समीक्षा-सितम्बर-२०१८

जय जिनेन्द्र ! जिनागम

जैन समाज में क्षमा पर्व का विशेष महत्व है, इसमें वर्ष भर हुई गलतियों के लिए हम क्षमा याचना करते हैं, इस क्षमा याचना के माध्यम से हम अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। पर्युषण पर्व का जैन समाज में विशेष स्थान है, धार्मिक सेवाओं के माध्यम से अपनी धार्मिक प्रवृत्तियों का विकास कर सकते हैं, क्षमा पर्व में हमें अपने सारे बैर-भाव भूलकर, जाने अंजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
(क्रांतिकारी दिगम्बर जैन संघ के गुरू आचार्य श्री तरूण सागर जी म.सा. को चंगेडिया परिवार के ओर से भावभिनी श्रद्धांजली।)
जैन समाज में फैली अनेकता व पंथवाद के कारण जैन धर्म का महत्व खोता जा रहा है पर यह अलगावाद श्रावकों के बीच नजर नहीं आता, श्रावक संघ के अध्यक्षों व साधु-संतों को इस ओर प्रयास करना चाहिए, हमारी संवत्सरी, पर्युषण व महावीर जयंती आदि जैन समाज द्वारा दिन विशेष को एक ही दिन व एक साथ मनानी चाहिए, इससे अवश्य ही ‘जैन एकता’ स्थापित होगी व सर्वप्रथम हम सभी को अपने नाम के आगे ‘जैन’ शब्द अवश्य लगाना चाहिए, इससे ‘जैन एकता’ को सिद्ध करने में सहायता मिलेगी।

राजमल श्रीमल चंगेडिया जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
भानसहिवरा (नेवासा) निवासी-
अहमदनगर प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८५०९९५०९९

लगभग १९३५-४० से हमारा परिवार अहमदनगर महाराष्ट्र का प्रवासी है, नेवासा जिले स्थित भानसहिवरा के हम निवासी रहे। मूलत: हमारे पूर्वज राजस्थान के नागौर जिले के निवासी हैं। व्यक्तिगत रूप से सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ, पुत्र आदेश कुमार भारतीय जैन संघटना के अहमदनगर जिले के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत है, हमारा यहां अनाज का थोक व्यापार का कारोबार है, मेरे पुत्र का ‘चंगेडीया आउट डोर’ नाम से विज्ञापन का व्यवसाय है।
‘जिनागम’ बहुत ही उत्तम पत्रिका है, पत्रिका के माध्यम से जैन एकता का जो प्रयास किया जा रहा है उससे समाज में एक जागृति आ रही है, लगभग सभी जैन समाज के लोग अपने नाम के आगे ‘जैन’ शब्द को अनिवार्य रूप से लगाने लगे हैं।
‘हिंदी’ भारत की प्रमुख सम्पर्क भाषा है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

आनंद चोरडिया जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
राजस्थान निवासी-पाथर्डी (अहमदनगर )प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९४२३१६०८६५

राजस्थान मेरा मूल निवास स्थान है, यहां से हमारे पूर्वज लगभग १००-१५० पहले महाराष्ट्र के अहमदनगर आकर बस गए। मेरा जन्म व शिक्षा अहमदनगर के पाथर्डी ग्राम में हुआ। पाथर्डी आचार्य आनंद ऋषि म.सा. की भी जन्मस्थली है जो आनंद तीर्थ नाम से जानी जाती है, यहां स्थित कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। स्वामी समर्थ माध्यमिक विद्यालय में सह सचिव के रूप में कार्यरत हूँ। स्वामी समर्थ संस्था में वाइस चेयरमेन व जैन श्रावक संघ में पिछले २५ वर्षों से कोषाध्यक्ष व यहां स्थित गुरू आनंद गौशाला में ट्रस्टी व जैन कान्फ्रेंस दिल्ली में कार्यकारी सदस्य के रूप में सेवारत हूँ।
‘जैन एकता’ अवश्य स्थापित होनी चाहिए यदि चारों संघ एक साथ-एक मंच पर आएगें तो ‘जैन एकता’ के लिए उत्तम प्रयास होगा, इसके लिए जैन समाज के गुरू भगवंतों, आचार्यों को प्रथम प्रयास करना होगा, हमारी संवत्सरी एक ही दिन मनायी जानी चाहिए।

