Author: Bijay Kumar Jain

भारतीय भाषा अपनाओ अभियान की सफलता के लिए भारतीय भाषा 0

भारतीय भाषा अपनाओ अभियान की सफलता के लिए भारतीय भाषा

भारतीय भाषा अपनाओ अभियान आतंकवाद से अधिक खौफ अंग्रेजी का किसी देश को खत्म करने के लिए उसकी भाषा को ही खत्म करना काफी होता है, भाषा खत्म होने के बाद संस्कृति को कैसे बचाओगे? आज भारत में आतंकवाद से ज्यादा खौफ अंग्रेजी का है, यह राय एम.एल. गुप्ता (राष्ट्रीय भाषा समिति, राष्ट्रभाषा विभाग) ने व्यक्त की, मुंबई से निकली भारतीय भाषा सम्मानयात्रा मंगलवार २५ दिसम्बर २०१८ को पुणे पहुंची, महावीर प्रतिष्ठान में पुणेवासियों ने यात्रा का स्वागत किया। महावीर प्रतिष्ठान में आयोजित पत्रकार-वार्ता में उन्होंने ये बातें कहीं, यात्रा के आयोजक वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन ने सवाल किया कि हमारे देश में राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय मुद्रा है, तो फिर राष्ट्रीय भाषा क्यों घोषित नहीं की जाती? उन्होंने सरकार से हिंदी को जल्द से जल्द अधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा घोषित करने की मांग की। महावीर प्रतिष्ठान में आयोजित पत्रकार वार्ता के संयोजक विजय भंडारी ने कहा कि यह मुद्दा बहुत अहम है और इसकी मांग पूरे देशवासियों के जरिए होनी चाहिए। ‘जीतो’ के माध्यम से हम इस मुद्दे को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जरूर पहुंचाएगें। पत्रकार-वार्ता में डॉ. कल्याण गंगवाल, विजयकांत कोठारी, कांतीलाल ओसवाल, पूना मर्चेट चेंबर के पोपटलाल ओस्तवाल, रमेश ओसवाल, अजीत सेठिया, अरूण सिंघवी आदि उपस्थित थे। बतादें कि पहले मातृभाषा फिर-राष्ट्रभाषा का संदेश लेकर मुंबई से निकली यह यात्रा पुणे से आगे दक्षिण भारत, मध्य प्रदेश और आगरा होते हुए दिल्ली पहुंची। पुणे के पश्चात सातारा के श्री कुबेर विनायक मंदिर में भारतीय भाषा सम्मान यात्रा का दल शाम ६.३० बजे पहुंचा, वहां उपस्थित सभी प्रबुद्ध लोगों के सम्मुख भारतीय भाषाओं व हिंदी के महत्व को प्रतिपादित किया गया उपस्थित लोगों ने अच्छा प्रतिसाद दिया, उसी रात कराड स्थित श्री केसरिया तीर्थ धाम पहुंचकर रात्रि विश्राम किया गया। दिनांक २६ दिसंबर को प्रात: नाश्ता करने के पश्चात निपानी के लिए यात्रा दल ने प्रस्थान किया। दिनांक २६ दिसम्बर २०१८ को कर्नाटक स्थित निपानी पहुंचे। राष्ट्रभाषा प्रेमियों का स्वागत दिल्ली जाएगी और माननीय राष्ट्रपति जी का समय मिलने से निवेदन देगी कि सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान बढ़ाया जाए, भारत की एक राष्ट्रभाषा घोषित की जाए और भारत को भारत बोला जाए। भारतीय भाषा सम्मान यात्रा अपनी मंजिल की ओर… तत्पश्चात बेलगांव के भारतेश सेन्ट्रल स्कूल में रात्रि विश्राम किया किया। दिनांक २७ दिसम्बर को कुमटा के लिए प्रस्थान किया, नवग्रह मंदिर वरूर हुबली के पास विशाल मंदिर में आचार्य श्री गुणनंदी करीब ८० वर्ष पुराने गुरूकुल के संचालक श्री महावीर पाटिल ने किया। स्कूल के प्राध्यापक श्री राजेंद्र खोतजी ने एक सभा का आयोजन किया, जिसमें करीबन ५०० छात्रों ने भाग लिया, व्यवस्था अनुशासित करने के लिए गुरूकुल के शिक्षकों ने अपना कर्तव्य निभाया। मंच का संचालन श्री राजेन्द्र खोत जी ने किया और कहा कि आज का पावन दिन हमारी निपानी के लिए बहुत ही शुभ है, निपानी में भारतीय भाषा सम्मान यात्रा का आगमन हुआ है। ‘भारतीय भाषा अपनाओ अभियान’ की सफलता के लिए अनथक प्रयास वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक बिजय कुमार जैन ने मुंबई से किया है जो पुणे, सातारा, कराड होते हुए निपानी पहुंचे हैं, जिसमें राष्ट्रभाषा प्रेमी भारत के विभिन्न प्रांतों से पधारे हैं। बतादें की सम्मान यात्रा का उद्देश्य एकमात्र भारतीय भाषाओं को सम्मान दिलाना है यह यात्रा विभिन्न राज्य से होती हुई दिल्ली जाएगी और माननीय राष्ट्रपति जी का समय मिलने से निवेदन देगी कि सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान बढ़ाया जाए, भारत की एक राष्ट्रभाषा घोषित की जाए और भारत को भारत बोला जाए। भारतीय भाषा सम्मान यात्रा अपनी मंजिल की ओर… तत्पश्चात बेलगांव के भारतेश सेन्ट्रल स्कूल में रात्रि विश्राम किया किया। दिनांक २७ दिसम्बर को कुमटा के लिए प्रस्थान किया, नवग्रह मंदिर वरूर हुबली के पास विशाल मंदिर में आचार्य श्री गुणनंदी जी महाराज साहब का आशीर्वाद प्राप्त किया, यहां के कन्नड़ भाषी छात्रों को कन्नड़ में कहा कि पहले हमारी मातृभाषा, फिर हमें राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलना चाहिए, बच्चों ने पूछा कि क्या राष्ट्रभाषा कोई भी नहीं है ऐसा कैसे हो सकता है? हमने कहा कि आप कन्नड़ के साथ हिंदी पढ़ो, बच्चों ने जोरदार तालियों के साथ स्वागत किया और कहा कि अब हम हिंदी पढ़ेंगे, हिंदी सीखेंगे, हिंदी बोलेंगे, इसी दिन राष्ट्रप्रेमियों का दल दोपहर में कुमटा के गिब प्राइमरी स्कूल में छात्रों को हिंदी के बारे में संबोधित किया और उन्हें देश की हमारी कोई राष्ट्रभाषा नहीं इसके बारे में बताया। बच्चों ने राष्ट्रपति से निवेदन किया हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित कि जाए। यात्रा आगे प्रस्तान करते हुए रात्रि में मैंगलूर पहुंचा, मैंगलूर पहुंचते वक्त कुछ देर हो गई लेकिन मैंगलूर के राष्ट्रभाषा प्रेमियों ने दल का इंतजार रात्रि ९.१५ बजे तक किया, एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया था जहां पर वयोवृद्ध हिंदी सेवी भी उपस्थित थे, हिंदी के प्रति बातें लोगों ने सुनी, तालियों के साथ स्वागत किया और कहा कि भारत की एक राष्ट्रभाषा होनी ही चाहिए और बिजय कुमार जी जो आप का नारा है ‘पहले मातृभाषा-फिर राष्ट्रभाषा’ एक दिन पूरा राष्ट्र इस भावना का सम्मान करेगा और भारत सरकार हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान देगी, भारत को भारत कहेगी। आचार्य श्री विद्यासागर जी की भावना का सभी ने स्वागत किया और कहा कि आज भारत का एक संत बोल रहा है, एक दिन भारत के सभी संत समाज बोलेंगे, रात्री विश्राम कच्छी भवन में करवाया गया था, मैंगलूर में राजस्थानी संघ के अध्यक्ष अशोक धारीवाल का विशेष सहयोग रहा। दिनांक २८ दिसम्बर २०१८ को सुबह इडली-वड़ा सांभर और चाय का आनंद लेकर सभी केरल की ओर प्रस्थान कर गए व कोझीकोड पहुंचे, यहाँ की व्यवस्था राजू बाफना जी ने कल्याण जी आनंद जी पेढी में की थी, सभी ने भोजन कर स्थानीय लोगों से मिले, उन्हें ‘हिंदी बनें राष्ट्रभाषा’ अभियान के बारे में बताया, लोगों ने पूछा कि क्या हमारे भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, ऐसा कैसे हो सकता है,तत्काल स्थानीय रहवासी जयंत भाई ने गूगल में सर्च किया गुगल में उन्हें पता चला कि हिंदी मात्र ऑफिशियल लैंग्वेज है, बहुत ही दर्द हुआ, लोगों ने कहा कि बिजय कुमार जी हम आपके साथ है जैसा आप कहेंगे, हम करेंगे, हम भारी संख्या में ४ जनवरी को दिल्ली पहुंचेंगे। सभा की समाप्ति के बाद साथ चल रही नाटक मंडली की टीम के प्रमुख महेश राठी जी व टीम ने यात्रा के साथ चलने में असुविधा जताई कि हम आगे नहीं चल सकते, मुंबई वापसी की व्यवस्था करवाएं, उनकी मुंबई वापस की व्यवस्था कर दी गई। कारवां कोयंबतूर की ओर चल पड़ा। २९ दिसम्बर २०१८ का कोयंबतूर में राजस्थानी संघ जो ३६ कौम का एक संघ बना हुआ है जिसके अध्यक्ष सीए. श्री कैलाश जैन व मंत्री दीपक नाहटा ने सभी का स्वागत किया और कहा कि भारी संख्या में हम भी ४ जनवरी को दिल्ली में उपस्थित रहेंगे। २९ दिसंबर २०१८ को यात्रा दल सेलम पहुंचे, सेलम में सर्वप्रथम श्री दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विमल जी पाटनी व कार्यभार संभालने वाले श्री अजय जी ने सब का स्वागत किया और एक सभा का आयोजन किया गया, सभा में जब सभी को पता चला कि हमारे देश भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, सभी को काफी दुख हुआ, मलाल हुआ और अपने विचार व्यक्त किए कि बिजय कुमार जी आप आगे बढ़ें, हमारा तन-मन-धन के साथ आपको सहयोग रहेगा, सभी का धन्यवाद किया गया, सभी लोग वापस विश्राम स्थल पर आए और सुबह की तैयारी में व्यस्त हो गए। दिनांक ३० दिसम्बर २०१८ को चेन्नई के लिए प्रस्थान किया गया। तमिल हमारी मातृभाषा है हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा -तमिलनाडु निवासी दिनांक ३० दिसंबर २०१८ को यात्रा तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई पहुकोयंबतूर ंची, चेन्नई के पोरुर तीर्थ में सभा की व्यवस्था की गई थी, सभी ने वहां पर दोपहर के भोजन का आनंद लिया। सभा में उपस्थित लोगों ने कहा कि बहुत ही अच्छा काम है, तमिलनाडु की धरती और तमिलनाडु के निवासी हिंदी बने राष्ट्रभाषा अभियान का पूरा सहयोग करेंगे क्योंकि आप पहले मातृभाषा की बात कर रहे हैं तो इसमें तमिलनाडु का कहीं पर भी कोई विरोध नहीं रहेगा और कहा कि बहुत ही नेक और उत्तम कार्य है जो काम ७२ वर्ष पहले होना चाहिए था वह आज आप के नेतृत्व में हो रहा है इसके लिए हम सभी तमिलनाडु निवासी आपको धन्यवाद देते हैं। चेन्नई होते हुए यात्रा नेल्लोर पहुंची। तत्पश्चात विजयवाडा के लिए रवाना हुई। दिनांक ३१ दिसंबर २०१८ साल का अंतिम दिन सभी हैदराबाद पहुंचे, हैदराबाद में