आचार्य भगवंतों और राष्ट्र-संतों का मीरा रोड पर हुआ धर्म समागम

प्रतिदिन करें प्रार्थना, परोपकार व प्रणाम आएंगे चमत्कारिक परिणाम - राष्ट्रसंत चन्द्रप्रभ

मुंबई: मीरा रोड पूर्व कनकिया स्थित रश्मि विला में पूज्य आचार्य श्री पद्मसागर सूरि जी म., आचार्य श्री हेमचन्द्र सागर सूरिजी, आचार्य श्री विवेकसागर सूरिजी और राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभ जी व राष्ट्रसंत श्री चंद्रप्रभ जी के साथ अनेक मुनि भगवंत और साध्वी भगंवतों का धर्म समागम समारोह आयोजित किया गया|आदिनाथ जैन मंदिर, भायंदर से धर्म जुलूस निकला जो मीरा रोड पहुंचकर धर्मसभा में बदल गया। इस दौरान गणिवर्य श्री प्रषांतसागरजी, पूज्य श्री नीति सागरजी, साध्वी श्री नलीनीयषाजी, श्रमण संघीय साध्वी श्री सोरभसुधाजी भी उपस्थित थे।धर्मसभा को संबोधित करते हुए पदमसागर सूरिजी ने कहा कि संत के दो धर्म है ज्ञान और ध्यान और गृहस्थ के दो धर्म है दान और पूजा, उन्होंने कहा कि इंसान केवल मेहनत और बुद्धि से आगे नहीं बढ़ता, मेहनत करने वाला मजदूर चार सौ रुपये कमाता है तो बुद्धि रखने वाला इंजिनियर चार हजार रुपये, पर कोई अगर प्रतिदिन लाखों रुपये कमा रहा है तो इसका मतलब उसकी पुण्याई प्रबल है। पुण्याई दान देने से बढ़ती है। प्रकृति में हर चीज लौटकर आती है, जो मानवता के नाम दस रुपये लगाता है भगवान उसे हजार गुना करके लौटाता है, उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति जीवन में दान देने की आदत डाले, चाहे थोड़ा ही दो, पर रोज दो, जो करना है अपने हाथों से करके जाना, कल का कोई भरोसा नहीं है, हमारे पीछे हमारे नाम पर दान-पुण्य होगा इस बात पर भी भरोसा मत करना, उन्होंने कहा कि लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा सदा वहाँ बरसती है जहाँ इनका सदूपयोग होता है, इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं कुछ खाकर खुश होते हैं तो कुछ खिलाकर, जो खाकर खुश होते हैं वे सदा औरों पर आश्रित रहते हैं, पर जो खिलाकर खुश होते हैं उनके भंडार प्रभु-कृपा से सदा भरे हुए रहते हैं।

राष्ट्रसंत श्री चंद्रप्रभ जी ने कहा कि प्रतिदिन प्रणाम, प्रार्थना और परोपकार करें इससे जीवन में चमत्कारिक परिणाम आएगा, सुबह उठकर बड़ों को प्रणाम कर दुआएं लें। एक-दूसरे को प्रणाम करने से परिवार का वातावरण आनंदमय हो जाता है, जब से प्रणाम करने की आदत कम हुई है तब से परिवारों के टूटने और तलाक बढने की बाढ़-सी आ गई है, जिस घर में सुबह की शुरुआत प्रणाम से होती है वहाँ कभी कलह का वातावरण निर्मित नहीं हो सकता, संतप्रवर ने कहा कि धर्मस्थान में हम आधा घंटा-एक रहते हैं और घर में तेइस घंटे, इसलिए धर्म की शुरुआत मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारे से नहीं घर से की जानी चाहिए, जो माता-पिता का न हो पाया वह भला परमात्मा का क्या हो पाएगा। संतप्रवर ने कहा कि जिस मंदिर को हमने बनाया हम उसकी तो पूजा करते हैं, पर जो माँ-बाप हमें बनाते हैं हम उसकी पूजा क्यों नहीं करते, अगर व्यक्ति केवल घर के सात-आठ लोगों के बीच रहने और जीने की कला सीख जाए तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए। सामूहिक प्रार्थना करने का मंत्र देते हुए संतप्रवर ने कहा कि अगर घर के सभी लोग सुबह उठकर सामूहिक प्रार्थना करेंगे तो पूरे घर का आभामण्डल ठीक रहेगा, अगर हमारे जीवन या घर पर ग्रह-गोचरों का नकारात्मक प्रभाव है तो वह भी प्रार्थना करने से दूर हो जाएगा। संतप्रवर ने उद्योगपतियों से कहा कि वे फेक्ट्री में भी सुबह-सुबह प्रार्थना करवाएं, एक माह बाद चमत्कार होगा, उत्पादन दुगुना हो जाएगा और फेक्ट्री का वातावरण मधुर बन जाएगा।कार्यक्रम का मंच संचालन विनीत गेमावत ने किया और आभार कार्यक्रम आयोजक पारस चपलोत ने किया, इस अवसर पर चपलोत परिवार का दिव्य सत्संग समिति एवं भायंदर जैन श्री संघ द्वारा अभिनंदन किया गया।

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