Category: August 2024

श्री जाखोड़ा तीर्थ​ 0

श्री जाखोड़ा तीर्थ​

तीर्थाधिराज : श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, प्रवालवर्ण, लगभग ३५ सेमी., श्वेताम्बर मंदिर।तीर्थस्थल : राजस्थान प्रांत के पाली मारवाड़ जिले में जवाई बांध रेल्वे स्टेशन से १० किमी, फालना से १८ किमी दूर है, सिरोही-साण्डेराव सड़क मार्ग पर शिवगंज से ९ किमी तथा सुमेरपुर से ७ किमी दूर जाखोड़ा गांव के पहाड़ी की ओट में यह तीर्थ स्थित है।प्राचीनता : ऐसा कहा जाता है कि इस प्रभु प्रतिमा की अंजनशलाका आचार्य श्री मानतुंग सूरीश्वरजी के सुहस्ते हुई थी, विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में श्री मेघ कवि द्वारा रचित तीर्थमाला में इस तीर्थ का वर्णन है, प्रतिमाजी के परिकर पर वि.सं. १५०४ का लेख उत्कीर्ण है, इसके अनुसार सं. १५०४ में श्री यक्षपुरी नगर में तपागच्छीय श्री सोमसुन्दरजी के शिष्य श्री जयचन्द्रसूरिजी ने मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति के परिकर की प्रतिष्ठा की, लेकिन इस परिकर के बारे में यह मान्यता है कि किसी अन्य मंदिर से श्री पार्श्वनाथ प्रभु का यह परिकर लाकर यहां लगाया गया है, प्रभु दर्शन मात्र से पांचों इन्द्रियों के विषय प्रतिकूल से अनुकूल बन जाये, मनोहर मुख मण्डल ने जैसे जन्म जन्म के दु:ख हर लिये हो, ऐसे शान्तिनाथ प्रभु की कलात्मक परिकर युक्‍त प्रतिमा, चन्द्र से शीतल, सूर्य से तेजस्वी अहर्निश उदयांकर है।विशिष्टता : यह तीर्थ प्राचीन होने के साथ साथ चमत्कारिक क्षेत्र भी है, यहां पर पानी की बड़ी भारी विकट समस्या थी, पथरीली भूमि-में पानी मिलने की संभावना भी नहीं थी, एक दिन अधिष्ठायक देव ने कोलीवाड़ा के चान्दाजी को स्वप्न में मंदिर के निकट पानी होने का संकेत दिया, तदनुसार खुदवाने पर विपुल मात्रा में मीठा व स्वास्थ्यवर्धक पानी प्राप्त हुआ, जैन-जैनेतर और भी अनेक तरह के चमत्कारों का वर्णन करते हैं, यहां प्रतिवर्ष माघ शुक्ला पंचमी को ध्वजा तथा कार्तिक पूर्णिमा व चैत्री पूर्णिमा को मेले का आयोजन होता है तब हजारों यात्री दर्शनार्थ आते हैं।अन्य मन्दिर : वर्तमान में इसके अतिरिक्त एक श्री आदिनाथ प्रभु का मंदिर भी है।कला व सौन्दर्य : प्रभु प्रतिमा की कला आकर्षक एवं दर्शनीय है।सुविधाएं : तीर्थ पर ठहरने के लिये प्राचीन शैली की विशाल धर्मशाला है तथा भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है।ती

