Category: मार्च-२०१९

मन को आनंद, उत्साह और ऊर्जा भरा बनाती है संबोधि साधना 0

मन को आनंद, उत्साह और ऊर्जा भरा बनाती है संबोधि साधना

जोधपुर: राष्ट्रगौरव, ध्यानगुरु संत चंद्रप्रभ जी ने कहा कि स्वस्थ रहने के पांच चरण हैं प्रॉपर डाइट, प्रॉपर एक्सरसाइज, प्रॉपर ब्रीदिंग, प्रॉपर मेडिटेशन और प्रॉपर रिलैक्सेशन। संबोधि साधना इन पांचों चरणों को सीखने की वैज्ञानिक और व्यावहारिक पद्धति है। संबोधि का मतलब है सम्यक बोध या संपूर्ण बोध। होश और बोध पूर्व जीवन जीने की आध्यात्मिक कला का नाम है संबोधि साधना, उन्होंने कहा कि मन के चार प्रकार है- होटल मन, हॉस्पिटल मन, होम मन और हेवन मन। होटल मन अर्थात भोग विलास में डूबा हुआ मन, हॉस्पिटल मन अर्थात बीमार मन, होम मन यानी संतुलित मन और हेवन मन यानी आनंद, उत्साह और ऊर्जा से भरा हुआ मन। संबोधि साधना करने से इंसान होटल और हॉस्पिटल मन से मुक्त होता है और होम मन से हेवन मन की और गतिशील होना शुरू हो जाता है। संतप्रवर जोधपुर के कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में १२ से १७ मार्च तक आयोजित पांच दिवसीय संबोधि ध्यान योग शिविर के दौरान देश भर से आए साधकों को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने कहा कि शांति, सिद्धि और प्रगति के द्वारों को खोलने का दुनिया में सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग ध्यान है, इंसान जब-जब दुखी, चिंतित अथवा तनावग्रस्त हुआ तब-तब ध्यान ने उसे समाधान का मार्ग दिया है, ध्यान ने अतीत को संवारा है और इसी से वर्तमान और भविष्य को संवारा जा सकता है, ध्यान तो जिंदगी की घड़ी में भरी जाने वाली चाबी है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपनेचौबीस घंटों को उर्जित कर सकता है। अध्यात्म का सार है ध्यान, जिस ईश्वरीय तत्त्व की तलाश व्यक्ति जीवन भर बाहर करता है, वह तो उसके भीतर है जिसका साक्षात्कार ध्यान से संभव है। महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों ने ध्यान के माध्यम से ही परम सत्य को प्राप्त किया था, उन्होंने कहा कि शरीर के रोगों को मिटाने के लिए मेडीसिन है और मन के रोगों को मिटाने के लिए मेडीटेशन है, अगर प्रतिदिन केवल बीस मिनिट का ध्यान किया जाए तो दिमाग की दौ सौ बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। मेडीसिन रोगों को मिटाती नहीं बल्कि उन्हें दबाती है और जिस तरह से आज मेडीसिन के साइड इफेक्ट बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में एकमात्र मेडीटेशन ही परफेक्ट एवं साइड इफेक्ट से मुक्त है, हम मेडीटेशन अपनाएं और मेडीसिन से छुटकारा पाएं। उन्होंने कहा कि ध्यान संसार को त्यागने की नहीं, संसार में जीने की कला है। सौ जगह भटकते मन को एक जगह लाकर स्थिर करने का नाम है ‘ध्यान’ उन्होंने कहा कि ध्यान केवल आँखें बंद कर बैठने का नहीं, वरन् जीवन की हर छोटी-से-छोटी गतिविधि को जागरूकता पूर्वक करने का नाम है। ध्यान का उद्देश्य व्यक्ति को एकाग्र और तरोताजा करना है। आंधे घंटे का ध्यान करके व्यक्ति चौबीस घंटों को ऊर्जावान बना सकता है। सब्जी का फीकी या खारी हो जाना, रोटी का जल जाना, पापड़ का सही न सिकना, चलते वक्त पत्थर से ठोकर खा बैठना, दुर्घटना का शिकार हो जाना, दाँत के नीचे जीभ का आना, ये सब और कुछ नहीं, ध्यान से चूकने के परिणाम हैं। ध्यान के प्रयोग कर विद्यार्थी शिक्षा में और व्यापारी व्यापार में नई सफलताओं को छू सकता है। tध्यान से पाएं चंचलता से मुक्ति- संतश्री ने कहा कि आज हर व्यक्ति चंचलता से परेशान है। पूजा में, माला में, पढ़ाई में मानसिक चंचलता के चलते ये लोगों को सकारात्मक परिणाम नहीं दे पाते हैं। ध्यान से चंचलता का समाधान संभव है। ध्यान बिना सारा धर्म-कर्म निष्फल है, जिस तरह महिला पापड़ सेकते समय एकाग्र, तन्मय व जागरूक रहती है वैसे ही हर कार्य को व्यक्ति एकाग्रता से सम्पादित करने लग जाएं तो जीवन की प्रगति निश्चित है, जैसे नियमित अभ्यास के कारण गृहिणी आँखों पर पट्टी बांधकर भी अच्छी रोटी बेल सकती है, वैसे ही लगातार ध्यान के प्रयोग से मन एकाग्र व शांत हो जाता है और व्यक्ति की मानसिक क्षमता, बौद्धिक प्रज्ञा और आध्यात्मिक शक्तियाँ जाग्रत होने लगती हैं। ध्यान का मार्ग सबसे सरल-ध्यान के मार्ग को सबसे सरल बताते हुए संतश्री ने कहा कि पूजा करने, सामायिक-प्रतिक्रमण करने अथवा तीर्थयात्रा करने के लिए तो व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है, पर ध्यान के लिए कुछ करना नहीं पड़ता वरन् जहाँ बैठे हैं, वहीं आँखें बंद कर स्वयं में उतरना होता है। विपरीत वातावरण में भी सहज रहने, हर निर्णय को जागरूकता पूर्वक कर लेने की कला का विकास ध्यान से होता है। अगर कभी किसी काम में मन न लगे अथवा तन-मन में बैचेनी का अनुभव हो तो व्यक्ति किसी शांत स्थान पर जाकर बैठ जाए और ध्यान में उतर जाए, वह पुनः नई ताजगी और आनन्द से भर उठेगा। ध्यान में निम्न बातों का रखें ध्यान- ध्यान की पूर्व भूमिका के