पूर्वजन्म प्रभू ऋषभदेव का जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर
वैसे तो संसार का प्रत्येक प्राणी अनादि काल से जन्म-मरण भोगता आ रहा है लेकिन सार्थक वही जन्म होता है जिसमें जीव ने संसार परित्त (सीमीत) किया, उसी क्रम में प्रभु ऋषभ का जीव भी कई भव पूर्व जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह की क्षिति प्रतिष्ठित नगरी के प्रसन्नचन्द्र राजा के राज्य में धन्ना सार्थवाह था, एक बार व्यापार के लिए बसंतपुर जाने का निश्चय करके, धन्ना ने राजाज्ञा पूर्वक नगर में घोषणा कराई कि यदि उनके साथ कोई चलना चाहे तो यथायोग्य पूर्ण सहयोग दिया जायेगा, इस घोषणा की जानकारी तंत्र विराजित आचार्य धर्मघोष को भी मिली। बंसतपुर की ओर विहार करने का निर्णय करके सार्थवाद से आज्ञा लेकर साथ में विहार कर दिया। रास्ते में वर्षाकाल से मार्ग अवरूद्ध हो जाने से सुरक्षित स्थान देखकर सार्थ को वहीं रूकने का आदेश दिया। धन्ना सार्थवाह के मुनीम मणिभ्रद ने आचार्य धर्मघोष व उनके शिष्यों को भी अपने झोपड़े में ठहरने की व्यवस्था कर दी, लेकिन वर्षा का क्रम इतना लंबा हो गया, जिससे साथ की, सारी खाद्य सामग्री समाप्त हो गई। लोग कंद मूल खाकर समय निकालने लगे।
धन्ना सार्थवाह को जब इस स्थिति का पता चला तो वह विचार में पड़ गया कि ऐसी स्थिति में मुनिराजों को आहार कैसे प्राप्त हो रहा होगा। चिंतातुर स्थिति में वह सीधा चलकर मुनियों के पास आया और पश्चाताप करता हुआ आहार ग्रहण करने की प्रार्थना करने लगा। सार्थवाह को पश्चाताप करते देख आचार्य श्री के निर्देशानुसार एक शिष्य भिक्षाटन करते हुए उसके आवास पहुँच गया, अपने आवास में मुनिराज को आते देख हर्ष विभोर होते हुए साधुओं के योग्य आहार खोजने लगा लेकिन अन्य सामग्री को अप्रासुक देख चिंतित होते हुए उसकी दृष्टि पास में पड़े (प्रासुक) घी के घड़े पर पड़ी और बड़े प्रमुदित भाव से मुनिराज को ग्रहण करने का आग्रह करने लगा। मुनिराज ने झोली में से पात्र निकाला।
सार्थवाह उत्कृष्ट भाव से पात्र में घी बहराने लगा, उसी समय एक देव ने उसकी उत्कृष्ट भावों की परीक्षा हेतु मुनिराज की दृष्टि बांध ली। मुनिराज का पात्र घी से भर, घी बाहर बहने लगा, फिर भी मना नहीं कर सके। सार्थवाह उत्कृष्ट भाव से बहराता ही रहा जिसके फलस्वरूप उन्हीं उत्कृष्ट परिणामों से उसने सम्यक्त्व की प्राप्ति की, वहां की आयु पूर्ण कर तीसरे भव में सौधर्म कल्प में देव बना।
आयु पूर्णकर चौथे भव में महाविदेह की गन्धिलावती विजय के गान्धार देश की गंध समृद्धि नगरी के शतबल नामक विद्याधर राजा की चन्द्रकांता रानी की कुक्षि से पुत्र रूप में पैदा हुआ, जिसका नाम `महाबल’ रखा गया। यौवनास्था में उसका विवाह सम्पन्न कर राजा शतबल ने महाबल का राज्याभिषेक कर दीक्षा ग्रहण कर ली।
