जय जिनेन्द्र ! जिनागम
कमल सेठिया
व्यवसायी व समाजसेवी
गंगाशहर निवासी-नई दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ८३७७००१४७३
लगभग ३० वर्षों से नई दिल्ली स्थित पश्चिम बिहार के प्रवासी कमल जी मूलत: राजस्थान के जिला बीकानेर स्थित गंगाशहर के निवासी हैं। आपका जन्म व शिक्षा गंगाशहर में ही सम्पन्न हुई है। नई दिल्ली में आपका केमिकल्स व मेडिकल के आयात का कारोबार है। सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं, कई संस्थाओं में आप विशिष्ट पदों पर कार्यरत रहे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा पश्चिम बिहार में अध्यक्ष पद पर भी आप कार्यरत रहे हैं, इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से भी आप सामाजिक सेवाओं से जुड़े हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ जी जैन समाज के एक महान संत के रूप विश्वविख्यात हुए, उन्होंने अपना पूरा जीवन ध्यान तप व लोकसेवा में ही व्यतीत किया, आपका सम्पूर्ण जीवन पूरे जैन समाज के लिए प्रेरणा स्वरूप बना, आपके अहिंसा संबंधी विचारों ने ‘जैनो’ में ही नहीं सम्पूर्ण समाज में जागृति लायी है, आज पूरी दूनिया में युद्ध जैसे माहौल का निर्माण हो चुका है यदि उनके सिद्धांतों ‘जीओ और जीने दो’ को मानें तो सम्पूर्ण जग में अमन व शांति का निर्माण होगा।
आज सम्पूर्ण विश्व में जैन समाज की आबादी करीब ४५ लाख है, कभी यह आबादी ४ करोड़ थी, इस गिरावट का मुख्य कारण जैन समाज का पंथवाद व सम्प्रदायवाद में विभाजन, जो अत्यंत दुख का विषय है, इस विभाजन के कारण जैन धर्म अपनी मूलभूत सिद्धांतों को खो रहे हैं, इसे रोकने के सभी सम्प्रदाय व पंथों को एक साथ आना होगा, हमारे सभी त्यौहार, संवत्सरि सभी एक साथ-एक ही दिन मनाने होंगे, इसके लिए हमारे गुरूओं को पहल करनी चाहिए अगर गुरू पहल करेंगे तो श्रावक उन्हीं का अनुसरण करेंगे।
‘जिनागम’ पत्रिका द्वारा जैन एकता के संदर्भ किया जा रहा प्रयास सराहनीय है, यह एक बहुत अच्छी पत्रिका है जिसमें समस्त जैन समाज की जानकारी उपलब्ध होती है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलना ही चाहिए, पर वर्तमान में हर क्षेत्र में अंग्रेजी का महत्व बढ़ता जा रहा है, अंग्रेजी बोलने वालों को प्राथमिकता दी जाती है, जो सही नहीं है, विश्व में ऐसे कई विकासशील देश है जो अपनी मातृभाषा को ही वरियत प्रदान करते हैं, उनके कार्यालयों में उन्हीं की भाषा का उपयोग किया जाता है, भारत देश का सम्पूर्ण विकास ‘हिंदी’ के कारण ही सम्भव है, हमें अपनी भाषा को प्राथमिकता देनी ही चाहिए।
आचार्य महाप्रज्ञ जी एक आध्यात्मिक वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अध्यात्म व विज्ञान का बहुत अच्छा विश्लेषण किया और कहा कि बिना अध्यात्म के विज्ञान व विज्ञान के बिना आध्यात्म अर्थहीन है। व्यक्ति में आध्यात्मिक व वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण होना चाहिए, तभी व्यक्ति व्यापक व सम्यक दृष्टि रख सकता है। शोध, आत्म चिंतन, दिशा ज्ञान के प्रति समर्पित रहने वाले