रूप में संत प्रवर ने कहा कि ध्यान के लिए शांत एवं स्वच्छ स्थान का चयन करें, कपड़े श्वेत व ढीले हों, पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन में बैठे, मेरुदण्ड सीधा रखें, हाथों को ज्ञानमुद्रा अथवा योगमुद्रा में रखें, आँखों को बंद कर आती-जाती श्वासधारा पर ध्यान करें और क्रमशः हृदय, मस्तिष्क और सिर की चोटी पर पाँच-पाँच मिनिट मन को एकाग्र करें, यह स्वयं को ऊर्जावान और आनन्दमय बनाने का रामबाण प्रयोग है। संतप्रवर ने ध्यान की सिद्धि के लिए अति सम्पर्क से बचने, आइने की तरह जिंदगी जीने, एकांत व मौन का अभ्यास करने और हर कार्य को सावधानी से करने के मंत्र दिए। डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर द्वारा शिविर में साधक भाई-बहनों को योग का प्रशिक्षण दिया गया। संबोधि धाम के महासचिव स्वरूपचंद बच्छावत ने बताया कि राष्ट्रसंत ललितप्रभ जी और चंद्रप्रभ जी का फरवरी एवं मार्च महिने में प्रवास जोधपुर स्थित संबोधि धाम में रहेगा जहां उनके सानिध्य में साहित्य एवं साधना से जुड़े विविध कार्य सम्पन्न होंगे। जरूरतमंद परिवारों की सहायता कर पुण्य का उपार्जन कर लुधियाना: महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसाइटी रजि. द्वारा राशन वितरण समारोह सिविल लाईन्ज़ के जैन स्थानक में आयोजित किया गया। समारोह का शुभारंभ महामन्त्र नवकार के समुहिक उच्चारण से शुरू किया गया। लुधियाना के २ प्रसिद्ध उद्योगिक घराने स्वास्तिक फीड्स परिवार के ओर से स्व. श्रीमति विनय जैन की पुण्य स्मृति सुरेश जैन, राजन जैन, विधुशी जैन, जिनेशा जैन, समृद्धि जैन परिवार के इलावा दानवीर सुश्रावक कीमति लाल जैन के जन्म दिन के उपलक्षय में प्रवेश जैन, संजीव जैन आदि परिवार की ओर से ५० जरूरतमंद परिवारों को राशन वितरण किया गया, महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसाईटी की चेयरपरसन आर्दश जैन, प्रधान नीलम जैन, महामंत्री रीचा जैन ने बताया कि, यह हमारी समाजिक जिम्मेवारी भी है जो परिवार आज असहाय महसूस कर रहे हैं उनकी सहायता कर हम पुण्य का उपार्जन करें, इसी के साथ-साथ यह दोनों परिवार मानव सेवा कार्यों के लिए अपनी एक अलग पहचान रखते हैं और इन दोनों परिवारों का सहयोग भी हमेशा मिलता रहता है, इस अवसर पर दोनों परिवारों को समुहिक तौर पर माला एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया, इस मौके पर महिला शाखा भगवान महावीर सेवा सोसायटी की सदस्या नीरा जैन, रमा जैन, नीलम जैन, विनोद देवी सुराणा, मंजू सिंघि, पूनम जैन, प्रभा सूद, रेणू जैन, चांदनी जैन, रजनी जैन, कविता जैन, उपमा जैन, नीलम जैन, पूनम जैन किडले, शिवाली जैन, प्रवेश जैन, एवं भगवान महावीर सेवा संस्थान के प्रधान राकेश जैन, उप-प्रधान राजेश जैन, सहमंत्री सुनील गुप्ता, राकेश अग्रवाल, अरिदमन जैन इत्यादि गणमान्य उपस्थित थे। -नीलम जैन परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा रचित गीत भगवान महावीर अहिंसा पुरस्कार से सम्मानित होंगे विंग कमांडर अभिनंदन दिल्ली: श्री दिगम्बर जैन महासमिति द्वारा पुरस्कार की घोषणा की गई है, हर्ष का विषय है कि श्री दिगम्बर जैन महासमिति द्वारा भगवान महावीर अहिंसा पुरस्कार का शुभारंभ किया गया है। पुरस्कार किसी भी क्षेत्र में मानवता, देश, धर्म व समाज के लिए असाधारण कार्य करने वाले व्यक्तित्व को प्रदान किया जाएगा, इसके अंतर्गत रूपए दो लाख इक्यावन हजार की राशि, प्रशस्ति पत्र व शील्ड प्रदान की जाएगी, यह प्रथम पुरस्कार देश का गौरव बढ़ाने वाले पराक्रमी विंग कमांडर श्री अभिनंदन वर्धमान सिमहैकुट्टी (जैन) को देश की रक्षा, अदम्य साहस, पराक्रम व निष्ठा के लिए प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा, श्री दिगम्बर जैन महासमिति विंग कमांडर अभिनंदन जी को बधाई देते हुए तथा पुरस्कार की घोषणा दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष मणिंद्र जैन ने की है। दिगम्बर महासमिती कई सालों से सामाजिक कार्यों में कार्यरत है। पुरस्कार दिल्ली में १७ अप्रैल को भगवान महावीर जन्मकल्याण महोत्सव में दिया जा सकता है। मंजू लोढा को मिला जीवन गौरव सम्मान मुंबई: महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी ने ‘परमवीर’ की लेखिका श्रीमती मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शुक्ल, साहित्यकार रंगनाथ तिवारी और रामेश्वर नाथ मिश्र ‘अनुरोध’ को उनके लेखन, कृतित्व और साहित्यिक योगदान के लिए जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया। महाराष्ट्र के शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री विनोद तावड़े ने ये पुरस्कार प्रदान किये। अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे,विधायक मंगल प्रभात लोढा एवं फिल्मसिटी के उपाध्यक्ष अमरजीत मिश्र तथा अकादमी के पूर्व कार्याध्यक्ष प्रोफेसर नंदलाल पाठक इस अवसर पर मंच पर उपस्थित थे। शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री तावड़े ने सभी पुरस्कृत