महाबल राजा अपने एक बाल साथी व चार प्रधानों के साथ नर्तकी द्वारा किये जा रहे नृत्य में आसक्त हो रहे थे, एक बार की बात है, इधर स्वयंबुद्ध नामक मंत्री, जिसे यह ज्ञात हो चुका था कि जंघाचरण मुनि द्वारा महाबल की सिर्फ एक माह की उम्र शेष है, ने राजा के समक्ष यह बात निवेदित कर दी, इससे प्रतिबोधित होकर राजा महाबल उत्कृष्ट भाव से संयम ग्रहण करके २२ दिन के अनशन पूर्वक देह त्याग कर ५ वें भव में दुसरे देवलोक में श्रीप्रभ विमान के स्वामी ललितांग देव बने, इनकी प्रधान देवी स्वयंप्रभा थी।
ज्ञानी महापुरूषों से मुनि महाबल के देवयोनि में जन्मादि विषयक रहस्य जानकर स्वयं बुद्ध मंत्री ने भी सिद्धाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। उत्कृष्ट आराधना के साथ आयु पूर्ण कर मुनि स्वयंबुद्ध ईशानकल्प में देव बना, इधर ललितांग देव व स्वयं प्रभादेवी वहां की आयु पुर्ण करके महाविदेह क्षेत्र की पुष्पकलावती विजय में लोहार्दगल नगर के राजा स्वर्ण जंग की महारानी लक्ष्मी की कुक्षि से वङ्काजंग नाम के पुत्र व श्रीमती नामक पुत्री के रूप में उत्पन्न हुये।
यौवनावस्था में श्रीमती ने एक देव विमान को देखा, उसे देखकर जातिस्मरण ज्ञान के माध्यम से वह अपने पूर्वभव के पति का स्मरण करने लगी। पूर्वभव के पति की गहरी स्मृतियों के फलस्वरूप उसने यह प्रतिज्ञा धारण कर ली कि जब तक वे उसे नहीं मिलेंगे तब तक वह किसी से नहीं बोलेगी, यह बात उसकी पंडिता नामक दासी ने जान ली। श्रीमती की सहायता करने हेतु दासी ने इशान कल्प के ललितांग देव के विमान का कुछ त्रुटिपूर्ण चित्र बनाकर राजपथ पर टांग दिया, जिसे देखते ही वज्रजंग को भी जातिस्मरण ज्ञान हो गया और उसने उस चित्र में रही त्रुटि को दूर कर दिया, यह बात उनके पिता सवर्ण जंग को मालूम हुई तब उन्होंने दोनों की शादी कर दी।
कुछ समय पश्चात् श्रीमती ने एक पुत्र को जन्म दिया, धीरे-धीरे पुत्र युवावस्था को प्राप्त होने लगा, उसको युवा होते देख रात्रि को दोनों ने उसको राज्य सौंप कर दीक्षा ग्रहण करने का विचार किया, उधर उसी रात्रि को पुत्र ने राज्य लोभ में विषाक्त धुँआ उनके महल में छोड़ दिया, फलत: दोनों ने शुभ परिणामों से अपनी आयु पूर्ण कर ७ वें भव में ३ पल्योपम की स्थिति वाले कुरूक्षेत्र के युगलिक रूप से जन्म लिया, वहां की आयु पूर्ण करके दोनों ८ वें भव में सौधर्म देवलोक में देव बने, वहां की आयु पूर्णकर ९ वें भव में वज्रजंग का जीव जंबूद्वीप के महाविदेह में क्षिति प्रतिष्ठित नगर के सुविधि वैद्य के यहां जीवानंद नामक पुत्र रूप में जन्म लिया और श्रीमती का जीव इसी नगर में श्रेष्ठि ईश्वरदत्त के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ जिसका नाम राव रखा गया, इसी काल में राजा ईशानचंद की रानी कनकवती के भी एक पुत्र हुआ, जिसका नाम महीधर रखा गया। राजा के मंत्री सुवासीर की पत्नी लक्ष्मी के सुबुद्धि नाम का पुत्र हुआ। सागरदत्त सार्थवाह की पत्नी अभागी के पुर्णचंद्र व धनश्रेष्ठि की पत्नी शीलवती के गुणकर पुत्र हुआ, पूर्वभव की प्रीति से सब में परस्पर मित्रता हो गई। यौवनवय में जीवानंद प्रसिद्ध वैद्य बन गया।
