सम्पादकीय
अप्रैल २०२३
वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
जैन समाज का सर्वाधिक पावन पर्व है
कहते हैं कि वर्ष में कुछ दिवस अति उत्तम होते हैं जिस दिवस पर कुछ भी शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इस दिन कार्यों की शुरुआत अति शुभ होता है, सफल होता है, यह दिवस है अक्षय तृतीया…
‘अक्षय तृतीया’ के दिन जैन धर्मावलंबी तो शुभ कार्य करते ही हैं, सनातन धर्मावलंबी भी पीछे नहीं रहते। हर भारतीय इस शुभ दिवस का इंतजार करता है, इस वर्ष यह शुभ दिवस अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार २२ अप्रैल को है। ‘अक्षय तृतीया’ को जैन धर्मावलंबी तप, त्याग, दान, धर्म आदि में लिप्त रहेंगे। सत्य, अहिंसा, किसी का दिल ना दुखाना, जिनालयों में गुरु-भगवंतों के सानिध्य में रहकर ईक्षु रस का दान भी करेंगे क्योंकि इसी पावन दिवस पर तीर्थंकर आदिनाथ को राजकुमार श्रेयांस ने ईक्षु रस से पारणा करवाया था और आदिनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाया था।
हम सभी जैन धर्मावलंबी भी अक्षय तृतीया के पावन दिवस पर एक प्रण करें कि इस दिन सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर पंथ के धर्मावलंबी मिलकर पारणा दिवस मनाएं। दिगम्बर, श्वेताम्बर
जिनालय में जाएं, श्वेताम्बर, दिगम्बर जिनालय में जाएं, एक दूसरे के आयामों का सम्मान करें, सीखें, समझें व दिल से अपनाएं।
विश्वास है कि तीर्थंकर आदिनाथ के साथ और भी २३ तीर्थंकर का हम सभी को आशीर्वाद मिलेगा, हम सभी का जीवन भी सफल हो जाएगा और हम सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर के साथ ‘जैन’ कहलाएंगे, क्योंकि हम सभी ‘जैन’ ही तो हैं। २४ तीर्थंकरों के ही तो अनुयाई हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि हम सबका ‘णमोकार’ मंत्र तो एक ही है।
विश्व में फैले २४ तीर्थंकर के अनुयायियों ने जो प्रण लिया है कि तीर्थंकर आदिनाथ के जेष्ठ पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा था, जो कि आज विश्व में इंडिया के नाम से जाना जाता है, उसे वापस ‘भारत’ बनाना है तो हमें भी ‘जैन’ बनना होगा, भले ही हम जनसंख्या में कम हैं, लेकिन हमारे पास २४ तीर्थंकर का दिया हुआ आशीर्वाद ‘अहिंसा’ है, हम सभी अहिंसा के पथ पर चलकर ‘भारत’ को केवल ‘भारत’ ही बनवा लेंगे, इंडिया को विलुप्त करवा देंगे, क्योंकि हम सभी ‘भारत माता की ही जय’ बोलते हैं।