जैन समाज को सम्मानित करने वाला भारतीय जाँबाज अभिनंदन

विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान (Wg Cdr V Abhinandan) ३८ वर्षीय भारतीय वायुसेना के पायलट है, आपका जन्म-दिवस २१ जून को १९८१ को हुआ। आपका पूरा नाम ‘अभिनंदन वर्तमान’ है, जबकि दक्षिण भारत में आपका नाम, ‘अभिनंदन वर्थमान’ बोला जाता है। दक्षिण भारत में ‘त’ को ‘थ’ बोला जाता है जैसे ‘हिंदुस्तान’ को ‘हिंदुस्थान’ कहा जाता है, कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आपका नाम ‘अभिनंदन वर्धमान’ प्रकाशित किया गया है।

पारिवारिक पृष्ठभूमि
आपके दादा भी भारतीय वायुसेना में थे, उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था, आपके पिता एस वर्तमान भारतीय वायुसेना में एयरमार्शल थे, आपकी पत्नी सेवानिवृत्त स्क्वाड्रन लीडर तन्वी मारवाह ने भी भारतीय वायुसेना में १५ वर्षों तक सेवाएँ दी हैं।
विंग कमांडर अभिनंदन व उनकी पत्नी तन्वी मारवाह बचपन के साथी थे, दोनों पांचवीं कक्षा से एक-दूसरे से परिचित थे। दोनों ने कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी की डिग्री भी एक साथ ली थी, विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान एक पुत्र के पिता हैं।
आपका भाई भी वायुसेना में अपनी सेवाएँ दे रहा है, अभिनंदन की तीन पीढियाँ भारतीय सेना से जुड़ी हुई हैं।

शिक्षा: अभिनंदन ने अपनी १०वीं कक्षा तक की प्रारम्भिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय बेंगलुरु से प्राप्त की। उच्च शिक्षा दिल्ली में पूरी की है, उस समय उनके पिता भी भारतीय वायुसेना में थे और दिल्ली में ही भारतीय वायुसेना में पदस्थ थे, इसलिए पूरा परिवार यहीं रहा करता था। अभिनंदन खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के छात्र रहे हैं। अभिनंदन को मिग -२१ विमान बहुत प्रिय है और वह इस विमान के बहुत बड़े प्रशंसक हैं।

विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को उनके लड़ाकू विमान के क्षतिग्रस्त होने पर २७ फरवरी २०१९ को पाकिस्तानी सेना ने अपनी हिरासत में ले लिया था, दो दिनों से अधिक पाकिस्तानी हिरासत में रखने के बाद ‘पाकिस्तान’ ने ‘जिनेवा संधि’ के अंतर्गत विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को १ मार्च २०१९ को छोड़ दिया व भारत ससम्मान भिजवा दिया।
घर लौटने पर वायुसेना ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की वापसी पर प्रसन्नता व्यक्त की और बताया कि भारत पहुंचते ही अभिनंदन ने कहा, ‘अपने देश आकर बहुत अच्छा लग रहा है।’
विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान के घर लौटने पर सम्पूर्ण देश ने उनका हार्दिक स्वागत किया, पूरा देश उन्हें एक ‘जाँबाज’ सिपाही के रूप में देख रहा है। कोई उनकी तुलना हनुमान से कर रहा है तो कोई उन्हें ‘वायुवीर’ कह कर अलंकृत कर रहा है, उनके सकुशल घर लौटने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित अनेक नेताओं ने प्रसन्नता जताई है।
मेजर जनरल (डॉ.) गगनदीप बक्शी (सेवानिवृत) ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की घर वापसी पर प्रसन्नता व्यक्त की, साथ ही आतंकवाद के समाधान पर यह संदेश भी दिया, ‘देश में एक वर्ग ऐसा है जो शांति में नोबल पुरस्कार पाने की होड़ में लगा हुआ है, इसी वजह से वह आतंकियों के सफाए को भी मानवाधिकार हनन करार देता है।
एंटी टेरोरिस्ट फ्रंट के संस्थापक बिट्टा ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को ‘जिंदा शहीद’ की संज्ञा दी, उन्होंने कहा है कि अभिनंदन ने एक मिसाल कायम की है और वे पूरे देश के लिए विशेषत: नयी पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा-दााोत हैं। बिट्टा १९९३ में युवक कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनके दफ्तर के बाहर एक कार में आरडीएक्स बम रख दिया गया था, जैसे ही बिट्टा बाहर आए, रिमोट कंट्रोल से आतंकवादियों ने विस्फोट कर दिया, इस हमले में बिट्टा सहित २५ लोग बुरी तरह घायल हो गए थे और ९ लोगों की मौत हो गई थी, इस घटना के बाद से बिट्टा को ‘जिंदा शहीद’ कहा जाने लगा और उन्होंने आतंकवादियों के विरुद्ध देश में आवाज़ उठायी, बिट्टा आतंकवाद के कट्टर विरोधी हैं, वे देश में शहीदों के बच्चों को मुफ्त पढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं।