एक दिन सभी मित्रों ने जंगल में घूमते हुए एक मुनि को ध्यानस्थ देखा। मुनि का शरीर भयंकर व्याधि से ग्रस्त था, इसे देखकर परस्पर उपचार का चिंतन करने लगे। वैद्य जीवानंद बोला-“भैया इनके उपचार हेतु अन्य औषध तो मेरे पास है पर रत्न कंबल और गोशीर्ष चंदन की आवश्यकता है। पांचोें मित्रों ने बाजार में खोज की तो एक श्रेष्ठी के यहां दोनों वस्तुएँ मिल गई। मुनिराज के उपचार की बात सुनकर सेठ ने दोनों चीजें बिना मूल्य लिये ही दे दी और खुद भी सेवा में जुट गया। उपचार करने पर मुनि पूर्णत: नीरोगी हो गये, तत्पश्चात् मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर सभी मित्रों ने उनसे संयम ग्रहण कर लिया और वे सब अनशनपूर्वक आयु पूर्ण कर दसवें भव में अच्युत कल्प के इन्द्र के सामानिक देव हुए, वहां से जीवानंद का जीव ११वें भव में जंबू द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में पुण्डरीकिणी नगरी के वज्रसेन राजा की धारिणी रानी के गर्भ से १४ स्वप्न के साथ पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ, जिसका नाम वज्रनाभ रखा गया, शेष पांचों ने उनके लघुभ्राता रूप में जन्म लिया।
वज्रनाभ के युवा होने पर वज्रसेन राजा ने उसका राज्याभिषेक कर स्वयं ने दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्त किया। वज्रनाभ सम्राट बना। छोटे भाई बाहु, सुबाहु, पीठ और महापीठ नामक मांडलिक राजा बनें। सुयश चक्रवर्ती का सारथी बना। पिता वज्रसेन के उपदेश से प्रतिबोधित हो छहों ने संयम ग्रहण किया। वज्रनाथ ने बीस बोला की आराधना से तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन किया और अपने साथियों के साथ आयु पूर्णकर सर्वार्थ सिद्ध नामक विमान में देव बनें। विगत चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर संप्रति के निर्वाण होने के बाद १८ कोड़ाकोड़ी सागरोपम के बीतने पर भरत क्षेत्र में तीसरे आरे के ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष साढ़े आठ महीने शेष रहने पर, सर्वार्थ सिद्ध विमान का आयु पूर्ण कर आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से चंद्र का योग होते ही प्रभु ऋषभदेव का जीव वहां से चलकर नाभि कुलकर की पत्नी मरूदेवी के गर्भ में आया, माता मरूदेवी ने हाथी वृषभादि १४ दिव्य स्वप्न देखे।
गर्भ में आने के ठीक नौ महीने साढ़े सात रात्रि व्यतीत होने पर चैत्र कृष्णा अष्टमी की रात्रि को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से चंद्रमा का योग होने पर प्रभू ने युगलरूप से जन्म लिया। ५६ दिक्कुमारियोें व शक्रेन्द्र आदि ६४ इन्द्रों ने जन्मोत्सव मनाया, यथासमय इनका नाम ऋषभ रखा गया। इन्द्र द्वारा प्रदत्त ‘इक्षु’ चूसने से इक्ष्वाकु कुल प्रचलित हुआ, अन्य युगलिकों द्वारा ‘काश’ का रस ग्रहण करने से काश्यप गोत्र चल पड़ा, जो आज भी जारी है।