आचार्य श्री जनसंपर्क से दूर ही रहते थे, जब लोगों की इनमें रूचि बढ़ने लगी तो वे जनसंपर्क में आए, उनके व्यक्तित्व के साथ न सिर्फ भारतवासी बल्कि विदेशी लोग भी होते थे, अपनी जिज्ञासा का समाधान करने आचार्य श्री के सानिध्य में आते थे, इसलिए आज विदेशों में भी अध्यात्म की प्रभावना बढ़ी है। मुंबई में इस वर्ष कई गुरू भगवंतों का चातुर्मास हो रहा है, अत: उन्हीं के सानिध्य में आचार्य श्री का जन्म पर्व मनाने का प्रयास रहेगा, हम संकल्प करेंगे कि आचार्य श्री द्वारा प्रतिपादित प्रेक्षा ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया जाये। ‘जैन एकता’ के लिए समस्त जैन समाज को एकत्रित होना होगा, हमारा समाज एक परिवार के रूप में हैं जिसे एकत्रित होने से मजबूती मिलेगी व अहिंसक समाज की प्रगति होगी।
सुश्री जयश्री बडाला
अध्यक्ष, तेरापंथ महिला मंडल,
मुंबई
भ्रमणध्वनि: ९८६७४८६८४८
समस्त जैन समाज को एक साथ-एक मंच पर स्थापित होना चाहिए, अगर हम मिलजुल कर रहेंगे तो सुनहरा हमारा कल होगा, सिर्पâ एक पताका हमारे जैन धर्म की, महावीर की हर बात पर अमल होगा, तब स्वर्ग धरा पर उतरेगा और यह धरा स्वर्गमय हो जाएगी। लगभग २१-२२ वर्षों से तेरापंथ महिला मंडल से जुड़ी हूँ, वर्तमान में अध्यक्ष पद पर कार्यरत हूँ, इसके पूर्व मंडल में कई विशिष्ट पदों पर सेवारत रही हूँ। गत २१ वर्षों से मुंबई तेरापंथ कार्यकारिणी में सम्मिलित हूँ, भारत जैन महामंडल से भी जुड़ी हूँ, एक शिक्षिका व मोटिवेटर के रूप में कार्यरत हूँ, हमारा मूल निवास स्थान राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित पडासली, मेरा पीहर आमेट स्थित है। मेरा जन्म व शिक्षा मुंबई में सम्पन्न हुयी, बी.कॉम. मुंबई से, एम.ए. जैन विश्व भारती से जैन धर्म की शिक्षा के साथ ग्रहण की, जैन संस्थाओं के अलावा अन्य कई संस्थाओं से भी सलग्न हूँ।
‘हिंदी’ को अवश्य ही राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलना चाहिए, सम्पूर्ण जैन समाज ‘हिंदी’ का पूर्ण रूप से समर्थन करता है। ‘हिंदी’ एक सरल व आसानी से ग्राहय होने वाली भाषा है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक अधिकार अवश्य प्राप्त होना ही चाहिए।
राकेश कुमार कुंडलिया जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
राजलदेसर (चुरू) निवासी-गुवाहाटी प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८६४०३४१६१
राजस्थान का चुरू जिला हमारा मूल निवास स्थान है जहां से हमारा परिवार करीब ७० वर्ष पूर्व व्यवसाय के निमित्त असम के गुवाहाटी में आकर बस गया, मेरा जन्म भी यहीं हुआ व बी.कॉम, एल.एल.बी. (पार्ट १) की शिक्षा भी मैंने यहीं से ग्रहण की। वर्तमान ट्रेडिंग के कारोबार से जुड़ा हूँ। सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय भागीदारी के लिए हमेशा तत्पर रहता हूँ। तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ जैन संघ, मारवाड़ी युवा मंच आदि संस्थाओं से जुड़ा हूँ। यहां बाजार के नीलांचल सेवा समिति द्वारा माँ कामख्या के मेले में पांच दिनों के भंडारे का आयोजन करवाया जाता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण दर्शन के लिए आते हैं, इस संस्था में मैं व मेरे पिता रतनलाल जी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं,जगन्नाथ पूरी यात्रा में लगने वाले मेले में भी इस संस्था द्वारा भंडारे का आयोजन किया जाता है।
