Category: फरवरी-2016

सांसारिक सुखों का त्याग कर लिया सन्यास 0

सांसारिक सुखों का त्याग कर लिया सन्यास

संन्यास लेने वालों में दो सगी बहनें शामिल  हमेशा पैदल चलेंगी और जमीन पर सोएंगी घर-परिवार त्यागकर निकली तीनों लड़कियां मुंबई: भिवंडी में जैन समाज की तीन लड़कियों ने दीक्षा लेकर संन्यास धारण कर लिया, इनमें दो सगी बहनें दीक्षा लेकर मुमुक्षु दीपिकाबेन से प.पू.सा.श्री ज्ञानर्षिनिधि श्रीजी म.सा. एवं मुमुक्षु जिनलबेन से प.पू. सा.श्री खेमर्षिनिधि श्रीजी म.सा. और मुमुक्षु भक्तिबेन से प.पू.सा.श्री द्वादशांगनिधि श्रीजी म.सा. हो गई हैं।भिवंडी स्थित गोकुलनगर मैदान में एक भव्य कार्यक्रम में श्रमणी गणनायक प.पू. आचार्य श्री अभयशेखर सुरीश्वरजी म.सा. द्वारा तीनों मुमुक्षु कुमारियों को दीक्षा देकर सांसारिक जीवन से मुक्त कर दिया। साध्वी बनने के बाद तीनों लड़कियां अपना घर,परिवार त्यागकर एक दिन के विहार के लिए चली गई। दो दिन बाद वापस आने पर ये तीनों शिवाजी चौक स्थित आराधना भवन में श्री पोरवाल श्वेताम्बर जैन ट्रस्ट द्वारा आयोजित वाचना सत्र में अन्य साध्वी के साथ शामिल हुई और वाचना सत्र समाप्त होने के बाद अलग-अलग क्षेत्रों में विहार करने के लिए निकल गयीं।तीनों ने साध्वी बनने के लिए बहुत ही कठिन व्रत लिया है, बिना जूताचप्पल के कभी न चलने वाली ये लड़कियां अब जिंदगी पर चप्पल नहीं पहनेंगी, अपने पास एक पैसा भी नहीं रखेंगी, हमेशा पैदल चलेंगी और जमीन पर सोएंगी। विहार के दौरान अपना सामान भी स्वयं लेकर जाएंगी, इनके पास सिर्फ दो जोड़ी कपड़ा एवं भोजन करने के लिए लकड़ी का एक पात्र रहेगा। भिक्षा मांगकर दिन में दो बार भोजन करेंगी। सुबह सूर्योदय होने के ४८ मिनट के बाद और शाम को सूर्यास्त होने के पहले भोजन कर लेंगी, उसके बाद रात्रि में कुछ भी नही लेंगी, यहां तक की बीमार होने पर भी रात में दवा नहीं लेंगी। बिजली, पंखा, लाइट, वाहन सहित किसी भी प्रकार के संसाधन का उपयोग कभी भी नही करेंगी।मुमुक्षु कुमारी दीपिकाबेन एवं जिनलबेन की बड़ी बहन और मौसी भी दीक्षा लेकर साध्वी बन गई हैं, उनके संपर्क में रहने के बाद ये दोनों बहनें भी कठिन व्रत का पालन करने के लिए घर-परिवार त्याग कर निकली हैं। जन्मभूमि बनेंगी अब तीर्थ भूमि : आचार्य विश्वरत्न सागरसूरि राजगढ़(धार) गुरूदेव की जन्मभूमि अब तीर्थ भुमि बन चुकी हैं। गुरूदेव के अधूरे सपने को हम पूरी सिद्धत से पूर्ण कर रहे हैं। आपकी निश्रा में ४० मंदिरों का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था, तीन वर्षों बाद अनेक मंदिरों में प्रतिष्ठा हो चुकी हैं, शेष मंदिरों में कार्य प्रगति पर हैं। ५५० वर्षों पश्चात् एक ऐसी पूण्यात्मा का जन्म राजगढ़ नगर में हुआ जिन्होंने पूरे विश्व में जैनसमाज के नाम रोशन किया और मालवांचल में ५५० वर्षों के अंतराल बाद जिनशासन की पताका को सभी ओर लहराया हैं।उक्त बातें आचार्यश्री नवरत्नसागरसूरिश्वरजी के पट्धर युवाचार्य श्री विश्वरत्न सागरसूरिश्वरजी ने नवरत्न आराधना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही, इसके पूर्व आपके नगर प्रवेश पर भव्य शोभायात्रा निकाली गई। आचार्यश्री ने कहा कि नवरत्न सागरजी ने अपने जप-तप के बल से मालवांचल में जिनशासन के कार्यों को अत्यंत सफलता पूर्वक संपन्न कराया, आपने गच्छ परंपरा की सीमाओं को लांघकर आमजनों से जैन शासन को जोड़ने का अभूत पूर्व कार्य किया, सभा के प्रारंभ में समाज के वरिष्ठ जवेरीलाल जैन एवं निर्मल जैन ने उपस्थितजनों को गुरूवंदन कराया। शुभारंभ में नवरत्न बहुमण्डल एवं विनीता, अल्का एवं रेखा जैन ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। नगर प्रवेश पर हुई भव्य आगवानीआचार्यश्री अपने मुनिमण्डल सहित प्रातः ९ बजे नवरत्न आराधना भवन पहुंचे, यहां पर ऋषभदेव मोतिलाल ट्रस्ट अध्यक्ष मनोहर जैन, सचिव राजेश कामदार ने आगवानी की, इस अवसर पर पूर्व अध्यक्ष दिनेश संघवी, ट्रस्टी सुरेश कांग्रेसा, संदिप जैन, सुनिल संघवी, पुष्पेंद्र कांग्रेसा, बसंतलाल मुठरिया सहित अनेक गणमान्य नागरिक मौजूद थे।   शहर में निकली शोभायात्रा आचार्यश्री के मंगल प्रवेश समारोह के अवसर पर भव्य शोभायात्रा निकाली गई, इसमें नगर की विभिन्न महिला मण्डल की सदस्याएं मंगल कलश लेकर चल रही थी, नगर के १० महिला मण्डल ने शोभायात्रा में सहभागिता की, मण्डल की तय पौषाखों में महिलाओं की उपस्थिति आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। नगर के सभी मुख्य मार्गों से होती हुई शोभायात्रा पुनः नवरत्न आराधना भवन पहुंची, रास्ते में अनेक स्थानों पर अक्षत एवं श्रीफल से गहुली कर आचार्यश्री की आगवानी की गई, शोभायात्रा के प्रारंभ में ऋषभदेव मोतिलाल ट्रस्ट के ट्रस्टियों व पदाधिकारीयों की ओर से नवकारसी व्यवस्था की गई थी, नवरत्न भवन में आयोजित धर्मसभा को आचार्यश्री के अलावा युवामुनिश्री किर्तीरत्न सागरजी, उदयरत्न सागरजी, उज्जवलरत्नजी, पद्मरत्नजी, लब्धीरत्नजी एवं बालमुनि रम्यरत्नजी ने निश्रा प्रदान की, साथ ही साध्वीमण्डल ने भी निश्रा दी। दो आचार्यों का हुआ मिलन यूवाचार्यश्री विश्वरत्नजी ने चालनीमाता से विहार कर प्रसिद्ध जैन तीर्थ मोहनखेड़ा में पहुंचे, गुरूदेवश्री राजेंद्रसूरिश्वरजी के समाधि मंदिर में दर्शन-वंदन किए एवं तीर्थ पर विराजित गच्छाधिपति आचार्यश्री ऋषभचंद्रसूरिश्वरजी से मुलाकात की, इस दौरान तीर्थ विकास, जिनशासन एवं तीर्थों की सुरक्षा के संबंध में विचार-विमर्श हुआ।आचार्यश्री, अमझेरा स्थित अतिप्राचीन श्री अमिझरा पाश्र्वनाथ जैन तीर्थ पर १० फरवरी को पहुंचें, आपकी निश्रा में तीर्थ पर वार्षिक ध्वजारोहण समारोह का आयोजन हुआ, इसके पूर्व आप राजगढ़ में ५ फरवरी का आयोजित महामांगलिक श्रवण कराकर धार स्थित जैन तीर्थ भक्तांबर के लिए प्रस्तावना की, धार में भक्तांबर तीर्थ पर आयोजित प्रतिष्ठा महोत्सव में निश्रा प्रदान की गयी। जिनागम के प्रबुद्ध पाटक का हुआ आकस्मिक निधन यदि समय रहते सहयात्रियों का सहयोग मिला होतातो शायद देवकुमार आज भी हमारे बीच होते जीवन के अंतिम समय में निष्ठुरता व अमानवीय व्यवहार के शिकार हुए देवकुमार   बेंगलुरू: व्यक्ति के जीवन में मानवता का होना बहुत जरूरी है, मानवता सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, कहा जाता है कि यदि मानवता का गुण विद्यमान है तो घर भी तीर्थ समान है, फिर भी शास्त्रों में तीर्थ स्पर्शना की महिमा बताई गई है और हर धर्म के व्यक्ति अपनी अपनी मान्यतानुसार तीर्थों की यात्रा करते हैं, ऐसी ही एक तीर्थ यात्रा में हाल ही में बेंगलुरू के जैन सुश्रावक धर्मनिष्ठ देवकुमार जैन का सम्मेतशिखर तीर्थ पर अचानक देवलोकगमन हो गया, यह सामान्य घटना होती तो हम भी इसका जिक्र यहां नहीं करते परन्तु देवकुमारजी के दोनों पुत्र अभयकुमार एवं सुरेशकुमार का एक पत्र सोशल मीडिया पर सार्वजनिक हुआ जिसमें उन्होंने अपने पिता के अंतिम समय के घटना क्रम का बड़ी वेदना के साथ वर्णन किया है और दुख जताया है कि जिस व्यक्ति ने हमेशा धर्म और धार्मिक संस्थाओं से पूरी निष्ठा से जुड़ाव रखा, उस व्यक्ति के अंत समय में उसको और उसके परिवार को उनके हाल पर छोड़कर यात्रा कर रहे सब लोग आगे बढ़ गए।   सोशल मीडिया पर वायरल हुए पत्र में बेटों ने लिखा है कि उनके पिता देवकुमार जैन कांकरेज प्रगति समाज द्वारा आयोजित एक ११ दिवसीय जैन तीर्थयात्रा संघ में करीब ४०० तीर्थयात्रियों के साथ सफर कर रहे थे, उनके साथ उनके परिवार के अन्य पांच सदस्य भी उस तीर्थ यात्रा संघ में शामिल थे। सम्मेतशिखरजी तीर्थ पहुंचकर देवकुमार की ह्रदयगति कम हो जाने से वे अचेतन अवस्था में पहुंच गए, इस सामूहिक यात्रा में डॉक्टर की उपलब्धता न होने के कारण उन्हें तुरंत अस्पताल में रैफर किया गया। ४०० यात्रियों का समूह जिसमें शायद स्व. देवकुमारजी अधिकतर लोगों को जानते-पहचानते होंगे, मूकदर्शन बना खड़ा रहा और इक्का-दुक्का व्यक्ति को छोड़कर कोई भी उनकी मदद को आगे नहीं आया, यह कैसी मानवता या कैसी प्रभु भक्ति है, एक तरफ हमारा साथी जीवन व मौत के बीच में संघर्ष कर रहा हो, हम उसे असहाय छोड़कर प्रभु भक्ति में लगे रहें, माना किसी आयोजन में बहुत खर्च व व्यवस्था लगती है परन्तु एक व्यक्ति, वह भी देवकुमार जैसे मिलनसार और बहुपरिचित व्यक्ति को विकट परिस्थिति में किसी अनजान शहर में दूसरों के सहारे छोड़कर अपने आगे के गंतव्य को निकल जाना एक बेहद अमानवीय कृत्य रहा।व्यक्तिगत यात्रा पर जाने से पहले हर व्यक्ति अपने स्तर पर हर प्रकार की तैयारी करके जाता है और जब इस प्रकार कई दिनों की सामूहिक व सार्वजनिक यात्रा हो तो तैयारियां बड़े व व्यापक स्तर पर करनी होती हैं।आयोजन मंडल में सुरेन्द्रगुरूजी जैसे अनुभवी व्यक्ति होते हुए भी पूरी यात्रा में डाक्टर का न होना एक बहुत बड़ी भूल थी, पत्र में जिक्र किया गया है कि डाक्टर की उपलब्धता न होना एक तरफ है परन्तु यात्रा आयोजन मंडल के सदस्यों की मानवता, सहयोग, आपसी प्रेम की भावना का नदारद होना या साथी यात्रियों की निष्ठुरता कई बार बहुत भारी पड़ जाती है और ऐसा ही हुआ देवकुमार जैन के साथ। स्व. देवकुमार जैन के ज्येष्ठ पुत्र अभयकुमार जैन ने बताया कि उनके पिता के अंतिम समय में उनके साथ इतना बुरा हुआ कि जिसे कहने में भी ह्रदय फटता है, उन्होंने बताया कि यात्रा संघ में शामिल सभी व्यक्ति (एक-दो को छोड़कर) उनके पिता को मरणासन्न अवस्था में छोड़कर आगे चल दिए। सम्मेतशिखर से हॉस्पिटल तक पहुंचाने वाली एक गाड़ी भी बिना इंतजार तुरताफुरती में अस्पताल से बिना कोई सूचना दिए कब वापस रवाना हो गई, पता ही नहीं। प्राथमिक उपचार न मिलने के कारण देवकुमार को वहां से करीब ४० किलोमीटर दूर गिरिडीह अस्पताल के लिए रैफर किया गया।साधनों की उपलब्धता न होने के कारण गिरिडीह अस्पताल पहुंचने में देर हो गई और देवकुमारजी की सांसे पूरी तरह थम गईं। अभय ने बताया कि अस्पताल पहुंचने पर देवकुमारजी को मृत घोषित बताया गया, जिसके बाद पोस्टमार्टम जैसी अन्य ह्रदयविदारक औपचारिकताओं से उनका सामना हुआ, अभय ने बताया कि आयोजन समिति यदि समय रहते तेजी से उपचार का इंतजाम करवा सकती तो शायद आज देवकुमारजी हमारे बीच होते, उनका कहना है कि ह्रदयगति रूक भी जाए तब भी प्राथमिक उपचार से प्रयास तो करने ही पड़ते हैं, इतना ही नहीं यदि पूरा यात्रा संघ साथ होता तो कम से कम पोस्टमार्टम जैसी विषम परिस्थितियों से बचा जा सकता था, यदि संघ में डाक्टर होता तो भी पोस्टमार्टम की प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता, उनकी डेथ सर्टिफिकेट काम आ जाती। अभय ने बताया कि व्यक्ति चला जाता है उसकी भरपाई करना तो मुश्किल है परन्तु ऐसे विकट समय में यदि अपने परिचित अपने साथ खड़े रहते हैं और ढाढस बंधाते हैं तो दुख हल्का हो जाता है परन्तु ऐसा हमारे साथ कुछ नहीं हुआ और हमारे अपने परिचित, रोज उठने-बैठने वाले लोग भी हमें अधर में छोड़कर आगे चले गए, यह कैसी मानवता है, यह कैसा परिचय और अपनापन है, अभय ने बताया कि पत्र में तो परिस्थितियों को बहुत ही शालीनता से बताया गया है परन्तु वास्तिवकता इसके और भी भयावह है, अभय ने ऐसी बातें भी बताई कि सुनकर किसी का भी दिल भर आए।अभय ने यह भी बताया कि देवकुमार जैन आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट के सदस्य व लब्धिसूरी जैन धार्मिक पाठशाला के चेयरमैन थे, इसलिए चिकपेट ट्रस्ट को भी इस पूरी घटनाक्रम के बाबत एक पत्र दिया गया है। कुछ दिनों से यह पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है और एक सोच को जन्म देता है कि कहां जा रहा है हमारा समाज, क्या हम मात्र आयोजन करने में विश्वास रखते हैं, किसी के जीवन का हमारे लिए कोई महत्व नहीं है? ऐसी घटनाएं हमें एक सबक देकर जाती हैं कि हम जब भी कोई सामाजिक व सामूहिक आयोजन करें तो इस प्रकार की संभावित विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए एक योजना बनाएं और उसकेआधार कर कार्य करें, किसी भी यात्रा के आयोजकों को समझना चाहिए कि कोई भी आयोजन किसी व्यक्ति के जीवन से बड़ा नहीं हो सकता।आयोजन तो फिर किए जा सकते हैं परन्तु इस दुनिया से गया व्यक्ति कभी वापस नहीं आता। देवकुमार जैन की आकस्मित मौत समाज के सामने अनेक अनसुलझे प्रश्नों का पुलिंदा छोड़ गई है जिन पर गहन व सार्थक चिंतन व मनन होना चाहिए। -अभय देवकुमार जैन, बैंगलुरू भारतीय जैन संस्कृती में महिलाओं को उचित स्थान तथापंचामृत अभिषेक का अधिकार मिले – राष्ट्रसंत आचार्य देवनंदिजी   चिकलठाणा (महाराष्ट्र): महाराष्ट्र के प्रख्यात संकटहार पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ‘जैनगिरी जटवाडा’ में २ फरवरी से ६ फरवरी २०१९ तक जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया, जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समापन समारोह पर बोलते हुए प्रज्ञाश्रमण राष्ट्रसंत सारस्वताचार्य देवनंदिजी ने कहा कि भारतीय जैन संस्कृती में महिलाओं को सदैव उचित स्थान दिया जाये तथा ‘पंचामृत अभिषेक’ करने का अधिकार भी प्राचीन समय से महिलाओं को दिया जाये। यह भी प्रासंगिक है। एम.सी.जैन जैन समाज का पूजनीय तीर्थ महावीर जी मेंजैन सोशल ग्रुप का राष्ट्रीय अधिवेशन सम्पन्न महावीर जी: दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप फेडरेशन का २३वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन व रजत जयन्ती वर्ष समारोह गत २६ व २७ जनवरी, २०१९ को पावन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीर जी में धूम-धाम के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ। फेडरेशन के संस्थापक अध्यक्ष श्रीमान् प्रदीप कुमार सिंह कासलीवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसमुख जैन गांधी, महासचिव आर.के.जैन (एक्साईज), कोषाध्यक्ष राकेश विनायका, कॉन्फ्रेंस प्रभारी राजेश जैन लॉरेल व परामर्शक, संरक्षक (अधिवेशन) महेन्द्र पाटनी, अनिल जैन (आई.पी.एस.), सुरेन्द्र जैन पांडया, नवीन सैन जैन, सुरेन्द्र कुमार पाटनी, रीजन अध्यक्ष अतुल बिलाला, ग्रुप सूत्रधार श्रीमती मालती जैन व सम्पूर्ण राजस्थान रीजन के मार्गदर्शन, सानिध्य के साथ समारोह के आयोजन का गुरूत्तर दायित्व कॉन्फ्रेंस चैयरमेन व आयोजक ग्रुप संस्थापक अध्यक्ष यशकमल अजमेरा के कुशल नैतृत्व में दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप डायमण्ड जयपुर ने उठाया और इस राष्ट्रीय समारोह के आयोजन में नया कीर्तिमान रचते हुये इस भव्य अधिवेशन को नयी बुलन्दिया प्रदान की। कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष आनन्द अजमेरा, सचिव मुकेश जैन, कोषाध्यक्ष रमेश छाबड़ा, को-चेयरमेन पारस कुमार जैन, मुख्य समन्वयक भारत भूषण जैन (प्रशा), राजकुमार अजमेरा, प्रमोद जैन सोनी, विनोद जैन कोटखावदा, मनीष बैद (प्रिन्ट एवं मिडिया) व सम्पूर्ण डायमंड टीम के सभी सदस्य इस आयोजन में कन्धे से कन्धा मिलाकर जुटे हुये थे और सुनिश्चित कर रहे थे कि व्यवस्थाओं में कोई कसर न रह जाये, समारोह में आये किसी भी सदस्यगण को किसी भी प्रकार की समस्या/असुविधा न हो, सभी के आवास की समुचित व्यवस्थाएँ की गयी थी और विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन परोसकर मेहमान नवाजी भी की गयी।समारोह के प्रथम दिन गणतन्त्र दिवस पर सुबह की शुरूआत राष्ट्रीय ध्वजारोहण के साथ शुरू हुई। राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसमुख गांधी ने सैकड़ों सदस्यों की उपस्थिति में ध्वजारोहण का कार्य सम्पादित किया, तत्पश्चात मुख्य मंदिर जी परिसर में देवाधिदेव भगवान महावीर के अभिषेक और सामुहिक महावीर विधान की संगीतमय पूजा की गयी व सदस्यों ने आल्हादित मन और भक्ति भाव से पूजा विधान में भाग लिया। दोपहर के भोजन के पश्चात मुख्य मण्डप में खुला मंच कार्यक्रम आयोजित हुआ, इस कार्यक्रम में विभिन्न सदस्यों एवं पदाधिकारियों ने फेडरेशन व समाज से संबंधित विभिन्न ज्वलन्त मुद्दों, समस्याओं, विषयों पर विचार रखे, तत्पश्चात फेडरेशन के संस्थापक अध्यक्ष प्रदीप कुमार सिंह कासलीवाल ने इन पर अपनी सारगर्भित टिप्पणियाँ व्यक्त की, इसके बाद आयोजित नेक्रोलोजी कार्यक्रम में फेडरेशन व ग्रुपों की दिवंगत विभुतियों को श्रद्धांजली अर्पित की गयी। रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। शाम के समय का मंजर न भूला देने वाला था, जब सायंकालीन भोजन पश्चात मंदिर जी प्रांगण में १००८ दीपकों से संगीत की सुर लहरियों के साथ सभी के द्वारा भगवान महावीर की महाआरती की गयी, देर तक सभी सदस्य भक्ति रस में डूबे संगीत की ताल परभक्ति नृत्य करते रहे। बॉलीवुड गायक चिन्तन बाकलीवाल ने अपनी आवाज के जादू से इसमें चार चांद लगा दिये। प्रथम दीप प्रज्वलित कर महाआरती के पुण्यार्जक रहे इन्दौर निवासी श्रेष्ठी शील कुमार जी जैन साहब, आज के दिन का अन्तिम कार्यक्रम था, भव्य सांस्कृतिक समारोह, जिसमें दीप प्रज्वलन का शुभ कार्य सम्पादित किया दुर्गापुरा निवासी श्रीमान निहाल चन्द जी दोषी ने। समारोह की अध्यक्षता करोली जिलाधीश नन्नू मल पहाडिया के द्वारा की गयी। मुख्य अतिथि थे श्री राकेश कुमार जी लुहाड़िया व विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थिति प्रदान कर कार्यक्रम को गोरवान्वित किया उज्जैन निवासी समाज सेविका श्रीमती स्नेह लता सोगानी व कंस्ट्रक्शन व्यवसायी श्रीमान जितेन्द्र चौधरी ने। भव्य सांस्कृतिक संध्या में डायमण्ड ग्रुप जयपुर द्वारा मंगलाचरण व नृत्य की प्रस्तुती के साथ विभिन्न गु्रपों, जिसमें जबलपुर नगर, जबलपुर मेन, सम्यक उज्जैन, संगीनी फॉरएवर जयपुर के द्वारा आनन्दित कर देने वाली मनोहारी प्रस्तुतियां दी गयी, इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों की अरिहन्त नाट्य संस्था द्वारा बहुत ही रोचक ज्ञानवर्धक नाटक ‘‘कुटुम्ब’’ माता-पिता के चरणों में प्रस्तुत किया गया, जिसका सभी ने पूर्ण आनंद लिया व कार्यक्रम की भूरी-भूरी प्रशंसा की गई, अगले दिन २७ तारीख को सुबह हजारों सदस्य गणों, पदाधिकारी गणों द्वारा आम जन को सन्देश देते हुए सर्वप्रथम ग्रीन महावीर जी-क्लीन महावीर जी के उद्घोष के साथ एक शानदार रैली का आयोजन किया गया एवं श्री महावीर जी में रीजनके सभी ग्रुपों के द्वारा वर्ष भर सघन वृक्षारोपण का संकल्प भी लिया गया। रैली के पश्चात सभी समारोह के विधिवत उद्घाटन हेतु ध्वजारोहण के कार्यक्रम के लिए मुख्य मंदिर जी के पूर्वी प्रांगण में एकत्रित हुए जहाँ मुख्य ध्वजारोहण श्रेष्ठी रमेश चंद यशकमल अजमेरा द्वारा किया गया एवं प्रत्येक तीर्थकर को नमन करते हुए डायमण्ड ग्रुप के सदस्यों व सम्पूर्ण फेडरेशन पधादिकारियों ने परिवार सहित २४ ध्वज और फहराये, यह आयोजन बहुत ही रोचक, शानदार तथा गरिमापूर्ण रहा। दिव्यघोष जयपुर से पधारी महिला सदस्यों के ग्रुप ने बहुत ही सुन्दर बैंडवादन किया। आदर्श महिला महाविद्यालय की छात्राओं के द्वारा मनमोहक नृत्य के रूप में मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया।   हजारों की संख्या में उपस्थित सभी ने इस कार्यक्रम का भरपूर आनन्द लिया व सराहना की, इसके उपरांत अति भव्य बने मुख्य मंडप के उद्घाटन के कार्य के साथ मुख्य कार्यक्रमों की शुरूआत हुई। मंडप उद्घाटन का शुभ कार्य नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रेष्ठी राजेश लॉरेल (इंदौर) परिवार द्वारा किया गया, प्रथम सत्र के मुख्य कार्यक्रम में देश भर से पधारे श्रेष्ठि गणों में मुख्य अतिथि के रूप में समाजरत्न राजेंद्र के गोधा, समारोह अध्यक्षता के रूप में सुधांशु कासलीवाल, गौरवमयी उपस्थिति के रूप में माननीय जस्टिस (रिटायर्ड) एन. के. जैन, अध्यक्ष सिद्धा ग्रुप श्रेष्ठि सी.पी. पहाडिया साहब, रत्न व्यवसायी बापू नगर निवासी श्रेष्ठी श्री जितेन्द्र कुमार जैन, श्रेष्ठि मानद मंत्री अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी महेंद्र कुमार पाटनी, विशिष्ठ अतिथि के रूप में अध्यक्ष श्रमण संस्कृति संस्थान गणेश राणा, रत्न व्यवसायी विवेक काला, समाज सेवी श्रीमान् राजीव जैन (गाजियाबाद) व द्वितिय सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में वैशाली नगर निवासी ट्रांसपोर्ट व्यवसायी गजेंद्र कुमार जी, प्रवीणजी, विकास बड़जात्या व विशिष्ठ अतिथि के रूप में पूर्व उपाध्यक्ष नगर पालिका किशनगढ़ श्रेष्ठि प्रदीप चौधरी किशनगढ़ निवासी, एम.डी. एम.आर. एल. ट्रांसपोर्ट प्रा०लि० श्रेष्ठि प्रवीण चौधरी भीलवाड़ा निवासी, ट्रस्टी पंच बालयति मंदिर श्रेष्ठि महेश जैन, अध्यक्ष जैन समाज दिल्ली श्रेष्ठि चक्रेश जैन, रत्न व्यवसायी श्रेष्ठी सुदीप, प्रतीक जी ठोलिया, समाज सेवी-मुनि भक्त श्रेष्ठि कैलाश चन्द छाबड़ा मोजमाबाद वाले, एम.डी. जैनको इण्डस्ट्रीज श्रेष्ठि बसंत जैन तथा स्मारिका विमोचनकर्ता के रूप में श्रेष्ठी सुरेंद्र कुमार जैन मिंटू भैया वैशाली नगर, श्रेष्ठी सुरेंद्र कुमार बड़जात्या (उगरियावास वाले) दुर्गापुरा निवासी ने उपस्थिति प्रदान कर समारोह को गौरवान्वित किया। समाजभूषण राजेंद्र जैन को समाज के लिए अतुलनीय योगदान प्रदान करने परलाईफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया। कॉन्फ्रेंस चेयरमैन यशकमल अजमेरा के स्वागत उद्धबोधन के पश्चात विभिन्न गणमान्य अतिथियों एवं पदाधिकारीयों सर्वश्री प्रदीप कासलीवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसमुख जैन गांधी, महासचिव आर.के.जैन (एक्साईज) आदि ने अपने विचार व्यक्त करते हुये सभा को सम्बोधित किया, सभी अतिथियों का भाव भीना स्वागत सत्कार किया गया तथा यादगार स्वरूप सभी को भगवान महावीर के प्रतिक चिन्ह प्रदान किये गए।मंच संचालन समाजसेवी मनीष बैद द्वारा किया गया। दोपहर के भोजन पश्चात सबसे विशिष्ट महत्वपूर्ण बैनर प्रजेंटेशन एवं अवार्ड वितरण का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ, जिसमें देश भर से पधारे ग्रुपों ने अपना-अपना बैनर प्रजेंटेशन किया व वर्ष भर की अपनी उपलब्धियों को स्क्रैप बुक के जरिये बताया व अवार्ड भी प्राप्त किये, इस बार बैनर प्रजेंटेशन में अपनी विशेष प्रस्तुति देकर जयपुर के ही मैत्री ग्रुप ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, कार्यक्रम में विभिन्न ग्रुपों द्वारा वर्ष पर्यन्त किये गए श्रेष्ठ कार्यों का भी मंच से उल्लेख किया गया व उन्हें विभिन्न अवार्डों से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय पदाधिकारीगण, रीजन पदाधिकारीगण व राजेंद्र के गोधा साहब व समस्त विज्ञापनकर्ता, अतिथिगणों के अहम योगदान के साथ-साथ इस सम्पूर्ण आयोजन में अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी कमेटी के पदाधिकारियों व अध्यक्ष सुधांषु कासलीवाल व मानद मंत्री महेंद्र पाटनी व सम्पूर्ण कार्यकारणी सहित समस्त कर्मियों का योगदान व सहयोग अतुलनीय रहा, जिन्हें मंच से बहुत-बहुत साधुवाद व आभार प्रदान किया गया, अति महत्वपूर्ण निर्णय नए राष्ट्रीय अध्यक्ष, महासचिव एवं कोषाध्यक्ष की घोषणा भी इसी सत्र में की गयी। राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए राजेश लॉरेल, राष्ट्रीय महासचिव चुने गए राकेश विनायका, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष चुने गए श्री रमेश बडजात्या, सभी को बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं प्रदान की गयी।कार्यक्रम समन्वयक थे श्री अमरचंद जैन, श्रीमति चंदा सेठी, राजेंद्र रांवका, दीपशिखा जैन, राजेंद्र सेठी व सहसमन्वयक थे। श्री अनिल दीवान, सुनील संगही, अरविन्द काला, टीकम चन्द जैन, सुरेंद्र जैन, अजित जैन, उत्तम कासलीवाल, सुरेश जैन व सम्पूर्ण व्यवस्था समिति प्रभारी/ संयोजक गण सायंकालीन भोजन के साथ दिलों में अधिवेशन की शानदार अमिट यादें समेटे सदस्यों के लौटने का सिलसिला शुरू हुआ जो देर रात तक जारी रहा।राष्ट्रीय पदाधिकारियों, रीजन पदाधिकारियों के कुशल निर्देशन एवं कॉन्फ्रेंस चैयरमैन के नेतृत्व में सम्पूर्ण डायमण्ड टीम के अथक परिश्रम के फल स्वरूप आयोजन सफलता के शिखर पर आरोहित हुआ। -कॉन्फ्रेंस चैयरमैन – यशकमल अजमेरादिगम्बर जैन सोशल ग्रुप डायमंड, जयपुर

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ऑल इंडिया श्वेताम्बर जैन कॉन्फ्रेंस

अहमदनगर (महाराष्ट्र) : श्री ऑल इंडिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन एवं१४ प्रांतों से १४ प्रांतीय अध्यक्ष, प्रांतीय महामंत्री कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों का शपथ विधि समारोह मंगलवार, दिनांक १५ जनवरी २०१९ को राष्ट्रसंत, आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आनंदऋषि जी म. सा. के समाधि स्थल आनंदधाम, अहमदनगर में महाराष्ट्र प्रवर्तक पू. श्री कुंदनऋषिजी म. सा., प्रबुद्ध विचारक पूज्य श्री आदर्शऋषि जी म. सा. एवं अन्य संत-सतियों के पावन सान्निध्य में हर्षोल्लास पूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ। शपथ विधि समारोह के पूर्व नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारस मोदी जैन ने जैन कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ पदाधिकारीगण एवं सहयोगियों के साथ राष्ट्रसंत, प. पू. आचार्य सम्राट श्री आनंदऋषिजी म. सा. की समाधि स्थल पर नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप किया व दर्शन कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। देशभर से आये हुये हजारों दर्शनार्थियों का दिनभर आनंदधाम में तांता लगा रहा। सर्वप्रथम समारोह की शुरुआत प्रबुद्ध विचारक पूज्य श्री आदर्शऋषि जी म. सा. ने नवकार महामंत्र के जाप द्वारा की, इसके पश्चात् श्रीमती छाया पारसजी मोदी जैन ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर कार्यक्रम की शुरुआत की, उसके पश्चात् पी. एच. जैन परिवार की पोता बहुओं ने गुरु भगवंतों का स्वागत गीत से अभिवादन किया एवं बेटा बहुओं ने समारोह में पधारे हुए महानुभावों के लिए स्वागत गीत प्रस्तुत किया, इस मंगलमय प्रसंग पर राष्ट्रीय अध्यक्षजी की पोती कु. इशिता अतीशजी मोदी जैन ने अपने दादाजी के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित होने पर गीत द्वारा अपने भाव प्रस्तुत किये, जिस पर सभी ने हर्ष-हर्ष के साथ उनका उत्साहवर्धन किया। राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी श्री धरमचंदजी धनराजजी खाबिया जैन, राष्ट्रीय सह-चुनाव अधिकारी श्री राजीवजी जैन एवं श्री अजितजी छल्लाणी जैन उपस्थित थे। राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी धरमचंदजी खाबिया जैन ने नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री पारस मोदी जैन को अपने पद के प्रति निष्ठा, कर्तव्य पालन की शपथ दिलवाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का निर्वाचन घोषणा पत्र पारसजी मोदी जैन को राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी एवं दोनों राष्ट्रीय सह-चुनाव अधिकारियों द्वारा सौंपा गया, इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय पारस मोदी जैन ने जैन कॉन्फ्रेंस के राष्ट्रीय महामंत्री पद पर युवा हृदय सम्राट् श्री शशिकुमारजी ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन एवं राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद पर विमलचंदजी जैन ‘मुणोत’ तथा राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष पद पर सागरजी कुंदनमलजी साखला जैन को मनोनीत करने की घोषणा की। कु. आरवी अमितजी मोदी जैन ने अपने दादाजी के लिए शुभ भावनाएं प्रकट की, इसके बाद मंच पर राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय महामंत्री, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष महोदय ने अपने पद, प्रतिष्ठा की शपथ लेकर जैन कॉन्फ्रेंस के प्रति अपने दायित्व को निभाने का प्रण लिया। शपथ ग्रहण के दौरान हर्ष-हर्ष, जय-जय के नारों के साथ संपूर्ण पांडाल गुंजायमान हो उठा। अपने उद्बोधन के दौरान राष्ट्रीय मुख्य चुनाव अधिकारी श्री धरमचंदजी धनराजजी खाबिया जैन ने चुनाव के दौरान समस्त वरिष्ठ पदाधिकारियों व सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया, इस अवसर पर लगभग ३५०० महानुभावों की उपस्थिति देखने को मिली। राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री एवं पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आदि कई पदों का निर्वहन करने वाले तथा पिछले ३५ सालों से लगातार जैन कॉन्फ्रेंस को अपनी निरंतर सेवाएं देने वाले आदरणीय श्रीमान् बालचंदजी खरवड़ जैन-मुंबई को राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष पद पर मनोनीत किया, उनकी इस घोषणा से संपूर्ण सभाग्रह में हर्ष की लहर दौड़ गई और सभी ने हर्ष-हर्ष से इस घोषणा का स्वागत अभिनंदन किया। श्री बालचंदजी खरवड़ जैन ने प्रत्युत्तर में कहा कि वे इस दायित्व का संपूर्ण क्षमता के साथ निर्वहन करने का हर संभव प्रयास करेगें। नवमनोनीत राष्ट्रीय महामंत्री शशिकुमारजी ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन, नवमनोनीत राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विमलचंदजी जैन ‘मुणोत’ एवं नवमनोनीत राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष सागरजी कुंदनमलजी साखला जैन ने भी मंच संचालन में सहयोग प्रदान किया। नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा प्रथम कार्य गुरु भगवंतों की वैय्यावच्च सेवा को प्राथमिकता देना है, जिसके अंतर्गत संत-सतियों के साथ सेवा देने वाले सेवादार के वेतन की व्यवस्था करना, जो संत-सतीयाँजी विशेष पढ़ाई, ज्ञान अर्जन आदि करना चाहते हैं उनके लिए अध्यापक/अध्यापिका, स्वाध्यायी व पाठ्य सामग्री की व्यवस्था करना, पूजनीय वृद्ध एवं शारिरिक कठिनाईयों के कारण विहार नहीं कर पाने वाले संत-सतियों के स्थायी आवास की व्यवस्था करना आदि रहेगा, इसके अलावा बच्चों के लिए धार्मिक पाठशालाओं की व्यवस्था करना एवं विशेष रूप से स्वाध्याय को बढ़ावा देना हमारा लक्ष्य होगा। अपने सारगर्भित उद्बोधन में अपने पदाधिकारियों एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों का साथ लेकर नई आशा, नई दिशा व नए विश्वास के साथ कार्य करने का भरोसा दिलाया व अपनी इच्छा जाहिर की कि वे अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर कई नवीन कार्यों की शुरूआत करेंगे तथा नया उज्जवल भविष्य निर्माण के कार्य करेंगे। निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलालजी चोपड़ा जैन, निवर्तमान राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अशोककुमारजी एन. पगारिया जैन एवं निवर्तमान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष महेन्द्रजी बोकारिया जैन, नवनिवर्त मान राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष श्री शशिकुमारजी ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन व नवनिवर्तमान राष्ट्रीय महिला अध्यक्षा सौ. रूचिराजी सुराणा जैन एवं वरिष्ठ पदाधिकारीगण तथा प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले सभी पदाधिकारीगण/सहयोगियों के प्रति आभार जताते हुये उन्होंने कहा कि वे भाऊसा द्वारा जारी किये गये कार्यों को और अधिक तन्मयता के साथ आगे बढ़ायेगें। राष्ट्रीय अध्यक्षजी की भावनाओं की उपस्थितजनों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। राष्ट्रीय चुनाव अधिकारियों ने नवीन कार्यकाल के लिए सभी को शुभकानाएं प्रेषित करते हुए अपने भाव व्यक्त किये। इस अवसर पर केंद्रीय चुनाव अधिकारियों ने जैन कॉन्फ्रेंस के महा-प्रबंधक मानकजी शाह जैन के प्रति भी आभार प्रकट किया कि उन्होंने चुनाव समिति के सचिव पद का दायित्व कुशलतापूर्वक निर्वहन किया व संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया में पूर्ण सहयोग प्रदान किया। कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने केंद्रीय चुनाव अधिकारियों की उपस्थिति में मानकजी शाह जैन को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। तत्पश्चात् नवगठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के राष्ट्रीय प्रमुख मार्गदर्शक, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सभी योजनाओं के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय मंत्री, १४ प्रांत के प्रांतीय अध्यक्ष एवं उनके द्वारा मनोनीत प्रांतीय महामंत्री/प्रांतीय कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय मंत्री, राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार मंत्री, राष्ट्रीय संगठन मंत्री एवं सभी प्रांत के राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्यों का शपथ विधि का कार्यक्रम सुचारू रूप से पूर्ण हुआ, सभी ने एक नये सकंल्प व लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जैन कॉन्प्रेंâस को अपना संपूर्ण योगदान देने की शपथ ली । हर्ष-हर्ष व जय-जय के नारों के साथ पारस्परिक बधाई व शुभ-कामनाओं का आदान-प्रदान हुआ। महाराष्ट्र प्रवर्तक पूज्य श्री कुंदनऋषि जी म. सा., प्रबुद्ध विचारक पू. श्री आदर्शऋषि जी म. सा. एवं अत्र विराजित सभी संत-सतियाँजी म. सा. ने नवीन कार्यकारिणी को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए समाज विकास व उत्थान के कार्य करने के लिए प्रेरित किया। संपूर्ण कार्यक्रम के मंच का बहुत ही सुंदर संचालन राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष बालचंदजी खरवड़ जैन ने किया, उनके मंच संचालन की प्रशंसा सभी ने बढ़-चढ़कर की। संपूर्ण कार्यक्रम गुरु भगवंतों के आशीर्वाद एवं महामांगलिक के साथ बहुत ही सादगी के साथ सुंदर माहौल में संपन्न हुआ, शाम की ‘गौतम प्रसादी’ की सुंदर व्यवस्था सौ. सविताजी रमेशजी फिरोदिया जैन परिवार की ओर से बहुत ही प्रशंसनीय रही, पहले दिन का भोजन एवं दूसरे दिन के सुबह का नाश्ता तथा दोपहर के भोजन की व्यवस्था ‘गुरु आनंद भक्त मंडल-अहमदनगर’ ने लिया। संपूर्ण समारोह का सीधा प्रसारण १२५ देशों में पारस चैनल पर प्रदर्शित हुआ, जिसके लाभार्थी बनें ‘जैन कॉन्फ्रेंस के युवा साथी श्रीमान् कमलेशजी भंवरलालजी नाहर जैन परिवार-अहमदाबाद, इनका परिवार पिछले २५ वर्षों से जैन कॉन्फ्रेंस में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। पारस मोदी जैन मित्र परिवार की ओर से सभी के सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद व अभिनंदन अर्पित किया गया गया। आचार्य भगवन् व युवाचार्यश्री जी के पावन सान्निध्य में ७ मई २०१९ के अक्षय-तृतीया पारणे के गौतम प्रसादी के लाभार्थी जैन कॉन्फ्रेंस के पूर्व राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष श्रीमान् शांतिलालजी दुग्गड़ जैन-नाशिक का सम्मान किया गया। अहमदनगर के श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष श्रीमान् हस्तीमलजी मुणोत जैन, महामंत्री संतोषजी बोथरा जैन, उपाध्यक्ष सतीशजी (बाबुसेठ) लोढ़ा जैन एवं सभी पदाधिकारियों का तथा बड़ी साजन सांस्कृतिक भवन के अध्यक्ष विलासजी लोढ़ा जैन का समारोह को ऐतिहासिक बनाने में बहुत बड़ा योगदान रहा। बुधवार, दिनांक १६ जनवरी २०१९ को प्रातः जैन कॉन्फ्रेंस परिवार के सभी सदस्य चिंचोड़ी की ओर अग्रसर हुए, स्मरण रहे कि चिंचोड़ी आचार्य सम्राट पू. श्री आनंदऋषिजी म. सा. की जन्म भूमि हैं। उपाध्याय श्री प्रवीणऋषि जी म. सा. की प्रेरणा से नवनिर्मित ‘आनंद तीर्थ’ में नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप हुआ, उसके पश्चात् चिंचोड़ी में आनंद तीर्थ ट्रस्ट द्वारा सुंदर नास्ता का आनंद लिया गया। जैन कॉन्फ्रेंस परिवार चिंचोडी गांव में आचार्य भगवन की जन्म स्थली पर दर्शनार्थ एकत्रित हुए और नवकार महामंत्र का सामूहिक जाप हुआ, यहां पर श्री आनंद गुरुभ्ये नमः के जाप के बाद अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने श्रीमान् रमेशजी फिरोदिया जैन परिवार एवं पी. एच. जैन परिवार द्वारा चिंचोड़ी श्रीसंघ के सहयोग से नव-निर्मित भवन के उद्घाटन की तिथि २८ मार्च २०१९ को सायं ४.०० बजे किए जाने की घोषणा की तथा उपस्थित जनसमूह से उक्त दिनांक को भारी संख्या में चिंचोड़ी आने का निवेदन किया। उसके पश्चात् आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आनंदऋषि जी म. की दीक्षा भूमि एवं महाराष्ट्र प्रवर्तक, महाश्रमण, परम पूज्य गुरुदेव श्री कुंदनऋषि जी म. सा. की जन्म भूमि ‘मिरी’ में दर्शन किए। चिंचोड़ी व मिरी दर्शन के बाद विशाल जनसमूह ने जालना के लिये प्रस्थान किया। वहाँ कर्नाटक गजकेसरी, खद्दरधारी, घोर तपस्वी प. पू. श्री गणेशीलालजी म. सा. की समाधि स्थल के सभी ने दर्शन किये व पू. गुरुदेव के प्रति अपनी आस्था व श्रद्धा अर्पित की, इस अवसर पर ओम श्री सद्गुरुनाथाये नमः के मंत्र का जाप किया गया। आयोजित स्वागत समारोह में संघपति स्वरूपचंदजी रूणवाल जैन, जालना श्रीसंघ अध्यक्ष गौतमजी रूणवाल जैन, महामंत्री स्वरूपचंदजी ललवानी जैन व मनोनीत राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्य आनंदजी सुराणा जैन ने जैन कॉन्प्रेंâस परिवार के साथ और अधिक सक्रियता से जुड़ने का उल्लेख किया। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाशजी चोरड़िया जैन व वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने कहा कि हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। आचार्य सम्राट प. पू. श्री आनंदऋषिजी म. सा. व कर्नाटक गजकेसरी पू. गुरुदेव श्री गणेशीलालजी म. सा. निःसंदेह हमारी आस्थाओं के केंद्र है। श्रमण संघ के ये दो अनमोल रत्न हमारे लिये सदैव स्मरणीय हैं, इस अवसर पर सहमंत्री भरतकुमारजी गादिया जैन, कोषाध्यक्ष विजयराजजी सुराणा जैन, विश्वस्त संजयकुमारजी मुथा जैन, सुरेशकुमारजी सकलेचा जैन, डी. धरमचंदजी गादिया जैन, कचरुलालजी कुंकुलोल जैन, डी. कांतिलाल मांडोत जैन, सूरजमलजी मुथा जैन आदि गणमान्यजन उपस्थित थे। जालना के बाद औरंगाबाद जैन कॉन्फ्रेंस एवम् श्रीसंघ अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन के स्वागत हेतु प्रतीक्षारत थे। औरंगाबाद में दक्षिण केसरी परम पूज्य गुरुदेव श्री मिश्रीमल जी म. की समाधि के दर्शन किए। औरंगाबाद जिमखाना क्लब में आयोजित सम्मान समारोह का संचालन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तनसुखजी झाबड़ जैन ने किया। उपस्थित सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों का शॉल-माला व साफे के साथ अभिनंदन किया गया। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाशजी चोरड़िया जैन ने अपने उद्बोधन में अपनी पूर्व में की गई औरंगाबाद यात्राओं का उल्लेख किया व औरंगाबाद श्रीसंघ की जैन कॉन्फ्रेंस परिवार को समय-समय पर दिये गये सहयोग की सराहना की। अपने संबोधन में राष्ट्रीय अध्यक्ष पारसजी मोदी जैन ने अपनी टीम की ओर से श्रीसंघ औरंगाबाद के प्रति भावभीना आभार प्रकट किया। विशेष रूप से उपस्थित आमदार श्री सुभाषजी झाबड़ जैन ने आशा व्यक्त करते हुये कहा कि श्री पारसजी मोदी जैन एक अलग ही व्यक्तित्व के धनी है उनके रूप में जैन कॉन्फ्रेंस को एक ऐसा राष्ट्रीय अध्यक्ष मिला है, जो निश्चित ही जैन समाज को राष्ट्रीय स्तर पर अपना महत्वपूर्ण स्थान दिलायेगें। अहमदनगर, चिंचोड़ी, जालना एवं औरंगाबाद के सभी कार्यक्रमों में एक उल्लेखनीय बात यह रही कि सभी आयोजकों ने ‘एक सफल पुरुष के पीछे एक स्री के योगदान’ का उल्लेख किया, ऐसे में स्वाभाविक रूप से नाम आता है सौ. छाया पारसजी मोदी जैन का, प्रत्येक कार्यक्रम में सौ. छायाजी का उत्साह के साथ स्वागत सत्कार किया गया, इस समारोह को सफल बनाने के लिए विलासजी लोढ़ा जैन, सतीशजी (बाबूसेठ) लोढ़ा जैन, मनोजजी सेठिया जैन, रमेशजी बाफना जैन, सतीशजी चोपड़ा जैन आदि महानुभावों का सहयोग रहा। – शशिकुमार ‘पिन्टू’ कर्नावट जैन, राष्ट्रीय महामंत्री राष्ट्रसंत मुनी देवनंदिजी का भव्य स्वागत चिकलठाणा (महाराष्ट्र): सुविख्यात दिगम्बर जैन मुनी, ‘णमोकार तीर्थ’ प्रणेता, ‘जैन नॉलेज सिटी’ मालसाने (चांदवड) के निर्माता, राष्ट्रसंत, प्रज्ञाश्रमण, सारस्वताचार्य देवनंदिजी का भारतवर्ष के प्रख्यात भ. चिंतामणि पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कचनेरजी (महाराष्ट्र) में ससंघ आगमन हुआ तो जैन-अजैन समाज ने भव्य स्वागत किया, मुनीश्री ने समाज को उद्बोधन किया कि समाजसेवी साप्ताहिक जैन गजट के राष्ट्रीय प्रतिनिधि एम.सी.जैन, सौ. हेमलताजी, प्राचार्य डॉ. राजेश एम. पाटणी, दर्शनार्थ मुनीश्री के दर्शन करने पहुंचे तो मुनीश्री शुभार्शिवाद प्रदान किया। विकसित विश्व और नारी नारी समाज का केन्द्रबिन्दु है, बाल संस्कार और व्यक्तित्व निर्माण का बीज नारी के आचार विचार और व्यक्तित्व में समाहित है उन्हीं बीजों का प्रत्यारोपण होता है, उन बालजीवों के कोमल ह्रदय पर जो नारी को मातृत्व का स्थान प्रदान करते हैं। समाज ने नारी को अनेक दृष्टियों से देखा है सम्मानित किया है। कभी माँ, कभी पत्नी, कभी बहन, कभी एक जीवन संगिनी के रूप में समाज की यही संस्कारिता और उसके आदर्शो की उच्चता की झलक, नारी के प्रति उस समाज की दृष्टि से स्पष्ट होती है, इसी तरह नारी के पतन और उत्थान का इतिहास समाज के धर्म और नीति की उन्नति और अवनति का भी प्रत्यारोपण कराता है। जिस समय २४वें तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म हुआ तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियां और नारी का उसमें स्थान और वहां से लेकर समयसमय पर आये हुए नारी के गौरव में परिवर्तन की झलक वस्तुत: देखने योग्य है, तब के समाज में सामान्य जनजीवन जकड़ा हुआ था, झूठे जड़ रीति रिवाजों में सड़ी-गली परम्पराओं में दृष्टि धुंधली थी, अन्धविश्वासों की धूल से मिथ्यात्व की अति प्रबलता थी, लाखों मूक पशुओं की देह बलिदेवी पर चढ़ रही थी, शुद्र जाति सामान्य मानवीय अधिकारों से वंचित था, समाज आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, समधर्म का ऐसा अध:पतन क्यों था? मिथ्यात्व की ऐसी आंधी क्यों चली, इसका प्रमुख कारण नारी जाति की करूणा दशा थी किन्तु जैसे मनु ने कहा है ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता रमण करते हैं, अर्थात् वहां मंगल का वास होता है, इसके विपरीत जहां नारीत्व का शोषण होगा, अपमान होगा वहां अधर्म का साम्राज्य होगा। स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में कितनी सत्यता झलक रही है कि ‘‘स्त्रियों की पूजा करके ही सब जातियां बड़ी हुई हैं जिस देश, जिस जाति में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह देश वह जाति कभी बड़ी न हुई और न हो सकेगी, हमारी जाति का जो अध:पतन हुआ है, उसका प्रधान कारण इन्हीं शक्तिमूर्तियों की अवहेलना है’’ जिस समय राजकुमार वर्धमान का जन्म हुआ, वह नारी के जीवन का पतन का काल था। नारी का जीवन तमस से घिरा हुआ व दासता से परिपूर्ण था। नारी को पैर की जूती से अधिक या भोग की वस्तु से अधिक और कुछ नहीं समझा जाता था। युद्धों में हारी हुई सुन्दर सुकुमार स्त्रियां किस प्रकार बाजारों में पशुओं की तरह बोली लगाकर बेच दी जाती थी, राजकुमारी चन्दनबाला उसकी ज्वलंत उदाहरण थी। उस समय कौमार्य में लड़की पिता पर, यौवन में पति पर तो वृद्धावस्था में पुत्रों पर आश्रित रहे, ऐसा सोचना था। धार्मिक कार्यों में भाग लेने का उन्हें कोई अधिकार न था। स्त्री कभी मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकती, ऐसी भी मान्यता थी, इसी तरह विवश नारी अपना तिरस्कृत जीवन सिसक-सिसक कर काट देती थी। मैथिलीशरण गुप्त ने तभी तो कहा है: अबला नारी हाय, तुम्हारी यही कहानी। आंचल में है दूध और आँखों में पानी।। दुर्भाग्य से यदि छोटी उम्र में पति का वियोग हो जाये, तो उसे अपने मृत पति के साथ जीवित ही जल जाना पड़ता था, अर्थात् ‘सती प्रथा’, उस समय यह धारणा थी कि पति के साथ मरने पर मुक्ति मिलती है, इस कारण उसे सती बनने के लिए बाध्य किया जाता था। जीने की आशा में यदि कोई सती न भी होती तो उसे विधवा के रूप में अमानवीय जीवन के लिए तत्पर रहना पड़ता, बाल मुड़वा कर सफेद वस्त्रों में लिपटी वह विधवा रूखा-सूखा भोजन कर दीन स्थिति में सारा जीवन व्यतीत करती थी। शुभ प्रसंगों में व धार्मिक कार्यो में विधवा स्त्री को अमांगलिक समझा जाता था। साधना काल के बारहवें वर्ष में भगवान् ने एक कठोर तप किया, जिसमें १३ अभिग्रह समाविष्ट थे। एक राजकुमारी दासी बनकर जी रही हो, हाथ पांव बंधे हों, मुंडित हों, तीन दिन की भूखी-प्यासी हो, एक पैर दहलीज के बाहर और एक पैर अन्दर हो, आँखें सजल हों इत्यादि। उनका यह अभिग्रह था तो आत्मशुद्धि के लिए, स्वयं के उत्थान के लिए परन्तु इस अभिग्रह ने नारी उत्थान को भी अत्यधिक संबल दिया, एक लाचार दीन दासता की बेड़ियों से जकड़ी हुई नारी का उत्थान हुआ। भगवान् महावीर की दृष्टि में स्त्री और पुरूष दोनों का स्थान समान था, क्योंकि उन्होंने इस नश्वर शरीर के भीतर विराजमान अनश्वर आत्म तत्त्व को पहचान लिया था, उन्होंने देखा कि ‘‘चाहे देह स्त्री का हो या पुरूष का, वही आत्मतत्व सभी में विराजमान है और देह भिन्नता से आत्मत्व की शक्ति में भी कोई अन्तर नहीं आता, सभी आत्माओं में समान बल वीर्य और शक्ति है।’’ इसीलिए भगवान् फरमाते हैं ‘‘पुरूष के समान ही स्त्री को भी प्रत्येक धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में बराबर का अधिकार है, स्त्री जाति को हीन पतित समझना निरी भ्रांति है, इसीलिए भगवान् के संघ में श्रमणों की संख्या १४००० थी तो श्रमणियों की संख्या ३६००० थी, जहां श्रावकों की संख्या १,५६००० थीं वहां श्राविकाओं की संख्या ३,१९००० थी, इससे हम अन्दाज लगा सकते हैं कि जहां समाज नारी को धार्मिक एवं सामाजिक कार्यो में अशुभ व अमांगलिक मानता था, वहां भगवान् ने स्त्री जाति को किन उच्च स्थानों पर स्थित किया व उनके व्यक्तित्व को स्वाभिमानपूर्ण गौरवान्वित किया। अधूरा है पुरूष : पुरूष बलवीर्य का प्रतीक होते हुए भी नारी के बिना अधुरा है। राधा बिन कृष्ण, सीता बिना राम और गौरी के शंकर अद्र्धांग है। नारी वास्तव में एक महान शक्ति है। भारतवर्ष में तो नारी में परमात्मा के दर्शन किये हैं और जगद्जननी भगवती के रूपों में नारी पूजा है। नारी का असीम प्रेम और सहानुभूति नर के लिये सदा ही प्रेरणा का स्त्रोत रहा है, एक कवि के शब्दों में- नारी के बिनु नर विवश, है पाषाण समान। नर का वैभव नारी बिन, शव सा है निष्प्राण।। नारी परोपकार, सेवा, क्षमा की मूर्ति है। माँ के रूप में बच्चे के, पत्नी  के रूप में पति के और बहन के रूप में भाई के सुख-दुख में ही स्वयं का सुख-दु:ख मानती है। नारी का सुख व्यक्तिगत नहीं वरन पारिवारिक होता है, वह परिवार के सुख से सुखी और परिवार के दु:ख से दु:खी होती है, उसके लिये पति, पुत्र, परिवार प्रथम है और फिर है स्वयं का व्यक्तित्व। …इसलिये नारी के उत्थान का अर्थ है एक परिवार का उत्थान और यही समाज व राष्ट्र के विकास की जड़ है। जब नारी पुत्रवधु बनकर आती है तो दो कुलों को अपनी सहज सरलता से मिलाकर एक कर देती है। बहन के रूप में भाई को राखी बांधते हुए भाई की रक्षा, विकास की अमृत कामना करती हैं। अद्र्धांगिनी के रूप में अवतरित होती है तो जननी बनकर बच्चों के लिए संजीवनी समान सहगामिनी व वात्सल्य के पावन संस्कारों को जीवन में संचित कर उसके व्यक्तित्व को उन्नत शिखरों का स्पर्श कराती है, इस तरह नारी का प्रत्येक रूप स्वयं के अस्तित्व को मीटा कर अन्य के व्यक्ति को उन्नत शिखरों का स्पर्श कराता है, इस तरह नारी का प्रत्येक रूप स्वयं के अस्तित्व को मिटा कर अन्य को शीतल छाया और दीपक की तरह स्वयं जल कर अन्य के जीवन पथ को उजागर करने के रूप में क्रियान्वित होती है। ऐसा व्यक्तित्व जो संसार में रहते हुए भी कत्र्तव्य पथ पर अग्रसर रहता है। तपस्विनी सा जीवन व्यतीत करता है, उसके सम्मान, सत्कार व पूजा से व्यक्ति के भाव सहज ही पवित्र हो जाते हैं जबकि उसकी अवहेलना, अपमान करने वाला व्यक्ति स्वयं नरक के दु:खों का भागी बन जाता है। जननी, भगिनी, कामिनी, रच बहुरूपा देह। सहे, सहन कर लुटाए केवल देह-स्नेह।। राष्ट्रों के उत्थान पतन के इतिहास में भी नारी का योगदान पुरूषों की अपेक्षा किसी भी प्रकार कम नहीं है, इतिहास के पन्नों पर दृष्टव्य हैं उन महान नारियों के त्याग और बलिदान, जहां नारी शान्ति और क्रांति, ज्योति और ज्वाला दोनों रूपों में समाज के रंगमंच पर अभिनय करती आई है। यह शताब्दियों का सत्य है कि ‘‘नारी नर की खान’’ इस लोक के सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर पद पर आसीन महान आत्माओं को जन्म देने वाली स्त्री ही होती है। देवता भी सर्वप्रथम उन्हें ही वंदन करते हैं, इसीलिए जैन दर्शन में कहा भी है नारी कभी सातवें नरक में नहीं आ सकती क्योंकि उसके ह्रदय में ऐसी कठोरता, क्रुरता आ ही नहीं सकती जो उसे सातवें नरक के बंधक में बांधे। नारी का सर्वोत्कृष्ट रूप माँ है। मातृत्व ही नारी का चरम विकास है, यही अंतरग चेतना है, मातृत्व ही नारी ह्य्दय का सार है। वात्सल्य का निर्झर प्रत्येक नारी ह्रदय का अविमूर्त गान है। नारी प्रतीक है श्रद्धा की, भक्ति की, कोमलता की, मृदुलता की, प्रत्येक मानव के भीतर एक अटूट अभिसा है प्रेम की, नारी ह्रदय इस प्रेम की पूर्ति के लिए सदा ही प्रवाहमान रहा है। नारी का यही प्रेम और वात्सल्य मानव जाति को हरा भरा रखता है, मनुष्य ह्रदय को जीवित रखता है, अन्यथा मनुष्य शायद जड़ हो जाए, उसके भीतर रही हुई संवेदनशीलता शायद लुप्त हो जाए, जो स्नेह और सहानुभूति एक स्त्री दे सकती है, वह पुरूष नहीं दे सकता, क्योंकि प्रेम मांगता है समर्पण और नारी प्रतीक है समर्पण की… रूस के एक वैज्ञानिक ने नवजात शिशु बन्दरों को लेकर एक प्रयोग किया, उसने एक बड़ा यंत्र बनाया, उसमें तार लगाये गये, बन्दरों के कूदने के सभी उपाय रखे गये, कुछ कृत्रिम बंदरियों को भी उस यन्त्र में रखा गया। छोटे बन्दर उछलते कूदते हैं। कृत्रिम बन्दरियों को माता समझकर उनके साथ चिकपते, उन्हें दूध पिलाने एवं खिलाने के सभी प्रकार के साधन रखे गये। समय बीतने पर वैज्ञानिक ने देखा कि बन्दर बड़े हो गये हैं, किन्तु सभी विक्षिप्त हो गये, कारण वो स्नेह प्रतिमाएं हटा ली गई थीं, इसीलिए प्राचीन युग में जो गुरूकुल होते थे, उनमें ऋषि प्रवर शिष्यजनों को शिक्षा प्रदान कर उनकी बुद्धि को विकसित करते थे, जबकि ऋषि पत्नी, गुरू माता अपनी वात्सल्यमय धारा से उनके ह्रदय को विकसित करती थी, वह माता मदालसा ही थी जिसके संस्कारों ने सात भव्य आत्माओं को महापथ पर लगा दिया था। माता जीजीबाई की प्रेरक कहानियों से ही बाल शिवाजी छत्रपति शिवाजी बने, राजीमति ने ही रथनेमि की वासना पर अंकुश लगाया, वह मदनरेखा ही थी जिसकी गोद में पड़ी है पति की खून से लथपथ देह, लेकिन उसने अद्भुत धैर्य से, क्षमता से अपने पति के मन को मैत्री व करूणा में स्थिर कर उच्च गति प्रदान की। वह रानी कैकयी थी जिसने देवासुर संग्राम में दशरथ के रथ की खूंटी खिसकने पर उस स्थान पर अपनी उंगली लगा दी थी। साधु मार्ग से च्युत होने वाले गवदेव को स्थित करने वाली नागिला ही थी, तुलसी से महाकवि तुलसी बनने के पीछे नारी रत्नावलि का ही मर्मस्पर्शी वचन था। वर्तमान में नारी किसी भी बात के पीछे नहीं है, पुरूष के कंधे से कंधा मिलाने वाली विजयलक्ष्मी पंडित, मदर टैरेसा, इन्दिरा गांधी जैसी महान नारियां जागृत और सत्यनिष्ठ नारी शक्ति की परिचायक है। देशभक्ति का उदाहरण झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, मेवाड़ की पद्मिनी इत्यादि सुकुमार नारियों का जौहर याद करें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पन्ना धाय के अपूर्व त्याग ने ही महाराणा उदयसिंह को मेवाड़ का सिंहासन दिलाया और जिससे इतिहास ने नया मोड़ लिया, इसी तरह अनेक नारी रत्नों ने अपने त्याग व बलिदान व सतीत्व के तेज से भारतवर्ष की संस्कृति को समुज्जवल बनाया है। वर्तमान में नारी पूर्व से अधिक स्वतंत्र है तथा झूठी परंपराओं से बंधी हुई न होते हुए भी उसके जीवन में अनेक समस्यायें, अनेक उलझने जगी हैं, इस समस्याओं और उलझनों की मूल जड़ शिक्षा का अभाव है, इस ओर कुछ समाज का भी दुर्लभ्य रहा तो कुछ नारी की अपनी परिस्थितियों ने भी उसे शिक्षा से वंचित रखा, शिक्षा के अभाव में उसका बौद्धिक विकास पूर्णरूपेण नहीं हो पाया, जिस कारण अनेक क्षेत्रों में वह पुरूष के अधीन भी है। नारी को अपनी समस्याओं का हल स्वयं करना होगा कोई किसी की समस्या का हल नहीं कर सकता, प्रत्येक को स्वयं ही अपने प्रश्नों का उत्तर ढूंढना होता है, दूसरा तो उत्तर ढूंढने में केवल मार्गदर्शन कर सकता है, उत्तर नहीं दे सकता, अत: नारी को स्वयं ही इन उलझनों को सुलझाना होगा और इसके लिए आवश्यक है कि वह शिक्षित हो, यहां पर शिक्षा का अर्थ शब्दों को रटना मात्र नहीं है, किताबों को पढ़ लेना मात्र नहीं है, शिक्षा का अर्थ है ‘‘मानसिक शक्तियों का विकास’’ नारी की मानसिक शक्तियां इस प्रकार विकसित हो जाएं कि वह स्वयंमेव स्वतंत्रतापूर्वक जीवन के विविध पहलुओं पर आत्म-विश्वास पूर्वक निर्णय ले सके, उन्हें सुलझा सके। शिक्षा से नारी विकास संभव है लेकिन वह तब, जब वह उसके पवित्र जीवन और सतीत्व को अखण्डित रखता हो। पाश्चात्य स्त्री शिक्षित तो है किन्तु भारतीय स्त्रियों के आचार-आचार कहीं अधिक पवित्र है, केवल बौद्धिक विकास से ही मानव का परम कल्याण सिद्ध नहीं हो सकता उसके लिये आवश्यक है कि बौद्धिक विकास के साथ-साथ आचार-विचार भी पवित्र बना रहे। सत्य डागलिया ने पूरे भारत में वर्ष के पहले दिन में ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया भारत में वर्ष के पहले दिन में LIC का MDRT-USA का (अंतर्राष्ट्रीय) टारगेट कर बने नं.१ मुंबई: इंश्योरेंस एडवाइजर के तौर पर LIC में एक टारगेट होता है जिसे MDRT-USA कहते हैं, इस टारगेट को साल भर में कड़ी मेहनत के बाद इंश्योरेंस एडवाइजर इस मुकाम को हाशिल करते हैं, उसमें भी गिने-चुने लोग ही इस लक्ष्य को हाशिल करने में कामयाब होते हैं, उसी लक्ष्य को चिराग गणपत डागलिया की कंपनी नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क ने २०१९ की शुरुआत के पहले दिन ही MDRT-USA का टारगेट हासील किया, फिलहाल LIC में करीब ११ लाख इंश्योरेंस एडवाइजर है जिसमें से एक चिराग डागलिया ही हैं कि जिन्होंने इस मुकाम को एक ही दिन में हासिल किया है, इस मौके पर LIC से SDM प्रदीप महापात्रा, MM वी. के शर्मा, सेल्स मैनेजर तुषार पंड्या आदि ने बधाई दी। चीफ मैनेजर श्रीमती प्रभा उत्तेकर, शाखा प्रबंधक शैलेश राजे व अस्सिस्टेंट ब्रांच मैनेजर अविन हड़के, अनिल शर्मा (A.D.M.) एवं विकास अधिकारी रमेश बोहरा ने विघ्नहर्ता अवार्ड देकर सम्मानित किया और अत्यंत सराहना की। लाइफ इंश्योरेंस हो, ज्वेलर्स हो, मेडिक्लेम व कार से जुड़ी पॉलिसी हो या फिर किसी और इंश्योरेंस की बात हो, लोगों की जुबां पर ‘नाईस इंश्योरेंस लैंडमार्क’ का ही नाम होता हैं, इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नाइस इंश्योरेंस लैंड मार्क की सेवा कितनी बेहतरीन हैं, इंश्योरेंस के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में चिराग डागलिया ने सर्वोच्च अवार्ड हासिल किया है, उसकी एक ही वजह है कि उनकी कंपनी नाइस इंश्योरेंस लैंडमार्क द्वारा लोगों को दी जा रही बेहतरीन सर्विसेज। एलआईसी, हेल्थ इंश्योरेंस, वेहिकल इंश्योरेंस, शॉप/फैक्ट्री इंश्योरेंस जैसे क्षेत्रों में बिना किसी रुकावट के पीड़ित पक्ष को समय पर राहत पहुंचाते हैं, यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में ही एलआईसी से जुड़े सभी बड़े आयामों पर अपना परचम लहराया है नाइस इंस्यूरेंस लेण्डमार्क ने…

