तेरापंथ धर्मसंघ की नई घोषणाएं: उत्सव
कोयंबटूर: अध्यात्म की संस्कृति के संस्कृत मंदिरों की नगरी से सुविख्यात दक्षिण भारत के तमिलनाडु प्रांत की ‘मेन्वेस्टर ऑफ साउथ’ के नाम से प्रसिद्ध कोयंबटूर नगरी, इसी नगरी के सुविशाल ट्रेड फेयर सेंटर कोडिशिया के ब्लॉ क-डी का वातानुकूलित भव्य हॉल में आयोजित हुए १५५वें मर्यादा महोत्सव को त्रिदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य व अंतिम माघ शुक्ला सप्तमी का दिन, एक स्वर्णिम उजास लिए हुआ था। मर्यादा महोत्सव को त्रिदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य व अंतिम माघ शुक्ला सप्तमी का दिन, एक स्वर्णिम उजास लिए हुए था। मर्यादा महोत्सव के उल्लास से उल्लासित चतुर्विध धर्मसंघ का आज मानो श्रद्धातिरेक तब चरम पर पहुँच गया, जब तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें सम्राट अपनी धवल सेना के साथ लगभग बारह बजे मर्यादा समवसरण में पहुँचे। पूरा वातावरण ‘जय-जय ज्योतिचरण-जय-जय महाश्रमण’ के नारों से गूँज उठा, हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों के मोबाइल हवा में एक साथ ऐसे उठे कि मानो अंतस को प्रकंपित करने वाला यह दुर्लभ क्षण कभी हाथों से निकल न जाए।
मंच पर पट्टासीन होकर जयकारा हेतु उठे दोनों हाथों से आचार्यप्रवर ने विशाल जनमेदिनी की अभिवंदना को स्वीकार किया, अगले ही क्षण में प्राप्त होने वाले रोचक दृश्यों की अभिलाषा से पूरा पंडाल शांत हो गया। नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ पूज्यप्रवर ने आज के महाकुंभ के मुख्य दिन का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। गुरु इंगित पाकर मुनि दिनेश कुमार जी ने कार्यक्रम का संयोजन अपने हाथ में लिया एवं सर्वप्रथम मर्यादा घोष व मर्यादा गीत द्वारा उपस्थित जनसमूह को एक लय और एक रस में बाँध दिया।
तीनों धवल सेनाओं की ओजस्वी प्रस्तुति हुयी : कार्यक्रम का आगाज करते हुए तेरापंथ के सम्राट की तीनों धवल सेनाओं-समणीवृंद, साध्वीवृंद एवं संतवृंद द्वारा संघभक्ति की हुँकार भरते हुए क्रमश: जोशीले गीतों की समवेत स्वरों में मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुई, ऐसे नयनाभिराम दृश्य के स्वागत में उपस्थित जनसमूह के दोनों हाथ ‘ॐ अर्हम्’ की हर्ष ध्वनि से लहरा उठे।
संघ महानिदेशिका का प्राग्वक्तव्य : असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ एक गौरवशाली संघ है, इसकी गरिमा का साक्ष्य है, आज का नजारा। एक आचार्य की सन्निधि में किस तरह पूरा धर्मसंघ उपस्थित है, जो संघ में दीक्षित हो जाता है, लाखों-लाखों लोगों के जीवन का आद्य है, ‘एक आचार, एक विचार और एक नेतृत्व’ तीर्थंकरों की आज्ञा अनुपालना। आचार्यों ने धर्मसंघ का संपोषण किया है, एक तत्त्व, सैद्धांतिक, एक ही बात का चिंतन, एक ही आचार है, ऐसा है, तेरापंथ धर्मसंघ।
पूर्वाचार्यों को विनयांजलि व धर्मसंघ के नाम संदेश : तेरापंथ धर्मसंघ को अपना कुशल नेतृत्व प्रदान करने वाले महातपस्वी महाश्रमण जी ने अपना मंगल उद्बोधन प्रारंभ करने से पूर्व संघीय मर्यादा के प्रति विशेष सम्मान में पट्ट से नीचे उतरे, पूरे चतुर्विध धर्मसंघ को खड़े रहने का इंगित प्रदान करते हुए स्वयं खड़े रहते हुए अपने उद्बोधन में फरमाया कि आज हमारे धर्मसंघ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ का मर्यादा महोत्सव के वार्षिक आयोजन का मुख्य दिवस है, हमारे धर्मसंघ का जन्म, स्थापना, उद्भव लगभग २५८ वर्ष पूर्व आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा वि.