मन को आनंद, उत्साह और ऊर्जा भरा बनाती है संबोधि साधना
जोधपुर: राष्ट्रगौरव, ध्यानगुरु संत चंद्रप्रभ जी ने कहा कि स्वस्थ रहने के पांच चरण हैं प्रॉपर डाइट, प्रॉपर एक्सरसाइज, प्रॉपर ब्रीदिंग, प्रॉपर मेडिटेशन और प्रॉपर रिलैक्सेशन।
संबोधि साधना इन पांचों चरणों को सीखने की वैज्ञानिक और व्यावहारिक पद्धति है। संबोधि का मतलब है सम्यक बोध या संपूर्ण बोध। होश और बोध पूर्व जीवन जीने की आध्यात्मिक कला का नाम है संबोधि साधना, उन्होंने कहा कि मन के चार प्रकार है- होटल मन, हॉस्पिटल मन, होम मन और हेवन मन।
होटल मन अर्थात भोग विलास में डूबा हुआ मन, हॉस्पिटल मन अर्थात बीमार मन, होम मन यानी संतुलित मन और हेवन मन यानी आनंद, उत्साह और ऊर्जा से भरा हुआ मन। संबोधि साधना करने से इंसान होटल और हॉस्पिटल मन से मुक्त होता है और होम मन से हेवन मन की और गतिशील होना शुरू हो जाता है।
संतप्रवर जोधपुर के कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में १२ से १७ मार्च तक आयोजित पांच दिवसीय संबोधि ध्यान योग शिविर के दौरान देश भर से आए साधकों को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने कहा कि शांति, सिद्धि और प्रगति के द्वारों को खोलने का दुनिया में सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग ध्यान है, इंसान जब-जब दुखी, चिंतित अथवा तनावग्रस्त हुआ तब-तब ध्यान ने उसे समाधान का मार्ग दिया है, ध्यान ने अतीत को संवारा है और इसी से वर्तमान और भविष्य को संवारा जा सकता है, ध्यान तो जिंदगी की घड़ी में भरी जाने वाली चाबी है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपनेचौबीस घंटों को उर्जित कर सकता है।
अध्यात्म का सार है ध्यान, जिस ईश्वरीय तत्त्व की तलाश व्यक्ति जीवन भर बाहर करता है, वह तो उसके भीतर है जिसका साक्षात्कार ध्यान से संभव है।
महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों ने ध्यान के माध्यम से ही परम सत्य को प्राप्त किया था, उन्होंने कहा कि शरीर के रोगों को मिटाने के लिए मेडीसिन है और मन के रोगों को मिटाने के लिए मेडीटेशन है, अगर प्रतिदिन केवल बीस मिनिट का ध्यान किया जाए तो दिमाग की दौ सौ बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। मेडीसिन रोगों को मिटाती नहीं बल्कि उन्हें दबाती है और जिस तरह से आज मेडीसिन के साइड इफेक्ट बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में एकमात्र मेडीटेशन ही परफेक्ट एवं साइड इफेक्ट से मुक्त है, हम मेडीटेशन अपनाएं और मेडीसिन से छुटकारा पाएं।
उन्होंने कहा कि ध्यान संसार को त्यागने की नहीं, संसार में जीने की कला है। सौ जगह भटकते मन को एक जगह लाकर स्थिर करने का नाम है ‘ध्यान’ उन्होंने कहा कि ध्यान केवल आँखें बंद कर बैठने का नहीं, वरन् जीवन की हर छोटी-से-छोटी गतिविधि को जागरूकता पूर्वक करने का नाम है। ध्यान का उद्देश्य व्यक्ति को एकाग्र और तरोताजा करना है। आंधे घंटे का ध्यान करके व्यक्ति चौबीस घंटों को ऊर्जावान बना सकता है। सब्जी का फीकी या खारी हो जाना, रोटी का जल जाना, पापड़ का सही न सिकना, चलते वक्त पत्थर से ठोकर खा बैठना, दुर्घटना का शिकार हो जाना, दाँत के नीचे जीभ का आना, ये सब और कुछ नहीं, ध्यान से चूकने के परिणाम हैं। ध्यान के प्रयोग कर विद्यार्थी शिक्षा में और व्यापारी व्यापार में नई सफलताओं को छू सकता है।