आचार्य महाप्रज्ञ जी हमारे गुरू भगवंत हैं, उनके दर्शन का सौभाग्य मुझे कई बार प्राप्त हुआ, उनके दर्शन व प्रवचन से जीवन में नए उत्साह का संचार सा होता रहा, उनके प्रवचन में उन्होंने जीवन के सही मूल्यों व जीवन को जीने का सही मार्ग प्रशस्त किया, उनके विचार ‘जीओ और जीने दो’ ने न सिर्फ जैनों को, बल्कि सम्पूर्ण देश में यह संदेश फैलाया।
‘जैन एकता’ अवश्य स्थापित होनी चाहिए क्योंकि हमारे तीर्थंकर, हमारा णमोकार मंत्र सभी एक है फिर यह पंथवाद व सम्प्रदायवाद क्यों? सभी आराधक महावीर जी के हैं, सभी के मूल में भगवान महावीर के संदेश हैं, उन्हीं के बताए मार्गों का अनुसरण सम्पूर्ण जैन समाज करता है। सम्पूर्ण सम्प्रदाय सिर्फ ‘जैन’ कहलाए यह अत्यंत आवश्यक है, इसी से सम्पूर्ण समाज का हित है।
भारत के सभी लोग ‘हिंदी’ भाषा को जानते व समझते हैं। हिंदी सभी के सम्पर्क का प्रमुख साधन है, अपने भावों को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है ‘हिंदी’, हिंदी को संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलना ही चाहिए।
हमारा परिवार मूलत: राजस्थान के मेवाड़ का निवासी है लगभग तीन पिढ़ीयों से बिहार के मधुबनी का निवासी हूँ। मेरा जन्म व शिक्षा यहीं सम्पन्न हुई। यहां हमारा खाद्यान का कारोबार है। यहां स्थित तेरापंथ सभा से जुड़ा हुआ हूँ व अन्य सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से सामाजिक सेवाओं में सक्रिय रूप से कार्यरत रहता हॅू।
आचार्य महाप्रज्ञ जी तेरापंथ जैन समाज के आदर्श गुरू के रूप में जाने जाते हैं, उनके दर्शन का लाभ कई बार प्राप्त हुआ, हर बार उनके विचारों व प्रवचनों ने हमेशा हमें प्रेरित किया, उनके बताए गए मार्गों का अनुसरण सम्पूर्ण समाज करता है।
आज जैन समाज में ‘एकता’ की भावना पनप रही है, सम्पूर्ण जैन समाज ‘एक’ होना चाहता है, समाज व समाज की विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रयास भी चल रहे हैं। ‘एकता’ जैन समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। पंथवाद व सम्प्रदायवाद के कारण जैन धर्म का मूल खोते जा रहा है इसके रोकने के लिए ‘एकता’ लाना आवश्यक है। ‘जिनागम’ पत्रिका के माध्यम से जैन एकता का प्रयास सराहनीय है। इसमें प्रकाशित लेख व संकल्प ‘जैन एकता’ से जुड़े होते हैं, अत: ‘जिनागम’ परिवार के इस प्रयास की मैं प्रशंसा करता हूँ।
सोहनलाल चोपड़ा जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
मेवाड़ निवासी-मधुबनी प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९६३१७४०५८९