लेखकों – साहित्यकारों को नगद पुरस्कार, स्मृति चिह्न तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान करके उनकी सेवाओं की सराहना की। केसी कॉलेज सभागार में आयोजित एक गरिमामयी समारोह राज्य स्तरीय जीवन गौरव सम्मान छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कारप्रेम शुक्ल को एवं साने गुरुजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार श्रीमती मंजू लोढ़ा को प्रदान किय़ा गया, साथ ही अखिल भारतीय जीवन गौरवसम्मान महाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिंदी सेवा पुरस्कार रंगनाथ तिवारी को तथा डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी अखिल भारतीय हिंदी सेवा पुरस्कार ‘अनुरोध’ को दिया गया। इस वर्ष महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा अन्य कुल ३० साहित्यकारों को भी विभिन्न विधाओं के लिए पुरस्कार प्रदान किए गए, इस पुरस्कार समारोह में लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और अन्य प्रमुख लोग भी विशेष रूप से उपस्थित थे, उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं विकास हेतु सतत् रूप से प्रयासरत हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष हिन्दी सेवियों को ये पुरस्कार दिए जाते हैं। अकादमी द्वारा अखिल भारतीय सम्मान जीवन गौरव पुरस्कार के लिए १ लाख रुपए, राज्य स्तरीय सम्मान जीवन गौरव पुरस्कार के लिए ५१ हजार रुपए और तीन श्रेणीयों में क्रमानुसार ३५, २५ और ११हजार रुपये नगद प्रदान किये जाते हैं। आचार्य भिक्षु की रेखाओं का आओ करें हम सम्मान भूल का प्रायश्चित करने के लिए गुरू होने चाहिए चलते-चलते पैर में छोटा सा कांटा घूंस गया, निकालने के लिए खूब प्रयत्न किया मगर वह कांटा निकला नहीं, उसी कांटे के कारण पैर कटवाना तक पड़ा। तूफान के कारण आँख में छोटा सा तिनखा घुस गया बाहर निकालने की कोशिश की, निकला नहीं, आखिर में ऑपरेशन करवाना पड़ा। दूधपाक से तपेला भरा हुआ था, उसमें सिर्फ एक बिंदु जहर की मिलावट किसी ने की, मालुम न पड़ा और उसे मजे से खाया गया। खाने वाले का आयुष्य पूरा हो गया। प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषी प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरिश्वरजी महाराज श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं, शरीर के किसी अंग में पीड़ा हो तो सम्पूर्ण शरीर दु:ख का अनुभव करता है, किसी संयोग से हमसे यदि छोटी भी भूल हुई हो तो उसका फल भुगतना ही पड़ता है, दूसरों की छोटी भूल हमें बड़ी ही लगती है, पूज्यश्री फरमाते हैं जीवन में हमसे छोटी सी भूल हो जाए तो उस भूल का प्रायश्चित करने के लिए एक गुरू होने चाहिए, वे गुरू के रूप में आचार्य है, आचार्य भगवंत तीर्थंकर के प्रतिनिधि रूप है, उनके सामने हमें अपने जीवन की खुल्ली किताब रख देनी चाहिए, शरीर में एक छोटा सा कांटा पीड़ाकारक है यह समझकर आपको गुरू भगवंत के पास प्रॉयश्चित लेते समय मान-अपमान को दूर करके एक छोटे बालक की तरह निर्देश एवं सरल बनकर प्रायश्चित करना है इस तरह से प्रायश्चित नहीं करोंगे तो तीन कांटे के स्वरूप में शल्य आत्मा को भवो भव संसार में भ्रमण कराएगा, वे बाल्य इस प्रकार है। माया-शल्यनियाण शल्य तथा मिथ्यात्व शल्य। प्रायश्चित: माया पूर्वक किया वह है माया शल्य सुख पाने की इच्छा से प्रायश्चित करे, यदि मैं प्रायश्चित शुरू भाव से करूँगा, तो मुझे सुख प्राप्त होगा, वह है नियाण शल्य। सभी प्रायश्चित कर रहे हैं मुझे भी करना ही चाहिए, इस तरह बिना श्रद्धा से प्रायश्चित करना है, वह है मिथ्यात्व शल्य। इन तीन शल्यों से सहित जो व्यक्ति आराधना करने में सदा तत्पर रहेगा, सम्यकत्व जीव कभी ऐसा दुराचारी काम नहीं करेगा। प्रवचन की धारा को आगे बढाते हुए पूज्यश्री फरमाते हैं जन्म मरण के चक्र से बचना है तो अपने जीवन में गुरू के रूप में आचार्य भगवंत होने ही चाहिए, जिनका जीवन गुरू के चरणों में सममर्पित होगा वह अक्सर अनादि की चाल यानि राग-द्वेष कषाय, विषय-अहंकार ममत्व बगैर अनादि काल से आत्मा को डायन की तरह पीछे पड़ी हुई है, इन सभी का त्याग गुरू को समर्पित होने से ही होगा, वर्तमान काल में इस तरफ के समर्पित शिष्य एवं श्रावक देखने को मिलते हैं, एक भाई हमारे पास आए। साहेब! मुझे अपने स्व द्रव्य से मंदिर बनाना है, उसी समय हमने इस भाई को कहा भाई, आपकी बात ठीक है, वर्तमान में एक खानदानी श्रावक है, जिन्होंने अपने स्वद्रव्य से मंदिर बनाया है लेकिन अभी उनकी परिस्थिति खूब खराब हो गई है, आप उनकी मदद करो तो अच्छा है। समर्पित श्रावक हमारा ईशारा समझ गए, तुरन्त उन्होंने हमसे उस श्रावक का नाम लिया एवं उनके घर पहुँच गए। भाई! आप हमारे परम मित्र हो, लो, इस पूंजी को स्वीकार कर अपने कार्य में आगे बढें, ऐसे समर्पित श्रावक आज भी दुनिया में हैं। गुरू के प्रति समर्पण भाव रखकर, शल्य सहित अपना जीवन बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बने। – प.पू.आ. देव राजयश सूरि जी म.सा.

