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Jinagam Magazine
राष्ट्रीय एकता के विकास में जैन धर्म का योगदान

राष्ट्रीय एकता के विकास में जैन धर्म का योगदान

राष्ट्रीय एकता के विकास में जैन धर्म का योगदान (Contribution of Jainism in the development of national unity)जैन धर्म के कुछ मौलिक सिद्धान्त हैं, जिनके कारण इस धर्म का एक स्वतन्त्र अस्तित्व है, इनमें अनेकान्त, स्याद्वाद, अहिंसा तथा अपरिग्रह प्रमुख हैं, ये समस्त सिद्धान्त किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय एकता के आधार स्तम्भ हैं।सर्वप्रथम अनेकान्त के सिद्धान्त पर दृष्टिपात करें तो वर्तमान में दोषारोपण का जो दौर प्रचलित है उसका समाधान अनेकान्त से ही सम्भव है। अनेकान्त का अर्थ है ‘‘एक ही वस्तु में कई दृष्टियों का अस्तित्व होना’’ यदि इसके गम्भीर भाव को समझें तो इसमें विरोधी धर्मों...
जैन परम्परा में परमेष्ठी का प्रतीक

जैन परम्परा में परमेष्ठी का प्रतीक

जैन परम्परा में परमेष्ठी का प्रतीक  अरहंता असरीरा आईरिया तह उवज्झाया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पणो ओंकारो पंचपरमेष्ठी।। जैनागम में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं मुनि रूप पांच परमेष्ठी ही आराध्य माने गए हैं, इनके आद्यअक्षरों को परस्पर मिलाने पर ‘ओम’/‘ओं’ बन जाता है, यथा, इनमें पहले परमेष्ठी ‘अरिहंत’ या ‘अरहंत’‘अशरीरी’ कहलाते हैं, अत: ‘अशरीरी’ के प्रथम अक्षर ‘अ’ को ‘अरिहन्त’ के ‘अ’ से मिलाने पर अ±अ·‘आ’ ही बनताहै, उसमें चतुर्थ परमेष्ठी ‘उपाध्याय’ का पहले अक्षर ‘उ’ को मिलाने पर आ±उ मिलकर ‘ओ’ हो जाता है, अंतिमपाँचवें परमेष्ठी ‘साधु’ को जैनागम में ‘मुनि’ भी कहा जाता है, अत: मुनि के प्रारम्भिक अक्षर ‘म’ को...
‘हम’ की शक्ति पहचानें, जिनशासन को महकाएँ

‘हम’ की शक्ति पहचानें, जिनशासन को महकाएँ

‘हम’ की शक्ति पहचानें, जिनशासन को महकाएँ आध्यात्मिक जगत में ‘मैं’ का विराट स्वरूप है ‘हम’ ‘हम’ अर्थात अपनापन, ‘हम’ अर्थात एकता। ‘हम’ अर्थात ‘वासुधैव कुटुंबकम’। ‘हम’ अर्थात समस्त आत्माएं। जहाँ ‘हम’ हैं, वहाँ ‘मैं’ का समर्पण हो जाता है। जहां ‘हम’ है वहां संगठन है। जहां ‘हम’ हैं वहाँ संघ है। ‘संघे शक्ति कलीयुगे’। नन्दी सूत्र में संघ को नगर, चक्र, रथ, सूर्य, चंद्र, पद्म सरोवर, समुद्र, सुमेरू आदि विशेषणों से अलंकृत किया है। संघ की महिमा अपार है। आगमों में ‘णमो तित्थस्स’ के द्वारा साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका इन चार तीर्थ रूपी संघ की महिमा को उजागर किया है। जिनशासन...
श्री मदनमुनि म.सा. को श्रद्धांजलि

श्री मदनमुनि म.सा. को श्रद्धांजलि

जिनागम परिवार की ओर से श्री मदनमुनि म.सा. के संथारा सहित देवलोकगमन पर भावभीनी श्रद्धांजलि गुरु अंबेश के सुशिश्य रत्न गुरु सौभाग्य के गुरु भ्राता मेवाड़ प्रवर्तक महाश्रमण मदन मुनि म.सा. का दिनांक ७ दिसंबर २०२१ मंगलवार को संथारा सहित देवलोकगमन हो गया। मंगलवार को उपप्रवर्तक कोमल मुनि म. सा. ने संथारे के प्रत्याख्यान ग्रहण करवाए जो कि लगभग ५.४५ घंटे का संथारा अहमदाबाद के निजी अस्पताल में किया गया। गुरुदेव के पार्थिव शरीर को घोड़ा घाटी नाथद्वारा लाया गया। अंतिम संस्कार ९ दिसम्बर को किया गया।हजारों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में गुरुदेव मदन मुनि जी की अंतिम महाप्रयाण यात्रा नेशनल...
सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व

सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व

सभी पर्वों का राजा है पर्युषण पर्व दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म में कुल २४ तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर अर्‍हंतों में से ही होते हैं। जैन संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं, लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व।...