूणा, समता और अनेकान्त का एक जीवन दस्तावेज है, जिसे समय की पाठशाला में सतत् पढ़ा जाता रहेगा।
विगत २०-३० वर्षों के साधना जगत के शिरोमणि एवं लालित्यमयी वाणी के धारक आप अपनी गुणवत्ता के कारण जैन जगत व राष्ट्रस्तर पर वह स्थान बनाया, जिस पहचान के कारण आपको विभिन्न उपाधियों से विभूषित किया गया, कई उपाधियां एवं उपधि प्रदाता से गौरवान्वित हुए हैं।

  • भारत वर्ष के गुजरात शासन द्वारा आपको महामहिम राज्यपाल श्री ओ. पी. कोहली के कर कमलों से ‘साधना महोदधि’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
  • वियतनाम विश्वविद्यालय द्वारा आपको महालेखन कार्य (जीवन का सबसे लम्बा सूत्र राखी) के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • अंतर्मना ने ‘राखी’ के माध्यम से जन-जन को संदेश दिया कि रक्षा राखी की होनी चाहिए, राखी (मिट्टी) चाहे जमीन की हो या कलाई की (रक्षासूत्र) देश के हर नागरिक का कत्र्तव्य है कि हम अपनी राखी की रक्षा करें और इसके लिए वो अपना सर्वोच्च बलिदान भी दे सकता है। राखी की रक्षा का तात्पर्य देश की सुरक्षा, कलाई की राखी का तात्पर्य, भ्रूण हत्या का न होना, कन्याओं की महिलाओं की रक्षा करना।
  • संसार का सबसे श्रेष्ठतम खाद्य पदार्थ दूध है दूध हमें जिन संशाधनों से प्राप्त होता है उसकी रक्षा होना चाहिए, आज तक जितने भी व्यक्ति बड़े हुए वे सब दूध पीकर ही बड़े हुए हैं, इसलिए गौ की रक्षा करनी चाहिए एवं जीव दया पालन करने की प्रेरणा दी जाती है।
  • आपके नाम से राजस्थान के अजमेर संभाग केकड़ी में अंतर्मना महाद्वार, अंतर्मना लिंक रोड, अंतर्मना सर्कल किशनगढ़ अंतर्मना बस स्टेण्ड इत्यादि। जन उपयोगी कार्य देश के विभिन्न स्थानों पर आपकी प्रेरणा से कराये गये।
  • आपका नाम इंडिया बुक, एशिया बुक रिकार्ड, गिनीज बुक रिकार्ड में दर्ज है, आपकी गूगल (इंटरनेट) पर बुक ऑफ राखी के माध्यम से जानकारी पाई जा सकती है।
  • ब्रिटेन की संसद में सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा आपको भारत गौरव के सम्मान से नवाजा गया।
    ‘‘जो प्राप्त है वही पर्याप्त है, यही है शांति का सूत्र’’
-अंतर्मना मुनि प्रसन्न सागर जी

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