समीक्षा-अगस्त-२०१८

जय जिनेन्द्र ! जिनागम
अतुल जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
सहारनपुर (उ.प्र.) निवासी- दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८१००८४५८०

जैन समाज के लिए चातुर्मास किसी पर्व से कम नहीं है, इन चार माह में हमें नई-नई धर्म ज्ञान की बातें सिखने को मिलती हैं, साधु-संतों के आर्शीवचनों व सानिध्यता का सुअवसर प्राप्त होता है, जो हमारे सम्पूर्ण जीवन में शुभ प्रभाव पड़ता है। चातुर्मास में संयम व त्याग की भावना प्रबल होती है, धर्म की प्रभावना बढ़ती है। वर्तमान में दिल्ली स्थित रोहिणी में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के शिष्य श्री प्रणम्यसागर जी व चंद्रसागर जी का वर्षायोग चल रहा है। आचार्य श्री के यहां होने से हमें यह ज्ञात होता है कि ऋषिमुनियों के आहारचर्या कितनी कठिन होती है। आहारचर्या की जो वास्तविक प्रतिक्रिया होती है उसका हमें व बच्चों को सीखने को मिल रहा है, उनके दिन-रात के क्रियाकलापों से अहिंसा, धर्म व अन्य नियमों का किस तरह पालन होता है इसका ज्ञान प्राप्त होता है, शास्त्र अध्ययन, धर्म प्रभावना आचार्यश्री के प्रवचनों आदि का लाभ हमें प्राप्त हो रहा है।
‘जैन एकता’ का सबसे अच्छा उदाहरण इस समय रोहिणी में देखने को मिल रहा है, यहां आचार्य श्री के आर्शीवाद व प्रवचनों को सुनने व धर्म लाभ के लिए जैन समाज के सभी सम्प्रदायों के श्रावक-श्राविका उपस्थित हो रहे हैं।

 जैन समाज में ‘एकता’ लाने की आवश्यकता है क्योंकि अलगाववाद के कारण जैन धर्म का महत्व क्षीण हो रहा है इसे बनाए रखने के लिए जैन समाज के सभी पंथों में ‘एकता’ होनी ही चाहिए।
मेरा मूल निवास स्थान उत्तरप्रदेश के सहारनपुर स्थित सन्याल है। १९४८ से हमारा परिवार दिल्ली का प्रवासी है। मेरा जन्म १९५८ में व सम्पूर्ण शिक्षा दिल्ली में सम्पन्न हुई, यहां हमारा वस्तुओं की पैकिंग के निर्माण का कारोबार है। दिल्ली रोहिणी सेक्टर ८ स्थित दिगम्बर जैन सभा, शक्तिनगर स्थित जैन नवयुग संगठन के अलावा समाज की कई अन्य संस्थाओं से जुड़ा हूँ, श्री प्रणम्यसागर चंद्रसागर वर्षायोग २०१८ समिति दिल्ली में मंत्री पद पर सेवारत हूँ। व्यक्तिगत रूप से भी सामाजिक व धार्मिक सेवाओं में संलग्न रहता हूँ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी का यह नारा है ‘हिंदी लाओ- देश बचाओ’ जिसका मैं पूर्ण समर्थन करता हूँ। ‘हिंदी’ हमारी संस्कृति की पहचान है आज देश के कोने-कोने में ‘हिंदी’ बोली व समझी जाती है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए, इसके लिए सभी को अपने स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है।

चातुर्मास वह समय है जिसमें सम्पूर्ण जैन समाज में धर्म की प्रभावना होती है। श्रावक-श्राविका चातुर्मास के महिने में संयमित जीवन व कठोर नियम अपनाने का प्रयत्न व आहारचर्या को अपनाने का प्रयत्न करते हैं व साधु-संतों के सानिध्य में आकर उनके आर्शीवचन प्राप्त करते हैं, यह हमारा सौभाग्य है कि इस वर्ष आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के शिष्य प्रणम्यसागर जी का वर्षायोग हमारे यह-चल रहा है, जिनका सम्पूर्ण जीवन त्याग व प्रेरणा का अद्भुत उदाहरण हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है, इसके लिए एक समिति का गठन किया गया है जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म को पैâलाव व सम्पूर्ण व्यवस्था समिति के माध्यम से किया जाए। सामूहिक कार्य, लाडू महोत्सव व रक्षा बंधन पर्व के अवसर हाथ से बनी १००० राखीयों, जिस पर ‘इंडिया नहीं-भारत बोलें’ लिखा होगा, जिसका निशुल्क वितरण किया जाएगा, आदि ऐसे अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, इससे लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना का निर्माण होगा।