हिंदी मैत्री मंच के अध्यक्ष डॉ रियाज अंसारी व प्रोफ़ेसर विद्याधर जी ने यात्रा दल का स्वागत किया। सभा का आयोजन हिंदी विद्या मंदिर में किया गया था। भारी संख्या में शिक्षकों की उपस्थिति थी। अध्यक्षता डॉ अंसारी ने किया व डॉ रजनी ने आभार व्यक्त किया। सभा में उपस्थित शिक्षकों ने कहा कि जैन साहेब २०१९ में हिंदी राष्ट्रभाषा बनकर रहेगी ऐसी हमारी शुभकामनाएं हैं। सभा का समापन रात्रि ८:३० बजे राष्ट्रगान के साथ हुआ। दिनांक १ जनवरी २०१९ वर्ष का प्रथम दिन हम सभी हैदराबाद से आदिलाबाद पहुंचे। अदिलाबाद में स्वागत स्थानीय निवासी बजरंग लाल जी अग्रवाल के यहाँ हुआ। सर्वप्रथम सभी ने दोपहर का भोजन किया। सभा में चर्चा हुई कि क्यों आज तक हमारे देश की राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है,सभी को जानकारी दी गई और इंडिया का विस्तृत रूप बताया गया तो सभी ने जोरदार स्वर में कहा कि अब हम हमारे देश को भारत कहेंगे, हमारे देश का नाम भारत है और इसका प्रचार-प्रसार हम जोरदार तरीके से करेंगे, हमारे व्यापार में हर जगह हम भारत ही लिखेंगे, भारत ही कहेंगे, भारत ही बोलेंगे, सभा का समापन राष्ट्रगान के द्वारा हुआ। दिनांक १ जनवरी २०१९ वर्ष का प्रथम दिन संध्या को हम सभी नागपुर पहुंचे, नागपुर में श्री दिगंबर जैन भवन में सभा का आयोजन किया गया था। सभा में भारी संख्या में राष्ट्रभाषा प्रेमी उपस्थित हुए थे,सभी लोगों ने जानना चाहा कि आज तक हमारी भारत की राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पाई? जब उन्हें विस्तृत जानकारी मिली तो सभी को दुख भी पहुंचा और आज तक की अनभिज्ञता के लिए शर्मिंदा भी हुए ,सभी ने यह भी कहा कि कैसे हमारे देश की राष्ट्रभाषा बने बिजय कुमार जी, हमें बताइए कि हमें क्या करना है, हम सभी, हर प्रकार से आपके साथ हैं, हम ही नहीं, एक दिन पूरा देश आपके साथ होगा, हम सभी तन मन से आपके अभियान का समर्थन करते हैं और विश्वास दिलाते हैं कि आपका ये अभियान सफल होकर रहेगा। सभा में उपस्थित राष्ट्रभाषा प्रेमियों ने आचार्यश्री विद्यासागर जी को नमोस्तु करते हुए कहा कि यह अभियान आचार्य श्री का नहीं एक दिन पूरे देश का होगा, आचार्य श्री का सपना जरूर पूरा होगा। सभा में उपस्थित सर्वश्री नरेश पाटनी, जय कुमार जैन, किशोर कुमार जैन, हैदराबाद अधीर जैन,अरुण पाटोदी, सुमत लल्ला जैन, हस्तीमल कटारिया, अजय कासलीवाल,हुकुमचंद सेठी,रतन लाल गंगवाल, अशोक कुमार जैन,अभय जैन, विनय वीरेंद्र जैन, निकेश विमलचंद जैन, कमल कुमार बडजाते, दीपक जवेरी,राजकुमार जैन, अनीश जैन (पत्रकार) डा सुश्री रीचा जैन आदि की उपस्थिति रही सभा का समापन राष्ट्रगान से हुआ।२ जनवरी २०१९ को नरसिंहपुर पहुंचे, मध्यप्रदेश का वो क्षेत्र जहाँ हमारा स्वागत ही नहीं हुआ, छात्रों से साक्षात्कार का मौका भी मिला, जब बच्चों को बताया कि हमारे देश की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है जो कि होनी चाहिए, बच्चों ने जोरदार आवाज में कहा कि क्या हमारा देश आजाद नहीं है, हमारे देश की आवाज कौन सी है? नरसिंहपुर के साथियों ने हमारा सम्मान कर दोपहर के भोजन के साथ सभी ने विदा किया और कहा कि नरसिंहपुर का बच्चा-बच्चा आपके साथ है। दिनांक २ जनवरी २०१९ को सभी उत्तर प्रदेश स्थित खुरई पहुँचे, जहाँ आचार्य श्री विद्यासागर जी प्रवास के दौरान विराजमान थे, सभी ने आचार्यश्री के दर्शन किए, हमने भारतीय भाषा सम्मान यात्रा के बारे में विवरणों के साथ बताया, आचार्य श्री ने कहा कि दो बातों का ख्याल रखना, हिंदी बने राष्ट्रभाषा आंदोलन अहिंसा पूर्वक हो,जैनों का आंदोलन नहीं जन-जन का आंदोलन बने,हमने कहा कि आचार्य श्री आपके निर्देशों का पालन होगा और विश्वास दिलाते हैं कि जब तक भारत सरकार हिंदी बनें राष्ट्रभाषा पर निर्णय नहीं ले लेती, हम दिल्ली से बाहर नहीं जायेंगे। आचार्यश्री ने दोनों हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया और कहा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। ३ जनवरी २०१९ को यात्रा ग्वालियर पहुंची, ग्वालियर के छात्रावास में हम सभी का स्वागत हुआ और भारी संख्या में उपस्थित छात्रों ने सम्मिलित आवाज में कहा कि राष्ट्रपति जी हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलवाइये और भारत को भारत बोलने के लिए हमें आशीर्वाद दीजिए, इस निवेदन को रिकॉर्डिग किया गया और यह प्रयास किया जायेगा कि यह निवेदन माननीय राष्ट्रपति जी भारत के हाथों सुपुर्द कर सकें। हमारी मुलाकात सत्यनारायण जी जटिया से भी हुई जो राज्यसभा के सदस्य भी हैं साथ ही राजभाषा विभाग के उपाध्यक्ष, उन्होंने कहा जैन साहब आपकी भावना बहुत अच्छी है, हिंदी को मैं भी सम्मान दिलाना चाहता हूं, मैं भी जैन हूँ आचार्य श्री विद्यासागर जी का भक्त हूँ लेकिन आपसे निवेदन करता हूं कि आपके पास जिद के साथ जुनून भी है कृपया जुनून को बरकरार रखें और जिद को छोड़ दें कारण यह है कि यह सिलसिला जारी रहेगा तो ही हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान मिल पाएगा, आदरणीय जटिया जी ने हमें मिठाई खिलाई और विदा किया। दिनांक ६ जनवरी २०१९ को जयपुर पहुंचे, यहां पर हमारे प्रिय मित्र व भाषा प्रेमी अरुण अग्रवाल जी के निवास स्थल पर हमने नाश्ता किया, अरुण जी को हमने बताया कि हमारा अभियान राजस्थान में पहले राजस्-थानी फिर अपनी राष्ट्रभाषा बने,साथ ही भारत को भारत बोला जाए, अरुण जी ने कहा कि बिजय कुमार जी मैं तो भाषा प्रेमी हूँ, आपका यह नारा पहले मातृभाषा फिर राष्ट्रभाषा का मैं पूर्ण समर्थन करता हूं और आपके कहे अनुसार हम जयपुर में नहीं पूरे राजस्थान में ३० जनवरी २०१९ को महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि पर हम मूक रैली का आयोजन करेंगे और सभी को बताएंगे कि ‘राष्ट्रभाषा बिना भारत गूंगा है’ विश्वास दिलाता हूं कि जैन साहब एक दिन पूरा भारत राष्ट्रभाषा के लिए आंदोलन करेगा, आपकी भावना का समर्थन करेगा। हिंदी बने राष्ट्रभाषा अभियान की सफलता के लिए हमने मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी के दर्शन किए सभी आवां पहुंचे वहां मुनि पुंगव श्रीसुधासागर जी के दर्शन हुए, सुधा सागर जी ने दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया कहा कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हो, उसके बाद हमने मुनिश्री निष्कंप सागर जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया, क्षुल्लक श्री १०५ धैर्य सागर जी महाराज ने कहा कि आपको २६ जनवरी के पूर्व संध्या के पहले जब आदरणीय राष्ट्रपति जी का उद्बोधन होता है उसके पहले भारत भर के हर कलेक्टर-एसडीएम के पास राष्ट्रभाषा बने अभियान का पत्र देना चाहिए, आदरणीय राष्ट्रपति जी के नाम, ताकि उनके उद्बोधन के पहले यह विषय भी शामिल हो जाए, साथ ही उन्होंने कहा कि आप लोगों को इस अभियान से जितने भी धर्म भारत में है उन सभी के गुरु भगवंत को व बड़े सामाजिक पद पर बैठे अध्यक्षों से संपर्क कर उन सभी को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए ताकि ‘हिंदी बने राष्ट्रभाषा’ अभियान सफल हो जाये, तत्पश्चात् हमने क्षुल्लक श्री १०५ गंभीर सागर जी महाराज के दर्शन किए,आशीर्वाद लिया, संध्या का भोजन कर आंवा से प्रस्थान कर गए। श्री १००८ मुनिसुव्रत नाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र स्वस्तिधाम जहाजपुर में दिनांक ६ जनवरी २०१९ को हम सभी परम पूज्य विदुषी लेखिका आर्यिका शिरोमणि श्री १०५ स्वस्ति भूषण माताजी के दर्शन किए, हमने आर्यिका श्री को बताया कि आज तक हमारी कोई राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है और हमारे भारत का नाम भारत होना चाहिए, इस निवेदन को सुनते ही आर्यिका श्री ने कहा कि बहुत ही बढ़िया काम कर रहे हो, मेरी आपको शुभकामनाएं हैं सफलता न मिलने पर नए-नए रास्ते चुनना, सफलता जरूर मिलेगी, यह मेरा आशीर्वाद है मैं अब अपने प्रवचन में भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिलाने का निवेदन करती रहूंगी, अपने सभी श्रावकगणों से, आर्यिका श्री का आशीर्वाद लेकर हम केसरिया तीर्थ की तरफ आगे बढ़े। दिनांक ७ जनवरी २०१९ को हम सभी श्री जैन श्वेतांबर मंदिर पावागढ़ तीर्थ पहुंचे वहां हमारे दर्शन मुनि श्री पूर्णचंद्र विजय जी महाराज साहब, जो वल्लभ समुदाय से आते हैं, उनके दर्शन किए उन्होंने कहा की बहुत ही अच्छे विचार है, देश की अपनी एक राष्ट्रभाषा तो होनी ही चाहिए हमारे देश का नाम तो भारत है, मैं पूर्ण रूप से समर्थन करता हूं और कुछ ही दिनों में बल्लभ समुदाय से मैं इस भावना का परिचय करवा दूंगा, उन्होंने यह भी कहा कि आप बड़ौदा निवासी नीरज भाई जैन अधिवक्ता से संपर्क करें वह भी इसी विचार से हैं और आपका साथ भी देंगे, समर्थन भी देंगे हम सभी ने उनके दर्शन आशीर्वाद लिया, मांगलिक लिया और मुंबई की तरफ आगे बढ़े। रास्ते में लोगों की तबियत खराब होने लगी, ड्राईवर मंगेश की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब हो गयी हम सभी ने विचार किया कि बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, बड़ौदा, सूरत की यात्रा कमी अगले बार करेंगे, हम सभी को जल्द ही मुंबई पहुंच जाना चाहिए, करीब ११.३० रात्री, ७ जनवरी २०१९ को हम सभी मुंबई पहुंचे। -जिनागम

