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क्षमा वीरस्य भूषणम
क्षमा नयन का नीर है, हरे जो भव की पीर

घाव भरे कटुवाणी का. शीतल करे शरीर

पर्युषण का अर्थ है- परि-उपसर्ग, वसधातु और अन प्रत्यय, इन तीनों के संयोग से पर्युषण शब्द निष्पन्न हुआ है। परि-समन्तात् समग्रतया उषणं वसनं निवास करणं अर्थात् सम्पूर्ण रुप से निवास करना, विभाव से हटकर स्वभाव में रमण करना। शास्त्रों में पर्व एक ही दिन का स्वीकृत हुआ है, बाकी दिन तो पर्व की सम्यक आराधना की तैयारी के लिए पूर्वाचार्यों के द्वारा नियत किए गये हैं, अत: वे भी उपेक्षनीय नहीं है, जैसे बलवान पर धावा बोलने के लिए बल का संचय करना आवश्यक है उसी प्रकार रागादि शत्रुओं की घात के लिए सात दिन आध्यात्मिक बल संग्रह का समझना चाहिए, यह पर्व मात्र जैन सन्स्कृति का ही नहीं, मानव संस्कृति पर्व है।......