खरतरगच्छ के युग पुरूष
भगवान महावीर के शासन में अनेक प्रभाविक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने जन कल्याण के साथ जैन शासन की महान् सेवा की है, इन महापुरूषों में खरतरगच्छ चारों दादा गुरूदेव के नाम विशेष महत्त्व रखते हैं। एक लाख तीस हजार अजैनों को जैन बनानेवाले शासन सम्राट श्री जिनदत्तमुनिजी प्रथम दादा गुरूदेव एवम् प्रभाविक गणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी द्वितीय दादा गुरूदेव हुए। पचास हजार अजैनों को जैन बनाने वाले कल्पवृक्ष के समान मनवांछित इच्छा पूर्ण करने वाले श्री जिनकुशल सूरिजी तृतीय दादा गुरूदेव हुए तथा सम्राट अकबर को प्रतिबोध देनेवाले, शासन की महान् सेवा करने वाले श्री जिनचन्द्रसूरिजी चतुर्थ दादा गुरूदेव हुए।
चारों दादा साहेब महान् प्रमाणिक, ज्ञान व चरित्र दोनों में कौस्तुभ मणि के समान निर्मल, ज्ञानी, युगप्रधान के धारक, अध्यात्म अवयोग बल से परिपूर्ण थे। धर्म की धूमिल पड़ती ज्योति को प्रज्ज्वलित किया, अनेक संकटों का निवारण किया तथा अनगिनत ग्रंथों की रचना कर साहित्य का विकास किया।
उनके नाम, जप में वह शक्ति है कि भक्तों की इच्छायें स्वत: ही पूर्ण हो जाती है। आज भारत की दसों दिशाओं में तकरीबन ११ हजार प्राचीन अर्वाचीन दादा बाड़ियाँ हैं। अजमेर, दिल्ली, मालपुरा, बिलाड़ा ये चमत्कारी चार धाम के रूप में प्रसिद्ध हैं।
युगप्रधान श्री जिनदसूरिजी-प्रथम दादा : अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न क्रांतिकारी जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरिजी महाराज साहेब का जन्म ११३२ में गुजरात के धोलका नगर में मंत्री वांछिगशाह की धर्मपत्नी वाहड़देवी की रत्न कुक्षी से हुआ। सं. ११४१ में उपाध्याय धर्म देवगणि से धोलका में दीक्षित हो वे मुनि सोमचन्द्र बने।
कुशाग्र बुद्धि सम्पन्न मुनि सोमचन्द्र को देव भद्राचार्य ने सर्वसम्मति से ११६९ चित्तौड़ नगरी में जिनवल्लभसूरि के पट्ट पर आचार्य पद पर विभूषित कर जिनदत्त सूरि का नाम लिखा।
उज्जैन में साढ़े तीन करोड़ माया बीज ह्रिंकार का जाप किया था। योगनियाँ छलने आयी किन्तु आपके तप, जप और ब्रह्मचर्य के तेज के समक्ष नत मस्तक हो सात वरदान दिये। अजमेर प्रतिक्रमण के मध्य कड़कड़ाती बिजली को पात्र तले स्तंभित किया। भरूच शहर में मृतक काजी पुत्र को एवं बड़ नगरी में मरी गाय को जीवित किया।
नागौर में धनदेव श्रावक ने कहा- हम सभी अनुयायी बनेंगे, बशर्ते आप चैत्यवास की पुष्टी करें। गुरूदेव बोले- तुम्हारी मानूँ या महावीर की आज्ञा पालूँ। चाहे कोई प्रसन्न हो या नाराज, वही कहूँगा जो आत्म हितकर व सत्य होगा, यह थी उनकी निर्भिक स्पष्टवादिता।
गिरनार अधिष्ठात्री अम्बिका देवी ने प्रसन्न हो अठ्ठम् आराधक अम्बड श्रावक के हाथ में स्वर्णाक्षरों से लिख कर कहा- ‘जो पढ़ेगा वही युग प्रधान होगा।’
घूमते-घूमते अनेक आचार्यों के पास गये पर क्या सूर्य विकाशी कमल सूर्य के बिना विकसित हो सकता है? नहीं ना, अंतत: पहुँचा वह पाटन विराजित जिनदत्त सूरिजी के पास, आत्म प्रशंसा देख वासक्षेप डाल शिष्य को आदेश दिया, उन्होंने सहर्ष सुनाया।
धसानुदासा इव सर्व देवा, यदीय पादाब्ज तले लुठन्ति।
मरूस्थले कल्पतरू स: जीयात् युग प्रधानो जिनदत्त सूरि:।।