सं. १९१७ को हुआ था। परम पावन आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ की प्रेरणा थे, आचार्य थे, गुरु थे, मैं उनके प्रति श्रद्धा से प्रणत हूँ, उनके बाद आचार्यश्री भारमल जी से लेकर आचार्यश्री कालूगणी तक कुल आठ आचार्य हुए हैं, जिनको मैंने प्रत्यक्ष नहीं देखा है। आचार्यश्री कालूगणी तक कुल आठ आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी इन दो आचार्यों के पावन चरणों में रहने का मौका मिला, सभी अतीत के दसों आचार्यों को प्रणत होता हुआ वंदन करता हूँ।
गुरुद्वय को विशेष विनयांजलि, हमारा धर्मसंघ आध्यात्मिक दर्शन पर आधारित है, सम्यक् दर्शन पर खड़े संगठन की नींव मजबूत होती है। हमारा धर्मसंघ सामाजिक या राजनीतिक पार्टी का संगठन नहीं है, धार्मिक है, अध्यात्म पर आधारित है, हम सब जो इसके सदस्य हैं, सबमें आत्म-निष्ठा, आत्म-कल्याण की परिपुष्ट भावना रहे, हमारा ज्ञान-दर्शन-चारित्रिक स्वास्थ अच्छा रहे।
महामहिम हमारा संघ : आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि आस्था का सूत्र है- वह सत्य ही सत्य है जो निशंक है, जो जिनेंद्र द्वारा प्रज्ञप्त है, हम मोक्ष की ओर आगे बढ़ें, हमारी यह आत्म-साधना वैयक्तिक नहीं संघबद्ध रही है, संघ हमारा आश्रय है, शरण है। हमारा धर्मसंघ महामहिम संघ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, सभी साधु-साध्वियों को वंदन करता हूँ, इनका संघ के प्रति सम्मान आदर का भाव है, इनकी संघ-निष्ठा पुष्ट रहे, आगे भी अच्छी रहे, तुच्छ बातों के लिए विचलन का भाव न आए। शरीर छूटे तो छूटे पर संघ हमारा न छूटे, हमारे संघ को नंदनवन कहा गया है, संघ की सेवा करने का भाव रखें। वृद्ध, ग्लान साधु-साध्वियाँ जो सेवा सापेक्ष हैं, उनकी सेवा करते रहें।
हमारी शक्ति का उपयोग यथोचित संघ निष्ठा में होता रहे, जहाँ संघ होता है, वहाँ अनुशासन की व्यवस्था होती है, हमारे धर्मसंघ में आचार्य सर्वोपरि होते हैं, यह हमारी वैधानिक व्यवस्था है। साधु-साध्वी, समण श्रेणी, श्रावक-श्राविकाएँ एक आचार्य, एक गुरु की आज्ञा में रहें, आचार्य जो आज्ञा निर्देश करें, उसका पालन होना चाहिए। आज्ञा बिना पत्ता भी न हिले, हमारी गुरु के प्रति आज्ञानिष्ठा पुष्ट रहे, ये आज्ञा आत्मा के लिए है। आचार निष्ठा भी रहे, साधु-साध्वियों के तेरह नियम हैं, वे उनके प्रति एवं चारित्र के प्रति जागरूक रहें। समण श्रेणी अपने आचार के प्रति एवं श्रावक समाज भी अपने व्रतों के प्रति जागरूक रहे। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि धर्मसंघ की अपनी मर्यादा है, उसके प्रति जागरूक रहें, हम मर्यादा का मान रखेंगे तो मर्यादा हमारा मान रखेगी। मर्यादा महोत्सव का संबंध वि.सं. १९५९ के आचार्य भिक्षु के लिखत के साथ है, यह लिखत (मर्यादा-पत्र) हमारा गणछत्र है।
पूज्यप्रवर ने आचार्यप्रवर द्वारा मारवाड़ी भाषा में लिखित मूल पत्र का अक्षरश: वाचन किया, बाद में पूज्यप्रवर द्वारा स्व-रचित गीत का सूमधुर संगान किया गया।
