१६वीं लोकसभा के अंतिम भाषण में मोदी ने कहा ‘मिच्छामि दुक्कडम्’
नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने १६वीं लोकसभा में अपने अंतिम भाषण में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों से गिले-शिकवे भुलाने की अपील करते हुये ‘‘मिच्छामि दुक्कडम्’’ के साथ माफी माँगी, अंतिम सत्र की अंतिम बैठक में बुधवार को श्री मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के सभी सदस्यों को धन्यवाद दिया, साथ ही उन्होंने ‘‘मिच्छामि दुक्कडम्’’ कहते हुये सदन के सभी सदस्यों से कहा- सुनी के लिए माफी माँगी, उन्होंने कहा, ‘‘कई बार तीखी नोंक-झोंक भी हुई, कभी इधर से हुई, कभी उधर से हुई, कभी कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग हुआ होगा, जो नहीं होना चाहिये, इस सदन में किसी भी सदस्य के द्वारा, जरूरी नहीं कि इस तरफ से उस तरफ से भी। सदन के नेता के रूप में जरूर ‘‘मिच्छामि दुक्कड़म्’’ कहूँगा, उन्होंने सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे की लंबे समय तक सदन में बैठने और पूरी चर्चा को ध्यान से सुनने की क्षमता की तारीफ भी की और कहा कि यह साधारण बात नहीं है। मैं आदरपूर्वक उनका अभिनंदन करता हूँ, साथ ही उन्होंने श्री खडगे पर कटाक्ष करते हुये भी कहा कि उन्हें अपने भाषण के लिए खाद पानी कांग्रेस नेता के भाषण से ही मिलता था।
विश्वसनीय निदान की
सरलतम पद्धति एक्युप्रेशर
शरीर के सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग का संबंध पूरे शरीर के हर एक अंगों से होता है, इसी कारण जब शरीर के किसी भाग में तीव्र पीड़ा होती है अथवा कष्ट होता है तो, हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। शरीर में प्रत्येक अंग, उपांग, अवयव, अन्तःश्रावी ग्रन्थियों आदि से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिवेदन बिन्दु हमारी हथेली और पगथली में होते हैं, जिस प्रकार किसी भवन की बिजली का सारा नियन्त्रण मुख्य स्विच बोर्ड से होता है, ठीक उसी प्रकार ये प्रतिवेदन बिन्दु शरीर के किसी न किसी भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिस प्रकार कोई व्यक्ति किसी का पिता, किसी का भाई, किसी का पति तो अन्य किसी का दादा, नाना, पुत्र, चाचा, मामा, मित्र आदि भी हो सकता
है। यदि किसी व्यक्ति का फोटो अलग-अलग स्थानों से लिया जाये तो एक ही व्यक्ति के फोटो में अन्तर हो सकता है, ठीक उसी प्रकार से ये प्रतिवेदन बिन्दु भी शरीर के अलग-अलग भागों से संबंधित हो सकते हैं, यानी एक ही प्रतिवेदन बिन्दु के शरीर में अनेक संबंध हो सकते हैं।
सुजोक और रिफ्लेक्सोलॉजी एक्युप्रेशर के सिद्धान्तानुसार हथेली और पगथली में दबाव देने पर जिन स्थानों पर दर्द होता है, उसका मतलब उन स्थानों पर विकार अथवा अनावश्यक विजातीय तत्त्वों का जमाव हो जाना होता है। परिणाम स्वरूप शरीर में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध हो जाता है, ये प्रतिवेदन बिन्दु बिजली के पंखों, बल्ब या अन्य उपकरणों के स्विच की भांति शरीर के अलग-अलग भागों से संबंधित होते हैं, जिस प्रकार स्विच में खराबी होने से उपकरण तक बिजली का प्रवाह सही ढंग से नहीं पहुँचता, ठीक उसी प्रकार इन प्रतिवेदन बिन्दुओं पर विजातीय तत्त्वों के जमा होने से संबंधित अंग, उपांग, अवयवों आदि में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध हो जाने से व्यक्ति रोगी बनने लगता है।
एक्युप्रेशर द्वारा रोग निदान का सिद्धान्त– हथेली और पगथली में आगे पीछे सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग में अर्थात पूरी हथेली और पगथली के पूरे क्षेत्रफल में अंगुलियों या अंगूठे से हम सहनीय गहरा दबाव देवें और जहाँजहाँ जैसा-जैसा दर्द आता है, वे सारे दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु एक्युप्रेशर के सिद्धान्तानुसार रोग से संबंधित होते हैं अर्थात् वे शरीर में रोग के परिवार के सदस्य होते हैं।
एक्युप्रेशर द्वारा निदान क्यों विश्वसनीय?