तब से आप युगप्रधान के रूप में प्रख्यात हुए, गुरूदेव की भक्तोपार अपरंपार महिमा थी। विचरण मार्ग में व्यन्तर उपद्रव ग्रस्त एक भक्त श्रावक ने गुरूदेव जिनदत्त सूरिजी महाराज से निवेदन किया, गुरूदेव ने अपने ज्ञान बल से देखा यह व्यन्तर यंत्र-मंत्र-तंत्र से असाध्य है, अत: उसी क्षण ‘‘गणधर सत्पतिका’’ की रचना कर भक्त को दिया, आज्ञानुसार मात्र उस शास्त्र पर दृष्टि लगाये रखा, फलस्वरूप पहले दिन व्यन्तर काय प्रवेश न कर सका, दूसरे दिन गृह प्रवेश और तिसरे दिन तो आया ही नहीं, श्रावक स्वस्थ हो और भी श्रद्धाशील बन गया।
सिंध देश की पंचनदी में पांच पीरों को साधा। डूबते व्यक्ति को अपनी ऊनी शाल में बिठा किनारे लगाया, मुल्तान नगर के प्रवेश से जैनेत्तर अंबड के ईष्र्यावश कहने पर, पत्तन में आप इसी के साथ पधारे। विरोधी से विरोधी के प्रति भी करूणा धारा बहती थी, गुरूदेव के अन्तरमानस में।
विक्रमपुर में हा-हाकार मचा था, हैजा मौत का तांडव नृत्य कर रही थी, बड़ी दर्दनाक स्थिति थी। उच्चनगर भी कष्ट जलंदर से प्रताड़ित था। गुरूदेव ने संयम साधना से भयंकर उपद्रवों को शांत किया, इस उपकार से उपकृत हो ५०० बालक ७०० बालिकाएं दीक्षित हुये।
दसियों राजाओं सहित लाखों जैनतरों को अहिंसा सत्य की शिक्षा दे जैनी बनाया। सिंध देशीय श्रावकों की प्रार्थना पर उन्हें ‘‘मकराना’’ से ३२ अंगुल की जिनमूर्ति बनवा कर लाने को कहा, कुछ आवश्यक सूचनाएँ भी दी।
यथा समय प्रतिमा आ गई उसे देख गुरूदेव बोले- तुम्हें धोखा हुआ। अंजन शलाका मार्ग में हो जाने से तुम्हारी लक्ष्मी प्राप्ति का मनोरथ असफल हो गया, पुन: भटनेर से आते वक्त मणीभद्र प्रतिमा को भय से पंच नदी में डाल दिया, तब दयानिधी गुरूदेव के साधने पर मणिभद्र ने वरदान दिया।
सिंधू के प्रत्येक ग्राम में एक व्यक्ति धनाढ्य होगा, शेष खाते-पीते सुखी, वैसा ही हुआ, होनी को नमस्कार है।
मारवाड़, सिंध, गुजरात, बागड, मेवाड, सोरठ, मालवा आदि भारत के विभिन्न प्रांतों में जैन शासन की महान सेवा के साथ-साथ लोक हितार्थ अर्थ गांभीर्य युक्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषा में अनेक ग्रन्थ लिखे। नवासी वर्ष की अवस्था में अन्त समय जान अनशन किया। सं.१२११ आषाढ़ शुक्ला एकादशी को यह तेजस्वी सूर्य अस्त हो गया। श्रद्धांजली स्वरूप प्रतिवर्ष अजमेर में दादा मेला भरता है।
प्रार्थना करूणा से उत्पन्न होती है, मन में करूणा के भाव
झाबुआ: जीवन में बहुत से क्षण ऐसे आते है जहां सब कुछ होते हुए व्यक्ति स्वयं को विवश महसूस करता है, उस समय धन-दौलत, परिवार कोई भी सहयोग नहीं कर सकता, उस समय सिर्फ धर्म और प्रार्थना, दुआ ही काम आती है। प्रार्थना सिर्फ मन से होती है, धन से नहीं होती, उस समय धन शून्य हो जाता है, कभी-कभी परमात्मा के पास निस्वार्थ भाव से की गई प्रार्थना व्यक्ति की कबूल हो जाती है।
परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है, मैंने मध्यप्रदेश और गुजरात दोनों को देखा है पर दोनों में अंतर यह है कि गुजरात में लोग धर्म के प्रति आस्था, विश्वास रखते हुए श्रद्धावान होते हैं, वहां हर गांव में मंदिर और गौशाला देखने में आती है, क्योंकि उनके हृदय में करूणा है, प्रार्थना भी करूणा से ही उत्पन्न होती है। हम प्रतिस्पर्धा में जीते हैं जबकि सहयोग की भावना के साथ जीना चाहिये, हम जीवन में कितने ही मॉल बना लें, बंगले बना लें, आधुनिक ज्वैलरी खरीद लें, हम