आदिनाथ पुत्र भरत के नाम से बना भारत

आदिनाथ पुत्र भरत

प्रस्तुति सौ. शैलबाला भरतकुमार काला, मुंबई

आदिनाथ पुत्र भरत के नाम से बना भारत : भारत के यशस्वी पू. प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का परेड ग्राउंड, दिल्‍ली ६ में दिया गया ओजस्वी भाषण मननीय है। उन्होंने कहा था – ऋषभपुत्र ‘भरत’ के नाम से इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। इस बारे में ठोस अनुसंधान पूर्वक एक पुस्तक जनता के सामने आनी चाहिये। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने भी विद्वानों के परामर्श पर सम्राट ‘खारवेल’ के शिलालेख के आधार पर इस देश का नाम संवैधानिक नामकरण
‘भारतवर्ष’ स्वीकृत किया था।

पहले इस देश का नाम ‘अजनाभवर्ष’ था। यह नाम प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पिता नाभिराय के नाम पर पड़ा था। इस तथ्य को वैदिक व श्रमण संस्कृति दोनों में समान रूप से मान्यता प्राप्त है। ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के षटखंडाधिप होने की खुशी में विद्वानों व प्रजाजनों ने ‘अजनाभवर्ष’ का नाम भारतवर्ष कर दिया था।

विख्यात इतिहासविद्‌ डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल लिखते हैं कि ‘‘स्वायंभुव के पुत्र प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र आग्नीघ्र, आग्नीघ्र के पुत्र नाभि के पुत्र ऋषभदेव, ऋषभदेव के १०० पुत्रों, जिनमें ‘भरत’ ज्येष्ठ थे, यही नाभि ‘अजनाभ’ भी कहलाते थे, जो परम प्रतापी थे जिनके नाम पर यह देश ‘‘अजनाभवर्ष’’ कहलाता था।
पूर्वचिति अप्सरा अग्नीघ्र की भार्या थी, ने ९ खंडों में राज्य करने वाले ९ पुत्रों को जन्म दिया। उनमें ज्येष्ठ पुत्र नाभि थे, जिन्हें अजनाभ खंड का राज्य दिया गया।

यही अजनाभ खंड ‘भरत खंड’ कहलाया। नाभि के पौत्र भरत उनसे भी अधिक प्रतापवान चक्रवर्ती थे, यह अत्यंत मूल्यवान ऐतिहासिक परंपरा पुराणों में सुरक्षित रह गई है।’’ (जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व पीठिका, पृष्ठ ८) ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के षट खंडाधिप होने की खुशी में प्रजाजनों ने ‘अजनाभवर्ष’ का नाम ‘‘भारतवर्ष” कर दिया।

आदिनाथ पुत्र भरत के नाम से बना भारत 

‘भरत’ से पड़ा भारत नाम: भरत के नाम से ४ प्रमुख व्यक्तित्व भारतीय परम्परा में जाने जाते हैं – १. ऋषभदेव के पुत्र भरत, २. राजा रामचन्द्र के अनुज भरत, ३. राजा दुष्यंत के पुत्र भरत, ४. नाट्य शास्त्र के रचयिता भरत। इनमें से ऋषभदेव के पुत्र भरत सर्वाधिक प्राचीन व प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। उन्हीं के नाम से इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ हुआ।

डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने पहले दुष्यंत पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष कहा था किंतु बाद में उन्होंने इसे सुधारा और स्पष्ट किया कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। मैंने
अपनी भारत की मौलिक एकता नामक पुस्तक के पृष्ठ २२-२४ पर दुष्यंत पुत्र भरत से भारतवर्ष लिखकर भूल की थी, इसकी ओर मेरा ध्यान कुछ मित्रों ने आकर्षित किया। उसे अब सुधार लेना चाहिये। (डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ‘मार्कण्डेय पुराण एक अध्ययन’।

पदमपुराण रामधारी सिंह दिनकर ने भी लिखा है कि भरत ऋषभदेव के पुत्र थे जिनके नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। प्राचीन ग्रंथ ‘अग्नि पुराण’ भारतीय विद्याओं का विश्वकोष’ कहा जाता है। इसमें धर्म, ज्योतिष, राजनीति, व्याकरण, आयुर्वेद, अलंकार, छंद, योग, वेदान्त आदि सभी विषयों का समावेश है, इस ग्रंथ में ‘भरत और भारत’ से संबंधित निम्न पंक्तियां हैं :-

जरा-मृत्यु-भय ना हित धर्मो-धर्मो युगादिकम्।
ना धार्म महगमं तुल्या हिमादे तान्तु नाभितः।।