‘क्षमा विरस्य भूषणम्’ क्षमा वीरों की शोभा है, जाने-अंजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगने में हमें किसी प्रकार की ग्लानी नहीं होनी चाहिए। क्षमा से हम अपने व्यक्तित्व को निर्मल बनाने का प्रयत्न करते हैं व आत्मशुद्धी का उत्तम पथ है।
‘जिनागम’ पत्रिका बहुत ही अच्छी पत्रिका है, इस पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ के लिए सम्पादक बिजय कुमार जैन जो प्रयास कर रहे हैं वह सराहनीय ही नहीं अनुमोदनीय भी है, यह प्रयास अवश्य सफल होगा।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए, हिंदी के माध्यम से ही हम आपस में आसानी से संपर्क स्थापित कर सकते है, हिंदी ही हमारी पहचान है।

क्षमापर्व का जैन समाज में विशेष स्थान है, यह एक पर्व के रूप में मनाया जाता है, इस दिन सारे बैर भावों को त्याग कर आगे बढ़ते हैं, लोगों से क्षमा मांगने व क्षमा करने को, यदि हमने जाने-अंजाने में कोई गलती कर दी है तो क्षमा मांगने में शर्म क्यों, क्षमा मांगने पर हम अपनी ही आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं और स्वयं को धर्म के प्रति समर्पित करते हैं, पर वर्तमान परिवेश में इसका महत्व खोता नजर आ रहा है, हमारी आने वाली पिढ़ि इसके प्रति उदासीन है, हमें उन्हें इस ओर समर्पित करने का प्रयास करना होगा, जिससे उनमें मौलिक सिद्धांत जीवित रह सके।

हमारा परिवार १९९१ से राजस्थान के भीलवाड़ा का प्रवासी है, हम मूलत: बीकानेर स्थित रासीसर के निवासी हैं। भीलवाड़ा में हमारा टेक्स्टाइल का कारोबार है। भीलवाड़ा स्थित अरिहंत हॉस्पीटल व रिसर्च सेंटर में उपाध्यक्ष के पद पर सेवारत हूँ, अखिल भारतीय जैन साधुमार्गी संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य के रूप में सेवारत हूँ, साथ ही अन्य सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से संलग्न हूँ।

मोतीलाल लालानी जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
रासीसर (बीकानेर) निवासी-
भीलवाडा प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२९०४५७७५

जैन समाज में पंथवाद के कारण आज सम्पूर्ण समाज बिखर रहा है, दिगम्बर व श्वेताम्बर सभी के अपने भगवान महावीर स्वामी जी हैं, सभी पंथ का अंतिम लक्ष्य एक है फिर ये अलगाववाद क्यों? हमें हमारे सभी पर्व एक-साथ एक ही समय पर मनाने का प्रयास करना चाहिए, जिसके माध्यम से जैन एकता का प्रयास संभव हो सकता है, अत: इसके लिए सर्वप्रथम हमारे गुरू भगवंतों को सर्वप्रथम एकमंच पर आना होगा।
‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का प्रयास सराहनीय है, यह सभी समुदायों को लेकर चलने वाली पत्रिका है, हमारे हिंदुस्तान की एक भाषा तो अवश्य होनी चाहिए, ‘हिंदी’ एकमात्र भाषा है जो सभी भारतीयों को आपस में जोड़ती है अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।

पृथ्वीराज वेदमेहता

चार्टर्ड अकाउंटेंट व समाजसेवी
सोजत निवासी-बैंगलोर प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८४५६८१३४६

