समय का सदुपयोग चेतना की निर्मलता के विकास में हो

समय का सदुपयोग चेतना की निर्मलता के विकास में हो

– आचार्य महाश्रमण

काल प्रतिलेखना का मतलब है समय की प्रतिलेखना करना, उसको पहचान लेना, समझ लेना। आज तो घड़ियां उपलब्ध हैं और लोगों के हाथों में घड़ी बंधी रहती है। यह समय को बताने वाला यंत्र नवजवानों के लिए हाथ का आभूषण-सा बना हुआ है, घड़ी की यह विशेषता है कि यह समय को सूचित करती है, कुछ समय पूर्व तक तो हमारी श्राविकाएं रेत की घड़ी रखा करती थीं, मुहूर्त का समय जानने में उसका उपयोग होता था, आज तो समय को जानना बहुत आसान हो गया है, रात्रि के अंधेरे में भी समय को जाना जा सकता है, कई घड़ियां रात्रि में देखने वाली होती हैं, कईयों में लाईट होती है अथवा टॉर्च आदि के प्रकाश से देखी जा सकती हैं, साधु संस्था में भी समय को जानना आवश्यक होता है, किस समय प्रतिलेखना करना, किस समय स्वाध्याय करना, किस समय प्रतिक्रमण करना आदि साधुचर्या के अनेक अंग हैं, जिनका निर्वाह करना अनिवार्य होता है और वे समयबद्ध होने चाहिए।
समय प्रबंधन का ध्यान रखने वाला व्यक्ति पांच-पांच मिनट का भी उपयोग कर लेता है, आदमी दिनचर्या कोठीक बनाने के लिए यह निश्चित करे कि मेरा उठने और सोने का समय कौन-सा होना चाहिए, किस समय, कौन-सा काम करना चाहिए, कब अध्ययन करना, कब जनसम्पर्क करना, कब व्यवसाय आदि का काम करना? इस प्रकार समय की ठीक निर्धारणा हो, कदाचित् उसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है, परन्तु सामान्यतया दिनचर्या व्यवस्थित हो तो समय का सदुपयोग और व्यवस्थित उपयोग किया जा सकता है। अंग्रेजी भाषा का एक सुन्दर सूक्त है- जैसे एक सामान्य स्थिति वाला आदमी पांच रुपये भी सोच समझकर खर्च करता है, उसके लिए धन का कितना मूल्य होता है, इसी प्रकार समय का मूल्यांकन भी करना चाहिए और समय का व्यय भी सोच-सोचकर अच्छे कार्यों में करना चाहिए, जो लोग बुद्धिमान हैं, समझदार हैं, उनका समय काव्य की चर्चा, शास्त्र की चर्चा यानि ज्ञानचर्चा और अच्छे कार्यों में व्यतीत होता है।
हर आदमी नादानगी न करे, बड़ी समझदारी के साथ समय का उपयोग करने का प्रयास करे। आदमी ब्रह्ममुहूर्त में उठने का प्रयास करे, ब्रह्ममुहूर्त का समय पवित्र समय माना जाता है, वैसे तो आदमी जिस समय अच्छा काम करे, वह समय उसके लिए पवित्र हो जाता है, फिर भी सूर्योदय से एक घंटा पहले आदमी निद्रा को त्याग दे, वह एक घंटा मुख्यतया सामायिक, स्वाध्याय, धर्म की साधना आदि में लगे तो आदमी के दिन का प्रारंभ मंगल के साथ होगा, उसे एक आध्यात्मिक खुराक प्राप्त हो जाएगी। प्रत्येक व्यक्ति को चौबीस घंटे का समय मिलता है, ऐसा कभी नहीं होता कि किसी मंत्री महोदय को तो पच्चीस घंटे का समय मिलेगा और संतरी को तेईस घंटे का समय मिलेगा, सबको बराबर समय मिलता है, यह प्रकृति की देन है, यहां प्रश्न होता है कि इस महत्वपूर्ण समय का आदमी उपयोग क्या और किस रूप में करता है? क्या हमारा समय केवल शरीर के लिए ही व्यतीत होता है या कुछ समय चेतना के लिए भी लगता है? खाना-पीना, सोना, कमाना आदि कार्य मुख्यतया शरीर को केन्द्र में रखकर किए जाते हैं।
आदमी आत्मा को भी याद रखे, कुछ आत्मा के लिए भी करे, शरीर नश्वर है, आत्मा को अमर कहा गया है, आदमी इस नश्वर शरीर से अमर आत्मा के लिए क्या करता है? शरीर अध्रुव है, धन सम्पत्ति भी अध्रुव है, मृत्यु निकट हो रही है, इसलिए धर्म का संचय करना चाहिए, चौबीस घंटों में से अधिक समय न निकाल सकें तो प्रत्येक घंटे में से कम से कम एक या दो मिनट का समय निकालकर अलग से उसका संग्रह कर लिया जाए तो हर दिन २४ या ४८ मिनट का समय साधना में लगाया जा सकता है, उस समय में चाहे अच्छे ग्रंथ का स्वाध्याय किया जाए, ध्यान किया जाए, कोई न कोई आध्यात्मिक साधना यदि कुछ समय के लिए हो जाती है तो जीवनचर्या या दिनचर्या का सुन्दर क्रम बन सकता है। शरीर के लिए भोजन अनिवार्य होता है तो चेतना के लिए भी भोजन आवश्यक है, शरीर के लिए स्नान किया जाता है तो चेतना की शुद्धि के लिए भी स्नान जरूरी है, शरीर का भोजन रोटी आदि है तो चेतना का भोजन भजन,स्वाध्याय, सामायिक आदि है। शरीर का स्नान पानी से किया जाता है किन्तु चेतना का स्नान  प्रतिक्रमण, आत्मा निरीक्षण, आत्मालोचन, ध्यान आदि से हो सकता है। आदमी अपने जीवन में महत्वपूर्ण कार्य करे। गरिमापूर्ण कार्यों में अपना समय लगाए। बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वाले हों अथवा अन्य कोई कार्य करने वाले हों, यदि समय प्रबंधन ठीक नहीं है तो कार्य की सफलता में बाधा उत्पन्न हो जाती है, उस बाधा को निवारित करने के लिए समय प्रबंधन  को सीखना और उसे क्रियान्वित करना आवश्यक है, वह मनुष्य सामान्य है, जो समय का सामान् कार्यों में उपयोग करता है। अध्यात्म के संदर्भ में चेतना के लिए समय नियोजित करना समय का उत्तम उपयोग है। मात्र भोग में ही समय को लगा देना समय का पूर्णतया उत्तम उपयोग नहीं होता, इसलिए आदमी चेतना के प्रति जागरूकता रखे, चेतना की निर्मलता के विकास में समय का नियोजन हो तो समय का उत्तम उपयोग हो सकेगा। 

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *