युग प्रवर्तक गुरु श्री विजयानंद महाराज जी १२५वें (१८९६-२०२१) स्वर्गारोहण वर्ष पर विशेष(Guru Shree Vijayanand Maharaj Ji 125th (1896-2021) )

युग प्रवर्तक गुरु श्री विजयानंद महाराज जी १२५वें (१८९६-२०२१) स्वर्गारोहण वर्ष पर विशेष(Guru Shree Vijayanand Maharaj Ji 125th (1896-2021) )

युग प्रवर्तक गुरु श्री विजयानंद महाराज जी १२५वें (१८९६-२०२१) स्वर्गारोहण वर्ष पर विशेष(Guru Shree Vijayanand Maharaj Ji 125th (1896-2021) ):
‘‘जीवन गाथा तुम्हें सुनाए, 
श्री गुरु आत्माराम की
आत्म रस को देने वाले
विजयानंद महाराज की..’’

जिस भारत की भूमि पर देवतागण भी जन्म लेने को आतुर रहते हैं, उसी पुण्य भूमि पर समय-समय पर अनेक महापुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने निजी स्वार्थ व प्रलोभनों को समाज एवं मानव मात्र के कल्याण के लिए त्याग दिया। ऐसी ही एक कड़ी में भारतीय संस्कृति की श्रमण परंपरा के महान आचार्य श्रीमद विजयानंद सूरि जी महाराज १९वीं शताब्दी के भारतीय सुधार के प्रणेता गुरुओं में गिने जाते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती व स्वामी रामकृष्ण परमहंस के समकालीन, आचार्य विजयानंद, जिन्हें उत्तर भारत में उनके प्रसिद्ध नाम ‘आत्माराम’ के नाम से भी जाना जाता है, अपने युग के महान मनीषी, लेखक एवं प्रवक्ता तथा तत्ववेता धर्मगुरु थे। गुरु विजयानंद जी ऐसे प्रथम अन्वेषक जैन गुरुदेव थे, जिनसे भारत भर के सभी जैन गच्छ शुरू हुए हैं, जो कि आज भारत एवं विश्व भर में जैन धर्म के आदर्शों एवं प्रेरणा को घर-घर में प्रसार कर रहे हैं। पंजाब प्रदेशांतर्गत फिरोजपुर जिले की जीरा तहसील में लहरा नामक एक ग्राम में कपूर वंशीय वीर श्री गणेशचंद्र एवं उनकी पत्नी रूपा देवी ने विक्रम सं.१८९३ की चैत्र सुदि एकम को एक सर्वगुण संपन्न बालक को जन्म दिया, जिसका नाम ‘आत्माराम’ रखा गया। एक दिन सोढ़ी अतर सिंह जो कि एक बड़े जागीरदार और ज्योतिष विद्या के ज्ञाता थे, गणेशचंद्र जी के घर आए, उसने बालक आत्माराम के विशाल मस्तक, हस्त और अंगों को देखकर बताया कि यह बालक भविष्य में राजा होगा या एक राजमान्य गुरु होगा।
‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यह पंक्ति आत्माराम जी पर भली प्रकार से घटित होती है, जब आप १२ वर्ष के थे तो आपके पिता ने परिस्थितियों की विवशता के कारण आपको जीरा में अपने एक जैन मित्र जोधामल जी के पास भेज दिया। आप उन महात्माओं की श्रेणी में सादर स्मरणीय है, जिन्होंने पवित्र भारत भूमि में योग बल के प्रभाव से आत्मज्ञान की पीयूष धारा को प्रवाहित किया है। आपका जीवन साधुता का सच्चा आदर्श था। आत्माराम जी को जैन साधुओं की संगति से वैराग्य उत्पन्न हुआ, जिसके फलस्वरुप इनके विचार साधु जीवन की ओर झुक गए। आत्माराम जी दृढ़ विचारों वाले व्यक्ति थे। वे ऐसे महापुरुष थे, जिनके दर्शन मात्र से मन के विकार दूर हो जाते थे, द्वेष, मनोमालिन्य आदि निकट न फटकते थे, हृदय में स्फूर्ति और जागृति के तेज का विकास होता था। विक्रम सं.१९१० में मलेरकोटला में आपका दीक्षा समारोह संपन्न हुआ और युवक आत्माराम ने महाराज श्री जीवनराम जी के चरण कमलों में आत्म निवेदन कर अपने जीवन विकास का श्रीगणेश किया। आपकी बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि २५० श्लोक कंठस्थ कर लेते थे।