मिग-२१ से अभिनंदन का पुराना रिश्ता
पाकिस्तान द्वारा हिरासत में लिए गए विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान का मिग-२१ लड़ाकू विमान से काफी पुराना रिश्ता रहा है, वर्तमान के एक पारिवारिक मित्र ने शुक्रवार बताया कि उनके पिता एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) सिंहकुट्टी वर्तमान भी मिग-२१ उड़ा चुके हैं और वह भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट रहे हैं। वह पांच साल पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्होंने बताया कि अभिनंदन के दादा भी भारतीय वायुसेना में थे। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में १९६९-७२ के दौरान अभिनंदन के पिता के साथ पढ़ने वाले विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रकाश नावले ने बताया कि वह अभिनंदन से सबसे पहले तब मिले थे, जब अभिनंदन तीन साल के थे, उन्होंने कहा, ‘मैं और अभिनंदन के पिता हैदराबाद के हकीमपेट में लड़ाकू प्रशिक्षण के लिए तैनात थे।
नावले ने कहा, ‘वर्तमान का परिवार बहुत ही भला और सीधा सादा है। अभिनंदन के पिता बेहद सज्जन हैं। पेशे से डॉक्टर उनकी पत्नी शोभा भी एक भारतीय सांस्कृतिक महिला हैं। अभिनंदन की बहन अदिति फ्रांस में रहती हैं और उनके पति एक फ्रांसीसी नागरिक हैं।