ऋशयो मरूदेव्यां च ऋशभाद्‌ भरतो ऽमवत‌ः।
ऋशभादडदात श्री पुत्रे भाल्य ग्रामे हरिंगतः
भरताद्‌ भारतवर्श भरतपात सुमतिस्वभूत ।।
(अग्निपुराण ४०-४४)

अर्थ – उस हिमवत प्रदेश (भारतवर्ष को पहले हिमवत प्रदेश कहते थे) में हरा, (बुढ़ापा) और मृत्यु का भय नहीं था,
धर्म और अधर्म भी नहीं थे, उनमें मध्यम समभाव था, वहां ‘नाभिराजा व मरूदेवी’ से ‘ऋषभ’ का जन्म हुआ।
ऋषभ से भरत हुए।
ऋषभ ने राज्य भरत को प्रदान कर सन्यास ले लिया। भरत से इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ हुआ। भरत के पुत्र का
नाम ‘सुमति’ था। (अग्निपुराण, ४०-४४)

आदिनाथ पुत्र भरत के नाम से बना भारत 

भारत सम्बंधी उल्लेख ‘मार्कण्डेय पुराण’ में भी कहा गया है, इसके रचयिता मार्कण्डेय ऋषि थे।उन्होंने भी उल्लेख किया है –
‘आग्नीघ्र सुनार्नाथिसतुऋशभो ऽ मभूत द्विण:।
ऋशभाद्‌ भरतो जज्ञे वीर: पुत्र शताद्‌ वर:।
सोत्र्भिषिंच्यर्षभः पुत्र महाप्राव्रम्य मास्थितः।
तपस्ते ये महाभाग: पुलहा संश्रय:।।
हिमाह्‌व दक्षिणी वर्श भरताय पिता ददो।
अग्नीपुत्र नाभि से ऋषभ उत्पन्न हुये, उनसे भरत का जन्म हुआ जो अपने १०० भाईयों में बड़े थे। ऋषभ ने
ज्येष्ठ पुत्र भरत का राज्याभिषेक कर महाप्रवज्या ग्रहण की और आश्रम में उस महाभाग्यशाली ने तप किया।
ऋषभ ने भरत को ‘हिमवत’ नामक दक्षिण प्रदेश शासन के लिये दिया था। अत: उस महात्मा ‘भरत’ के नाम से
इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ हुआ। (मार्कण्डेय पुराण) ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ जो काफी प्राचीन है, उसमें भी भरत और
भारत के सम्बंध में उल्लेख मिलता है –
‘नाभिस्त्वजनयत्‌ा पुत्र मरूदेव्यां महाद्युति:।
ऋशमभाद्‌ भरतो यज्ञ जे वीर: पुत्रशताग्रज:।।
ऋशभ पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्णनम्‌ा।
सोडभिषिंचयर्षभ: पुत्र महाप्राव्राज्य मास्तिथ:।।
हिमहूंव दक्षिणं वर्श: भरताय न्यवेदमत्‌ा।
तस्मास्तु भारतं वर्श तस्य नाम्ना विदर्बुधी:।(ब्रह्माण्ड पुराण)
अर्थ – नाभि ने मरूदेवी से महाद्युतिवान ‘ऋषभ’ नामक पुत्र को जन्म दिया। ऋषभदेव ‘पार्थिव श्रेष्ठ और सब
क्षत्रियों के पूर्वज थे, उनके १०० पुत्रों में वीर ‘भरत’ अग्रज थे। ऋषभ ने उनका राज्याभिषेक कर महाप्रवज्या ग्रहण
की थीr।उन्होंने भरत को ‘हिमवत’ नाम का दक्षिणी भाग राज्य करने के लिये दिया था और वह प्रदेश आगे चलकर भरत
के नाम पर ही ‘भारतवर्ष’ कहलाया। वायुपुराण में भी ठीक ऐसा ही कहा गया है, यह पुराण विष्णु-भक्ति का मुख्य
ग्रंथ है, इसमें एक उद्धरण है, ऐसा ही उद्धरण नारद पुराण में मिलता है यथा-
‘आसिततपुत्ररा मुनिश्रेश्ठ: भरतो नाम भूपति:।
आर्शभो यस्य नाम्नेदं भरत खंड युच्यते।।
स राजा प्राप्तराज्यंतु पितृपितामह: क्रमात्‌ा
पालरामास धर्मेण पितृवदपनयन्‌ा प्रजा:।। (नारद पुराण, पूर्वखंड)
अर्थ – पूर्व समय में लुनियों में श्रेष्ठ ‘भरत’ नाम के राजा थे।
वे ऋषभदेव के पुत्र थे, उन्हीं के नाम से यह देश ‘भारत वर्ष’ कहा जाता है।
उस राजा भरत ने राज्य प्राप्त कर अपने पितामय की तरह से ही धर्मपूर्वक प्रजा का पालन पोषण किया था।
लिंगपुराण’ शिवतत्व की मीमांसा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, उसमें भगवान शंकर के ३८ अवतारों का
वर्णन है।इस पुराण में ‘भरत और भारत’ के सम्बंध में लिखा है –
‘नाभिस्तजनपत पुत्र मरूदेव्यां महामति:।
ऋशकभ पार्थिव श्रेश्ठं सर्वक्षत्र-सुपूजितम्‌ा।।
ऋशभपाद्‌ भरणे जझे वीर: पुत्र भाताग्रज:।
सकृभिशिकृचय ऋशभो भरत पुत्र वत्सज:।।
हिमाद्रेदी तर वर्श भरताय न्‍्यय वेदयात्‌ा।
के तस्मातं भारत वर्श यस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।।
लिंगपुराण, ४७/४९/२३)
अर्थ- महामति नाभि को मरूदेवी नाम की धर्मपत्नी से ऋषभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, यह ऋषभ पार्थिवों
(नृपतियों) में आता है और संपूर्ण क्षत्रियों द्वारा पूजित था। ऋषभ से भरत की उत्पत्ति हुई जो अपने १०० भ्राताओं
में अग्रजन था। पुत्र वत्सल ऋषभदेव ने भरत को सम्यपद पर अभिषिक्त किया, उन्होंने हिमवान के दक्षिणी भाग
को भरत के लिये दिया, उसी भरत के नाम से विद्वान इसे ‘भारतवर्ष’ कहते हैं।