कितने भी आधुनिक क्यों न बन जायें, पर अध्यात्म से जुड़े रहें, तभी हमारी आत्मा का कल्याण संभव होगा। शास्त्रों में लिखा है कि पंचम काल में गाय के बछड़े, धर्म का रथ खिंचेगें, वह बात आज सार्थक होती दिख रही है कि हमारी युवा पीढी का झुकाव धर्म के प्रति बहुत ज्यादा बढा हुआ दिख रहा है। उक्त प्रेरणादायी बात वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय ऋषभचन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में कही।
दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की पाट परंपरा के अष्टम पट्टधर प.पू. वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय ऋषभचन्द्रसूरिश्वरजी मसा. आदि ठाणा ३ का मंगलमय झाबुआ नगर प्रवेश स्थानीय दिलीपगेट स्थित महावीर बाग जिन मंदिर प्रांगण में हुआ।
आचार्यश्री यहां से विशाल चल समारोह के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए स्थानीय बावन जिनालय पहूंचे, आचार्यश्री ने दर्शन वंदन किये, तत्पश्चात धर्मसभा का आयोजन हुआ। बाहर से पधारे हुए अतिथियों ने दीप प्रज्जवलन किया। मोहनखेड़ा तीर्थ के कार्यवाहक ट्रस्टी सुजानमल सेठ ने श्री संघ के व्यवस्थापक एवं गौडी पाश्र्वनाथ जिन मंदिर प्रमुख को गुरू सप्तमी महामहोत्सव में पूरे जैन श्री संघ सहित पधारने का निमंत्रण दिया। आचार्यश्री को फाईव स्टार ग्रुप एवं जैन श्री संघ झाबुआ द्वारा कांबली ओढाई गई। प्रवचन पश्चात आचार्यश्री ने महामांगलिक का श्रवण समाजजनों एवं गुरूभक्तों को कराया।
आचार्य श्री के नगर प्रवेश के अवसर पर नाश्ता नवकारसी एवं महामांगलिक के पश्चात स्वामी वात्सल्य का आयोजन सुभाषचन्द्र कोठारी, मुकेश रूनवाल, संतोष नाकोडा, निलेश शाह,संजय नगीनलाल कांठी आदि द्वारा किया गया, इस अवसर पर राजगढ श्री संघ से मोहनखेडा तीर्थ मैनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ,संतोष चत्तर,
दिलीप भंडारी, नरेन्द्र भंडारी, पार्षद गोलू सेठ, आशीष चत्तर, तीर्थ के महाप्रबंधक अर्जुन प्रसाद मेहता, महेन्द्र जैन, स्थानीय श्रीसंघ कांतिलाल बाबेल, कांतिलाल पगारिया, संजय मेहता, यशवंत भंडारी, संतोष नाकोडा, संजय कांठी, मुकेश रूनवाल, सुनिल राठौर, हेमेन्द्र बाबेल, सुभाष कोठारी, कमलेश कोठारी, सतीश कोठारी, मनोज मेहता, अशोक सकलेचा, सुरेश कांठी, मनोहर मोदी, नरेन्द्र पगारिया, अजय रामावत, मनोहर छाजेड, कैलाश सकलेचा, प्रकाश लोढा आदि उपस्थित थे।
प्रथम जैन को मिला इन्फोसिस फाउंडेशन अवार्ड
हाल ही में लवली प्रोफेसनल युनिवर्सिटी जालंधर में चार दिवसीय इंडियन साइंस काग्रेंस का शुभारम्भ माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया, जिसके अंतर्गत इन्फोसिस लैब। राष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, इस प्रतियोगिता में मेयर वल्र्ड स्कूल के विद्यार्थी प्रथम जैन सुपुत्र श्री सुनील एवं रुचि जैन को इन्फोसिस फाउंडेशन अवार्ड इजराइल के नोबेल विजेता प्रोफेसर अवराम हशको एवं अमेरिका के प्रोफेसर फैड्रिक डंकन हाल्डेन द्वारा प्रदान किया गया। प्रथम जैन ने पूरे पैन इंडिया के टाप दस पोजीशन में रहकर अपने देश, स्कूल तथा मातापिता का नाम रोशन किया। प्रथम को दिए गए अवार्ड के लिए मेयर वल्र्ड स्कूल के वाईस चेयर पर्सन एवं मोटिवेशनल टीचर नीरजा मेयर, क्लास टीचर राखी कपूर, साइंस मोटिवेशनल टीचर कीर्ति