एन.सी. जैन

समाजसेवी
अजमेर निवासी-दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८१८११५५६६

राजस्थान का अजमेर जिला स्थित चापानेरी गांव मेरा मूल निवास स्थान है, मेरी शिक्षा जयपुर में सम्पन्न हुई है भारत सरकार की तरफ से केंब्रिज तथा कारडिफ (यू.को.) में विशेष ट्रेनिंग प्राप्त की, करिब ४० वर्ष पूर्व मेरा दिल्ली आना हुआ, २०१५ में भारत सरकार के जहाज रानी मंत्रालय में डायरेक्टर के पद पर सेवानिवृत्ति प्राप्त की। मेरे दो पुत्र अविनाश व अमित अपने कारोबार को संभाल रहे हैं। मॉडल टाऊन दिगम्बर जैन समाज में ८ वर्षों से अध्यक्ष पद पर कार्यरत हूँ। गुणायतन में उपाध्यक्ष, महावीर इंटरनेशनल में सदस्य के रूप में जुड़ा हूँ।
आचार्य प्रणम्यसागर जी ने १५ जुलाई को आव्हान दिया है ‘इंडिया गेट नहीं-भारत द्वार लिखवाओ’ इसका हम पूर्ण समर्थन करते हैं, इसे सफल बनाने का हर संभव प्रयास कीया जायेगा, ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए तभी सच्चे मायनों में ‘भारत’ का सम्मान होगा।

महेन्द्र जैन

व्यवसायी व समाजसेवी,
ब्याना- राजस्थान निवासीदिल्ली
प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९३१२२४०१८२

चातुर्मास के चार माह श्रावकगणों के लिए धर्म-आराधना-साधु-संतों का सानिध्य प्राप्त करने का उत्तम अवसर होता है, इस समय साधु-संत विहार नहीं करते, एक स्थान पर रहकर धर्म प्रभावना व तपस्या करते हैं, उनके प्रवचनों को सुन धर्म के प्रति समर्पित होने का उचित मार्ग प्राप्त होता है, उनके प्रवचनों के माध्यम से हमें जीवन जीने के सही मायनों का ज्ञान मिलता है कि हम अपने जीवन को किस दिशा में ले जा रहे हैं, अपनी दिनचर्या में उचित नियमों का पालन कब और कैसे करें, जिससे अपने जीवन को सार्थक कर सकें। चातुर्मास के ये चार माह वर्षा ऋतु के होते हैं, जीवों की उत्पत्ति आधिक प्रमाण में होती है, हमारी दैनिकचर्या में जीवों के प्रति हिंसा न हो इसका हमें ध्यान रखना होता है। चातुर्मास में हम धर्म के प्रति अग्रसर होते हैं, दिल्ली स्थित सूर्यनगर में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के अनुयायी श्री विशाल सागर जी महाराज, श्री वीर सागर जी महाराज व श्री धवल सागर जी महाराज जी का चातुर्मास चल रहा है, यह हमारा सौभाग्य है कि हमें तीन गुरू के प्रवचन व धर्म ज्ञान की प्राप्ति हो रही है।

आपका परिवार दिल्ली में लगभग ५२ वर्षों से प्रवासी है, मूलत: राजस्थान स्थित ब्याना के निवासी हैं, आपका जन्म व शिक्षा ब्याना में ही सम्पन्न हुई है। व्यवसाय के निमित्त दिल्ली आकर रहना हुआ, यहां आपका कपड़ों का कारोबार है, व्यवसाय के साथ-साथ धार्मिक कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभायी है। दिल्ली स्थित शांति मोहल्ला जैन समाज में संरक्षक, ऋषभ विहार जैन समाज से भी जुड़े हैं। नेमीसागर महाराज आपके ससुर हैं, आप कई धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं में भी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं।
‘जिनागम’ उत्तम पत्रिका है, पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ के लिए किया जा रहा प्रयास सराहनीय है, जो आज जैन समाज में अति
आवश्यक है, सभी जैन पंथ एक-साथ- एक-मंच पर उपस्थित हों, तभी सही अर्थों में ‘जैन एकता’ स्थापित होगी।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान तभी प्राप्त हो सकता है जब अधिक से अधिक इसका प्रचार-प्रसार किया जाए व सभी लोगों द्वारा इसे
अपनाया जाए।

