Category: संपादकीय

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भारत को भारत पुकारें

आजादी की ७५वीं सालगिरह पर हम भारत को ‘भारत’ ही बोलें  – जनवरी-२०२१ : वर्षों विदेशी आक्रांता से विरोध व जिद के पश्चात भारत माँ को सन १९४७ में आजादी मिली। भारत माँ का नाम बदलकर विदेशियों ने घ्ह्ग्a कर दिया, जिसे आज तक हम साथ रखे हुए हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि घ्ह्ग्a तो गुलामी का नाम है। वर्ष २०२१ को भारत मां स्वतंत्रता की ७५ वीं सालगिरह मनाएगी। आज भारत मां अपने १३० करोड़ बच्चों से पूछ रही है कि मेरे बच्चों यह तो बताओ कि मेरा नाम क्या है भारत है या इंडिया? हम सभी भारतीयों की आज इच्छा बनी है कि अब हम भारत को ‘भारत’ के नाम से ही पुकारा जाए, भारत को ‘भारत’ ही बोलेंगे, इसके लिए हम सभी  भारतीयों ने मिलकर १० फरवरी २०२१ से २१ फरवरी २०२१ तक भारत की राजधानी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक, लगातार ११ दिनों तक, संध्या ५:३० से ८:३० तक पदयात्रा करेंगे और ‘भारत सम्मान दीपोमय यात्रा’ में मिलकर एक ही नारा लगाएंगे कि ‘मैं भारत हूँ’। मैं अपने साधर्मी भाइयों से निवेदन करता हूं कि भारी संख्या में दिल्ली पहुंचे, यदि दिल्ली ना भी पहुंच सकते हैं तो अपने मित्रों, सहयोगियों, परिवारों आदि जो भी दिल्ली में रहते हैं उनसे कहें कि ‘भारत सम्मान दीपोमय यात्रा’ में अपनी उपस्थिति देकर ‘भारत’ की पूर्ण आजादी के लिए अपने समय की आहुति दें। मैं विश्वास दिलाता हूं कि भारत के साथ लगा हुआ दाग घ्ह्ग् जो कि भारत माँ को मिली आजादी के समय वर्ष १९४७ में तो नहीं निकल पाया, वर्ष २०२१ को जरूर दूर चला जाएगा, यह मेरी इच्छा तो है ही साथ ही सभी भारतीयों की भी है। हमारे चलते-फिरते तीर्थंकर गुरु-भगवंतों की भी है। मैं अपने साधर्मी भाइयों को यह बताना चाहता हूं कि मैंने तीर्थंकर महावीर को नहीं देखा है, उनका स्वरूप प्रातः वंदनीय साधु-भगवंतों में देखा है, उन सभी का आशीर्वाद मुझे प्राप्त हुआ है, विशेषकर आचार्य शिरोमणि विद्यासागर जी का मैं ऋणी हूं कि उन्होंने हमेशा मुझे प्रोत्साहन दिया और भारत को ‘भारत’ ही बोले जाने के अभियान को पूर्ण करने के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान किया। मेरे जीवन की अब एक ही इच्छा है कि १३० करोड़ भारतीयों की भारत मां विश्व में केवल ‘भारत’ के नाम से पहचानी जाए, ‘भारत’ के नाम से गौरवान्वित हो। आजादी की ७५वीं सालगिरह पर हम भारत को ‘भारत’ ही बोलें  – जनवरी-२०२१ वर्ष २०२० हम सभी भारतीयों का जैसे-तैसे गुजर गया, मैं समस्त प्रातः वंदनीय २४ तीर्थंकरों के साथ गुरु-भगवंतों के चरणों में विनती करता हूं कि वर्ष २०२१ हम सभी का अच्छा हो, हम सभी तन-मन-धन से धर्माराधना के साथ अपने परिवार, अपने राष्ट्र को समृद्ध करें, ऐसी मनोभावना के साथ….. सादर जय जिनेंद्र!