स्कन्द पुराण’ एक वष्हकाय ग्रंथ
है, इसकी ६ संहिताओं में ८४,००० श्लोक हैं। इस ग्रंथ में भारतवर्ष के नामकरण का जिक्र आया है –
नाभे: पुत्र षबृभ, ऋशभाद्‌ भरतो मवेत्।
तस्य नाम्ना त्विदं वर्श भारत चेति कीते ।।
(स्कंद पुराण, माहेश्वर खंडस्थ कौमाखंड)
अर्थ- नाभि का पुत्र ऋषभ और ऋषभ से ‘भरत’ हुआ, उसी के नाम से यह देश ‘भारत’ कहा जाता है। ‘श्रीमद्‌
भागवत’ भक्ति का अमर स्त्रोत है, महर्षि व्यासदेव ने इस ग्रंथ में उल्लेख किया है –
येशां रवलु महायोगी भरतो ज्येशठः श्रेश्ठ: गुणश्रया।
येनेदं वर्श भारतामिति व्यपदिशन्तिं ।।
अर्थ – श्रेष्ठ गुणों के आश्रयभूत, महायोगी भरत अपने १०० भाईयों में श्रेष्ठ थे, उन्हीं के नाम पर इस देश को
‘भारतवर्ष’ कहते हैं।

(श्रीमद्‌ भागवत ५-४-९)
‘सार्थ’ एकनाथी भगवान ने भी मराठी भाषा में उल्लेख किया है – अर्थ- ऋषभदेव के पुत्र भरत ऐसे थे, जिनकी
कीर्ति सारे संसार में आश्चर्यजनक रूप से फैली हुई थी। भरत सर्वपूज्य हैं। कार्य आरम्भ करते समय भरत जी का
नाम स्मरण किया जाता है। ऐसे भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा।
ऐसा तो ऋषभाचा पुत्र जपसी नाम भरत त्यांच्या नामाची कीर्ति विचित्र।

परम पवित्र जगामापी तो भरतु राहिलामूमिकेसी।
म्हण्पेणि भारतवर्श म्हणती यासी।
सकल कर्म्मरिम्मी करिता संकल्पवासी।
ज्याचिया नामामि स्भरतासी।

(सार्थ एकनाथी भावत २-४४-४३)