मेहता एवं फिजिक्स के अध्यापक रितेश भारद्वाज का अहम योगदान रहा है, इस सुअवसर पर लवली प्रोफेशनल युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर अशोक मित्तल ने भी प्रथम जैन को शुभकामनाएं दी। प्रोफेसर हशको ने स्कूली विद्यार्थियों को विज्ञान युक्त भारत का भविष्य बताते हुए कहा कि एक दिन इनमें से बहुत से विद्यार्थी महत्त्वपूर्ण खोज करेंगे जो कि मानवता के लिए वरदान साबित होंगे, साथ ही प्रोफेसर डंकन हाल्डेन ने कहा कि जब किसी को किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो रिसर्च की उत्पत्ति होती है, उन्होंने साइंस को कूल बताते हुए कहा कि सभी स्कूली लड़के और लड़कियाँ मैथमैटिक्स और फिजिक्स जैसे विषयों को पढ़ाई के लिए जरूर चुनें, साथ यह भी कहा कि साइंस विषय का चयन मानवता की भलाई और सभी के जीवन में सुधार लाने के लिए करें ना कि किसी नोबेल पुरस्कार जीतने के लिए।
प्रथम जैन ने अपनी उक्त उपलब्धि का संपूर्ण श्रेय अपने अध्यापक वर्ग एवं अपने माता-पिता को देते हुए उनका हार्दिक दिल से धन्यवाद किया, प्रथम जैन के माता-पिता के अनुसार प्रथम को प्रारम्भ से ही साइंस अभिरुचि रही है तथा वह भविष्य में निःसंदेह साइंस के क्षेत्र को अपना विशेष योगदान देगा।
मुंबई: विख्यात जैन तीर्थ सम्मेत शिखरजी में सांवलिया पाश्र्वनाथ भगवान के अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारियां जोर शोर से चल रही है। श्वेताम्बर जैनों के इस प्रमुख तीर्थ का प्रतिष्ठा महोत्सव ३ मार्च को होगा, जिसमें विभिन्न देशों से लाखों श्रद्धालू भाग लेने पहुंचेंगे। मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, जयपुर, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर, नागपुर आदि से भी हजारों लोग इस प्रतिष्ठा महोत्सव में पहुंचेगे। गच्छाधिपति आचार्य श्रीराजशेखर सूरीश्वर महाराज की निश्रा में हो रहे इस अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में कई प्रमुख आचार्य एवं साधु-साध्वी भगवंत भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहेंगे। सम्मेत शिखरजी में सांवलिया पाश्र्वनाथ मंदिर को श्वेताम्बर जैनों के सर्वाधिक प्राचीनतम मंदिर के रूप में माना जाता है।
प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के अध्यक्ष कमलसिंह रामपुरिया, चेन्नई निवासी विख्यात समाजसेवी रमेश मुथा इस प्रतिष्ठा महोत्सव के संयोजक हैं एवं सह संयोजक अजय बोथरा एवं प्रकाश के संघवी हैं। फाल्गुन कृष्णा १२ को रविवार के दिन ३ मार्च, २०१९ को सांवलिया पाश्र्वनाथ मंदिर का यह प्रतिष्ठा महोत्सव होगा। गच्छाधिपति आचार्य श्रीराजशेखर सूरीश्वर महाराज, आचार्य विनयसागर सूरीश्वर महाराज, आचार्य जिनपियूषसागर सूरीश्वर महाराज, आचार्य राजपरम सूरीश्वर महाराज, आचार्य राजहंस सूरीश्वर महाराज, आचार्य मुक्तिप्रभ सूरीश्वर महाराज, मुनिराज धर्मघोष विजय महाराज एवं विभिन्न समुदायों के श्रमण-श्रमणीवंद की प्रभावक निश्रा में यह प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित हो रहा है। जैन धर्म के २४ में बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि एवं अनंत आत्माओं की साधना स्थली सम्मेत शिखरजी में इस प्रतिष्ठा महोत्सव में भाग लेने हजारों जैन संघों के लाखों लोग भाग लेने आ रहे हैं।