खरतरगच्छ के युग पुरूष 0

खरतरगच्छ के युग पुरूष

भगवान महावीर के शासन में अनेक प्रभाविक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने जन कल्याण के साथ जैन शासन की महान् सेवा की है, इन महापुरूषों में खरतरगच्छ चारों दादा गुरूदेव के नाम विशेष महत्त्व रखते हैं। एक लाख तीस हजार अजैनों को जैन बनानेवाले शासन सम्राट श्री जिनदत्तमुनिजी प्रथम दादा गुरूदेव एवम् प्रभाविक गणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी द्वितीय दादा गुरूदेव हुए। पचास हजार अजैनों को जैन बनाने वाले कल्पवृक्ष के समान मनवांछित इच्छा पूर्ण करने वाले श्री जिनकुशल सूरिजी तृतीय दादा गुरूदेव हुए तथा सम्राट अकबर को प्रतिबोध देनेवाले, शासन की महान् सेवा करने वाले श्री जिनचन्द्रसूरिजी चतुर्थ दादा गुरूदेव हुए। चारों दादा साहेब महान् प्रमाणिक, ज्ञान व चरित्र दोनों में कौस्तुभ मणि के समान निर्मल, ज्ञानी, युगप्रधान के धारक, अध्यात्म अवयोग बल से परिपूर्ण थे। धर्म की धूमिल पड़ती ज्योति को प्रज्ज्वलित किया, अनेक संकटों का निवारण किया तथा अनगिनत ग्रंथों की रचना कर साहित्य का विकास किया। उनके नाम, जप में वह शक्ति है कि भक्तों की इच्छायें स्वत: ही पूर्ण हो जाती है। आज भारत की दसों दिशाओं में तकरीबन ११ हजार प्राचीन अर्वाचीन दादा बाड़ियाँ हैं। अजमेर, दिल्ली, मालपुरा, बिलाड़ा ये चमत्कारी चार धाम के रूप में प्रसिद्ध हैं। युगप्रधान श्री जिनदसूरिजी-प्रथम दादा : अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न क्रांतिकारी जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरिजी महाराज साहेब का जन्म ११३२ में गुजरात के धोलका नगर में मंत्री वांछिगशाह की धर्मपत्नी वाहड़देवी की रत्न कुक्षी से हुआ। सं. ११४१ में उपाध्याय धर्म देवगणि से धोलका में दीक्षित हो वे मुनि सोमचन्द्र बने। कुशाग्र बुद्धि सम्पन्न मुनि सोमचन्द्र को देव भद्राचार्य ने सर्वसम्मति से ११६९ चित्तौड़ नगरी में जिनवल्लभसूरि के पट्ट पर आचार्य पद पर विभूषित कर जिनदत्त सूरि का नाम लिखा। उज्जैन में साढ़े तीन करोड़ माया बीज ह्रिंकार का जाप किया था। योगनियाँ छलने आयी किन्तु आपके तप, जप और ब्रह्मचर्य के तेज के समक्ष नत मस्तक हो सात वरदान दिये। अजमेर प्रतिक्रमण के मध्य कड़कड़ाती बिजली को पात्र तले स्तंभित किया। भरूच शहर में मृतक काजी पुत्र को एवं बड़ नगरी में मरी गाय को जीवित किया। नागौर में धनदेव श्रावक ने कहा- हम सभी अनुयायी बनेंगे, बशर्ते आप चैत्यवास की पुष्टी करें। गुरूदेव बोले- तुम्हारी मानूँ या महावीर की आज्ञा पालूँ। चाहे कोई प्रसन्न हो या नाराज, वही कहूँगा जो आत्म हितकर व सत्य होगा, यह थी उनकी निर्भिक स्पष्टवादिता। गिरनार अधिष्ठात्री अम्बिका देवी ने प्रसन्न हो अठ्ठम् आराधक अम्बड श्रावक के हाथ में स्वर्णाक्षरों से लिख कर कहा- ‘जो पढ़ेगा वही युग प्रधान होगा।’ घूमते-घूमते अनेक आचार्यों के पास गये पर क्या सूर्य विकाशी कमल सूर्य के बिना विकसित हो सकता है? नहीं ना, अंतत: पहुँचा वह पाटन विराजित जिनदत्त सूरिजी के पास, आत्म प्रशंसा देख वासक्षेप डाल शिष्य को आदेश दिया, उन्होंने सहर्ष सुनाया। धसानुदासा इव सर्व देवा, यदीय पादाब्ज तले लुठन्ति। मरूस्थले कल्पतरू स: जीयात् युग प्रधानो जिनदत्त सूरि:।। तब से आप युगप्रधान के रूप में प्रख्यात हुए, गुरूदेव की भक्तोपार अपरंपार महिमा थी। विचरण मार्ग में व्यन्तर उपद्रव ग्रस्त एक भक्त श्रावक ने गुरूदेव जिनदत्त सूरिजी महाराज से निवेदन किया, गुरूदेव ने अपने ज्ञान बल से देखा यह व्यन्तर यंत्र-मंत्र-तंत्र से असाध्य है, अत: उसी क्षण ‘‘गणधर सत्पतिका’’ की रचना कर भक्त को दिया, आज्ञानुसार मात्र उस शास्त्र पर दृष्टि लगाये रखा, फलस्वरूप पहले दिन व्यन्तर काय प्रवेश न कर सका, दूसरे दिन गृह प्रवेश और तिसरे दिन तो आया ही नहीं, श्रावक स्वस्थ हो और भी श्रद्धाशील बन गया। सिंध देश की पंचनदी में पांच पीरों को साधा। डूबते व्यक्ति को अपनी ऊनी शाल में बिठा किनारे लगाया, मुल्तान नगर के प्रवेश से जैनेत्तर अंबड के ईष्र्यावश कहने पर, पत्तन में आप इसी के साथ पधारे। विरोधी से विरोधी के प्रति भी करूणा धारा बहती थी, गुरूदेव के अन्तरमानस में। विक्रमपुर में हा-हाकार मचा था, हैजा मौत का तांडव नृत्य कर रही थी, बड़ी दर्दनाक स्थिति थी। उच्चनगर भी कष्ट जलंदर से प्रताड़ित था। गुरूदेव ने संयम साधना से भयंकर उपद्रवों को शांत किया, इस उपकार से उपकृत हो ५०० बालक ७०० बालिकाएं दीक्षित हुये। दसियों राजाओं सहित लाखों जैनतरों को अहिंसा सत्य की शिक्षा दे जैनी बनाया। सिंध देशीय श्रावकों की प्रार्थना पर उन्हें ‘‘मकराना’’ से ३२ अंगुल की जिनमूर्ति बनवा कर लाने को कहा, कुछ आवश्यक सूचनाएँ भी दी। यथा समय प्रतिमा आ गई उसे देख गुरूदेव बोले- तुम्हें धोखा हुआ। अंजन शलाका मार्ग में हो जाने से तुम्हारी लक्ष्मी प्राप्ति का मनोरथ असफल हो गया, पुन: भटनेर से आते वक्त मणीभद्र प्रतिमा को भय से पंच नदी में डाल दिया, तब दयानिधी गुरूदेव के साधने पर मणिभद्र ने वरदान दिया। सिंधू के प्रत्येक ग्राम में एक व्यक्ति धनाढ्य होगा, शेष खाते-पीते सुखी, वैसा ही हुआ, होनी को नमस्कार है। मारवाड़, सिंध, गुजरात, बागड, मेवाड, सोरठ, मालवा आदि भारत के विभिन्न प्रांतों में जैन शासन की महान सेवा के साथ-साथ लोक हितार्थ अर्थ गांभीर्य युक्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषा में अनेक ग्रन्थ लिखे। नवासी वर्ष की अवस्था में अन्त समय जान अनशन किया। सं.१२११ आषाढ़ शुक्ला एकादशी को यह तेजस्वी सूर्य अस्त हो गया। श्रद्धांजली स्वरूप प्रतिवर्ष अजमेर में दादा मेला भरता है। प्रार्थना करूणा से उत्पन्न होती है, मन में करूणा के भाव झाबुआ: जीवन में बहुत से क्षण ऐसे आते है जहां सब कुछ होते हुए व्यक्ति स्वयं को विवश महसूस करता है, उस समय धन-दौलत, परिवार कोई भी सहयोग नहीं कर सकता, उस समय सिर्फ धर्म और प्रार्थना, दुआ ही काम आती है। प्रार्थना सिर्फ मन से होती है, धन से नहीं होती, उस समय धन शून्य हो जाता है, कभी-कभी परमात्मा के पास निस्वार्थ भाव से की गई प्रार्थना व्यक्ति की कबूल हो जाती है। परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है, मैंने मध्यप्रदेश और गुजरात दोनों को देखा है पर दोनों में अंतर यह है कि गुजरात में लोग धर्म के प्रति आस्था, विश्वास रखते हुए श्रद्धावान होते हैं, वहां हर गांव में मंदिर और गौशाला देखने में आती है, क्योंकि उनके हृदय में करूणा है, प्रार्थना भी करूणा से ही उत्पन्न होती है। हम प्रतिस्पर्धा में जीते हैं जबकि सहयोग की भावना के साथ जीना चाहिये, हम जीवन में कितने ही मॉल बना लें, बंगले बना लें, आधुनिक ज्वैलरी खरीद लें, हम कितने भी आधुनिक क्यों न बन जायें, पर अध्यात्म से जुड़े रहें, तभी हमारी आत्मा का कल्याण संभव होगा। शास्त्रों में लिखा है कि पंचम काल में गाय के बछड़े, धर्म का रथ खिंचेगें, वह बात आज सार्थक होती दिख रही है कि हमारी युवा पीढी का झुकाव धर्म के प्रति बहुत ज्यादा बढा हुआ दिख रहा है। उक्त प्रेरणादायी बात वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय ऋषभचन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में कही। दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की पाट परंपरा के अष्टम पट्टधर प.पू. वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय ऋषभचन्द्रसूरिश्वरजी मसा. आदि ठाणा ३ का मंगलमय झाबुआ नगर प्रवेश स्थानीय दिलीपगेट स्थित महावीर बाग जिन मंदिर प्रांगण में हुआ। आचार्यश्री यहां से विशाल चल समारोह के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए स्थानीय बावन जिनालय पहूंचे, आचार्यश्री ने दर्शन वंदन किये, तत्पश्चात धर्मसभा का आयोजन हुआ। बाहर से पधारे हुए अतिथियों ने दीप प्रज्जवलन किया। मोहनखेड़ा तीर्थ के कार्यवाहक ट्रस्टी सुजानमल सेठ ने श्री संघ के व्यवस्थापक एवं गौडी पाश्र्वनाथ जिन मंदिर प्रमुख को गुरू सप्तमी महामहोत्सव में पूरे जैन श्री संघ सहित पधारने का निमंत्रण दिया। आचार्यश्री को फाईव स्टार ग्रुप एवं जैन श्री संघ झाबुआ द्वारा कांबली ओढाई गई। प्रवचन पश्चात आचार्यश्री ने महामांगलिक का श्रवण समाजजनों एवं गुरूभक्तों को कराया। आचार्य श्री के नगर प्रवेश के अवसर पर नाश्ता नवकारसी एवं महामांगलिक के पश्चात स्वामी वात्सल्य का आयोजन सुभाषचन्द्र कोठारी, मुकेश रूनवाल, संतोष नाकोडा, निलेश शाह,संजय नगीनलाल कांठी आदि द्वारा किया गया, इस अवसर पर राजगढ श्री संघ से मोहनखेडा तीर्थ मैनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ,संतोष चत्तर, दिलीप भंडारी, नरेन्द्र भंडारी, पार्षद गोलू सेठ, आशीष चत्तर, तीर्थ के महाप्रबंधक अर्जुन प्रसाद मेहता, महेन्द्र जैन, स्थानीय श्रीसंघ कांतिलाल बाबेल, कांतिलाल पगारिया, संजय मेहता, यशवंत भंडारी, संतोष नाकोडा, संजय कांठी, मुकेश रूनवाल, सुनिल राठौर, हेमेन्द्र बाबेल, सुभाष कोठारी, कमलेश कोठारी, सतीश कोठारी, मनोज मेहता, अशोक सकलेचा, सुरेश कांठी, मनोहर मोदी, नरेन्द्र पगारिया, अजय रामावत, मनोहर छाजेड, कैलाश सकलेचा, प्रकाश लोढा आदि उपस्थित थे। प्रथम जैन को मिला इन्फोसिस फाउंडेशन अवार्ड हाल ही में लवली प्रोफेसनल युनिवर्सिटी जालंधर में चार दिवसीय इंडियन साइंस काग्रेंस का शुभारम्भ माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया, जिसके अंतर्गत इन्फोसिस लैब। राष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, इस प्रतियोगिता में मेयर वल्र्ड स्कूल के विद्यार्थी प्रथम जैन सुपुत्र श्री सुनील एवं रुचि जैन को इन्फोसिस फाउंडेशन अवार्ड इजराइल के नोबेल विजेता प्रोफेसर अवराम हशको एवं अमेरिका के प्रोफेसर फैड्रिक डंकन हाल्डेन द्वारा प्रदान किया गया। प्रथम जैन ने पूरे पैन इंडिया के टाप दस पोजीशन में रहकर अपने देश, स्कूल तथा मातापिता का नाम रोशन किया। प्रथम को दिए गए अवार्ड के लिए मेयर वल्र्ड स्कूल के वाईस चेयर पर्सन एवं मोटिवेशनल टीचर नीरजा मेयर, क्लास टीचर राखी कपूर, साइंस मोटिवेशनल टीचर कीर्ति मेहता एवं फिजिक्स के अध्यापक रितेश भारद्वाज का अहम योगदान रहा है, इस सुअवसर पर लवली प्रोफेशनल युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर अशोक मित्तल ने भी प्रथम जैन को शुभकामनाएं दी। प्रोफेसर हशको ने स्कूली विद्यार्थियों को विज्ञान युक्त भारत का भविष्य बताते हुए कहा कि एक दिन इनमें से बहुत से विद्यार्थी महत्त्वपूर्ण खोज करेंगे जो कि मानवता के लिए वरदान साबित होंगे, साथ ही प्रोफेसर डंकन हाल्डेन ने कहा कि जब किसी को किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो रिसर्च की उत्पत्ति होती है, उन्होंने साइंस को कूल बताते हुए कहा कि सभी स्कूली लड़के और लड़कियाँ मैथमैटिक्स और फिजिक्स जैसे विषयों को पढ़ाई के लिए जरूर चुनें, साथ यह भी कहा कि साइंस विषय का चयन मानवता की भलाई और सभी के जीवन में सुधार लाने के लिए करें ना कि किसी नोबेल पुरस्कार जीतने के लिए। प्रथम जैन ने अपनी उक्त उपलब्धि का संपूर्ण श्रेय अपने अध्यापक वर्ग एवं अपने माता-पिता को देते हुए उनका हार्दिक दिल से धन्यवाद किया, प्रथम जैन के माता-पिता के अनुसार प्रथम को प्रारम्भ से ही साइंस अभिरुचि रही है तथा वह भविष्य में निःसंदेह साइंस के क्षेत्र को अपना विशेष योगदान देगा। मुंबई: विख्यात जैन तीर्थ सम्मेत शिखरजी में सांवलिया पाश्र्वनाथ भगवान के अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारियां जोर शोर से चल रही है। श्वेताम्बर जैनों के इस प्रमुख तीर्थ का प्रतिष्ठा महोत्सव ३ मार्च को होगा, जिसमें विभिन्न देशों से लाखों श्रद्धालू भाग लेने पहुंचेंगे। मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, जयपुर, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर, नागपुर आदि से भी हजारों लोग इस प्रतिष्ठा महोत्सव में पहुंचेगे। गच्छाधिपति आचार्य श्रीराजशेखर सूरीश्वर महाराज की निश्रा में हो रहे इस अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में कई प्रमुख आचार्य एवं साधु-साध्वी भगवंत भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहेंगे। सम्मेत शिखरजी में सांवलिया पाश्र्वनाथ मंदिर को श्वेताम्बर जैनों के सर्वाधिक प्राचीनतम मंदिर के रूप में माना जाता है। प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के अध्यक्ष कमलसिंह रामपुरिया, चेन्नई निवासी विख्यात समाजसेवी रमेश मुथा इस प्रतिष्ठा महोत्सव के संयोजक हैं एवं सह संयोजक अजय बोथरा एवं प्रकाश के संघवी हैं। फाल्गुन कृष्णा १२ को रविवार के दिन ३ मार्च, २०१९ को सांवलिया पाश्र्वनाथ मंदिर का यह प्रतिष्ठा महोत्सव होगा। गच्छाधिपति आचार्य श्रीराजशेखर सूरीश्वर महाराज, आचार्य विनयसागर सूरीश्वर महाराज, आचार्य जिनपियूषसागर सूरीश्वर महाराज, आचार्य राजपरम सूरीश्वर महाराज, आचार्य राजहंस सूरीश्वर महाराज, आचार्य मुक्तिप्रभ सूरीश्वर महाराज, मुनिराज धर्मघोष विजय महाराज एवं विभिन्न समुदायों के श्रमण-श्रमणीवंद की प्रभावक निश्रा में यह प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित हो रहा है। जैन धर्म के २४ में बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि एवं अनंत आत्माओं की साधना स्थली सम्मेत शिखरजी में इस प्रतिष्ठा महोत्सव में भाग लेने हजारों जैन संघों के लाखों लोग भाग लेने आ रहे हैं। आचार्य जिनपियूषसागर सूरीश्वर महाराज के मार्गदर्शन में इस तीर्थ का जिर्णोद्धार संपन्न हुआ है। प्रज्ञाभारती प्रवर्तिनी साध्वी चंद्रप्रभाश्रीजी का इस मंदिर के जिर्णोद्धार प्रेरक के रूप में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन धर्म के अनुयायियों में इस प्रतिष्ठा महोत्सव को एक दुर्लभ अवसर के रूप में देखा जा रहा है। लोगों का मानना है कि सम्मेत शिखर महातीर्थ के मुख्य मंदिर की प्रतिष्ठा को तो वर्तमान युग के किसी भी व्यक्ति ने देखा नहीं है लेकिन अंजनशलाका-प्रतिष्ठा व दीक्षा का यह महोत्सव तो सभी के समक्ष हो रहा है, अतः लोगों में काफी उत्साह है। सम्मेत शिखरजी की विभिन्न चोटियों से २० तीर्थंकरों के साथ अनगिनत मुनि मोक्ष में गये हैं, इसीलिए इस भूमि को अत्यंत प वित्र माना जाता है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा के ९ दशक की यात्रा कोलकाता: सन् १९२८ में संस्थापित श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा ने जैन दर्शन के रत्नत्रय सम्यक ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को आधार बना कर सेवा, शिक्षा एवं साधना के लक्ष्य से मानव सेवा के क्षेत्र में कदम रखा एवं उत्साही, कर्मठ, सेवाभावी तथा अथक अध्यवसायी कार्यकत्ताओं ने शीघ्र ही उसकी लोक कल्याणककारी प्रवृतियों एवं क्रिया कलापों को न केवल गति प्रदान की अपितु नये-नये आयामों को जोड़ा एवं उसके मानव सेवी प्रकल्पों का विस्तार भी किया। संस्थाओं की सफलता भी ऐसे ही कर्मठ, कार्यकत्र्ताओं के स्नेह, सौजन्य एवं उदारता से प्रगति पथ पर अग्रसर रहती है, अकुंठ भाव से ९ दशक तक निरन्तर सेवा कार्यों में लगे रहना इसकी परिपक्वता की ऐसी कहानी जो अत्यन्त रोचक एवं लोकप्रिय है। एक समय सभा के कर्णदारों का हठ निश्चय हो गया कि बिना शिक्षा के भावी पीढ़ी की उन्नति सम्भव नहीं, इसी कारण १७ मार्च १९३४ को १४२ए, क्रास स्ट्रीट में भाड़े की जमीन पर श्री जैन विद्यालय स्कूल की स्थापना एक शिक्षक एवं एक छात्र से हुई, निरन्तर छात्रों की बढ़ती संख्या से १८६ क्रास स्ट्रीट का मकान खरीद किया गया, पर छात्रों की वृद्धि बढती गयी, अत: १८डी, सुकुलर लेन, कोलकाता-०१ में जगह खरीदकर मकान निर्माण कर ११ अप्रैल १९५८ को सभा व श्री जैन विद्यालय दोनों का स्थान्तरण वहाँ कर दिया गया, श्री जैन विद्यालय, माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का शुभारंभ किया गया, विद्यालय का एकमात्र उद्देश्य सुसंस्कारी बालकों का निर्माण करना व उच्च शिक्षा देना, जो देश के भविष्य के निर्माता की अहम भूमिका का निर्वाह करेंगे और सुनागरिक बनकर भारतीय संस्कृति की पताका विश्व में फहरायेंगे। विद्यालय दिन-प्रतिदिन उन्नति के शिखर पर था, सन् १९६८ को इस भवन में जैन चिकित्सालय की स्थापना व १ फरवरी १९७० में श्री जैन भोजनालय की स्थापना मात्र रू.४५/- में जैनियों को दो वक्त का शुद्ध सात्विक भोजन मिलना शुरू हो गया। शिक्षा, सेवा और साधना की यात्रा इस प्रकार आगे बढ़ती गई: १९९२ – श्री जैन विद्यालय हावड़ा (छात्रों के लिए) – श्री जैन विद्यालय हावड़ा (छात्राओं के लिए) १९९७ – श्री जैन हास्पीटल एण्ड रिसर्च सेन्टर हावड़ा १९९८ – हरकचन्द कांकरिया जैन विद्यालय, जगदल २००६ – तारादेवी हरखचन्द कांकरिया जैन कॉलेज (काशीपुर) २००८ – कमलादेवी सोहनराज सिधवी जैन कॉलेज ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) काशीपुर २०१७ – कुसुम देवी सुन्दरलाल दुगड़ जैन डेन्टल कॉलेज एण्ड हॉ स्पीटल (काशीपुर) २०१७ – सुशीला देवी पन्नालाल कोचर जैन फ्यूचरीस्टीक एकेडेमी का निर्माण शुरू राजरहाट, न्यूटाऊन २ (दो) एकड़ जमीन पर। सभा अपने ९ दशक की यात्रा पूर्ण कर दिन-प्रतिदिन प्रगती की ओर बढ़ रही है, सभा सबको साथ लेकर आगे बढ़ती रहे यही ‘जिनागम’ परिवार की प्रभु से प्रार्थना है, इतने बड़े नेटवर्क को तैयार करने में सभा के कर्णधारों की सूझबूझ व कार्यकताओं व सभा के सदस्यों से सहयोग लेने की कार्यप्रणाली एकदम अद्भुत है, कार्यकताओं को दानदाताओं के बराबर सम्मान देते आये हैं, यही नहीं उनके सुख व दु:ख में पूरा सभा परिवार उनके साथ रहता है, ये अपनी बात पर अड़े नहीं रहते वरन् सही बात को समझ कर सर्वसम्मति से कार्य करते है, कोई कहासुनी हो गई तो मन से ‘खतम खामणा’ करते हैं, प्रतिदिन स्वाध्याय करने के कारण ही इनकी सोच व बोल एकमात्र अच्छा लय है, यानी पूरे समुदाय को साथ लेकर चलने की क्षमता के कारण यह सम्भव है, ‘कलियुगे संघटन शक्ति’ का यही राज है, मैंने यह कार्य स्वान्त: सुखाय किया व स्वामी विवेकानन्द के इन वाक्य पर first learn to obey command/will come automatically पर अमल करने की चेष्ठा की। पुण्याई समाप्त होने पर सेठ से विदा होती लक्ष्मी से वर मांगा कि उनकी सन्तानें मिलजुल कर प्रेम सहयोग व सद्भाव पूर्वक रहे। लक्ष्मीजी वर देकर विदा हो गई, किन्तु कुछ समय बाद स्वत: लौट आई, जिज्ञासा करने पर बताया कि जहां प्रेम, पुरूषार्थ व श्रम है वहां पर लक्ष्मी को रहना ही होगा, यही रहस्य है सभा के उन्नयन का, कार्यकत्ताओं का पुरूषार्थ, प्रेम और सद्भाव इसकी विकास यात्रा का आधार है। सभा का यह पारिवारिक रूप सदैव बना रहे एवम् कार्यकर्ता इसी तरह कारवां को आगे बढ़ाते रहें, इसी भावना के साथ समस्त जैन समाज की एकमात्र पत्रिका जिनागम का आव्हान ‘हम-सब जैन हैं’ सफल हो। – विनोद मिन्नी जैन उपाध्यक्ष एस.एस. जैन सभा आनंद से जियो (लघुकथा) – सुभाष जैन ‘हमराही’, पानीपत (हरियाणा) स्वपन में एक आदमी ने देखा कि वह मर गया है, और भगवान उसके पास आ रहे हैं और उनके हाथ में एक सूटकेस है, पास आकर भगवान ने कहा ‘पुत्र चलो अब समय हो गया। आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जवाब दिया- ‘अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं,’ मैं क्षमा चाहता हूँ, किन्तु अभी चलने का समय नहीं है, आपके इस सूटकेस में क्या है? भगवान ने कहा- तुम्हारा सामान, मेरा सामान? ‘आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं, मेरे कपड़े, मेरा धन? ‘भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा- वस्तुएं, कपड़े, धन तुम्हारा नहीं हैं, ‘ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं और पृथ्वी पर ही रहेगा आदमी ने पूछा- ‘मेरी यादेंं कहाँ है? भगवान ने जवाब दिया- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं, वे तो परिस्थिति जन्य थीं ‘तो ये मेरा परिवार और मित्रगण? ‘भगवान ने जवाब दिया- क्षमा करो वे तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे, वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे ‘फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा? ‘भगवान ने मुस्कुरा कर कहा- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है ‘तो क्या यह मेरी आत्मा है ‘नहीं वह तो मेरी है- भगवान ने कहा, भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस लिया वह खाली था।’ आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा- ‘मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था, भगवान ने जवाब दिया- यही सत्य है। ‘प्रत्येक क्षण जो तुमने आत्मसुख में जिया, वही तुम्हारा था। जिंदगी क्षणिक है और वे ही क्षण तुम्हारे हैं, जो क्षण तुमने वर्तमान में जिये, आत्मानन्द में जीये अपनी जिंदगी जिये, जीवन में खुश रहना कभी न भूलो, यही बात महत्त्वपूर्ण है, वह समझ गया कि भौतिक वस्तुओं में सुख नहीं- सुखाभास है, इसलिये ‘जिनागम’ के सम्मानित पाठकों और प्रशंसकों से विन्रम आग्रह है कि हमें जो सृष्टि से अनमोल मनुष्य भव रूपी जीवन प्राप्त हुआ है, हमें इस जीवन के प्रत्येक पल और क्षणों का आनंदित और हर्षोल्लास से ओत-प्रोत होकर जीना चाहिए | जिनालय की वर्षगांठ पर हुआ ध्वजारोहण रामजी का गोल: जैन तीर्थ रामजी का गोल के अधिनायक श्री मेरूतुंग पाश्र्वनाथ जिनालय व दादावाड़ी की द्वितीय वर्षगांठ पर ध्वजारोहण के साथ त्रिदिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ। तीर्थ ट्रस्ट मंडल अध्यक्ष भीमराज बोहरा व तीर्थ ट्रस्ट कार्याध्यक्ष शंकरलाल पड़ाइया ने बताया कि महोत्सव के तीसरे दिन सतरभेदी पूजा, गुरु भगवंतों का प्रवचन, देव-दर्शन, पूजा, आरती, मंगल दीपक रात्रि भक्ति भावना आदि कार्यक्रम हुए, दोपहर विजय मुहूर्त में मंत्रोच्चार के साथ जिनालयों के शिखर पर ध्वजारोहण किया गया। तीर्थ ट्रस्ट लूणकरण सिंघवी व त्रिदिवसीय महोत्सव के प्रचार प्रमुख सुरेशकुमार पारख ने बताया कि इस दौरान आवास, भोजन, यातायात, वैयावच्च, शामियाना, भक्ति आदि की व्यवस्था की गई थी, कार्यक्रम में सम्पूर्ण दिन का साधार्मिक भक्ति का लाभ जगदीशचंद बगतावरमल बोहरा राणासर ने लिया। पूजा का लाभ सोनाणी बोहरा परिवार ने लिया। ट्रस्ट मंडल की ओर से लाभार्थी परिवारों का बहुमान किया गया। कार्यक्रम में मुम्बई, सुरत, अहमदाबाद, जोधपुर, बालोतरा, कच्छ-भुज आदि स्थानों से सैकड़ों श्रद्धालु उमड़े। विशिष्ट अतिथियों में बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन, नाकोड़ा ट्रस्ट अध्यक्ष दानदाता रमेशभाई मूथा, नाकोडा पूर्व भामाशाह रमेश भाई मुथा, नाकोड़ा के पूर्व अध्यक्ष अमृतलाल छाजेड़ व गुड़ामालानी उपखंड अधिकारी दिनेश विश्नोई व तहसीलदार नारायणलाल सुथार का स्वागत किया गया।