१. प्रत्येक व्यक्ति की हथेली और पगथली उसके स्वयं की होती है, अतः इस विधि द्वारा उस व्यक्ति का स्वयं से संबंधित शरीर के सभी रोगों का निदान होता है, जबकि लक्षणों पर आधारित निदान पूर्ण शरीर का नहीं हो सकता, किसी भी दो हृदय रोगियों, मधुमेह के रोगियों अथवा और किसी नाम से पुकारे जाने वाले रोगियों के रोग का परिवार कभी भी पूर्ण रूप से एक सा नहीं हो सकता, अतः लक्षणों एवं यंत्रों पर आधारित रोग का निदान करते समय सहयोगी रोगों की उपेक्षा होना स्वाभाविक है, परन्तु एक्युप्रेशर पद्धति द्वारा जितना सही और विश्वसनीय निदान होता है, अन्यत्र प्रायः संभव नहीं होता।
२. कभी-कभी रोग के कारण कुछ और होते हैं और उसके लक्षण कहीं दूसरे अंगों पर प्रकट होते हैं, जैसे मधुमेह का कारण पाचन तंत्र का बिगड़ना भी हो सकता है न कि पेन्क्रियाज का खराब होना। हृदय शूल का कारण छोटी आंत में बनी गैस का प्रभाव भी हो सकता है, न कि हृदय की कमजोरी का होना। अस्थमा का कारण बड़ी आंत का बराबर कार्य न करना, न कि फेफड़ों का खराब होना, जब निदान ही अधूरा होता है तो उपचार कैसे स्थायी एवं प्रभावशाली हो सकता है? आधुनिक चिकित्सक ऐसे रोगों को प्रायः असाध्य बतला देते हैं, परन्तु हथेली और पगथली के समस्त प्रतिवेदन बिन्दुओं पर दबाव देने से जहाँ ज्यादा दर्द आता है, वे ही रोग
का मुख्य कारण होते हैं, भले ही रोग के लक्षण कहीं अन्य भाग में प्रकट क्यों न हों इसी कारण एक्युप्रेशर असाध्य रोगों के निदान की प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति होती है।
३. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही इस विधि द्वारा निदान संभव होता है, जहाँ-जहाँ पर दबाव देने से दर्द आता है, वे सभी प्रतिवेदन बिन्दु भविष्य में शरीर में रोग की स्थिति बनाते हैं, यदि रोग हो गया हो तो वे उसके कारण होते हैं, परन्तु यदि रोग के लक्षण प्रत्यक्ष बाह्य रूप से प्रकट न हुए हों तो भविष्य में होने वाले रोगों का कारण उन्हीं प्रतिवेदन बिन्दुओं में से होता है, रोग आने से पूर्व उसकी प्रारम्भिक अवस्था का निदान जितना सरल इस पद्धति द्वारा होता है, उतना प्रायः अन्यत्र कठिन होता है।
४. शरीर में रोग कभी अकेला आ ही नहीं सकता, जिन लक्षणों के आधार पर आज रोगों का नामकरण किया जाता है, वे वास्तव में रोगों के नेता होते हैं, जिन्हें सैकड़ों अप्रत्यक्ष रोगों का समर्थन और सहयोग प्राप्त होता है, परन्तु इस विधि द्वारा रोगों के पूरे परिवार का निदान होने से निदान सही और विश्वसनीय होता हैं, जो अन्य चिकित्सा पद्धतियों में प्रायः संभव नहीं होता।