१६वीं लोकसभा के अंतिम भाषण में मोदी ने कहा ‘मिच्छामि दुक्कडम्’ 0

१६वीं लोकसभा के अंतिम भाषण में मोदी ने कहा ‘मिच्छामि दुक्कडम्’

नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने १६वीं लोकसभा में अपने अंतिम भाषण में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों से गिले-शिकवे भुलाने की अपील करते हुये ‘‘मिच्छामि दुक्कडम्’’ के साथ माफी माँगी, अंतिम सत्र की अंतिम बैठक में बुधवार को श्री मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के सभी सदस्यों को धन्यवाद दिया, साथ ही उन्होंने ‘‘मिच्छामि दुक्कडम्’’ कहते हुये सदन के सभी सदस्यों से कहा- सुनी के लिए माफी माँगी, उन्होंने कहा, ‘‘कई बार तीखी नोंक-झोंक भी हुई, कभी इधर से हुई, कभी उधर से हुई, कभी कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग हुआ होगा, जो नहीं होना चाहिये, इस सदन में किसी भी सदस्य के द्वारा, जरूरी नहीं कि इस तरफ से उस तरफ से भी। सदन के नेता के रूप में जरूर ‘‘मिच्छामि दुक्कड़म्’’ कहूँगा, उन्होंने सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे की लंबे समय तक सदन में बैठने और पूरी चर्चा को ध्यान से सुनने की क्षमता की तारीफ भी की और कहा कि यह साधारण बात नहीं है। मैं आदरपूर्वक उनका अभिनंदन करता हूँ, साथ ही उन्होंने श्री खडगे पर कटाक्ष करते हुये भी कहा कि उन्हें अपने भाषण के लिए खाद पानी कांग्रेस नेता के भाषण से ही मिलता था। विश्वसनीय निदान की सरलतम पद्धति एक्युप्रेशर शरीर के सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग का संबंध पूरे शरीर के हर एक अंगों से होता है, इसी कारण जब शरीर के किसी भाग में तीव्र पीड़ा होती है अथवा कष्ट होता है तो, हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। शरीर में प्रत्येक अंग, उपांग, अवयव, अन्तःश्रावी ग्रन्थियों आदि से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिवेदन बिन्दु हमारी हथेली और पगथली में होते हैं, जिस प्रकार किसी भवन की बिजली का सारा नियन्त्रण मुख्य स्विच बोर्ड से होता है, ठीक उसी प्रकार ये प्रतिवेदन बिन्दु शरीर के किसी न किसी भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिस प्रकार कोई व्यक्ति किसी का पिता, किसी का भाई, किसी का पति तो अन्य किसी का दादा, नाना, पुत्र, चाचा, मामा, मित्र आदि भी हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति का फोटो अलग-अलग स्थानों से लिया जाये तो एक ही व्यक्ति के फोटो में अन्तर हो सकता है, ठीक उसी प्रकार से ये प्रतिवेदन बिन्दु भी शरीर के अलग-अलग भागों से संबंधित हो सकते हैं, यानी एक ही प्रतिवेदन बिन्दु के शरीर में अनेक संबंध हो सकते हैं। सुजोक और रिफ्लेक्सोलॉजी एक्युप्रेशर के सिद्धान्तानुसार हथेली और पगथली में दबाव देने पर जिन स्थानों पर दर्द होता है, उसका मतलब उन स्थानों पर विकार अथवा अनावश्यक विजातीय तत्त्वों का जमाव हो जाना होता है। परिणाम स्वरूप शरीर में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध हो जाता है, ये प्रतिवेदन बिन्दु बिजली के पंखों, बल्ब या अन्य उपकरणों के स्विच की भांति शरीर के अलग-अलग भागों से संबंधित होते हैं, जिस प्रकार स्विच में खराबी होने से उपकरण तक बिजली का प्रवाह सही ढंग से नहीं पहुँचता, ठीक उसी प्रकार इन प्रतिवेदन बिन्दुओं पर विजातीय तत्त्वों के जमा होने से संबंधित अंग, उपांग, अवयवों आदि में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध हो जाने से व्यक्ति रोगी बनने लगता है। एक्युप्रेशर द्वारा रोग निदान का सिद्धान्त– हथेली और पगथली में आगे पीछे सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग में अर्थात पूरी हथेली और पगथली के पूरे क्षेत्रफल में अंगुलियों या अंगूठे से हम सहनीय गहरा दबाव देवें और जहाँजहाँ जैसा-जैसा दर्द आता है, वे सारे दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु एक्युप्रेशर के सिद्धान्तानुसार रोग से संबंधित होते हैं अर्थात् वे शरीर में रोग के परिवार के सदस्य होते हैं। एक्युप्रेशर द्वारा निदान क्यों विश्वसनीय? १. प्रत्येक व्यक्ति की हथेली और पगथली उसके स्वयं की होती है, अतः इस विधि द्वारा उस व्यक्ति का स्वयं से संबंधित शरीर के सभी रोगों का निदान होता है, जबकि लक्षणों पर आधारित निदान पूर्ण शरीर का नहीं हो सकता, किसी भी दो हृदय रोगियों, मधुमेह के रोगियों अथवा और किसी नाम से पुकारे जाने वाले रोगियों के रोग का परिवार कभी भी पूर्ण रूप से एक सा नहीं हो सकता, अतः लक्षणों एवं यंत्रों पर आधारित रोग का निदान करते समय सहयोगी रोगों की उपेक्षा होना स्वाभाविक है, परन्तु एक्युप्रेशर पद्धति द्वारा जितना सही और विश्वसनीय निदान होता है, अन्यत्र प्रायः संभव नहीं होता। २. कभी-कभी रोग के कारण कुछ और होते हैं और उसके लक्षण कहीं दूसरे अंगों पर प्रकट होते हैं, जैसे मधुमेह का कारण पाचन तंत्र का बिगड़ना भी हो सकता है न कि पेन्क्रियाज का खराब होना। हृदय शूल का कारण छोटी आंत में बनी गैस का प्रभाव भी हो सकता है, न कि हृदय की कमजोरी का होना। अस्थमा का कारण बड़ी आंत का बराबर कार्य न करना, न कि फेफड़ों का खराब होना, जब निदान ही अधूरा होता है तो उपचार कैसे स्थायी एवं प्रभावशाली हो सकता है? आधुनिक चिकित्सक ऐसे रोगों को प्रायः असाध्य बतला देते हैं, परन्तु हथेली और पगथली के समस्त प्रतिवेदन बिन्दुओं पर दबाव देने से जहाँ ज्यादा दर्द आता है, वे ही रोग का मुख्य कारण होते हैं, भले ही रोग के लक्षण कहीं अन्य भाग में प्रकट क्यों न हों इसी कारण एक्युप्रेशर असाध्य रोगों के निदान की प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति होती है। ३. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही इस विधि द्वारा निदान संभव होता है, जहाँ-जहाँ पर दबाव देने से दर्द आता है, वे सभी प्रतिवेदन बिन्दु भविष्य में शरीर में रोग की स्थिति बनाते हैं, यदि रोग हो गया हो तो वे उसके कारण होते हैं, परन्तु यदि रोग के लक्षण प्रत्यक्ष बाह्य रूप से प्रकट न हुए हों तो भविष्य में होने वाले रोगों का कारण उन्हीं प्रतिवेदन बिन्दुओं में से होता है, रोग आने से पूर्व उसकी प्रारम्भिक अवस्था का निदान जितना सरल इस पद्धति द्वारा होता है, उतना प्रायः अन्यत्र कठिन होता है। ४. शरीर में रोग कभी अकेला आ ही नहीं सकता, जिन लक्षणों के आधार पर आज रोगों का नामकरण किया जाता है, वे वास्तव में रोगों के नेता होते हैं, जिन्हें सैकड़ों अप्रत्यक्ष रोगों का समर्थन और सहयोग प्राप्त होता है, परन्तु इस विधि द्वारा रोगों के पूरे परिवार का निदान होने से निदान सही और विश्वसनीय होता हैं, जो अन्य चिकित्सा पद्धतियों में प्रायः संभव नहीं होता। ५. हथेली और पगथली में दबाव देने पर जितने कम प्रतिवेदन बिन्दुओं पर अथवा जितना कम दर्द आता है, उतना ही व्यक्ति स्वस्थ होता है, जितने ज्यादा दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु उतना पुराना रोग और स्वास्थ्य खराब होता है, इस प्रकार इस निदान पद्धति द्वारा जो रोग आधुनिक पेथालोजिकल टेस्टों अथवा यंत्रों की पकड़ में नहीं आते, उन रोगों के कारणों का सरलता पूर्वक निदान किया जा सकता है, उपर्युक्त निदान अधिक सही और विश्वसनीय होता है, अतः उस निदान पर आधारित उपचार-प्रभावशाली, दुष्प्रभावों से रहित और अल्पकालीन होता है, जिस पर किसी को भी आंशका नहीं होनी चाहिये। निदान बिल्कुल सरल, सस्ता, सहज, पूर्ण अहिंसक, दुष्प्रभावों से रहित, स्वावलम्बी, सर्वत्र अपने साथ उपलब्ध होता है। शरीर विज्ञान के विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं होने से सभी व्यक्ति स्वयं भी आत्मविश्वास के साथ उपचार कर सकते हैं। पूरे शरीर का निदान होने से शरीर के साथ-साथ, मन और वाणी के विकारों का भी, निदान करने वाला एवं अन्तःदााावी ग्रन्थियों का सरलतम निदान इस पद्धति द्वारा होता है। निदान में मूल सिद्धान्तों की उपेक्षा अनुचित– आजकल हम आधुनिक चिकित्सा पद्धति के निदान से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि जब तक उनके द्वारा रोग प्रमाणित नहीं हो जाता, तब तक हम रोग को रोग ही नहीं मानते। अधिकांश एक्युप्रेशर चिकित्सक भी प्रायः उन्हीं रोगों से संबंधित प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं पर उपचार कर रोगी को राहत पहुँचाने तक ही अपने आपको सीमित रखते हैं। सुजोक और रिफ्लोक्सोलोजी के चित्रों में बतलाये गये प्रमुख बिन्दुओं में दर्द की स्थिति देख अधिकांश एक्युप्रेशर चिकित्सक भी कभी-कभी रोग के नाम से निदान करते संकोच नहीं करते, जैसे किसी व्यक्ति के हृदय के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दु पर दबाव देने से दर्द आने की स्थिति में उसे हृदय का रोगी कह देते हैं, परन्तु ऐसा सदैव सही नहीं होता। हृदय में रोग होने पर निश्चित रूप से हृदय के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दु पर दबाने से दर्द आता है, परन्तु इसका विपरीत कथन कभी-कभी गलत भी हो सकता है, क्योंकि उस प्रतिवेदन बिन्दु का शरीर के अन्य भागों से भी कुछ न कुछ संबंध अवश्य होता है, जैसे किसी व्यक्ति के पिता की मृत्यु होने पर पुत्र रोता है, इस कारण पुत्र को किसी अन्य कारण से रोते हुये देख यह कहना कि क्या आपके पिताजी की मृत्यु हो गयी है, कहाँ तक तर्क संगत है, अतः एक्युप्रेशर की इस पद्धति में आधुनिक चिकित्सा द्वारा कथित रोगों के नाम से निदान करना उसके मूल सिद्धान्तों के विपरीत होता है, निदानकत्र्ता मात्र इतना कह सकता है कि दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु, शरीर में उपस्थित रोग का प्रतिनिधित्व करते हैं, भले ही वे किसी भी नाम से क्यों न पुकारे जाते हों? एक्युप्रेशर द्वारा उपचार की विधिहथेली और पगथली के सभी भागों में दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दुओं का पता लगाने के पश्चात, प्रत्येक दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु पर दिन में एक या दो बार बीस से तीस सैकण्ड तक, सभी प्रतिवेदन बिन्दुओं पर जमा हुये विजातीय पदार्थों को दूर करने हेतु, अपनी अंगुलियों और अंगूठे से सहनीय घुमावदार दबाव देने से, धीरे-धीरे विजातीय तत्त्व वहाँ से दूर होने लगते हैं, परिणाम स्वरूप शरीर के संबंधित रोग ग्रस्त भागों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित होने लगता है तथा रोगी रोग मुक्त होने लगता है तथा प्रत्यक्ष रोग न भी हो तो भविष्य में रोग होने की सम्भावनाएँ नहीं रहती हैं। उपचार यथा संभव साधक को स्वयं ही करना चाहिये, स्वयं द्वारा निदान और उपचार करने से व्यक्ति सभी दर्दस्थ प्रतिवेदन बिन्दुओं पर समान दबाव दे सकता है और रोग में जैसे-जैसे राहत मिलती जाती है, उसका आत्म विश्वास और सजगता बढ़ती जाती है, दूसरा व्यक्ति