जीतो का ‘रंगला पंजाब’ और नई टीम शपथ समारोह 0

जीतो का ‘रंगला पंजाब’ और नई टीम शपथ समारोह

जैन इंटरनैशनल ट्रेड ऑर्गेनाईजेशन (जीतो) लुधियाना चेप्टर, लेडीज़ विंग एवं यूथ विंग के सहयोग से भगवान महावीर वनस्थली एवं ध्यान साधना केन्द्र दोराहा में एक भव्य कार्यक्रम ‘‘रंगला पंजाब’’ एवं जीतो की नई टीम का शपथ समारोह का आयोजन ३ फरवरी २०१९, दिन रविवार, प्रातः १०ः०० बजे से दोपहर १ः३० बजे तक हुआ, यह कार्यक्रम जीतो के पांच लक्ष्य शिक्षा, संस्कार, सेवा, सुरक्षा एवं स्वावलंबन आदि विषयों पर आधारित था, जिसमें मनोरंजन हेतु वैलकम डांस, प्रोफैशनल गु्रप द्वारा गिद्दा, पंजाबी थीम, जीतो लेडीज़ विंग द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम, फॉक डांस एवं बहुत से अन्य कार्यक्रम के साथ-साथ समय पर पहुंचने वालों को लक्की ड्रा द्वारा सोने का सिक्के दिये गये, कार्यक्रम के मुख्य सहयोगी श्री रोशन लाल जैन खानगाडोगरा वाले, श्री सरदारी लाल भूषण लाल रमेश कुमार जैन ‘स्वास्तिक’ एवं श्रीमति मुक्ता जैन – भूषण कुमार जैन, राजीव जैन ‘चमन’, सुधीर जैन रहे, कार्यक्रम का मकसद जैन समाज के लोगों को अधिक से अधिक शिक्षित कर उनको समाज में अग्रणीय स्थान प्रदान किया जा सके, उनमें अच्छे संस्कारों का समावेश किया जा सके इसी के साथ-साथ सेवा एवं सुरक्षा का अहसास करा सकते हैं, कार्यक्रम मन और आत्मा को सुकून प्रदान करने वाला रहा, उपयुक्त उपलक्ष्य में जैन मंदिर, सिविल लाईन्ज़ में समाज को सम्पूर्ण जानकारी देने के लिये प्रचार-प्रसार सामग्री आबंटित की गई, कार्यक्रम को सुव्यवस्थित बनाने के लिये प्रवेश पास की व्यवस्था की गई थी तथा बिना पास के प्रवेश निषेध रहा।कार्यक्रम के समापन से पहले प्रीति भोज की व्यवस्था भी थी, इस अवसर पर जीतो लुधियाना चेप्टर के चेयरमैन भूषण कुमार जैन, महामंत्री राजीव जैन, उप-प्रधान रमेश जैन ‘स्वास्तिक’, कोषाध्यक्ष सुधीर जैन, कोमल जैन ‘ड्यूक’, सुरेश जैन, राकेश जैन, जीतो लेडीज़ विंग की चेयर पर्सन अभिलाष ओसवाल, मंजु ओसवाल, मंत्री सोनिया जैन, कंचन जैन, रंजना जैन, सीरत जैन, करुणा ओसवाल, नीरा जैन, भानु जैन, वीना जैन आदि गणमान्य उपस्थित थे। – राजीव जैन (चमन) महामंत्री-जीतो लुधियाना चेप्टर मेरे गुरूवर: पंचम युग के भगवान बंदऊँ गुरू पद पद्म परागा।सुरूचि सुबास सरस अनुरागा।।अमि अ म्रियम चूरा चारू।सुमन सकल भव रूज परिवारू।। गुरू जितना छोटा सा शब्द है उतनी ही गहराई समायी हुई है उसमें।गुरू वे होते हैं जो अपने ज्ञान के सागर की बूँद-बूँद भी शिष्य को देने के लिए लालायित रहते हैं, ऐसे मेरे गुरू साक्षात एक भगवान का रूप लिये इस पंचम काल में भी अपनी चर्या को साधते हुये हम जैसे शिष्यों की ज्ञान पिपासा को शांत कर रहे हैं। वर्तमान में जैन मुनियों की चर्या पद्धति ही एक ऐसी पद्धति है जिसे देख लोग दाँतों तले उँâगली दबा लेते हैं। जैन समाज के लिये हर्ष की बात है कि आज भी हमें भगवान महावीर का अवतरण देखने मिल रहा है। आचार्य श्री विद्यासागर जी की यदि जीवन गाथा पढ़ी जाये तो लगता ही नहीं कि हम वर्तमान के किसी मुनि की गाथा पढ़ रहे हैं। अपने व्रत, नियमों का कठोरता से पालन करने वाले ऐसे आचार्य तो चतुर्थ काल में ही संभव थे। पंचम काल में भी स्वयं को एवं अपने शिष्यों को मुनि धर्म के नियम के अनुसार ढालना जैसे कार्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के लिये असंभव नहीं है। अपने स्वाध्याय में तल्लीन रह कर भी मानव व पशु कल्याण की पहल करना एवं उसे किस तरह उपयोग में लाना, ऐसे विचार तो दुर्लभ व्यक्तियों में ही देखने मिलते हैं, वो माता-पिता धन्य हैं जिन्होंने ऐसे विलक्षण प्रतिभा वाले बालक को जन्म दिया।आचार्य विद्यासागर जी का जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ, उनके पिता श्री मल्लप्पा जी थे जो बाद में दीक्षित होकर मुनि मल्लिसागर बनें। माता श्रीमती श्रीमंति थी जो दीक्षित होकर आर्यिका समयामति बनीं। विद्याधर जी ने २२ वर्ष की अवस्था में आचार्य ज्ञानसागर जी से दीक्षा ली, उन्हें मुनि विद्यासागर नाम से संबोधन किया गया। सन् १९७२ में मुनि विद्यासागर आचार्य विद्यासागर बन गये। नाम के अनुरूप आचार्य विद्यासागर जी को संस्कृत, प्राकृत सहित मराठी, कन्नड़ एवं हिन्दी भाषाओं का विशेष ज्ञान प्राप्त है, उनके द्वारा महान काव्य ‘मूकमाटी’ की रचना की गई, साथ ही उनके कार्यों में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह, जाया शतक, सुनीति शतक इत्यादि सम्मिलित हैं।भारत भूमि पर ‘जन्म सुधारो’ की भावना की वर्षा करने वाले अनेक महापुरूष और संत कवि जन्म ले चुके हैं इन सभी ने अपनी वाणी से विघटित समाज को नवीन संबल प्रदान किया है, जिससे राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में क्रांतिक परिवर्तन हुये हैं। भगवान महावीर, आचार्य कूंदकुंद, पूज्यपाद मुनि, बनारसी दास, धानतराय जैसे महामना साधकों ने अपनी आत्मसाधना के बल पर संपूर्ण मानवता को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है, इसी क्रम में वर्तमान में अपने उत्तम त्याग, संयम से एवं अपनी सुभाषित वाणी से समाज का हित करने वाले शिखर पुरूष आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का नाम सर्वोपरि आता है।पंचम काल में समाज के लिये एक सटिक उदाहरण के रूप में तप, त्याग, साधना क्या होती है यह बताने के लिये आचार्य श्री का नाम ही काफी है। अपनी साधना में लीन होने के बावजूद आचार्य श्री सामाजिक विकास एवं गौ संरक्षक के लिये सचेत रहे एवं जागरूकता विस्तारित की।गुरू के चरणों में स्वर्ग होता है, यह पंक्ति आचार्य श्री पर चरितार्थ होती है। समस्यायें तो जैसे उनके नाम से ही समाप्त हो जाती है। वर्तमान में हम जैसे तुच्छ प्राणियों के भगवन बने आचार्य श्री संयम रथ पर सवार होकर मोक्ष के पथ पर बढते चले जा रहे हैं। मानव शरीर के लिये भोजन में रसों का महत्व होता है क्योंकि उनसे ही हमें पोषक तत्व प्राप्त होते हैं परंतु हमारे गुरूवर का शरीर तो जैसे आध्यात्मिक ज्योति से चल रहा है। वैज्ञानिक हैरान हैं कि कोई इंसान बिना नमक, शक्कर, घी, तेल, दूध के कैसे जीवित है? हम सभी बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें अपने जीवन काल में ऐसे गुरू का सानिध्य प्राप्त हुआ, जो अपना उद्धार तो कर ही रहे हैं, साथ ही अपने से जुड़े सभी लोगों को भी सन्मार्ग पर चलने की बहुमूल्य शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नम:।। -डा. श्रीमती सुजाता जैन ‘आदित्य’ सुमंगला माता जी का हुआ देवलोकगमन परम पुज्य प्रज्ञाश्रमण सारस्वताचार्य श्री देवनंदीजी महाराज जी की सुशिष्या आर्यिका मालेगांव में विराजीत सुमंगलाश्री माताजी का देवलोकगमन हो गया है।आर्यिका श्री१०५ सुमंगला श्री माताजी का अंतिम संस्कार ज्योति नगर त्यागी भवन से कौलाना शांतिवन में अंतिम संस्कार हुआ।आर्यिका सुमंगलाश्री माता जी का जन्म मालेगांव में हुआ था, मालेगांव में ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के सुअवसर पर १९९४ में आचार्य श्री देवनन्दी जी महाराज के द्वारा आर्यिका दीक्षा ली थी। आज माताजी की समाधिमरण भी मालेगांव में बहुत ही समता पूर्वक ध्यान करते हुयी, बहुत ही पुण्यशाली ओर भव्य थी वो जिनका जन्म, दीक्षा और समाधि एक ही स्थान पर हुआ। तेरापंथ महिला मंडल पूरे माह करवाएगास्वास्थ्य चिकित्सा शिबिर मुंबई: शहर के विभिन्न क्षेत्रों में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल की ओर से एक से २८ फरवरी तक लगातार स्वास्थ जांच शिबिर का आयोजन हो रहा है, इसी के अंतर्गत १४ फरवरी को गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के लिए मेगा डेंटल चेकअप ड्राइव का भी आयोजन किया जाएगा। शिबिर में मुंबईकरों की विभिन्न बीमारियों के सन्दर्भ में चिकित्सकीय परामर्श प्रदान करने के साथ-साथ उत्तम स्वास्थ के लिए जागरूकता की जा रही है। स्वास्थ्य जांच के इस महाअभियान को लोगों तक पहुंचाने के लिए मेगा मन्थ ऑफ वेलनेस के अंतर्गत २८ दिन २८ आयोजन पर कलेंडर प्रकाशित किया गया है, इसमें समाज के अन्य सामाजिक कार्यों का भी जिक्र किया गया है।कैलेंडर का विमोचन हाल ही में महाराष्ट्र सरकार की महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री विद्या ठाकूर ने किया, इसमें मुंबई से तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष जयश्री बडाला, मंत्री श्वेता सुराणा, गोरेगांव संयोजिका सरोज चंडालिया, मलाड सहसंयोजिका लीला परमार, प्रीति धाकड़ एवं राकेश धाकड़ विमोचन कार्यक्रम में सहभागी रहे। श्री मज्जिनेंद्र त्रिमुर्ति एवंचौबिसो जिन बिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा चिकलठाणा (महाराष्ट्र): महाराष्ट्र का प्रख्यात श्री १००८ संकटहार पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जैनागिरी जटवाडा में दि. २ फरवरी २०१९ से ६ फरवरी २०१९ से श्री मज्जिनेंद्र त्रिमुर्ति एवम चौबिसी जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन प्रज्ञाश्रमण, सारस्वताचार्य राष्ट्रसंत देवनंदिजी महाराज एवम ससंघ सान्निध्य में, प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्र. ऋषभकुमार जी के तत्वावधान में संपन्न हुआ।माता-पिता बनने का बहुमान सौ. कालूदेवी महेंद्र कुमारजी सोनी, सौधर्म इंद्र-इंद्राणी का सम्मान सौ. सुचिता निरज कुमार जी पाटणी, धनवर्षा कुबेर बनने का सम्मान सौ. चंदा प्रकाशचंद कासलीवाल, इशान-इंद्र-इंद्राणी का सम्मान सौ. संगिता भरतकुमार डोंगरे को प्राप्त हुआ।सौ. शकुंतलाबाई माणिकचंद जैन को धर्मध्वजारोहण का सम्मान प्राप्त हुआ, इस अवसर पर वेदी शुद्धी एवं विश्वशांति महायज्ञ का आयोजन किया गया था। खडगासन चौबिसी प्रतिमाओं का निर्माण किया गया, संघस्त मुनि एवम आर्यिका जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। -एम.सी.जैन रजत गुरूदेव के सान्निध्य मेंमेरे जीवन का अभ्युदय हर एक के जीवन में उत्थान में विकास में किसी ना किसी महापुरूष का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है संसार में जितने भी प्राणी हैं उनके पीछे कोई न कोई शक्ति अवश्य होती है वह शक्ति है गुरु की, यह शब्द इस महान भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इस भारत देश में जितने भी कर्मवीर धर्मवीर हुए हैं उन सबके पीछे गुरु की शक्ति निहित है। गुरु के बिना किसी के भी जीवन में प्रवाह नहीं मिलता, ऐसे ही एक महान गुरु के बारे में यह भारत देश विख्यात है वो है लोकमान्य सन्त शेरे राजस्थान अहिंसा दिवाकर प्रज्ञा पुरुषोत्तम वरिष्ठ प्रवर्तक गुरुदेव श्री रूप मुनि जी म. सा. ‘रजत’, ये नाम किसी पहचान की मोहताज नहीं रखता, ये नाम अपने आप में विराट है, सागर है। आप माँ मोती बाई की कुक्षि से जन्म लेकर, गुरु मोती के सान्निध्य में धर्मपथ पर बढ़ चले।अनहोनी को कोई टाल नहीं सकता, सहसा एक दिन गुरुदेव सबको छोड़ कर परभव गमन किया, एकांकी होने के बावजूद भी धैर्य समता आपमें सुदृढ थी। गुरु के अल्पकाल सान्निध्य में आपने ज्ञानार्जन किया, पर उस ज्ञान में निखार लाने के लिए एक ऐसे महान संत की छांव मिली, जिनके सहारे आपके जीवन की दिशा ही बदल गई, वो परम उपकारी गुरुदेव बनकर आये श्रमण सूर्य दिव्य विभूति भारत भूषण वरिष्ठ प्रवर्तक आराध्य भगवान मरूधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म. सा, इस महान संत ने ही आपको प्रेम वात्सल्य स्नेह की छांव के साथ-साथ जीवन विकास हेतु अनुशासन में रखते हुए आपको ज्ञान-ध्यानतप के क्षेत्र में शिखरों तक पहुँचाया। गुरु मोती के आशीष से व गुरु मिश्री के सहयोग सहकार से बाबा रूप रजत के जीवन में निरन्तर निखार आया था। गुरु मिश्री आपको कभी अकेले नहीं छोड़ते थे और आप भी इस कल्पवृक्ष की छांव को कभी नही छोड़ते थे। ज्ञान के क्षेत्र में विकास करते-करते आपने कई भाषाओं में महारथ हासिल करने लगे, आपने कई मारवाड़ी भाषा में महाकाव्य लिखे। लगभग १३ वर्ष की आयु में प्रथम बार आपके दर्शन किया। गुरु अमृत ने मेरा परिचय आपसे करवाया तो आपने तत्क्षण मेरे सारे पूर्वजों का नामोल्लेख कर दिया, मैं दंग रह गया, आप में ज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपशम था। आपके सान्निध्य काल में मैंने आपके जीवन से कई सारी शिक्षाएं ली हंै जिसका मैं निम्न उपदेशी क्रम से उल्लेख कर रहा हैं:(१) गौसेवा ये शिक्षा आपने गुरु मिश्री से प्राप्त की, इसी ओर आपने अपने कदम बढ़ाए और अब तक लगभग १ लाख से अधिक गौवंश का पालन पोषण हो रहा है।(२) शिक्षा-प्रत्येक साधु-संतों को आगम ज्ञान के साथ-साथ सर्वदर्शनों पर पकड़ रखने की आप प्रेरणा देते हैं आपका कहना है जहां से भी ज्ञान मिले ले लेना चाहिए।(३) मानव सेवा- तुम चाहे कितने भी मंदिर चले जाओ पर तुमने मानव रूपी मंदिर में सेवा के भाव नहीं जगाए तो व्यर्थ है, तुम्हारे मानव होने के रूप का।(४) सामर्थ्य- तुम्हारे भीतर भले ही हजारों शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की ताकत हो पर वो सामथ्र्य किसी के रक्षण में उपयोगी न हो तो व्यर्थ है तुम्हारा सामर्थ्य। (५) अनुशासन- मैंने अधिकतर बार देखा है कई साधु-साध्वी अनुशासन में नहीं रहते, उन्हें तत्काल अपनी नीति से मार्ग पर लाना आपका बाएं हाथ का खेल रहा।(६) निर्भीक व्यक्तित्व संघ समाज हो या छतीसी कौन की समस्या हो या उलझन, उनको साहस के साथ समाधान देना आपके निर्भीक होने का प्रमाण है।(७) ‘हिम्मत न हारो’ ये उदाहरण तो हम प्रतिदिन देखते हैं सप्ताह में ३ बार डायलिसिस, उसके उपरांत अनेक वेदना होते हुए भी जीवन के प्रति कितना सकारात्मक होना, ‘हिम्मत नहीं हारना’ ये आपके आंतरिक शक्ति का उदाहरण रहा है।(८) आपके जीवन में गुरुभक्ति कूट कूट कर भरी हुई है, प्रवचन में हर बार आप फरमाते हैं, म्हारा माथा रा सिरमौर मरूधर केसरी, ये पंक्ति मैं जब भी सुनता हूँ, कितनी भक्ति गजब।(९) साधना- आपके जीवन में साधना और उसका प्रभाव गुरु मिश्री के आपके सिर पर अंतिम हाथ आशीर्वाद स्वरूप रखने के पश्चात ही हुआ है, गुरु मिश्री के आशीष से आपने धीरे-धीरे आचार्य रघुनाथ सम्प्रदाय और श्रमण संघ को कई ऊँचाईयों तक पहुँचाया।(१०) – ‘कभी कड़क कभी नरम’ ये विरल व्यक्तित्व आपने गुरु मोती मिश्री से मिला, मोती गुरु नरम तो मिश्री गुरु कड़क ये दोनों स्वभावों के कारण आपका व्यक्तित्व विरल रहा है, आपके चित्रपट को जब भी कोई देखता है तो आंखों से भिन्न प्रकार का ओज व्याप्त होता है, हम तो केवल आपके नेत्रों में छुपी अलौकिक ओज को ग्रहण करते हैं।उपर्युक्त कुछ बातें जो मैंने आंखों देखी है अनुभव किया है।आपकी महिमा का अगर वर्णन करें तो सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है, आप साधुत्व जीवन के प्रति बड़े ही प्रतिबद्ध रहे हैं, मेरा अनंत-अनंत सौभाग्य है कि मुझे आपका सान्निध्य का लाभ मिला, आपके वटवृक्ष में रहकर आपके पदचिन्हों पर चलने का साहस किया, मैं तो ह्य्दय की अंतर शुद्ध निर्मल भावनाओं से यही प्रतिपल कामना करता हूँ कि आपका वरदहस्त मुझ पर आजीवन बना रहे। -डॉ वरूण मुनि अतीत के आंगन में… पूर्व नाम – दिलीप कुमार जैन (पप्पू)जन्म तिथि – २३ जुलाई १९७०दीक्षा तिथि/स्थल – १८ अप्रैल १९८९, राजस्थानपिताश्री – श्री अभय कुमार जी जैनमातुश्री – श्रीमती शोभा देवी जैनजाति – परवार गौत्रसहोदर – श्री संजय कुमार जैनसहोदरी – श्रीमती पिंकी, श्रीमती लालीवैराग्य उदय – पुष्पगिरि प्रणेता गुरूदेव श्री पुष्पदन्त सागरजी केदर्शन चरण एवं पादमूल स्पर्श करने मात्र से उपाधियों के पार उपाधि अंतर्मना मुनि श्री अपनी चिंतन धारा एवं सलिल वाणी प्रवाह के लिए क्रांति दस्ता के रूप में श्रद्धास्पद स्थान रखते हैं, आपका जीवन उस प्रयोगशाला की भांति है जिस प्रयोगशाला में आत्म दर्शन, आत्म विश्लेषण और आंतरिक शुद्धि के अनुरूप प्रयोग होते हैं।आपका जीवन अन्र्तोमुखी होते हुए सरस वाणी प्रवाह सहित करूणा, समता और अनेकान्त का एक जीवन दस्तावेज है, जिसे समय की पाठशाला में सतत् पढ़ा जाता रहेगा।विगत २०-३० वर्षों के साधना जगत के शिरोमणि एवं लालित्यमयी वाणी के धारक आप अपनी गुणवत्ता के कारण जैन जगत व राष्ट्रस्तर पर वह स्थान बनाया, जिस पहचान के कारण आपको विभिन्न उपाधियों से विभूषित किया गया, कई उपाधियां एवं उपधि प्रदाता से गौरवान्वित हुए हैं। भारत वर्ष के गुजरात शासन द्वारा आपको महामहिम राज्यपाल श्री ओ. पी. कोहली के कर कमलों से ‘साधना महोदधि’ की उपाधि से विभूषित किया गया। वियतनाम विश्वविद्यालय द्वारा आपको महालेखन कार्य (जीवन का सबसे लम्बा सूत्र राखी) के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। अंतर्मना ने ‘राखी’ के माध्यम से जन-जन को संदेश दिया कि रक्षा राखी की होनी चाहिए, राखी (मिट्टी) चाहे जमीन की हो या कलाई की (रक्षासूत्र) देश के हर नागरिक का कत्र्तव्य है कि हम अपनी राखी की रक्षा करें और इसके लिए वो अपना सर्वोच्च बलिदान भी दे सकता है। राखी की रक्षा का तात्पर्य देश की सुरक्षा, कलाई की राखी का तात्पर्य, भ्रूण हत्या का न होना, कन्याओं की महिलाओं की रक्षा करना। संसार का सबसे श्रेष्ठतम खाद्य पदार्थ दूध है दूध हमें जिन संशाधनों से प्राप्त होता है उसकी रक्षा होना चाहिए, आज तक जितने भी व्यक्ति बड़े हुए वे सब दूध पीकर ही बड़े हुए हैं, इसलिए गौ की रक्षा करनी चाहिए एवं जीव दया पालन करने की प्रेरणा दी जाती है। आपके नाम से राजस्थान के अजमेर संभाग केकड़ी में अंतर्मना महाद्वार, अंतर्मना लिंक रोड, अंतर्मना सर्कल किशनगढ़ अंतर्मना बस स्टेण्ड इत्यादि। जन उपयोगी कार्य देश के विभिन्न स्थानों पर आपकी प्रेरणा से कराये गये। आपका नाम इंडिया बुक, एशिया बुक रिकार्ड, गिनीज बुक रिकार्ड में दर्ज है, आपकी गूगल (इंटरनेट) पर बुक ऑफ राखी के माध्यम से जानकारी पाई जा सकती है। ब्रिटेन की संसद में सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा आपको भारत गौरव के सम्मान से नवाजा गया।‘‘जो प्राप्त है वही पर्याप्त है, यही है शांति का सूत्र’’ -अंतर्मना मुनि प्रसन्न सागर जी