५. हथेली और पगथली में दबाव देने पर जितने कम प्रतिवेदन बिन्दुओं पर अथवा जितना कम दर्द आता है, उतना ही व्यक्ति स्वस्थ होता है, जितने ज्यादा दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु उतना पुराना रोग और स्वास्थ्य खराब होता है, इस प्रकार इस निदान पद्धति द्वारा जो रोग आधुनिक पेथालोजिकल टेस्टों अथवा यंत्रों की पकड़ में नहीं आते, उन रोगों के कारणों का सरलता पूर्वक निदान किया जा सकता है, उपर्युक्त निदान अधिक सही और विश्वसनीय होता है, अतः उस निदान पर आधारित उपचार-प्रभावशाली, दुष्प्रभावों से रहित और अल्पकालीन होता है, जिस पर किसी को भी आंशका नहीं होनी चाहिये।
निदान बिल्कुल सरल, सस्ता, सहज, पूर्ण अहिंसक, दुष्प्रभावों से रहित, स्वावलम्बी, सर्वत्र अपने साथ उपलब्ध होता है। शरीर विज्ञान के विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं होने से सभी व्यक्ति स्वयं भी आत्मविश्वास के साथ उपचार कर सकते हैं। पूरे शरीर का निदान होने से शरीर के साथ-साथ, मन और वाणी के विकारों का भी, निदान करने वाला एवं अन्तःदााावी ग्रन्थियों का सरलतम निदान इस पद्धति द्वारा होता है।
निदान में मूल सिद्धान्तों की उपेक्षा अनुचित– आजकल हम आधुनिक चिकित्सा पद्धति के निदान से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि जब तक उनके द्वारा रोग प्रमाणित नहीं हो जाता, तब तक हम रोग को रोग ही नहीं मानते। अधिकांश एक्युप्रेशर चिकित्सक भी प्रायः उन्हीं रोगों से संबंधित प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं पर उपचार कर रोगी को राहत पहुँचाने तक ही अपने आपको सीमित रखते हैं। सुजोक और रिफ्लोक्सोलोजी के चित्रों में बतलाये गये प्रमुख बिन्दुओं में दर्द की स्थिति देख अधिकांश एक्युप्रेशर चिकित्सक भी कभी-कभी रोग के नाम से निदान करते संकोच नहीं करते, जैसे किसी व्यक्ति के हृदय के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दु पर दबाव देने से दर्द आने की स्थिति में उसे हृदय का रोगी कह देते हैं, परन्तु ऐसा सदैव सही नहीं होता। हृदय में रोग होने पर निश्चित रूप से हृदय के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दु पर दबाने से दर्द आता है, परन्तु इसका विपरीत कथन कभी-कभी गलत भी हो सकता है, क्योंकि उस प्रतिवेदन बिन्दु का शरीर के अन्य भागों से भी कुछ न कुछ संबंध अवश्य होता है, जैसे किसी व्यक्ति के पिता की मृत्यु होने पर पुत्र रोता है, इस कारण पुत्र को किसी अन्य कारण से रोते हुये देख यह कहना कि क्या आपके पिताजी की मृत्यु हो गयी है, कहाँ तक तर्क संगत है, अतः एक्युप्रेशर की इस पद्धति में आधुनिक चिकित्सा द्वारा कथित रोगों के नाम से निदान करना उसके मूल सिद्धान्तों के विपरीत होता है, निदानकत्र्ता मात्र इतना कह सकता है कि दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु, शरीर में उपस्थित रोग का प्रतिनिधित्व करते हैं, भले ही वे किसी भी नाम से क्यों न पुकारे जाते हों?