विश्वस्तर पर बने रहने के लिए ‘ग्लोबल एक्स्पो’ उपयुक्त
पुणे : मॅनेजमेंट क्षेत्र में टीम वर्क तथा टीम बिल्डिंग बहुत महत्वपूर्ण है, विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए ग्लोबल एक्सपो जैसे उपक्रमों की जरुरत है, अच्छा व्यवस्थापक बनने के लिए विद्यार्थियों को इस उपक्रम की मदद होगी, चिकित्सक प्रवृत्ती का विकास, प्रदर्शन कौशल्य, विद्यार्थियों की संगठन भावना, कौशल और व्यवस्थापन को बढावा देने के लिए ऐसे एक्सपो महत्वपूर्ण रहेंगे। वैश्विक बाजार के लिए तैयार रहने में यह मददगार होगा, इसी बात को ध्यान में लेकर सूर्यदत्ता द्वारा नियमित रूप से विविध कार्यशाला, सेमिनार और तज्ञ मार्गदर्शन का आयोजन किया जाता है, ऐसा प्रतिपादन सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूट के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. संजय बी. चोरडिया ने कहा।
सूर्यदत्ता इन्स्टिट्यूट्स ऑफ मॅनेजमेंट के छात्रों ने आयोजित किये गए ‘ग्लोबल एक्सपो’ में डॉ. चोरडिया बोल रहे थे, इस एक्सपो द्वारा अलग अलग देशों के भौगोलिक, राजकीय और आर्थिक जानकारी मिली, छात्र, शिक्षक और अन्य मान्यवरों को जागतिक व्यापार, व्यावसायिक स्थिति, सामाजिक, सांस्कृतिक विशेषता और देश की राजनीतिक नीतियां समझने के लिए इस एक्स्पो से लाभ हुआ। पीजीडीएम और एमबीए के छात्रों ने इसका आयोजन किया था। पांच विद्यार्थियों के एक गुट, ऐसे २३ गुटों में छात्र विभाजित थे, हर एक गुटों ने एक -एक देश चुना और भौगोलिक-राजकीय और आर्थिक जानकारी को प्रदर्शित किया गया था, जिसके लिए सर्च इंजिन, सोशल मीडिया, एक-दूसरे से संवाद और बाजार संशोधन का उपयोग किया गया था। अमेरिका, कॅनाडा, फ्रान्स, संयुक्त अरब अमिरात, रशिया, जर्मनी, नेदरलँड, चीन, इंग्लंड इत्यादि देशों का दर्शन इस एक्सपो में दिखाया गया, इसके लिए पॉवरपॉइंट प्रदर्शन, व्हिडिओ, जानकारी आलेख, चाट्र्स, फ्लैक्स जैसे साधन सामग्री का उपयोग किया गया था, १००० से ज्यादा छात्र, कर्मचारी, अभ्यासगत और उद्योग क्षेत्रों के लोगों ने देकर छात्रों को प्रोत्साहित किया।
२३ गुटों ने किये हुए प्रदर्शन की वजह से २३ देशों की जानकारी विस्तार से समझ में आई, इस एक्सपो के दौरान अंतरराष्ट्रीय अतिथियों, सहकारीयों तथा विद्यार्थी सहकारी गुटों ने मुल्यांकन किया। मनोज बर्वे – बीव्हीएमडब्लयू के (जर्मन फेडरेशन एसोसिएशन ऑफ एसएमई) भारत प्रमुख, काझुको बॅरिसिक- जापानी कलाकार और सलाहगार, टॉमियो इसोगई इंडोजापानी रिलेशनशिप के सलाहगार, आशिष जोशी- स्किल्समार्ट वल्र्ड के संचालक, मार्केट रिस्क चेंज मॅनेजमेंट के पुष्कर पानसे आदी एक्सपो को भेंट देकर विद्यार्थियों की प्रशंसा की, एक्सपो के विजेता गुट को ११,००० रुपयों का ईनाम मिला तथा दूसरे, तीसरे, चौथे और पाचवें स्थान के गुटों को क्रमश: ७००० रुपये, ५००० रुपये, ३००० रुपये और १००० रूपयों का इनाम दिया गया।