राजस्थान के रेणवाल के पास देवली ग्राम आपका मूल निवास स्थान है। आपका जन्म देवली ग्राम में ही हुआ व सम्पूर्ण शिक्षा झारखण्ड के हजारीबाग में सम्पन्न हुई, आप पूर्व में व्यापारी के रूप में सक्रिय रहे पर अब पूर्ण रूप से धार्मिक व सामाजिक सेवाओं में सक्रिय रहते हैं। आपके तीन पुत्र हैं जो अपने-अपने व्यवसाय में सलग्न है। गत २० वर्ष से श्री दिगम्बर जैन शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखर ट्रस्ट में महामंत्री के रूप में सेवारत हैं। सम्मेद शिखर की लगभग सभी संस्थाओं से आप जुड़े हुए हैं। ‘सिद्धायतन’ में आप ट्रस्टी, ‘गुणायतन’ में संस्थापक ट्रस्टी, पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन हाईस्कूल में सचिव व ‘उदासीन आश्रम’ में आप ट्रस्टी के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

आपका मानना है कि चातुर्मास साधु-संतों के साथ-साथ श्रावक- श्राविकाओं के लिए भी विशेष महत्वपूर्ण होता है, इस चार माह में ईश्वर की आराधना करनी चाहिए, इस समय व्यापार भी शिथिल रहता है अतः धर्म आराधना का अधिक समय मिल पाता है।वर्षा ऋतु के इन चार माह में कीट-पतंगें व जीव-जंतुओं की अधिक वृद्धि होती है, अतः इस समय यायायात कम करने से जीव-जंतुओं की हानि नहीं होती व अहिंसा का प्रचार- प्रसार होता है।

छीतरमल जैन पाटनी

समाजसेवी
देवली कलां निवासीहजारीबाग
झारखण्ड प्रवासी
भ्रमणध्वनिः ६१६२७४१४८२

चातुर्मास हिंदू व मुस्लिमों में भी देखा जाता है जिनका अपना-अपना तरीका व महत्व है। चातुर्मास की महत्वता सम्पूर्ण वैदिक व भारतीय संस्कृति में दिखाई देती है, यह धर्म एवं ज्ञान प्राप्ति का उत्तम समय कहा जा सकता है, इसका अपना वैज्ञानिक व धार्मिक महत्व है। धर्मज्ञान प्राप्त करने के कई मार्ग हैं इसे अपनाने के भी अपने-अपने विधि-विधान हैं। हमारे साधु-संत, चाहे वे किसी भी पंथ व सम्प्रदाय के हों, सभी को एक मन से एकमंच पर उपस्थित होकर ‘जैन एकता’ का आह्वान करना चाहिए, हम सिर्फ ‘जैन’ कहलाएं यही हमारी मंशा होनी चाहिए, इसके लिए आप स्वयं लोगों से संपर्क कर कह रहे हैं कि जैन समाज के सभी सदस्यों के आधार कार्ड में परिवर्तन कर जाति के रूप में ‘जैन’ लिखा जाना चाहिए, इसका प्रचार-प्रसार भी किया जाना चाहिए, जिससे जैन समाज को सरकारी सुविधाएं जो प्राप्त हैं उसका लाभ मिल सके और मुख्यरूप से जैन समाज एकत्रित हो। ‘जिनागम’ बहुत ही उत्तम पत्रिका है, इसमें जो लेख, विभिन्न सम्प्रदायों से संबंधित जानकारी व ‘जैन एकता’ को लेकर सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा जो प्रयास किया जा रहा है वो उत्तम ही नहीं सराहनीय व स्तुत्य है।

आप ‘हिंदी’ के पक्षधर हैं व ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त हो, इसका पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं। आपका कहना है कि अब हम सिर्फ ‘हिंदी दिवस’ के दिन हिंदी का प्रचार-प्रसार करते हैं, ‘हिंदी’ के अच्छे जानकार विदेशी भाषा का उपयोग बड़ी शान से करते हैं, जो अनुचित है, ‘हिंदी’ का अधिक से अधिक प्रचार व प्रसार होना चाहिए, प्रत्येक राज्यों में ‘हिंदी’ अपनायी जानी चाहिए।