ज्ञान चेतना वर्ष : आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के शुभारंभ से पूर्व साधु-साध्वी को विशेष प्रेरणा देते हुए आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि महाप्रज्ञ श्रुताराधना का सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम शुरू किया है, इससे ज्ञानाराधना, श्रुताराधना बढ़ाई जा सकती है, गुरूकुलवासी व बर्हिविहारी साधु-साध्वी, समण श्रेणी भी इससे जुड़ सकती है। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जन्तशताब्दी को मैं ‘ज्ञान चेतना वर्ष’ घोषित करता हूँ।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा लिखित संस्कृत ग्रंथ संबोधि का, जिसके अनुकूलता हो याद करने का प्रयास करें। सौलह अध्याय हैं, श्रावक-श्राविकाएँ, छोटे बालक-बालिकाएँ भी कंठस्थ करने का प्रयास करें। महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी की शुरूआत ३० जून, १,२ जुलाई के त्रिदिवसीय कार्यक्रम जो बैंगलोर में है एवं समापन हैदराबाद में करने का भाव है, कार्यक्रम जो इससे संबंधित हैं वे विभिन्न क्षेत्रों व गुरूकुल में हो सकते हैं, महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समिति के अध्यक्ष हंसराज बेताला नियुक्त किए गए हैं, ये समिति संयममय, आध्यात्मिक कार्यक्रम चलाने पर ध्यान दें।
समणी दीक्षा : पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि अब समणी दीक्षा को समाप्त कर मुमुक्षु बहनों को सीधे साध्वी दीक्षा देने का अनिश्चित काल तक भाव है, अनिश्चित काल तक समण-समणी दीक्षा बंद की जा रही है।
पारदर्शिता रहे : धर्मसंघ की संस्थाओं को पारदर्शिता की प्रेरणा देते हुए पूज्यप्रवर ने आगे कहा कि अनेक संस्थाएँ हैं, वे आध्यात्मिक धार्मिक कार्यों में विशेष ध्यान दें। सभी में प्रामाणिकता बनी रहे। पारदर्शिता रहे। कच्चे का काम, दो नंबर का काम न हो। सब काम पक्के में हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
कोई भवन निर्माण आदि का कार्य हो, तो उसमें कानून के उल्लंघन से बचें और अवैध निर्माण से बचें, ताकि पाप-कर्मों से बचा जा सके।
अनेक गतिविधियाँ : पूज्यप्रवर ने आगे कहा कि ज्ञानशाला महासभा की गतिविधि है, अच्छी चले। संख्या के साथ गुणात्मक वृद्धि हो, जहाँ ज्ञानशाला नहीं है वहाँ खोलने का प्रयास करें, हमारे सामने उपासक श्रेणी है, अणुव्रत, जीवन-विज्ञान, प्रेक्षाध्यान आदि गतिविधियाँ खूब अच्छी प्रगति करें।
घोषणाओं से चकित, हर्षित हुआ धर्मसंघ : नित कई घोषणाओं से सबको चकित करने वाले करूणा के सागर आचार्यप्रवर ने मर्यादा महोत्सव के पावन अवसर पर आगामी यात्रा के बारे में फरमाया कि मैंने केलवा चातुर्मास में तीन चातुर्मास, दो मर्यादा महोत्सव एवं एक अक्षय तृतीया से ज्यादा घोषित करने का अनिश्चित काल के लिए प्रतिबंध लगाया था, वह आज समाप्त किया जा रहा है, अब यात्रा के संबंध में बात करनी है।
२०२२ का चातुर्मास कालूगणि की जन्मभूमि छापर में : नई घोषणाओं का क्रम चालू करते हुए पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि पहली बात, मेरे सामने छापर है। छापर से मैंने चातुर्मास लिया था, अब उसका निर्णय कर देता हूँ कि छापर चातुर्मास कब करना है, इतना सुनते ही पूरा समवसरण पूज्यप्रवर की अगली पंक्ति सुनने के लिए शांत हो गया। सर्वप्रथम पूज्यप्रवर ने परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, आचार्य भिक्षु सहित पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को वंदना, जयपुर विराजित श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री सुमेरमल जी को वंदन तथा साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी को अभिवंदन करते हुए फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२२ पर चातुर्मास कालूगणी की जन्मभूमि छापर में करने का भाव है, इतना सुनते ही पूरा वातावरण ‘ॐ अर्हम्’ के नाद से गूँज उठा। छापरवासी फूले नहीं समा रहे थे।