आचार्य जिनपियूषसागर सूरीश्वर महाराज के मार्गदर्शन में इस तीर्थ का जिर्णोद्धार संपन्न हुआ है। प्रज्ञाभारती प्रवर्तिनी साध्वी चंद्रप्रभाश्रीजी का इस मंदिर के जिर्णोद्धार प्रेरक के रूप में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन धर्म के अनुयायियों में इस प्रतिष्ठा महोत्सव को एक दुर्लभ अवसर के रूप में देखा जा रहा है। लोगों का मानना है कि सम्मेत शिखर महातीर्थ के मुख्य मंदिर की प्रतिष्ठा को तो वर्तमान युग के किसी भी व्यक्ति ने देखा नहीं है लेकिन अंजनशलाका-प्रतिष्ठा व दीक्षा का यह महोत्सव तो सभी के समक्ष हो रहा है, अतः लोगों में काफी उत्साह है। सम्मेत शिखरजी की विभिन्न चोटियों से २० तीर्थंकरों के साथ अनगिनत मुनि मोक्ष में गये हैं, इसीलिए इस भूमि को अत्यंत प वित्र माना जाता है।
श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा के ९ दशक की यात्रा
कोलकाता: सन् १९२८ में संस्थापित श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा ने जैन दर्शन के रत्नत्रय सम्यक ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को आधार बना कर सेवा, शिक्षा एवं साधना के लक्ष्य से मानव सेवा के क्षेत्र में कदम रखा एवं उत्साही, कर्मठ, सेवाभावी तथा अथक अध्यवसायी कार्यकत्ताओं ने शीघ्र ही उसकी लोक कल्याणककारी प्रवृतियों एवं क्रिया कलापों को न केवल गति प्रदान की अपितु नये-नये आयामों को जोड़ा एवं उसके मानव सेवी प्रकल्पों का विस्तार भी किया। संस्थाओं की सफलता भी ऐसे ही कर्मठ, कार्यकत्र्ताओं के स्नेह, सौजन्य एवं उदारता से प्रगति पथ पर अग्रसर रहती है, अकुंठ भाव से ९ दशक तक निरन्तर सेवा कार्यों में लगे रहना इसकी परिपक्वता की ऐसी कहानी जो अत्यन्त रोचक एवं लोकप्रिय है।
एक समय सभा के कर्णदारों का हठ निश्चय हो गया कि बिना शिक्षा के भावी पीढ़ी की उन्नति सम्भव नहीं, इसी कारण १७ मार्च १९३४ को १४२ए, क्रास स्ट्रीट में भाड़े की जमीन पर श्री जैन विद्यालय स्कूल की स्थापना एक शिक्षक एवं एक छात्र से हुई, निरन्तर छात्रों की बढ़ती संख्या से १८६ क्रास स्ट्रीट का मकान खरीद किया गया, पर छात्रों की वृद्धि बढती गयी, अत: १८डी, सुकुलर लेन, कोलकाता-०१ में जगह खरीदकर मकान निर्माण कर ११ अप्रैल १९५८ को सभा व श्री जैन विद्यालय दोनों का स्थान्तरण वहाँ कर दिया गया, श्री जैन विद्यालय, माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का शुभारंभ किया गया, विद्यालय का एकमात्र उद्देश्य सुसंस्कारी बालकों का निर्माण करना व उच्च शिक्षा देना, जो देश के भविष्य के निर्माता की अहम भूमिका का निर्वाह करेंगे और सुनागरिक बनकर भारतीय संस्कृति की पताका विश्व में फहरायेंगे। विद्यालय दिन-प्रतिदिन उन्नति के शिखर पर था, सन् १९६८ को इस भवन में जैन चिकित्सालय की स्थापना व १ फरवरी १९७० में श्री जैन भोजनालय की स्थापना मात्र रू.४५/- में जैनियों को दो वक्त का शुद्ध सात्विक भोजन मिलना शुरू हो गया।
शिक्षा, सेवा और साधना की यात्रा इस प्रकार आगे बढ़ती गई:
१९९२ – श्री जैन विद्यालय हावड़ा (छात्रों के लिए)
– श्री जैन विद्यालय हावड़ा (छात्राओं के लिए)
१९९७ – श्री जैन हास्पीटल एण्ड रिसर्च सेन्टर हावड़ा
१९९८ – हरकचन्द कांकरिया जैन विद्यालय, जगदल
२००६ – तारादेवी हरखचन्द कांकरिया जैन कॉलेज (काशीपुर)
