हेग्गडे परिवार द्वारा सेवित धर्मसाधना पीठ: धर्मस्थल

भारत में जैनधर्म प्राचीन काल से विद्यमान है। विशेषत: दक्षिण भारत में और उसमें भी कर्नाटक में दीर्घ काल से जैनसत्ता प्रभावी होने के कारण उन राजकर्ताओं ने जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया। विशेषत: दक्षिण कन्नड जिले में राणी अब्बक्का एवं उसके पूर्व भी अनेक जिनमंदिर एवं साधनास्थलियों का निर्माण हुआ।
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड जिले के इन घाटियों में बसे मूडबिद्री, वेणूर, वाईनाड, कारकल ऐसे अनेक क्षेत्रों में धर्मस्थल तीर्थक्षेत्र ने अपना विशेष स्थान बनाया हुआ है, कर्नाटक के मेंगलोर जिले में बेल्तंगडी तालुका में धर्मस्थल यह क्षेत्र अपनी अतिशयता एवं हेग्गडे परिवार की भक्ति से एवं सुचारु रुप से चलायी जा रही व्यवस्था से विश्वप्रसिद्ध हो चुका है। धर्मस्थल क्षेत्र को ५०० वर्ष का प्राचीन हतिहास है। १५ वीं शती के प्रारंभ में मल्लारमाडी नाम का एक जैनधर्मी सामंत परिवार नेल्लियाडी बीडु नाम के हेग्गडे जी के घर में रहता था। बिरमण्ण पेंर्गडे एवं अंबूदेवी बल्लाळ्ति इन दोनों का नाम था, इस परिवार ने अपने निवासस्थान के निकट चंद्रनाथ स्वामी बसदि का निर्माण किया, वे अपनी दानशूरता के लिए प्रसिद्ध थे, इसी वजह से यह स्थान कुडुम अर्थात् हमेशा देनेवाला स्थान इस नाम से प्रसिद्ध हो गया, एक दिन धर्मदेव मानव के रूप में घोड़े एवं हाथियों पर अपना वैभव लेकर नलियाडी बीडु को आये, उनका इस दांपत्य ने आवोभगत के साथ स्वागत किया एवं दान देकर प्रसन्न किया, प्रसन्न होकर उन्होंने उन्हें अनेकानेक आशीर्वाद दिये, इन पति-पत्नियों ने उनकी पूजा की एवं इस परिवार ने अपना स्थान दूसरी जगह बना लिया, उस मंदिर के निकट ही सर्व धर्म समभाव हेतु एक विशाल मंदिर की स्थापना हुई, धर्मदेव के आदेशानुसार दो कुलीन व्यक्तियों को पूजनादि कार्य के लिए स्थापित किया गया, यह कार्य श्रद्धापूर्वक चलता रहा और अनेक पीढियों तक कार्य चलते हुए धन की अपार वृद्ध यहां पर हुई। हेग्गडे दंपति परंपरा से यहां पर उत्सवदि करने लगे।
इस कुडुम गाव में श्री चंद्रनाथ स्वामी, श्री मंजुनाथ, चारदेव एवं अण्णप्प देव इन सबकी पूजा होने लगी, उसी काल से अनोखे धर्मसंगम की शुरुवात हुई एवं यह क्षेत्र धर्मस्थल रूप में प्रसारित हुआ, सन् १४३२ में बिरमण्ण पेंगडे जी का जब स्वर्गवास हुआ तब उनके उत्तराधिकारी पद्यम हेग्गडे स्थापित हुए। १६वीं शती में सौदे (वर्तमान स्वादी) स्थान के आदिराज स्वामी यहां पर पधारे थे।
हेग्गडे परिवार ने उन्हें भिक्षाग्रहण करने के लिए निवेदन किया, किन्तु जहाँ मंजुनाथ की प्रतिमा देवों द्वारा स्थापित है वहाँ हम भिक्षा नहीं लेते, यह कहकर उन्होंने भिक्षा के लिये मना किया, इस पर हेग्गडे जी ने स्वामी जी से अपनी प्रतिमा पर धर्मसंस्कार करने का निवेदन किया उसी अनुसार सब कार्य संपन्न हुआ, वादिराज स्वामी उत्सव और दान से प्रसन्न हुए, उन्होंने उस ग्राम का धर्मस्थल नामकरण किया, सन् १९०३ में कुडुम गाव धर्मस्थल इस नाम से शासन के शासनपत्र में स्थापित हुआ, तबसे लेकर आज तक हेग्गडे परिवार इस स्थान को धर्मस्थल एवं दानशीलता का क्षेत्र के रूप में इनका विस्तार करने में तन-मन-धन से सतत कार्यशील है।
सन १८३० से १९५५ तक हेग्गडे परिवार के वंशजों ने मंदिर में अनेक निर्माण कार्य किए और अनेक सार्वजनिक कार्य जैसे विविध वस्तुएँ, प्रदर्शन, सर्वधर्म सम्मेलन इस कल्याणकारी परंपरा की शुरुआत की।
श्रीमान् रत्नवर्म हेग्गडे जी ने सन १९५५ से १९६८ तक में धर्मस्थळ में बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गंगा, कावेरी और नर्मदा नाम से सुसज्जित धर्मशालाएँ, १२ हॉल और परिवार के लिए छोटे भवनों का भी निर्माण किया। त्यागी-व्रतियों के लिए संन्यासिकट्टे नाम से त्यागी भवन का निर्माण किया, उजिरे ग्राम में कला, विज्ञान और वाणिज्य मंजुनाथेश्वर कॉलेज और धर्मस्थळ में हायस्कूल का निर्माण किया, उन्होंने अपने क्षेत्र में अनेक त्यागियों को रखकर धर्मस्वाध्याय भी किया, उन्होंने अनेक सर्वधर्म सम्मेलन आयोजित किए।

