चेन्नई के इतिहास में, ऐतिहासिक दीक्षा महोत्सव

तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान की २३ दीक्षाएं

ग्यारह नवम्बर २०१८ रविवार को चेन्नई में जहां नव रश्मियों को बिखेर कर प्रकृति को उल्लासित किया, तो वहीं दूसरी और महावीर परम्परा के संयम पुरोधा आचार्य महाश्रमणणी ने २३ समणियों व मुमुक्षु भाई-बहनों को संयम-रत्न प्रदान कर उनके जीवन में नव सूर्य का उदय किया।माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में वृहद् दीक्षा महोत्सव में हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि आर्हत् वाड़मय् में शास्त्रकार ने कहा है कि प्रार्थी में पहले ज्ञान होना चाहिए फिर आचर और दया, ज्ञान नहीं होता तो आदमी अज्ञानी रहता है, अज्ञानी क्या कर पायेगा, वो कैसे जान पायेगा कि मेरे लिए, श्रेष्ठ क्या हैं, भले अध्यात्म का क्षेत्र हो और भले व्यवहार का या संसार का क्षेत्र हो, हमारे जीवन में ज्ञान का महत्व होता है, ज्ञान सही होता हैं, तो आचरणी सही होने में सहूलियत हो जाती हैं, अध्यात्म की साधना के क्षेत्र में नव तत्वों का ज्ञान होना चाहिए।

नव दीक्षार्थीयों को विशेष बोध पाठ प्रदान करते हुए, आचार्यश्री ने नव तत्वों का विवेचन करते हुए कहा कि साधु-साध्वीयों व श्रमणियों का परम् लक्ष्य होता है मोक्ष को पाना, इसके लिए उनके जीवन में अध्यात्म साधना का अभिक्रम रहना चाहिए। दीक्षा संस्कार समारोह ज्ञातीजनों से लिखित और मौखिक आज्ञा इससे पूर्व पारमार्थिक शिक्षासंस्था के नवमनोनीत अध्यक्ष बजरंग जैन ने आज्ञा-पत्र का वाचन किया। मुमुक्षुओं के अभिभावकों ने लिखित आज्ञा पत्र गुरूदेव के श्रीचरणों में सुपुर्द किये, सन्मुख दीक्षार्थीयों की परीक्षा लेते हुए भरी सभा में आचार्य प्रवर ने उनकी भी स्वीकृति ली। वृहद् दीक्षा महोत्सव की शुरुआत आचार्य प्रवर के द्वारा नमस्कार महामंत्र के मंगल के साथ हुई, भगवान महावीर की वन्दना, तेरापंथ के पूर्वाचार्यों का मंगल स्मरण, साध्वी प्रमुखाणी कनकप्रभाजी का अभिवादन व मंत्री मुनिणी सुमेरमलजी को वन्दन कर परम पूज्य आचार्य महाश्रमणजी चेन्नई के इतिहास में, ऐतिहासिक दीक्षा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान की २३ दीक्षाएंने दीक्षा प्रदान करवाई, सभी नवदीक्षितों ने तीन बार परिक्रमा कर आचार्य प्रवर को वन्दना निवेदित की श्रमणियों (३ नवदीक्षित) ११ साध्वीयों, ३ मुमुक्षु भाईयों को मुनि दीक्षा व ९ मुमुक्षु बहनों को दीक्षा प्रदाता ने नवदीक्षितों का नामकरण संस्कार करते हुए, सभी के नये नामों की घोषणा की।
दीक्षार्थियों का हुआ नाम: तेईस दीक्षा में मुनि दीक्षा तीन,
नये नामों की घोषणा
१) मुमुक्षु शुभम आच्छा को मुनि शुभमकुमार
२) मुमुक्षु अशोक बोहरा को मुनि अनिकेतकुमार
३) मुमुक्षु कुलदीप बोहरा को मुनि कौशलकुमार।
समणियों से साध्वी दीक्षा कुल ग्यारह, नये नामों की घोषणा
१) समणी चारित्र प्रज्ञा ( साध्वी चरितार्थ प्रभा )
२) समणी आगम प्रज्ञा (साध्वी आगम प्रभा )
३) समणीr विकास प्रज्ञा (साध्वी वैभवप्रभा)
४) समणी सुलभ प्रज्ञा (साध्वी शौर्यप्रभा)
५) समणी परिमल प्रज्ञा (साध्वी प्रांजलप्रभा)
६) समणी रश्मि प्रज्ञा (साध्वी ऋजुप्रभा)
७) समणी गौतम प्रज्ञाजी (साध्वी गौतमप्रभा)
८) समणीr मर्यादाप्रज्ञा ( साध्वी मध्यस्थप्रभा ) नाम प्रदान किया। नव दीक्षित समणी दीक्षा के तत्काल बाद आरोहणीrकरनेवाली
९) मुमुक्षु पुष्पलता बोहरा को साध्वी धैर्यप्रभा
१०) मुमुक्षु रेखा को साध्वी रत्नप्रभा
११) मुमुक्षु कोमल बोहरा को साध्वी तेजस्वी प्रभा नाम प्रदान किया।
    मुमुक्षु से समणी दीक्षा कुल नौ, नये नामों की घोषणा
1) मुमुक्षु प्रियंका जैन को समणी प्रगतिप्रज्ञा
2) मुमुक्षु धरती धोका को समणी धृतिप्रज्ञा. मुमुक्षु नम्रता पीपाडा को समणी नंदीप्रज्ञा
3) मुमुक्षु प्रेक्षा सेठिया को समणी प्रशस्तप्रज्ञा
4) मुमुक्षु स्वेता सेठिया को समणीr स्वेतप्रज्ञा
5) मुमुक्षु यशा दुधेड़िया को समणी यशस्वीप्रज्ञा
6) मुमुक्षु दिव्या वडेरा को समणी दिव्यप्रज्ञा
7) मुमुक्षु आरती को समणी आदित्यप्रज्ञा
8) मुमुक्षु प्रज्ञा भंसाली को समणी पूर्णीप्रज्ञा नाम प्रदान किया गया।

