आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाश्रमण ने ५० हजार किमी की पदयात्रा कर रचा इतिहास, जगाई अहिंसा की अलख
अहिंसा यात्रा के प्रणेता तेरापंथ धर्मसंघ के ११वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने पावन कदमों से
पदयात्रा करते हुए ५०,००० किलोमीटर के आंकड़े को पार कर एक नए इतिहास का सृजन कर लिया। आज के
भौतिक संसाधनों से भरपूर युग में जहां यातायात के इतने साधन हैं, व्यवस्थाएं हैं, फिर भी भारतीय ऋषि परंपरा
को जीवित रखते हुए महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी जनोपकार के लिए निरंतर पदयात्रा कर रहे हैं।
भारत के २३ राज्यों और नेपाल व भूटान में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाने वाले
आचार्यश्री महाश्रमणजी की प्रेरणा से प्रभावित होकर करोड़ों लोग नशामुक्ति की प्रतिज्ञा स्वीकार कर चुके हैं।
देश की राजधानी दिल्ली के लालकिले से सन् २०१४ में अहिंसा यात्रा का प्रारंभ करने वाले आचार्यश्री ने न केवल
भारत, अपितु नेपाल, भूटान जैसे देशों में भी मानवता के उत्थान का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आचार्यश्री देश के
राष्ट्रपति भवन से लेकर गांवों की झोंपड़ी तक शांति का संदेश देने का कार्य कर रहे हैं। यात्रा के दौरान राजनेता हो
या अभिनेता, न्यायाधीश हो या उद्योगपति, सेना के जवान हो या पुलिस के, विशिष्ट जनों से लेकर सामान्य
जन तक जो भी आचार्यश्री के संपर्क में आता है, आपसे प्रेरित होकर अहिंसा यात्रा के संकल्पों को जीवन में उतारने
के लिए प्रतिबद्ध हो जाता है। आचार्यश्री की प्रेरणा से हर जाति, धर्म, वर्ग के लाखों-लाखों लोगों ने इस सुदीर्घ
अहिंसा यात्रा में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया है।अहिंसा यात्रा के प्रारंभ से पूर्व ही आचार्यश्री महाश्रमणजी ने स्वपरकल्याण के उद्देश्य से करीब ३४,०००
किलोमीटर का पैदल सफर कर लिया था। बारह वर्ष की अल्पआयु में अणुव्रत प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी के शिष्य
के रूप में दीक्षित तथा प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के उत्तराधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित आचार्यश्री
महाश्रमण ने अब तक भारत के दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार,
असम, नागालैण्ड, मेघालय, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पांडिचेरी, आंध्रप्रदेश,
तेंलगाना, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ राज्य तथा नेपाल व भूटान की पदयात्रा कर लोगों को सदाचार की राह पर
चलने के लिए प्रेरित किया और उन्हें ध्यान, योग आदि का प्रशिक्षण देकर उनकी दुर्वृतियों के परिष्कार का पथ भी
प्रशस्त किया। हृदय परिवर्तन पर बल देने वाले आचार्यश्री ने अपनी यात्रा के दौरान विभिन्न संगोष्ठियों,
कार्यशालाओं के माध्यम से भी जनता को प्रशिक्षित किया।कच्छ से काठमाण्डू और कांजीरंगा से कन्याकुमारी तक ही नहीं, पाकिस्तान और बांगलादेश की सीमा से लगे
भारत के सीमान्त क्षेत्रों में भी आचार्यश्री की पदयात्रा का प्रभाव देखा जा सकता है। आचार्यश्री की पदयात्राएं
असाम्प्रदायिक संदेश के साथ होती हैं, यही कारण है कि हर जाति, वर्ग, क्षेत्र, संप्रदाय की जनता की ओर से
आचार्यश्री के मानवता को समर्पित अभियान को व्यापक समर्थन प्राप्त होता है।
यात्रा के दौरान जहां बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, स्वामी अवधेशानंद गिरि, स्वामी
निरंजनानन्द, मौलाना अरशद मदनी जैसे विभिन्न धर्मगुरुओं ने आचार्यश्री से मिलकर उनके जनकल्याणकारी
अभियान के प्रति समर्थन प्रस्तुत किया, वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति
एपीजे अब्दुल कलाम, प्रणव मुखर्जी, प्रतिभा पाटिल, नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भंडारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा
ओली, पूर्व राष्ट्रपति रामवरण यादव, पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोइराला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन
भागवत, सुरेश भैया जी जोशी, अमित शाह, लालकृष्ण आडवाणी, पीयूष गोयल, राजनाथ सिंह, सोनिया गांधी,
राहुल गांधी, पी चिदंबरम आदि अनेकों राजनेताओं आदि भी आचार्यश्री के सान्निध्य में पहुंचे और उनके द्वारा
किए जा रहे समाजोत्थान के महत्त्वपूर्ण कार्यों में अपनी भी संभागिता दर्ज कराई। इसके साथ-साथ नीतिश
कुमार, अशोक गहलोत, नवीन पटनायक, सर्वानंद सोनोवाल, ममता बनर्जी, येद्दुयिरप्पा, पलानी स्वामी,
अरविन्द केजरीवाल आदि कई मुख्यमंत्रियों व राज्यपालों सहित कई विशिष्ट लोगों ने भी अहिंसा यात्रा में अपनी
सहभागिता की।आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी पदयात्राओं के दौरान प्रतिदिन १५-२० किलोमीटर का सफर तय कर लेते हैं। जैन
साधु की कठोर दिनचर्या का पालन और प्रातः चार बजे उठकर घंटों तक जप-ध्यान की साधना में लीन रहने वाले
आचार्यश्री प्रतिदिन प्रवचन के माध्यम से भी जनता को संबोधित करते हैं। इसके साथ-साथ आचार्यश्री के
सान्निध्य में सर्वधर्म सम्मेलनों, प्रबुद्ध वर्ग सहित विभिन्न वर्गों की संगोष्ठियों आदि का आयोजन होता रहता
है, जो समाज सुधार की दृष्टि में अत्यन्त लाभप्रदायक सिद्ध होती हैं। प्रलम्ब पदयात्रा में आचार्यश्री के साहित्य
सृजन का क्रम भी निरन्तर चलता रहता है। आचार्यश्री के नेतृत्व में ७५० से अधिक साधु-साध्वियां और हजारों
कार्यकर्ता भी देश-विदेश में समाजोत्थान के महत्त्वपूर्ण कार्य में संलग्न हैं।चरैवेति-चरैवेति सूत्र के साथ गाfतमान
आचार्य श्री की यह ५०,००० किलोमीटर की यात्रा अपने आप में विलक्षण है। आंकड़ों पर गौर करें तो यह पदयात्रा
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से १२५ गुना ज्यादा बड़ी और पृथ्वी की परिधि से सवा गुना अधिक है।
यदि कोई व्यक्ति इतनी पदयात्रा करे तो वह भारत के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर अथवा पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर
तक की १५ बार से ज्यादा यात्रा कर सकता है।