दिगम्बर जैन धर्म में ‘मुनि’ पद मानव जीवन की सर्वोत्कृष्ट अवस्था 0

दिगम्बर जैन धर्म में ‘मुनि’ पद मानव जीवन की सर्वोत्कृष्ट अवस्था

जैन धर्म अपनी प्राचीनता संयम व तपष्चरण की परम पराकाष्ठा एवं दिगम्बरत्व रूप के कारण विश्व के अन्य धर्मों से स्थान विशेषता रखता है। जैनधर्म के प्राचीन ग्रन्थों में निहित साहित्य को जैनागम कहा जाता है। जैनागम साहित्य में ग्रन्थों के माध्यम से गृहस्थ, श्रावक व मुनि की जीवन चर्चा पर सूक्ष्म से सूक्ष्म बिन्दुओं पर सर्वांगीण रूप से प्रकाश प्राप्त होता है। जैन धर्म को मानने के लिए जाति की सीमा नहीं होती है मात्र आचरण का पालन करना होता है। जैन धर्म के आचरण को पालन करने वाला किसी भी जाति का हो जैन-धर्मावलम्बी के रूप में यम, नियम, संयम व आचरण करने के कारण दिया जाता है। जैन धर्म के साधु परम्परा को श्रमण कहा गया है। जैन साधु श्रमण भी कहे जाते हैं, जो कोई व्यक्ति जैनधर्म की चर्चा का पालन करना चाहे, करने के लिए वह स्वतंत्र है। गृहस्थ व्यक्ति की प्रथम अवस्था है, श्रावक उससे आगे की एवं मुनि पद साधक की श्रेष्ठ अवस्था है। मुनि को साधु परमेष्ठी भी कहा गया है, मुनि अवस्था क्या है, मुनि अवस्था की आन्तरिक स्थिति को जानने से पहले, बाह्य स्थिति को जानना आवश्यक है। मुनि दिगम्बर रहकर, पैदल बिहारी एवं समस्त परिग्रहों का त्याग करते हुए मात्र तीन उपकरण क्रमश: पिच्छिका (मोर पंख की), कमण्डल एवं ग्रन्थ को अपने पास रखते हैं। २४ घंटे में एक बार विधि मिलने पर आहार (भोजन) लेते हैं। मुनि की इन बाह्य स्थितियों को समझना जरूरी है, मुनि की दिगम्बर अवस्था इस बात का प्रमाण है कि वे यथाजात रूपी अर्थात जैसे जन्म हुआ था वह स्वभाव की मूल अवस्था है जिसमें वे जीते हैं, समस्त प्रकार के परिग्रह को त्याग कर अपने शरीर पर किसी प्रकार के वस्त्र का परिग्रह भी धारण नहीं करते। मुनि की इस शैली पर विचार करने पर ज्ञान होता है कि मात्र परिग्रह त्याग का जीवन जीकर उत्तम ब्रह्मचर्य के धारक होते हैं, अतएव धरती बिछौना और आकाश वस्त्र होते हैं, इसलिए इन्हें दिगम्बर कहा जाता है। उपकरण मोर पंख की पिच्छिका जीवों की रक्षा के लिए, कमण्डलु में जल शुद्धि के लिए एवं स्वाध्याय हेतु जैनागम साहित्य, मात्र इन तीन उपकरणों के धारक मुनिराज सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की रक्षार्थ पिच्छिका साथ में रखकर जहाँ पर बैठना है, उठना है या ग्रन्थ आदि खोलना है तो पूर्व इसके परिमार्जन हेतु इस पिच्छिका का उपयोग करते हुए जीवों की रक्षा करते हैं, इसी प्रकार प्रासुक (शुद्ध) जल कमण्डलु में रखते हुए बाह्य शुद्धि के उपयोग में लेते हैं एवं चिन्तन, मनन व गहन ज्ञान हेतु जैनानम ग्रन्थों को अपने पास रखते हैं जो स्वाध्याय हेतु उपयोगी होता है, दिगम्बर मुनिराज विधि मिलने पर ही आहार लेते हैं। प्रश्न है कि यह विधि क्या है? प्रात: देव-दर्शन के उपरान्त एक विधि (नियम) ले लेते हैं कि यदि पड़गाहन हेतु जा रहे हैं और उन्हें वह विधि मिल जाती है तो आहार हो जाता है। २४ घंटे में एक बार यह क्रम होता है और यदि विधि नहीं मिली तो वे निराहार अपने स्वाध्याय, चिन्तन, मनन, सामायिक, प्रतिक्रमण इत्यादि क्रियाओं में लग जाते हैं। दिगम्बर मुनिराज भीषण ठंड, तपती हुई धूप एवं मुसलाधार बारिश की विषम परिस्थितियाँ रहते हुए संसार के समस्त विकल्पों को त्याग कर आत्मकल्याण, आत्मानुभूति, आत्मान्वेषण के परम लक्ष्य की ओर उन्मुख जीवन शैली को धारण कर अन्तरंग में जिन व्रतों, गुणों व तपों का पालन करते हैं, वह सभ्यता के इतिहास में पठनीय, चिन्तनीय योग्य व मननीय है, उन अन्तरंग गुणों पर विचार करना अनिवार्य है जो इस प्रकार हैजैन धर्म गुणवाचक है, यही कारण है कि जैन साधु बहिरंग एवं अन्तरंगगुणों के विकास हेतु सतत् जागृत व साधनारत रहते हैं। जैन मुनियों को आचार्य, उपाध्याय, साधु परमेष्ठी भी कहा जाता है और इन्हें अपने पद के अनुसार मूलगुणों का पालन करना होता है, मुल गुणों के पालन करने के कारण महाव्रती व महा-तपस्वी कहा जाता है। आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण जिनमें बहिरंग ६ तप एवं अन्तरंग ६ तप, १२ तप का पालन करना होता है, जो इस प्रकार है- अनशन, ऊनोदर, व्रत परिसंस्थान, रस परित्याग, कायकलेश, प्रायश्चित, विनय, वैय्यावृत्ति, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग एवं ध्यान, इन्हीं ३६ मूलगुणों में पाँच पंचाचार क्रमश: दर्शनाचार, ज्ञानाचार, तपाचार, चारित्राचार एवं वीर्याचार तथा १० धर्म क्रमश: उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग आकिंचन व ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है एवं छह आवश्यक क्रमश: समता, वन्दना, स्तुति, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान एवं कार्योत्सर्ग के अतिरिक्त तीन युक्ति क्रमश: मनोगुप्ति, वचनगुप्ति एवं कायगुप्ति की साधना आचार्य परमेष्ठी के लिए आवश्यक है, इसी प्रकार उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठी १४ अंग और १४ पूर्व एवं २४ मूलगुण के धारी होते हैं और साधु परमेष्ठी पाँच महाव्रत क्रमश: अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के धारक होते है, इन्हें पॉच समितियाँ क्रमश: ईर्या, भाषा, ऐष्णा, प्रतिस्थापना एवं व्युत्सर्ग समिति का पालन करते हुए पांच इन्द्रिय निराध अर्थात, इन्द्रियों को बस में रखना अनिवार्य है। साधु के शेष गुणों में केशलोंच, नग्न रहना, स्नान नहीं करना, भूमि पर लेटना, दाँतों को नहीं धोना, खड़े होकर हाथ में आहार लेना और दिन में एक बार आहार लेना मुनिजनों की जीवन चर्या होती है। दिगम्बर जैन मुनि यम, नियम, संयम व तपस्या के प्रमाणिक प्रज्ञापुरूष होते हैं जिनका जीवन अन्तरंग साधना के निरन्त रहता है और जगत कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होते हैं। भारतीय सभ्यता के इतिहास में श्रमण संस्कृति और श्रमण सभ्यता रेखांकन योग्य वह अध्याय है जो मानव के विकास की धरोहर है। दिगम्बर जैन मुनि साधना व तप के उन प्रमाण पुरूषों में से होते है जिन्हें मात्र दर्शन कर ही जीवन के अंधकार को मिटा सकती है। – डॉ. तब्बसुम जैन परम्परा में परमेष्ठी का प्रतीक अरहंता असरीरा आईरिया तह उवज्झाया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पणो ओंकारो पंचपरमेष्ठी।। जैनागम में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं मुनि रूप पांच परमेष्ठी ही आराध्य माने गए हैं, इनके आद्य अक्षरों को परस्पर मिलाने पर ‘ओम’/‘ओं’ बन जाता है, यथा, इनमें पहले परमेष्ठी ‘अरिहंत’ या ‘अरहंत’ ‘अशरीरी’ कहलाते हैं, अत: ‘अशरीरी’ के प्रथम अक्षर ‘अ’ को ‘अरिहन्त’ के ‘अ’ से मिलाने पर अ+अ=‘आ’ ही बनता है, उसमें चतुर्थ परमेष्ठी ‘उपाध्याय’ का पहले अक्षर ‘उ’ को मिलाने पर आ+उ मिलकर ‘ओ’ हो जाता है, अंतिम पाँचवें परमेष्ठी ‘साधु’ को जैनागम में ‘मुनि’ भी कहा जाता है, अत: मुनि के प्रारम्भिक अक्षर ‘म’ को ‘ओ’ से मिलाने पर ओ+म्= ‘ओम्’ या ‘ओं’ बन जाता है, इसे ही प्राचीन लिपि में न के रूप में बनाया जाता रहा है। ‘जैन’ शब्द में ‘ज’, ‘न’ है इसमें ‘ज’ के ऊपर ‘ऐ’ सम्बन्धी दो मात्राएँ बनी होती है, इनके माध्यम से जैन परम्परागत ‘ओ’ का चिन्ह बनाया जा सकता है, इस ‘ओम्’ के प्रतीक चिन्ह को बनाने की सरल विधि चार चरणों में निम्न प्रकार हो सकती है। १. ‘जैन’ शब्द के पहले अक्षर ‘ज’ को अँग्रेजी में जे-लिखा जाता है, अत: सबसे पहले ‘जे’-को बनाए- २. तदुपरान्त ‘जैन’ शब्द में द्वितीय अक्षर ‘न’ है, अत: उसे ‘जे’-के भीतर/साथ में हिन्दी का ‘न’ बनाएँ-न ३.चूंकि ‘जैन’ शब्द ‘ज’ के ऊपर ‘ऐ’ सम्बन्धी दो मात्राएं होती हैं, अत: प्रथम मात्रा के प्रतीक स्वरूप उसके ऊपर पहले चन्द्रबिन्दु बनाएं- ४. तदुपरान्त द्वितीय मात्रा के प्रतीक स्वरूप उसके ऊपर चन्द्र बिन्दु के दाएँ बाजू में ‘रेफ’ जैसी आकृति बनाएँ- नँ इस प्रकार जैन परम्परा सम्मत परमेष्ठी प्रतीक ‘ओम्’/‘ओं’ की आकृति निर्मित हो जाती है। प्रत्येक धर्म की मौलिक विशेषताएं है जिसे अपनाने में कोई बुराई नहीं जैन धर्म सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है, जिसके अवशेष सिंधु सभ्यता में भी देखने को मिलते हैं जो सबसे प्राचीन सभ्यता है। तब्बसुम बानों आज जैन समाज में एक जाना-माना नाम है जिन्होंने ‘मोहनखेड़ा तीर्थ क्षेत्र’ के विषय पर जैनिजम में पी. एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है, आप इतिहासकार के रूप में जानी जाती हैं, इस विषय पर आज तक किसी ने शोध कार्य नहीं किया था। आपको कर्नाटक से महावीर पुरस्कार, राष्ट्रीय आदर्श नारी पुरस्कार, सर्व धर्म समन्वय पुरस्कार, श्री अंतर्राष्ट्रीय भगवान पाश्र्वनाथ पुरस्कार के साथ कई राज्य व राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आप कन्नड़ भाषी हैं आपका जन्म व शिक्षा कर्नाटक में ही सम्पन्न हुई है। जैन समाज में अपनी रूचि को दर्शाते हुए कहती हैं कि भगवंत पुराण, पद्मावती माता आदि की कहानियां मैंने पढी हैं, जिनसे मैं काफी प्रभावित हुई। पद्मावती माता भगवान पाश्र्वनाथ के यक्ष-यक्षणि थे, उनकी कहानीयां काफी रोचक ही नहीं, ‘अहिंसा परमो धरम:’की बातें बहुत अच्छी है, साथ ही ये बातें मुसलमानों के नियमों में भी काफी समानताएं नजर आती है, पिछले दिनों मेरे जीवन में काफी घटनाएं भी हुई, जब भी मैंने पद्मावती माता का नाम लिया, मेरे सारे कार्य बनते गए व मेरी रक्षा होती रही, अब इसे संयोग कहें या मेरा पूर्व जन्म का कोई संबंध हो, मेरी जैन धर्म में रूचि बढ़ती गई। जैन समाज पूर्व में क्या था, वर्तमान समय में जैन समाज किस रूप में इसे अपना रहा है, यक्ष-यक्षणियों का व उनकी सम्पूर्ण मुद्राओं का ज्ञान, पौराणिक व धार्मिक आदि पर आपने शोध कार्य व अध्ययन किया है तथा इन विषयों पर आपने कई लेख भी लिखे हैं। जैन धर्म समाज का प्रत्येक क्षेत्र में बारिकी से अध्ययन किया है। जैन समाज में पंथवाद के संदर्भ में कहती हैं कि जैन के जितने पंथ हैं उन सभी के अपने नियम व दिनचर्या है जिससे उनके विचारों में ‘एकता’ स्थापित करना मुश्किल लगता है। ‘जैन एकता’ की बहुत सारी कठिनाईयां है, जिसका निराकरण मुश्किल लगता है, यदि सभी जैन समाज एक हो जाए तो इससे अच्छी बात और हो ही नहीं सकती। मातृभाषा से ही व्यक्ति में मौलिक तत्वों का विकास होता है, व्यक्ति के सर्वांगिण विकास के लिए मातृभाषा आवश्यक है, ‘हिंदी’ भारत के प्रत्येक राज्य में बोली व अपनायी जाती है, अत: ‘हिंदी’ को राष्ट्रभाषा का सम्मान अवश्य मिलना चाहिए। तबस्सुम भानो इतिहासकार कर्नाटक निवासी भ्रमणध्वनि: ९६११३१७०७६ मुनि श्री विश्व ध्येय सागर जी महाराज ने समाधि ली रांची: पूज्य गणाचार्य १०८ श्री विराग सागर जी महाराज के शिष्य ९३ वर्षीय मुनि श्री विश्व ध्येय सागर जी महाराज ने दिगम्बर जैन मंदिर में समाधि ली, उनकी अंतिम यात्रा दिगम्बर जैन मंदिर से हरमू मुक्तिधाम तक के लिए निकली, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया, इसमें आचार्य श्री के अलावा संत व जैन समाज के काफी संख्या में लोग शामिल हुए, मालूम हो कि १८ जनवरी को मुनि श्री इटखोरी में गिर गये थे, वहां उनका इलाज भी किया गया था, किंतु उन्हें अपनी आयु पूर्ण होने का पूवार्भास हो गया था, इसलिए उन्होंने आचार्य श्री से सल्लेखना समाधि मरण व्रत ग्रहण किया, हजारीबाग में उनके स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति को देख कर उन्हें रांची में महाराज जी के पास लाया गया, उन्होंने आचार्य श्री से मुनि दीक्षा देने के लिए प्रार्थना की। मुनि दीक्षा की प्रार्थना के बाद उन्हें चारों प्रकार के आहार का त्याग कराया गया। गुरुदेव मुनि दीक्षा के संस्कारों के साथ अंतिम संबोधन देते हुए नमोकार मंत्र सुनाया, इस मंत्र को सुनते ही उन्होंने गुरु के चरण में अंतिम सांस ली और अपने जीवन को सार्थक किया। अंतिम सांस लेने के समय वहां समाज के काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे, सभी ने उनके चरणों में श्रीफल अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। मुनिश्री को कंधा देने का सौभाग्य टीकम चंद संजय कुमार छाबड़ा, छीतर मल राजेश कुमार, राकेश कुमार गंगवाल, अशोक अजमेरा, अनु अमन छावड़ा, शांति धारा का सौभाग्य महावीर प्रसाद, संजय कुमार, अजय कुमार सोगानी, अभिषेक करने का सौभाग्य नंद लाल जी छाबड़ा, मुनिश्री के कमंडल लेकर चलने का सौभाग्य राजेंद्र कुमार, सुबोध कुमार बड़जात्या परिवार को मिला। अंतिम संस्कार के सभी नियमकर्म पंडित अरविंद शास्त्री एवं मुनि महाराज ने संपन्न कराये। जानकी दास जैन (कंगारू ग्रुप संस्थापक) की पुण्य समृति पर ५१ जरूरतमंद परिवारों को राशन वितरण लुधियाना: महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसाइटी रजि. द्वारा महासाधवी उपप्रर्वतनी कोकिल कण्ठनी मीना जी महाराज ठाणा-४ के पावन सानिध्य में ५१ परिवारों को राशन वितरण सिविल लाईन्ज़ के जैन स्थानक में आयोजित किया गया। समारोह का शुभारंभ महामन्त्र नवकार के सामुहिक से उच्चारण शुरू किया गया। एशिया की नं. १ कम्पनी कंगारू ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज़ के संस्थापक स्व. श्री जानकी दास जैन जी की पुण्य समृति पर उनके परिवार अरिंहत जैन, विश्वा-नीलम जैन, अमरीश-आरती जैन, गौतम-नेहा जैन, वेदांश, गोरेश, सुमेर, आंनदिनी जैन आदि ने ५१ परिवारों को राशन वितरण का लाभ लिया। महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसाईटी की प्रधान नीलम जैन ने बताया आज जो भी कुछ समाज से हमें मिला है वो हमारे बाऊजी जी स्व. श्री जानकी दास जी जैन के पुण्य से प्राप्त हुआ है और आज हमारा परिवार उन्हीं के पुण्य को आगे बढ़ा रहा है यह हमारी समाजिक जिम्मेवारी भी है जो परिवार आज असहाय महसूस कर रहे हैं उनकी सहायाता कर हम पुण्य का उपार्जन कर रहे हैं, इस मौके पर महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसायटी के नीरा जैन, रमा जैन, नीलम जैन, सुषमा जैन, विनोद देवी जैन, मंजू जैन, रीचा जैन, आदर्श जैन, प्रवेश जैन, डोली जैन एवं भगवान महावीर सेवा संस्थान के प्रधान राकेश जैन, उप-प्रधान राजेश जैन, सहमंत्री सुनील गुप्ता, राकेश अग्रवाल, अरिदमन जैन, प्रमोद जैन, फूलचन्द जैन इत्यादि गणमान्य उपस्थित थे। मालवा की पंचतीर्थी मालवा में जैन धर्मावलम्बियों की संख्या काफी है। प्राचीन काल से मालवा में जैनों का प्रभुत्व रहा है, उसी अनुपात में इस क्षेत्र में तीर्थ स्थानों का निर्माण भी हुआ है। मालवा के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित कुछ जैन तीर्थों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। यथा:- मांडवगढ़: मालवा के ऐतिहासिक स्थानों में मांडवगढ़ का प्रमुख स्थान है। राजा जयसिंह तृतीय का मंत्री पृथ्वीधर या पेथड़ सेनापति धार्मिक स्वभाव का भी था, उसके समय में यहाँ तीन सौ मंदिर थे, उसने प्रत्येक पर सोने के कलश चढ़ाये थे। पेथड़ के पश्चात् उसका पुत्र आमंत्रण मंत्री पद पर नियुक्त हुआ। उसने संवत १३४९ में शत्रुंजय का संघ निकाला था, उसने करेड़ा में सात मंजिला भव्य मंदिर बनवाया था, उस समय लाखों जैन मतावलम्बी यहाँ निवास करते थे। किवदंती है कि यहाँ जब भी कोई नया जैन मतावलम्बी रहने आता, तो प्रत्येक घर से उसे एक स्वर्ण मुद्रा व एक ईंट दी जाती थी, जिससे उसके रहने के लिए भवन बन जाता और व लखपति हो जाता था। वर्तमान में यहां जैन मंदिर हैं, अब प्राचीनता जिनालयों में दिखाई नहीं देती है। मूलनायक भगवान श्री भगवान् श्री सुपाश्र्वनाथ की प्रतिमा श्वेतवर्णी है। धार: धार मालवा के पराक्रमी और संस्कारप्रिय राजा मुंज और प्रसिद्ध विद्वान राजा भोज की राजधानी थी, धनपाल जैसा प्रकाण्ड विद्वान भी इसी राजसभा की शोभा था। धनपाल द्वारा रचित ग्रन्थ जैन साहित्य की अमूल्य निधि हैं। भोज के समय कितने ही जैनाचार्य का यहाँ आवागमन होता रहता था, बाद में मुसलमान शासकों का अधिपत्य होने से हिन्दू और जैन मंदिर खण्डित किये गये, अनेक मंदिरों को मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया गया, जिसका उदाहरण राजा भोज द्वारा निर्मित भोजशाला है। यहां बनिपावाड़ी में एक प्राचीन जैन मंदिर है। मूलनायक भगवान आदीश्वर की प्रतिमा श्वेतवर्णी है तथा ४-५ फीट ऊँची है जिस पर से १२०३ का लेख है, इस मंदिर की अन्य प्रतिमाओं पर सं. १३६२, १३२८ और १५४७ के लेख हैं। परमार चाल में वहां संगमरवर का एक जैन मंदिर था, आज भी धार में बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी रहते हैं, धार इन्दौर से ६५ कि.