एक्युप्रेशर द्वारा उपचार की विधिहथेली और पगथली के सभी भागों में दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दुओं का पता लगाने के पश्चात, प्रत्येक दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु पर दिन में एक या दो बार बीस से तीस सैकण्ड तक, सभी प्रतिवेदन बिन्दुओं पर जमा हुये विजातीय पदार्थों को दूर करने हेतु, अपनी अंगुलियों और अंगूठे से सहनीय घुमावदार दबाव देने से, धीरे-धीरे विजातीय तत्त्व वहाँ से दूर होने लगते हैं, परिणाम स्वरूप शरीर के संबंधित रोग ग्रस्त भागों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित होने लगता है तथा रोगी रोग मुक्त होने लगता है तथा प्रत्यक्ष रोग न भी हो तो भविष्य में रोग होने की सम्भावनाएँ नहीं रहती हैं।
उपचार यथा संभव साधक को स्वयं ही करना चाहिये, स्वयं द्वारा निदान और उपचार करने से व्यक्ति सभी दर्दस्थ प्रतिवेदन बिन्दुओं पर समान दबाव दे सकता है और रोग में जैसे-जैसे राहत मिलती जाती है, उसका आत्म विश्वास और सजगता बढ़ती जाती है, दूसरा व्यक्ति प्रायः सभी दर्दस्थ बिन्दुओं पर दबाव नहीं देता, अतः यथा संभव जितना उपचार रोगी स्वयं कर सके, उतना तो कम से कम उसको स्वयं ही करना चाहिये, अन्य साधक तथा चिकित्सक का रोग से संबंधित प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं के दबाव हेतु शीघ्र राहत मिलने तक ही सहयोग लेना चाहिए, क्योंकि अधिकांश चिकित्सक भी एक्युप्रेशर सिद्धान्तों के अनुसार न तो रोगों का पूर्ण निदान ही करते हैं और न ही उपचार। आधुनिक चिकित्सा के निदान को आधार मानकर ही प्रायः नामधारी रोगों के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार करते हैं, सहयोगी रोगों की उपेक्षा करने से उनका उपचार कभी-कभी आंशिक और अस्थायी भी होता है एवं अधिक समय ले सकता है, परन्तु आजकल हम नामधारी रोग को सीधा नियन्त्रण में करने का प्रयास करते हैं, जो न्यायोचित नहीं होता।
सहयोगियों को दूर किये बिना जिस प्रकार नेता पर नियन्त्रण करना कठिन होता है, प्रायः हम अखबारों में पढ़ते हैं और टी.वी. पर देखते हैं कि प्रदर्शनों के समय प्रदर्शनकारियों के नेता को पुलिस सीधा कैद नहीं करती, पहले प्रदर्शनकारियों को प्रार्थना कर शान्त करने का प्रयास करती है, फिर लाठी चलाती है, अश्रु गैस छोड़ती है और जब सारी भीड़ चली जाती है तो नेता को आसानी से कैद किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार रोग के परिवार के सहायक रोगों से संबंधित सभी प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार करने से मुख्य रोग की ताकत स्वतः समाप्त हो जाती है तथा वह शीघ्र नियन्त्रण में लाया जा सकता है, जिस प्रकार जनतंत्र में सहयोगियों का समर्थन न मिलने से नेता की ताकत समाप्त हो जाती है, नेता को पद त्याग करना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार अप्रत्यक्ष सहयोगी रोगों के दूर हो जाने से मुख्य रोग से शीघ्र एवं स्थायी मुक्ति मिल जाती है, यही एक्युप्रेशर चिकित्सा का मूल सिद्धान्त है।