मर्यादा महोत्सव पर विशेष मर्यादा बंधन नहीं, मुक्ति का द्वार है

बंधन में रहना किसी को पसंद नहीं है, आज का आदमी खुलावट पसंद करता है, आदमी ही नहीं, पशु-पक्षी भी बंधन पसंद नहीं करते, एक तोता भले वह सोने के पिंजरे में रहता है किंतु खुली हवा में उड़ान भरना ज्यादा पसंद करता है, पिंजरा उसे कैदखाने जैसा लगता है। एक लोककथा है कि कोई कौआ उड़ता-उड़ता चिड़ियाघर में आ गया, वहाँ पिंजरे में कैद एक बत्तख के पास आया और बोला-बत्तख भाई! तुम बड़े भाग्यशाली हो, तुम्हारा पूरा शरीर सफेद है, मन को मोहने वाला है। बत्तख बोला-कौआ भाई! मेरे से ज्यादा भाग्यशाली तो तोता है जिसका शरीर मेरे से ज्यादा खुबसूरत आभा बिखेर रहा है, उसके सिर और चौंच की छटा तो बड़ी निराली है। कौआ तोते से मिला और उसके मनमोहक रूप को देखकर उसके भाग्य की सराहना करने लगा। तोते ने कौए से कहा-‘तूम एक बार मोर को देख लो, उस जैसा रंग-बिरंगा और आकर्षक रूप कहीं नजर नहीं आएगा, दुनिया में सबसे ज्यादा भाग्यशाली तो वह है। वह मोर के पास गया, उसके शरीर से सुंदरता टपक रही थी, वह उसके भाग्य के गुणगान करने लगा। मोर ने कौए को टोकते हुए कहा-मैं तो दुर्भागी हूँ जो इस कैदखाने में रहता हूँ। कौए ने जिज्ञासा की, कि फिर कौन है पक्षियों में सबसे ज्यादा भाग्यशाली? मोर ने कहा-सबसे ज्यादा भाग्यशाली तू है जो खुले आकाश में उड़ान भरता है, कौआ उसके मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर सहम गया और काँव-काँव करता हुआ उड़कर वृक्ष की किसी डाली पर बैठ गया।
पक्षी ही नहीं, कोई भी प्राणी बंधन में रहना नहीं चाहता, हर व्यक्ति स्वतंत्र और अपने ढंग से जीना चाहता है। ऊपर का नियंत्रण वह पसंद नहीं करता, नियम और मर्यादाएँ उसे बंधन लगती हैं। रोक-टोक में रहने को वह गुलामी समझता है। एक छोटे बच्चे ने अपने पापा से कहा-पापा! मम्मी हर वक्त मेरे पर रोक-टोक करती रहती है, मैं सुनता-सुनता तंग आ गया हूँ, यह रोक-टोक कब बंद होगी, उसका पिता बोला-बेटा! मम्मी रोक-टोक तो मैं भी सुनता हूँ, तू तो अभी बच्चा है, छोटा बच्चा भी नियंत्रण में रहना नहीं चाहता, इस स्वतंत्रता के युग में तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित होने वाला हर मुनि नियंत्रण को सहर्ष स्वीकार करता है, वह मर्यादा में रहने को गुलामी नहीं मानता, यही कारण है कि तेरापंथ में गुरू का अनुशासन शिष्य की प्रगति का द्वार बन जाता है। मर्यादाओं का सृजन करके स्वच्छंदाचार को समाप्त करने के लिए आचार्य भिक्षु ने एक जीवंत ब्रह्मास्त्र तैयार कर दिया, वे अध्यात्मयोगी ही नहीं, व्यवहारविद् भी थे। आने वाला समय कैसा होगा, उसकी नब्ज को उन्होंने पहचान लिया था, वे जिस संघ को छोड़कर आए थे वहाँ की स्थितियों का भी वे अध्ययन कर चुके थे। संघ को दीर्घजीवी और स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने समय-समय पर मर्यादाओं का निर्माण किया, उन्होंने मर्यादा निर्माण के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लिखा-शिष्य, वस्त्र और साताकारी क्षेत्र का ममत्व करके अनंत जीवन अब तक नरक निगोद में चले गए, इसलिए शिष्य आदि की ममता मिटाने और चारित्र को निर्मल निरतिचार रखने के लिए मैंने ये मर्यादाएँ बनाई हैं। वि.सं. १८३२ में उन्होंने सबसे पहला मर्यादा पत्र लिखा। भगवान महावीर के समय ७ पदों की व्यवस्था थी, उसमें परिवर्तन करके आचार्य भिक्षु ने पहली धारा बना दी, ‘सब साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें’ पूर्ववर्ती संघ में विहार, चातुर्मास संत अपनी मजमर्जी से करते थे, उस पर रोक लगाते हुए दूसरी धारा बना दी कि ‘साधु-शिष्याओं की खींचातान को मिटाने के लिए तीसरी धारा बना दी कि कोई भी अपना-अपना शिष्य-शिष्या न बनाएँ।
साधु-साध्वियों की गुणवत्ता और तेजस्विता को महत्त्व देने के लिए चौथी धारा सर्वशक्तिसंपन्न आचार्य के लिए बना दी कि आचार्य भी योग्य व्यक्ति को दीक्षित करें, दीक्षित करने पर भी कोई अयोग्य निकले तो उसे गण से अलग कर दें। उत्तराधिकार को लेकर कोई समस्या खड़ी न हो इसके लिए पाँचवीं धारा बना दी कि आचार्य अपने गुरूभाई या शिष्य को अपना उत्तराधिकारी चुने, उसे सब साधु-साध्वियाँ सहर्ष स्वीकार करें। संघ की मजबूती के लिए आचार्य भिक्षु ने अपने जीवन काल में कई मर्यादाएँ बनाई, उनका लिखा हुआ अंतिम मर्यादा पत्र वि.सं. १८५६ माघ शुक्ला, सप्तमी, शनिवार का है।