मी. की दूरी पर है। श्रीलक्ष्मणी तीर्थ: मालवा और निमाड़ की सीमा पर अलीराजपुर से लगभग ६-७ कि.मी. की दूरी पर लक्ष्मणी ग्राम स्थित है, यह स्थान एक ओर जंगल में स्थित है तथा दाहोद रेलवे स्टेशन से अलीराजपुर होते हुए यहाँ पहुँचा जा सकता है, इस तीर्थ के विषय में किसी को कोई जानकारी नहीं थी किन्तु जब यहां भूगर्भ से चौदह जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई तो और खोज हुई तब पाँच से सात मंजिले सात जिनालय, एक भव्य बावन जिनालय और वर्गाकार भूमि पर एक जैन मंदिर के स्तम्भ, तोरण जैन मूर्तियाँ आदि प्राप्त हुई, इन अवशेषों से इस तीर्थ की प्राचीनता ज्ञात होती है। यहाँ सं. १०९३ का लेख भी है। मूलनायक भगवान पद्मप्रभ के आसपास नेमिनाथ और मल्लिनाथ की बत्तीस उंची मूर्तियाँ है। भगवान आदिनाथ की दो बादामी प्रस्त की प्रतिमाएं तेरह इंची है, एक प्रतिमा पर सं. १३१० का लेख है, व्याख्यान वाचस्पति आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरिश्वरजी महाराज साहेब ने इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया था। तालनपुर: दाहोद रेवले स्टेशन से लगभग एक सौ दस कि.मी. और कुक्षि से पांच कि.मी. की दूरी पर तालनपुर नामक एक प्राचीन जैन तीर्थ है, इसका प्राचीन नाम तुगियापवन या तारणापुर है। यहाँ सं. १९१६ में २५ जैन प्रतिमाएं निकली। सं. १९५० में कुक्षि जैन संघ ने एक मंदिर बनवाया था, उसी में जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुयी। प्रतिमाओं पर कोई लेख नहीं है। मूर्तिकला के आधार पर प्रतिमाएँ विक्रम की छठी-सातवीं शताब्दी की प्रतीत होती है। मूलनायक श्री गोड़ी पाश्र्वनाथ है और इस प्रतिमा पर सं. १०२२ का लेख है, दूसरा मंदिर भगवान आदिनाथ का है। मूलनायक के दाहिनी और चौथी प्रतिमा के आसन पर संवत ६१२ का लेख है, जो विचारणीय है, संभवत: प्रस्ताव में एक मिट गया हो। यह लेख सं. १६१२ का संभावित लगता है। यहां कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा पर प्रतिवर्ष मेला लगता है। ग्राम के आसपास के अवशेष इसकी प्राचीनता और समृद्धि के प्रतीक है। भोपावर तीर्थ: रतलाम से बम्बई की ओर मेघनगर रेलवे स्टेशन से लगभग ६५ कि.मी. की दूरी पर राजगढ़ नामक एक कस्बाई ग्राम है। राजगढ़ के दक्षिण में लगभग ७.५ कि.मी. की दूरी पर भोपावर जैन तीर्थ है। यहाँ भगवान शांतिनाथ का एक सुन्दर जिनालय है। मूलनायक की प्रतिमा बारह फीट ऊँची है जो भव्य एवं तेजस्वी है। हाथ के नीचे नौ देवियों की प्रतिमाएँ हैं। मूलनायक के बायीं ओर भगवान चन्द्रप्रभ आदि की प्रतिमाएँ हैं। बाहरी भाग में महाराज शीतलनाथ की प्रतिमा है और ऊपरी भाग में महाराज चंद्रप्रभ एवं महावीर स्वामी आदि की प्रतिमा है, यहां प्रति वर्ष मगसर कृष्णा दशमी को मेला लगता है। मंदिर के सभा मंडप और शिखर में कांच का काम है। श्री मोहनखेड़ा तीर्थ: प्रात:स्मरणीय विश्वपूज्य गुरूदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिश्वर जी महाराज साहेब ने युवक श्रीलूणाजी पोरवाल को प्रेरणा प्रदान कर राजगढ़ जिला धार के निकट एक तीर्थ का निर्माण प्रारम्भ करवाया गया। वि. सं. १९४० का चातुर्मास गुरुदेव का राजगढ़ में था। मंदिर का निर्माण पूर्ण होने पर गुरूदेव ने वि.सं. १९४० मृगशीर्ष शुक्ला सप्तमी को मूलनायक भगवान ऋषभदेव आदि ४१ जिनबिम्बों की अंजनशलाका की। प्रतिष्ठा के साथ ही गुरूदेव ने इस तीर्थ के विशाल रूप धारण करने की घोषणा के साथ इस तीर्थ का विकास होता रहा, यहां वि.सं. १९९१ में आचार्य श्री यतीन्द्र सूरिश्वर जी महाराज साहेब की प्रेरणा से प्रथम जीर्णोद्धार हुआ। तीर्थ का द्वितीय जीर्णोद्धार कविरत्न आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरिश्वर जी महाराज साहेब की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में हुआ, वस्तुत: आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्रसूरिश्वर जी महाराज इस तीर्थ के विस्तार के शिल्पी थे, उनके मानस में इस तीर्थ के विकास की परिपूर्ण रूपरेखा थी। द्वितीय जीर्णोद्धार के समय वि.सं. २०३४ माघ शुक्ला द्वादशी रविवार को ३७७ जिनबिम्बों की अंजनशलाका की और अगले दिन माघ शुक्ला त्रयोदशी सोमवार को तीर्थधराज मूलनायक श्री ऋषभदेवप्रभु, श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ व श्री चिंतामणि पाश्र्वनाथ आदि ५१ जिनबिम्बों की प्राण प्रतिष्ठा की व शिखरों का दण्ड, ध्वज व कलश समारोपित किये गये, साथ ही अन्य प्रतिमाएँ भी प्रतिष्ठित की गई, इसी अवसर पर आचार्य भगवंत ने गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिजी महाराज की समाधि का भी जीर्णोद्धार किया गया व दण्ड ध्वज व कलश चढ़ाये गये। यहाँ वर्तमान जिनालय भव्य रूप से बना हुआ है। मूलनायक भगवान की इकतीस इंच की सुदर्शन प्रतिमा है। मंदिर के ऊपरी भाग में भगवान शांतिनाथ भगवान का मंदिर है, मुख्य मंदिर के बायी ओर भगवान आदिनाथ का त्रिशिखरी मंदिर है, यहाँ गुरूदेव आचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरि जी महाराज का समाधिमंदिर है जो अब स्वर्णजड़ित बन चुका है, यह समाधि मंदिर अति भव्य है। मूल रूप से उसकी प्रतिष्ठा आचार्य विजय भूपेन्द्र सूरि जी महाराज ने सं. १९८१ जेष्ठ शुक्ला द्वितीया को की गयी थी, पुन: प्रतिष्ठा आचार्य विजय यतीन्द्र सूरि जी महाराज द्वारा हुई। गुरूदेव का समाधि मंदिर दर्शनार्थियों को आकर्षण का केन्द्र हुआ है, आचार्य विजय विद्याचन्द्र सूरि जी महाराज का समाधि मंदिर भी यहीं है। वर्तमान में श्री मोहनखेड़ा तीर्थ देश के विकसित तीर्थों में से एक है, यहाँ तीर्थ यात्रियों के लिए आवास, भोजन, अवागमन, दूरसंचार आदि की सुविधाएं उपलब्ध हैं, इतना सब होते हुए भी निर्माण कार्य चल ही रहे हैं, यहां हाईस्कूल तक अध्यापन की सुविधाएँ तथा शोध संस्थान भी है। प्राणिमात्र की सेवा को ध्यान में रखते हुए यहां क्षेत्र चिकित्सालय एवं गोशाला भी है। राज्यपाल को पत्र लिख आरोग्य दानं योजना से करवाया गया अवगत उज्जैन : आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष विनायक अशोक लुनिया ने देश के १९ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर मीडिया संगठन एवं जैन मीडिया सोशल वेलफेयर सोसायटी के बैनर तले संचालित होने जा रहे स्वास्थ योजना ‘आरोग्य दानं’ से अवगत करवाया, श्री लुनिया ने पत्र में बताया कि देश भर में कितनी बड़ी तादात में दवाओं की बर्बादी हो रही है तो वहीं देश बड़ी तादात में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग दवाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। सरकार भी कई स्वास्थवर्धक योजनाएं चलाती है, किंतु उसमें सरकार की एक मोटी रकम भी खर्च होती है, लेकिन ‘आरोग्य दानं’ आम जनता के पास से बची हुई दवाओं को प्राप्त करके, दवा बाजार एवं मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से भी दवाओं का सहयोग लेकर जरूरतमंद मरीजों को दवा निःशुल्क उपलब्ध करवाया जाएगा, श्री लुनिया ने कहा कि उक्त योजना से सरकार पर भी स्वास्थ्य संबंधित दवाओं में दिए जाने वाले अनुदान के बोझ में कमी आएगी। योजना प्रभारी राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव चौरसिया ने बताया कि उक्त योजना संस्थापक अध्यक्ष विनायक अशोक लुनिया जी के द्वारा संस्थापक स्व. श्री अशोक जी लुनिया जी को श्रद्धांजलि स्वरूप होगा। उक्त योजना का कुशल नेतृत्व संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सचिन कासलीवाल जी करेंगे, वहीं योजना को सम्पूर्ण देश में पहुंचाने एवं कुशल संचालन की जिम्मेदारी देश भर से संगठन का प्रतिनिधित्व करने वाले ४१ पदाधिकारियों की रहेगी, जो कि अपने क्षेत्र में योजना संबंधित समिति का गठन कर योजना का संचालन करेंगे। क्या है आरोग्य दानं, कैसे करेंगे कार्य – आरोग्य दानं योजना भारत में प्रतिदिन अनुपयोगी दवाएं एक्सपायर होने के कारण बर्बाद हो जाती है जिसका देश भर में न्युनतम अनुमानित मूल्य २ करोड़ रुपये प्रतिदिन के करीब आंका गया है, वही देश भर में केंद्र व राज्य सरकारों के माध्यम से विभिन्न योजनाओं में निःशुल्क दवा व सहायता राशि से कम मूल्यों पर दवा उपलब्ध करवाने में सरकार करोड़ों रूपये प्रतिदिन का अनुदान देती है। आरोग्य दानं योजना उन अनुपयोग दवाओं को अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से एकत्रित कर स्वास्थ विभाग / चिकित्सज्ञों के सहयोग से शिविर व सेंटरों के माध्यम से जरूरतमंद गरीब मरीजों को निःशुल्क रूप से दवाएं उपलब्ध करवाएगी, जिससे जरूरतमंद को जहां दवायें प्राप्त हो जाएगी, वही उपयोग में ना आ पाने के कारण घरों में पड़ी-पड़ी दवायें एक्सपायर हो जाने से देश मे करोड़ो रुपयों की बर्बादी होने से बचेगी जिसके फल स्वरूप सरकारों को अनुदान के साथ सस्ती या निःशुल्क दवाएं उपलब्ध करवाए जाने वाले योजना में आर्थिक बचत होगी जो कि देश हित में अन्य कार्यों में लगायी जा सकेगी। क्या चाहिए सहयोग– स्थानीय स्वास्थ विभाग हमें प्रदेश के प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य विभाग से जिले के समस्त तहसील में एक चिकित्सज्ञ की सुविधा की जरूरत होगी जो कि मरीजों को जरूरत की दवायें हमारे स्टॉक के अनुसार सबस्टीटयूट दे सके, जिस पर हमारे द्वारा स्वास्थ्य सेवा सहयोगी दवा का निःशुल्क वितरण कर सके। स्थानीय जिला प्रशासन– स्थानीय जिला प्रशासन का सहयोग, स्थानीय जिला प्रशासन का सहयोग इस योजना में बेहद महत्वपूर्ण है, हमें जिला प्रशासन से क्षेत्र की जनता को इस योजना में जुड़ने के लिए प्रोहत्साहित करने में सहयोग की आवश्यकता है, जिला प्रशासन के द्वारा स्वास्थ केंद्रों में आरोग्य दानं योजना के लिए एक सहयोग डेस्क की भी जरूरत रहेगी। यातायात में सहयोग– योजना के संचालन एवं प्रचार के लिए सम्पूर्ण प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग एवं कार्यकर्ता व प्रचारक समिति द्वारा यातायात के दौरान टोल नाकों पर संगठन के कार्यकर्ताओं को टोल छूट हेतु प्रशासन के द्वारा मान्यता पत्र जारी करने में सहयोग। स्थानीय पुलिस प्रसाशन से सहयोग – दानं योजना में संगठन के माध्यम से सेवा कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं का थाना क्षेत्र स्तर पर संगठन के द्वारा परिचय पत्र को अधिकृत कर कार्य में सहयोग प्रदान करने की अपेक्षा। इन राज्यों में होगा योजनाओं का संचालन – मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, कर्णाटक, महाराष्ट्र, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, चण्डीगढ़, दिल्ली एवं पुडुच्चेरी में योजनाओं का संचालन संगठन के कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारीगण द्वारा प्रसाशन के सहयोग से नियमानुसार किया जायेगा। पूर्ण योजना होगी ऑनलाईन मोनिटराईज – सम्पूर्ण दान में प्राप्त दवाओं का विवरण एवं दान दाताओं का नाम पता मोबाईल न. वेबसाईट पर अंकित किया जायेगा, जिससे यह पता चल सकेगा कि कितने मूल्य की दवायें प्राप्त हुयी है, वहीं योजना का लाभ लेने वाले मरीजों का भी विवरण नाम, पता, मोबाईल क्र. व डॉक्टर का पर्चा ऑनलाईन होगा अपडेट। प्रधानसेवक का महान कार्य..! भारत के प्रधान सेवक नरेंद्र मोदीजी ने भारतीय एकता के परम समर्थक सरदार वल्लभ भाई पटेल का विश्व का सबसे ऊँचा ‘‘स्टेच्यू’’ बनाकर एक महान आदर्श उपस्थित किया है जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहयोगी थे, आपसी मतभेद थे किंतू मनभेद नहीं था, इसलिए वे आदरभाव रखते थे। मेरा काँग्रेस नेताओं से अनुरोध है कि प्रधान सेवक के इस महान कार्य की प्रशंसा करे। – अ‍ेम. सी. जैन, चिकलठाणा कृष्ण ने कर्म, राम ने मर्यादा और महावीर ने मुक्ति सिखाई परमपूज्य आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि मनुष्य के साथ ४ तरह की परिस्थिति घटती है, परतंत्र में जन्म होना, परतंत्रता में ही मरण होना, परतंत्र में जन्म होना, स्वतंत्र होकर मरना, स्वतंत्रता में जन्में और परतंत्र होकर मरना और स्वतंत्रता में जन्म लेना और पूर्ण स्वतंत्र होकर जाना। आज नवम नारायण श्रीकृष्ण का जन्म दिवस है, जिनका सबसे अधिक प्रतिष्ठित नाम है। देखा जाए तो देश में सर्वाधिक प्रतिष्ठा श्रीराम, कृष्ण और महावीर ने पाई है, कृष्ण ने अपने जन्म से ही जैसे उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया था, उनका जन्म तो कारागृह में हुआ, तो इससे यह सीख मिलती है कि यह जरूरी नहीं कि मरण भी कारागृह में ही हो। जन्म कहीं भी हो लेकिन अपने पुरुषार्थ से परतंत्रता में भी पूज्यता प्राप्त कर परमहंस बन सकते हैं। कृष्ण उनके माता-पिता के ७वें पुत्र थे, उनके पहले ६ पुत्रों को मार दिया गया था, वे कहते थे जब-जब विपरीत परिस्थिति आती है तब-तब वह जन्म लेते हैं, लेकिन आज सृष्टि पर इतना आतंक होने के बावजूद भी वह जन्म नहीं ले पाते, क्योंकि अपने देश का सिद्धान्त है हम दो हमारे दो, अत: या तो ब्रह्मचर्य का पालन करें या तो गर्भ में आये बालक का जन्म होने दें, गर्भपात जैसा महापाप न करें, सब जीव का अपना-अपना भाग्य है। क्या पता कौन श्रीकृष्ण, राम, महावीर या गांधी बन जाए, आगे उनके चरित्र पर प्रकाश डालते हुए आचार्यश्री कहते हैं कि वह बचपन से शरारती, उद्यमी थे, जो यह सीस देता है कि शरारती बच्चा ही महारथी बनता है, हमेशा बच्चों की चंचलता का सदुपयोग करें, लोगों के सामने उसकी निंदा न करें, उनकी शक्ति व सामथ्र्य को समझें। बच्चे नादान होते हैं हजार संकट हों लेकिन जब बच्चों को देखेंगे तो सब भूल जाते हैं, वे ही मनोरंजन का साधन बन जाते हैं डरना और किसी को मारना मत सिखाओ, उनके कोमल मन पर तुरंत छाप पड़ती है और कहते हैं स्वदेशी चीजों का अपन भरपूर उपयोग करें, कृष्ण ने कर्म सिखाया, राम ने मर्यादा और महावीर ने मुक्ति सिखाई, विकास के लिए तीनों जरूरी है। बच्चों को स्वतंत्रता व सही संस्कार से प्रोत्साहन हो तो माता-पिता से भी आगे बढ़ सकते हैं। दुर्योधन और कंस जैसे लोग स्वतंत्रता में जन्में और अपने कर्म से परतंत्र होकर मरे। महावीर स्वतंत्र आए और पूर्ण स्वतंत्र होकर चले गए, अपना जन्म भले ही परतंत्रता में हुआ पर स्वतंत्र परिवार व धर्मशासन में अपनी आत्मा को निर्मल करने का पुरुषार्थ करिए, श्रीकृष्ण के जीवन से तत्व की बातें लेकर जीवन मंगलमय बनायें, यही शुभाशीष… आचार्यश्री सुनील सागरजी