क्षमा मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा धर्म है। जैन धर्म में पर्युषण, संवत्सरी, क्षमापना, प्रतिक्रमण सभी जीव- आत्मा को शुद्ध कर मन पर नियंत्रण रखने एवं बुरे विचारों से दूर रहने का सुवर्ण अवसर प्रदान करते हैं पर वर्तमान समय में यह धर्म से ज्यादा आडंबर बन कर रह गया है, अत: हमें इस पर्व के मौलिक सिद्धांतों को बचाए रखने की आवश्यकता है।

मैं मूलत: राजस्थान के सोजत सिटी का निवासी हूँ, १९७३ में बी. कॉम. की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात बैंगलोर आना हुआ व सी.ए. की शिक्षा बैंगलोर से प्राप्त की, वर्तमान में एफ.सी.ए. के रूप में कार्यान्वित हूँ और चार्टर्ड अकाउंटेट इनस्टीट्युट से पीयर रिव्युअर ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेट की सर्टिफिकेट हासील की है। वर्तमान में ईटा गार्डन बैंगलोर स्थित श्री वासुपुज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर ईटा गार्डन ट्रस्ट के अध्यक्ष पद पर कार्यरत हूँ और तीन वर्ष तक सचिव भी रह चुका हूँ। ईटा गार्डन में ३५० जैन परिवार निवास करते हैं।

ईटा गार्डन ओनरशीप असोसिएसन में तीन साल तक कोषाध्यक्ष भी रह चुका हूँ। वर्तमान में पाँच वर्ष से भारत स्काउट्स गाईडस कर्नाटका का लाइफ प्रमोटर हूँ, मौजूदा जीवदया (Animal Right Funds) में सात वर्षों से ट्रस्टी पद पर कार्यरत हूँ।

अभी मेरे सी.ए. के व्यवसायिक कार्य में सी.ए., टेली एक्सेस तथा आयकर वार्षिक रिर्टन भरने के लिए हर वर्ष सौ विद्यार्थी, जो कॉलेज में अध्यनरत है उनको ट्रेनिंग दी जाती है और करीब ५०० विद्यार्थी हमारे यहां से ट्रेनिंग लेकर निकल चुके हैं, मेरे व्यवसाय में मेरे सुपुत्र का भी बड़ा सहयोग है और वह जुनियर चेंबर ऑफ इनडस्ट्री (जेसीआय) के उपाध्यक्ष के पद पर से सेवा दे रहा है जहां १५०० से भी अधिक बुद्धिजीवी सदस्य हैं, हर वर्ष हमारे माता-पिता की यादगार में वॉटर कुलर आदि संस्थानों में प्रति वर्ष लगाया जाता है। श्री सोजत जैन संघ, बैंगलोर में २० वर्षों तक सचिव पद पर रहा, दो वर्ष अध्यक्ष पद पर रहा, वर्तमान में ज्येष्ठ मार्गदर्शक के रूप में कार्यरत हूँ इसके अतिरिक्त अन्य कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं में कार्यरत हूँ।
‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का उत्तम प्रयास किया जा रहा है, पत्रिका के सम्पादक बिजय कुमार जैन का यह प्रयास अवश्य सफल होगा, इसके लिए सम्पादक महोदय सम्मान के पात्र हैं।
‘हिंदी’ तो हमारी राष्ट्रभाषा है पर गुलाम मानसिकता के चलते अभी तक वो सम्मान नहीं मिल पाया है, जिसकी वो अधिकारिणी है, ‘हिंदी’ नहीं आना व ‘हिंदी’ नहीं बोल पाना, हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है, ‘हिंदी’ को संवैधानिक राष्ट्रभाषा सम्मान मिलना ही चाहिए, यह देश का सम्मान होगा।

