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आचार्यश्री महाश्रमण ने ५० हजार किमी की पदयात्रा कर रचा इतिहास, जगाई अहिंसा की अलख (Acharyashree Mahashraman did a foot journey of 50 thousand km. History created, awakened the light of non-violence)

आचार्यश्री महाश्रमण ने ५० हजार किमी की पदयात्रा कर रचा इतिहास, जगाई अहिंसा की अलख (Acharyashree Mahashraman did a foot journey of 50 thousand km. History created, awakened the light of non-violence)

आचार्यश्री महाश्रमण ने ५० हजार किमी की पदयात्रा कर रचा इतिहास, जगाई अहिंसा की अलख (Acharyashree Mahashraman did a foot journey of 50 thousand km. History created, awakened the light of non-violence) अहिंसा यात्रा के प्रणेता तेरापंथ धर्मसंघ के ११वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने पावन कदमों से पदयात्रा करते हुए ५०,००० किलोमीटर के आंकड़े को पार कर एक नए इतिहास का सृजन कर लिया। आज के भौतिक संसाधनों से भरपूर युग में जहां यातायात के इतने साधन हैं, व्यवस्थाएं हैं, फिर भी भारतीय ऋषि परंपरा को जीवित रखते हुए महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी जनोपकार के लिए निरंतर पदयात्रा...
‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन गौवंश की रक्षा में अपना कर्त्तव्य निभायें (A request to the enlightened readers of ‘Jinagam’ Do your duty in protecting cows)

‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन गौवंश की रक्षा में अपना कर्त्तव्य निभायें (A request to the enlightened readers of ‘Jinagam’ Do your duty in protecting cows)

‘जिनागम’ के प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन गौवंश की रक्षा में अपना कर्त्तव्य निभायें (A request to the enlightened readers of ‘Jinagam’ Do your duty in protecting cows)भारत के पांच राज्यों में घोषित चुनाव में हमें यह भी वायदा चाहिए क्योंकि गाय का दूध हम मानव के लिए जीवन ही तो है……. उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा राज्य में १० फरवरी से ७ मार्च २०२२ में होने वाले चुनाव के प्रत्याशी उक्त विधानसभा में जाकर गौवंश का वध करने वालों को आजीवन कारावास की घोषणा करवाएंगे हम उन्हें ही उक्त विधानसभा में भेजेंगे। -बिजय कुमार जैन-राष्ट्रीय अध्यक्ष– मैं भारत...
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction of Shri Mohankheda Tirtha)

श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction of Shri Mohankheda Tirtha)

श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction of Shri Mohankheda Tirtha)वर्तमान अवसर्पणी के प्रथम तीर्थंकर भगवान् श्री ऋषभदेवजी को समर्पित श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की गणना आज देश के प्रमुख जैन तीर्थों में की जाती है। मध्यप्रदेश के धार जिले की सरदारपुर तहसील, नगर राजगढ़ से मात्र तीन किलोमीटर दूर स्थित यह तीर्थ देव, गुरु व धर्म की त्रिवेणी है।श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की स्थापना: तीर्थ की स्थापना प्रातः स्मरणीय विश्वपूज्य दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की दिव्यदृष्टि का परिणाम है, आषाढ़ वदी १०, वि.सं. १९२५ में क्रियोद्धार करने व यति परम्परा को संवेगी धारा में रुपान्तरित कर श्रीमद् देश के...
गुरुदेव श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरिश्वरजी ( Gurudev Shrimad Vijayrajendrasurishwarji )

गुरुदेव श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरिश्वरजी ( Gurudev Shrimad Vijayrajendrasurishwarji )

गुरुदेव श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरिश्वरजी ( Gurudev Shrimad Vijayrajendrasurishwarji )जन्म एवं माता-पिता:-‘श्रीराजेन्द्रसूरिरास’ एवं ‘श्री राजेन्द्रगुणमंजरी’ के अनुसार वर्तमान राजस्थान प्रदेश के भरतपुर शहर में दहीवाली गली में पारिख परिवार के ओसवंशी श्रेष्ठि रुषभदास रहते थे। आपकी धर्मपत्नी का नाम केशरबाई था जिसे अपनी कुक्षि में श्री राजेन्द्र सूरि जैसे व्यक्तित्व को धारण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। श्रेष्ठि रुषभदासजी की तीन संतानें थी, दो पुत्र: बड़े पुत्र का नाम माणिकचन्द एवं छोटे पुत्र का नाम रतनचन्द था एवं एक कन्या थी जिसका नाम प्रेमा था, यही ‘रतनचन्द’ आगे चलकर आचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरि नाम से प्रख्यात हुए। पारेख परिवार की...
राष्ट्रीय एकता के विकास में जैन धर्म का योगदान (Contribution of Jainism in the development of national unity)

राष्ट्रीय एकता के विकास में जैन धर्म का योगदान (Contribution of Jainism in the development of national unity)

राष्ट्रीय एकता के विकास में जैन धर्म का योगदान (Contribution of Jainism in the development of national unity)जैन धर्म के कुछ मौलिक सिद्धान्त हैं, जिनके कारण इस धर्म का एक स्वतन्त्र अस्तित्व है, इनमें अनेकान्त, स्याद्वाद, अहिंसा तथा अपरिग्रह प्रमुख हैं, ये समस्त सिद्धान्त किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय एकता के आधार स्तम्भ हैं।सर्वप्रथम अनेकान्त के सिद्धान्त पर दृष्टिपात करें तो वर्तमान में दोषारोपण का जो दौर प्रचलित है उसका समाधान अनेकान्त से ही सम्भव है। अनेकान्त का अर्थ है ‘‘एक ही वस्तु में कई दृष्टियों का अस्तित्व होना’’ यदि इसके गम्भीर भाव को समझें तो इसमें विरोधी धर्मों...