मुंबई के प्रति भी मेरे मन में भावना है : छापर चातुर्मास की घोषणा के बाद पूज्यप्रवर ने एक और अप्रत्याशित घोषणा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए फरमाया कि अब दूसरी बात मेरे सामने मुंबई भी है, वहाँ के लोग यदा-कदा अर्ज करते आए हैं, यहाँ भी आए हुए होंगे, तो मुंबई के प्रति भी मेरे मन में भावना है और भावना यह कि मुंबई भी मुझे कभी जाना चाहिए।
यह सुन उपस्थित मुंबईवासी पूज्यप्रवर के समक्ष आकर खड़े हो गए, पूरा वातावरण शांत हो, अपने नयनों से अपलक पूज्यप्रवर को निहार रहे थे कि पूज्यप्रवर मुंबईवासियों की झोली में क्या देंगे।
परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री को अभिवंदन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव और समय की अनुकूलता के आधार पर सन् २०२३ का चातुर्मास मुंबई में करने का भाव है। ‘ॐ अर्हम्’ के घोष के साथ सभी शब्दातीत हो एक-दूसरे का चेहरा देख हर्षाभिव्यक्ति व्यक्त कर रहे थे।
मर्यादा महोत्सव छत्तीसगढ़ के रायपुर में : मर्यादा महोत्सव की घोषणा के क्रम की शुरूआत करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि सामने मर्यादा महोत्सव है और उसके लिए छत्तीसगढ़ सामने है तो मैं छत्तीसगढ़ के लिए भी कुछ कहना चाहता हूँ। अनेक क्षेत्रों से मर्यादा महोत्सव की आस लगाए हुए छत्तीसगढ़वासी मंच के समक्ष उपस्थित होने लगे।
परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवादन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र काल और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२१ का मर्यादा महोत्सव रायपुर (छत्तीसगढ़) में करने का भाव है। मंच के सामने पंचरंगा पट्टा धारण किए हुए बड़ी संख्या में उपस्थित रायपुरवासी इस घोषणा से झूम उठे।
मघवागणी की जन्मस्थली बीदासर में वृहद मर्यादा महोत्सव : पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि भीलवाड़ा तक मैंने कह दिया है अब प्रश्न है कि भीलवाड़ा के बाद हमें कहाँ जाना है तो उस विषय में मैं कुछ कहना चाहता हूँ, इसे सुनते ही चीतांबावासी (जिन्हें मेवाड़ का प्रथम मर्यादा महोत्सव की बक्शीस मिली हुई है) माथे पर मेवाड़ी पगड़ी पहने हुए आगे आने लगे तथा कुछ उन क्षेत्रों से भी लोग उपस्थित हुए, एक और अप्रत्याशित घोषणा करते हुए परमप्रभु भगवान महावीर को नमन, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवंदन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२२ का मर्यादा महोत्सव मघवागणी की जन्मस्थली बीदासर करने का भाव है, इसके पश्चात् बीदासरवासियों की अर्ज पर इसे वृहद् मर्यादा महोत्सव घोषित कर दिया।
एक तरफ हर्ष का वातावरण तो दूसरी ओर चितांबावासियों को सांत्वना देते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि अभी प्रतीक्षा करें।
२०२३ का मर्यादा महोत्सव बायतू में : मौके का फायदा उठाते हुए मुनि रजनीश कुमार जी (बायतू) पूज्यप्रवर के समक्ष जाकर निवेदन किया कि बायतू में आपश्री का मर्यादा महोत्सव घोषित किया हुआ है, अब सन् बोलने की कृपा कराएँ। मुनि रजनीश कुमार जी की अर्ज पर पूज्यप्रवर ने हर्षाभिव्यक्ति व्यक्त की और कहा कि हमारे मुनि रजनीश जी कह रहे हैं तो मैं यह भी कह देता हूँ।
परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी को अभिवंदन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२३ का मर्यादा महोत्सव बायतू में करने का भाव है, गुरूकृपा का आर्शीवाद पाकर सभी गद्गद हो गए।
अनेक अक्षय तृतीयाओं की घोषणा : परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवादन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आगामी अनेक अक्षय तृतीयाओं के बारे में बताना चाहता हूँ कि सन् २०२० की अक्षय तृतीया औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में करने का भाव है। सन् २०२१ की अक्षय तृतीया इंदौर (मालवा) में करने का भाव है। सन् २०२२ की अक्षय तृतीया सरदारशहर (पूर्व में ही) कह दिया है।
बंद करते-करते और लगा दिया ताला : चतुर्विध धर्मसंघ पर घोषणाओं की अनुग्रह वृष्टि करने के बाद पूज्यप्रवर ने हाथों से इशारा करते हुए फरमाया कि अब घोषणाओं पर ताला लगा देते हैं, तभी कुछ निवेदन पर पुन:पूज्यप्रवर ने कहा कि अभी तो ताला हाथ में लिया है, बंद नहीं किया है, चाबी तो अभी भी हाथ में है, तो मैं कहना चाहता हूँ कि बायतू चातुर्मास के बाद अहमदाबाद जाने का भाव है और प्रेक्षा विश्व भारती व अहमदाबाद को एक मानते हुए लगभग तीन सप्ताह का वहाँ प्रवास करने का भाव है और इसके बाद सन् २०२३ की अक्षय तृतीया सूरत में करने का भाव है।
इसके बाद पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जो ताला हाथ में लिया था उसे बंद करके विराम दे रहा हूँ। सन् २०२० की संपन्नता तक के लिए चातुर्मास, मर्यादा महोत्सव व अक्षय तृतीया आदि की घोषणा के लिए विराम देता हूँ।
कुछ अवशिष्ट घोषणाएँ : शेष बची घोषणाओं को पूर्ण करते हुए पूज्यप्रवर ने घोषणा की कि-
– नागपुर आने का भाव है।
– सन् २०२० का वर्धमान महोत्सव गदग में करने का भाव है
– हुबली मर्यादा महोत्सव प्रवेश माघ कृष्णा चतुर्दशी, दिनांक २३ जनवरी, २०२० को प्रात: ६:५१ बजे संस्कार स्कूल में करने का भाव है और हुबली से विहार माघ कृष्णा अष्टमी, २ फरवरी, २०२० को प्रात: ९:५१ बजे करने का भाव है।
– बैंगलुरू चातुर्मासिक प्रवेश १२ जुलाई, २०१९ को लगभग प्रात: ९:३१ पर एवं वहाँ से प्रस्थान १३ नवंबर, २०१९ को प्रात: ९:२१ पर करने का भाव है।
– भीलवाड़ा चातुर्मास में प्रवास आदित्य विहार, तेरापंथ नगर के निकट में करने का भाव है।
दीक्षाओं की घोषणा : संयम प्रदाता आचार्यश्री ने बैंगलुरू में आयोजित होने वाले दीक्षा समारोह में दीक्षार्थियों के नाम की घोषणा करते हुए फरमाया कि आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी प्रारंभ के बाद ३ जुलाई, २०१९ को बैंगलुरू में:-
– मुमुक्षु ऋषभ बुरड़ को मुनि दीक्षा देने का भाव है।
– मुमुक्षु अजिता, मुमुक्षु प्रज्ञा, मुमुक्षु प्रतिभा, मुमुक्षु प्रेक्षा, मुमुक्षु वंदना को साध्वी दीक्षा देने का भाव है।
– समणी वंâचनप्रज्ञा, समणी प्रगतिप्रज्ञा, समणी यशस्वीप्रज्ञा, समणी धृतिप्रज्ञा, समणी गंभीरप्रज्ञा, समणी प्रसस्तप्रज्ञा, समणी अखिलप्रज्ञा और समणी स्वेतप्रज्ञा को श्रेणी आरोहण करते हुए साध्वी दीक्षा देने का भाव है।
मुमुक्षु खुशबू की समणी दीक्षा घोषित है, उनको समणी दीक्षा के तत्काल बाद साध्वी दीक्षा देने का भाव है।