जयंतीलाल जैन

समाजसेवी
इंदौर निवासी
भ्रमणध्वनि: ९४०६८५३१३३

लगभग ४० वर्षों से मध्यप्रदेश के इंदौर का प्रवासी हूँ। मध्यप्रदेश के धार जिले स्थित बाग का निवासी हूँ मेरा जन्म व मेरी सम्पूर्ण शिक्षा धार में ही सम्पन्न हुई है। मेरे तीन पुत्र सभी अपने-अपने कारोबार से जुड़े है। मैंने कारोबार से सेवानिवृत्ति ले ली, अब सम्पूर्ण रूप से धर्म कार्यों में लगा रहता हूँ। श्री मंदिर स्वामी, नाकोडा मंदिर आदि धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ। श्वेताम्बर के तीन सूरी पंथ से जुड़ा हूँ हमारे आचार्य श्री जयंतसूरी म.सा. व राजेंद्र सूरी म.सा. पूजनीय हैं, इन्हीं की प्रेरणा से सामाजिक व धार्मिक कार्यों में सलग्न रहता हूँ। वर्तमान में हमारे यहां आचार्य श्री अमितसा सूरी म.सा.का चातुर्मास चल रहा है। चातुर्मास के चार माह में धर्म ज्ञान की आराधना होती है, साधू-संतों के सानिध्य का लाभ प्राप्त होता है। अहिंसा परमो धर्म: के नीति को अपनाते हुए जीवों की रक्षा की जाती है। साधुसंत एक ही स्थान पर रह कर धार्मिक तपस्या कर अपने आत्म के कल्याण का मार्ग प्रस्तुत करते हैं, हम श्रावक भी संयमित व त्याग पूर्ण जीवन अपनाते हैं, धर्म के प्रति अपने समर्पण भाव को व्यक्त करते हैं। जैन सिर्फ ‘जैन’ है, सम्पूर्ण जैन समाज संगठित होकर जैन धर्म को मजबूत करना चाहिए।

जैन समाज में एकता स्थापित होने से जैन धर्म के महत्व में वृद्धि होगी। ‘जिनागम’ एक उत्तम पत्रिका है। पत्रिका के माध्यम से विभिन्न जैन समाज की जानकारी मिलती है जो रोचक व ज्ञानवर्धक होती है, सम्पूर्ण जैन समाज में ‘एकता’ अवश्य स्थापित होनी चाहिए।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त होना ही चाहिए, सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा बनाने का जो प्रयास हो रहा है वह प्रशंसनीय ही नहीं अनुमोदनीय भी है, उन्हें इस कार्य में सफलता अवश्य प्राप्त होगी, क्योंकि यह देश हित के लिए किया जा रहा है।

शंकर जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
आमेट निवासी-मुंबई प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८६९५१६५७८

हम मूलत: राजस्थान के आमेट स्थित झोर के निवासी हैं, मेरा जन्म व सम्पूर्ण शिक्षा झोर में ही सम्पन्न हुई। शिक्षा सम्पन्न करने के पश्चात व्यवसाय के उद्देश्य से मुंबई आना हुआ, यहां हमारा आभूषणों का कारोबार है, यहां की सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हुआ हूँ। मुंबई के अंधेरी स्थित तेरापंथ युवक परिषद से सदस्य के रूप में जुड़ा हूँ व व्यक्तिगत रूप से भी सामाजिक व धार्मिक सेवाओं से जुड़ा रहता हूँ। चातुर्मास का जैन समाज में विशेष महत्व है। चातुर्मास के अवसर पर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, इस अवसर पर साधु-संतों व साध्वीयों के सानिध्य व आर्शीवचनों का लाभ प्राप्त होता है। चातुर्मास के चार माह त्याग व ईश्वर आराधना का
समय होता है, अपने धार्मिक कार्यों के माध्यम से मोक्ष मार्ग को सफल बनाना होता है।
‘जैन एकता’ जैन समाज में बहुत जरूरी है, जैन समाज में फैले पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जैन धर्म का महत्व खत्म होते जा रहा है। समाज के सभी पंथ एक साथ-एक ही समय पर संवत्सरी व महावीर जयंती मनाए, तभी ‘जैन एकता’ का प्रयास सफल हो सकता है, इसके लिए सभी साधु-संतों तथा श्रावकों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