क्या आप तिरंगे झंडे के बारे में जानते हैं? 0

क्या आप तिरंगे झंडे के बारे में जानते हैं?

तिरंगा प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना पिंगली वैकेयानन्द ने की थी और इसका वर्तमान स्वरूप २२ जुलाई १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी, इसे १५ अगस्त १९४७ और २६ जनवरी १९५० के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘तिरंगे’ का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफ़ेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ २ और ३ का है। सफ़ेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें २४ तीलियां है। भारत के वर्तमान तिरंगे झंडे का इतिहास: प्रथम राष्ट्रीय ध्वज ७ अगस्त १९०६ को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और १९०७ में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार १९०५ में)। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं, यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था। तृतीय ध्वज १९१७ में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ.एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में ५ लाल और ४ हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्योस में इस पर बने सात सितारे थे। बायीं और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था, एक कोने में सफ़ेद अर्धचंद्र और सितारा भी था। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो १९२१ में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया। यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग, जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफ़ेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए। वर्ष १९३१ ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष रहा, तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफ़ेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था, तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी। २२ जुलाई १९४७ को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया, इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना। ध्वज के रंग: भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफ़ेद  पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। चक्र : इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रूकने का अर्थ मृत्यु है। ध्वज संहिता : २६ जनवरी २००२ को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यकालों और फैक्ट्री में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रूकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते हैं। बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, २००२ को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।

जैन तीर्थक्षेत्र समिति के नए अध्यक्ष 0

जैन तीर्थक्षेत्र समिति के नए अध्यक्ष

प्रभातचंद्र जैन मूलत २० जून १९५७ को जन्में प्रभातचंद्र जैन मूलत: उत्तर प्रदेश के कन्नौज के निवासी हैं, आपका जन्म व इंटर तक की शिक्षा कन्नौज में व स्नातकोत्तर की शिक्षा कानपुर में सम्पन्न हुई। लगभग ३०-३५ वर्षों से आप मुंबई के प्रवासी हैं, मुंबई में इत्र के व्यवसाय से जुड़े हैं, जो देश-विदेशों तक फैला है व पिछले १५ वर्षों से भवन निर्माण के व्यवसाय से जुड़े हैं।आप सामाजिक संस्थाओं में भी अग्रणी भूमिका निभाते है। दयोदय महासंघ (१०० गौशालाओं का समूह) में राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में ट्रस्टी व स्वर्गीय सवाईलाल स्मृति ट्रस्ट में संस्थापक ट्रस्टी के रूप में कार्यरत हैं। शैक्षणिक व परमार्थ संस्थाओं में ट्रस्टी संरक्षक व परम संरक्षक के रूप में सेवारत हैं। आप भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के कोषाध्यक्ष भी रहे हैं। आप परम श्रमण भक्त हैं। जीवदया के लिए तन-मन-धन से सदैव तत्पर रहते हैं। आपका पूरा परिवार जीवदया और दिगम्बर मुनियों की सेवा में सतत संलग्न रहता है। अनेकानेक असहाय निर्धनों को गंभीर बीमारियों के उपचार हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की है, साथ ही अन्य सामाजिक कार्यों में सदैव सक्रिय रहते हैं। १२५ वर्ष प्राचीन भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के हाल ही में श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी में चुनाव संपन्न हुए जिसमे आपको निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया गया, जिसके कारण ‘जिनागम पत्रिका’ ने आपसे संक्षिप्त बात की जिसके मुख्यांश इस प्रकार हूँ तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में आपकी क्या प्राथमिकताएँ हैं तीर्थ सबके हैं, सबके लिए हैं, मेरा प्रयत्न होगा कि हम एक साथ-एक स्वर में तीर्थ संरक्षण की दिशा में कार्य करें और आगे बढ़ें, अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में, मैं अपने सभी सहयोगी पदाधिकारियों के साथ सभी गुरुओं का आशीर्वाद लेकर जो भी जरूरी होगा, वह तीर्थक्षेत्रों के विकास के लिए कार्य करूँगा। मेरा प्रयत्न होगा कि : १. पंथवाद से परे होकर सभी तीर्थभक्तों में समन्वय और सौहार्द स्थापित करना। २. न्यायालयों में लंबित तीर्थक्षेत्रों संबंधी विवादों को समाप्त करने हेतु विभिन्न पक्षों से संवाद करना। ३. तीर्थक्षेत्रों पर शासकीय एवं सामाजिक सहयोग से मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करना। ४. सभी प्रमुख तीर्थ क्षेत्रों पर सी.सी.टी.वी. कैमरा लगवाना और उन्हें इंटरनेट के माध्यम से जोड़ना। ५. तीर्थक्षेत्रों की जानकारी, इतिहास को संरक्षित करना। जैन एकता के संदर्भ में आप क्या करना चाहते हैं मैं चाहता हूँ कि दिगम्बर और श्वेताम्बर मिल जुल कर जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करें और एकता की नई मिसाल कायम करें। दोनों सम्प्रदायों के गणमान्य व्यक्ति मतभेद के विषयों पर खुलकर बातचीत करें और उनका समाधान ढूंढने का प्रयास करें तो हम जैन धर्म को नयी ऊंचाइयों पर ले जा सकेंगे, हमारी जन-संख्या बहुत कम है, यदि हम आपस में लड़ेंगे तो हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा, इसलिए मेरा प्रयास होगा कि आपसी संवाद से समाज में भाईचारे को बढ़ावा मिले, शुरुआत के लिए प्रमुख जैन उत्सवों पर हम सब दिगम्बर और श्वेताम्बर मिलकर आयोजन करें। हिंदी राष्ट्रभाषा बने इसके संदर्भ में आपके विचार क्या हैं, कृपया अवगत कराए ‘हिंदी’ तो राष्ट्रभाषा पहले से ही है पर दुर्भाग्य से संविधान में राष्ट्रभाषा जैसी कोई मान्यता ‘हिंदी’ को नहीं मिली है पर आम देशवासी ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा ही मानता है, कुछ राजनेताओं ने अपने राजनैतिक लाभ के लिए ‘हिंदी’ और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच अनावश्यक विवाद खड़े किए हैं पर मुझे उम्मीद है कि धीरे-धीरे ये लोग ठंडे पड़े जाएंगे और नयी पीढ़ी ‘हिंदी’ के प्रति अपनी सोच बदलेगी, दक्षिण भारत में आज बहुत संख्या में बच्चे ‘हिंदी’ को एक विषय के रूप में चुन रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण है, जैसा कि हमारे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हमेशा कहते हैं कि यदि भारत की संस्कृति और विरासत को बचाना है तो हमें सबसे पहले बच्चों की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा से करना होगा अन्यथा आने वाली पीढियां पूरी तरह से पाश्चात्य सभ्यता में ढल जाएगी। भारत सरकार को दक्षिण के राज्यों के हिंदी पर विवाद खड़े करने वाले नेताओं को विश्वास में लेकर ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा घोषित करने के लिए कदम उठाने चाहिए, साथ ही हमारे देश का नाम सभी भाषाओं में केवल भारत ही लिखा-पढ़ा और बोला जाना चाहिए और अंग्रेजों की गुलामी के प्रतीक इण्डिया नाम को हमेशा-हमेशा के लिए भारत कर देना चाहिए। – जिनागम भारतीय भाषा सम्मान यात्रा की सफलता के लिए शांति विधान का आयोजन दिनांक ८ दिसंबर २०१८ को भारतीय भाषायी जैन परिवार के सदस्यों ने मुंबई के बोरीवली स्थित त्रिमूर्ति पोदनपुर मंदिर में शांति विधान का आयोजन किया जो प्रख्यात पंडित जैन गजट साप्ताहिक के कार्यकारी संपादक भरत काला के मार्गदर्शन में हुआ। पंडित श्री भरत जी ने कहा कि आपकी इच्छा ‘हिंदी बनें राष्ट्रभाषा’ और इंडिया को भारत को कहा जाए सफल होगा यह मेरा ही नहीं सभी संतों का आशीर्वाद आपके साथ है। शांति विधान में श्री बिजय कुमार जैन ‘हिंदी सेवी’ वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक, श्रीमति संतोष जैन, प्रिया जैन, पायल जैन, अमित जैन, कमल जैन, बेला जैन ने लाभ लिया। जय भारत जय भारतीय संस्कृति बिजय कुमार जैन ‘हिंदी सेवी’