  • केश लुंचन संस्कार आचार्यणी ने कहा कि केश लुंचन परम्परा है, कष्ट का काम है, साधना का क्रम है। आचार्य प्रवरणीr व साध्वी प्रमुखाणीr कनकप्रभाजी ने नवदीक्षितों का जैसे ही केश लुंचन संस्कार किया, उस अद्वितीय, अविस्मरणीय दृश्य को देख पुरा महाश्रमण समवसरण ऊँ अर्हम, इत्यादि जयघोषों से गुंजायमान हो गया। आचार्य प्रवर ने आर्शीवचन की मंगल भावना के साथ सभी नवदीक्षित मुनियों को रजोहरण व प्रमार्जनी प्रदान करते हुए कहा कि दिन में साधु को चलना हो तो भूमि देख कर चले, पर रात में कुछ दिखे न दिखे रजोहरण से प्रमार्जन कर, देखकर चलने का प्रयास करें, रजोहरण और प्रमार्जनी साधु-साध्वीयों द्वारा तैयार की जाती है।
  • शिक्षा रूपी ओज आहार नवदीक्षितों को ओज आहार रूपी शिक्षा प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि अब तुम सब साधु-साध्वी समणी बन गये हो, सभी को ज्ञान, दर्शन और चारित्र से शांन्ति व मुक्ति से वर्धमान बनना है, खुब साधना कर स्व – पर का कल्याण करना है, जीवन की हर क्रिया में संयम पूर्वक रहना, अच्छा विकास करना, धर्मसंघ की सेवा कर धर्मसंघ को लाभ पहुंचाने का प्रयास करना। ग्रास-दान संस्कार प्रथम ग्रास-दान प्रदाता परमाराध्य आचार्य प्रवर ने नवदीक्षितों को ग्रास के रूप में अलग-अलग श्लोक बनाकर श्लोक-ग्रास प्रदान किया।
  • आगामी दीक्षा महोत्सव की घोषणा परमाराध्य आचार्य प्रवर ने आगामी ०३-०७-२०१९ को भिक्षु धाम, बैंगलूरू में दीक्षा महोत्सव की घोषणा की, हजारों-हजारों नयनों ने शालीनता पूर्वक वृदह दीक्षा महोत्सव को निहारा, जहां जैन समाज के व्यक्ति तो उपस्थित थे ही, वहीं अजैन और कई विशिष्ट महानुभाव भी अपनी आँखों से इस दृश्य को निहारा, मेघालय के पूर्व राज्यपाल वी शंगमुखनाथन, दिगंबर भट्टारक लक्ष्मीसेन भी इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित होकर पूरे वृहद् दीक्षा महोत्सव को देखा। चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के संयोजन में, तेरापंथ युवक परिषद्, महिला मण्डल व चेन्नई की अन्य संघीय संस्थाओं ने सभी व्यवस्थाओं को सुन्दर ढंग से समायोजित किया। कार्यक्रम का सफलतम संचालन करते हुए मुनिणी दिनेश कुमार ने कहा कि आ. महाश्रमणजी ने जिनशासन को शिखरों पर चढाया है, पीपाडा उत्तमकुमार जैन ने ‘जिनागम’ को उपरोक्त जानकारी दी।

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