भारत के जैन तीर्थ: राजस्थान
सवाई मोधापुर
सवाई मोधापुर : सवाईमाधोपुर नगर में १० दिगम्बर जैन मंदिर है, इनमें नौ सौ से अधिक प्रतिमाएं हैं, अकेले दीवानजी के मंदिर में पांच सौ से अधिक प्रतिमाएं है। रणथंभौर: सवाईमाधोपुर से लगभग १० किमी पर रथथम्भौर का ऐतिहासिक किला है, इस किले में एक प्राचीन मंदिर है, जिसकी प्रतिमा को विक्रत संवत १० का बताया जाता है।
शेरपुर: रणथम्भौर से ३-४ किमी की दूरी पर शेरपुर है। यहां जैन मंदिर है, इसमें मूलनायक प्रतिमा भगवान पाश्र्वनाथ की है, यह विक्रम संवत् १५ की बताई जाती है, यहां के अतिशयों की अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
खंडार : शेरपुर से ८-९ किमी आगे खंडार है, यह भी एक अतिशय क्षेत्र है। पहाड़ पर प्राचीन जिन मंदिर है, यहां चट्टानों पर डेढ़ मीटर अवगाहना की चार प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, ये विक्रम संवत २० से ३० तक की बताई जाती है।
श्री महावीरजी (चांदनपुर): यह अतिशय क्षेत्र है, पश्चिम रेलवे भरतपुर और गंगापुर स्टेशनों के बीच ‘श्री महावीरजी’ स्टेशन है, यहां प्राय: सभी गाड़ियां रुकती है, ग्राम का नाम चांदनपुर है और यहां के मंदिर की ओर से निशुल्क बस सेवा है, यहां विशाल दिगम्बर जैन मंदिर है, जिसमें टीले से प्राप्त भगवान महावीर की दसवीं शताब्दी की मनोज्ञ प्रतिमा मूलनायक है और भी कई देवियां हैं। मूल मंदिर के नीचे ध्यान केन्द्र में हीरे-पन्ने आदि की लगभग २०० प्रतिमा दर्शनीय हैं, प्रतिमाओं का यह संग्रह बेजोड़ है, इस क्षेत्र की बड़ी मान्यता है, बड़ी संख्या में यात्री प्राय: वर्ष भर यहां दर्शन को आते हैं। जैनों के अलावा मीणा, गूजर, जाट आदि बड़ी संख्या में भगवान के दर्शन करने आते हैं, यहां ब्रह्यचारिणी कमलबाईजी द्वारा स्थापित महाविद्यालय है, जिसमें कक्षा एक से स्नातकोत्तर की शिक्षा दी जाती है, इस विद्यालय में समीपवर्ती सभी जातियों की लड़कियां शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को आदर्श जीवन बनाती हैं। छात्रावास में कांच के मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की अनुपम प्रतिमा है। प्राकृतिक चिकित्सालय के पास कृष्णबाई द्वारा स्थापित भव्य दिगम्बर जैन मंदिर और शिक्षण संस्था है। नदी के दूसरी ओर शांतिवीर नगर है जहां भगवान शांतिनाथ की लगभग ९ मीटर ऊंची प्रतिमा और तीर्थंकरों की मूर्तियां है, जैन गुरुकुल और कीर्तिस्तंभ भी हैं, मुख्य मंदिर के पीछे की ओर भगवान की चरण छतरी है, यहां से भगवान महावीर की वह मूर्ति निकली थी जो इस मंदिर में विराजमान है, इस मूर्ति की भव्यता अन्यात्र नहीं मिलती है, क्षेत्र पर सुविधायुक्त आवास और भोजन व्यवस्था उपलब्ध है।
जयपुर: जयपुर राजस्थान की राजधानी है, यह गुलाबी शहर (पिंक सिटी) के रूप में प्रसिद्ध है। इस नगर का निर्माण महाराज सवाई जयसिंह ने कराया था। राजनैतिक, आध्यात्मिक, साहित्यिक, व्यापारिक सभी दृष्टियों से जयपुर जैनों का प्रमुख वेंâद्र रहा है। नगर में ४५० से अधिक चैत्यालय और मंदिर हैं, इनमें पटौदी का मंदिर, चौबीस महाराज का मंदिर, कालडेरा और महावीर मंदिर बड़े मंदिर हैं। सिरमोरियों का मंदिर कलापूर्ण रचना के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर विख्यात विद्वान पं. टोडरमलजी, पं. दौलतरामजी, पं काशीलालजी, पं सदासुखजी, पं. जयचंद्र छावड़ा की नगरी रही है। भारत विभाजन के बाद मुल्तान के जैनबंधु अपने साथ बड़ी कठिनाई पूर्वक जैन मूर्तियां लाए थे, इन मंदिर का निर्माण कराकर उन्होंने वे ही मूर्तियां यहां प्रतिष्ठापित की हैं, जयपुर के निकट आमेर और सांगानेर में भी दर्शनीय दिगम्बर जैन मंदिर है।
चूलगिरि : जयपुर नगर से लगभग ३ किमी दूर खानियां में राणाओं की नसियां के पास पहाड़ पर चूलगिरि पाश्र्वनाथ मंदिर है, यह जैनों का तीर्थ और अतिशय क्षेत्र है, मंदिर में अनेक टोंक और वेदियां हैं। मंदिर तक सड़क व सीढ़ियां बनी हैं। आवास की व्यवस्था है।
पदमपुरा (वाड़ा) : जयपुर से खानिया-गोनेर होते हुए पदमपुरा २४ किमी की दूरी पर है। शिवदासपुरा रेलवे स्टेशन से क्षेत्र ६ किमी है। पदमपुरा (वाड़ा) अतिशय क्षेत्र है। कहा जाता है कि छोटे से गांव बाड़ा में एक व्यक्ति को भैरोंजी की सवारी आती थीं, बाड़ा में गंभीर जल संकट था, एक दिन उस व्यक्ति से लोगों ने पूछा कि गांव का जल संकट कब दूर होगा, जब भूगर्भ से बाबा की चमत्कारी मूर्ति निकलेगी उस व्यक्ति का उत्तर था।