जैन एकता के पुरोधा सज्जन राज मेहता समाजरत्न से सम्मानित 0

जैन एकता के पुरोधा सज्जन राज मेहता समाजरत्न से सम्मानित

चेन्नई श्री जैन दादावाड़ी आयनावरम के प्रांगण में जैन दिवाकर्या मालवसिंहनी पूज्य कमलावती म. सा. की सुशिष्या ज्योतिष चन्द्रिका अनुष्ठान आराधिका डॉ पुज्य कुमुद लता जी आदि ठाणा चार के पावन सानिध्य में जगत वल्लभ जैन दिवाकर चौथमलजी म.सा.की १४२ जन्म जयन्ती पर पंच दिवसीय आयोजन तप-त्याग-जप-अनुष्ठान एवं मानव सेवा के रूप में मनाया गया|इस अवसर पर निस्वार्थ भाव से समाज सेवी श्री जैन महासंघ चैनई के अध्यक्ष सज्जन राज मेहता को समाजरत्न सम्मान से माननीय मुख्य अतिथि राज्यपाल तामिलनाडू श्री बनवारी लाल जी पुरोहित तथा गुरू दिवाकर कमला वर्षावास समिती के अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों के करकमलों द्वारा राष्ट्रीय महामंगलकारी अनुष्ठान समिति से सम्मानित किया गया, इसी के साथ श्री ऑल इन्डिया श्वेताम्बर स्थानक वासी जैन कान्फ्रेन्स महिला शाखा पूर्व राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष कमला सज्जन राज मेहता जैन द्वारा लिखित, संकलित पुस्तक ‘सफलता का मार्ग’ आगम ज्ञान का विमोचन माननीय राज्यपाल तामिलनाडू श्री बनवारी लाल जी पुरोहित तथा गुरू दिवाकर कमला वर्षावास समिती के पदाधिकारों ने किया, महासति जी कोकिल कंठी महाप्रज्ञाजी ने बड़ी मधुर आवाज में राज्यपाल जी का स्वागत एवं गुरू भक्ति का परिचय दिया, महासति जी कुमुदलता जी ने गुरूदेव के जीवन चारित्र को दर्शाया, माननीय राज्यपाल जी ने विभिन्न दृष्टान्त देकर संत सति के त्याग तपमय महान जीवन की अनुमोदना करते हुए सभी को सदाचार से जीवन जीने की प्रेरणा दी। तालेड़ा परिवार की ओर से भोजन की व्यवस्था की गई थी, पद्म कीर्ति जी म. सा. के अथक प्रयास से वभिन्न भाषाओं में अनेक कलाकारों ने गुरूदेव की जन्म जयन्ति की बधाइयां दी। मंच का संचालन मंत्री हस्ती जी खटोड़ ने किया। मंगल पाठ के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । स्टेला मॉरिस कॉलेज द्वारा भारतीय भाषा सेवी सज्जनराज मेहता हुए सम्मानित चैन्नई: स्टेला मॉरिस कॉलेज चैन्नई हिन्दी विभाग,हिन्दी कश्मीरी संगम कश्मीर के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मान दिनांक ५-६ दिसम्बर को मुख्य अतिथि महामहिम माननीय राज्यपाल पश्चिमी बंगाल श्री केसरी नाथ त्रिपाठी, समारोह अध्यक्ष महामहिम माननीय राज्यपाल त्रिपुरा श्री कप्तान सिंह सोलंकी, समाज सेवी श्री जैन महासंघ चैनई अध्यक्ष सज्जन राज जी मेहता, देश-विदेश के अनेक हिन्दी साहित्यकार, स्टेला मॉरिस कॉलेज प्रिन्सिपल डॉ रोजी जोसफ, कॉलेज सचीव डॉ बीना बुदकी, प्राध्यापक डॉ श्रावणी भट्टाचार्य, आदि अध्यापक एवं साहित्यक रचनाकारों की उपस्थिति में आयोजन सम्पन्न हुआ, इस अवसर पर विभिन्न साहित्यकारों के साथ समाज सेवी सज्जन राज जी मेहता को राज्यपाल के कर कमलों द्वारा सम्मानित किया गया । रिश्तों के बेताज बादशाह हिंदुस्तानी परिवारों मेँ हर एक परिवार के अलग संस्कार होते है एक संस्कृति होती है जिसकी खुशबूसमाज़ में बिखरती है । पदम चंद जैन रिश्तों के ताने बाने नने में माहिर है वे देश विदेश जा कर लोगों से मिलते खुलते है अपनी संस्था में आने वाले हर रिश्ते व्यक्तिगत तौर पर परखते है फिर उसके बाद आपके बेटे और बेटी का रिश्ता उसकी विचारधारा के अनुरूप जीवन साथी का चयन करवाने मेँ मदद करते है। यह देश का एकमात्र सामाजिक सेल संगठन है जिससे देश के ख्यातनाम व्यक्तित्व, उद्योगपति, व्यवसायी, ज्येलर्स, प्रशासनिक अधिकारी समाजसेवी और प्रोफेशनल्स जुड़ेहुए है । हर परिवार की यहएक ख्वाहिश होती है की उनके बच्चों के लिए सुयोग्य जीवन साथी मिले और इस कार्य के लिए एक मित्र एक रिश्तेदार की तरह आपका सहयोग करने में पदम चंद जैन सदैव तत्पर रहते है। इंटरनेशनल जैन एंड वैश्य आँनंनिग्रइजेशन