राजस्थान के नागौर जिले स्थित अलाय हमारा मूल निवास स्थान है, मेरा जन्म व शिक्षा अलाय में ही हुई है। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात लगभग २५ वर्ष पूर्व हम सूरत के प्रवासी है, यहां हमारा मोटर्स का कारोबार है, चिखली स्थित स्थानकवासी समाज की संस्थाओं में सदस्य के रूप में जुड़ा हूँ।
क्षमापना जैन धर्म का महापर्व है, जिसे सम्पूर्ण जैन समाज बड़े उत्साह से मनाते हैं। ‘क्षमा वीरस्य भूषणम’ का पालन करते हुए हमें दिखावा छोड़कर व्यवहारिक रूप से क्षमा को अपने जीवन में उतारना चाहिए, जिससे हमारा जीवन सार्थक हो सके। जैन समाज में ‘एकता’ एक चिंता का विषय बना हुआ है, जैन समाज के सभी पंथ-भगवंत महावीर स्वामी के पूजक हैं सभी को एक साथ-एक मंच पर आना होगा, इसके लिए सभी पंथ के आचार्यों-गुरू के साथ हम श्रावकों को भी प्रयत्न करना होगा।

‘जिनागम’ जैन समाज की बहुत अच्छी पत्रिका है, जैन एकता के लिए अच्छा कार्य कर रहे संपादक बिजय कुमार जैन की भावना एवं प्रयास दोनों ही प्रणम्य है।

‘हिंदी’ देश की जरूरत है जिसके बिना विकास सही मायने में नहीं हो सकता, ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक अधिकार अवश्य प्राप्त होना चाहिए, जिसके लिए हमारी भारत सरकार को सहयोग करना होगा।

प्रकाशचंद संचेती जैन

व्यवसायी एवं समाजसेवी
अजमेर निवासी- मुंबई, महाराष्ट्र प्रवासी
मो. ९८२००५०४८८

अखिल भारतीय नानक प्राज्ञ संघ के राष्ट्रीय चेयरमैन प्रकाशचंद संचेती जैन का जन्म राजस्थान के अजमेर जिले में हुआ, परंतु करीब ३५ साल से सपरिवार मुंबई प्रवासित हैं, जयपुर और मुंबई में आपका डायमंड एक्सपोर्ट का व्यवसाय है, इसके अलावा सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में आपकी विशेष रूचि है, आप दादर-परेल वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के संरक्षक हैं जिसके द्वारा समाज में एकता एवं सौहार्द
बनाये रखने का प्रयास किया जाता है।
जैन धर्म में क्षमापना साल भर में हुई अपनी त्रुटियों की विश्व के प्रत्येक जीवनमात्र से क्षमा मांग कर आत्म शुद्ध, कर्मों की निर्जरा करने का एक सुअवसर है, किसी भी जीव मात्र को हमारी वजह से तकलीफ ना हो और उस गलती को ना दोहराया जाये, ताकि जीवन के संबंधों में प्रेम और एकता बनी रही।

जैन धर्म के लिए बहुत अच्छा होगा कि जैन समाज एकजुट हो, क्योंकि किसी भी धर्म या समाज की ताकत और विकास उसकी एकता में ही निहित है, परंतु साधु-संतों के बढ़ते स्वार्थ एवं राजनीति के कारण हम महावीर भगवान के मूल सिद्धांतों से भटक रहे हैं,कथनी और करनी में अंतर आ गया है,बोलते कुछ और करते कुछ हैं,

जैन समाज में एकता तभी संभव है जब हम सभी ‘साधु-श्रावक’ अपना-अपना अहंकार छोड़ जैन धर्म की संवत्सरी एक ही दिन मनायें, महावीर जयंती के बाद यह महत्वपूर्ण त्यौहार है, हमने भी कई बार प्रयास किया लेकिन संभव नहीं हो पाया, क्योंकि लोग ‘एक’ होना ही नहीं चाहते, जबकि एक गच्छ का दूसरे के प्रति सद्भावना होनी चाहिए, जो साधुसंत ही सही मार्गदर्शन देकर संभव बना सकते हैं, इसी उद्देश्य हेतु ‘मर्यादा महोत्सव’ मनाया जाता है।