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर समुदाय 0

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर समुदाय

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर समुदाय के लाखों परिवारों की मनोभावना के अनुकूल की सम्मेद शिखर जी के सम्बन्ध में चल रहे विवाद की समाप्ति के संदर्भ में करबद्ध विनम्र अनुरोध प्रिय श्रावकगण अभी सर्वोच्च न्यायालय में सम्मेद शिखर जी के संदर्भ में चल रहे मुकदमे की सुनवाई होने को है और श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों ही पक्षों के लोग उनके द्वारा नियुक्त देश के जाने-माने विख्यात अधिवक्तागण लाखों रूपयों की प्रतिदिन आमदनी लेने में आनन्द का अनुभव कर रहे है। दान से प्राप्त राशि का ऐसा दुरूपयोग होते रहने से समग्र देश के अधिकांश यानि ९९% से अधिक जैन श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों समुदायों के लोग दुखित है। भगवान महावीर के उपासक जो अपरिगृह के पुजारी बताये जाते हैं उनके द्वारा जैन धर्म के सिद्धान्तों की धज्जियां उड़ाते हुए चल रहे मुकदमे को आपसी समझोते से निवारण नहीं करा कर दान के रूप में प्राप्त करोड़ों रूपये की राशि को रवाना करने में जो लोग प्रत्यक्ष/ परोक्ष रूप से सहभागी हैं उन्हें भगवान महावीर के आदर्श कभी माफ नहीं करने देगी, धारणा मेरी ही नहीं बल्कि हजारों-हजार श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परिवार की है। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका निदान सम्भव नहीं और कोर्ट के निर्णय के पश्चात् जो गांठ बंधेगी वह कभी नहीं टूट पायेगी, इसके लिए दोनों ही समुदाय के लोग जिम्मेदार होंगे। परम आदरणीय एक न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय महोदय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए दुखित मन से यह टिप्पणी करते हुए ऐसे लोगों की मानसिकता में परिवर्तन हेतु कहा कि भगवान महावीर के उपासक जिन्होंने समस्त विश्व को अपरिगृह, अहिंसा, करूणा एवं मैत्री का पाठ पढाकर उस सिद्धान्त को मानने वाले दोनों ही पक्षों के लोग झगड़ालुओं की तरह झगड़ा कर रहे हैं। एक श्रावक के नाते आप लोग जिन्हें देश के जैन समुदाय के लोग अग्रणी व्यक्ति मान रहे हैं उनसे विनम्र अनुरोध है कि जैन धर्म की मर्यादा के हित में और जैन समाज की एकता के हित में कोर्ट को संयुक्त आवेदन देकर न्यायालय को आपसी समझोते की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए दोनों ही पक्ष मुकदमा वापस ले और न्यायालय के बाहर दोनों ही पक्षों के चार-चार लोग तथा नौवें व्यक्ति का चयन दोनों की सहमति से कर वर्ष २००७-२००८ के समझोते में आपसी सहमति बनाकर और आवश्यकतानुसार दोनों की सहमति प्राप्त कर, जैन संस्कारों के अनुरूप इस उलझन भरी समस्या का निदान करें, ऐसा हो जाने पर पूरे देश के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दीप जलाकर आप महानुभावों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे क्योंकि इस ऐतिहासिक फैसले के कर्णधार आप ही लोग होंगे। आशा है ऐसे ऐतिहासिक फैसले के लिए आप लोग आशानुरूप मानसिकता बनाकर जैन इतिहास में एक स्वर्णिम कार्य कर जैन मर्यादा को सुरक्षित रखेंगे। परम आदर सहित। – एम.पी. अजमेरा वर्तमान की सर्वोच्च आवश्यकता जैन धर्म गुरूओं एवं समाज के कर्णधारों से एक मार्मिक अपील विभिन्न आयोजनों पर भारी खर्च एक चिन्तनीय स्थिति (क) हमारे पूजनीय आचार्य एवं मुनिगण तथा राष्ट्रीय स्तर के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर समाज में अग्रणी महानुभावों से आमजनों की भावनाओं का यह प्रेषण करते हुए विनम्र निवेदन है कि इन बिन्दुओं पर गंभीरता पूर्वक विचारोपरान्त निर्णय लेकर ऐतिहासिक उपलब्धियों से समाज का गौरव बढ़ावें। १. विद्यालयों की स्थापना: युवा पीढ़ी में जैन संस्कारों की शून्यता प्रबल रूप में जो दिख रही है उसमें सुधार के लिए अपने सम्पूर्ण भारत के सभी प्रमुख प्रदेशों में कम से कम एक जैन संस्कारों से परिपूर्ण विश्व स्तरीय शिक्षा का स्तर लिए आवासीय व्यवस्था के साथ शिक्षालयों की स्थापना वर्तमान की सर्वापरि आवश्यकता है ताकि हम अपनी युवाओं में तथा आने वाले पीढी में जैन संस्कारों की उपलब्धता प्राप्त कराकर एक सुन्दरतम वातावरण की स्थापना में योगदान करें। अगर विश्व विख्यात तीर्थ की सदा-सदा के लिए सुरक्षा करनी है तो वहां पर संस्कार युक्त राष्ट्र स्तरीय, आवासीय विद्यालय की स्थापना करना आवश्यक है, ताकि इस विद्यालय के माध्यम से मधुबन पंचायत में बसे बच्चों को तथा अन्य बच्चों को संस्कार युक्त भगवान महावीर के आर्दशों के अनुरूप उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान कर सम्पूर्ण क्षेत्र में अपनी ऐसी उपस्थिति दर्ज करे, ताकि वहां के सारे परिवार हमारे अनुसार चलें। २. २४ तीर्थंकरों के नाम आदर्श ग्रामों का सम्यक चयन: जैन-धर्म में २४ तीर्थंकर हुए है जिनके प्रत्येक के नाम से एक-एक ग्राम का चयन कर उसे गोद लेकर आर्दश ग्राम बनाने की आवश्यकता है, ताकि हम राष्ट्र की मुख्यधारा में अपने दायित्वों के निर्वाहन करने के साथ-साथ उक्त ग्राम में अहिंसा युक्त वातावरण बनाते हुए निरामिष एवं नशामुक्त ग्राम बनावें तथा उक्त ग्राम के रहने वाले सारे लोग को सरकार से मिलने वाली सभी सहायता का पूर्ण लाभ ग्रामजनों को दिलावें एवं ऐसा वातावरण तैयार करावें जहां भगवान महावीर के आदर्शों के अनुरूप ग्राम निर्माण में सहयोग कर एक आदर्श उपस्थित करें। ३. सभी जैन धर्मावलम्बियों का एक संगठन: वर्तमान में न केवल श्वेताम्बर-दिगम्बर बल्कि इनमें भी अनेक आन्तरिक संगठनों की प्रबलता के प्रतिफल आज सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में हमारी कोई पहचान नहीं है, अभी अजैन लोग अपने सभी समाज को विखन्डित समाज की संज्ञा देते हैं। वर्तमान की सर्वोच्च आवश्यकता है कि हम सब अपने भेदभाव भुलाकर एक सूत्र में बंधकर प्रगति पथ के पथिक बने और पूरे देश के जैन धर्मावलम्बियों को एक नई दिशा दें ताकि हमारी पहचान सर्वत्र अन्य लोग महसूस कर सकें। ४. प्रशासनिक सेवाओं में हमारे अति विशिष्ट प्रतिभावान जैन छात्र-छात्राओं का प्रवेश: विशिष्ठ प्रतिभावानों को सिविल सेवा में जाने के प्रयास करना हमारी जैन समाज की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि हमारे प्रतिभावान छात्र/छात्राएँ सिविल सेवा यथा IAS, IPS आदि में जाकर वर्तमान परिपेक्ष में आहत आमजनों को राहत मिल सके। समाज के सभी पुत्र गोद लेकर उन्हें प्रशासनिक सेवाओं के शीर्ष पर पहुँचाने में सहयोग करें तो नवीन जागरण प्रज्वलित होगा एवं ऐसे लक्ष्मी पुत्रों की आर्थिक सम्पन्नता का लाभ समाज को मिलेगा। हमारे ये प्रतिभावान अधिकारी जैन समाज एवं जैन धर्म की पताका सम्पूर्ण देश में आदरपूर्वक लहरायेंगे एवं मानवता की रक्षा कर पूरे देश को एक नई दिशा प्रदान करेंगे। ५. राष्ट्रस्तरीय शिष्ट मंडल का गठन कर हमारे पूजनीय आचार्यों मुनियों एवं माताजी आदि से मिलकर समाज एवं धर्म हित के वर्तमान परिपेक्ष में उनके प्रवचनों का लाभ मिले सेवा अनुरोध किया जाये:- राष्ट्रस्तरीय जैन समाज के शीर्ष महानुभावों से राय लेकर उनका एक शिष्टमंडल बनाकर समय निर्धारित कर आचार्यों एवं मुनी महाराजों से मिलकर उसने निवेदन करें कि वे अपने प्रवचनों में वर्तमान की आवश्यकता के अनुरूप और भगवान महावीर के आर्दशों के हितार्थ जैन समाज में फैले दिखावे पर प्रतिबंध करावें, ‘जैन एकता’ सुनिश्चित हो और विभिन्न आदर्श कार्यक्रमों को देने-दिलाने में उनकी भूमिका का लाभ जैन समाज को मिले और प्रतिवर्ष हो रहे करोड़ों रूपयों की बर्बादी पर अंकुंश लगाकर जनहित की व्यापक योजनाओं का संचालन जैन धर्म तथा जैन समाजों के हित में हो, इन धर्म गुरूओं के आशीर्वाद से उनके बताये मार्ग पर चलने में समस्त जैन समाज के लोग अपनी अग्रणी भूमिका निभाने में आगे आयेंगे एवं यह काल स्वर्णिम काल होगा, ऐसी भावना है। पूर्ववत मन्दिर निर्माण या जीर्णोद्धार अवश्य होता रहे जहां अति आवश्यक हो पर साथ-साथ इन आदर्श कार्यक्रमों पर भी उनका आशीर्वाद मिले। निवेदन मात्र इतना ही है कि हमारे पूजनीय गुरूजन अपने प्रवचनों के माध्यम से इस वर्ष को और कम से कम आने वाले तीन बरसों में उपर्युक्त ४ मुद्दों को कार्य रूप में परिवर्तित करने हेतु दिशा निर्देश दें इससे समाज एवं जैन धर्म की प्रतिभा चमत्कृत होगी जो वर्तमान की सर्वोच्च आवश्यकता आमजन महसूस कर रहे है, अनावश्यक खर्च पर कड़ी पाबन्दी जैन समाज और जैन धर्म के व्यापक हित में होगा। – (एम.पी. अजमेरा) L.A.S. (Rtd.) चीफ कोर्डिनेटर-तीर्थराज श्री शिखरजी जैन समन्वय समिति तथा संस्थापक अध्यक्ष प्रतिभा उत्थान परिषद एवं शिखर संस्कार निदेशक श्री सेवायतन ट्रस्ट मधुबन स्वागत है ‘जैन एकता’ के सिपाहियों का आचार्य श्री के.सी. महाराज के सानिध्य में नाहूर मुलुंड में पाश्र्वनाथ भगवान प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रसिद्ध उद्योगपति समाजसेवक चम्पालाल वर्धन को ‘भामाशाह रत्न’ से सम्मानित किया गया, समारोह में पृथ्वीराज कोठारी, प्रदीप राठोड़, सुभाष रूणवाल, सुखराज नाहर व विधायक राज के.पुरोहित पत्रकार प्रशांत जवेरी के साथ कई भक्तजनों का समावेश रहा। हजारों श्रद्धालु के सानिध्य में जालना नगरी में गुरू गणेशलालजी म.सा. का पुण्यतिथि समारोह संपन्न अनेक साधु-संत, राजकीय, सामाजिक एवं अन्य महानुभावों की उपस्थिति जालना दि. ४ फरवरी २०१९: जालना नगरी की पावन तपोभुमी में जैन समाज के आराध्य दैवत पु. गुरूदेव १००८ श्री गणेशलालजी म.सा. की ५७ वीं पुण्यतिथि समारोह में अनेक जैन साधु-संत, राजकीय, सामाजिक क्षेत्र के अनेक मान्यवर एवं अनेक महानुभाव, भारत भर से पधारे हजारों गुरू गणेश भक्तों के सानिध्य में बड़े ही धुमधाम व उत्साहपुर्वक मनाया गया। ता. २ ते ४ फरवरी तक अनेक गुरूभक्तों का इस पुण्य भुमी पर तांता लगा रहा, तीन दिवशीय कार्यक्रम में धार्मिक रॅली, मोटर सायकल रॅली, गुरू गणेश भक्ती संध्या, तपस्या, त्याग, आराधना, आयंबील दिवस, तेला तप आराधना आदि अनेक धार्मिक कार्यक्रमों भक्तों ने लाभ लिया। देश भर के करीब-करीब ३० ते ३५ हजार गुरू गणेश भक्त इस समारोह में शामिल रहे, इसमें लगभग अनेक नगरों से ४ ते ५ हजार भक्त पैदल यात्रा कर इस पुण्यभुमी पर पधारे थे, इन सभी गुरू भक्तों के आवास, भोजन व्यवस्था जालना में स्थित कई मंगल कार्यालय, स्कुल, फ्लॅट, रो हाऊस, लॉन्स आदि जगह पर सुनियोजीत रूप में व्यवस्था की गई थी। समारोह सफल बनाने में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, जालना के संघपती स्वरूपचंद रूणवाल, अध्यक्ष डॉ. गौतमचंद रूणवाल, उपाध्यक्ष नरेन्द्रकुमार लुणिया, महामंत्री स्वरूपचंद ललवाणी, सहमंत्री भरत गादिया, कोषाध्यक्ष विजयराज सुराणा, संजयकुमार मुथा, सुदेशकुमार सकलेचा, डॉ. धरमचंद गादिया, कचरूलाल कूंकूलोळ, डॉ. कांतीलाल मांडोत, सुरजमल मुथा, मार्गदर्शन मंडल के सभी सम्माननिय सदस्य, समाज के गुरू गणेश भक्त युवाओं ने अथक परिश्रम किया। श्रीमती सोनाबाई श्राविकाश्रम बात उस समय की है जब सम्पूर्ण भारत वर्ष स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ रहा था, उस समय भी केवल स्वतंत्रता प्राप्त करना ही चुनौती नहीं थी अपितु और भी अनेकानेक समस्याओं से, जिनसे भारत घिरा हुआ था, जिनमें प्रमुख रूप से स्वाधीनता, शिक्षा, बुनियादी सुविधायें, महिला सुरक्षा, विधवा उत्पीड़न पर रोक आदि अनेकानेक समस्यायें मौजूद थी, ऐसे समय में व्यक्ति हो या समाज इन समस्याओं में से किसी भी एक समस्या को केन्द्रित करके अपने-अपने स्तर से दूर करने के प्रयास में लगे हुए थे। १२-१५ वर्ष की आयु में विवाहित ऐसी महिलायें जो कम समय में ही पति वियोग में विधवा हो जाती थी, समाज के दबाव के कारण पुन: विवाह करने का साहस नहीं कर सकीं, जिन्हें समाज में अपशकुन के रूप में तिरस्कृत किया जाता था, ऐसी समस्त विधवा महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने वाली करुणामयी माँ का नाम था श्रीमती सोनाबाई जैन, पत्नी रायबहादुर श्रीमंत सेठ मोहनलाल जैन का संक्षिप्त परिचय समस्त जैन समाज की एकमात्र पत्रिका ‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों के लिए प्रस्तुत: श्रीमती सोनाबाई ने एक माँ के ह्य्दय से विचार करते हुए ऐसी समस्त विधवा महिलाओं हेतु एक श्राविकाश्रम के निर्माण का विकल्प पाला और उस विकल्प को पूर्ण करती हुई उन्होंने अपने परिवार से प्राप्त आर्थिक सहयोग से सन् १९२४, वीर निर्वाण संवत् २४५० को मांगलिक अक्षय तृतीया के शुभ दिन एक श्राविकाश्रम के प्रारंभ की मंगल उद्घोषणा की, इस श्राविकाश्रम की घोषणा के बाद से ही इसमें अनवरत् विधवा बहिनों के आवास, भोजन, धार्मिक अध्ययन आदि की नि:शुल्क व्यवस्था श्रीमंत परिवार के द्वारा की जाने लगी। धीरे-धीरे समय व्यतीत होता रहा और सन् १९६०-१९६५ के लगभग वह समय आ गया जब विधवाओं की स्थिति समाज में सम्माननीय हो गई और श्राविकाश्रम में विधवाओं का आना कम हो गया, परन्तु यह कारवाँ रुका नहीं, वो महिलाएं जो आर्थिक रूप से कमजोर थीं या जिनके पालक उनका भरण-पोषण करने में असमर्थ थे। विधवाओं और निर्धन बलिकाओं का यह क्रम अद्यतन १९२४-१९२५ से १९७८-१९७९ तक चलता रहा। समय परिवर्तन के साथ सामाजिक स्थिति और सुदृढ़ हुई, साथ ही लोगों की विचारधारा में भी परिवर्तन आया और धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ लौकिक शिक्षा की आवश्यकता महसूस की गई, जिसके उपचार हेतु संस्था द्वारा प्रयास किये गए, यहाँ निवासरत् समस्त बालिकाओं को लौकिक शिक्षा हेतु एस. पी. जैन गुरुकुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्ययन के लिए भेजा जाने लगा। आज के वर्तमान समय में भी यह श्राविकाश्रम अपने उद्देश्य को पूरा करने में दृढ़ संकल्पित है, जिसका परिणाम यह है कि आज भौतिकता के युग में भी लगभग ५० बालिकायें इस श्राविकाश्रम में रहकर लौकिक एवं परलौकिक शिक्षा का अध्ययन कर रही हैं, जिसकी सम्पूर्ण व्यवस्था आज भी श्रीमंत परिवार के द्वारा ही की जा रही है। एक बात ध्यान देने योग्य है कि इस श्राविकाश्रम के संचालन में कोई रुकावट न आये इस हेतु श्रीमंत परिवार के द्वारा ही एक खेती योग्य उपजाऊ भूमि का विशाल भाग इस श्राविकाश्रम हेतु दान किया गया है ताकि इसके संचालन में कभी किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो सके, बढती हुई बालिकाओं की संख्या को देखकर सन् १९९८, वीर निर्वाण संवत् २५२४, विक्रम संवत् २०५५ को एक नवीन भवन का निर्माण कराया गया और जिसका उद्घाटन तात्कालिक अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् की प्रदेश अध्यक्षा श्रीमती डॉ. विमला जैन एवं ओजस्वनी पत्रिका की संपादक भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती सुधा मलैया के कर कमलों से हुआ। वर्तमान समय श्राविकाश्रम के लिए गौरवान्वित करने वाला है क्योंकि आज यहाँ की बालिकायें पढ़-लिख कर परिवारों तक संकुचित नहीं हैं अपितु कई छात्रायें डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउण्टेंट, वकालत जैसे क्षेत्रों से जुड़ी हैं या उनकी तैयारी में हैं, यहाँ केवल लौकिक शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता अपितु अपने जीवन को जैनागम के अनुसार कैसे मोक्षमार्ग में लगाया जाये इसका भी पाठ पढ़ाया जाता है, जिसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ अध्ययनरत् कुछ बालिकायें अपने जन्म-मरण के अभाव हेतु आर्यिका व्रत को भी धारण कर चुकी हैं और आत्मा आराधना में लीन हैं। आज भी इस श्राविकाश्रम में उन्हीं छात्राओं को प्रमुखता दी जाती है जो या तो निर्धन हैं, जिनके माता-पिता (दोनों की या किसी एक की भी) की अनुपस्थिति है, किसी संबंधी के आश्रित हैं या फिर जिनके यहाँ विद्यालय के अभाव में आगे शिक्षा की कमी है, यदि किसी छात्रा की स्थिति आर्थिक रुप से बहुत कमजोर है तो उनके विवाह आदि का प्रबंध भी श्री सोनाबाई दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम के द्वारा कराया जाता है। श्री सोनाबाई दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम नित नई ऊँचाइयों को स्पर्श करते हुए निरंतर प्रगति पर है, जिस उद्देश्य से श्राविकाश्रम की स्थापना की गई थी उसी उद्देश्य से आज भी कार्यरत् है। -प्रयंक जैन श्री दिगम्बर जैन लाल मंदिर महाराज और पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी के मंगल आशीर्वाद से गुरूकुल छात्रावास की स्थापना हुई तो छात्रों के लिए जिनशासन की दिनचर्या से रूबरू कराने के लिए जिनमंदिर एवं जिनबिम्ब की आवश्यकता महसूस की गई, यदि जिनप्रतिमा ही न हो तो छात्रों को जिनेन्द्र अभिषेक, पूजन, प्रक्षाल आदि कैसे सिखाया जाये, इसी विकल्प की पूर्ति सन् १९५३ में एक चैत्यालय की स्थापना की गई और देवाधिदेव १००८ भगवान पाश्र्वनाथ के भाववाही जिनबिम्ब को स्थापित किया गया। कुछ समय पश्चात् सम्पूर्ण सकल दिगम्बर जैन समाज के सहयोग से संस्था की अदभुत छटा से बिखेरने हेतु सन् १९७५ में ३५ फुट ऊंचे एक गगनचुम्बी मानस्तम्भ का निर्माण कराया गया, जिसकी वेदी प्रतिष्ठा आध्यात्मिक सत्पुरूष पूज्य गुरूदेव श्री कानजी स्वामी की मंगलकारी उपस्थिति में पंडित जगनमोहनलाल जी, कटनी वालों के निर्देशन में सम्पन्न हुआ, इस महोत्सव को ऐतिहासिक बनाने के लिए आर्थिक सहयोग अजमेर के कुबेर भागचंद जी सोनी का प्राप्त हुआ, तब से लेकर आज तक इसकी धवल छटा चतुर्दिक बिखरी रहती है साथ ही प्रत्येक आगन्तुक को गुरूकुल के धार्मिक वातावरण से परिचय कराता है। जैसे- जैसे समय व्यतीत हुआ वैसे- वैसे छात्रों की बढ़ती संख्या, दर्शनार्थियों की बढ़ती संख्या एवं चैत्यालय जी के जीर्णशीर्ण होने के कारण श्रीमंत सेठ धर्मेन्द्र कुमार जी की प्रेरणा से एवं श्री सिंघई आलोकप्रकाश जी के निर्देशन में चैत्यालय के स्थान पर नवीन शिखरयुक्त द्विमंजिल दिगम्बर जैन मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और मंदिर निर्माण पूर्ण होने पर १६ फरवरी २००२ को अध्यात्म सरोवर के राजहंस, संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की परम शिष्या १०५ आर्यिका पूर्णमति माता जी के सानिध्य में सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ वेदी प्रतिष्ठापूर्वक श्री जी को नवीन जिनमंदिर में स्थापित किया गया, इस मंदिर का निर्माण लाल पत्थर से होने के कारण इसे लाल मंदिर भी कहा जाने लगा, श्री लाल मंदिर में छोटे बड़े कुल २३ शिखर हैं तथा इस मंदिर जी में कमलाकर मूलवेदी पर भगवान श्री १००८ पाश्र्वनाथ जी विराजमान हैं तो वहीं एक तरफ शासननायक भगवान महावीर स्वामी तो दूसरी ओर भगवान चंद्रप्रभ विराजमान हैं। -प्रयंक जैन ‘हम’ की शक्ति पहचानें, जिनशासन को महकाएँ आध्यात्मिक जगत में ‘मैं’ का विराट स्वरूप है ‘हम’ ‘हम’ अर्थात अपनापन ‘हम’ अर्थात एकता। ‘हम’ अर्थात ‘वासुधैव कुटुंबकम’। ‘हम’ अर्थात समस्त आत्माएं। जहाँ ‘हम’ हैं, वहाँ ‘मैं’ का समर्पण हो जाता है। जहां ‘हम’ है वहां संगठन है। जहां ‘हम’ हैं वहाँ संघ है | ‘संघे शक्ति कलीयुगे’। नन्दी सूत्र में संघ को नगर, चक्र, रथ, सूर्य, चंद्र, पद्म सरोवर, समुद्र, सुमेरू आदि विशेषणों से अलंकृत किया है। संघ की महिमा अपार है। आगमों में ‘णमो तित्थस्स’ के द्वारा साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका इन चार तीर्थ रूपी संघ की महिमा को उजागर किया है। जिनशासन में ‘हम’ भावना का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि मोक्ष मार्ग का साधक अपने स्व-कल्याण के साथ ही सभी के कल्याण की भावना रखे, इस हेतु स्वयं प्रभु महावीर ने अपनी अंतिम देशना में उत्तराध्ययन सूत्र के ग्यारहवें अध्य्यन ‘अहुस्सूयपुज्जं’ में साधु के आचार का वर्णन करते हुए इसकी अंतिम गाथा में कहा है- ‘तम्हा सुय महिट्ठिज्जा, उत्तमट्ठ गवेसये।  जेण अप्पाणं परं चेव, सिद्धिं सम्पाउणिज्जासि।।’ उपरोक्त गाथा द्वारा ‘हम’ भावना का महान आदर्श समग्र विश्व को अनुकरण हेतु उद्घोषित किया गया है। ‘हम’ की शक्ति सर्वोपरि – ‘व्यक्ति अकेला निर्बल होता है, संघ सबल होता मानें’ संघ समर्पणा गीत की सुंदर पंक्तियाँ हमारा मार्ग प्रशस्त कर रही है, जिस प्रकार एक लकड़ी आसानी से तोड़ी जा सकती है लेकिन वही जब समूह रूप में हो तो उसे तोड़ना दुस्सम्भव है, जिस प्रकार साधारण से समझे जाने वाले सूत (धागे) जब साथ मिल जाते हैं तो वह मजबूत रस्सी का रूप ले लेते हैं और बलशाली हस्ती को भी बांधकर रख सकते हैं, इसी प्रकार जब हम संगठित हो जाते हैं तो दुस्सम्भव कार्य को भी संभव बना सकते हैं। जंगल में बलवान पशु भी समूह में रहे हुए प्राणियों पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं करता, वह उसी को अपना शिकार बनाता है जो समूह से अलग हो जाते हैं। निर्बल से निर्बल भी संगठित होने पर सशक्त एवं सुरक्षित हो जाते हैं और कई बार ऐसा भी देखने में आता है की निर्बलों की संगठित शक्ति के सामने अकेला बलवान भी हार जाता है। सैकड़ों मक्खियां मिलकर बलशाली शेर को भी परेशान कर देती है, एकता का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत है ‘जाल में फैसे कबूतरों और बहेलिये की कहानी’ बहेलिये द्वारा बिछाये गए जाल में फँसे कबूतर जब सिर्फ स्वयं की मुक्ति के लिए अलग-अलग प्रयास कर रहे थे तो जाल में और अधिक उलझते जा रहे थे लेकिन जब अपने मुखिया की बात मानकर उन्होंने एकतापूर्वक एक साथ अपने पंख फड़फड़ाये तो पूरा जाल लेकर आसमान में उड़ गए और बहेलिये के चंगुल से बच गए, यह है एकता की शक्ति। लोकतंत्र में भी उन्हीं की बात मानी जाती है जो संगठित होते हैं, आज विश्व में वो ही शक्तिशाली एवं सुरक्षित हैं जो एकजुट हैं, संगठित हैं। जहाँ ‘मैं’ में सिर्फ स्वार्थ भाव होता है वहीं ‘हम’ में परमार्थ का विराटतम भाव समाहित है। ‘हम’ भावना आते ही सारे द्वेष के बंधन खुल जाते हैं। सारे वैर-विरोध के कारण नष्ट हो जाते हैं। ‘हम’ भाव वाला किसी को कष्ट नहीं दे सकता, उसके मन में दूसरों के दु:ख को अपने दु:ख जैसा समझने की भावना होती है, वह अपने ऊपर हर प्राणी का उपकार मानता है इसलिए वह जैसा अपने लिए शाश्वत सुख चाहता है, उसका चिंतन होता है कि विश्व के सभी प्राणी अपने है, कोई पराया नहीं, कोई शत्रु नहीं, उसके मन में ‘सत्वेषु मैत्रीम्’ का अनवरत प्रवाह गतिमान रहता है, यही विश्व शांति का मूल मंत्र है। हर वस्तु या विषय को जानने व समझने के लिए भिन्नभिन्न दृष्टिकोण होते हैं जिसे ‘अनेकांतवाद’ कहा जाता है। ‘मैं’ और ‘हम’ को भी अनेकांत दृष्टि से समझने की आवश्यकता है। आत्मचिंतन के दृष्टिकोण से ‘मैं’ का चिंतन करना अर्थात ‘स्व’ का चिंतन, अपने आत्मा का चिंतन, अपने वास्तविक स्वरूप का चिंतन और अपने आत्म कल्याण का चिंतन कर उस हेतु पुरूषार्थ करना होता है। स्व की अनुभूति के बिना सब कुछ व्यर्थ है, जिसने स्व को नहीं जाना उसने कुछ नहीं जाना। ‘स्वयं’ को जानने वाला ही स्वयं के अनंत गुणमय शुद्ध स्वरूप की सिद्धि कर अनंत आनंद को प्राप्त कर सकता है। ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्य एवं उपयोग अर्थात आत्मा के शुद्ध गुण हैं, जहां ‘मैं’ अर्थात् आत्मा के शुद्ध गुणों की अनुभूति हो वहाँ ‘मैं’ का चिंतन पूर्ण रूप से सार्थक है। ‘मैं’ अर्थात् अपने स्वरूप का अनुभव करते हुए उसकी वर्तमान अवस्था में परतत्त्व के संयोग से उत्पन्न दोषों का समीक्षण करके उन दोषों को दूर कर पूर्ण शुद्ध गुणों से युक्त वास्तविक स्वरूप की प्राप्ति हेतु पुरूषार्थ, जिसे आत्म साधना कहा जाता है, वह सर्वश्रेष्ठ है, यही स्वचेतना की अनुभूति है, यही ज्ञेय है और यही उपादेय है, यही आत्म धर्म है, यही समस्त धर्म का सार है। लेकिन जब ‘मैं’ का चिंतन विकारयुक्त हो, क्रोध-मान-माया-लोभ आदि कषायों से कलुषित हो, राग-द्वेष की गंदगी से दूषित हो, तो अनुचित है, वह हेय है, त्यागने योग्य है, दूसरों को हानि पहुंचाकर स्वयं की भौतिक वासनाओं की पूर्ति करना लोक व्यवहार में भी सबसे बड़ा पाप है, अपने भौतिक स्वार्थ के लिए दूसरों का अधिकार छीन लेना निंदनीय है, कोई भी व्यक्ति दूसरों को तभी हानि पहुंचाता है जब उसके मन में सांसारिक विकारी ‘मैं’ के विचारों का अधिकार हो जाता है, वह क्रोध के वश, अहंकार के वश, माया के वश, लोभ के वश, प्रतिष्ठा की कामना के वश या प्रतिशोध के वश में आकर दूसरों को कष्ट देने में भी पीछे नहीं रहता और जगत के जीवों को आघात पहुंचाते हुए अपनी आत्मा के सद्गुणों का घात करके स्वयं भी अशांति एवं घोर दु:खों का भागी बनता है। जैन दर्शन के अनुसार हमारी आत्मा शाश्वत है, अनादि काल से इसने अनंत जन्म-मरण किए हैं और इन अनंत भवों में हमारी आत्मा ने लोक के सभी जीवों के साथ हर तरह के संबंध किये हैं, हर जन्म में हमारे ऊपर अनगिनत जीवों का असीम उपकार रहा है और अनंत भवों के हमारे जन्म-मरण हिसाब से हमारे ऊपर हर जीव का असीम उपकार रहा हुआ है, हम अगर सामान्य दृष्टि से भी सोचें तो हम हमारा छोटा सा जीवन भी अनगिनत जीवों के उपकार एवं सहयोग से ही जी पा रहे हैं, अगर संसार के दूसरे जीव हमारे शत्रु बन जाएं तो कुछ पल भी जी नहीं पाएंगे, इस प्रकार संसार के हर जीव का हमारे ऊपर ऋण है और उन सभीके हित की भावना और हित का कार्य करके ही हम उस ऋण से मुक्त हो सकते हैं, इसीलिए जैन धर्म सम्यक् रूप से समझने वाला व्यक्ति जीव हिंसा से दूर रहना अपना सर्वोपरि कर्तव्य एवं सर्वोपरि धर्म समझता है, आइए ‘हम’ भावना के व्यापक स्वरूप को जीवन में अपनाकर समग्र विश्व में शांति के निर्माण में सहभागी बनें | ‘हम’ की भावना से प्रगति का जीता-जागता उदाहरण है जापान– अपने चारों तरफ फैले हुए समुद्र की भयानक आपदाओं को जापान प्रति वर्ष झेलता है और जिसने पिछली एक शताब्दी में अनेक भयानक भूकंप एवं सुनामियों की विनाशलीला भी झेली है लेकिन वहाँ के निवासियों ने आपसी एकता एवं अपनत्व की भावना के बलबूते जापान को दुनिया के अति विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। जापान में किसी भी व्यक्ति को हानि होने पर जापानी लोग उसे अपना मानकर उसकी सहायता करके सक्षम बना देते हैं, इसीलिए आज जापान किसी भी बात पर दूसरों पर निर्भर नहीं है। विश्व के इतिहास पर करें दृष्टिपात – आज हम भारत सहित विश्व के देशों का इतिहास देखें तो पता चलेगा कि जब-जब ‘मैं’ और ‘मेरा’ का संकुचित भाव हावी हुआ तब-तब विनाश दृष्टिगोचर हुआ। रामायण, महाभारत आदि में वर्णित महाविनाश में स्वार्थपूर्ण ‘मैं’ ही कारण रहा। स्वार्थपूर्ण ‘मैं’ की क्षुद्र भावना में बिखर कर भारत आदि अनेक देश मुगलों और अंग्रेजों के गुलाम बने और सदियों तक घोर कष्ट सहा, आज जो भी विकसित देश नजर आ रहे हैं वे सभी ‘हम’ भावना की शक्ति से ही सशक्त और समृद्ध बने हैं। पूर्ववर्ती मध्यकाल में देश के विभिन्न राज्यों के नरेश आपस में छोटे-छोटे स्वार्थ या प्रतिशोध की भावना से एक दूसरे राज्य पर आक्रमण किया करते थे, आपस में एकता नहीं होने का लाभ विदेशी लुटेरों एवं आक्रमणकारियों ने उठाया जिसके कारण सभी को महाविनाश झेलने पड़े और देश को सदियों तक पराधीन रहना पड़ा, लेकिन जैसे ही ‘हम’ की भावना जगी और संगठित हुए तो गुलामी की सारी जंजीरें टूट गई। बीती हुई करीब १० सदियों की तुलना में आज भारत देश काफी सुरक्षित और सशक्त है तो उसका कारण है देश की ५६५ रियासतों का एकजुट होकर स्वतंत्र भारत में विलय। अनेक भाषाओं एवं विभिन्न भौगोलिक स्थितियों के होते हुए भी हम एकजुट भारत के होने से ही प्रगति कर रहे हैं और करते रहेंगे, आज देश को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उसका बहुत बड़ा कारण राजनेताओं के स्वार्थरूपी ‘मैं’ की वजह से १९४७ में देश का विभाजित होना है, हमसे विभाजित हुए राष्ट्र हमारे देश को निरंतर बहुत बड़ी हानि पहुंचा रहे है। विकास में लगने वाली हमारी क्षमता का बहुत बड़ा हिस्सा उनसे अपनी रक्षा में लगाना पड़ रहा है जिसके कारण यथेष्ट विकास नहीं हो पा रहा है, हमसे विलग हुए राष्ट्र यदि हमसे शत्रुता छोड़ कर परस्पर एकता और सहयोग का वातावरण निर्माण करें तो हमारी एवं उनकी सभी की विशेष प्रगति हो सकती है, सुखी एवं समृद्ध बन सकते हैं। आपस में एकता नहीं होने से जिनशासन को पहुंची बड़ी क्षति – शासनेश प्रभु महावीर के निर्वाण के कुछ वर्षों पश्चात जैन धर्मानुयायी विभिन्न सम्प्रदायों में विभाजित हो जाने के कारण जैन समाज को भारी क्षति उठानी पड़ी। जैन धर्म का मौलिक इतिहास देखने पर पता लगेगा कि हम में आपस में एकता के अभाव के कारण, हमारे सम्पूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी श्रेष्ठतम सिद्धांतों को नहीं समझ पाने से अन्य धर्मावलम्बियों ने द्वेषवश जैन समाज पर अनेक प्रकार के घोर अत्याचार एवं सामूहिक नरसंहार तक किये, जिसके कारण बहुसंख्यक जैन समाज आज अल्पसंख्यक स्थिति में आ गया है। अपने स्वार्थ एवं अहंकार में अंधा होने पर व्यक्ति घनिष्ठ प्रेम, आत्मीय सम्बन्ध, सिद्धांत, नैतिकता आदि सब कुछ भुला देता है और अपने परम उपकारी तक का भी अनिष्ट कर डालता है, हमें इतिहास से सबक लेकर उन कारणों से दूर रहकर उज्जवल भविष्य के लिए कार्य करना है। आपसी एकता से महक सकता है जिनशासन: जिन शासन को महकाने के लिए जगायें ‘हम’ का भाव-जैन धर्म इस विश्व का सबसे महान धर्म है, एक ऐसा धर्म जो विश्व के हर जीव को अपना मानता है, अपने समान मानता है जो हर प्राणी के दु:ख को अपने दु:ख के जैसा ही समझता है, जो हर जीव की रक्षा में धर्म मानता है। ऐसा धर्म जिसको अपनाने से सारे जीवों में वैर-विरोध समाप्त हो सकता है, एक ऐसा धर्म है जिसका संदेश है किसी को मत सताओ। ऐसा महान धर्म जिसका पालन निर्धन से निर्धन व्यक्ति से लेकर संपन्न से सम्पन्नतम व्यक्ति भी कर सकता है। निर्बल से लेकर सफलतम व्यक्ति भी कर सकता है, ऐसा धर्म जो एक छोटे से त्याग से भी व्यक्ति को शाश्वत सुख के मार्ग पर आगे बढ़ा देता है, जिसका पालन दुनिया का ही संज्ञाशील प्राणी कर सकता है, जो सकल विश्व का धर्म है, ऐसा महान विश्व शांतिकारी जैन धर्म अल्पसंख्यक स्थिति में पहुंच गया है। ६४ इंद्र एवं असंख्य देव-देवी, जिन तीर्थंकर भगवान के उपदेश सुनने के लिए लालायित रहते हैं, ऐसे महान जैन धर्म का अनुसरण करने वाले व्यक्ति सिर्फ कुछ प्रतिशत ही हैं, यह अत्यंत ही चिंतनीय विषय है। अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांतवाद, समता, सदाचार, ‘जियो और जीने दो’, ‘परस्परोपग्रहो’ आदि अमर सिद्धांतों के होते हुए भी विश्व पटल में शामिल होते दिखाई दे रहे हैं। हिंसा, द्वेष, अशांति, स्वार्थ, कुव्यसन, दुराचार, भ्रष्टाचार आदि का प्रभाव बढ़ रहा है, क्या इसमें हमारा बिखराव भी बहुत बड़ा कारण नहीं रहा है? आपस में एक नहीं होने की वजह से हम जीवदया, अहिंसा, करूणा, समता, सदाचार, नैतिकता के महान सिद्धांतों को जन-जन तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं, इसके कारण विश्व में फैले हुए जीव हिंसा, मांसाहार, दुराचार, दुव्र्यसन आदि को मिटाने में हम सक्षम नहीं बन पा रहे हैं, जिन शासन में एक से बढ़कर एक साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका हुए हैं और वर्तमान में भी चतुर्विध संघ में अनेक रत्न हैं, अगर यह सभी ‘संगठन’ की शक्ति ‘हम’ की शक्ति को समझ लें तो प्रभु महावीर के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार कर सारे विश्व में प्रेम, शांति और सहकार का वातावरण बनाया जा सकता है, पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी आपस में जुड़ जाते हैं, तो ‘खामेमि सव्वजीवे’ एवं क्षमा वीरस्य भूषणम् का सारे जग को संदेश देने वाले ‘जैन’ क्या संगठन के सूत्र में नहीं बंध संकल्प करें कि हमें एक महान लक्ष्य को प्राप्त करना है। ‘सत्वेषु मैत्री, गुणिषु प्रमोदं’ का भाव सारी दुनिया में उद्घोष करने वाले हम छोटे से अहंकार एवं स्वार्थ के पीछे कभी नहीं पड़ेंगे। चंडकौशिक विषधर, क्रुर देव संगम, घोर हत्यारे अर्जुन माली एवं रौहिणेय चोर को भी क्षमा कर उनको सत्पथ पर लाकर उद्धार करने वाले करूणा निधान प्रभु महावीर के हम उपासक हैं, हमारे आदर्श हैं चींटियों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले धर्मरूचि अणगार और कबूतर की रक्षा के लिए शिकारी को अपने शरीर का मांस काट कर दे देने वाले राजा मेघरथ, हमारा चिंतन हो कि ऐसे महान जैन धर्म के अनुयायी जो आत्म सिद्धि के लिए संसार के सारे मनमोहक सुखों का त्याग करने में भी पीछे नहीं रहते हैं, सर्वोत्कृष्ट सिद्धांतों एवं विचारों के धनी हम अहंकार, क्रोध, प्रतिशोध या पद-प्रतिष्ठा आदि किसी भी लोभ एवं नश्वर स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी आत्मा को कलुषित नहीं करेंगे। विश्व कल्याणकारी जिनशासन की प्रभावना के लिए हम सारे वैर-विरोध को भूलाकर आपस में आत्मीयता एवं विश्व मैत्री का सारे विश्व के सामने उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। वीतराग प्रभु द्वारा प्ररूपित सिद्धांतों को पूर्ण रूप से जीवन में अपनाएंगे, जिससे हमारा जीवन दूसरों के लिए आदर्श बनें, हमारा चिंतन हो कि हमारे किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत स्वार्थ की वजह से जिनशासन को कहीं हानि तो नहीं पहुंच रही है, यदि हमारी किसी भी छोटी सी गलती से भी जिनशासन को कोई क्षति पहुँच रही है तो तुरंत उसका सुधार करें। सभी जैन धर्मानुयायी यदि एक दूसरे के सद्गुणों का सम्मान करते हुए उन अच्छाईयों को नि:संकोच अपनाने का सिलसिला प्रारम्भ करें और ‘मैं’ नहीं ‘हम’ की पवित्र भावना के साथ जैन धर्म के कल्याणकारी सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाए तो पुन: जिनशासन को समग्र विश्व में...