जैन एकता के परम समर्थक श्री महाश्रमण तेरापंथाचार्य कहते हैं जैसे गुरु वैसे शिष्य!
समस्त जैन समाज की एकमात्र विश्वस्तरीय पढी जाने वाली पत्रिका, ‘जिनागम’ पिछले २० सालों से लगातार प्रयास से ‘जैन एकता’ का पौधा रोप पाया पर अभी तक यह पेड़ नहीं बन पाया है, हमें मिलकर ‘जैन एकता’ का पेड़ व उस पर मिठे फल की प्राप्ति का प्रयास करना है। आचार्य श्री महाश्रमण के द्वय गुरु आचार्य श्री तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपने आचार्यत्व के काल में भरपूर ‘जैन एकता’ के लिए मेहनत की, अन्यान्य पंथों के गुरु-भगवंतों से विनंति कर ‘जैन एकता’ के फायदों को बताया, यहॉ तक की आचार्य श्री तुलसी ने ‘संवत्सरी’ एक दिन करने के लिए अपने आचार्यत्व पद को त्यागने का भी फरमान जारी कर दिया था। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा भी अनगिनत प्रयास किए जाते रहे, अब इन्हीं के शिष्य वर्तमानाचार्य महाश्रमण जी ने बीड़ा उठाया है कि वर्ष २०१९ को प्रयास कर ‘संवत्सरी’ एक दिन मनायेंगे और आगामी कुछ वर्षों में हम सभी विभिन्न पंथों मानने को वाले ‘जैन’ बन जायेंगे।
हम सभी तो जैन हैं ही, लेकिन हम सभी के दिलों में दिगम्बर-श्वेताम्बर की भावना जो बसी है, कुछ कट्टरता भी है वो बस आमनाय की है, भले ही हम चार भाइयों की आमनाय अलग-अलग हो, पूजा-पद्धति अलग-अलग रहे लेकिन वो अपने घरों में रहे, मंदिरों में रहे, पर शहर-नगर मे ना हो, वहाँ हम केवल-केवल जैन हों, भगवान महावीर के अनुयायी हों, क्योंकि भगवान महावीर मात्र ‘जैनों’ के नहीं वो तो विश्व के हैं, क्योंकि उनके द्वारा दिया गया अहिंसा शस्त्र ही फैले आतंकवाद से हमें बचा सकता है, हमें सुरक्षा दे सकता है।
कहते हैं युवा पिढ़ी जिस किसी अभियान को अपने कंधे पर पर ले लेती है वह सफल होता ही है, आज हमारे जैन समाज के युवानों ने अपने कंधे पर ‘जैन एकता’ अभियान उठा लिया है, सफलता निश्चित है बस हमें सकारात्मकता अपनाने की जरुरत है।
मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी ‘लाडनूं’ के स्वर्गालोक की खबर सुनकर मन आद्वेलित हो गया, भगवान महावीर उन्हें मोक्ष प्रदान करें, उनके चरणों में वंदन!
जय भारत!जय भारतीय संस्कृति!पूर्ण राष्ट्र की परिभाषाभाव-भूमि और भाषा
by admin · Published February 20, 2021
· Last modified March 23, 2021
सामाजिक माध्यम
अप्रैल २०२३ पुस्तक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सम्पादकीय
अप्रैल २०२३
बिजय कुमार जैन
वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक
हिंदी सेवी-पर्यावरण प्रेमी
भारत को भारत कहा जाए
का आव्हान करने वाला एक भारतीय
तीर्थंकर आदिनाथ का पारणा दिवस जैन समाज का सर्वाधिक पावन पर्व है
कहते हैं कि वर्ष में कुछ दिवस अति उत्तम होते हैं जिस दिवस पर कुछ भी शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती, इस दिन कार्यों की शुरुआत अति शुभ होता है, सफल होता है, यह दिवस है अक्षय तृतीया…
‘अक्षय तृतीया’ के दिन जैन धर्मावलंबी तो शुभ कार्य करते ही हैं, सनातन धर्मावलंबी भी पीछे नहीं रहते। हर भारतीय इस शुभ दिवस का इंतजार करता है, इस वर्ष यह शुभ दिवस अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार २२ अप्रैल को है। ‘अक्षय तृतीया’ को जैन धर्मावलंबी तप, त्याग, दान, धर्म आदि में लिप्त रहेंगे। सत्य, अहिंसा, किसी का दिल ना दुखाना, जिनालयों में गुरु-भगवंतों के सानिध्य में रहकर ईक्षु रस का दान भी करेंगे क्योंकि इसी पावन दिवस पर तीर्थंकर आदिनाथ को राजकुमार श्रेयांस ने ईक्षु रस से पारणा करवाया था और आदिनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाया था।
हम सभी जैन धर्मावलंबी भी अक्षय तृतीया के पावन दिवस पर एक प्रण करें कि इस दिन सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर पंथ के धर्मावलंबी मिलकर पारणा दिवस मनाएं। दिगम्बर, श्वेताम्बर
जिनालय में जाएं, श्वेताम्बर, दिगम्बर जिनालय में जाएं, एक दूसरे के आयामों का सम्मान करें, सीखें, समझें व दिल से अपनाएं।
वर्तमान के साधु-संत, आर्यिकाएं-साध्वी, मुमुक्षु आदि भी अपने दिलों में सम्मान के साथ हर दूसरे पंथ के पंथावलम्बी की भावना को शिरोधार्य कर आशीर्वाद प्रदान करें तो मुझे
विश्वास है कि तीर्थंकर आदिनाथ के साथ और भी २३ तीर्थंकर का हम सभी को आशीर्वाद मिलेगा, हम सभी का जीवन भी सफल हो जाएगा और हम सभी दिगम्बर-श्वेताम्बर के साथ ‘जैन’ कहलाएंगे, क्योंकि हम सभी ‘जैन’ ही तो हैं। २४ तीर्थंकरों के ही तो अनुयाई हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि हम सबका ‘णमोकार’ मंत्र तो एक ही है।
विश्व में फैले २४ तीर्थंकर के अनुयायियों ने जो प्रण लिया है कि तीर्थंकर आदिनाथ के जेष्ठ पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा था, जो कि आज विश्व में इंडिया के नाम से जाना जाता है, उसे वापस ‘भारत’ बनाना है तो हमें भी ‘जैन’ बनना होगा, भले ही हम जनसंख्या में कम हैं, लेकिन हमारे पास २४ तीर्थंकर का दिया हुआ आशीर्वाद ‘अहिंसा’ है, हम सभी अहिंसा के पथ पर चलकर ‘भारत’ को केवल ‘भारत’ ही बनवा लेंगे, इंडिया को विलुप्त करवा देंगे, क्योंकि हम सभी ‘भारत माता की ही जय’ बोलते हैं।
जय भारत!
लेटेस्ट अपडेटस प्राप्त करने के लिए खुद को सब्सक्राइब करें