फ्री मल्टी स्पैशलटी कैम्प में ३२५ मरीजों ने लिया लाभ
जैन इंन्टरनैशनल ट्रेड आर्गेनाइजेशन (लेडिज़ विंग) लुधियाना चैप्टर द्वारा वर्धमान इंन्टरनैशनल पब्लिक स्कूल ३८ सैक्टर चंडीगढ़ रोड में एक विशाल फ्री मल्टी स्पैशलटी कैम्प का आयोजन मोहन भाई ओसवाल अस्पताल के सहयोग से किया गया। कैम्प का शुभारम्भ महामंत्र नवकार के सामुहिक उच्चारण से शुरू किया गया, यह कैम्प डॉ. तेजिंदर कौर (स्त्री रोग), डॉ. गीति पुरी अरोड़ा (इंट मेडिसिन एंड डायबेटोलॉजी), डॉ. परवीन गुप्ता (ऑर्थो), डॉ. मनिंदर सिंह (पेडेट्रिक्स), डॉ. वैशाली मारिया (डेंटिस्ट) डॉ. जसप्रीत (डायटेटिक्स), राकेश शर्मा एचआर हेड, वीना शर्मा (नर्सिंग हेड) आदि की देख-रेख में चला, कैम्प में लगभग ३२५ मरीजों ने लाभ लिया, जिसमें फ्री चैकअप, फ्री शुगर चैक, फ्री दवाइयां भी दी गई, इस मौके पर जीतो लेडिज विंग की चेयरपर्सन अभिलाष ओसवाल, महामंत्री सोनिया जैन, कोषाध्यक्ष रंजना जैन, उप-प्रधान मंजु ओसवाल, करूणा जैन, ओसवाल जैन, सीरत जैन, एकता जैन, भाणु जैन, कंचन जैन, शालु जैन, श्वेता जैन, अर्चणा जैन, शिवानी जैन, रीचा जैन, मंजू सिंघी, रूबी जैन, रूचिका जैन, मीनू जैन, नीशु जैन, सुची जैन, नमीता जैन, नीतु जैन, नीरा जैन, श्रेया जैन, निधी जैन, रेखा जैन, जीतो लुधियाना चैप्टर के मंत्री राकेश जैन, तरूण जैन एवं वर्धमान स्कूल की प्रिंसिपल डा. अनिमा जैन, मैनेजर संजीव जैन, विजय जैन, अलका जैन, हर्ष जैन, इकबाल सिंह आदि गणमान्य उपस्थित थे।
-अभिलाष ओसवाल चेयरपर्सन-लेडिज विंग
जीतो के सेवा कार्य अनुमोदनीय
अहमदाबाद: रविवार ३ मार्च के रोज समग्र भारतवर्ष की जैन कम्युनिटी की अम्ब्रेला संस्था के अहमदाबाद चैप्टर ने ‘लक्ष्य’ नाम के कार्यक्रम का आयोजन अहमदाबाद के यूनिवर्सिटी कन्वेंशन हॉल में किया, जिसमें २००० से भी ज्यादा लोग उपस्थित रहे, कार्यक्रम के अंतर्गत, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमितभाई शाह, बी.जे.पी. गुजरात अध्यक्ष जीतूभाई वाघाणी, नामांकित उद्योगपति सुधीरभाई मेहता (टोरेंट ग्रुप), राजेशभाई अदाणी (अदाणी ग्रुप), भारतीय माइनॉरिटी कमीशन के सदस्य सुनील सिंघी उपस्थित थे, जीतो अहमदाबाद ने अपने कई सारे प्रोजेक्ट्स की घोषणा की।
जीतो अहमदाबाद की और से जरूरतमंद जैन परिवारों के लिए सौ करोड़ से भी ज्यादा लागत से ५४० फ्लैट्स बनाये जाएंगे जो जैन परिवारों को काफी किफायती कीमत से दिए जाएंगे।