ज्ञानोपार्जन करते हुए मुनि आत्माराम जी को यह अनुभव हुआ कि जितने भी साधुओं से मैं मिला हूं, वह सब आगमों के एक-दूसरे से भिन्न अर्थ करते हैं। समझ ना आने पर एक नया अर्थ निश्चित कर लेते हैं। इस विचारधारा में आपने सत्य की खोज आरंभ की, व्याकरण के बिना संस्कृति और प्राकृत का पूरा ज्ञान नहीं हो सकता। मुनि श्री रतनचंद जी महाराज से समागम पाकर आपका जीवन प्रकाश की किरणों से जगमगा उठा। मूर्ति पूजा और प्राचीन शास्त्रों पर आपकी पूर्ण आस्था बन गई। आपने मूर्तिपूजक जैन धर्म का प्रचार करना आरंभ कर दिया। विक्रम सं.१९३२ में गुरु श्री बुद्धिविजय जी ने मुनि आत्माराम जी को अहमदाबाद में दीक्षा दी, अब आपका नाम विजयानंद रखा गया।
ज्ञान बुद्धि के लिए अल्प समय में ही आपने बड़े-बड़े ग्रंथों को कंठस्थ कर लिया एवं १५ दिनों में ही व्याख्यान देने लगे थे। आत्मानंद जी स्वभावत: बहुत ही आनंद युक्त व्यक्ति थे एवं वह महान कवि थे। उनका हृदय भक्ति और समर्पण से अपरिपूर्ण था, जब हृदय भक्ति से भर जाता तब अपने आप भाव मुख से प्रस्फुटित होकर भजन का रूप धारण कर लेते थे। महान कवि और लेखक होने के साथ-साथ श्री विजयानंद जी एक श्रेष्ठ संगीतज्ञ थे। उनके द्वारा रचित गद्य एवं पद्य, ग्रंथ के प्रत्येक शब्द में उनके प्रकांड, अगाध एवं विशाल विद्वता, अध्ययन, सुंदर दृष्टि, निर्भय व्यक्तित्व, जिनशासन सेवा की ललक, सभी विशेषताएं उजागर होती हैं। विजयानंद सूरि जी ने हिंदी में बहुत सारे ग्रंथ लिखे जैसे:
‘अज्ञान तिमिर भास्कर’, ‘तत्व निर्णय प्रासाद’, ‘जैन मत वृक्ष’, ‘जैन धर्म का स्वरूप’, ‘जैन तत्वादर्श’, ‘शिकागो प्रश्नोत्तर’ आदि धर्म ग्रंथ अत्यंत प्रमाणिक हैं।
पंजाब केसरी युगवीर विजय वल्लभ ने तो उन्हें ‘तपोगच्छ गगन दिनमणि सरीखा’ भी कहा है। उन्होंने श्री संघ के हित के लिए एवं अपने गुरुदेव के नाम को अमर रखने के लिए कई योजनाएं तैयार की। जिनमें:-
पंजाब केसरी युगवीर विजय वल्लभ ने तो उन्हें ‘तपोगच्छ गगन दिनमणि सरीखा’ भी कहा है। उन्होंने श्री संघ के हित के लिए एवं अपने गुरुदेव के नाम को अमर रखने के लिए कई योजनाआत्म सम्वत चलाया, गुरुदेव का समाधि मंदिर बनवाया, आत्मानंद जैन सभाएं स्थापित की। गुरुदेव के नाम पर पत्रिका एवं चिकित्सालय चलाया, जो कि भारत एवं विश्व भर में समाज की भलाई के लिए काम कर रहे हैं तथा शिक्षण संस्थाएं गुरुदेव के नाम से चलाई। उनकी इसी कड़ी में आगे गुरु समुद्र सूरीश्वर जी, गुरु इंद्रदिन् सूरीश्वर जी भी जुड़े।एं तैयार की। जिनमें:-