आचार्य का एक विश्लेषण होता है-द्रव्य, क्षेत्र, कला और भाव के ज्ञाता। आचार्य भिक्षु का जीवन इसका मूर्तरूप था, वे जानते थे, भविष्य में समय और स्थितियों को देखकर आचार्य को मर्यादाओं में परिवर्तन या संशोधन भी करना आवश्यक हो सकता है, इस दृष्टि से उन्होंने एक धारा बना दी कि आगे जब कभी भी आचार्य आवश्यक समझे तो वे इन मर्यादाओं में परिवर्तन या संशोधन करे और आवश्यक समझे तो कोई नई मर्यादा करें। पूर्व मर्यादाओं में परिवर्तन या संशोधन हो अथवा कोई नई मर्यादा का निर्माण हो, उसे सब साधु-साध्वियाँ सहर्ष स्वीकार करें, इस धारा के आधार पर ही अढ़ाई सौ वर्ष से अधिक कालखंड में समय-समय पर तेरापंथ धर्मसंघ में मर्यादाओं में परिवर्तन और संशोधन भी होते रहे हैं। यह आचार्य भिक्षु की दूरदर्शी सोच का ही परिणाम है कि उन्होंने संघ को रूढ़िग्रस्त नहीं बनने दिया, नवीनता के लिए सदा द्वार खुले रखे।
तेरापंथ धर्मसंघ आज जिन ऊँचाइयों को छू रहा है, उसके पीछे एकमात्र कारण ये मर्यादाएँ हैं। मर्यादा की नींव पर खड़े इस तेरापंथ को कहीं तनिक भी खतरा नहीं है। व्यक्ति अपने जीवन की सुरक्षा चाहता है तो उसे मर्यादा को बहुमान देना चाहिए, जो बंधन मानकर मर्यादा की अवहेलना करता है वह स्वयं ही अवहेलना का पात्र बन जाता है।
पदयात्रा करते समय सड़क की एक ओर गाड़ियों के लिए एक सुंदर वाक्य लिखा था-‘व्यक्ति मर्यादित, जीवन सुरक्षित’ इस वाक्य में एक प्रेरणा छिपी है कि व्यक्ति जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसे मर्यादा में रहना चाहिए। रेलगाड़ी पटरी पर चलती है उसे कोई खतरा नहीं होता, वह थोड़ी भी अगर इधर-उधर हो जाती है तो दुर्घटना घटित हो सकती है। नदी दो तटों के बीच में बहती है, बड़ी उपयोगी लगती है, उसमें भी जब बाढ़ आ जाती है, अपनी मर्यादा में नहीं रहती है तो वह प्रलयंकारी रूप धारण कर लेती है, इसी तरह सर्दी, गर्मी, वर्षा, हवा आदि प्राकृतिक स्थितियाँ भी मर्यादा के अनुरूप होती है तो लोगों को आरामदायक लगती है, सीमा तोड़ने पर ये भी परेशानी का कारण बन जाती है।मर्यादा को भार नहीं, व्यक्ति गले का हार समझे।
हार बंधन नहीं होता, वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाने वाला होता है। मर्यादा को बंधन नहीं, मुक्ति का द्वार समझें। स्वतंत्रता वरदान है किंतु स्वच्छंद व्यक्ति के लिए वह अभिशाप भी है। हम स्वतंत्र बनना चाहते हैं तो मर्यादा को जीवन में बहुमान दें। हम भाग्यशाली हैं, जिन्हें आचार्य भिक्षु द्वारा मर्यादाओं का मंत्र मिला। चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य ने उन मर्यादाओं को महोत्सव का रूप दे दिया। हर वर्ष माघ शुक्ला सप्तमी को वह महोत्सव वर्तमान आचार्य की सन्निधि में आयोजित होता है।
मर्यादा का महोत्सव अमर रहे, हम सदा यह मंगलकामना करते हैं।

- शासनश्री मुनि विजय कुमार

अनुशासन का प्रतीक मर्यादा महोत्सव

मर्यादा वह मशाल है जो जिंदगी को जगमगा देती है, मर्यादा वह पतवार है जो जिंदगी की नाव को उस पार पहुँचा देती है, मर्यादा वह उष्मा है जो शीतकाल की ठंडी बयार को सहने की क्षमता प्रदान करती है। मर्यादा वह कथ्य है, जो उच्छृंखल वृत्तियों पर नियंत्रण करती है। मर्यादा का अर्थ व्रत, नियम, संकल्प, संविधान आज की भाषा में कानून होता है। कोई भी सभा, संस्था, समाज, संघ का नियम के अभाव में समुचित विकास नहीं कर सकता, जहाँ समूह होगा वहाँ नियंत्रण होगा। आचार्यश्री हेमचंद्राचार्य जी ने मनुष्य के समूह को समाज कहा है। पशुओं के समूह को झुंड कहते हैं। मनुष्य चिंतनशील प्राणी है, उसमें नियंत्रण की क्षमता होती है, जहाँ समाज है वहाँ अनुशासन है, जहाँ संघ है वहाँ मर्यादा है।
अनुशासन व्यवस्था और मर्यादा में संघबद्ध साधना के अनिवार्य तत्त्व हैं, जहाँ साधना संघबद्ध होती है वहाँ अनुशासन जुड़ जाता है। आज्ञा से संचालित संघ ‘संघ’ होता है, शेष प्राणहीन अस्थियों का ढाँचा मात्र है। अनुशासन और विनय के आधार पर धर्मसंघों ने बहुत विकास किया है। विकास की उसी श्रृंखला में एक नाम है-तेरापंथ। तेरापंथ के आद्य प्रणेता आचार्य भिक्षु थे, वे अनुशासन के सूत्रधार थे, तेरापंथ के संस्थापक थे, मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उन्होंने अपने संघ को सुदृढ़ बनाने के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया, संघ की एकता व अखंडता के लिए समय-समय पर विविध विधान बनाए, उन मर्यादाओं का निर्माण तेरापंथ धर्मसंघ का संविधान बन गया।

आचार्य भिक्षु ने मर्यादाओं का निर्माण ही नहीं किया, उन्होंने स्वयं मर्यादित जीवन जीया, वे संगठनकार थे, संगठन को मजबूत बनाने की अद्भुत क्षमता उनमें थी, कानून बनाने वाले बहुत होंगे अपितु उस पर चलने वाले विरले ही मिलेंगे, प्रजातंत्र की पावन प्रणाली में नेताओं की परिभाषा बदलती जा रही है, वह कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं, ये नेता बिना तेल के दीपक कब तक जलाएँगे, हर शासक का जीवन निज पर शासन फिर अनुशासन होना चाहिए। २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है, उस दिन भारत वर्ष का संविधान लागू हुआ, संविधान के साथ अणुव्रत को जोड़ दिया जाता तो देश का कायाकल्प हो जाता, देश की एकता व अखंडता में जो विघटन की स्थिति पैदा हो रही है, उसका एक कारण है कानून का पूरा पालन नहीं किया जाना, पद की लोलुपता भी, आकांक्षा भी संगठन में विघटन उत्पन्न करती है, कुछ स्वार्थी तत्त्व भी ऐसे हैं जो राष्ट्रहित को गौण करते हैं, पद एक है और उम्मीदवार अनेक हैं, वहाँ स्थिति जटिल हो सकती है। आचार्य भिक्षु ने पदलिप्सा को समाप्त करने के लिए एक नियम बनाया, कोई भी साधु-साध्वी पद का उम्मीदवार नहीं बन सकता, शिष्य-शिष्याएँ नहीं बना सकता, पद की आकांक्षाओं पर नियंत्रण स्थापित हो गया, यह तेरापंथ धर्मसंघ की केंद्रीय मर्यादा है, शेष संविधान इसकी परिधि में है। ‘संघे शक्ति कलियुगे’। कलियुग हो या सतयुग, शक्ति संघ में होती है, यह एक आचार्य के नेतृत्व को स्थापित करने वाली मर्यादा है, एक सूत्र का सूचक है यह गुरू और एक विधान वाला धर्मसंघ है, तेरापंथ धर्मसंघ की आधारशीला है-मर्यादा।