‘जिनागम’ पत्रिका से मैं वर्षों से जुड़ा हुआ हूं, ‘जैन समाज’ की एकमात्र एकतामेव पत्रिका है जो जैन समाज एवं साधु-श्रावक सभी को एकजुट में बांधने का सराहनीय प्रयास कर रही है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है, जबकि आज विश्व स्तर ‘हिंदी’ अपनी पहचान बना रही है, इसलिए हमारी सरकार को ‘हिंदी बनें राष्ट्रभाषा’ अभियान पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

जैन धर्म अपने आप में सम्पूर्ण संयम का धर्म है, जो हमें जीवन भर संयमित जीवन जीने की राह पर चलाता है, क्षमापर्व का विशेष स्थान है जो हमें अपनी जाने-अंजानें में हुई गलतियों का अहसास कर उसके लिए क्षमा मांगने के लिए प्रेरित करता है व अपनी आत्मा को ग्लानी के भाव से मुक्त करता है। वर्तमान परिवेश में युवा पिढ़ि इससे दूर होती जा रही है, इसका मुख्य कारण हमारी आधुनिक जीवन शैली व हम परिजनों का अपनी संस्कृति के प्रति जागरूकता न दिखाना, यह हम माता-पिता का कर्तव्य है कि उन्हें अपनी संस्कृति व धर्म की सम्पूर्ण जानकारी करवाएं, हमें स्वयं अपनी नींव मजबूत करनी होगी।
जैन समाज में ‘जैन एकता’ की सबसे बड़ी आवश्यकता है, इसके लिए सर्वप्रथम हमारे समाज व पंथ के गुरू-भगवंतों को आगे आकर प्रयास करना चाहिए व एक साथ-एक मंच पर आना चाहिए, क्योंकि हम श्रावक गण उनके ही अनुयायी हैं वे जैसा कहते हैं हम उन्हीं के बताए मार्गों का अनुसरण करते हैं, अत: सर्वप्रथम उन्हें पंथवाद व सम्प्रदाय वाद के दायरे से मुक्त होना चाहिए।

जयकुमार नृपत्या

व्यवसायी व समाजसेवी
जयपुर निवासी-मुंबई प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२१०४६९२६

राजस्थान का गुलाबी शहर ‘जयपुर’ मेरा मूल निवास स्थान है, मेरा जन्म व शिक्षा जयपुर में ही सम्पन्न हुई है, पिछले ३४ वर्षों से मुंबई का प्रवासी हूँ यहां हमारा हीरे Diamond का कारोबार है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए, सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का जो प्रयास किया जा रहा है वह सराहनीय है।

संजय जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
छापर निवासी-हैदराबाद प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८८५३४३९८९

लगभग ३० वर्षों से हम हैदराबाद के प्रवासी हैं, हमारा मूल निवास स्थान राजस्थान के चुरू जिले स्थित छापर है, जो मेरा जन्म स्थान है। मेरी बी. कॉम. तक की शिक्षा छापर से ही सम्पन्न हुई। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात रोजगार के उद्देश्य से हैदराबाद आना हुआ जो अब मेरी कर्मभूमि है, यहां हमारा रेडिमेड गारमेंट का कारोबार है, श्वेताम्बर तेरापंथ की संस्थाओं से जुड़ा हूँ।
पर्युषण पर्व का अगला दिन क्षमायाचना दिवस समाज के लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है। क्षमा याचना के माध्यम से सभी आपसी गिले-सिकवे भूला देते हैं, इसके माध्यम से रिश्तों में आई कड़वाहट खत्म हो जाती है व रिश्तों में माधुर्यता निर्माण होती है, साथ ही अपनी आत्म शुद्धि का भी हम प्रयास करते हैं, इससे नई पिढ़ि को भी जोड़ कर रखना चाहिए, जिससे हमारे संस्कार व संस्कृति जीवित रह सकें, क्षमा पर्व जैन धर्म के अतिरिक्त अन्य किसी भी धर्म में देखने को नहीं मिलता।

जैन समाज में ‘एकता’ स्थापित होना बहुत ही आवश्यक है, अलगाव क्यों, जबकि हमारे भगवान महावीर एक व उनके बताए मार्ग व सभी सिद्धांत एक हैं,