शृंगेरी के जगद्गुरु जी ने उन्हें राजमर्यादा एवं कोवियार मठ के स्वामीजी ने उन्हें धर्मवीर पदवी से विभूषित किया था, रत्नवर्म जी ने कारकल में बनी हुई भगवान बाहुबली की मूर्ति की तरह सन १९६७ में भ. बाहुबली की ३९ फीट की मूर्ति बनाने का कार्य प्रारंभ किया, यह स्व. रत्नवर्म जी द्वारा किया हुआ सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था, किन्तु इस कार्य के पूर्ण होने से पूर्ण होने से पूर्व ही हेग्गडे जी स्वर्गवासी हुए।
रत्नवर्म जी अधूरा कार्य श्री वीरेंद्र हेग्गडे जी ने पूरा किया, पिता की मृत्यु के पश्चात् केवल २० वर्ष की आयु में वीरेंद्र जी ने इस पदभार को संभाला, इसके साथ उन्होंने केवल अपने माता-पिता का संकल्प पूरा नहीं किया, अपितु अनेक अन्य कार्य कर इस क्षेत्र का नाम उज्ज्वल किया, उन्होंने भगवान बाहुबली की मूर्ति का कार्य पूर्ण कर उसे पहाड़ पर स्थापित कराया एवं सन १९८२ में आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज के सान्निध्य में प्रतिष्ठापना कर महामस्तकाभिषेक संपन्न कराया और बंटवाल के आदीश्वर स्वामी बसदि का कार्य पूर्ण किया। कर्नाटक, महाराष्ट्र, तामिलनाडू जैसे अनेक राज्यों में जैन मंदिरों के साथ अन्य मंदिरों का भी कार्य पूर्ण किया। युरोप, अमेरिका, रूस आदि अनेक विदेशी स्थान जाकर भी भारत देश एवं जैनधर्म का नाम रोशन किया, अनेक स्थानों का पंचकल्याण प्रतिष्ठापना स्थापना की, अनेक मंदिर-मस्जिद एवं चर्च आदियों को बृहत्दान दिया, सामूहिक विवाह पद्धति का प्रारंभ किया, अनेकों स्थान पर अस्पताल, स्कूल, कॉलेज आदि स्थापित किए, इस दानवीर परिवार ने ४ प्राथमिक स्कूल, २ हायस्कूल, ११ कॉलेज एवं ९ नये संस्थान स्थापित किए हैं, यात्रियों के लिए अनेक यात्रीनिवास बनवाये, अनेक इंजिनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज, आयुर्वेदिक कॉलेज, नॅचरोपथी कॉलेज आदि स्थापन कर बीमार लोगों की सेवा की।
वीरेंद्र हेग्गडे जी ने अनेक गावों को दत्तक लेकर वहाँ पर सभी सुविधाओं का निर्माण किया, इस कार्य से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री एवं बाद में पद्मविभूषण पदवी से भी सन्मानित किया, लंदन की संस्था ने उनके इस कार्य हेतु अतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया।
वीरेंद्र हेग्गडे जी ने अनेक उत्सव शुरु किए हैं, धर्मस्थल का लक्ष दीपोत्सव विश्व में प्रसिद्ध है, कार्तिक एकादशी से लेकर अमावस्या तक यह उत्सव चलता है, अंतिम दिन चंद्रप्रभु स्वामी जी के समवसरण की पूजा की जाती है।