मर्यादा और अनुशासन की दृष्टि से आज का वातावरण विषाक्त बनता जा रहा है, कोई किसी के अनुशासन में चलना नहीं चाहता, अनुशासन को बंधन मानने वाला, उसका मूल्याकंन नहीं करता उसके अर्थ नहीं समझता। एक युवक शादी करके घर आया, पत्नी नहीं थी, उसने खाना बनाया, भोजन में घी का प्रयोग अधिक किया। युवक भोजन करने बैठा, सब्जी में घी ज्यादा था।

पत्नी पढ़ी-लिखी बी.ए. पास थी। वह अंग्रेजी भाषा में अनभिज्ञ था, उसने अपनी पत्नी से कहा कि घी उपयोग कम किया करो, पत्नी कान पकड़कर बोली, सॉरी! पति ने चिल्लाते हुए कहा-सॉरी-सॉरी कर रही हो तुझे क्या पता कमाई गोरी होती है वह युवक समझ नहीं सका सॉरी का अर्थ क्या है? उसने सॉरी का अर्थ सरल आसान समझा, जब तक मर्यादा का अर्थ नहीं समझोगे, उसका पालन नहीं करोगे, मर्यादा से लाभान्वित नहीं हो सकते। मर्यादा ह्रदय से कृत होती है, मर्यादा विकास के द्वार खोलती है, उससे व्यक्ति सफलता के शिखर पर आरोहण कर सकता है, मर्यादाओं के प्रति सदन आस्थाओं का विषय उपक्रम है। मर्यादा महोत्सव विक्रम संवत् १९२१ माघ शुक्ला सप्तमी को प्रथम मर्यादा महोत्सव जयाचार्य जी ने बालोतरा राजस्थान में आयोजित किया था, तब से यह दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है, इस समय मर्यादा पत्र का वाचन संविधान का संशोधन तथा नई मर्यादाओं का निर्माण भी होता है, देश-विदेशों से हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ एवं सैकड़ों साधु-साध्वियाँ समण-समणियाँ एकत्रित होते हैं। साधु-साध्वियाँ गुरू के समक्ष अपने अतीत का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। आचार्य श्री चातुर्मास की घोषणा करते हैं, साधु-साध्वियाँ खड़े होकर इसे विनम्रतापूर्ण शिरोधार्य करते हैं। विनय, अनुशासन, समर्पण का अनूठा दृश्य होता है। मर्यादा महोत्सव अनुशासन का प्रतीक है।

वर्ष २०१९ आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में मर्यादा महोत्सव विराट रूप में मनाया गया, तमिलनाडु के कोयंबटूर की पावन धरा पर आयोजित समारोह में आचार्यश्री चातुर्मासों की घोषणा की, लोगों में उत्सुकता थी, हमें किसका पावन प्रवास प्राप्त होने वाला है, भक्तगण भी अपनी भावना आचार्यश्री के समक्ष रखते हैं, उनकी प्रार्थना गुरूदेव ध्यान से सुनते हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। गुरू की नजर पाकर श्रावक-श्राविका निहाल हो जाते हैं। आचार्यश्री भिक्षु की मौलिक मर्यादाओं का वाचन तथा उच्चारण होता है। साधु-साध्वियाँ खड़े होकर समवेत स्वरों में उच्चारण करते हैं, सारा कार्यक्रम व्यवस्थित, अनुशासित, सुचारू ढंग से संपादित होता है। वर्तमान युग में मर्यादा अनुशासन की अत्यंत अपेक्षा है, हर व्यक्ति, हर परिवार, हर समाज मर्यादा में रहे, अनुशासित रहे, मर्यादित जीवन जीए, यह मर्यादा का आव्हान है। मर्यादा प्राण है, लोग सोचते हैं मर्यादा से हमारी आजादी खो जाती है, ज्यादा हमारे जीवन में जड़ता के बीज बो जाती है, अपने छोटे से जीवन का छोटा-सा अनुभव यह है जो मर्यादा को स्वीकारता है उसका जीवन सुंदर हो जाता है।