अंतिम लक्ष्य मोक्ष भी एक है, बस इसे अपनाने के तरिके अलग-अलग है, अत: जैन समाज के सभी पंथों को एक साथ-एक मंच पर आकर ‘जैन एकता’ का प्रयास करना चाहिए, विभिन्नता के कारण जैन समाज को किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधाएं नहीं प्राप्त हो रही हैं। जैन धर्म के अस्तित्व की रक्षार्थ जैन समाज में एकता लाना होगा, हमें संवत्सरी, महावीर जयंति, पर्युषण पर्व सभी मिलकर एक साथ-एक ही दिन मनाना चाहिए।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए। ‘हिंदी’ के माध्यम से देश का सर्वांगीण विकास संभव है, आज परिवारो में अपनी मातृभाषा व हिंदी का महत्व कम होते जा रहा है, इसके लिए हम अभिभावक ही जिम्मेदार हैं क्योंकि हम अपने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेजी के पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं। अपनी भाषा व अपनी संस्कृति अपने संस्कार देना छोड़ देते हैं तो बच्चों को अंग्रेजी अपनी भाषा लगती है, अपनी मातृभाषा में वह असहजता महसूस करता है, अत: सर्वप्रथम हमें अपनी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा को बढावा देना चाहिए।

जैन धर्म में क्षमा पर्व सबसे महत्वपूर्ण व सबसे अधिक उपयोगी पर्व के रूप में जाना जाता है। जाने-अनजाने में हमसे गलतियां हो ही जाती हैं, उन गलतियों को एक समय विशेष पर्व पर क्षमा प्रार्थना करना, अपने आप में महत्वपूर्ण है, अपनी गलतियां हो या ना हो फिर भी क्षमा मांगना अपने-आप में विशेष महत्व रखता है, जिससे सारे बैर भाव नष्ट हो जाते हैं। वर्तमान परिवेश में क्षमा पर्व की सार्थकता और बढ़ जाती है क्योंकि
आज का युग प्रतियोगिता का युग है, जाने-अंजाने में हमसे गलतियां होती जाती हैं, यह पर्व हमें मौका देता है उन गलतियों को सुधारने का या उन गलतियों से हुए अपराध बोध को कम करने का, हम आपसी रिश्तों में और मिठास ला सकते हैं।
जैन समाज में कभी अलगाववाद नहीं रहा है क्योंकि अहिंसा हमारा मूल तत्व है, किसी के प्रति विरोध भाव भी व्यक्त करना हिंसा माना जाता है, हम सभी जैन एक हैं, हम अपने ही समाज व अपने ही लोगों से अलग कैसे रह सकते हैं, कहीं न कहीं ये पंथवाद व सम्प्रदायवाद वर्तमान परिवेश व राजनीति से प्रेरित लगता है,

बबीता जैन

शिक्षिका व समाजसेवी
मोदीनगर निवासी-दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८९१३७१४१२

हम अलग-अलग रहकर कभी सफलता नहीं प्राप्त कर सकते, हमारी एकता के कारण ही केंद्र में अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त हुआ है, अत: सम्पूर्ण समाज एक साथ-एक मंच पर आए तो हमें सफलता अवश्य प्राप्त होगी, एकता में जैन धर्म की सच्ची सार्थकता निहित है।