‘हिंदी’ राष्ट्रभाषा बनें यह हम सभी चाहते है, हिंदी ही एकमात्र भाषा है जो भारत जैसे विभिन्न भाषा वाले लोगों को आपस में जोड़ती है, यह जन-जन की भाषा है, ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।

सन् १९९३ से दिल्ली का प्रवासी हूँ, यहां सिविल इंजिनियर के रूप में कार्यरत हूँ व स्वयं की कन्स्ट्रक्शन कंपनी है, मूल में हरियाणा के सोनीपत का निवासी हूँ, जन्म व शिक्षा सोनीपत में ही सम्पन्न हुई, जैन धर्म के श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा फाजिलपुर में प्रधान के रूप में सेवारत हूँ। उपाध्याय प्रवर रविंद्र मुनि जी के छोटे गुरू भाई पं. रतन उपेंद्र मुनि जी मोहम्दाबाद सोनीपत में सम्मेद शिखर की स्थापना कर रहे हैं इसमें कार्यकारिणी सदस्य के रूप में संलग्न हूँ।
चातुर्मास में साधु-संत एक स्थान पर रहकर धर्म तपस्या करते हैं, उनके आर्शीवचनों को प्राप्त कर धर्म के प्रति समर्पण की भावना तीव्र होती है। वर्ष के चार माह अपने दैनिक जीवन को संयम से व्यतित करें, इसकी प्रेरणा मिलती है, त्याग, तपस्या, सत्य कर्म के माध्यम से अपनी आत्मा को जागृत करने का सुअवसर है चातुर्मास, पर वर्तमान परिवेश में व्यवहारिक रूप में इन नियमों का पालन बहुत कम हो रहा है, यदि यह स्थिति इसी तरह बनी रही तो भविष्य में हमारी भावी पीढ़ि संयमी साधु संत जैसे नामों से अपरिचित हो जाएंगे।

नरेंद्र कुमार जैन

सिविल इंजिनियर व समाजसेवी
सोनीपत हरियाणा निवासी-दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८११४२१०९९

‘जैन एकता’ के संदर्भ में आपका कहना है कि अकबर के समय पूरे भारत वर्ष में लगभग २ करोड़ जैन थे, जो वर्तमान में ४० लाख मात्र रह गए हैं, इसका मुख्य कारण जैन धर्म में बढ़ रहा पंथ-वाद व सम्प्रदायवाद, यदि इसी तरह से चलता रहा तो एक दिन जैन धर्म लुप्त हो जाएगा, अत: इसे रोकने के लिए जैन धर्म में ‘एकता’ लाना अति आवश्यक है, जिसके लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, सभी सम्प्रदाय एक हो, सभी जैनी अपने नाम के आगे ‘जैन’ अवश्य लगाएं।
भारत वर्ष में विभिन्न भाषाओं के लोग निवास करते हैं, अपनी-अपनी भाषा को प्रधानता देना चाहते हैं, पर राष्ट्रभाषा कहलाने का अधिकार सिर्फ ‘हिंदी’ को ही प्राप्त है, हिंदी सभी भाषाओं को आपस में जोड़ती है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमारी केंद्र सरकार को ठोस व महत्वपूर्ण कदम उठाना होगा।

मनोज जैन

वरिष्ठ सहायक-एस.बी.आय.
अलवर, राजस्थान निवासी
भ्रमणध्वनि: ९४१४४२२२२१

मेरा मूल निवास स्थान अलवर, राजस्थान है, मेरा जन्म व मेरी शिक्षा अलवर में ही सम्पन्न हुई है। अलवर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में वरिष्ठ सहायक के रूप में कार्यरत हूँ, सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं के माध्यम से सामाजिक सेवाओं में सक्रिय रहने का प्रयास करता हूँ। पन्नीलाल जैन युवक मंडल में सदस्य के रुप में जुड़ा हूँ।
चातुर्मास के संबंध में मेरी धारणा है कि चातुर्मास के चार माह हम अपनी दिनचर्या में त्याग व धर्म कर्म को अधिक महत्व प्रदान करते हैं, इस समय अपने दैनिक जीवन को नियमों व अनुशासन में लाने का प्रयत्न करते हैं जो वर्ष भर हम नहीं कर पाते, इन चार माह में धर्म की प्रभावना अधिक रहती है, अपने क्षेत्र में चातुर्मास के लिए आए हुए साधु-संतों के प्रवचनों को सुनने व धर्म ज्ञान की बातों की जानकारी प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