युग निर्माता आचार्य श्री रामेश का होली चातुर्मास 0

युग निर्माता आचार्य श्री रामेश का होली चातुर्मास

आचार्य रामलाल आदिनाथ जैन श्वेताम्बर संघ के तत्वावधान विजयलब्धिसूरी जैन धार्मिक पाठशाला के प्रधानाध्यापक सुरेन्द्र गुरूजी के सुवर्ण सम्यक ज्ञानोत्सव के मुख्य लाभार्थी श्रीमती भंवरीबेन घेवरचन्द सुराणा परिवार वाले थे, सुरेन्द्र गुरूजी एवं देवकुमार जैन ने सुराणा परिवार के दिलीप सुराणा का सम्मान किया।युग निर्माता आचार्य श्री रामेश का होली चातुर्मास ब्यावर में युग निर्माता युग पुरुष महान् अध्यात्त्म योगी व्यसन मुक्ति के प्रणेता सामाजिक उत्कान्ति के उद्घोषक, ज्ञान और क्रिया के बेजोड़ संगम, नानेश पट्धर आचार्य प्रवर १००८ श्री रामलाल जी म.सा. का आगामी होली चातुर्मास सम्पुर्ण आगारों के साथ ब्यावर श्री संघ को प्राप्त हुआ है, इस खबर से पुरे राजस्थान व देश में खुशी की लहर व्याप्त हो गई है। साधुमार्गी जैन संघ के अध्यक्ष गजराज गोलेच्छा व मंत्री घुम्मीचन्द ओसवाल आदि ने आचार्य भगवन के प्रति कृतज्ञ भाव व्यक्त करते हुए देश के सभी धर्म प्रेमियों से पावन अवसर पर उपस्थिति की अपील की है। – महेश नाहटा जैन नगरी मोहनखेड़ा में निकली जीवदया यात्रा सांचोरी जैन युवक मण्डल ने किया आयोजन राजगढ़ (धार) म.प्र: श्री सांचोरी जैन युवक मण्डल मुम्बई द्वारा आयोजित ७०० यात्रियों का तीर्थ यात्रा संघ नागेश्वर, उज्जैन, श्री ह्रिंकारगिरि इन्दौर होते हुए श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पहुंचा, संघ ने २९ नवम्बर को मुम्बई से प्रस्थान किया था, यात्री संध्या भक्ति तथा आरती में शामिल हुए। यात्री संघ ने मोहनखेड़ा प्रांगण से जीवदया यात्रा निकाली, जिसके साथ लापसी हरी घास, सब्जीयां, गुड़ आदि खाद्य सामग्री थी, यह यात्रा श्री राजेन्द्रसूरि कुन्दन गौशाला पहुंची। प्रथम गौपूजन का लाभ झाब निवासी शा. तिलोकचंदजी मगनाजी ने लिया, गौपूजन के पश्चात् गायों तथा अन्य पशु पक्षियों को आहार दिया गया, यात्रियों ने जीवदया हेतु सहयोग राशि दी। श्री विद्याचन्द्रसूरि चौक में बने पाण्डाल में श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट द्वारा यात्रियों का स्वागत किया गया। साध्वी श्री प्रमितगुणाश्री जी म.सा., साध्वी श्री विरागयशाश्री जी म.सा. ने मंगलाचरण का श्रवण कराया। मेनेजिंग ट्रस्टी श्री सुजानमल सेठ ने स्वागत भाषण देते हुये बतलाया कि वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में तीर्थ में विभिन्न गतिविधियां जैसे गौशाला, चिकित्सालय, स्कूल, गुरुकुल आदि चल रही है, ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्टरनेशनल स्कूल में एक होस्टल का निर्माण प्रारम्भ हो गया है, आगामी १३ जनवरी को गुरु सप्तमी का भव्य आयोजन होने वाला है, आपने सभी को इस आयोजन में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया । पेढ़ी द्वारा यात्रा संघ के मुख्य सहयोगी श्री चून्नीलाल जी चंदन, अध्यक्ष प्रकाश मुणत व सांस्कृतिक सचिव सुमेरमल मेहता का बहुमान मेनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ, ट्रस्टी संजय सर्राफ, सर्वश्री कमलेश पांचसौवोरा, बाबुलाल नैनावा, दिलीप पूराणी, नरेन्द्र भण्डारी, दिलीप भण्डारी आदि ने किया, इस अवसर पर प्रबंधक प्रीतेश जैन, महेन्द्र जैन आदि उपस्थित थे, कार्यक्रम का संचालन श्री दिलीप पुराणी ने किया। महिला सशक्तीकरण एवं समाज सेवा को समर्पित विंटर कार्निवल आत्म तरूणी मंडल, किचलु नगर, लुधियाना की ओर से विंटर कार्नीवल-२०१८ सतलुज क्लब सिविल लाईन्ज़ में आयोजित किया गया। आत्म तरूणी मंडल की प्रधान मोनिका जैन की अध्यक्षता में सिविल लाईन्ज़ के जैन स्थानक में मीटिंग का आयोजन किया गया, मोनिका जैन ने कहा ये प्रदर्शनी महिलाओं के सशक्तीकरण एवं समाज सेवा को समर्पित थी, आज महिलाओं का वर्चस्व किसी से छुपा नहीं, आज की महिलाएं उतनी कमजोर नहीं, आज महिलाओं का शोर अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी नजर आता है, हमारा इस प्रदर्शनी का मकसद, महिलाएं अपनी उर्जा को पहचाने व निखारे, आज लुधियाना को स्मार्ट सिटी बनाने का जो द़र्जा मिला है, वो महिलाओं के अनथक प्रयास से संभव हुआ है, महिलाएं भारत के प्रधानमंत्री के स्वच्छ अभियान का हिस्सा बनी है, विंटर कार्नीवल-२०१८ महिला विंग की कन्वीनयर रूची, मोनिका, समता जैन ने अपने विचार रखे कार्यक्रम के मुख्य सहयोगी नीलम जैन कंगारू ग्रुप, वीना जैन के.जैन, कमल जैन (सोना फैरो), नीतू जैन, सोनल जैन आदि परिवार अपने कर कमलों से कार्यक्रम की शोभा बढाई। कार्यक्रम में प्रवेश पास के साथ था। कार्यक्रम महिलाओं को आत्म निर्भर एवं सशक्त बनाने हेतु आयोजित किया गया था, विशेष अनुरोध उन बुद्धिजीवी महिलाओं से किया गया था जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। कार्यक्रम में मुख्य आर्कषण हर एक घंटे बाद लक्की ड्रा, तम्बोला, स्वादिष्ट व्यंजन, बच्चों के लिए गेम्स के साथ-साथ बिग बम्पर में बड़े इनामों के सहयोगी जयपुर डायमंड, प्रदीप ज्युलर, तुलसी मनीश डायमंड एवं अन्य थे, इस मौके पर नीलम, मधु, लवली, नीता, शैली, सिम्मी, सुनीता, रोज़ी, पायल, आशु, पिंकी, सोनिया, सिरत, रूबी जैन, अरिदमन जैन, रजनीश जैन, प्रमोद जैन, राजीव जैन ‘चमन’, राकेश जैन, राजेश जैन के साथ-साथ एस.एस. जैन सभा किचलु नगर, भगवान महावीर सेवा संस्थान, जीतो लुधियाना चैप्टर, महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसायटी, जीतो लेडिज़ विंग आदि अन्य मुख्य सहयोगी थे। -मोनिका जैन प्रधान, आत्म तरूणी मंडलमहिला दिन दुखियों की सेवा करना हमारी सामाजिक जिम्मेवारी है राष्ट्रीय संस्था लिगा परिवार सोसायटी रजि. द्वारा पाँचवा राशन वितरण समारोह हैबोवाल स्थित बाबा मल्लजी लिगा धाम में आयोजित किया गया, इसी कड़ी में सर्वप्रथम बाबा जी के दरबार में सभी ने माथा टेका व गुणगान सभा में अपनी हाजरी लगायी, इसका लाभ यशपाल जैन, नीरज जैन, कनव जैन, मोहक जैन परिवार ने लिया, इसी उपरांत महामंत्र नवकार के सामूहिक उच्चारण के बाद ११ जरूरतमंद एवम विधवा औरतों को राशन वितरण करते हुए संस्था के भामाशाह दानवीर प्रसिद्ध उद्योगपति विपन जैन, रेनु जैन ने कहा कि इन जरूरतमंद परिवारों की सहायता कर हम अपना पुन्य बढाने का प्रयास कर रहे हैं ना कि इन पर कोई अहसान कर रहे हैं। दिन दुखियों की सेवा करना हमारी सामाजिक जिम्मेवारी हैं, ऐसे मानव सेवा कार्यों में सभी को अपना यथायोग्य योगदान जरूर करना चाहिए, उन्होंने कहा सोसायटी द्वारा चैरीटेबल डिस्पैंसरी चलाना भी इस इलाके के लिए बहुत बड़ी सेवा हैं, इस मौके पर लिगा परिवार सोसायटी के प्रधान विपन जैन, सचिव राजेश जैन, राकेश जैन, राजीव जैन, संजीव जैन आदि गप्पू जैन उपस्थित थे। -विपन जैन प्रधान-लिगा परिवार सोसाईटी

राजपुत परिवार की तान्या दीक्षा ग्रहण करके बनेगी जैन साध्वी 0

राजपुत परिवार की तान्या दीक्षा ग्रहण करके बनेगी जैन साध्वी

अगर परिवार या आसपास के माहौल में आपका कोई अग्रज कोई सराहनीय काम करता है तो एक सच्चे इंसान की इंसानियत यही कहती है कि आपको भी उनका अनुसरण करना ही चाहिए, इसी संदेश को अमर करने के लिए रायकोट की तान्या भी राजपूती शान-ओ-शौकत को त्याग चुकी|वह अपनी बड़ी बहन के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए अहिंसा परमो धर्म: को धारण की, अब १० फरवरी के बाद से एक जैन साध्वी के रूप में उनकी नई पहचान होगी। ये है मूल सांसारिक पहचान: तान्या राजपूत परिवार से संबंध रखने वाली लुधियाना के अमरीक सिंह बिट्टू के घर १३ दिसम्बर २००२ को जन्मी तीन बेटियों में मंझली बेटी है,संके १० पढ़ी तान्या ५ वर्ष की अल्पायु में जब पहली कक्षा में थी तो तीसरी कक्षा में पढ़ रही बड़ी बहन मुस्कान (अब प्रतिष्ठा जी महाराज) के साथ रायकोट (पंजाब) में जैन साध्वियों के साथ रहकर पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से १०वीं की। १ फरवरी २०१५ को जहां महासाध्वी श्वेता जी महाराज की शिष्या के रूप में मुस्कान ने जैन दीक्षा ग्रहण कर ली, वहीं अब उन्ही के पदचिन्हों पर चलते हुए तान्या ने भी संसारिक सुखों को त्याग सुमन महाराज की शिष्या के रूप में दीक्षा ग्रहण करने का फैसला किया है। १० फरवरी को होगा दीक्षा महोत्सव: महासाध्वी ओमप्रभा जी महाराज की सुशिष्या पदमप्रभा जी महाराज ने बताया कि १६ साल की तान्या की केसर रस्म २७ जनवरी २०१९ को, मेहंदी की रस्म ९ फरवरी को होगी। १० फरवरी को रायकोट (लुधियाना) में ध्यानयोगी एवं जैन धर्म के चर्तुर्थ पट्धर आचार्य सम्राट शिवमुनि महाराज एवं उत्तर भारतीय प्रवर्तक प्रज्ञा महर्षि सुमन मुनि महाराज की आज्ञानुवर्ती शासन प्रभाविका उपप्रवर्तनी महासाध्वी वैâलाशवती महाराज की सुशिष्या एवं उपप्रवर्तनी महासाध्वी चन्द्रप्रभा महाराज की सुशिष्या पंजाब सिंहनी स्वर्ण संयम आराधिका महासाध्वी ओमप्रभा जी महाराज के सान्निध्य में उनकी दीक्षा होगी, इसके लिए निकाली जाने वाली शोभायात्रा में हरियाणा व पंजाब के अलावा अन्य प्रदेशों से हजारों श्रद्धालु भाग लेेंगे, इसके साथ बड़ी दीक्षा का आयोजन १७ फरवरी को होगा। मयुर पिच्छी अहिंसा और संयम का महान प्रतिक: मुनी विशुद्धसागर जी चिकलठाणा (महाराष्ट्र): मयुर पिच्छी अहिंसा और संयम का महान प्रतिक है, दिगंबर जैन मुनी मयुर पिच्छी बिना सात कदम भी नहीं चल सकते, इस पिच्छी के कारण ही दिगम्बर जैन मुनी- ‘तप’ ‘त्याग’ ‘संस्कार’ का आशिश प्रदान करते हैं, जो श्रावक पिच्छी प्रदान करने का सौभाग्य प्राप्त करता है वह बड़ा पुण्यशिल होता है, ऐसा उद्बोधन और संदेश धर्मनगरी औरंगाबाद में प्रख्यात दिगंबराचार्य विशुद्ध सागरजी मुनी श्री ने हिराचंद कासलीवाल प्रांगण में ‘‘पिच्छिी परिवर्तन समारोह’’ में हजारों भाविकों के सामने दिया। औरंगाबाद का जैन समाज संपूर्ण भारत वर्ष के लिये, गुरूसेवा के लिये तत्पर एवम अग्रसर रहता है, ऐसा मुनीश्रीजी ने कहा, इस अवसर पर अ‍ॅड. डि.बी. कासलीवाल, प्रविण लोहाडे, देवेंद्र, प्रकाश कासलीवाल, ललित पाटणी, एम.आर. बडजाते, भागचंद बिनायका, चांदमाल चांदिवाल, महेंद्र ठोले, पत्रकार एम.सी. जैन तथा हजारों श्रावक उपस्थित थे। महिलाओं से ही भारतीय संस्कृति सुरक्षित-डॉ. दत्ता कोहिनकर पुणे: हर क्षेत्र में कार्य करने की क्षमता महिलाओं में हैं। राजमाता जीजाऊ, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले आयरन लेडी इंदिरा गांधी जैसी अनगिनत महिलाओं ने देश को महान सुपुत्र दिए, उन्हें अच्छे संस्कार दिए, भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखने में महिलाएं सदा अग्रस्थान पर रहीं, उनके कार्यों का हमें सम्मान करना चाहिए, यह विश्वशक्ति इंटरनेशनल सेंटर प्रमुख विश्वस्त डॉ. दत्ता कोहिनकर ने कहा, वे सूर्यदत्ता एजूकेशन फाउंडेशन के सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट्स द्वारा नवरात्रि उत्सव निमित्त बावधन के सूर्यदत्ता एजूकेशन वैâम्पस में आयोजित ‘सूर्यदत्ता शास्त्रोंशक्ति पुरस्कार’ प्रदान समारोह में बोल रहे थे, इस अवसर पर स्टै्रटजिक फोरसाइट ग्रुप के वरिष्ठ सलाहकार सचिव इटकर, सूर्यदत्ता ग्रुप की उपाध्यक्षा डॉ. सुषमा चोरड़िया, वरिष्ठ पुलिस निरिक्षक अनुजा देशमाने, सूर्यदत्ता एजूकेशन इंस्टीट्यूट के संचालक शैलेंद्र कासंडे उपस्थित थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक, पत्रकारिता एवं महिला सबलीकरण आदि विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाली नौ महिलाओं को ‘सूर्यदत्ता शास्त्रों शक्ति पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया, इनमें आवेदा इमानदार (शिक्षा), सरिताबेन राठी (आध्यात्मिक), मनीषा लुनावत (अध्यात्म), मुक्ता पुणतांबेकर (समाजसेवा), डॉ. नीलिमा देसाई (समाजकार्य), तृप्ति देसाई (महिला सबलीकरण), मनीषा दुगड़ (उद्योग), अनुजा देशमाने (प्रशासन सेवा) नम्रता फडणीस व मिलन म्हेत्रे (पत्रकारिता) का समावेश है, अपने भाषण में डॉ. दत्ता कोहिनकर ने आगे कहा कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है वहां का माहौल आनंदमय हो जाता है, सर्व शक्तियों का वास होता है। प्रकृति ने भी शास्त्रों को माता, पत्नी, बहन, सहेली के रूप में महत्वपूर्ण स्थान दिया है, जो हमारे जीवन को प्रेरणा देती है। सचिन इटकर ने कहा कि महिलाएं पुरूषों के मुकाबले एक कदम आगे रहकर समाज में काम करती है, उनका कार्य प्रेरणादायी है, अंत में पुरस्कार प्राप्त महिलाओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. संजय चोरडिया ने स्वागत व प्रास्ताविक किया। सुनील धनगर ने सूत्र-संचालन व शैलेंद्र कासंडे ने आभार प्रदर्शन किया।

