उत्तम क्षमा ही है महापर्व

जैन धर्म में दशलक्षण पर्व मनाया जाता है, यदि इन दसलक्षणों को जीवन में अपना लिया जाए तो मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है, इसमें पहला है- ‘उत्तम क्षमा’!
मुनि महाराज ने जीवन भर इन गुणों को अपनाया है, कई अपशब्द सुनने के बाद भी मुनि महाराज प्रतिक्रिया नहीं देते, सामने वाले को क्षमा कर देते हैं। करीब सौ साल से भी अधिक समय की बात है, सन्‌ा १९०० में भारत में ब्रिटिश सरकार का शासन था, उस समय जीवन अभी की तरह आसान नहीं हुआ करता था। उस समय आचार्यश्री शान्ति सागर जी महाराज महान संत के रूप में जाने जाते थे, उसी कालावधि में शान्ति सागर जी विहार करते हुए धौलपुर के राजखेड़ा शहर पहुंचे, वहां पर उन्होंने तीन दिन तक प्रवचन दिया। बहुत से लोग उनका प्रवचन सुनने आते थे। चौथे दिन उन्हें विहार करने का विचार आया, तो वहां के श्रावकों ने उन्हें वहीं रुकने की प्रार्थना की, तब महाराज श्री ने श्रोताओं का निवेदन स्वीकार कर लिया। पांचवें दिन आचार्य श्री आहार करने के लिए जल्दी निकल गए, आहार करने के बाद वे सामायिक करने का विचार कर रहे थे, तभी उन्हें आकाश में काले बादल दिखाई दिए, उन्हें यह संकेत सही नहीं लगे, उन्होंने अंदर कक्ष में बैठकर सामायिक की।
महाराज श्री ने ध्यान मग्न होकर सभी जीवों के प्रति समता का भाव रखने की प्रार्थना की, उसी समय अचानक ५०० से ज्यादा लोग वहां हथियार के साथ पहुंचे। श्रावकों के साथ मारपीट करने लगे। कुछ बदमाश आचार्य श्री के ध्यान कक्ष तक जाने वाले थे, तभी कुछ श्रावकों ने रोकने का प्रयास किया, तो उन्हें हाथ-पैरों में चोटें पहुंचाई गई, फिर वहां पुलिस पहुंची, जो लोग आचार्यश्री को नुकसान पहुंचाने आए थे, उनके मुखिया को पकड़ लिया गया, उस समय आचार्यश्री ध्यान में तल्लीन थे। पुलिस अधिकारी आचार्यश्री के दर्शन की इच्छा के साथ जब उनके कमरे में गए, तो पुलिस अधिकारियों ने तय किया इतने शांत मन वाले मुनि पर आक्रमण करने वालों को कड़ी सजा देनी चाहिए। आचार्यश्री को जब पता चला कि पुलिस ने बदमाशों को कड़ी सजा देने का निर्णय लिया है, तो आचार्यश्री ने प्रतिज्ञा ले ली, जब तक उन बदमाशों को छोड़ा नहीं जाता, तब तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।
पुलिस अधिकारियों ने कहा- इन बदमाशों के प्रति दया भाव रखना उचित नहीं हैं। आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? तब आचार्यश्री ने जवाब दिया, मेरे मन में इन लोगों के प्रति बिलकुल भी नफरत का भाव नहीं है, हमारी वजह से आप इन लोगों को सजा दे रहे हैं, यह देखकर आहार करना हमारे लिए संभव नहीं है।
ऐसा सुनकर पुलिस वाले आश्चर्यचकित रह गए कि कोई इतना उदार हृदय वाला और दयावान कैसे हो सकता है, इस बात पर पुलिस ने सभी को बिना सजा दिए ही छोड़ दिया, जो लोग हमला करने आए थे, उन्हें भी बेहद पछतावा हुआ।
अगर हम अपने आसपास देखें, तो कई लोग छोटी-बड़ी गलतियों के लिए माफ कर देते है, हमें भी अपने जीवन में ‘क्षमा’ का भाव अपनाना चाहिए, अपने शत्रु के प्रति भी मन में नफरत के भाव नहीं लाने चाहिए।

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