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने के लिए सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा किए जा रहे प्रयास का मैं पूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ। ‘हिंदी’ ही एक मात्र राष्ट्रभाषा बनने योग्य है, हिंदी को देश के अधिकतर लोगों द्वारा बोली व समझी जाती है, यह सम्पर्क का सशक्त माध्यम है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।
प्रवीण बिरावत जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
रणकपुर (सादड़ी) निवासी-मुंबई प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९९२०५८१२१२
हमारा परिवार लगभग ७० वर्षों से मुंबई का प्रवासी है। सर्वप्रथम मेरे पिताजी व्यवसाय के उद्देश्य से मुंबई आए और यहीं के निवासी बन गए। मेरा जन्म व सम्पूर्ण शिक्षा मुंबई में हुई है। मुंबई स्थित कई संस्थाओं से जुड़ा हूँ। जैन समाज की विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से सामाजिक सेवाओं में संलग्न रहता हूँ। बोरीवली ज्वेलर्स असोसियेशन में सचिव के पद पर सेवारत हूँ, व्यक्तिगत रूप से भी सामाजिक सेवाओं में सक्रिय रहता हूँ। मेरी छोटी बहन ने कई वर्ष पूर्व दिक्षा प्राप्त कर अब वे साध्वी श्री अपूर्वकला श्री हैं, इनका मुंबई में कई बार चातुर्मास हुआ है। मैं श्वेताम्बर डेरावासी हूँ व हमारे आचार्य युग दिवाकर धर्मसूरिजी म.सा. है, पर मैं ‘जैन एकता’ का प्रबल पक्षधर हूँ, जैन समाज के लिए यह आवश्यक भी है कि सम्पूर्ण जैन समाज एक साथ-एक मंच पर उपस्थित हो, क्योंकि पंथवाद के कारण जैन धर्म का मूल तत्व खोता जा रहा है। जैन धर्म के सिद्धांतों व महत्व को बनाए रखने के लिए सम्पूर्ण जैन समाज को ‘एक’ होना जरूरी है।
भारत की भाषा ‘हिंदी’ है। ‘हिंदी’ के माध्यम से ही देश का सम्पूर्ण विकास संभव है। ‘हिंदी’ ही भारत देश की पहचान है, अत: हिंदी को प्रावधान मिलना ही चाहिए, इसे राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा अवश्य मिलना चाहिए, इस प्रयास के लिए सम्पादक बिजय कुमार जैन द्वारा किया जाने वाला प्रयास सराहनीय है, मैं उनके इस कार्य का पूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ।
भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. लालकृष्ण आडवाणी जी ने ८०० पृष्ठों की अपनी जीवनी ‘मेरा जीवन मेरा देश’ में लिखा है कि मैं दुनिया के कई संतों व विद्वानों से मिला उनमें श्रेष्ठ व सच्चे संत आचार्य महाप्रज्ञ जी लगे। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने ३०० से अधिक पुस्तकें लिखी, जो विभिन्न विषयों पर व दार्शनिक पुस्तकें है। आचार्य महाप्रज्ञ को सिर्फ तेरापंथ धर्म संघ ही नहीं अन्य धर्मसंघ के लोगों के बीच भी प्रिय रहे, उनकी लेखनी व विद्ववता का लोहा दूसरे धर्मसंघ विद्वान, आचार्य व संत भी मानते हैं, उन्होंने ध्यान की पद्धति जो लुप्तप्राय: हो चुकी थी उसका पुर्नोत्थान किया व उसका प्रचार-प्रसार किया, जिसके लिए विदेशी लोग भी आकर्षित होते रहे। जैन विश्व भारती, लाडनूं व आध्यात्मिक साधना केन्द्र मेहरोली में भी ध्यान-साधना पर विशेष कार्य किए जा रहे हैं, जहां लोग ध्यान करते व सीखते भी हैं। दिल्ली सरकार के साथ मिलकर आचार्य महाप्रज्ञ जी की जन्म शताब्दी पर्व का भव्य आयोजन किया जा रहा है, इस कार्यक्रम के माध्यम से आचार्य महाप्रज्ञ जी के जीवन की विशेषताओं को दर्शाते हुए उनके बताए गए जीवन मूल्यों के महत्व को प्रदर्शित किया जाएगा।