प्रायः सभी दर्दस्थ बिन्दुओं पर दबाव नहीं देता, अतः यथा संभव जितना उपचार रोगी स्वयं कर सके, उतना तो कम से कम उसको स्वयं ही करना चाहिये, अन्य साधक तथा चिकित्सक का रोग से संबंधित प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं के दबाव हेतु शीघ्र राहत मिलने तक ही सहयोग लेना चाहिए, क्योंकि अधिकांश चिकित्सक भी एक्युप्रेशर सिद्धान्तों के अनुसार न तो रोगों का पूर्ण निदान ही करते हैं और न ही उपचार। आधुनिक चिकित्सा के निदान को आधार मानकर ही प्रायः नामधारी रोगों के प्रमुख प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार करते हैं, सहयोगी रोगों की उपेक्षा करने से उनका उपचार कभी-कभी आंशिक और अस्थायी भी होता है एवं अधिक समय ले सकता है, परन्तु आजकल हम नामधारी रोग को सीधा नियन्त्रण में करने का प्रयास करते हैं, जो न्यायोचित नहीं होता। सहयोगियों को दूर किये बिना जिस प्रकार नेता पर नियन्त्रण करना कठिन होता है, प्रायः हम अखबारों में पढ़ते हैं और टी.वी. पर देखते हैं कि प्रदर्शनों के समय प्रदर्शनकारियों के नेता को पुलिस सीधा कैद नहीं करती, पहले प्रदर्शनकारियों को प्रार्थना कर शान्त करने का प्रयास करती है, फिर लाठी चलाती है, अश्रु गैस छोड़ती है और जब सारी भीड़ चली जाती है तो नेता को आसानी से कैद किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार रोग के परिवार के सहायक रोगों से संबंधित सभी प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार करने से मुख्य रोग की ताकत स्वतः समाप्त हो जाती है तथा वह शीघ्र नियन्त्रण में लाया जा सकता है, जिस प्रकार जनतंत्र में सहयोगियों का समर्थन न मिलने से नेता की ताकत समाप्त हो जाती है, नेता को पद त्याग करना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार अप्रत्यक्ष सहयोगी रोगों के दूर हो जाने से मुख्य रोग से शीघ्र एवं स्थायी मुक्ति मिल जाती है, यही एक्युप्रेशर चिकित्सा का मूल सिद्धान्त है। उपसंहार– स्वास्थ्य विज्ञान जैसे विस्तृत विषय को सम्पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करना बड़ा कठिन है, फिर भी हिंसा द्वारा निर्मित दवाओं का उपयोग न लेने का संकल्प करने वाले प्रत्येक साधक को एक्युप्रेशर, सुजोक, रेकी, मुद्राओं, प्राणिक-हिलींग, दूरस्थ, डाउजिंग, पिरामीड, सूर्य किरण, रंग एवं चुम्बक जैसी बिना दवा उपचार एवं स्वास्थ्य सुरक्षा की स्वावलंबी, प्रभावशाली, अहिंसात्मक, निर्दोष, दुष्प्रभावों से रहित चिकित्सा पद्धतियों की साधारण सैद्धान्तिक जानकारी अवश्य रखनी चाहिए ताकि वे स्वावलंबी बन समाधि में रह सके। डॉ. चंचलमल चोरडिया आत्मिंचतन का महोत्सव १५५वां मर्यादा महोत्सव मुंबई में मनाया गया मुम्बई: तेरापंथ धर्मसंघ का महाकुंभ मर्यादा महोत्सव प्रोफेसर मुनि महेंद्रकुमार एवं मुनिवृंद, शासनश्री साध्वी कैलाशवती, साध्वी अणिमाश्री, साध्वी मंगलप्रज्ञा एवं साध्वीवृन्द के सान्निध्य में तेरापंथ भवन कांदिवली में आयोजित हुआ। मुनि महेंद्र कुमार ने कहा कि हम भगवान महावीर के आभारी हैं कि उन्होंने वीतरागता का मार्ग बताया, साथ ही आचार्य परंपरा के भी आभारी हैं, जिन्होंने हमें मर्यादाओं में बांधते हुए सफल जीवन बनाने के लिए अग्रसर किया। आत्मचिंतन का महोत्सव है ‘मर्यादा महोत्सव’। साध्वी कैलाशवती ने कहा कि हमारे धर्मसंघ के आचार्यों ने जो लकीरें खींची, वही हमारे धर्मसंघ की मर्यादाएं बन गईं। साध्वी अणिमाश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु से मर्यादा की जो कड़ी शुरू हुई वो आज भी अविरल प्रवाहित हो रही है। साध्वी मंगलप्रज्ञा ने कहा कि आज का उत्सव संगठन का उत्सव है, मर्यादाओं का महोत्सव है। साध्वी मैत्रीप्रभा, साध्वी शारदाप्रभा,मुनि जागृत कुमार, साध्वी पंकजश्री, साध्वी सुधाप्रभा, मुनि अजित कुमार, मुनि सिद्ध कुमार ने मार्गदर्शन किया। मुनि अभिजीत कुमार ने संचालन किया। सभा मंत्री विजय पटवारी ने स्वागत किया। वरिष्ठ उपाध्यक्ष बाबूलाल बाफना ने भी अभिनंदन किया। मीनाक्षी भूतोड़िया मर्यादा महोत्सव को केंद्रित कर गीत की प्रस्तुति दी। मुम्बई महिला मंडल अध्यक्ष जयश्री बडाला ने विचार रखे, इस पावन अवसर पर ताराचंद बांठिया, अर्जुन चौधरी, सुनील कच्छारा, मनोहर गोखरू, दीपक डागलिया, महेंद्र तातेड़, प्रीतम हिरण, पारस दुग्गड़, मनोज ढालावत, किशोर धाकड़, रवि दोषी, विनोद डांगी, श्वेता सुराणा, सुमन चपलोत, रमेश सोनी, मनोहर कच्छरा, पवन ओस्तवाल, दिनेश सिंघवी, भरत लोढ़ा सुनील इंटोदिया, नवीन चौधरी, महेश मेहता, राजकुमार चपलोत, निर्मल कुमठ, तुरुणा बोहरा, रचना हिरण, भारती सेठिया, निर्मला चंडालिया की उपस्थिति रही। कार्यक्रम सफल बनाने तुलसी महाप्रज्ञ फाउंडेशन के अध्यक्ष सुरेंद्र कोठारी, मंत्री कमलेश बोहरा, कोषाध्यक्ष जवरी मल नोलखा, तेरापंथ सभा मुंबई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बाबूलाल बाफना, विनोद बोहरा, भानुकुमार नाहटा, नवरत्न गन्ना, उपाध्यक्ष नरेन्द्र बांठिया, गणपत डागलिया, बाबूलाल समदरिया, सुरेश राठौड़, भवरलाल बाफना, लक्ष्मण कोठारी, मांगीलाल छाजेड़, भीमराज सुराणा, हस्तीमल मेहता, संपत चोरडिया, भगवतीलाल पटवारी, राजेंद्र मूथा, मनोज सिंघवी, गौतम डागा, अनिल सिंघवी, भगवतीलाल धाकड़, विनोद सोलंकी, नितेश धाकड़, अणुव्रत समिति अध्यक्ष रमेश चौधरी, दलपत बाबेल, संजय मुणोत, शांतिलाल भलावत, दिलीप चपलोत, मनोज लोढा, गोमती मेहता, विनोद