श्री चारित्र चंद्रिका 0

श्री चारित्र चंद्रिका

बाल ब्रम्हचारिणी, तीर्थ उद्धारक, वात्सल्यमुर्ति, जम्बुद्विपप्रेरिका, गुरूपरम्परारक्षिका, आर्थिकशिरोमणी, मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र शताष्ठ फुटोन्नत वृषभदेव प्रतिभा निर्माण प्रेरिका, (१०८ फूट वृषभदेव मूर्ती प्रेरिका) और जैन धर्म गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माताजी ने सन १९३४ में उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला स्थित रिकेतनगर ग्राम में अश्विन सुदि १५ शरद पुर्णिमा के दिन रात्री के प्रथम प्रहर में मातामोहिनी और पिता छोटेलाल की प्रथम संतान कुमारी मैना के रूप में जन्म लिया।श्री सिद्ध क्षेत्र मांगीतुगी पर २४ अक्टूबर २०१८ शरद पुर्णिमा को पुज्य माताजी ज्ञानमतीजी का ८५वां जन्मजयंती महोत्सव बड़े धुमधाम से मनाया गया। कु. मैना ने १८ वर्ष की अल्प वय में अनेक सामाजिक और परिवारिक संघर्षों को झेलकर शरद पुर्णिमा के दिन ही सन १९५२ में आचार्य १०८ श्री देशभूषण किया था। तत्पश्चात सन १९५३ में चेत्र कृष्ण एकम को श्री महावीरजी अतिशय तीर्थ क्षेत्र पर कु. मैना ने आचार्यरत्न देशभूषण महाराजजी से क्षुल्लिका दिक्षा ग्रहण कर ‘वीरमती’ नाम प्राप्त किया। पूज्य माताजी बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती शांतिसागर जी महाराज के तीन बार दर्शन किये और उनके सानिध्य में रहकर अनेक अनुभव प्राप्त किये, अंत में पुज्य माताजी ने आचार्य के श्री समाधी का अन्त समय होने से उनके आदेशानुसार सन १९५६ मे वैशाख कृष्ण २ के दिन माधोराजपुरा (राजस्थान) में प्रथमचार्य शांतिसागर महाराजजी के प्रथम पट्टशिष्य परमपुज्य आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज से आर्यिका दिक्षा प्राप्त की तब गुरूवर ने इन्हें आर्यिका ज्ञानमती माताजी के नाम से अलंकृत किया। साहित्य सृजन: भगवान महावीर की परम्परा में २६०० वर्षों में कभी किसी महिला साध्वीद्वारा लेखन नही हुआ। पुज्य माताजी के अभीक्षण ज्ञानोपयोग के फलस्वरूप उनकी लेखनी से अपसहस्मी, नीयमसार, समयसार, षट्खडागम, मुलाचार, कातंत्रव्याकरण आदि ग्रंथों के अनुवाद/टिकायें एवं लगभग ४००-४५० ग्रंथों की लेखीका। प्रवचन निर्देशिका ज्ञानामृत, आराधना, जैन भूगोल आदि महान ग्रंथ प्रसूत हुए हैं। अनेक विधानों की रचनायें महावीर विधान, नंदीध्वज, तीस चौबिसी, कल्पद्रुम, सर्वतोभद्र, तीन लोक, त्रिलोक मंडल, विश्वशांति महावीर विधान, जम्बूद्विप आदि अनेक मंडल विधानों का सृजन हुआ। बाल विकास, जैन बाल भारती, प्रतिज्ञा, जीवनदान, उपकार, परिक्षा, आटे का मुर्गा, आत्मा की खोज, कामदेव बाहुबली, संस्कार, रोहिणी नाटक आदि अनेक कृतियों का सुत्रपात हुआ। डी. लोट की मानद उपाधी: १९९५ में अवध वि.वि. फैज़ाबाद द्वारा एवं तीर्थकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद द्वारा ८ अप्रैल २०१२ को डी. लीट. की मानद उपाधी से विभूषित हुई। महोत्सव प्रेरणा- पंचवर्षीय जम्बूद्विप महामहोत्सव, भगवान वृषभदेव उत्तरराष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव, अयोध्या में भगवान वृषभदेव महामहोसत्व मस्तकाभिषेक,कुंडलपुर महोत्सव, भगवान पाश्र्वनाथ जन्म कल्याणक तृतीय सहत्रब्दी महोत्सव, दिल्ली में कल्पद्रूम महामंडल विधान का ऐतिहासिक आयोजन इत्यादि। २१ डिसेंबर २००८ को जम्बूद्विप स्थल पर विश्वशांती अहिंसा सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभादेवीसिंह पाटील द्वारा किया गया। रथप्रवर्तन प्रेरणा: पुज्य ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से जैन धर्म की देशव्यापी प्रभावना हेतु रथों का प्रवर्तन हुआ। जैनागम में वर्णित भूगोल एवं खगोल विषय के अध्यान अनुसंधान की प्रक्रिया को गतीशील बनाने के हेतु जैन भूगोल का दिग्दर्शन करानेवाले ‘जम्बुद्विप ज्ञान ज्योती रथ’ प्रवर्तन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदीरा गांधी के करकमलों से ४ जून १९८२ को हुआ था। (१९८२-१९८५) द्वितीय रथ भगवान ऋृषभदेव समवसरण श्री विहार का रथ प्रवर्तन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के कर कमलों द्वारा (१९९८-२००२) हुआ। तृतीय भगवान महावीर ज्योती का प्रवर्तन बिहार के तत्कालीन महामहीम राज्यपाल डॉ विनोद चंद पांडे द्वारा हुआ। चौथा रथ आचार्य श्री सम्मेदशिखर ज्योती रथ का प्रवर्तन २०१४ में हुआ। भगवान ऋषभदेव विश्वशांति कलश यात्रा रथ मांगीतुंगी के दो रथों का भारत भ्रमण (२०१५-२०१६) में हुआ। रथप्रवर्तन प्रेरणा: पुज्य ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से जैन धर्म की देशव्यापी प्रभावना हेतु रथों का प्रवर्तन हुआ। जैनागम में वर्णित भूगोल एवं खगोल विषय के अध्यान अनुसंधान की प्रक्रिया को गतीशील बनाने के हेतु जैन भूगोल का दिग्दर्शन करानेवाले ‘जम्बुद्विप ज्ञान ज्योती रथ’ प्रवर्तन तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदीरा गांधी के करकमलों से ४ जून १९८२ को हुआ था। (१९८२-१९८५) द्वितीय रथ भगवान ऋृषभदेव समवसरण श्री विहार का रथ प्रवर्तन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के कर कमलों द्वारा (१९९८-२००२) हुआ। तृतीय भगवान महावीर ज्योती का प्रवर्तन बिहार के तत्कालीन महामहीम राज्यपाल डॉ विनोद चंद पांडे द्वारा हुआ। चौथा रथ आचार्य श्री सम्मेदशिखर ज्योती रथ का प्रवर्तन २०१४ में हुआ। भगवान ऋषभदेव विश्वशांति कलश यात्रा रथ मांगीतुंगी के दो रथों का भारत भ्रमण (२०१५-२०१६) में हुआ। शैक्षणिक प्रेरणा: जैन गणित और त्रिलोक विज्ञान पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी राष्ट्रीय कुलपती सम्मेलन, इतिहासकार सम्मेलन, न्यायाधीश सम्मेलन, आदि अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर का सेमीनार, ऑनलाईन इनसायक्लोपीडिया आदि, पंडीतों का सम्मेलन हुआ। तीर्थ निर्माण प्रेरणा: हस्तिनापूर मे जंबूद्विप, तेरहद्विप, तीन लोक आदि रचनाओं का निर्माण, शाश्वत तीर्थ अयोध्या का विकास एवं जीर्णोद्धार, प्रयाग इलाहाबाद उ.प्र. में तीर्थंकर वृषभदेव तपस्पलीr तीर्थ का निर्माण, तीर्थंकर जन्म भूमियों का विकास यथा भगवान महावीर जन्मभूमी वुंâडलपूर (नालंदा बिहार) में ‘मद्यावर्त महल’ नामक तीर्थ निर्माण, भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमी कावंâदी तीर्थ निकट गोरखपूर उ.प्र. का विकास, भगवान पाश्र्वनाथ केवलज्ञान भूमी अहिछत्र तीर्थ पर तीस-चौविसो मंदिर, हस्तिनापूर में जम्बूद्विप स्थल पर भगवान शांतिनाथ, वुंâथूनाथ, अरहनाथ की ३१-३१ पूâट उतुंंग खड़गासन प्रतिमा, स्थापन, मांगीतुंगी सिद्ध क्षेत्र पर १०८ पूâट उतूंग भगवान वृषभदेव की विशाल प्रतिमा महावीर धाम में पंच बालयती मंदिर, शिर्डी में ज्ञानतीर्थ, समेद-शिखर में प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर धाम आदि। सितम्बर २०१८ में प्रथमाचार्य शांतिसागर जी महाराज की ६३ वीं पुण्यतिथी महामहोत्सव ११ सितम्बर को वृहत स्तर पर दक्षिण भारत जैन सभा, वीर सेवादल सहयोग से मांगीतुंगी में माताजा की प्रेरणा से हुआ। सोलह कारण भावना, दशलक्षण पर्व में विश्वशांती महावीर मंडल विधान (जिसमें २६०० अघ्र्य है, २६०० रत्न मंडल पर चढाये गये। १४ सितम्बर से २४ सितम्बर तक विधान हुआ। माताजी का सानिध्य प्राप्त हुआ। प्रतिष्ठाचार्य दिपक पंडित और सुरेश जोलापूरे लेखक पत्रकार, वार्ताहार कार्यक्रम मौजूद थे। २४ अक्टूबर २०१८ शरद पुर्णिमा को पूज्य माताजी का ८५ वाँ जन्मजयंती महोत्सव मनाया गया।सर्वोदयी व्यक्तित्व की धनी पूज्य गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी को ‘जिनागम’ परिवार का शत: शत: वंदन नमन। -सुरेश आणापा जोलापुरे लेखक, पत्रकार, वार्ताहारपुज्य

भारत का प्रसिद्ध तीर्थ मोहनखेड़ा में भगवान शांतिनाथ मंदिर 0

भारत का प्रसिद्ध तीर्थ मोहनखेड़ा में भगवान शांतिनाथ मंदिर

तीर्थ मोहनखेड़ा में भगवान शांतिनाथ मंदिर मंदिर के ऊपरी भाग पर भी एक मंदिर है जिसके मूलनायक तीर्थकर भगवान शांतिनाथ है, इसके गर्भगृह में मूलनायकजी के अतिरिक्त श्री पद्मप्रभुजी, श्री सीमन्धरस्वामीजी, प्रभुश्री महावीर स्वामीजी, श्री विमलनाथजी, श्री आदिनाथजी, श्री शीतलनाथजी की प्रतिमाऐं विराजित हैं। ये प्रतिमायें दादा गुरुदेव श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वरजी, श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी एवं विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठित है इनमें वे प्रतिमायें भी शामिल है जो पुनः प्रतिष्ठा के पूर्व मंदिर में विराजित थी, इस मंदिर में जाने हेतु मंदिर के दोनों पाश्र्व में सीढियां बनी हुई है। श्री पाश्र्वनाथ मंदिर श्री मोहनखेड़ा पुनः प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर मुख्य मंदिर के दाहिनी ओर इस तीन शिखरों से युक्त पाश्र्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा भी सम्पन्न हुई, इस मंदिर का निर्माण सौधर्मवृहत्तपोगच्छीय श्रीसंघ एवं थराद जैन युवक मण्डल अहमदाबाद द्वारा करवाया गया है, इस मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की श्यामवर्ण की २१ इंच उंची दो पद्मासन प्रतिमाएं है, इनकी प्रतिष्ठा आचार्य भगवंत श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी के कर कमलों से वीर संवत २५०४ (विक्रम संवत २०३४) की माघ शुक्ला १२ रविवार को हुई थी, मंदिर में दो स्तरीय शाश्वत चौमुखजी भी है, जिसमें आठ प्रतिमाएं विराजित की गई है। मंदिर के मध्य में श्री बीस स्थानक महायंत्र भी दीवार पर स्थापित है। श्री युगादिदेव आदिनाथजी मंदिर प्रसिद्ध मोहनखेड़ा तीर्थ मुख्य मंदिर के वाम भाग में स्थित संगमरमर निर्मित त्रिशिखरी श्री आदिनाथजी मंदिर का निर्माण कोशोलाव निवासी शाह शंकरलालजी धर्मपत्नी हुलासीबाई ने करवाया है, जिसकी प्रतिष्ठा वी. सं. २५०४ (विक्रम सं. २०३४) की माघ सुदी १२, रविवार को आचार्य भगवन्त श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी ने की, इस मंदिर में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथजी की सोलह फीट एक इंच उँचाई वाली विशाल श्यामवर्णी कायोत्सर्ग मुद्रावाली श्वेताम्बर प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमा अष्टमंगल आसन पर स्थित है व उनके दोनों चरणों के पास चामर ढालती अप्सराएं प्रदर्शित की गई है। पूजा करने हेतु प्रतिमा के आसपास सीढियां है, इस प्रतिमा के दोनों ओर चौमुखजी है जिनमें तीर्थंकर भगवान श्री वर्धमान, भगवान ऋषभदेव, भगवान चन्द्रप्रभु एवं श्री वारिषेण प्रभु की प्रतिमाएं है। मंदिर में एक ओर नवपद सिद्धचक्र और दूसरी ओर श्री शत्रुंजय महातीर्थ पट्ट स्थापित है। भगवान आदिनाथजी के पगलियाजी जैन परम्परा में तीर्थंकर भगवन्तों, आचार्य व मुनि भगवन्तों के चरण पादुकाओं की स्थापना की भी परम्परा है। मुख्य मंदिर के पीछे श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा स्थापित भगवान आदिनाथजी के पगलियाजी है जिस पर छोटा सा मंदिर बना हुआ है।

श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन गुरुकुल ज्ञानशाला 0

श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन गुरुकुल ज्ञानशाला

श्गुरुकुल ज्ञानशाला देव श्री यतीन्द्र सूरिश्वरजी म.सा. की अभिप्सा थी की समाज के बच्चों हेतु शिक्षण की अच्छी व्यवस्था हो तथा उनको लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा भी दी जाये। वि.सं. २०१२ की ज्येष्ठ पूर्णिमा को लगभग १८ वर्षों के पश्चात् श्री यतीन्द्र सूरिश्वरजी म.सा. मोहनखेड़ा पधारे, उस समय लगभग चार हजार श्रावक उनकी अगवानी व प्रवचन का लाभ लेने के लिए आये थे|गुरुदेव के उपदेश से प्रेरित हो तत्काल एक गुरुकुल प्रारंभ करने का निश्चय कर राजगढ़ नगर में एक गुरुकुल की स्थापना की गई, मगर बाद में गुरुकुल को मोहनखेड़ा तीर्थ में ही स्थापित करने के मंतव्य से इसे बंद कर दिया गया। दुर्भाग्यवश सं. २०१७ में पूज्य गुरुदेव का स्वर्गवास हो गया एवं उनका स्वप्न अधुरा रह गया। गुरुदेव की इस इच्छा को उनके पट्टकार श्री विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ने साकार किया और श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में संवत् २०३५ की ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी दि. ३१ मई १९७९ को श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन गुरुकुल की स्थापना की गई। गुरुकुल के बच्चों का लौकिक अध्ययन राजगढ़ के शासकीय विद्यालय में होता था। प्रारंभ में इस गुरुकुल में केवल छठवीं से आठवीं तक के बच्चों को प्रवेश दिया जाता था, मगर वर्तमान में कक्षा दस तक के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। नियमित दिनचर्या, धार्मिक शिक्षण, देवदर्शन व जैन मान्यताओं का दैनिक जीवन में पालन आदि इस गुरुकुल की विशेषताएं है। गुरुगच्छ की शोभा बढ़ाने वाले पूज्य मुनि प्रवर श्री जिनेन्द्रविजयजी म.सा., श्री पियूषचन्द्र विजयजी म.सा., श्री दिव्यचन्द्र विजयजी म.सा., श्री रजतचन्द्र विजयजी म.सा. इसी गौरवशाली गुरुकुल के विद्यार्थी रहे है। प्रारंभ में यह गुरुकुल एक अन्य भवन में चलता था, मगर बाद में इसे सुविधा जनक बनाने हेतु श्री मोहनविहार में स्थानांतरित किया गया। गुरुकुल भवन विविध सुविधाओं से युक्त है। तीर्थ की भोजनशाला में ही बच्चों के लिए नौकारसी एवं भोजन की व्यवस्था है। दोपहर को नाश्ता व सूर्यास्त पूर्व दूध गुरुकुल में ही दिया जाता है। धार्मिक शिक्षण हेतु प्रथक से शिक्षक की नियुक्ति की गयी है। बच्चों को वर्ष में एक या दो बार धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों पर भ्रमण हेतु ले जाते हैं। गुरुकुल में आवास, भोजन व शिक्षण हेतु विद्यार्थियों से रु. १५०/- मासिक शुल्क लिया जाता है। निर्धन परिवार के बच्चों को कुछ छूट भी दी जाती है। शेष व्यय ट्रस्ट द्वारा वहन किया जाता है। दानदाता श्रावकगण रु. ६०००/- दान दे कर एक विद्यार्थी के एक वर्ष का व्यय वहन करने का लाभ ले सकते हैं। गुरुकुल सुविधाजनक भवन है, कार्तिक सुदी १३ संवत २०६० दि. ६ नवम्बर २००३ को भूमि पूजन कार्यक्रम तपस्वी मुनिराज श्री जयशेखर विजयजी म.सा. व इसके प्रेरक ज्योतिष सम्राट मुनिराज श्री ऋषभचन्द्र विजयजी म.सा. की निश्रा में किया गया, भवन का निर्माण भीनमाल निवासी शा. दलिचंदजी फूलचंदजी तातेड़ परिवार के विशिष्ठ सहयोग से किया गया। पुलक भुषण पुरस्कार सूरज बड़जात्या को प्रदान पुणे: सकल जैन वर्षायोग समिति पुणे द्वारा १०८ पुलकसागर महाराज जी के चातुर्मास सम्पन्न के पश्चात विदाई समारोह का आयोजन किया गया, इस अवसर पर प्रथम बार पुलकभुषण पुरस्कार प्रदान किया, यह पुरस्कार दानवीर, धर्मानुरागी, उद्योग महर्षि रसिकलाल धारीवाल (स्व.) की तरफ से उनकी पत्नी श्रीमती शोभा धारीवाल व पुत्री जान्हवी धारिवाल व प्रख्यात फिल्म दिग्दर्शक सूरज बड़जात्या को प्रदान किया गया। मुनीश्री पुलकसागर महाराजा के हस्ताक्षर वाले चांदी के फ्रेम में जड़ा सम्मानपत्र, सम्मानचिन्ह, शॉल व श्रीफल युक्त पुलकभूषण पुरस्कार से नवाजा गया। इस अवसर पर प्रणीतसागर जी महाराज कार्याध्यक्ष मिलिंद फडे, आर.एम. फाउंडेशन की अध्यक्ष जान्हवी धारीवाल, एस.पी. जैन, अरविंद जैन, अजित पाटिल आदि गणमान्य उपस्थित थे। श्रीमती शोभा धारीवाल को समाजगौरव सम्मान, मिलिंद फडे व अरविंद जैन को ‘समाजभूषण’ तथा विनोद धरमचंद जैन को ‘ज्योतिषरत्न’ से सम्मानित किया गया, इसके अलावा सुजाता शाह, स्वप्निल पटनी, अजित पाटिल, संजय नाईक, सुदिन खोत, जीतेन्द्र शाह, चकोर गांधी व प्रियकुमार का भी विशेष सम्मान किया गया। इस अवसर पर शोभा धारीवाल ने कहा कि जीवन की कठीन परिस्थितियों में मुनीश्री से परिचय हुआ, जीवन की सत्यता स्वीकारने की ताकत उनके कारण मुझे व परिवार को प्राप्त हुई, जिस कारण इस चातुर्मास के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी बखुबी निभा पायी, इस कारण एक अच्छा काम करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, इस तरह चातुर्मास संयोजन समिति के रूप में एक अच्छे परिवार की प्राप्ति हुई, जान्हवी धारीवाल ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे पिताजी जो भी समाज से मिला, पुन: समाज को देने का कार्य उन्होंने किया, यह कार्य इसी तरह निरंतर चलता रहे, जिस तरह मेरे पिताजी ने अपने पिताजी का नाम रौशन किया उसी तरह मैं भी अपने पिता का नाम रौशन करूंगी । इस आयोजन में हजारों की संख्या में जैन श्रद्धालु उपस्थित थे, सभी ने धारीवाल व बड़जात्या परिवार की भुरी-भुरी प्रशंसा की।