उपसंहार– स्वास्थ्य विज्ञान जैसे विस्तृत विषय को सम्पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करना बड़ा कठिन है, फिर भी हिंसा द्वारा निर्मित दवाओं का उपयोग न लेने का संकल्प करने वाले प्रत्येक साधक को एक्युप्रेशर, सुजोक, रेकी, मुद्राओं, प्राणिक-हिलींग, दूरस्थ, डाउजिंग, पिरामीड, सूर्य किरण, रंग एवं चुम्बक जैसी बिना दवा उपचार एवं स्वास्थ्य सुरक्षा की स्वावलंबी, प्रभावशाली, अहिंसात्मक, निर्दोष, दुष्प्रभावों से रहित चिकित्सा पद्धतियों की साधारण सैद्धान्तिक जानकारी अवश्य रखनी चाहिए ताकि वे स्वावलंबी बन समाधि में रह सके।
डॉ. चंचलमल चोरडिया
आत्मिंचतन का महोत्सव १५५वां मर्यादा महोत्सव
मुंबई में मनाया गया
मुम्बई: तेरापंथ धर्मसंघ का महाकुंभ मर्यादा महोत्सव प्रोफेसर मुनि महेंद्रकुमार एवं मुनिवृंद, शासनश्री साध्वी कैलाशवती, साध्वी अणिमाश्री, साध्वी मंगलप्रज्ञा एवं साध्वीवृन्द के सान्निध्य में तेरापंथ भवन कांदिवली में आयोजित हुआ।
मुनि महेंद्र कुमार ने कहा कि हम भगवान महावीर के आभारी हैं कि उन्होंने वीतरागता का मार्ग बताया, साथ ही आचार्य परंपरा के भी आभारी हैं, जिन्होंने हमें मर्यादाओं में बांधते हुए सफल जीवन बनाने के लिए अग्रसर किया। आत्मचिंतन का महोत्सव है ‘मर्यादा महोत्सव’।
साध्वी कैलाशवती ने कहा कि हमारे धर्मसंघ के आचार्यों ने जो लकीरें खींची, वही हमारे धर्मसंघ की मर्यादाएं बन गईं। साध्वी अणिमाश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु से मर्यादा की जो कड़ी शुरू हुई वो आज भी अविरल प्रवाहित हो रही है।
साध्वी मंगलप्रज्ञा ने कहा कि आज का उत्सव संगठन का उत्सव है, मर्यादाओं का महोत्सव है। साध्वी मैत्रीप्रभा, साध्वी शारदाप्रभा,मुनि जागृत कुमार, साध्वी पंकजश्री, साध्वी सुधाप्रभा, मुनि अजित कुमार, मुनि सिद्ध कुमार ने मार्गदर्शन किया। मुनि अभिजीत कुमार ने संचालन किया। सभा मंत्री विजय पटवारी ने स्वागत किया। वरिष्ठ उपाध्यक्ष बाबूलाल बाफना ने भी अभिनंदन किया। मीनाक्षी भूतोड़िया मर्यादा महोत्सव को केंद्रित कर गीत की प्रस्तुति दी। मुम्बई महिला मंडल अध्यक्ष जयश्री बडाला ने विचार रखे, इस पावन अवसर पर ताराचंद बांठिया, अर्जुन चौधरी, सुनील कच्छारा, मनोहर गोखरू, दीपक डागलिया, महेंद्र तातेड़, प्रीतम हिरण, पारस दुग्गड़, मनोज ढालावत, किशोर धाकड़, रवि दोषी, विनोद डांगी, श्वेता सुराणा, सुमन चपलोत, रमेश सोनी, मनोहर कच्छरा, पवन ओस्तवाल, दिनेश सिंघवी, भरत लोढ़ा सुनील इंटोदिया, नवीन चौधरी, महेश मेहता, राजकुमार चपलोत, निर्मल कुमठ, तुरुणा बोहरा, रचना हिरण, भारती सेठिया, निर्मला चंडालिया की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम सफल बनाने तुलसी महाप्रज्ञ फाउंडेशन के अध्यक्ष सुरेंद्र कोठारी, मंत्री कमलेश बोहरा, कोषाध्यक्ष जवरी मल नोलखा, तेरापंथ सभा मुंबई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बाबूलाल बाफना, विनोद बोहरा, भानुकुमार नाहटा, नवरत्न गन्ना, उपाध्यक्ष नरेन्द्र बांठिया, गणपत डागलिया, बाबूलाल समदरिया, सुरेश राठौड़, भवरलाल बाफना, लक्ष्मण कोठारी, मांगीलाल छाजेड़, भीमराज सुराणा, हस्तीमल मेहता, संपत चोरडिया, भगवतीलाल पटवारी, राजेंद्र मूथा, मनोज सिंघवी, गौतम डागा, अनिल सिंघवी, भगवतीलाल धाकड़, विनोद सोलंकी, नितेश धाकड़, अणुव्रत समिति अध्यक्ष रमेश चौधरी, दलपत बाबेल, संजय मुणोत, शांतिलाल भलावत, दिलीप चपलोत, मनोज लोढा, गोमती मेहता, विनोद डागलिया, अशोक कोठारी, सुशीला मादरेचा आदि सक्रिय थे।