गुरुदेव ने अपने विशिष्ट सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र एवं नेतृत्व बल से जिनशासन के संरक्षण एवं संवर्धन में महकती भूमिका निभाई है, उन्हाेंने अपने प्रत्येक श्वास से, रक्त के प्रत्येक कण से जिनशासन को सींचा है, जिसके फलस्वरूप ही हमें परमात्मा शासन सम्यक रूप में मिला है। मानव को उसकी महानता दर्शाकर, गौरव बढ़ाकर, उसे आत्मदर्शन की महान साधना में लगाकर परम हित एवं कल्याण ही उनके जीवन का उद्देश्य रहा। श्री विजयानंद महाराज जी ने सत्यधर्म का अन्वेषण किया, सत्यधर्म के प्रचार के लिए सर्वस्व की बाजी लगाई और जैन समाज के आधुनिक नवीन युग का श्रीगणेश किया।
अपने जीवन के अंतिम क्षणों में आपने मुनि श्री वल्लभ विजयजी को अपने पास बुला कर उन्हें अंतिम संदेश दिया की श्रावकों की श्रद्धा को स्थिर रखने के लिए मैंने परमात्मा के मंदिरों की स्थापना कर दी है। अब तुम सरस्वती मंदिरो की स्थापना अवश्य करना, जब तक ज्ञान का प्रचार न होगा, तब तक लोग धर्म को नहीं समझेंगे और ना ही समाज का उत्थान होगा। उन्होंने हाथ जोड़ कर सबकी ओर देखते हुए कहा-लो भाई! अब हम चलते हैं और सबको खमाते हंै।' इसके अतिरिक्त गुरु महाराज जी का जन्म स्थान जिला फिरोजपुर के लहरा नामक गांव में स्थित है, जहाँ पर श्री विजयानंद महाराज जी का भव्य मंदिर है। भारतवर्ष से सैकड़ों यात्री हर साल गुरुदेव जी के दर्शनों के लिए पधारते हैं। यहाँ पर ठहरने हेतु धर्मशाला एवं भोजनालय की भी उत्तम व्यवस्था है। जैन मंदिर तक पहुंचने का मार्ग अति सुगम है, हवाई मार्ग, रेलवे,बस तथा अन्य टैक्सी की भी सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहाँ से नजदीक का रेलवे स्टेशन लुधियाना,पट्टी और अमृतसर है एवं हवाई जहाज द्वारा अमृतसर तथा चंडीगढ़ से भी आ-जा सकते हैं।
श्री विजयानंद महाराज जी का गुरु समाधि मंदिर, जो कि गुजरांवाला (पाकिस्तान) में स्थित है। पाकिस्तान सरकार ने इसे ‘संरक्षित धरोहर' का दर्जा दिया है, इस पर दस्तावेज/वृत्तचित्र भी लिखा गया है। पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से भारतीय शिक्षित युवक अपनी संस्कृति तथा सभ्यता से विमुख हो रहे हैं, उन्हें कम से कम अपनी वस्तु का ज्ञान कराना आवश्यक है। भारत भर के सभी जैन गच्छ, संस्थाओं तथा बंधुओ से अनुरोध है कि हम सभी को मिलकर जीरा (लहरा गांव) पंजाब में एक विशाल सम्मलेन करना चाहिए, जिसमें गुरुदेव श्रीमद विजयानंद महाराज जी के नाम से अद्भुत एवं विशाल शिक्षण संस्थान, चिकित्सालय का निर्माण करवाए जाने का प्रस्ताव पारित हो तथा उसका मार्गदर्शन भी हो। हम सभी को मिलकर उनकी शिक्षा तथा बताए हुए मार्ग को गति देनी होगी एवं उनके आदर्शों तथा संदेशों का देश-विदेश में प्रचार कर एवं अपनाकर हम कुछ अंशों में उनके ऋण से मुक्त हो सके। उनकी जीवनी हमारे लिए सम्बल बने, पथ प्रदर्शक बने एवं उनकी जीवनी की ज्योति से हम गतिमान बने, उनके आदर्शों के पथ पर चल कर हम आलोक के प्रकाश को प्राप्त कर सकें और गुरुदेव की धरोहर, उनके ग्रन्थ, जीवनी पर अनुसंधान करके अपनी भावी पीढ़ियों के लिए संदेश और उनका उत्थान कर सकें।

– कोमल कुमार जैन 
चेयरमैन- ड्यूक फैशंस (इंडिया) लि. लुधियाना
एफ.सी.पी- जीतो

युग प्रवर्तक गुरु श्री विजयानंद महाराज जी १२५वें (१८९६-२०२१) स्वर्गारोहण वर्ष पर विशेष(Guru Shree Vijayanand Maharaj Ji 125th (1896-2021) )

You may also like...

?>