जैन एकता है जरुरी
जैन एकता का प्रश्न खड़ा है सबके सम्मुख
हल अभी तक क्यों कोई खोज नहीं पाया है
अनेकता में एकता की बात हम कैसे कहें
अलग-अलग पंथ का ध्वज हमने फहराया है
गुरुओं ने अपने-अपने कई पंथ बना लिए
महावीर के मूल पथ को सभी ने बिसराया है
‘संवत्सरी’ को भी हम अलग-अलग मनाते सभी
एकता का भाव कहां मन में समाया है
संगठन में ही शक्ति है ये क्यों नहीं विश्वास हमें
भविष्य के अंधेरे का होता क्यों नहीं आभास हमें
टूट टूट कर बिखर जाएंगे वे दिन अब दूर नहीं
खतरे की घंटियों का क्यों नहीं अहसास हमें
एक ही है ध्वज हमारा, सबका मंत्र एक ‘णमोकार’ है
एक ही प्रतीक चिन्ह है, महावीर हम सब के आधार हैं
अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत सभी मूल सिद्धांत हमारे हैं
रोटी-बेटी का व्यवहार आपस में हम सब करते सारे हैं
वक्त आ गया है फिर एकता का बिगुल हमें बजाना है
मनमुटाव छोड़ हम सब को एक ध्वज के नीचे आना है
महावीर को अलग-अलग रूपों में तो हमने माना खूब
अब हमें एक होकर महावीर को दिल से अपनाना है
परचम एकता का नहीं लहराया तो बुद्धिमान समाज बुद्धू कहलाएगा
संगठित गर नहीं हुए तो वजूद ही हमारा संकट में पड़ जाएगा
देर हुई तो भले हुई अब और नहीं देर करो
एक हो मन तो हमारे रोम-रोम में शक्ति का संचार होगा
पुरी दुनिया में अलग ही जैन समाज का परचम लहरायेगा
– युगराज जैऩ मुंबई