tध्यान से पाएं चंचलता से मुक्ति- संतश्री ने कहा कि आज हर व्यक्ति चंचलता से परेशान है। पूजा में, माला में, पढ़ाई में मानसिक चंचलता के चलते ये लोगों को सकारात्मक परिणाम नहीं दे पाते हैं। ध्यान से चंचलता का समाधान संभव है। ध्यान बिना सारा धर्म-कर्म निष्फल है, जिस तरह महिला पापड़ सेकते समय एकाग्र, तन्मय व जागरूक रहती है वैसे ही हर कार्य को व्यक्ति एकाग्रता से सम्पादित करने लग जाएं तो जीवन की प्रगति निश्चित है, जैसे नियमित अभ्यास के कारण गृहिणी आँखों पर पट्टी बांधकर भी अच्छी रोटी बेल सकती है, वैसे ही लगातार ध्यान के प्रयोग से मन एकाग्र व शांत हो जाता है और व्यक्ति की मानसिक क्षमता, बौद्धिक प्रज्ञा और आध्यात्मिक शक्तियाँ जाग्रत होने लगती हैं।
ध्यान का मार्ग सबसे सरल-ध्यान के मार्ग को सबसे सरल बताते हुए संतश्री ने कहा कि पूजा करने, सामायिक-प्रतिक्रमण करने अथवा तीर्थयात्रा करने के लिए तो व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है, पर ध्यान के लिए कुछ करना नहीं पड़ता वरन् जहाँ बैठे हैं, वहीं आँखें बंद कर स्वयं में उतरना होता है।
विपरीत वातावरण में भी सहज रहने, हर निर्णय को जागरूकता पूर्वक कर लेने की कला का विकास ध्यान से होता है। अगर कभी किसी काम में मन न लगे अथवा तन-मन में बैचेनी का अनुभव हो तो व्यक्ति किसी शांत स्थान पर जाकर बैठ जाए और ध्यान में उतर जाए, वह पुनः नई ताजगी और आनन्द से भर उठेगा।
ध्यान में निम्न बातों का रखें ध्यान- ध्यान की पूर्व भूमिका के रूप में संत प्रवर ने कहा कि ध्यान के लिए शांत एवं स्वच्छ स्थान का चयन करें, कपड़े श्वेत व ढीले हों, पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन में बैठे, मेरुदण्ड सीधा रखें, हाथों को ज्ञानमुद्रा अथवा योगमुद्रा में रखें, आँखों को बंद कर आती-जाती श्वासधारा पर ध्यान करें और क्रमशः हृदय, मस्तिष्क और सिर की चोटी पर पाँच-पाँच मिनिट मन को एकाग्र करें, यह स्वयं को ऊर्जावान और आनन्दमय बनाने का रामबाण प्रयोग है। संतप्रवर ने ध्यान की सिद्धि के लिए अति सम्पर्क से बचने, आइने की तरह जिंदगी जीने, एकांत व मौन का अभ्यास करने और हर कार्य को सावधानी से करने के मंत्र दिए।
डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर द्वारा शिविर में साधक भाई-बहनों को योग का प्रशिक्षण दिया गया।
संबोधि धाम के महासचिव स्वरूपचंद बच्छावत ने बताया कि राष्ट्रसंत ललितप्रभ जी और चंद्रप्रभ जी का फरवरी एवं मार्च महिने में प्रवास जोधपुर स्थित संबोधि धाम में रहेगा जहां उनके सानिध्य में साहित्य एवं साधना से जुड़े विविध कार्य सम्पन्न होंगे।
जरूरतमंद परिवारों की सहायता कर पुण्य का उपार्जन कर
लुधियाना: महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसाइटी रजि. द्वारा राशन वितरण समारोह सिविल लाईन्ज़ के जैन स्थानक में आयोजित किया गया। समारोह का शुभारंभ महामन्त्र नवकार के समुहिक उच्चारण से शुरू किया गया। लुधियाना के २ प्रसिद्ध उद्योगिक घराने स्वास्तिक फीड्स परिवार के ओर से स्व. श्रीमति विनय जैन की पुण्य स्मृति सुरेश जैन, राजन जैन, विधुशी जैन, जिनेशा जैन, समृद्धि जैन परिवार के इलावा दानवीर सुश्रावक कीमति लाल जैन के जन्म दिन के उपलक्षय में प्रवेश जैन, संजीव जैन आदि परिवार की ओर से ५० जरूरतमंद परिवारों को राशन वितरण किया गया, महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसाईटी की चेयरपरसन आर्दश जैन, प्रधान नीलम जैन, महामंत्री रीचा जैन ने बताया कि, यह हमारी समाजिक जिम्मेवारी भी है जो परिवार आज असहाय महसूस कर रहे हैं उनकी सहायता कर हम पुण्य का उपार्जन करें, इसी के साथ-साथ यह दोनों परिवार मानव सेवा कार्यों के लिए अपनी एक अलग पहचान रखते हैं और इन दोनों परिवारों का सहयोग भी हमेशा मिलता रहता है, इस अवसर पर दोनों परिवारों को समुहिक तौर पर माला एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया, इस मौके पर महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसायटी की सदस्या नीरा जैन, रमा जैन, नीलम जैन, विनोद देवी सुराणा, मंजू सिंघि, पूनम जैन, प्रभा सूद, रेणू जैन, चांदनी जैन, रजनी जैन, कविता जैन, उपमा जैन, नीलम जैन, पूनम जैन किडले, शिवाली जैन, प्रवेश जैन, एवं भगवान महावीर सेवा संस्थान के प्रधान राकेश जैन, उप-प्रधान राजेश जैन, सहमंत्री सुनील गुप्ता, राकेश अग्रवाल, अरिदमन जैन इत्यादि गणमान्य उपस्थित थे।