२००८ – कमलादेवी सोहनराज सिधवी जैन कॉलेज ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) काशीपुर
२०१७ – कुसुम देवी सुन्दरलाल दुगड़ जैन डेन्टल कॉलेज एण्ड हॉ स्पीटल (काशीपुर)
२०१७ – सुशीला देवी पन्नालाल कोचर जैन फ्यूचरीस्टीक एकेडेमी का निर्माण शुरू राजरहाट, न्यूटाऊन २ (दो) एकड़ जमीन पर।
सभा अपने ९ दशक की यात्रा पूर्ण कर दिन-प्रतिदिन प्रगती की ओर बढ़ रही है, सभा सबको साथ लेकर आगे बढ़ती रहे यही ‘जिनागम’ परिवार की प्रभु से प्रार्थना है, इतने बड़े नेटवर्क को तैयार करने में सभा के कर्णधारों की सूझबूझ व कार्यकताओं व सभा के सदस्यों से सहयोग लेने की कार्यप्रणाली एकदम अद्भुत है, कार्यकताओं को दानदाताओं के बराबर सम्मान देते आये हैं, यही नहीं उनके सुख व दु:ख में पूरा सभा परिवार उनके साथ रहता है, ये अपनी बात पर अड़े नहीं रहते वरन् सही बात को समझ कर सर्वसम्मति से कार्य करते है, कोई कहासुनी हो गई तो मन से ‘खतम खामणा’ करते हैं, प्रतिदिन स्वाध्याय करने के कारण ही इनकी सोच व बोल एकमात्र अच्छा लय है, यानी पूरे समुदाय को साथ लेकर चलने की क्षमता के कारण यह सम्भव है, ‘कलियुगे संघटन शक्ति’ का यही राज है, मैंने यह कार्य स्वान्त: सुखाय किया व स्वामी विवेकानन्द के इन वाक्य पर first learn to obey command/will come automatically पर अमल करने की चेष्ठा की।
पुण्याई समाप्त होने पर सेठ से विदा होती लक्ष्मी से वर मांगा कि उनकी सन्तानें मिलजुल कर प्रेम सहयोग व सद्भाव पूर्वक रहे। लक्ष्मीजी वर देकर विदा हो गई, किन्तु कुछ समय बाद स्वत: लौट आई, जिज्ञासा करने पर बताया कि जहां प्रेम, पुरूषार्थ व श्रम है वहां पर लक्ष्मी को रहना ही होगा, यही रहस्य है सभा के उन्नयन का, कार्यकत्ताओं का पुरूषार्थ, प्रेम और सद्भाव इसकी विकास यात्रा का आधार है।
सभा का यह पारिवारिक रूप सदैव बना रहे एवम् कार्यकर्ता इसी तरह कारवां को आगे बढ़ाते रहें, इसी भावना के साथ समस्त जैन समाज की एकमात्र पत्रिका जिनागम का आव्हान ‘हम-सब जैन हैं’ सफल हो।
- विनोद मिन्नी जैन उपाध्यक्ष एस.एस. जैन सभा
आनंद से जियो (लघुकथा)
- सुभाष जैन ‘हमराही’, पानीपत (हरियाणा)
स्वपन में एक आदमी ने देखा कि वह मर गया है, और भगवान उसके पास आ रहे हैं और उनके हाथ में एक सूटकेस है, पास आकर भगवान ने कहा ‘पुत्र चलो अब समय हो गया। आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जवाब दिया- ‘अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं,’ मैं क्षमा चाहता हूँ, किन्तु अभी चलने का समय नहीं है, आपके इस सूटकेस में क्या है? भगवान ने कहा- तुम्हारा सामान, मेरा सामान? ‘आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं, मेरे कपड़े, मेरा धन? ‘भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा- वस्तुएं, कपड़े, धन तुम्हारा नहीं हैं, ‘ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं और पृथ्वी पर ही रहेगा आदमी ने पूछा- ‘मेरी यादेंं कहाँ है? भगवान ने जवाब दिया- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं, वे तो परिस्थिति जन्य थीं ‘तो ये मेरा परिवार और मित्रगण? ‘भगवान ने जवाब दिया- क्षमा करो वे तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे, वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे ‘फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा?