विजयराज सुराणा
समाजसेवी
चुरू निवासी-दिल्ली प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८६८८०७६८३
वर्तमान में मैं दिल्ली का प्रवासी हूँ व मूलत: राजस्थान के चुरू जिले के पड़िहारा ग्राम का निवासी हूँ, जहां मेरी शिक्षा सम्पन्न हुई, दिल्ली में मेरा वायर उत्पादन का कार्य है जिसे अब मेरा पुत्र संभालता है, मैं पूरी तरह से समाजसेवा में संलग्न रहता हूँ। मुझे लेखन का हमेशा से शौक रहा है। मेरी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं में मेरे लेख प्रकाशित होते रहते हैं। दिल्ली स्थित ओसवाल समाज की स्थापना मेरे द्वारा हुई है। अणुव्रत में ४ बार महामंत्री रहा हूँ व उनके कार्यों में मेरी विशेष रूचि है। राजनीतिक कारणों के चलते अभी तक ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं मिल पाया है, जबकि भारत में अधिक लोग हिंदी बोलते व जानते हैं, वर्तमान में दुनिया के कई देशों में ‘हिंदी’ ने अपनी पहचान बनायी है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य ही मिलना चाहिए।
प्रकाशचंद कोठारी
व्यवसायी व समाजसेवी
लाडनूँ निवासी-कोलकाता प्रवासी
भ्रमणध्वनि: ९८३१८५१४४२
आचार्य महाप्रज्ञ जी तेरापंथ धर्म संघ के ही नहीं अन्य जैन संघों में भी प्रिय रहे हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी एक दार्शनिक विचार धारा वाले महापुरूष थे, उन्होंने जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, उसकी गहराई तक परख की तथा उस तत्व का प्रतिपादन भी किया, उनके दर्शन का लाभ मुझे कई बार प्राप्त हुआ, उनके प्रवचनों ने हमारे जीवन पर गहरे प्रभाव डाले हैं, उनकी बताए मार्गों पर चल, श्रावकगण अपना जीवन सार्थक कर जीवन की कठिनाइयों से सफलता पूर्वक निपट सकते हैं, उनकी जन्म जयंति पर्व पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
लाडनूँ का हमारा कोठारी परिवार आचार्य श्री तुलसी जी का ननिहाल भी है। जहां मेरा जन्म व मेरी शिक्षा सम्पन्न हुयी, लगभग १९७१ से मैं कोलकाता का निवासी हूँ, हमसे पूर्व हमारे पिताजी कोलकाता आए, हमारा पांच भाईयों का संयुक्त परिवार है, सभी का अपना-अपना कारोबार है। हमारा यहां इलेक्ट्रीक का व्यवसाय है। लायन्स क्लब, इलेक्ट्रीक ट्रेडर्स असोसियेशन तेरापंथ उत्तर हावड़ा सभा आदि कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ।
जैन समाज में ‘एकता’ बहुत ही जरूरी है, जिससे जैन धर्म के मूल सिद्धांतों का संरक्षण हो सके, पंथ व सम्प्रदायों के बीच समझौता करना पड़ेगा तभी ‘जैन एकता’ सम्भव होगी, यदि सभी आचार्य व गुरू भगवंत एक-साथ एकमंच पर आ जाएं, जैन समाज में एकता शीघ्र संभव होगी। ‘जिनागम’ उत्तम कोटि की प्रत्रिका है, इसमें सभी पंथों की जानकारी उपलब्घ रहती है। पत्रिका के माध्यम से जैन समाज की एकता के लिए किया जाने वाला प्रयास सराहनीय ही नहीं उच्च कोटि का भी है।
‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए, ‘हिंदी’ हम सब की भाषा है, जिसके माध्यम से आसानी से सम्पर्क स्थापित कर सकते है। ‘हिंदी’ भारत के अधिकतर लोग बोलते व समझते हैं, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।
आचार्य महाप्रज्ञ ‘तेरापंथ’ समाज के एक प्रमुख संत थे, उनका महासंतों में उल्लेखनीय स्थान रहा, उन्होंने पंथवाद को नहीं धर्मवाद को महत्व दिया, धर्म की विशाल महिमा देश-दुनिया में फैलाने के लिए विशिष्ट पुस्तकें लिखीं, जो जैन समाज सहित जनजीवन के उत्थान हेतु काफी उपयोगी है, उनके जन्म महापर्व पर हमारी ओर से आत्मिक भाव पुष्प समर्पित है। हम उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के निवासी हैं। मेरी शिक्षा व मेरा जन्म स्थान दोनों यही है। यहां हमारा डिस्ट्रीब्युशन का कारोबार है। यहां स्थित सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ, भारतीय जैन मिलन से १९९१ से आजीवन सदस्य हूँ। श्रुति सेवा निधी व न्यास में कोषाध्यक्ष व भारत विकास परिषद, फिरोजाबाद में संरक्षक के रूप में कार्यरत हूँ व व्यक्तिगत रूप से भी सामाजिक सेवाओं में संलग्न रहता हूँ। जैन समाज में ‘एकता’ आवश्यक है इसके लिए सर्वप्रथम हमें अपने गुरूओं की बताई बातों और उनके उपदेशों पर चलना होगा, इसके अलावा जैन धर्म के सभी गुरू, साधु, मुनियों को ‘एक’ होना होगा, क्योंकि नैतिकता, सत्य, त्याग जैन समाज की विशेषता है इसके संरक्षण की अत्यंत आवश्यक है।
प्रमोद कुमार जैन
व्यवसायी व समाजसेवी
फिरोजाबाद निवासी
भ्रमणध्वनि: ९८३७४१८७१७
समाज में एकता के लिए ‘जिनागम’ पत्रिका एवं सम्पादक बिजय कुमार जैन बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, जिसका प्रभाव एक न एक दिन अवश्य दिखायी देगा।
अंग्रेजी की शिक्षा वर्तमान युग की परम आवश्यकता है पर इसके साथ हमें अपनी संस्कृति व सभ्यता के संरक्षण की भी आवश्यकता है। भाषा हमारी संस्कृति की पहचान है। ‘हिंदी’ भारत देश की राष्ट्रभाषा के रूप में जानी जाती है, हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।
सुश्री शशीकला जैन
अध्यक्ष अ.भा.तेरापंथ महिला मंडल
अबरामा-गुजरात
भ्रमणध्वनि: ९६६४९०८५८६
आचार्य महाप्रज्ञ जी एक सिद्ध व दार्शनिक संत थे, जिन्होंने अपने प्रेक्षा ज्ञान योग से न सिर्फ तेरापंथ समाज को लाभान्वित किया, बल्कि जैन धर्म के सभी समाज को इससे अनुग्रहित करवाया, उन्हें एक श्रेष्ठ संत के रूप में माना जाता था, वे सदैव सौम्य व मृदुभाषी रहे, उनके प्रवचनों से हम सदैव लाभान्वित होते रहे, उन्होंने सदैव अहिंसा का प्रबल समर्थन किया, उनके जन्म पर्व के अवसर पर समाज द्वारा जाप व भजन के साथ सामाजिक कार्यों का आयोजन भी किया जाता है, इस अवसर पर तेरापंथ समाज द्वारा प्रितिभोज का आयोजन भी किया जाता है।