१० फरवरी २०२१ के अभियान की घोषणा के रूपरेखा में हुआ बदलाव 0

१० फरवरी २०२१ के अभियान की घोषणा के रूपरेखा में हुआ बदलाव

‘भारत को केवल भारत ही बोला जाए’ अभियान की सफलता के लिए १० फरवरी २०२१ को दिल्ली में भारत सम्मान दीपोमय यात्रा का आयोजन किया गया था। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के कारण ‘भारतसम्मान दीपोमय यात्रा’को स्थगित कर दिया गया, लेकिन कई भारतीयों ने दिल्ली पहुंचकर दिल्ली के कई सांसदों से संपर्क स्थापित किया, ऐतिहासिक प्रतिवेदन दिया और सभी सांसदों से निवेदन किया कि अब ‘भारत को भारत ही बोला जाए’, विश्व में भारत का सम्मान ‘भारत’ के नाम से ही हो। कहते हैं इंसान में यदि जज्बा हो और कार्य करने की मौलिकता हो, तो सफलता मिलती ही है, वही हुआ जब हम सभी भारतीय विभिन्न राज्यों के मुंबई से विनोद माहेश्वरी, सुंदरलाल बोथरा, डॉ जगन्नाथ चव्हाण, गुलबर्गा कर्नाटक से दिपक बलदवा, गणेश बंग, राजस्थान से श्रीमती सरोज मरोठी, श्रेयांश बेद, अरविंद उभा, दलीप पंचारिया अन्य ने दिल्ली में सांसदों से मिलकर निवेदन किया कि अब भारत को ‘भारत’ ही बोला जाए के लिए आप संसद में प्रयास करें, सभी सांसदों नेकहा कि हम पूरी कोशिश करेंगे। इस बार चल रहे संसद सत्र में हम भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए अभियान को जरूर उठाएंगे, यदि नहीं हो पाया तो विश्वास दिलाते हैं कि अगले संसद सत्र में भारत को केवल भारत ही बोला जाएगा मुद्दा जरूर पास हो जाएगा। चतुर्विद जैन समाज ने स्वीकार कर लिया है कि हम तीर्थंकर आदिनाथ के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम से देश का नाम जो ‘भारत’ पड़ा था, अब हम हमारे देश को ‘भारत’ ही बोलेंगे, किसी भी दूसरे नाम से नहीं पुकारेंगे। विश्वास दिलाता हूँ कि जिस प्रकार देश में जागरूकता आयी है कि अब हम हमारे देश को केवल ‘भारत’ कहेंगे तो वह समय दूर नहीं, जब विश्व में भारत को ‘भारत’ ही कहा जाएगा। हमारा देश भरत चक्रवर्ती का देश विश्व में ‘भारत’ के नाम से गौरवान्वित होगा।

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श्री महाश्रमण

जैन एकता के परम समर्थक श्री महाश्रमण तेरापंथाचार्य कहते हैं जैसे गुरु वैसे शिष्य!समस्त जैन समाज की एकमात्र विश्वस्तरीय पढी जाने वाली पत्रिका, ‘जिनागम’ पिछले २० सालों से लगातार प्रयास से ‘जैन एकता’ का पौधा रोप पाया पर अभी तक यह पेड़ नहीं बन पाया है, हमें मिलकर ‘जैन एकता’ का पेड़ व उस पर मिठे फल की प्राप्ति का प्रयास करना है। आचार्य श्री महाश्रमण के द्वय गुरु आचार्य श्री तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपने आचार्यत्व के काल में भरपूर ‘जैन एकता’ के लिए मेहनत की, अन्यान्य पंथों के गुरु-भगवंतों से विनंति कर ‘जैन एकता’ के फायदों को बताया, यहॉ तक की आचार्य श्री तुलसी ने ‘संवत्सरी’ एक दिन करने के लिए अपने आचार्यत्व पद को त्यागने का भी फरमान जारी कर दिया था। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा भी अनगिनत प्रयास किए जाते रहे, अब इन्हीं के शिष्य वर्तमानाचार्य महाश्रमण जी ने बीड़ा उठाया है कि वर्ष २०१९ को प्रयास कर ‘संवत्सरी’ एक दिन मनायेंगे और आगामी कुछ वर्षों में हम सभी विभिन्न पंथों मानने को वाले ‘जैन’ बन जायेंगे। हम सभी तो जैन हैं ही, लेकिन हम सभी के दिलों में दिगम्बर-श्वेताम्बर की भावना जो बसी है, कुछ कट्टरता भी है वो बस आमनाय की है, भले ही हम चार भाइयों की आमनाय अलग-अलग हो, पूजा-पद्धति अलग-अलग रहे लेकिन वो अपने घरों में रहे, मंदिरों में रहे, पर शहर-नगर मे ना हो, वहाँ हम केवल-केवल जैन हों, भगवान महावीर के अनुयायी हों, क्योंकि भगवान महावीर मात्र ‘जैनों’ के नहीं वो तो विश्व के हैं, क्योंकि उनके द्वारा दिया गया अहिंसा शस्त्र ही फैले आतंकवाद से हमें बचा सकता है, हमें सुरक्षा दे सकता है। कहते हैं युवा पिढ़ी जिस किसी अभियान को अपने कंधे पर पर ले लेती है वह सफल होता ही है, आज हमारे जैन समाज के युवानों ने अपने कंधे पर ‘जैन एकता’ अभियान उठा लिया है, सफलता निश्चित है बस हमें सकारात्मकता अपनाने की जरुरत है। मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी ‘लाडनूं’ के स्वर्गालोक की खबर सुनकर मन आद्वेलित हो गया, भगवान महावीर उन्हें मोक्ष प्रदान करें, उनके चरणों में वंदन! जय भारत! जय भारतीय संस्कृति! पूर्ण राष्ट्र की परिभाषा भाव-भूमि और भाषा