‘मिच्छामी दुक्कड़म’ का अर्थ

Michami Dukham

कृपया मुझे क्षमा करें, क्या अपने परिवार, रिश्तेदारों-और दोस्तों से क्षमा मांगना अच्छा नहीं है? यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि सभी अपने नाज़ुक रिश्तों को सुधारें और नकारात्मक संबंधों के रिश्तों को साफ रखें और घृणा से दूर रहें।

दरअसल, ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ एक सामुदायिक तरीके से व्यक्तिगत माफी की औपचारिकता है, यह व्यक्तिगत क्षमा की तुलना में मानवीय करुणा को बढ़ाने का एक माध्यम है, इसमें एक संपूर्ण समुदाय शामिल है, एक संपूर्ण समाज, माफी वास्तव में एक सबसे महत्वपूर्ण मानव मूल्य है।

यह मानव जाति को उनकी पिछली गलतियों को सुधारने की अनुमति / मौका देता है और मानवता को एक सबक सिखाता है। माफी मांगने में शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं होती, जब किसी व्यक्ति से क्षमा मांगें तो उसे हमेशा माफ़ कर देना चाहिए।

‘मिच्छामी दुक्कड़म’ क्या है?

मिच्छामी का अर्थ निरर्थक (क्षमा) होता है और दुक्कड़म (दुश्क्रूट) का मतलब बुरा कर्म है, इसलिए मिच्छामी दुक्कड़म का अनुवाद करने का अर्थ है मेरे दुष्ट कर्मों या बुरे कार्यों के लिए क्षमा करें। जैन परिवारों में पैदा हुए लोग इसके पीछे अर्थ और विषय से पूर्ण रूप से परिचित हैं।

‘मिच्छामी दुक्कड़म’ क्यों कहते हैं?

अगर हम अपने आपको प्रतिबिंबित करते हैं तो हम महसूस करेंगे कि हमारा मन लगातार व्यस्त है या तो हमारे बारे में सोच रहा है जो हमारे पास हो सकता है या दुनिया के दूसरे छोर तक, शारीरिक गतिविधियों से बात कर या कर सकता है, यह सोच, हमारे शब्द या हमारी शारीरिक गतिविधियां, हमारी खुशी, दु:ख, क्रोध, लालच, ईष्र्या और अहंकार आदि का प्रतिबिंब होता है और हम उन पर प्रतिक्रिया करते हैं, हम अपनी आत्माओं के लिए विभिन्न प्रकार के नए कर्मों को आकर्षित होते हैं।

मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर करेंगे प्रायश्चित

मिच्छामी दुक्कड़मकहकर मांगेंगे क्षमा

संवत्सरी : क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व

क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व है संवत्सरी। संवत्सरी पर्व पर जैन धर्मावलंबी जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। गौरतलब है कि जैन धर्म के श्वेतांबर पंथ में पर्युषण पर्व संपन्न पर क्षमावाणी दिवस मनाया जाता है।

जैन धर्म की परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस पर सभी एक-दूसरे से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर क्षमा मांगते हैं, साथ ही यह भी कहा जाता है कि मैंने मन, वचन, काया से जाने-अनजाने में आपका दिल दुखाया हो तो मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूं।

जैन धर्म के अनुसार ‘मिच्छामी’ का भाव क्षमा करने और ‘दुक्कड़म’ का अर्थ गलतियों से है अर्थात् मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं गलतियों के लिए मुझे क्षमा कीजिए।

आचार्य महाश्रमण के अनुसार- क्षमापना से चित्त में आह्लाद का भाव पैदा होता है और आह्लाद भावयुक्त व्यक्ति मैत्री भाव उत्पन्न कर लेता है और मैत्री भाव प्राप्त होने पर व्यक्ति भाव विशुद्धि कर निर्भय हो जाता है, जीवन में अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क होता है तो कटुता भी वर्ष भर के दौरान आ सकती है, व्यक्ति को कटुता आने पर उसे तुरंत ही मन से साफ कर देनी चाहिए और संवत्सरी पर अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए।

‘मिच्छामी दुक्कड़म’ प्राकृत भाषा का शब्द है, प्राकृत भाषा में काफी जैन ग्रंथों की रचना ही हुई है। पर्युषण महापर्व जैन धर्मावलंबियों में आत्मशुद्धि का पर्व है, इस तरह पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि के साथ मनोमालिन्य दूर करने का सुअवसर प्रदान करने वाला महापर्व है।

इस दौरान लोग पूजा-अर्चना, आरती, समागम, त्याग-तपस्या, उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं,इस पर्व का आखिरी दिन ‘क्षमावाणी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जिसमें हर किसी से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर क्षमा मांगते हैं। पर्युषण पर्व के आखिरी दिन ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहने की परंपरा है, इसमें हर छोटे-बड़े से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर क्षमा मांगते हैं।

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