महाद्वार निकटस्थ पहाड़ पर २७६ सीढियाँ चढकर ऊपर जाने पर भगवान बाहुबली स्वामीजी का दर्शन होता है, उनके समक्ष ३० फीट ऊँचा स्तंभ है एवं इस पर यक्ष प्रतिमा स्थापित है, इस मूर्ति की स्थापना करते हुए उन्हें चामुंडराय पदवी से विभूषित किया गया था। धर्मस्थल में निवास एवं भोजन की उत्कृष्ट व्यवस्था है।
हेग्गडे जी के निवासस्थान के निकट कार्यालय, भंडारगृह एवं अन्नपूर्णा नाम से भोजनालय है, यहाँ पर एक ही समय हजारों लोग भोजन करते हैं, यहाँ की साफ सुथरी एवं सुंदर व्यवस्था के लिए इस क्षेत्र का नाम ग्रिनीज बुक ऑफ रेकॉर्ड में दर्ज है, नेत्रावती एवं वैशाली नाम की धर्मशाला में अत्यंत कम किराए पर उपलब्ध की जाती है, यहाँ का म्युझियम, नगर की सफाई एवं अन्य सभी रचनाएँ मन को लुभाती है, नगर दर्शन एवं धर्मलाभ के लिए इस क्षेत्र का अवश्य दर्शन करें।

- प्रा. डॉ. महावीर प्रभाचंद्र शास्त्री

प्राकृत-संस्कृत विभाग प्रमुख वालचंद महाविद्यालय, सोलापुर

भगवान पाश्र्वनाथ जी का
अतिशय क्षेत्र कमठाण

जैन धर्म भारत वर्ष का अत्यन्त प्राचीन धर्म माना जाता है, क्रिस्त के जन्म से चार सौ साल पहले मौर्य चक्रवर्ती चंद्रगुप्त को कर्नाटक प्रांत का श्रवणबेलगोला में मानसिक शुद्धि के लिए आश्रय देकर जीवन रक्षण किया था, जैन धर्म बाहर के ठाट-बाट से उपर उठकर भीतरी शुद्धि को महत्व देने वाला धर्म है, जैन धर्म ने उत्तर भारत में जन्म लेकर सारे संसार को अहिंसा का संदेश दिया, दक्षिण भारत के कर्नाटक में जैन धर्म का डंका बजा, कर्नाटक का इतिहास इसका गवाह है, जैन धर्म का मूल तत्व अहिंसा का पालन तथा आत्म दर्शन है।
कर्नाटक का मुकुट स्थान बीदर जिल्हा धर्म समन्वय का संगम स्थान है, यहाँ अलग-अलग धर्म के मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिद, बुद्धस्तूप तथा जैनों के चैत्यालय भी हैं, बीदर जिल्हे के बहुत से गावों में आज भी जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां पाई जाती है।
बीदर केन्द्र स्थान से ग्यारह किलोमीटर दूरी पर कमठाण ग्राम के पश्चिम दिशा की ओर भगवान पाश्र्वनाथ जी का अति प्राचीन मंदिर हैं, बसवकल्याण तालुके के मिरखल, हुमनाबाद तालुका के केन्द्र स्थान पर पुरातन जैन मंदिर आज भी मौजूद हैं। भाल्की, औराद नगर में भी जैनों के जीर्ण-शीर्ण मंदिर और मूर्तियाँ पाई जाती हैं, बीदर से १८ किलोमीटर की दूर पर स्थित काडवाद ग्राम में सिद्धेश्वर मंदिर के बाहरी प्रांगण में आज भी भगवान महावीर की मूर्ति हमें देखने को मिलती है।
कमठाण बीदर जिल्हे का एक बड़ा गाँव है, इस गाँव का इतिहास कर्नाटक के प्राचीन इतिहास से जुड़ा हुआ है। रट्ट वंश के राज्यभार के समय में यह एक बहुत बड़ा खेड़ा गाँव था। कमठाण आज बीदर जिल्हे का एक बड़े गाँव के रूप में जाना जाता है, इस ग्राम के रास्ते में कर्नाटक का बहुत बड़ा पशु वैदिक महाविद्यालय बसा हुआ है, पुरातन काल से इस ऐतिहासिक गाँव में पुरातन विठल मंदिर, वीरशैवों का पुरातन मठ तथा ग्यारहवी शताब्दी के भगवान पाश्र्वनाथ जी का मंदिर देखने को मिलता है।