आभार ज्ञापन सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष विनोद बोहरा ने किया।
राष्ट्रसंतों का संबोधि धाम में धूमधाम से हुआ प्रवेश
जोधपुर: कायलाना रोड स्थित साधना स्थली संबोधि धाम में राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी, राष्ट्रगौरव श्री चंद्रप्रभ जी और डॉ. मुनि शांतिप्रिय जी के मंगल प्रवेश पर शहरवासियों एवं देश भर से आए श्रद्धालुओं द्वारा धूमधाम से स्वागत किया गया, इस अवसर पर प्रताप नगर के पास शांति नगर से गुरुजनों के अभिनंदन में भव्य सत्संग शोभायात्रा निकली जो कायलाना चौराहा होते हुए संबोधि धाम पहुंची, जगह-जगह पर गुरुजनों का स्वागत किया गया। शोभायात्रा में सतरंगी मंगल कलशों को धारण कर चल रही बहनों ने सबका मन मोहा। सैकड़ों विद्यार्थियों द्वारा जीने की कला से जुड़े हुए स्लोगन और रंग-बिरंगे झंडों को देख कर शहरवासी मंत्रमुग्ध हो गए। युवाओं ने गुरुदेव के जयकारे लगा कर शोभायात्रा को गुंजायमान कर डाला। संबोधि धाम के साधना सभागार में आयोजित मंगल प्रवेश दिव्य सत्संग समारोह में सर्वप्रथम केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह शेखावत, महापौर घनश्याम ओझा, पूर्व विधायक एवं संस्था के अध्यक्ष कैलाश भंसाली, महामंत्री अशोक पारख, पुणे के वरिष्ठ समाजसेवी अशोक गुंदेचा ने गुरुजनों को शॉल ओढ़ाकर शहरवासियों की ओर से अभिनंदन किया। कार्यक्रम में स्वागत नृत्य इंडो पब्लिक स्कूल की बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत किया गया, इस अवसर पर डॉ मुनि शांतिप्रिय ने कहा कि पूरा देश हमसे बोलने की कला सीखता है पर हमने जोधपुर से बोलने की कला सीखी है। जोधपुर की मिठास, अपणायत और भक्ति भाव को हमने पूरे देश के सामने आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया। जोधपुर आकर ऐसा लग रहा है जैसे हम अपनी मां की गोद में आ गए हैं।
जोधपुर शब्द से प्रेरणा लेने की सीख देते हुए उन्होंने कहा कि जोधपुर का ज कहता है जलो मत सबसे प्रेम करो, धूप में तो २ प्रतिशत लोग ही जलते हैं पर ९८ प्रतिशत तो एक दूसरे से ईर्ष्या में जलते हैं।
ध कहता है धनवान बनो और धर्म करो।
प कहता है प्रभु की पूजा और परोपकार करो और
र कहता है सभी जीवों पर रहम करो व बहन-बेटियों की रक्षा करो।
अगर यह चार सूत्र जोधपुर वासियों के जीवन में उतर जाए तो जोधपुर पूरे देश के लिए वरदान बन जाए।
