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मानव जाति के प्रज्ञापुरुष थे आचार्य महाप्रज्ञ

मानव जाति के प्रज्ञापुरुष थे आचार्य महाप्रज्ञ

प्रज्ञापुरूष आचार्य महाप्रज्ञ जी युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी के सक्षम उतराधिकारी हैं। बुद्धि, प्रज्ञा, विनय और समर्पण का उनके जीवन में अद्भुत संयोग है। वे महान्‌ा दार्शनिक, कवि, वक्ता एवं साहित्यकार होने के साथ-साथ प्रेक्षाध्यान पद्धति के महान अनुसंधाता एवं प्रयोक्ता रहे।आचार्य महाप्रज्ञ जी का जन्म वि.स. १९७७ आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी को टमकोर (राजस्थान) के चोरड़िया परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तोलारामजी एवं माता का नाम बालूजी था। युवाचार्यश्री का जन्म नाम नथमल था। जब वे बहुत छोटे थे, तभी पिता का साया उनके सिर से उठ गया था। माता बालूजी धार्मिक प्रकृति की महिला थीं। उनकी...
श्वेताम्बर तेरापंथ

श्वेताम्बर तेरापंथ

जैन धर्म में श्वेताम्बर संघ की एक शाखा का नाम श््वेताम्बर तेरापंथ है, इसका उद्भव विक्रम संवत् १८१७ (सन् १७६०) में हुआ, इसका प्रवर्तन मुनि भीखण (भिक्षु स्वामी) ने किया था जो कालान्तर में आचार्य भिक्षु कहलाये, वे मूलतः स्थानकवासी संघ के सदस्य और आचार्य रघुनाथ जी के शिष्य थे।आचार्य संत भीखण जी ने जब आत्मकल्याण की भावना से प्रेरित होकर शिथिलता का बहिष्कार किया था, तब उनके सामने नया संघ स्थापित करने की बात नहीं थी, परंतु जैनधर्म के मूल तत्वों का प्रचार एवं साधुसंघ में आई हुई शिथिलता को दूर करना था, उस ध्येय मे वे कष्टों की...
आचार्यश्री महाश्रमणजी का संक्षिप्त जीवन परिचय

आचार्यश्री महाश्रमणजी का संक्षिप्त जीवन परिचय

जन्म : वि.सं.२०१९, वैशाख शुक्ला नवमी(१३ मई १९६२) सरदारशहरजन्म नाम : मोहनलाल दुगड़पिता : स्व श्री झूमरमलजी दुगड़माता : स्व.श्रीमती नेमादेवी दुगड़दीक्षा : वि.सं.२०३१ वैशाख शुक्ला चतुर्दशी(५ मई १९७४) सरदारशहर(आचार्य तुलसी की अनुज्ञा सेमुनि सुमेरमलजी‘लाडनूं’ द्वारा)अन्तरंग सहयोगी : वि.सं.२०४२, माघ शुक्ला सप्तमी(१६ फरवरी १९८६) उदयपुरसाझपति : वि.सं.२०४३, वैशाख शुक्ला चतुर्थी(१३ मई १९८६) ब्यावरमहाश्रमण पद : वि.सं.२०४६, भाद्रव शुक्ला नवमी(९ सितम्बर १९८९) लाडनूंयुवाचार्य पर : वि.सं.२०५४, भाद्रव शुक्ला द्वादशी(१४ सितम्बर १९९७) गंगाशहरआचार्य पदाभिषेक : वि.सं.२०६७, द्वितीय वैशाख शुक्ला दशमी(२३ मई २०१०) सरदारशहरमहातपस्वी : वि.सं.२०६४, भाद्रपद शुक्ला पंचमी(१७ सितम्बर २००७) उदयपुरशान्तिदूत : वि.सं.२०६८, ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी(२९ मई २०११) उदयपुरश्रमण संस्कृति उद्गाता :...
तप और दान के प्रवाह का पर्व- अक्षय तृतीया

तप और दान के प्रवाह का पर्व- अक्षय तृतीया

ॐराघशुक्लतृतीयाया, दानमासीत् तदक्षयम्पर्वाक्षय तृतीयेति, ततोऽघापि प्रवर्ततेश्रेयांसोपज्ञमवनौ, दान-धर्म प्रवृत्तवान्स्वाम्युपेतमिवाऽ शेषव्यवहार नयक्रम: ‘अक्षय तृतीया’ का दिन महामंगलकारी होता है, इस दिन की महिमा मात्र जैनों में ही नहीं, अजैनों में भी है, वर्ष में कुछ दिन ऐसे हैं जो बिना पूछे मुहूर्त' कहलाते हैं, वैशाख सुदी तीज की भी यही महिमा है, इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम दान धर्म का प्रारंभ इसी दिन से शुरु हुआ था। अक्षय तृतीया - यह ऐसा त्यौहार है, जिसका महात्म्य बहुत बड़ा और व्यापक है। हिंदू, वैदिक और जैन परंपराओं में ‘अक्षय तृतीया’ का महत्व बहुत ज्यादा माना गया है, यह जिज्ञासा उठनी स्वाभाविक है कि...