श्री मोहनखेड़ा तीर्थ परिचय 0

श्री मोहनखेड़ा तीर्थ परिचय

संक्षिप्त परिचय वर्तमान अवसर्पणी के प्रथम तीर्थंकर भगवान् श्री ऋषभदेवजी को समर्पित श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की गणना आज देश के प्रमुख जैन तीर्थों में की जाती है। मध्यप्रदेश के धार जिले की सरदारपुर तहसील, नगर राजगढ़ से मात्र तीन किलोमीटर दूर स्थित यह तीर्थ देव, गुरु व धर्म की त्रिवेणी है।श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की स्थापना तीर्थ की स्थापना प्रातः स्मरणीय विश्वपूज्य दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की दिव्यदृष्टि का परिणाम है, आषाढ़ वदी १०, वि.सं. १९२५ में क्रियोद्धार करने व यति परम्परा को संवेगी धारा में रुपान्तरित कर श्रीमद् देश के विभिन्न भागों में विचरण व चातुर्मास कर जैन धर्म की प्रभावना कर रहे थे, यह स्वभाविक था कि मालव भूमि भी उनकी चरणरज से पवित्र हो, पूज्यवर संवत् १९२८ व १९३४ में राजगढ़ नगर में चातुर्मास कर चुके थे तथा इस क्षेत्र के श्रावकों में उनके प्रति असीम श्रद्धा व समर्पण था, सं. १९३८ में निकट ही अलिराजपुर में आपने चातुर्मास किया व तत्पश्चात राजगढ़ में पदार्पण हुआ, राजगढ़ के निकट ही बंजारों की छोटी अस्थायी बस्ती थी- खेड़ा, श्रीमद् का विहार इस क्षेत्र से हो रहा था, सहसा यहां उनको कुछ अनुभूति हुई और आपने अपने दिव्य ध्यान से देखा कि यहां भविष्य में एक विशाल तीर्थ की संरचना होने वाली है। राजगढ़ आकर गुरुदेव ने सुश्रावक श्री लुणाजी पोरवाल से कहा कि आप सुबह उठकर खेड़ा जाचे व घाटी पर जहां कुमकुम का स्वस्तिक देखें, वहां निशान बना हो, उस स्थान पर तुमको एक मंदिर का निर्माण करना है, परम गुरुभक्त श्री लूणाजी ने गुरुदेव का आदेश शिरोधार्य किया, वहां गुरुदेव के कथनानुसार स्वस्तिक दिखा, श्री लूणाजी ने पंच परमेष्ठि- परमात्मा का नाम स्मरण कर उसी समय मुहुर्त कर डाला व भविष्य के एक महान तीर्थ के निर्माण की भूमिका बन गई। एक महान तीर्थ के निर्माण की भूमिका बन गई। मंदिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ व शीघ्र ही पूर्ण भी हो गया, संवत् १९३९ में पू. गुरुदेव का चातुर्मास निकट ही कुक्षी में तथा संवत् १९४० में राजगढ़ नगर में हुआ था, श्री गुरुदेव ने विक्रम संवत १९४० की मृगशीर्ष शुक्ल सप्तमी के शुभ दिन मूलनायक ऋषभदेव भगवान आदि ४१ जिनबिम्बों की अंजनशलाका की, मंदिर में मूलनायकजी एवं अन्य बिम्बों की प्रतिष्ठा की गई, प्रतिष्ठा के समय पू. गुरुदेव ने घोषणा की थी कि यह तीर्थ भविष्य में विशाल रुप धारण करेगा, इसे मोहनखेड़ा के नाम से ही पुकारा जाये, पूज्य गुरुदेव ने इस तीर्थ की स्थापना श्री सिद्धाचल की वंदनार्थ की थी। प्रथम जीर्णोद्धार: संवत १९९१ में मंदिर निर्माण के लगभग २८ वर्ष पश्चात श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के उपदेश से प्रथम जीर्णोद्धार हुआ, यह जीर्णोद्धार उनके शिष्य मुनिप्रवर श्री अमृतविजयजी की देखरेख व मार्गदर्शन में हुआ था, पूज्य मुनिप्रवर प्रतिदिन राजगढ़ से यहां आया जाया करते थे, इस जीर्णोद्धार में जिनालय के कोट की मरम्मत की गई थी, व परिसर में फरसी लगवाई थी इस कार्य हेतु मारवाड के आहोर सियाण नगर के त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर श्री संघों ने वित्तीय सहयोग प्रदान किया था। द्वितीय जीर्णोद्धार: श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का द्वितीय जीर्णोद्धार इस तीर्थ के इतिहास की सबसे अह्म घटना है, परिणाम की दृष्टि से यह जीर्णोद्धार से अधिक तीर्थ का कायाकल्प था, इसके विस्तार व विकास का महत्वपूर्ण पायदान था, इस जीर्णोद्धार, कायाकल्प व विस्तार के शिल्पी थे- प.पू. आचार्य भगवन्त श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी, तीर्थ विकास की एक गहरी अभिप्सा उनके अंतरमन में थी जिसे उन्होंने अपने पुरुषार्थ व कार्यकुशलता से साकार किया था। कुशल नेतृत्व, योजनाबद्ध कार्य, कठिन परिश्रम व दादा गुरुवर एवं आचार्य महाराज के आशीर्वाद के फलस्वरुप ९७६ दिन में नींव से लेकर शिखर तक मंदिर तैयार हो गया, यह नया मंदिर तीन शिखर से युक्त है, श्रीसंघ के निवेदन पर पट्टधर आचार्य श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी ने अपने हस्तकमलों से वि.सं. २०३४ की माघ सुदी १२ रविवार को ३७७ जिनबिम्बों की अंजनशलाका की, अगले दिवस माघ सुदी १३ सोमवार को तीर्थाधिराज मूलनायक श्री ऋषभदेव प्रभु, श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ व श्री चिंतामणि पाश्र्वनाथ आदि ५१ जिनबिम्बों की प्राणप्रतिष्ठा की व शिखरों पर दण्ड, ध्वज व कलश समारोपित किये गये। इस जीर्णोद्धार में परमपूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी के समाधि का भी जीर्णोद्धार किया गया व ध्वज, दण्ड व कलश चढ़ाये गये, श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी की समाधि पर भी दण्ड, ध्वज व कलश चढ़ाये गये। मंदिर का वर्तमान स्वरुप : वर्तमान मंदिर काफी विशाल व त्रिशिखरीयहै, मंदिर के मूलनायक भगवान आदिनाथ हैं जिसकी प्रतिष्ठा श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा की गई थी, अन्य दो मुख्य बिम्ब श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ एवं श्री चिंतामणि पाश्र्वनाथ के हैं, जिनकी प्रतिष्ठा व अंजनशलाका वि. सं. २०३४ में मंदिर पुर्नस्थापना के समय श्रीमद् विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी के करकमलों से हुई थी, गर्भगृह में इनके अतिरिक्त श्री अनन्तनाथजी, सुमतिनाथजी व अष्ट धातु की प्रतिमायें है, गर्भगृह में प्रवेश हेतु संगमरमर के तीन कलात्मक द्वार हैं व उँची वेदिका पर प्रभु प्रतिमायें विराजित हैं ।