श्री उवसग्गहंर पार्श्व तीर्थ नगपुरा ( Shree Uwassaggaharam Parshwa Tirth – Nagpura ) : छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिला में जैन धर्मावलम्बियों का विश्व प्रसिद्ध श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ असंख्य श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है, यहाँ मूलनायक तीर्थपति २३ वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ प्रभु प्रतिष्ठित हैं। भूगर्भ से प्राप्त करीब २७५० वर्ष प्राचीन श्री उवसग्गहरं पार्श्व प्रभु की प्रतिमा अत्यंत ही मनोहारी है, एक सौ आठ पार्श्वनाथ यात्रा क्रम में यह तीर्थ पूज्यनीय एवं वंदनीय है।
लगभग ४०-४५ वर्ष पूर्व दुर्ग के वरिष्ठ पत्रकार श्री रावलमल जैन ‘मीण’ के संयोजन में इस तीर्थ की संरचना एवं विकास का कार्य शुरू हुआ। देशभर के लाखों श्रद्धालुओं के सहयोग से बहुत ही कम समय में तीर्थ संकुल विशाल श्री उवसग्गहरं पार्श्व जिनालय सहित ९ शिखर युक्त भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। सन् १९९५ में माघसुद ६ (षष्ठी) ५ फरवरी को तीर्थोंद्धार-जीर्णोद्धार
मार्गदर्शक तीर्थ प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय राजयश सूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्ते इस तीर्थ की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई, इस तीर्थ में प्रतिष्ठित लोटस टेम्पल, तीर्थंकर उद्यान, शाश्वत जिन मंदिर, मेरुपर्वत, श्री मणिभद्रवीर जी मंदिर, पद्मावती देवीजी मंदिर, चरित्र गुरुमंदिर, दादावाडी में प्रतिमाएं तीर्थ भक्तों की यात्रा में सहायक बनते हैं। प्रवास में आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए आवास हेतु सर्वसुविधायुक्त अतिथिगृह, सात्विकता से भरपूर भोजनशाला है।
यहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु यात्रार्थ पधारते हैं। मूलनायक श्री उवसग्गहरं पार्श्व प्रभु की आभामंडल की प्रतिमा १०० मीटर दूरी तक प्रभावित करता है जो अन्यत्र कहीं नहीं है। तीर्थ में प्रतिदिन सुबह १०८ वासक्षेप पूजा, वर्धमान शक्रस्तव से महाभिषेक होता है, वर्ष में माघ सुद ५,६ को प्रतिष्ठा सालगिरह (ध्वजारोहण) तथा पोस बदी ९, १०, ११ को श्री पार्श्व प्रभु जन्म-दीक्षा कल्याणक महोत्सव का आयोजन होता है। परिसर में वर्धमान गुरूकूल एवं प्राकृतिक चिकित्सा की व्यवस्था है
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अप्रैल 2024
बिजय कुमार जैन वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
जैन एकता के साथ महावीर जन्मकल्याणक पर्व सामूहिक रूप से मनाएं
हम सभी जैन पंथावलंबियों के आराध्य तीर्थंकर महावीर का जन्मकल्याणक
हम सभी २५५३ वां वर्ष के रूप में मना रहे हैं।
विश्व में अहिंसा का संदेश फैलाने हेतु हम सभी विभिन्न पंथों को मानने वाले मिलकर ‘महावीर जन्मकल्याणक’ अपने-अपने क्षेत्र में मनाएं तो विश्व को हम बता सकते हैं कि हम सभी जैन हैं, एक हैं, २४ तीर्थंकरों के अनुयाई हैं, ‘णमोकार मंत्र’ हमारा एक है, ‘जियो और जीने दो’ संदेश फैलाने वाले हम सभी एक हैं, जैन हैं, हम जैनों का संदेश ‘अहिंसा परमो धर्म:’ व ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम’ बताएं, तो जानते हैं क्या होगा, हमारा परिचय अन्य भारतीय धर्मावलंबियों के बीच सकारात्मक जाएगा, सभी के बीच एक संदेश जाएगा कि अहिंसा प्रेमी जिन धर्मावलंबी ‘एक’ हैं और ‘जैन’ हैं।
श्रावक-श्राविकाओं से यह भी निवेदन करता हूं कि अपने-अपने क्षेत्र में विराज रहे हम सभी के चलते-फिरते तीर्थंकर ‘साधु-साध्वियों’ के चरणों में विनंती करें कि हमें ‘एकता’ का आशीर्वाद प्रदान करें, क्योंकि साधु-संतों का मार्गदर्शन हमें प्राप्त हुआ या होता रहा तो विश्वास दिलाता हूं कि हमारा ‘जैन एकता’ का आह्वान सफल होकर रहेगा और हम अलग-अलग नहीं ‘एक’ होकर रहेंगे, चाहे हम किसी भी पंथ के मानने वाले हों।
‘महावीर जन्मकल्याणक’ पर्व पर हमें यह सब बताना है, इसलिए सभी से निवेदन करता हूं कि जाएं जैन साधु-संतों के चरणों में और उनसे निवेदन करें कि हमें ‘जैन एकता’ का आशीर्वाद प्रदान करें।
‘भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए’ घ्र्Dघ्A नहीं, अभियान की सफलता के लिए ‘आपणों राजस्थान’ कार्यक्रम ३० मार्च ‘राजस्थान स्थापना दिवस’ भव्यातिभव्य रूप में मुंबई की फिल्म सिटी में मनाया गया, जिसमें विभिन्न जाति के राजस्थानी भाई-बहन अपने-अपने परिधानों को पहन कर राजस्थानी गीत, नृत्य, संगीत के साथ ‘जय-जय राजस्थान’ का नारा लगाया और सभी ने कहा कि यह है ‘आपणों राजस्थान’ क्योंकि भारत में है राजस्थान!
मुंबई में एक और कार्यक्रम १ मई ‘महाराष्ट्र दिवस’ के उपलक्ष मुंबई यूनिवर्सिटी में झ्rग्हम्ग्ज्aत्’े ण्दहम्त्aन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें मुंबई के करीब २०० कॉलेज के प्राचार्य आपस में चर्चा-परिचर्चा करेंगे कि कैसे अपने देश का नाम एक ही रहे केवल भारत?
फिर मिलूंगा अगले अंक में कुछ विशेष नया लेकर…
जय जिनेंद्र!