-नीलम जैन
परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा रचित गीत
भगवान महावीर अहिंसा पुरस्कार से सम्मानित होंगे विंग कमांडर अभिनंदन
दिल्ली: श्री दिगम्बर जैन महासमिति द्वारा पुरस्कार की घोषणा की गई है, हर्ष का विषय है कि श्री दिगम्बर जैन महासमिति द्वारा भगवान महावीर अहिंसा पुरस्कार का शुभारंभ किया गया है। पुरस्कार किसी भी क्षेत्र में मानवता, देश, धर्म व समाज के लिए असाधारण कार्य करने वाले व्यक्तित्व को प्रदान किया जाएगा, इसके अंतर्गत रूपए दो लाख इक्यावन हजार की राशि, प्रशस्ति पत्र व शील्ड प्रदान की जाएगी, यह प्रथम पुरस्कार देश का गौरव बढ़ाने वाले पराक्रमी विंग कमांडर श्री अभिनंदन वर्धमान सिमहैकुट्टी (जैन) को देश की रक्षा, अदम्य साहस, पराक्रम व निष्ठा के लिए प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा, श्री दिगम्बर जैन महासमिति विंग कमांडर अभिनंदन जी को बधाई देते हुए तथा पुरस्कार की घोषणा दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष मणिंद्र जैन ने की है।
दिगम्बर महासमिती कई सालों से सामाजिक कार्यों में कार्यरत है। पुरस्कार दिल्ली में १७ अप्रैल को भगवान महावीर जन्मकल्याण महोत्सव में दिया जा सकता है।
मंजू लोढा को मिला जीवन गौरव सम्मान
मुंबई: महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी ने ‘परमवीर’ की लेखिका श्रीमती मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शुक्ल, साहित्यकार रंगनाथ तिवारी और रामेश्वर नाथ मिश्र ‘अनुरोध’ को उनके लेखन, कृतित्व और साहित्यिक योगदान के लिए जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया। महाराष्ट्र के शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री विनोद तावड़े ने ये पुरस्कार प्रदान किये। अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे,विधायक मंगल प्रभात लोढा एवं फिल्मसिटी के उपाध्यक्ष अमरजीत मिश्र तथा अकादमी के पूर्व कार्याध्यक्ष प्रोफेसर नंदलाल पाठक इस अवसर पर मंच पर उपस्थित थे। शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री तावड़े ने सभी पुरस्कृत लेखकों – साहित्यकारों को नगद पुरस्कार, स्मृति चिह्न तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान करके उनकी सेवाओं की सराहना की।
केसी कॉलेज सभागार में आयोजित एक गरिमामयी समारोह राज्य स्तरीय जीवन गौरव सम्मान छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कारप्रेम शुक्ल को एवं साने गुरुजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार श्रीमती मंजू लोढ़ा को प्रदान किय़ा गया, साथ ही अखिल भारतीय जीवन गौरवसम्मान महाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिंदी सेवा पुरस्कार रंगनाथ तिवारी को तथा डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी अखिल भारतीय हिंदी सेवा पुरस्कार ‘अनुरोध’ को दिया गया। इस वर्ष महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा अन्य कुल ३० साहित्यकारों को भी विभिन्न विधाओं के लिए पुरस्कार प्रदान किए गए, इस पुरस्कार समारोह में लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और अन्य प्रमुख लोग भी विशेष रूप से उपस्थित थे, उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं विकास हेतु सतत् रूप से प्रयासरत हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष हिन्दी सेवियों को ये पुरस्कार दिए जाते हैं। अकादमी द्वारा अखिल भारतीय सम्मान जीवन गौरव पुरस्कार के लिए १ लाख रुपए, राज्य स्तरीय सम्मान जीवन गौरव पुरस्कार के लिए ५१ हजार रुपए और तीन श्रेणीयों में क्रमानुसार ३५, २५ और ११हजार रुपये नगद प्रदान किये जाते हैं।