अ.भा.ते.म. मंडल से हमेशा से जुड़ी हूँ, पूर्व में मंडल में मंत्री पद पर सेवारत थी, वर्तमान में अध्यक्ष पद पर कार्यरत हूँ। ४ वर्ष पूर्व ही इस मंडल का गठन किया गया है, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा कई धार्मिक व सामाजिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। विशेषकर साध्वियों जी के विचरणों की व्यवस्था की जाती है, स्वच्छता अभियान के तहत भी कई कार्यक्रम किये जाते हैं।
मेरा जन्म बीकानेर स्थित ‘नाल’ है व सम्पूर्ण शिक्षा कोलकाता में सम्पन्न हुई। १० वर्ष पूर्व विवाह पश्चात गुजरात के अबरामा की निवासी बनीं। जैन समाज में एकता स्थापित होने से सम्पूर्ण समाज एक परिवार की तरह स्थापित हो सकेगा। जैन समाज के सभी त्यौहार एक- साथ, एक-ही दिन मनाया जाना चाहिए।
‘हिंदी’ का पूर्ण रूप से समर्थन करती हूँ, ‘हिंदी’ ही हमारी पहचान है, ‘हिंदी’ के कारण हम सभी बहुभाषीय लोग आपस में एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं, ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक सम्मान अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
आचार्य महाप्रज्ञ जी बहुत सौम्य स्वभाव वाले गुरू भंगवत थे, हमारा सौभाग्य रहा कि हमें ऐसे महान गुरू के सानिध्य व आशीर्वाद का अवसर प्राप्त हुआ। आचार्य श्री किसी तथ्य की गहराई तक अध्ययन करने के पश्चात ही निष्कर्ष तक पहुंचकर उसे साध्य करते थे, वे एक दार्शनिक प्रवृत्ति वाले संत थे, उन्होंने प्रेक्षा ज्ञान के महत्व को प्रतिपादित किया, उन्हें सिर्फ तेरापंथ धर्म संघ वाले ही नहीं, अन्य समाज के धर्म संघ के बीच भी लोकप्रिय गुरू रहे, उनके विचारों ने हम श्रावकों हमेशा प्रभावित किया है, जिसे अपनाकर हम अपने जीवन को उत्तम बना सकते हैं, उनके जन्म पर्व पर समाज द्वारा विशेष सामाजिक व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
समस्त जैन समाज में ‘एकता’ स्थापित हो तो इससे अच्छा जैन समाज के लिए और कुछ हो ही नहीं सकता, समाज में फैले पंथवाद, अलगाव के कारण जैन समाज का सैद्धांतिक महत्व व अस्तित्व खोता जा रहा है। समस्त समाज क्षीर्ण हो चुका है, अगर हम ‘एक’ हो जाएं तो हमारी शक्ति बढ़ेगी व विश्वपटल पर भी जैन धर्म पहचाना जाएगा। हम सिर्फ जैन ‘जैन’ रहें न श्वेताम्बर ना ही दिगम्बर, एकता में बड़ी शक्ति है, समस्त जैन समाज एकत्रित होने से हमारा महत्व और अधिक बढ़ जाएगा।
मीनाबाई बरड़िया जैन
अध्यक्ष तेरापंथ महिला मंडल
आरकोनम, तमिलनाडु, भारत
भ्रमणध्वनिः ९९४०३४७१९४
पिछले कई वर्षों से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल आरकोनम, तमिलनाडु में अध्यक्ष पद पर सेवारत हूँ, इस मंडल से लगभग ३०-३५ वर्षों से जुड़ी हूँ, मूलत: हम राजस्थान के पाली जिले में स्थित केलवाज के निवासी हैं, हमारा परिवार करीब ४५-५० वर्षों से तमिलनाडु के आरकोनम के प्रवासी हैं।
अपनी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा का संरक्षण हम पर ही निर्भर है, यदि हम अपने परिवार व बच्चों से अपनी भाषा में बात नहीं करेंगे तो वे अपनी भाषा कहां से सीखेंगे, सर्वप्रथम हमें अपनी ओर से इसे बढ़ावा देना होगा, तभी ‘हिंदी’ को भी राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने में हम सफल होंगे।