‘भगवान ने मुस्कुरा कर कहा- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है ‘तो क्या यह मेरी आत्मा है ‘नहीं वह तो मेरी है- भगवान ने कहा, भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस लिया वह खाली था।’
आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा- ‘मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था, भगवान ने जवाब दिया- यही सत्य है। ‘प्रत्येक क्षण जो तुमने आत्मसुख में जिया, वही तुम्हारा था। जिंदगी क्षणिक है और वे ही क्षण तुम्हारे हैं, जो क्षण तुमने वर्तमान में जिये, आत्मानन्द में जीये अपनी जिंदगी जिये, जीवन में खुश रहना कभी न भूलो, यही बात महत्त्वपूर्ण है, वह समझ गया कि भौतिक वस्तुओं में सुख नहीं- सुखाभास है, इसलिये ‘जिनागम’ के सम्मानित पाठकों और प्रशंसकों से विन्रम आग्रह है कि हमें जो सृष्टि से अनमोल मनुष्य भव रूपी जीवन प्राप्त हुआ है, हमें इस जीवन के प्रत्येक पल और क्षणों का आनंदित और हर्षोल्लास से ओत-प्रोत होकर जीना चाहिए |
जिनालय की वर्षगांठ पर हुआ ध्वजारोहण
रामजी का गोल: जैन तीर्थ रामजी का गोल के अधिनायक श्री मेरूतुंग पाश्र्वनाथ जिनालय व दादावाड़ी की द्वितीय वर्षगांठ पर ध्वजारोहण के साथ त्रिदिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ।
तीर्थ ट्रस्ट मंडल अध्यक्ष भीमराज बोहरा व तीर्थ ट्रस्ट कार्याध्यक्ष शंकरलाल पड़ाइया ने बताया कि महोत्सव के तीसरे दिन सतरभेदी पूजा, गुरु भगवंतों का प्रवचन, देव-दर्शन, पूजा, आरती, मंगल दीपक रात्रि भक्ति भावना आदि कार्यक्रम हुए, दोपहर विजय मुहूर्त में मंत्रोच्चार के साथ जिनालयों के शिखर पर ध्वजारोहण किया गया।
तीर्थ ट्रस्ट लूणकरण सिंघवी व त्रिदिवसीय महोत्सव के प्रचार प्रमुख सुरेशकुमार पारख ने बताया कि इस दौरान आवास, भोजन, यातायात, वैयावच्च, शामियाना, भक्ति आदि की व्यवस्था की गई थी, कार्यक्रम में सम्पूर्ण दिन
का साधार्मिक भक्ति का लाभ जगदीशचंद बगतावरमल बोहरा राणासर ने लिया। पूजा का लाभ सोनाणी बोहरा परिवार ने लिया। ट्रस्ट मंडल की ओर से लाभार्थी परिवारों का बहुमान किया गया।
कार्यक्रम में मुम्बई, सुरत, अहमदाबाद, जोधपुर, बालोतरा, कच्छ-भुज आदि स्थानों से सैकड़ों श्रद्धालु उमड़े। विशिष्ट अतिथियों में बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन, नाकोड़ा ट्रस्ट अध्यक्ष दानदाता रमेशभाई मूथा, नाकोडा पूर्व भामाशाह रमेश भाई मुथा, नाकोड़ा के पूर्व अध्यक्ष अमृतलाल छाजेड़ व गुड़ामालानी उपखंड अधिकारी दिनेश विश्नोई व तहसीलदार नारायणलाल सुथार का स्वागत किया गया।