‘जिनागम’ बहुत ही रोचक पत्रिका है, पत्रिका के माध्यम से जैन समाज के सभी पंथों व सम्प्रदायों की जानकारी प्राप्त होती है। ‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से जैन एकता के लिए किया जा रहा प्रयास सराहनीय है, जिसके लिए सम्पादक बिजय कुमार जैन जी प्रशंसा के पात्र हैं।

‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए, ‘हिंदी’ के माध्यम से ही राष्ट्र के विकास में तेजी आयेगी, क्योेंकि हिंदी देश के सभी वर्गों व समाज द्वारा बोली व समझी जाती है।
‘जैन एकता’ से ही संपूर्ण जैन समाज का सर्वांगीण विकास संभव है, अन्यथा जैन धर्म अपना महत्त्व खो देगा।

पिछले ५० वर्षों में दिल्ली में ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक साथ ५ मुनियों के चातुर्मास दिल्ली में हुए हों, मुनि १०८ श्री प्रणम्य सागर, मुनि श्री चन्द्रसागर जी, मुनि श्री वीर सागर जी, मुनि श्री धवल सागर जी व मुनि श्री विशाल सागर जी के चातुर्मास। हमें प्रणम्य सागर व चन्द्रसागर जी के आर्शीवचन व सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, प्रात: सात बजे से उनके प्रवचन प्रारंभ होते हैं, जिसे श्रावण मनन करने को अधिक से अधिक संख्या में श्रावक गण उपस्थित होते हैं, अखबार जगत के लोग भी बड़ी संख्या में बिना बुलाए उपस्थित होते हैं, गुरूदेव के सानिध्य का लाभ उठा रहे हैं, इस समय श्रावकों को भी धर्मलाभ व सतकर्म कर पुण्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
मेरा परिवार मूलत: उत्तर प्रदेश के आगरा का निवासी है, जहां से मेरे पिताजी व्यवसाय के उद्देश्य से कोलकाता के प्रवासी हुए, मेरा जन्म व प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में ही सम्पन्न हुई व १९७० से सहपरिवार दिल्ली का प्रवासी बना, मेरी उच्च शिक्षा यहीं सम्पन्न हुई, यहां हमारा वस्तुओं की पैकिंग बनाने का कारोबार है व हकी डोरी नामक प्रीप्राइमरी स्कूल का संचालन भी करता हूँ, इसके साथ-साथ सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से भी जुड़ा हूँ, मुनिश्री प्रणम्य सागर व चंद्रसागर जी के वर्षायोग समिती में महामंत्री पद पर सेवारत हूँ।

मुकेश जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
कलकत्ता निवासी-दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनी: ९८१००३१३१८

‘जैन एकता’ की बात करने से पहले हमें ‘जैन’ शब्द को अपने नाम के साथ जोड़ना चाहिए, मेरा यह कहना है। ४५ लाख नहीं ५ करोड़ जैन समाज की आबादी है, जो जैन अपने नाम के साथ ‘जैन’ शब्द नहीं जोड़ते, उन्हें अल्पसंख्यक की सुविधाएं नहीं दी जानी चाहिए, सर्वप्रथम सभी को अपने नाम के साथ ‘जैन’ शब्द जोड़ना चाहिए, श्रावकों के बीच कोई भेद नहीं नजर आता, पंथवाद के कारण जैन समाज बिखर रहा है, इसे रोकने की आवश्यकता है तभी जैन समाज में एकता संभव होगी, बड़ी संख्या में हमें इस ओर प्रयास करना चाहिए।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा बनाने का मुद्दा राजनीतिक विषय है, हमारी सरकार को इस पर कोई ठोस कदम उठाना चाहिए तभी ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त होगा।