‘जीतो’ अहमदाबाद, शहर के मध्य में एक हॉस्टल का निर्माण भी करेगा जिसमें जैन विद्यार्थी एवं विद्यार्थिनी सुन्दर एवं आध्यात्मिक वातावरण में, सम्पूर्ण आवश्यक सहूलियतों के बिच रह कर, शिक्षा का स्वप्न पूर्ण कर सकेंगे।
‘जीतो’ अहमदाबाद ने ‘लक्ष्य’ के इस प्रसंग पर यह भी घोषित किया गया कि जीतो ने कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले में शहीद हुए सिपाही परिवारों के लिए ३.१५ करोड़ की राशि एकत्र की है जो इन परिवारों को दी जाएगी। जन-सेवा के इस शुभ अवसर पर ‘जीतो’ अहमदाबाद के चेयरमैन जिगिषभाई दोशी, जीतो अपैक्स के अध्यक्ष गणपतराज चौधरी, जीतो श्रमण आरोग्यम के चेयरमैन हिमांशु शाह ने ‘जीतो’ के बारे में कई सारी अन्य जानकारी भी दी।
इस शुभ प्रसंग पर जीतो के प्रोजेक्ट जो कि प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए एवं उन्हें जरुरी सहूलियत प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है, इसमें १२ दाताओं ने अपना योगदान घोषित किया एवं जीतो के साधू एवं साध्वी भगवंत की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बनाये गए श्रमण आरोग्यम में ८ दाताओं ने अपना योगदान घोषित किया, इस शुभ अवसर पुरे भारत भर से जीतो अपैक्स के कई सारे पदाधिकारी भी उपस्थित थे जिन्होंने जैन सेवा कार्यों को अनुमोदन दिया। जीतो के सेवाकार्यों के लिए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमित शाह ने तारीफ की।
अमित शाह राष्ट्रिय अध्यक्ष भाजपा
जीवन में हेड, हार्ट और हैंड को सदा पवित्र रखें
जोधपुर: राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि जीवन में तीन चीज को हमेशा पवित्र रखिए – हैड, हार्ट और हेंड। हैड में रखिए निर्मल विचार, हैंड में रखिए ईमानदारी और हार्ट में रखिए करुणा और प्यार, उन्होंने कहा कि अगर आप संसार के एटीएम से प्रेम, शांति और आनंद का धन निकालना चाहते हैं तो उसका पासवर्ड है ध्यान और प्रार्थना। ध्यान आपको खुद से जोड़ेगा और प्रार्थना आपको परमात्मा से, उन्होंने कहा कि उस स्वर्ग को पाने के लिए धर्म की पनाह मत लीजिए, जो मरने के बाद हमें कहीं और स्वर्ग दिखाए, बल्कि धर्म को जीवन में इसलिए अख्तियार कीजिए कि हमारी खुद की धरती स्वर्ग बने। जीवन में ६० साल की उम्र तक तरक्की के लिए हर क्षेत्र में मेहनत का इस्तेमाल कीजिए, पर साठ के बाद स्वयं को मुक्ति की ओर ले जाएँ, याद रखें, आवश्यकताओं को पूरा कीजिए, पर इच्छाओं पर अंकुश लगाइए। आवश्यकताएँ तो फकीर की भी पूरी हो जाती हैं, जबकि इच्छाएँ सम्राट की भी अधूरी रह जाती हैं।
संतप्रवर कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में ध्यान योग शिविर के समापन पर आयोजित मंगल मैत्री महोत्सव में भाई-बहनों को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने कहा कि महीने में चाहे एक बार ही सही, संतजनों की संगत अवश्य कीजिए। संतों की संगत उस इत्र की तरह होती है, जिसे भले ही बदन पर न लगाएँ, तब भी उसकी महक से दिल अवश्य ही आनंदित होता है, याद रखना, भगवान चित्र में नहीं, चरित्र में निवास करते हैं। चित्र तो गधे का भी सुन्दर हो सकता है, पर चरित्र को सुन्दर बनाने के लिए इंसान का अच्छा होना जरूरी है, उन्होंने कहा कि खान-पान शुद्ध रखिए, इससे आपका खानदान शुद्ध रहेगा।