डागलिया, अशोक कोठारी, सुशीला मादरेचा आदि सक्रिय थे। आभार ज्ञापन सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष विनोद बोहरा ने किया। राष्ट्रसंतों का संबोधि धाम में धूमधाम से हुआ प्रवेश जोधपुर: कायलाना रोड स्थित साधना स्थली संबोधि धाम में राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी, राष्ट्रगौरव श्री चंद्रप्रभ जी और डॉ. मुनि शांतिप्रिय जी के मंगल प्रवेश पर शहरवासियों एवं देश भर से आए श्रद्धालुओं द्वारा धूमधाम से स्वागत किया गया, इस अवसर पर प्रताप नगर के पास शांति नगर से गुरुजनों के अभिनंदन में भव्य सत्संग शोभायात्रा निकली जो कायलाना चौराहा होते हुए संबोधि धाम पहुंची, जगह-जगह पर गुरुजनों का स्वागत किया गया। शोभायात्रा में सतरंगी मंगल कलशों को धारण कर चल रही बहनों ने सबका मन मोहा। सैकड़ों विद्यार्थियों द्वारा जीने की कला से जुड़े हुए स्लोगन और रंग-बिरंगे झंडों को देख कर शहरवासी मंत्रमुग्ध हो गए। युवाओं ने गुरुदेव के जयकारे लगा कर शोभायात्रा को गुंजायमान कर डाला। संबोधि धाम के साधना सभागार में आयोजित मंगल प्रवेश दिव्य सत्संग समारोह में सर्वप्रथम केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह शेखावत, महापौर घनश्याम ओझा, पूर्व विधायक एवं संस्था के अध्यक्ष कैलाश भंसाली, महामंत्री अशोक पारख, पुणे के वरिष्ठ समाजसेवी अशोक गुंदेचा ने गुरुजनों को शॉल ओढ़ाकर शहरवासियों की ओर से अभिनंदन किया। कार्यक्रम में स्वागत नृत्य इंडो पब्लिक स्कूल की बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत किया गया, इस अवसर पर डॉ मुनि शांतिप्रिय ने कहा कि पूरा देश हमसे बोलने की कला सीखता है पर हमने जोधपुर से बोलने की कला सीखी है। जोधपुर की मिठास, अपणायत और भक्ति भाव को हमने पूरे देश के सामने आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया। जोधपुर आकर ऐसा लग रहा है जैसे हम अपनी मां की गोद में आ गए हैं। जोधपुर शब्द से प्रेरणा लेने की सीख देते हुए उन्होंने कहा कि जोधपुर का ज कहता है जलो मत सबसे प्रेम करो, धूप में तो २ प्रतिशत लोग ही जलते हैं पर ९८ प्रतिशत तो एक दूसरे से ईर्ष्या में जलते हैं। ध कहता है धनवान बनो और धर्म करो। प कहता है प्रभु की पूजा और परोपकार करो और र कहता है सभी जीवों पर रहम करो व बहन-बेटियों की रक्षा करो। अगर यह चार सूत्र जोधपुर वासियों के जीवन में उतर जाए तो जोधपुर पूरे देश के लिए वरदान बन जाए। इस दौरान संत ललितप्रभ ने कहा कि जोधपुर हमारी मातृभूमि तो नहीं पर मातृभूमि से कम भी नहीं है, पूरे देश में हमने पिछले ३ सालों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात की यात्रा की और हमारे प्रवचन पांडाल में हजारों लोग आए, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सैकड़ों लोगों ने मंच पर आकर मांसाहार और गुटखा शराब सिगरेट जैसी गलत आदतों का त्याग किया, जो हमारे लिए सदा यादगार रहेगा, हमने सूरज बनकर पूरी दुनिया का अंधेरा भले ही दूर न किया हो पर दीपक बनकर अंधेरा दूर करने में सफल हो गए, हमें जीवन को पॉजिटिवनेस, इजीनेस और हैप्पीनेस के साथ जीना चाहिए, पॉजिटिव व्यक्ति खुद भी मुस्कान से भरा हुआ रहता है और अपनी ओर से सदा औरों को मुस्कान बांटता है, इस अवसर पर संत चंद्रप्रभ ने कहा कि हमारी ५५०० किलोमीटर की अहिंसा यात्रा शांतिपूर्ण और सफलता पूर्ण रही, हमने हजारों लोगों को जीने की कला, सामाजिक समरसता और भाईचारे के पाठ पढ़ाए, उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति अपने सपना और सोच को ऊंचा उठा ले तो गुल्ली डंडा खेलने वाला सचिन तेंदुलकर, इमली के बीज बेचने वाला अब्दुल कलाम बन जाता है, वही हौसलों को बुलंद करके घर में रहने वाली महिला भी एक दिन किरण बेदी और कल्पना चावला बन जाती है, उन्होंने बसंत पंचमी पर सबको प्रतिदिन अच्छी किताबें पढ़ने की प्रेरणा दी, ताकि हमारी सोच हमारे सपने ऊंचे उठ सके, जो व्यक्ति प्रतिदिन २० मिनट अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करता है वह मात्र ५ सालों में पारंगत विद्वान बन जाता है। प्रवचन से प्रेरित होकर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने हाथ खड़े कर प्रतिदिन पवित्र पुस्तकें पढ़ने का संकल्प लिया, उन्होंने जोधपुर को ग्रीन सिटी बनाने के लिए सबको प्रेरित किया, इस अवसर पर गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि राष्ट्रसंतों के सत्संग और सानिध्य ने मेरे विचार, वचन और व्यवहार को शुद्ध किया है, उन्होंने व्यष्टि से समष्टि तक जो परिवर्तन की लहर फैलाई है उस पर देशवासी सदा गर्व करते रहेंगे। महापौर घनश्याम ओझा ने कहा कि जोधपुर में साधना शिविर से ज्यादा संस्कार शिविर लगाने की जरूरत है, अगर बच्चों से लेकर बड़े संस्कारित होंगे तो हम अपने शहर को स्वच्छ स्वस्थ और समृद्ध बनाने में सफल हो जाएंगे, उन्होंने आश्वासन दिया कि नगर निगम आगामी १ साल तक जोधपुर जिले को हरा-भरा बनाने और हर गांव में तालाब खुदवाने के लिए भरपूर कर्मयोग करेगा पुणे के अशोक गुंदेचा ने कहा कि गुरूजन समाज में जो प्रेम, एकता और सामाजिक समरसता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं वह हम सब लोगों के लिए वरदान स्वरुप है। पारस ब्लड बैंक के सुखराज मेहता ने कहा कि राष्ट्रसंतों का आगामी चातुर्मास जोधपुर होना चाहिए और इसका लाभ हमारे परिवार को मिलना चाहिए ऐसी हमारी भावना है, इस अवसर पर संत चंद्रप्रभ की महावीर की साधना के रहस्य पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया, इससे पूर्व प्रवेश समारोह के लाभार्थी श्री शिवरतन जी नवरतन जी मानधना परिवार का अतिथियों द्वारा साफा पहनाकर स्वागत और अभिनंदन किया गया, इस दौरान बसंत पंचमी पर सरस्वती माता की महाआरती का लाभ नेमीचंद लुंकड़ धवा वालों ने लिया। कार्यक्रम में चेन्नई, अहमदाबाद, जयपुर, बीकानेर, पाली, शिवगंज, बाड़मेर आदि अनेक शहरों से गुरु भक्त शामिल हुए।