- शासनश्री साध्वी कुंथुश्रा

वीतराग विज्ञान यथार्थ धर्म

वाग्वर अञ्चल के जैन-अजैन में सद्भावना युक्त भीलूड़ा ग्राम में प्रवासरत प.पू. साध्याय तपस्वी वैज्ञानिक श्रमणाचार्य श्री कनकनन्दी गुरूवर ससंघ निश्रा में आचार्य श्री के वैज्ञानिक शिष्यों ने विशेष अध्यात्मिक विज्ञान का बोध प्राप्त किया। प्रात:कालीन सत्र में आचार्य श्री ने क्वाण्टम, स्ट्रींग, प्रकाश, सिद्धान्त, अनन्त सप्तभंगी, ज्ञान चेतना आदि बहुआयामी विषयों का समीक्षात्मक बोध देते हुए कहा कि विज्ञान सत्य पथ पर होते हुए अभी पूर्ण सत्य को प्राप्त नहीं किया है। गुरूदेव ने शाश्वतिक सत्य का ज्ञान देते हुए कहा कि वीतराग विज्ञान ही यथार्थ धर्म है।
माध्याह्निक सत्र में उपस्थित ग्राम व अंचल के भक्त-शिष्यों व वैज्ञानिक जनों ने भी गुरूदेव के प्रति श्रद्धा भक्ति भाव अभिव्यक्ति के माध्यम से गुरूदेव के आध्यात्मिक गुणों की पूजा प्रशंसा अनुमोदना की। क्वांटम मैकेनिक्स के वैज्ञानिक डॉ.पी.एम. अग्रवाल ने कहा कि गुरूदेव श्री संघ की पवित्र लक्ष्य युक्त उत्तम साधना आदर्श है एवं आपके साहित्य से अध्यात्म की गहराई मिल रही है। कृषि वैज्ञानिक डॉ.एस.एल. गोदावत ने आचार्य श्री को शान्त, उदार, अद्वितीय सन्त प्रवर बताते हुए आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में समयसार के स्वाध्याय का संस्मरण सुनाते हुए प्रभावी स्वरचित आध्यात्मिक कविता सुनाई, जिसे सुनकर आचार्य श्री संघ व श्रोता, भाव विभोर हुए। वैज्ञानिक डॉ. एन.एल. कच्छारा ने विश्वधर्म संसद के शिखर सम्मेलन का संस्मरण सुनाया, उनकी स्वरचित कृति “Living system in jainism” का विमोचन भी आचार्य श्रीसंघ के कर कमलों से हुआ। आचार्यश्री सृजित साहित्य के ग्रंथालय के कार्यकत्र्ता छोटूलाल चित्तौड़ा ने भी अपने भाव व्यक्त किए। अन्त में सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री ने क्रान्तिकारी अध्यात्म बोध देते हुए कहा कि मैं स्वयं अमृत कलश हूँ सम्पूर्ण धर्म-पञ्च परमेष्ठी स्वयं में स्थित है, शक्ति की अभि-व्यक्ति होने पर शाश्वत सुख प्राप्त होता है। गुरूदेव ने बताया जो स्व-आत्मा को नहीं जानते, ऐसे न्यायाधीश, दार्शनिक, वैज्ञानिक का भी आध्यात्मिक आयाम वृक्ष-कीट पतंग जैसा ही है। गुरूदेव ने कहा कि स्व उद्धार से पर उद्धार भी सहज होता है। उपस्थित भव्य जीवों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपकी भावना-भक्ति-शक्ति उत्तरोत्तर वृद्धि हो, शाश्वत आनन्द प्राप्त हो, ऐसी मंगल भावना करता हूँ।

-श्रमण मुनि सुविज्ञसागर

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