आचार्य भिक्षु की रेखाओं का आओ करें हम सम्मान
भूल का प्रायश्चित करने के लिए गुरू होने चाहिए
चलते-चलते पैर में छोटा सा कांटा घूंस गया, निकालने के लिए खूब प्रयत्न किया मगर वह कांटा निकला नहीं, उसी कांटे के कारण पैर कटवाना तक पड़ा। तूफान के कारण आँख में छोटा सा तिनखा घुस गया बाहर निकालने की कोशिश की, निकला नहीं, आखिर में ऑपरेशन करवाना पड़ा।
दूधपाक से तपेला भरा हुआ था, उसमें सिर्फ एक बिंदु जहर की मिलावट किसी ने की, मालुम न पड़ा और उसे मजे से खाया गया। खाने वाले का आयुष्य पूरा हो गया।
प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषी प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरिश्वरजी महाराज श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं, शरीर के किसी अंग में पीड़ा हो तो सम्पूर्ण शरीर दु:ख का अनुभव करता है, किसी संयोग से हमसे यदि छोटी भी भूल हुई हो तो उसका फल भुगतना ही पड़ता है, दूसरों की छोटी भूल हमें बड़ी ही लगती है, पूज्यश्री फरमाते हैं जीवन में हमसे छोटी सी भूल हो जाए तो उस भूल का प्रायश्चित करने के लिए एक गुरू होने चाहिए, वे गुरू के रूप में आचार्य है, आचार्य भगवंत तीर्थंकर के प्रतिनिधि रूप है, उनके सामने हमें अपने जीवन की खुल्ली किताब रख देनी चाहिए, शरीर में एक छोटा सा कांटा पीड़ाकारक है यह समझकर आपको गुरू भगवंत के पास प्रॉयश्चित लेते समय मान-अपमान को दूर करके एक छोटे बालक की तरह निर्देश एवं सरल बनकर प्रायश्चित करना है इस तरह से प्रायश्चित नहीं करोंगे तो तीन कांटे के स्वरूप में शल्य आत्मा को भवो भव संसार में भ्रमण कराएगा, वे बाल्य इस प्रकार है। माया-शल्यनियाण शल्य तथा मिथ्यात्व शल्य।
प्रायश्चित: माया पूर्वक किया वह है माया शल्य सुख पाने की इच्छा से प्रायश्चित करे, यदि मैं प्रायश्चित शुरू भाव से करूँगा, तो मुझे सुख प्राप्त होगा, वह है नियाण शल्य। सभी प्रायश्चित कर रहे हैं मुझे भी करना ही चाहिए, इस तरह बिना श्रद्धा से प्रायश्चित करना है, वह है मिथ्यात्व शल्य। इन तीन शल्यों से सहित जो व्यक्ति आराधना करने में सदा तत्पर रहेगा, सम्यकत्व जीव कभी ऐसा दुराचारी काम नहीं करेगा। प्रवचन की धारा को आगे बढाते हुए पूज्यश्री फरमाते हैं जन्म मरण के चक्र से बचना है तो अपने जीवन में गुरू के रूप में आचार्य भगवंत होने ही चाहिए, जिनका जीवन गुरू के चरणों में सममर्पित होगा वह अक्सर अनादि की चाल यानि राग-द्वेष कषाय, विषय-अहंकार ममत्व बगैर अनादि काल से आत्मा को डायन की तरह पीछे पड़ी हुई है, इन सभी का त्याग गुरू को समर्पित होने से ही होगा, वर्तमान काल में इस तरफ के समर्पित शिष्य एवं श्रावक देखने को मिलते हैं, एक भाई हमारे पास आए।
साहेब! मुझे अपने स्व द्रव्य से मंदिर बनाना है, उसी समय हमने इस भाई को कहा भाई, आपकी बात ठीक है, वर्तमान में एक खानदानी श्रावक है, जिन्होंने अपने स्वद्रव्य से मंदिर बनाया है लेकिन अभी उनकी परिस्थिति खूब खराब हो गई है, आप उनकी मदद करो तो अच्छा है।
समर्पित श्रावक हमारा ईशारा समझ गए, तुरन्त उन्होंने हमसे उस श्रावक का नाम लिया एवं उनके घर पहुँच गए। भाई! आप हमारे परम मित्र हो, लो, इस पूंजी को स्वीकार कर अपने कार्य में आगे बढें, ऐसे समर्पित श्रावक आज भी दुनिया में हैं। गुरू के प्रति समर्पण भाव रखकर, शल्य सहित अपना जीवन बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बने।