मेरा मूल निवास स्थान उत्तर प्रदेश गाजियाबाद है, मेरा जन्म व शिक्षा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मोदी नगर में ही सम्पन्न हुयी है। विवाह उपरांत दिल्ली की प्रवासी हुई, मेरे पति संदीप जैन केंद्र सरकार के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक (संस्था आयोग) उपसचिव के रूप में कार्यरत है। संस्था के साथ-साथ व्यक्तिगत रूप से भी जैन अल्पसंख्यकों के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े अधिकारों से संबंधित कार्यों में सक्रिय रहते है। मैं भी एक ‘हिंदी’ शिक्षिका के रूप में सेवारत हूँ। ‘माइनोरिटी बेनिफिट’ की पुस्तक के माध्यम से विद्यार्थी, लघु उद्योग, संस्थाओं, मंदिरों के जीर्णोद्धार के साथ महिलाओं आदि अल्पसंख्यक को प्रदान की जानेवाली सुविधाओं की जानकारी इस पुस्तक में उपलब्ध करवाई है, आप ‘दिव्य-देशना’ पत्रिका में सहसंपादक के रूप में भी कार्यरत हैं।
ज्ञान माइनोरिटी एज्युकेशन अण्ड वेलफेयर फाउंडेशन के माध्यम से युवा शक्ति में शैक्षणिक बदलाव के लिए कार्य कर रही हूँ, संस्था में राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सेवारत हूँ, संस्था के माध्यम से युवा पिढि को प्रत्येक क्षेत्र की जानकारी चाहे वह शैक्षिक हो, आर्थिक हो या अन्य क्षेत्र की हो, जागृति लाने के लिए कार्य किया जाता है। युवाओं को विचार गोष्टी के माध्यम से उन्हें विभिन्न क्षेत्र की जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
‘हिंदी’ ही हमारी प्रमुख सम्पर्क भाषा है, यह सबसे सरल व आसान भाषा है जो हर किसी को आसानी से समझ में आती है, इससे प्रत्येक भारतीय आसानी से जुड़ जाता है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

जबरमल भंसाली जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
छापर निवासी-काकीनाडा (आंध्रप्रदेश) प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९३९०२१२६४४

राजस्थान के चुरू जिले स्थित छापर हमारा मूल निवास स्थान है, मेरा जन्म व मेरी प्रारंभिक शिक्षा छापर में ही सम्पन्न हुई व बी. कॉम. की शिक्षा कलकत्ता से ग्रहण की, जहाँ मेरे पिताजी व बड़े भाई निवासरत हैं। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात १९९३ में विशाखापट्टनम व्यवसाय के निमित्त आना हुआ, तत्पश्चात १९९७ में काकीवाडा आना हुआ। गुरू जी के आशीर्वाद से २००० में मेरा व्यवसाय चल पड़ा, आंध्र कॉपर वाय हाउस के नाम से हमारा कॉपर वायर का कारोबार है, मेरे पुत्र का सेफ्टी हाऊस का कारोबार है। काकीनाडा स्थित लगभग सभी सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। काकीनाडा स्थित तेरापंथ महासभा में तीन वर्षों से अध्यक्ष पद पर सेवारत हूँ। राजस्थान सांस्कृतिक समाज में कार्यकारिणी सभा में सदस्य के रूप में कार्यरत हूँ, यहां स्थित ‘अनुदानम समाज’ के माध्यम से गरिबों को भोजन करवाना आदि सामाजिक कार्य किए जाते हैं, इस समाज में सदस्य के रूप में सेवारत हूँ। महावीर स्वामी ने कहा है ‘क्षमा विरस्य भूषणम’ क्षमा का सभी के जीवन में विशेष स्थान है। क्षमा के माध्यम से हम अपनी गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करते हैं,

इसे हम संवत्सरी पर्व के रूप में मनाते हैं,पर यह हमें रोज मनाना चाहिए जिससे अपने कार्यों व बातों से जिन्हें दु:ख पहुंचा है उससे क्षमा मांगकर अपने आप को शुद्ध कर अपनी आत्मा को पवित्र कर सकें। ‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से सम्पादक बिजय कुमार जैन ‘जैन एकता’ का जो प्रयास कर रहे हैं वह अद्वितीय है, उनकी सोच व कार्यों से पूर्णत: सहमत हूँ, हम जहां अपने दायरे तक ही सीमित रहकर कार्य करते हैं वहीं बिजय जी अपनी क्षमता व लगन के बल पर सम्पूर्ण भारत में अपने कार्य फैला रहे हैं व लोग धीरे-धीरे इसका अनुसरण भी कर रहे हैं।