११सौ साल पुराना यह पट्टा राज वंश के राज द्वारा निर्मित जैनों के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथजी के ध्यान मग्न पदमासन की ४१ फीट ऊंची काले पाषाण की नयन मनोहर सुंदर मूर्ति आज भी दर्शनार्थियों को जैन धर्म का अहिंसा संदेश मौन वृत्त से दे रहा है, देखनेवालों को ऐसा प्रतीत होता है कि साक्षात तीर्थंकर मौनव्रत धारण कर तपस्या में जीवंत बैठे हुए हैं। करीब डेढ़ एकर की विशाल पटस्थल पर स्थित यह अतिशय क्षेत्र यात्रियों का यात्रा स्थल बन गया है, इस पुण्य परिसर में ३५ आम के वृक्ष यात्रार्थियों को ठंडी हवा प्रदान कर छांव देने को तत्पर हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा का प्रवेश द्वार बड़ा ही शुभकारी होता हैं, यह जानकर उत्तर दिशा के सड़क और महाद्वार का काम होना बाकी है, पूर्व में भी एक महाद्वार है, मंदिर के सामने ३५ फीट ऊंची मानस्तंभ बहुत ही मनमोहक एवं सुंदर है।
भगवान पाश्र्वनाथजी के गर्भ गृह के नीचे गुफा को अच्छी ढंग से मरम्मत करके वहां पर कांच का सुंदर काम करवाया गया है, यहाँ पर बैठ कर ध्यान करने से मन को शांति मिलती है, ऐसा कहा जाता है।
भगवान पाश्र्वनाथ जी के गर्भ गृह तथा शिखर में भी बड़े ही सुंदर ढंग से कांच का काम करवाया गया है, यहां पर भगवान पाश्र्वनाथजी का प्रतिदिन पंचामृत अभिषेक कराया जाता है, इसके लिए एक शाश्वत पूजा निधि का आयोजन करते हैं, जिसमें करीब ४०० सदस्य हैं, सदस्यता अभियान जारी है, सदस्यता शुल्क ५०१ रु. है, यहां पर पहले जैनों की पाठशाला और छात्रावास था, ऐसा लोग कहते हैं, गुरुकुल में विद्या प्राप्त बहुत से लोग अभी भी बीदर जिल्हे में मिलते हैं, अत: वैसा ही छात्रावास कमठाण अतिशय क्षेत्र परिसर में पुन: स्थापित कर नि:सहाय जैन छात्रों को विद्यादान करने हेतु पंच कमेटी ने निर्णय लेकर ‘श्रुतज्ञान छात्रावास’ नाम से एक छात्रावास निर्माण करने का संकल्प लेकर, उसके लिए स्केच तैयार कराकर इस्टीमेट भी बनवाया है, यहां पर २०० लोगों को बैठने की व्यवस्था वाला एक सुन्दर प्रवचन मंदिर और ५०० व्यक्तियों की क्षमतावाली सभा गृह का निर्माण कार्य भी पूरा हो गया है, अगर दानियों से उदार हस्त से दान मिलता रहा तो यहाँ की पंच कमेटी कुछ ही समय में आधे अधुरे सभी कार्य पूर्ण कर इसे एक प्रेक्षणीय स्थान तथा जैनों का पवित्र यात्रा स्थान बनाने में देर नहीं लगेगी।