सूरदास हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे, उन्होंने ‘सूरसागर’ ग्रंथ की रचना की थी उन्होंने भी उल्लेख किया है-
ऋषभदेव जब वन को गये, नवसुत नवौ-खंड-न प भये।
भरत सौ भरत खंड को रच, करे सदा ही धर्म अरू न्याव।।
(सूरसागर, पंचम स्कंध पृष्ठ ४५०/४५४)
शिवपुराण में शंकर से सम्बंधित महत्वपूर्ण मान्यताएं का वर्णन है, इस पुराण में २४,००० श्लोक हैं। इसमें ‘भरत’
के सम्बंध में कहा गया है –
नाभे: पुत्र चं वृशभो वृशभात् भरतोऽयवत्।
तस्य नाम्ना त्विदं वर्श भारत चेदि कीर्त्यते।। (शिवपुराण ३७/५७)
अर्थ – नाभि के पुत्र वृषभ हैं और वृषभ के पुत्र भरत हुए, उनके नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष हुआ।
‘महापुराण’ में भी वृषभ और भरत से सम्बद्ध अनेक उद्धरण मौजूद हैं। महापुराण भगवाज्जिनसेनाचार्य का
ख्याति प्राप्त ग्रंथ है, इसकी रचना ईसवी सन् ९वीं शदी में की गई थी, जिसके एक स्थान पर लिखा है-
ततोभिषिच्य-साम्राज्ये भरत सुनुमामिपमम्।
भगवान‌ भारतवर्ष तत्सनाथं व्यधादिदम ।।
महापुराण ४७//७६
इसके पश्चात्‌ा भगवान ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र का राज्याभिषेक किया तथा भरत से शासित प्रदेश
भारतवर्ष हो ऐसी, घोषणा की थी। इसी ग्रंथ में एक दूसरे स्थान पर भरत और भारत दोनों के नाम की सार्थकता
बतलाई गई, वह इस प्रकार है- प्रमोद भरतः प्रेम निर्भरा बंधुता सदा।
तमाहवतं भरतं भावि समस्त भारधतितम्।।
तन्‍नस्ना भारतं वर्षामि तिहासींजनास्पदम्।
हिमाद्रेशसमुद्राच्च क्षेत्र चक्रमृतामिदम्।।
अर्थ- समस्त भरत क्षेत्र के भावी आधिपति को आनंद की अतिशयता से प्रगाढ़ प्रेम करने वाले बंधु समूह ने ‘भरत’
ऐसा कहकर संबोधन दिया। उस भरत के नाम से हिमालय से समुद्र पर्यन्त यह चक्रवर्तियों का क्षेत्र ‘भारतवर्ष’
नाम से लोक में प्रसिद्ध हुआ।
‘पेरूदेव चम्पूः जैन साहित्य का सुप्रसिद्ध काव्य है, इसमें पुरूदेव ऋषभदेव का जीवन चारित्र साहित्यिक सांचे में
प्रस्तुत किया गया है, पुरूदेव ऋषभदेव के संदर्भ में ही भरत और भारत का भी उल्लेख है-
तन्न्‍म्ना भारतं वर्शामितिहासीज्जनास्पदम्
हिमाद्रेशसमुदाच्च क्षेत्र चक्रभूतादिकम् (पुरूदेवचम्पू ६,३२)
अर्थ-भरत के नाम से यह देश ‘भारतवर्ष’ प्रसिद्ध हुआ, ऐसा इतिहास है। हिमालय कुलांचल से लेकर लवणसमुद्र
तक का यह क्षेत्र ‘चक्रवर्ती’ का क्षेत्र कहलाता है।

‘वसुदेवहिंदी’ प्राकृत भाषा का प्रसिद्ध जैन ग्रंथ है, इसमें एक स्थान पर वसुदेवहिंदी के लेखक ‘धर्मसेनमणि’ ने
उल्लेख किया है –
तत्व भरहो भरहवास चूड़ामणि, तस्सेव णामेण इहं भारतवासंति पवपुचंति।’ (वसुदेवहिंदी प्र. ख. पष्ष्ठ ८६)
अर्थ- भारतवर्ष का चूड़ामणि भरत हुआ, उसी के नाम से इस देश को ‘भारतवर्ष’ कहते हैं। ‘जम्बूद्वीप पण्णत्ति’
एक प्रसिद्ध जैन ग्रंथ है इसमें जम्बूद्वीप का साधिकार विवेचन किया गया है, इसके भारतक्षेत्राधिकारी में
भारतवर्ष के नामकरण के सम्बंध में लिखा गया है-
‘भरते अईत्यदेवे णहि डिड्समहाज्जुए जावपति ओवमढिइए परिवसइ।
स ए एणट्ढेणं गोयमा, एवं वुच्चइ भरहेवासं।।’
अर्थ- इस क्षेत्र में एक महर्द्धिक, महाद्युति वंत, पल्‍यो पमथति वाले ‘भरत’ नाम के देव का वास है। उसके नाम
से इस क्षेत्र का नाम भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ। इसी अधिकार में एक दूसरे स्थान पर लिखा है,
‘भरतनाम्नश्चक्रिणो देवाच्च भारत नाम प्रवष्तं भारत वर्षाच्च तयानचि।’
अर्थात्‌ा भरत चक्रवर्ती के नाम से भारत वर्ष का नामकरण हुआ और भारतवर्ष से उनका सीधा सम्बंध है। इस
प्रकार वैदिक पुराण व परम्परा तथा जैनों के पुराण ग्रंथ में ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ को ही ‘भारतवर्ष’ नाम को
मुलाधार मानते हैं, इसमें कोई दो मत नहीं है।
संदर्भ:- भरत और भारत
डॉ. प्रेमसागर जैन

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