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आचार्यश्री महाश्रमणजी का संक्षिप्त जीवन परिचय

आचार्यश्री महाश्रमणजी का संक्षिप्त जीवन परिचय

जन्म : वि.सं.२०१९, वैशाख शुक्ला नवमी(१३ मई १९६२) सरदारशहरजन्म नाम : मोहनलाल दुगड़पिता : स्व श्री झूमरमलजी दुगड़माता : स्व.श्रीमती नेमादेवी दुगड़दीक्षा : वि.सं.२०३१ वैशाख शुक्ला चतुर्दशी(५ मई १९७४) सरदारशहर(आचार्य तुलसी की अनुज्ञा सेमुनि सुमेरमलजी‘लाडनूं’ द्वारा)अन्तरंग सहयोगी : वि.सं.२०४२, माघ शुक्ला सप्तमी(१६ फरवरी १९८६) उदयपुरसाझपति : वि.सं.२०४३, वैशाख शुक्ला चतुर्थी(१३ मई १९८६) ब्यावरमहाश्रमण पद : वि.सं.२०४६, भाद्रव शुक्ला नवमी(९ सितम्बर १९८९) लाडनूंयुवाचार्य पर : वि.सं.२०५४, भाद्रव शुक्ला द्वादशी(१४ सितम्बर १९९७) गंगाशहरआचार्य पदाभिषेक : वि.सं.२०६७, द्वितीय वैशाख शुक्ला दशमी(२३ मई २०१०) सरदारशहरमहातपस्वी : वि.सं.२०६४, भाद्रपद शुक्ला पंचमी(१७ सितम्बर २००७) उदयपुरशान्तिदूत : वि.सं.२०६८, ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी(२९ मई २०११) उदयपुरश्रमण संस्कृति उद्गाता :...
तप और दान के प्रवाह का पर्व- अक्षय तृतीया

तप और दान के प्रवाह का पर्व- अक्षय तृतीया

ॐराघशुक्लतृतीयाया, दानमासीत् तदक्षयम्पर्वाक्षय तृतीयेति, ततोऽघापि प्रवर्ततेश्रेयांसोपज्ञमवनौ, दान-धर्म प्रवृत्तवान्स्वाम्युपेतमिवाऽ शेषव्यवहार नयक्रम: ‘अक्षय तृतीया’ का दिन महामंगलकारी होता है, इस दिन की महिमा मात्र जैनों में ही नहीं, अजैनों में भी है, वर्ष में कुछ दिन ऐसे हैं जो बिना पूछे मुहूर्त' कहलाते हैं, वैशाख सुदी तीज की भी यही महिमा है, इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम दान धर्म का प्रारंभ इसी दिन से शुरु हुआ था। अक्षय तृतीया - यह ऐसा त्यौहार है, जिसका महात्म्य बहुत बड़ा और व्यापक है। हिंदू, वैदिक और जैन परंपराओं में ‘अक्षय तृतीया’ का महत्व बहुत ज्यादा माना गया है, यह जिज्ञासा उठनी स्वाभाविक है कि...
जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का है विशेष महत्व

जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का है विशेष महत्व

भारतीय संस्कृति में बैसाख शुक्ल तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है, इसे ‘अक्षय तृतीया’ भी कहा जाता है। जैन दर्शन में इसे श्रमण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है। जैन दर्शन के अनुसार भरत क्षेत्र में युग का परिवर्तन भोगभूमि व कर्मभूमि के रूप में हुआ। भोगभूमि में कृषि व कर्मों की कोई आवश्यकता नहीं, उसमें कल्पवृक्ष होते हैं, जिनसे प्राणी को मनवांछित पदार्थों की प्राप्ति हो जाती है। कर्मभूमि युग में कल्पवृक्ष भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और जीव को कृषि आदि पर निर्भर रह कर कार्य करने पड़ते हैं। भगवान आदिनाथ इस युग के...
पूर्वजन्म प्रभू ऋषभदेव का

पूर्वजन्म प्रभू ऋषभदेव का

वैसे तो संसार का प्रत्येक प्राणी अनादि काल से जन्म मरण भोगता आ रहा है लेकिन सार्थक वही जन्म होता है जिसमें जीव ने संसार परित्त (सीमीत) किया, उसी क्रम में प्रभु ऋषभ का जीव भी कई भव पूर्व जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह की क्षिति प्रतिष्ठित नगरी के प्रसन्नचन्द्र राजा के राज्य में धन्ना सार्थवाह था, एक बार व्यापार के लिए बसंतपुर जाने का निश्चय करके, धन्ना ने राजाज्ञा पूर्वक नगर में घोषणा कराई कि यदि उनके साथ कोई चलना चाहे तो यथायोग्य पूर्ण सहयोग दिया जायेगा, इस घोषणा की जानकारी तंत्र विराजित आचार्य धर्मघोष को भी मिली। बसंतपुर की...
अहिंसा ही मानव धर्म है : तीर्थंकर महावीर

अहिंसा ही मानव धर्म है : तीर्थंकर महावीर

‘‘मधुरिमा कंठ में न होती तो शब्द विषपान बन गया होता।आस्था दिल में न होती तो हृदय पाषाण बन गया होता।प्रभू वीर से लेकर अब तक अगर ऐसा जिन धर्म न मिलतातो यह संसार वीरान बन गया होता’’ अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। तीर्थंकर महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने हमें अहिंसा का पालन करते हुए, सत्य के पक्ष में रहते हुए, किसी के हक को मारे बिना, किसी को सताए बिना, अपनी मर्यादा में रहते हुए पवित्र मन से, लोभलालच किए बिना, नियम में बंधकर सुख-दुख में संयमभाव में रहते हुए, आकुल-व्याकुल हुए...
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