भगवान पाश्र्वनाथजी की मूर्ति १९८९ फरवरी तक जमीन में बनी गुफा में थी, जिसे प. पू. आ. श्री १०८ श्रुतसागर मुनिमहाराज जी ने गुफा के उपरी भाग में एक सुंदर संगमरमरी के वेदी बनवा कर उस पर माघ शुक्ल ५, १९८७ को प्रतिस्थापित करवाया, तबसे इस मूर्ति की प्रभावना और बढ़ गई है, हमेशा यात्रार्थी आकर दर्शन लाभ लेकर जाते हैं, हर साल यहाँ पर माघ शुक्ला ५ से ७ तक तीन दिन बड़े हर्षोल्लास से वार्षिक रथयात्रा महोत्सव मनाया जाता है। आंध्र, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों से हजारों की संख्या में यात्रार्थी इस अवसर पर आकर पुण्य प्राप्ति के भागीदार बनते हैं, बीदर नगर के तथा पूरे जिल्हे के जैन समुदाय एकजुट होकर इस क्षेत्र की उन्नति के लिए रात दिन मेहनत कर रहा है, यहां पर यात्रार्थी और दर्शनार्थियों के सुविधा के लिए विश्रांतिगृह, भोजनगृह, पकवानगृह, शौचालय और पानी की सुविधा की गई है, इस गाँव में जैनों के सिर्फ दो ही परिवार बसे हुए हैं, जो मंदिर को यथा संभव स्वच्छ तथा सुव्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और पधारे दर्शनार्थियों को यथा योग्य सेवा और जरुरी सहुलियत उपलब्ध कराते हैं।

तीर्थ के विकास में सहयोग करने से पूण्यार्जन होता है

-आचार्यश्री विश्वरत्न सागरजी

राजगढ़: किसी भी जैन तीर्थ के विकास में सहयोग करने से पूण्यार्जन होता हैं, पूण्योदय से ही मानव जीवन का कल्याण होता हैं एवं परिवार में सुख शांति आती हैं, वहीं तीर्थ विकास में अवरोध उत्पन्न करने से कर्मों का बंधन होता है। अमीझरा तीर्थ विकास का स्वप्न आचार्यश्री नवरत्न सागरसूरिश्वर जी ने कहा था, अब हम सबकी जवाबदारी हैं कि मालवा की इस धरोहर की देखरेख कर आचार्यश्री के स्वप्न को पूर्ण करना हैं।
उक्त प्रेरणादायी उदबोधन आचार्यश्री विश्वरत्न सागर सूरिश्वरजी ने अमीझरा तीर्थ पर आयोजित ध्वजारोहण समारोह को संबोधित करते हुए दिखे, आपने कहा कि जिनशासन की असीम अनुकंपा से मालवा क्षेत्र में अनेक धरोहर है। भगवान पाश्र्वनाथ के १०८ मूल स्थानों में से एक अमीझरा तीर्थ है, इस तीर्थ के जीर्णोद्धार के लिए पूरी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। ट्रस्ट मण्डल की जवाबदारी है कि वह इसे मूर्तरूप प्रदान कर तीर्थ का विकास प्रारंभ करें, इसके पूर्व वार्षिक ध्वजारोहण के लिए ध्वजा का चल समारोह लाभार्थी परिवार शांतिलाल मोतिलाल पोसित्रा परिवार के निवास से आचार्यश्री की निश्रा में प्रारंभ हुआ, नगर के मुख्य मार्गों से होता हुआ तीर्थ परिसर पहुंचा, यहां पर विधिपूर्वक ध्वजारोहण की प्रक्रिया विधिकारक दर्शन चौहान (उन्हेल) ने पूरी की, ध्वजा को लेकर लाभार्थी परिवार ने मंदिर की तीन परिक्रमा भी की।
लाभार्थी परिवार व अतिथियों का बहुमान अमर ध्वजा एवं स्वामीवात्सल्य के लाभार्थी पोसित्रा परिवार के प्रफूल जैन, राजेश जैन, विशाल जैन का बहुमान ट्रस्टी राजेश जैन (उज्जैन), दिलीप फरबदा, सुरेश कांग्रेसा एवं ट्रस्ट के विधि सलाहकार महेंद्र सुंदेचा एडव्होकेट ने शॉल श्रीफल व मोतियों की माला से भेंट कर किया। लाभार्थी परिवार की महिला श्रीमती अनिता प्रफूल, विद्या राजेश का बहुमान रूपाली कोठारी रिंगनोद व अन्य महिलाओं ने किया। समारोह के अतिथि जिला पंचायत सदस्य कमल यादव, प्रवीण गुप्ता धार, सुधीर जैन इंदौर एवं नितिन चौहान राजगढ़ का बहुमान किया गया। ऋषभदेव मोतिलाल ट्रस्ट राजगढ़ की ओर से संदिप जैन ने कार्यक्रम में सहभागिता की।