रहन-सहन पवित्र रखिए, इससे आपका चरित्र शुद्ध रहेगा। विचार निर्मल रखिए, इससे आपके संस्कार शुद्ध रहेंगे, आपसे कोई धर्म-कर्म नहीं होता तो कोई बात नहीं, आप कभी किसी की निंदा मत कीजिए, केवल इस एक पुण्य के कारण आपका मरने के बाद देवलोक का इन्द्र बनना तय है, उन्होंने कहा कि सोने से पहले आप किसी की एक गलती को माफ करने का बड़प्पन दिखाइए, भगवान आपके जागने से पहले आपकी १०० गलतियों को माफ करने की उदारता अवश्य दिखाएँगे, यदि कोई आपका दिल दुखाए तो यह सोचकर मन में धैर्य और शांति धारण करें कि पत्थर अक्सर उसी पेड़ पर मारे जाते हैं, जिस पर फल लदे होते हैं, उन्होंने कहा कि आप सच बोलिए, सच बोलने से आज भले ही खतरा हो, पर सत्य एक दिन आपके सम्मान और विश्वास को पहले से सौ गुना अधिक मजबूती से लौटा लाएगा। कोई गाली दे तो आप स्माइल दीजिए, कोई गंदगी करे तो आप सफाई कीजिए, आपके व्यवहार से उसे शर्म महसूस होगी, आपकी अहिंसा उसे सत्य-पथ पर ले आएगी।
उन्होंने कहा कि कभी – कभी आँखें बंद करके साँस की गति को धीमी करते हुए दिमाग में चलने वाली तरंगों को शांत करने का अभ्यास कीजिए। मात्र २१ दिन में आप शांति और सहज आनंद के साम्राज्य में प्रवेश पा लेंगे।
राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ
वर्षीतप के आराधकों की हस्तिनापुर तीर्थ यात्रा
राजगढ़: दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के अष्टम पट्टधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचंद्रसूरीश्वरजी म. सा. के सदुपदेश से राजगढ़ नगर में ६० आराधक वर्षीतप की आराधना में लीन रहे, इन सभी तपस्वियों को हस्तिनापुर की यात्रा करवाने का लाभ राजगढ़ निवासी शेलेन्द्र कुमार शेतानमल जी जैन परिवार ने प्राप्त किया। आचार्य श्री के मंगलाचरण के बाद मुनिराज पुष्पेंद्रविजयजी म.सा. ने सभी आराधकों को हस्तिनापुर तीर्थ यात्रा क्यों की जाती हैं इसका महत्व विस्तार से बताया।
आचार्य श्री ने सभी आराधकों को मांगलिक का श्रवण करवाकर सभी को आशीर्वाद प्रदान किया, इस अवसर पर श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट की ओर से मैनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ, महाप्रबन्धक अर्जुनप्रसाद मेहता, सन्तोष चत्तर, सेवंतीलाल मोदी, राजेन्द्र खजांची, दिलीप भंडारी, नरेंद्र भंडारी पार्षद आदि वरिष्ठ समाजजनों ने लाभार्थी श्री शेलेन्द्रकुमार शेतानमल जैन परिवार का ट्रस्ट की ओर से बहुमान किया गया आराधकों को यात्रा के लिये शुभकामना दी गयी।