इस दौरान संत ललितप्रभ ने कहा कि जोधपुर हमारी मातृभूमि तो नहीं पर मातृभूमि से कम भी नहीं है, पूरे देश में हमने पिछले ३ सालों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात की यात्रा की और हमारे प्रवचन पांडाल में हजारों लोग आए, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सैकड़ों लोगों ने मंच पर आकर मांसाहार और गुटखा शराब सिगरेट जैसी गलत आदतों का त्याग किया, जो हमारे लिए सदा यादगार रहेगा, हमने सूरज बनकर पूरी दुनिया का अंधेरा भले ही दूर न किया हो पर दीपक बनकर अंधेरा दूर करने में सफल हो गए, हमें जीवन को पॉजिटिवनेस, इजीनेस और हैप्पीनेस के साथ जीना चाहिए, पॉजिटिव व्यक्ति खुद भी मुस्कान से भरा हुआ रहता है और अपनी ओर से सदा औरों को मुस्कान बांटता है, इस अवसर पर संत चंद्रप्रभ ने कहा कि हमारी ५५०० किलोमीटर की अहिंसा यात्रा शांतिपूर्ण और सफलता पूर्ण रही, हमने हजारों लोगों को जीने की कला, सामाजिक समरसता और भाईचारे के पाठ पढ़ाए, उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति अपने सपना और सोच को ऊंचा उठा ले तो गुल्ली डंडा खेलने वाला सचिन तेंदुलकर, इमली के बीज बेचने वाला अब्दुल कलाम बन जाता है, वही हौसलों को बुलंद करके घर में रहने वाली महिला भी एक दिन किरण बेदी और कल्पना चावला बन जाती है, उन्होंने बसंत पंचमी पर सबको प्रतिदिन अच्छी किताबें पढ़ने की प्रेरणा दी, ताकि हमारी सोच हमारे सपने ऊंचे उठ सके, जो व्यक्ति प्रतिदिन २० मिनट अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करता है वह मात्र ५ सालों में पारंगत विद्वान बन जाता है। प्रवचन से प्रेरित होकर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने हाथ खड़े कर प्रतिदिन पवित्र पुस्तकें पढ़ने का संकल्प लिया, उन्होंने जोधपुर को ग्रीन सिटी बनाने के लिए सबको प्रेरित किया, इस अवसर पर गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि राष्ट्रसंतों के सत्संग और सानिध्य ने मेरे विचार, वचन और व्यवहार को शुद्ध किया है, उन्होंने व्यष्टि से समष्टि तक जो परिवर्तन की लहर फैलाई है उस पर देशवासी सदा गर्व करते रहेंगे।
महापौर घनश्याम ओझा ने कहा कि जोधपुर में साधना शिविर से ज्यादा संस्कार शिविर लगाने की जरूरत है, अगर बच्चों से लेकर बड़े संस्कारित होंगे तो हम अपने शहर को स्वच्छ स्वस्थ और समृद्ध बनाने में सफल हो जाएंगे, उन्होंने आश्वासन दिया कि नगर निगम आगामी १ साल तक जोधपुर जिले को हरा-भरा बनाने और हर गांव में तालाब खुदवाने के लिए भरपूर कर्मयोग करेगा पुणे के अशोक गुंदेचा ने कहा कि गुरूजन समाज में जो प्रेम, एकता और सामाजिक समरसता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं वह हम सब लोगों के लिए वरदान स्वरुप है। पारस ब्लड बैंक के सुखराज मेहता ने कहा कि राष्ट्रसंतों का आगामी चातुर्मास जोधपुर होना चाहिए और इसका लाभ हमारे परिवार को मिलना चाहिए ऐसी हमारी भावना है, इस अवसर पर संत चंद्रप्रभ की महावीर की साधना के रहस्य पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया, इससे पूर्व प्रवेश समारोह के लाभार्थी श्री शिवरतन जी नवरतन जी मानधना परिवार का अतिथियों द्वारा साफा पहनाकर स्वागत और अभिनंदन किया गया, इस दौरान बसंत पंचमी पर सरस्वती माता की महाआरती का लाभ नेमीचंद लुंकड़ धवा वालों ने लिया। कार्यक्रम में चेन्नई, अहमदाबाद, जयपुर, बीकानेर, पाली, शिवगंज, बाड़मेर आदि अनेक शहरों से गुरु भक्त शामिल हुए।