धार की ओर किया विहार: ध्वजारोहण समारोह के तुरंत आचार्यश्री ने अपने मुनिमंडल सहित धार शहर के लिए प्रस्थान किया। विहार सेवा प्रमुख सुनिल फरबदा ने बताया कि धार में आयोजित भक्तांबर प्रतिष्ठा महोत्सव सहभागिता करेंगे, आचार्यश्री की १२ फरवरी तक धार में स्थिरता रहेगी, इसके बाद आप उज्जैन की और विहार करेंगे। उज्जैन शहर में मालवा के प्रसिद्ध जैन तीर्थ अवंतिका पाश्र्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सव को निश्रा प्रदान करेंगे, स्मरणीय यह है कि आचार्यश्री एक दिन पूर्व ही शनिवार शाम को अमीझरा तीर्थ पहुंचे थे, इस दौरान तीर्थ परिसर पर आचार्यश्री आगवानी नवरत्न परिवार के राष्ट्रीय संयोजक राजेश जैन, ट्रस्टी राजेश पोसित्रा, विशाल जैन, पुखराज जैन व पेढ़ी के कर्मचारियों द्वारा की गई।
जीव दया के लिए दान की घोषणा जैन समाज की परपंरा रही है, किसी भी धार्मिक आयोजन में अबोल पशु-पक्षियों के लिए धनराशि संग्रहित करते हैं, आचार्यश्री की प्रेरणा से इस समारोह में भी अनेक दानदाताओं ने १००८ रूपये के प्रत्येक अंश के मान से दान देने की घोषणा की, इसमें मालवांचल के अनेक गुरूभक्तों ने सहभागिता की, विशेष रूप से अमीझरा ट्रस्ट के कर्मचारियों ने भी अबोल पशुओं के लिए दान देकर अनुमोदनीय कार्य किया है। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन वीरेंद्र जैन पत्रकार राजगढ़ ने किया।

जवानों की शहादत पर राजनीति ना करें
सभी राजनेता एक होकर पाक को सबक सिखायें

-विनायक लुनिया

जबलपुर/इंदौर/उज्जैन/कोलकाता: जम्मू कश्मीर में आतंकी हमला में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों के शहादत पर राजनीति रंग दिखाना जारी हो गया है, जिस पर आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन के संगठन अध्यक्ष विनायक अशोक लुनिया एवं संगठन राष्ट्रीय अध्यक्ष सचिन कासलीवाल द्वारा समस्त पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षों/शीर्ष नेतृत्व को एक पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों के शहादत पर राजनीति ना करते हुए भारत के पक्ष में एक मत हो पाकिस्तान को सबक सिखाने और कड़ी कार्यवाही करने की अपील की।
पत्र में संगठन राष्ट्रीय अध्यक्ष सचिन कासलीवाल ने कहा कि बहुत हुयी बातचीत, अब भारत को माँ भवानी के रूप में आतंकियों व घर में छुपे गद्दारों का सर काटकर माँ भवानी को अर्पण करने का समय आ गया है।
आतंकी हमला पर पाक का समर्थन करने वालो को बीच चौराहे पर फांसी दे सरकार – आदित्य नारायण

संगठन के संस्थापक समिति सदस्य आदित्य नारायण बैनर्जी ने जम्मू कश्मीर से बड़े नेताओं के बयान आने के साथ ही कहा कि आतंकी हमला शामिल पाक का समर्थन करने वालों को बीच चौराहे पर लाकर फांसी से लटका दे सरकार, साथ ही श्री बैनर्जी ने कहा कि हर रोज पाक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक होना चाहिए और कश्मीर हमारा है ये पाक को बता देना चाहिए। श्री बैनर्जी सहित लुनिया व कासलीवाल ने अपने ट्वीटर व फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट शेयर करते हुए यह बात कही व साथ ही देश भर के समस्त राजनीतिक पार्टीयों को ईमेल कर के शहीदों के शहादत पर राजनीति ना करें, कठिन वक्त में सरकार के साथ मिल कर पाक के खिलाफ कड़े कदम उठाने की अपील की।

– आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन
७०६७०५२१३३

आचार्य महाश्रमण मुंबई में करेंगे
२०२३ का चातुर्मास

मुंबई : तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण ने वर्ष २०२३ का चातुर्मास मुंबई में करने की घोषणा की है, इस घोषणा से मुंबई श्रावक समाज में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी है। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा अध्यक्ष नरेंद्र तातेड़ के नेतृत्व में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर कोयंबतूर में करीब २०० श्रावकों की उपस्थिति में मुंबई श्रावक समाज को सेवा का अवसर मिला। कोयंबतूर में पूरे मुंबई श्रावक समाज की ओर से गुरूदेव से मुंबई में चातुर्मास का निवेदन किया गया।
मर्यादा महोत्सव के महाकुंभ में नेमाजी के. लाल ने मुंबई में गुरूदेव का २०२३ का चातुर्मास करने की घोषणा की, यह घोषणा होते ही मुंबई श्रावक समाज खुशी से झूम उठा।
मुंबई सभा मंत्री विजय पटवारी ने कहा कि गुरूदेव के प्रति जितनी कृतज्ञता ज्ञापित की जाए उतनी कम है, इसके साथ ही २०१९ का आगम मनीषी प्रोफेसर मुनि महेंद्र कुमार स्वामी का चातुर्मास कांदिवली तेरापंथ भवन, शासन साध्वी कैलाशवति का आचार्य महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल कालबादेवी एवं साध्वी अणिमा का चातुर्मास ठाणे तेरापंथ भवन में घोषित किया।

महाराष्ट्र में भगवान महावीर संशोधन केंद्र

चिकलठाणा (महाराष्ट्र): औरंगाबाद महानगर निगम वार्ड क्र. १०३, वेदान्तनगर में भ. महावीर संशोधन वेंâद्र के लिये, महानगर निगम के विशेष सभा में ४ करोड ७ लाख रू. की राशी घोषित की गई है।
वेदान्तनगर के ६ हजार ८८४ चौरस मिटर, खुली जगह पर १ हजार १० चौरस मीटर की दुमंजली इमारत का निर्माण होगा, इस इमारत में योग हॉल, भंडार कक्ष, प्रशासकिय कार्यालय, ग्रंथालय, एवम विपश्यना हॉल निर्माण किया जायेगा। लिफ्ट एवम् ए.सी. की सुविधा रहेगी।
महापौर (मेअर) मंद कुमार घोडेले इस विषय पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
महाराष्ट्र में ही नहीं भारत वर्ष के बीच औरंगाबाद महानगर निगम एक ऐसा निगम है जिसने भ. महावीर संशोधन केंद्र का निर्माण किया है।

सर्वसाधारण सभा में पंचायत कार्यकारिणी का चुनाव

चिकलठाणा (महाराष्ट्र): खंडेलवाल दिगम्बर जैन पंचायत पाश्र्वनाथ मंदिर, राजाबाजार औरंगाबाद के वार्षिक सर्वसाधारण सभा में विद्यमान अध्यक्ष ललित बबनलालजी पाटणी, सचिव अशोक तिलोकचंदजी अजमेरा का सर्वसम्मति से एक बार फिर से चुनाव हुआ है। उपाध्यक्ष पद पर विनोद लोहाडे तथा सह सचिव पद पर नरेंद्र अजमेरा का निर्विरोध चुनाव हुआ है।
पंचायत विश्वस्त मंडल पर महावीर पाटणी, चांदमल चांदीवाल, अ‍ॅड. एम.आर. बडजाते, प्रकाश अजमेरा, दिलीप ठोले आदि का चुनाव हुआ है। पत्रकार एम.सी. जैन ने सभी का अभिनंदन किया है।

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