हाजरी वाचन व साधु-साध्वी, समण श्रेणी की पंक्ति का विहंगम दृश्य
मर्यादा महोत्सव के अवसर पर बड़ी हाजरी का वाचन किया जाता है, जिसमें सभी साधु-साध्वियाँ व समण श्रेणी के सदस्य पंक्तिबद्ध दीक्षा ज्येष्ठत्व क्रम से खड़े होकर लेखपत्र व पूज्यप्रवर द्वारा उच्चारित भाषावली का उच्चारण किया जाता है, आज के इस दृश्य का अद्भुत नजारा था, पंडाल में उपस्थित जनता अपने-अपने मोबाइल फोन से इस विहंगम दृश्य को कैद कर रहे थे।
पूज्यप्रवर के आव्हान पर पुन: सभी मंच पर आसीन होने के लिए बढ़े। १५५वें मर्यादा महोत्सव कोयंबटूर में साधुओं की संख्या ४९, साध्वियाँ ७५, समणियाँ ७५ व समण १-कुल २०० की उपस्थिति हुई, स्वयं पूज्यप्रवर ने अपने मुखारविंद से यह जानकारी दी, इसके पश्चात् पूज्यप्रवर ने उपस्थित श्रावकश्राविकाओं को श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन करवाया।
संघगण के पश्चात् अंत में पूज्यवर ने त्रिदिवसीय १५५वें मर्यादा महोत्सव के कार्यक्रम के समापन की घोषणा की, कार्यक्रम का सफल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
स्थानकवासी जैन श्री संघ की उपाधि से सम्मानित
कर्मठ समाजसेवी व उद्योगपति हीरालाल साबद्रा
नवी मुंबई: परिचय एवं शिक्षा श्री हिरालाल साबद्रा राजस्थान के पाली जिले के अडसलाई से हैं, आपके पूर्वज करीब १००-१५० साल पहले महाराष्ट्र में आये, आपका जन्म महाराष्ट्र के नाशिक जिले का एक नगर लासलगाव में हुआ। बचपन में ही मां-बाप का साया छूट गया। नगर से शहर में पढाई के लिये जाने वाले आप पहले युवक थे। आपको केमिकल इंजिनिअरिंग की पढाई के लिये मुंबई के माटुंगा में प्रवेश मिला।
आपके द्वारा अग्निशमन रसायनों का शोध प्रबंध के लिए गत दिनों आपको मलेशिया में अंतरराष्ट्रीय साउथ कोरिया युनिव्हर्सिटी से डॉक्टरेट पदवी की प्रदान हुयी।
कार्यक्षेत्र: भारत देश में अग्निरोधक रसायनों का निर्माण नहीं होता था और रसायनों का आयात होता था, आपने रसायनशास्त्र की पढाई की थी इसलिये अनुसंधान किया और लगातार वर्षों की मेहनत परिक्षणों के बाद अग्निरोधक केमिकल्स के निर्माण में उपलब्धि मिली, इस उपलब्धि के कारण भारत सरकार ने आपके कार्यों की सराहना की एवम् ‘उद्योग रत्न’ अवार्ड से राष्ट्रपति (स्व.) डॉ. जेलसिंग के हाथों राष्ट्रपति भवन में सत्कार एवम् सन्मान के साथ नवा़जा गया।
भारत सरकार ने फ्रांस में दुनिया के सर्वप्रथम झांग बनाने वाली शास्त्रज्ञ के साथ आदान प्रदान प्रणाली के अंतर्गत बातचीत के लिये आपको फ्रांस यात्रा के लिये अधिकृत किया गया, आपने वहां जाकर तंत्रज्ञान हासिल किया और फिर झाग बनानेवाली रसायनों का उत्पादन भारत में शुरू कर दिया।
शिक्षा प्राप्त के बाद दस साल नौकरी की, फिर एक मित्र के साथ भागीदारी में व्यवसाय किया, तत्पश्चात खुद का व्यवसाय ‘केव्ही फायर केमिकल इंडिया प्रायवेट लिमिटेड’ के नाम से नई मुंबई में १९८९ को शुरू किया और उसे विस्तारित करने हेतु आपने नाशिक जिल्हा के देहात मुंढेगाव में बड़े पैमाने पर सन २००० में फैक्ट्री स्थापित की, आज आप ९० परिवारों का पालन पोषण कर रहे हैं।
रसायनों के उत्पादन में आपने स्वदेशी एवम् बहुद्देशीय संस्थाओं से मान्यता प्राप्त की और भारत के सभी क्षेत्रों के साथ दुनिया के ४५ से
अधिक देशों में आप अग्निरोधक उत्पादन को निर्यात कर रहे हैं।
धार्मिक एवम् सामाजिक संस्थानों द्वारा किये जा रहे कार्य:
- न्यु बॉम्बे स्थानकवासी जैन संघ वाशी के आप संघपति एवम् अध्यक्षता की जिम्मेदारी गत लगातार २० सालों से निभा रहे हैं।
- नई मुंबई जैन ट्रस्ट दिगम्बर-श्वेताम्बर मूर्तिपूजक-स्थानकवासी व तेरापंथ की सामुहिक संस्था है, उसके आप ट्रस्टी हैं, नई मुंबई शहर में रहने वाले चारों जैन पंथ का एकमंच स्थापित है, जिस संगठन को आप बड़ी जिम्मेदारी से निभा रहे हैं।
- महावीर इंटरनेशनल के आप सदस्य हैं और समाजोपयोगी कार्यक्रम में आप रहयोगी रहते हैं।
- जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑरगेनाइजेशन (जितो) के आप फाऊन्डर चीफ पँटर्न हैं तथा नई मुंबई जितो चॅप्टर के मार्गदर्शक हैं।
- जैन एज्युकेशन सोसायटी वडाला के आप आजीवन सदस्य हैं और आर्थिक सहयोग प्रदान करते रहते हैं।
- जैन इंजिनियर्स सोसायटी के आप सक्रिय सहयोगी सदस्य एवम् आयोजित कार्यक्रम में सहयोगी रहते हैं।
- अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फरेंस के आप राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य हैं।
- ‘जैन जागृती सेंटर’ वाशी के सहयोगी सदस्य और शैक्षणिक कार्यों में हमेशा योगदान देते हैं।
- ऑल इंडिया भ्रष्टाचार और अपराध मुक्त भारत की नई मुंबई शाखा के प्रमुख हैं।
- मानव अधिकार के अंतर्गत कार्पोरेट सोशल एवम् पर्यावरण संस्था वाशी शाखा के प्रमुख हैं।
मान सम्मान:
भारतरत्न: भारत सरकार की और से ‘उद्योग रत्न’ पुरस्कार से राष्ट्रपति डॉ. जैलसिंग ने राष्ट्रपति भवन में सन्मानित किया, यह पुरस्कार आपको ‘‘अग्निशमक’’ रसायनों का भारत में सर्वप्रथम विकसित करने के लिये दिया गया।
सद्भावना पुरस्कार: जैन समाज के सभी संप्रदायों को एकसाथ जोड़ कर नई मुंबई के सभी सदस्यों में भाइचारा एवं सहयोग बढाने के लिये आपको ‘सिटीझन इंटिग्रेशन पीस सोसायटी’ की ओर से सदभावना पुरस्कार दिया गया।
लाईफ टाईम अचिव्हमेंट अवार्ड: अग्निशमन क्षेत्र में आपके द्वारा लगातार चार दशकों से सेवा देने के कारण इन्स्टिट्यूट ऑफ फायर इंजिनियर्स एवम् फायर प्रोटेक्शन मन्युफॅक्चर्स असोसिएशन की और से आपको लाईफ टाईम अचिव्हमेंट अवार्ड का पुरस्कार दिया गया।
जैन समाज भुषण: नई मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने आपके द्वारा किए जा रहे समाज सेवा कार्यों के लिये श्री गणेश नाईक पूर्व मंत्री महाराष्ट्र राज्य द्वारा समाजभूषण की पदवी दी गयी।
जैन गौरव: आपकी सेवायें एवम् समाजकार्य के लिए ‘नाशिक जिल्हे की शान’ नाशिक जिल्हा गौरव समिती की और से ‘जैन गौरव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
ओसवाल समाज संघटक: मुंबई ओसवाल समाज की संस्था ‘‘ओसवाल उत्कर्ष मंडल’’ की अध्यक्षता के कार्यकाल में आपने मुंबई, नई मुंबई के सभी परिवारों को जोड़ा एवम् एक सुंदर निर्देशिका का निर्माण किया, आपको समाज संगठन के कारण सन्मान एवम् अभिमान पत्र दिया गया।
शैक्षणिक कार्य: आपने ब्लू बेल इंटरनेशनल नामक नई मुंबई में सर्वप्रथम प्ले स्कूल और नर्सरी का निर्माण किया और नई मुंबई के बच्चों के लिये शिक्षा संस्कार का महान कार्य किया।
- मुंबई के बाहर से आने वाली लड़कियों के लिये ‘‘कमला लेडीज होस्टेल’’ की सुविधा प्रदान की।
ऐसी कई उपलब्धियों को प्राप्त करने वाले श्री हिरालाल साबद्रा के कार्यों को पढ कर हम सभी श्री साबद्रा जी की अनुमोदना करें, उनके पद चिन्हों पर चलते हुए तीर्थंकर महावीर से मनोकामना करें कि श्री हिरालाल साबद्रा दिर्घायु रहें।
-जिनागम