श्री उवसग्‍गहंर पार्श्व तीर्थ नगपुरा 0

श्री उवसग्‍गहंर पार्श्व तीर्थ नगपुरा

छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिला में जैन धर्मावलम्बियों का विश्व प्रसिद्ध श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ असंख्य श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है, यहाँ मूलनायक तीर्थपति २३ वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ प्रभु प्रतिष्ठित हैं। भूगर्भ से प्राप्त करीब २७५० वर्ष प्राचीन श्री उवसग्गहरं पार्श्व प्रभु की प्रतिमा अत्यंत ही मनोहारी है, एक सौ आठ पार्श्वनाथ यात्रा क्रम में यह तीर्थ पूज्यनीय एवं वंदनीय है। लगभग ४०-४५ वर्ष पूर्व दुर्ग के वरिष्ठ पत्रकार श्री रावलमल जैन ‘मीण’ के संयोजन में इस तीर्थ की संरचना एवं विकास का कार्य शुरू हुआ। देशभर के लाखों श्रद्धालुओं के सहयोग से बहुत ही कम समय में तीर्थ संकुल विशाल श्री उवसग्गहरं पार्श्व जिनालय सहित ९ शिखर युक्त भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। सन् १९९५ में माघसुद ६ (षष्ठी) ५ फरवरी को तीर्थोंद्धार-जीर्णोद्धार मार्गदर्शक तीर्थ प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय राजयश सूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्ते इस तीर्थ की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई, इस तीर्थ में प्रतिष्ठित लोटस टेम्पल, तीर्थंकर उद्यान, शाश्वत जिन मंदिर, मेरुपर्वत, श्री मणिभद्रवीर जी मंदिर, पद्मावती देवीजी मंदिर, चरित्र गुरुमंदिर, दादावाडी में प्रतिमाएं तीर्थ भक्तों की यात्रा में सहायक बनते हैं। प्रवास में आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए आवास हेतु सर्वसुविधायुक्त अतिथिगृह, सात्विकता से भरपूर भोजनशाला है। यहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु यात्रार्थ पधारते हैं। मूलनायक श्री उवसग्गहरं पार्श्व प्रभु की आभामंडल की प्रतिमा १०० मीटर दूरी तक प्रभावित करता है जो अन्यत्र कहीं नहीं है। तीर्थ में प्रतिदिन सुबह १०८ वासक्षेप पूजा, वर्धमान शक्रस्तव से महाभिषेक होता है, वर्ष में माघ सुद ५,६ को प्रतिष्ठा सालगिरह (ध्वजारोहण) तथा पोस बदी ९, १०, ११ को श्री पार्श्व प्रभु जन्म-दीक्षा कल्याणक महोत्सव का आयोजन होता है। परिसर में वर्धमान गुरूकूल एवं प्राकृतिक चिकित्सा की व्यवस्था है श्री उवसग्‍गहंर पार्श्व तीर्थ नगपुरा

आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान, गंगाशहर 0

आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान, गंगाशहर

नैतिकता का शक्तिपीठ आचार्य तुलसी की अजर-अमर स्मृतियां आचार्य तुलसी का महाप्रयाण २३ जून १९९७ आषाढ कृष्णा तृतीया वि.सं. २०५४ को हुआ। आचार्य तुलसी के महाप्रयाण के बाद उनके अन्तिम संस्कार स्थल पर आचार्यश्री महाप्रज्ञ के पावन सान्निध्य में स्मारक हेतु शिलान्यास किया गया। श्रद्धेय आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने इस परिसर का नामकरण नैतिकता का शक्तिपीठ किया, जो आज इस रूप में प्रतिष्ठित है। आचार्य तुलसी का समाधि स्थल उनके द्वारा प्रदत्त नैतिक मूल्यों के विकास प्रचार-प्रसार एवं संस्कारों के जागरण की प्रेरणा देता है, इस शक्तिपीठ की स्थापत्य कला अपनी वैशिष्ट्यता लिए हुए है, यह समाधि स्थल श्रद्धालुओं के लिए उपासना और ध्यान-साधना की उपयुक्त तपःस्थली है। आचार्य तुलसी की अन्तिम संस्कार स्थली पर निर्मित इस समाधि स्थल का लोकार्पण १ सितम्बर २००० को हुआ, समाधि स्थल परिसर में ३० हजार वर्गफुट के गोल घेरे में मूल समाधि अवस्थित है, इसके शिखर पर चारों दिशाओं में लगे संगमरमर पर आचार्य तुलसी के विभिन्न मुद्राओं में रेखाचित्र उनकी स्मृति को मुखर कर रहे हैं, उल्लेखनीय यह भी है कि समाधि स्थल की अंतःस्थ भूमि में एक अस्थि-कलश स्थापित है, यह अस्थि-कलश अष्ट धातुओं एवं बहुमूल्य रत्नों की नक्काशी से युक्त सिद्धहस्त शिल्पियों द्वारा निर्मित किया गया है, इनसे जुड़ी दर्शक दीर्घाएं भी विस्तृत हैं, इस पवित्र प्रांगण में भव्य एवं आकर्षक आर्ट गैलरी बनाई गई है, जिसमें आचार्य तुलसी के पूरे जीवन की स्मृतियों को चित्रित किया गया है, यह तुलसी चित्रदीर्घा निश्चय ही दृष्टव्य है। समाधि स्थल में संलग्न एक विशाल अणुव्रत मंच है जो आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के वृह्द आयोजनों के लिए बहुपयोगी है, यह ओपन थिएटर हृदय की विशालता व खुले विचारों की उदारता का परिचायक है। नैतिकता का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस मंच का सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। ‘नैतिकता का शक्तिपीठ’ को बाहरी आकर्षण एवं सुरम्यता प्रदान करने के लिए परिसर की सीमा में भव्य विशाल उद्यान भी लगाया गया है, यहां सिर्फ तन और मन ही नहीं, आत्मा तक तरंगित हो उठती है। नैतिकता का शक्तिपीठ की स्थापत्य कला के बाहरी परिवेश को देखने एवं नैतिकता के महान् सम्बोधन का श्रद्धा से स्मरण एवं आत्मशान्ति प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में विभिन्न धर्मों के श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों का आगमन निरन्तर जारी रहता है। आचार्य तुलसी की स्मृतियों को चिरस्थायी रखने उनके कल्याणकारी कार्यों एवं अवदानों को प्रचारित-प्रसारित करते हुए नैतिकता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान का गठन किया गया। आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के सदस्य सम्पूर्ण भारत एवं पड़ोसी देशों में भी है, इस संस्थान के २०५२ आजीवन सदस्य हैं। प्रतिष्ठान आचार्य तुलसी के जीवन, विचार, कला, दर्शन, साहित्य व विधाओं पर शोध एवं तुलसी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अजर-अमर बनाने के लिए आचार्य तुलसी राजस्थानी साहित्य शोध संस्थान, पुस्तकालय एवं वाचनालय, आचार्य तुलसी साहित्य केन्द्र आदि अनेक महत्वपूर्ण आयाम संचालित किये जा रहे हैं। प्रतिष्ठान द्वारा शक्तिपीठ के ठीक सामने आशीर्वाद अतिथिगृह का भी निर्माण करवाया गया है, इस चार मंजिला भवन में कमरे, डॉरमेंटरी, सुसज्जित हॉल, सत्कार आदि पाकशाला सहित सभी सुविधाजनक व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। यह भवन आध्यात्मिक सामाजिक आयोजनों एवं यात्रियों के लिए बहुत उपयोगी हैं, यहां पधारने वाले यात्रियों के लिए भोजनशाला की भी नियमित व्यवस्था रहती है, अनेक श्रद्धालु प्रतिवर्ष दर्शनार्थ पधारते हैं, उनके लिए यहां सभी अनुकूल सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। नैतिकता का शक्तिपीठ परिसर में झूले, फव्वारे, आ.तु.फिजियोथैरेपी सेन्टर, प्रेक्षाध्यान कक्ष संचालित किये जा रहे हैं, भ्रमणपथ का निर्माण किया गया है। आचार्य तुलसी की पावन स्मृति में बीकानेर के सबसे बड़े जिला अस्पताल पीबीएम में प्रतिष्ठान के सहयोग से निर्मित आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर चिकित्सा एवं अनुसंधान केन्द्र में नित्य सैकड़ों वैंâसर रोगियों को शारीरिक स्वास्थ्य लाभ के साथ ही उन्हें जीवनमूल्यों की प्रेरणा व प्रेक्षा ध्यान के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है, इस वैंâसर सेंटर में कोबाल्ट कक्ष, पेलिएटिव यूनिट, प्रेक्षा कॉटिज आदि का निर्माण भी करवाया गया है, आचार्य तुलसी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में यहां बॉनमेरो ट्रीटमेंट यूनिट के निर्माण की प्रक्रिया जारी है। आचार्य तुलसी समाधि स्थल के अलावा गंगाशहर में आचार्य तुलसी के निर्वाण स्थल तेरापंथ भवन, गंगाशहर में जिस कमरे व पट्ट पर अंतिम श्वास ली, उसको दर्शनीय बनाया गया है, यहां आचार्य श्री के चित्र व संदेशों के साथ ही आचार्य तुलसी स्वास्थ्य निकेतन एवं आचार्य तुलसी कम्प्युटर प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से हजारों लोग प्रतिवर्ष लाभान्वित होते हैं। तेरापंथ भवन से कुछ दूरी पर ‘बोथरा भवन’ स्थित है, जहां आचार्य श्री तुलसी ने अपने जीवन काल की अंतिम रात्रि व्यतीत की थी, इस भवन को आचार्य तुलसी की स्मृति में फोटो गैलरी के रूप में परिवर्तित किया गया है। सभी धर्मों के साधु-संतों के समय-समय पर होने वाले सामान्य समागम से जहां गंगाशहर अपनी आध्यात्मिकता के कारण विख्यात है वहीं आचार्य तुलसी की पुण्यभूमि के गौरव एवं उनकी स्मृति में बने नैतिकता के शक्तिपीठ की स्थापना से इस क्षेत्र की ख्याति में एक नया आयाम जुड़ा है। -जैन लूणकरण छाजेड़ अध्यक्ष आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान गंगाशहर, राजस्थान, भारत