जगदीश चंद्र जैन

व्यवसायी व समाजसेवी
हरियाणा निवासी
भ्रमणध्वनि: ९८९६२०००८१

हरियाणा का जोंधन खुर्द मेरा जन्म स्थान है, प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं से सम्पन्न की, जो पानीपत से १५ किमी पर स्थित है, उच्च शिक्षा पानीपत से प्राप्त की, १९६६ से पानीपत का प्रवासी हूँ, यहाँ हमारा पैट्रोलियम का कारोबार है व इंडियन ऑयल का वितरक हूँ, धर्म-कर्म में मेरी बड़ी आस्था है। ऑल इण्डिया जैन कॉफ्रेंस में उपाध्यक्ष, स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन सभा पानीपत में अध्यक्ष व महासाध्वी कला जैन हॉस्पीटल में अध्यक्ष के पद पर सेवारत हूँ, स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन महासभा हरियाणा में भी उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हूँ।
वर्तमान में हमारे यहां श्री सुदर्शन लाल मुनि जी महाराज के शिष्य आगम ज्ञाता श्री अरूणमुनि जी महाराज व कुसुम प्रभा जी का चातुर्मास चल रहा है, श्री प्रेममुनि म.सा. के शिष्य श्री रघुनाथ मुनिजी विराजमान है, कुल १९ ठानों के चातुर्मास यहां हो रहे हैं। चातुर्मास का समय ज्ञान, ध्यान, संयम व अनुशासन से जीवन जीने का समय है, अपने दिनचर्या में धर्म को अपनाने का समय है।

‘जैन एकता’ की बात हम करते हैं पर क्या ये संभव है, क्योंकि जहां एक गुरु के शिष्यों में एकता नहीं है, वहां हम सम्पूर्ण जैन समाज में एकता कैसे स्थापित कर सकते हैं, सर्वप्रथम आचार्यश्री, साधु-संतों में एकता स्थापित होनी चाहिए।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए, ‘हिंदी’ हम सभी को आपस में जोड़ती है, हमारे सम्पर्क का मुख्य माध्यम है ‘हिंदी’ अत: इसका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार हो, ताकि राष्ट्रभाषा का सम्मान प्राप्त हो सके।

चातुर्मास के चार माह संयम व त्याग के साथ जीवन व्यतित करने का समय है। साधु-संतों से धर्मज्ञान प्राप्त करने का समय मिलता है जिससे अपने जीवन को सत्य मार्ग व सत्य कर्म पर ले लाया जा सकता है। जीवन किस तरह बिताया जाए, नियम-अनुशासन व धर्म कार्यों को अपने दैनिक जीवन में स्थान मिले, यह सभी चातुर्मास में प्रारंभ किया जाता है बाकि के आठ माह हम अपने पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों में व्यस्त रहते हैं।
आज जैन समाज में ‘एकता’ स्थापित होना अति आवश्यक है। समाज में विघटन के कारण जैन धर्म की जो हानि हो रही है उसकी क्षतिपूर्ति करना संभव नहीं है, समाज के सभी पंथों व सम्प्रदायों में ‘एकता’ स्थापित होने से जैन धर्म का वास्तविक संरक्षण होगा, जैन धर्म का प्रचार-प्रसार होगा, अत: जैन धर्म में ‘एकता’ स्थापित करने के लिए
हम सभी को प्रयास करना होगा, एकता स्थापित होने से हमें सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाएं भी प्राप्त होंगी।

अनिल पापरीवाल

व्यवसायी व समाजसेवी
रतलाम निवासी
भ्रमणध्वनि: ९८२७२०९२९०

मेरा जन्म व शिक्षा रतलाम में सम्पन्न हुई, इन्वेस्टमेंट व एल.आय.सी. क्षेत्र में कार्यरत हूँ, व्यक्तिगत रूप कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं में सेवारत हूँ। दिगम्बर जैन मंदिर, तोपखाना में ट्रस्टी के रूप में जुड़ा हूँ, व्यक्तिगत रूप से भी सामाजिक संस्थाओं में सलग्न हूँ। ‘जिनागम’ पत्रिका में प्रकाशित लेखों से विभिन्न पंथों की जानकारी प्राप्त होती है, पत्रिका के माध्यम से ‘जैन एकता’ का प्रयास सराहनीय है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान मिले, इसके लिए सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा किया जा रहा प्रयास अनुमोदनीय है, हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।