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श्री क्षेत्र धर्मस्थल: इतिहास और परम्परा

आज से लगभग सात सौ वर्ष पूर्व कुडुमा ग्राम के ग्राम-प्रमुख गृहस्थ श्री विरमण्णाजी हैगड़े के द्वारा धर्मस्थल की ‘‘हैगड़े परम्परा’’ का प्रारम्भ हुआ था, आज जो ‘‘धर्मस्थल’’ नाम से प्रतिष्ठित है, इसी छोटे से ग्राम का प्राचीन नाम ‘‘कुडुमा’’ था। कुडुमा का हैगड़े परिवार ही ग्राम का प्रधान परिवार था, यह परिवार सदैव से अपनी धर्मनिष्ठा, सदाचरण और उदारता के लिये विख्यात रहा है, प्राचीन काल में इस ग्राम का एक नाम ‘‘मल्लारमाडी’’ भी था। हैगड़े परिवार अडिग आस्थावान जैन परिवार है, अष्टम तीर्थंकर चन्द्रनाथस्वामी की उपासना और आराधना इनके यहाँ सदाकाल से चली आ रही है, निवास स्थान के साथ चन्द्रनाथस्वामी का मन्दिर इनके यहाँ अनिवार्य रूप से विद्यमान रहा है, इसी प्रकार बाहुबली स्वामी भी पिछले एक सहस्त्र वर्षों से हैगड़े परिवार के आराध्य रहे हैं, आज भी चन्द्रनाथस्वामी के मन्दिर में ऊपरी मंजिल पर लता-वेष्ठित बाहुबली स्वामी की एक अत्यंत प्राचीन मनोहर प्रसिद्ध धातु-प्रतिमा स्थापित है, जिसकी नित्य पूजन-आराधना चन्द्रनाथस्वामी के ही समान आदर और श्रद्धा के साथ होती है। अतिथि-सत्कार और आगत्य-सेवा हैगड़े परिवार का शास्वत धर्म रहा है, दूर-दूर तक प्रसिद्ध हेगड़े परिवार की दानशाला के द्वार सहस्त्र वर्षों से कभी बन्द नहीं हुए, पेरगड़े स्थानीय तुलू भाषा में हैगड़े का ही पर्यायवाची नाम है, हैगड़े का स्नेहपूर्ण आतिथ्य सदा सबके लिये उपलब्ध रहा है, यहाँ मानवमात्र की सेवा का ध्येय सर्वोपरि रहता आया है, ऊँच-नीच या छोटे-बड़े का यहाँ कभी कोई भेद नहीं किया गया, यह परम्परा दिन-दूनी रात-चौगुनी होकर आज भी उसी प्रकार विद्यमान है जैसी वह हजार साल पहले रही होगी। श्री धर्मस्थल में अत्यंत प्राचीन-श्री चंद्रनाथ स्वामी का मंदिर सर्व समभाव का मूलाधार-श्री मंजुनाथ स्वामी का मंदिर परम्परा का प्रारम्भ-जनऋतियों के अनुसार चौदहवीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध में एक दिन चार संत मल्लारमाडी के पेरगड़े के द्वार पर प्रगट हुए, गृहपति विरमण्णा पेरगड़े और उनकी पत्नी श्रीमती अम्मु बल्लालती ने परम्परा और मर्यादा के अनुरूप उनका स्वागत-सत्कार किया, कहा जाता है कि ये संत चार धर्म देवता ही थे, पेरगड़े परिवार के आतिथ्य से प्रसन्न होकर उन्होंने स्वप्न में विरमण्णा दम्पति को संकेत दिया कि वे यहीं स्थायी निवास करना चाहते हैं, सुबह पेरगड़े ने आश्चर्यपूर्वक देखा कि कुछ सामग्री छोड़कर चारों संत अंतर्धान हो गए, उन अलौकिक अतिथियों के अवदान के रूप में शाश्वत धर्मलाभ का आशीर्वाद और अक्षय-निधि का वरदान ही पेरगड़े दम्पति के पास शेष था, यही धर्मस्थल का बीजाकुरण था। स्वप्न के संकेतों के अनुसार विरमण्णा और बल्लालती अम्मा ने पास ही अपने निवास के लिये नया भवन बनाकर वह पुराना निवास धर्म-देवताओं के आवाहन-पूर्ण के लिये खाली कर दिया, वहाँ नित्य की तरह तरह से पूजा आराधना और उत्सव आयोजित होने लगे। अन्नदान अधिक व्यवस्थित होकर चलने लगा, इस प्रकार श्री विरमण्णाजी पेरगड़े को वर्तमान हैगड़े परम्परा का प्रथम-पुरूष होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह परम्परा आज तक विच्छिन्न रूप से चल रही है। श्री विरमण्णाजी हैगड़े के जन्म और अवसान की तिथियाँ अब तक स्थिर नहीं की जा सकी है, परन्तु उनके उत्तराधिकारी द्वितीय हैगड़े श्री पदमैया की अवसान तिथि १४३२ हमें ज्ञात है, फिर चन्द्रैया प्रथम १४३२ से १५०५ तक इस पीठ पर रहे, उनके पश्चात् चौथे धर्माधिकारी देवराज हैगड़े से लेकर चौदहवें पीठाधीश श्री कुमारैया हैगड़े के अवसान (१८३० ईस्वी) तक सवा तीन सौ वर्षों का इतिहास सन संवत् सहित अभी लिखा नहीं जा सका है, पट्टावली में उन सबके नाम और क्रम सुरक्षित हैं और उनका काल निर्धारित करने के प्रयास हो रहे हैं। कुडुमा धर्मस्थल बन गया-विरमण्णा दम्पत्ति के द्वार पर अचानक प्रगट हुए चार संतों ने स्वप्न संकेतों में जैसा कहा था, विरमण्णाजी ने उसका अक्षरश: पालन करना प्रारम्भ कर दिया था, इसलिये कुडुमा के इस परिवार को यह सिद्धि प्राप्त थी जब तक उनके यहाँ अतिथिसत्कार और अन्नदान का क्रम चलता रहेगा, जब जक भक्ति, श्रद्धा और धर्माचरण उनमें विद्यमान रहेगा, तब तक उनकी सम्पत्ति दिनों दिन बढ़ती ही जायेगी। कई पीढ़ियों तक जनसेवा और अतिथि-सत्कार निरन्तर वृद्धिगत होकर यहाँ चलता रहा, बदिनड़े पहाड़ी पर कालरकाई, कालराहु, कुमारस्वामी और कन्याकुमार चारों देवताओं के चार उपमन्दिर भी बना दिये गये, उनमें निरन्तर पूजा-अर्चना होने लगी, अण्णप्पास्वामी का मन्दिर भी निर्मित हो गया। कालान्तर में कदरी से मंगाकर मंजुनाथस्वामी का मंदिर भी निर्मित हो गया। कालान्तर में कदरी से मंगाकर मंजूनाथस्वामी का शिव-विग्रह भी यहाँ स्थापित कर दिया गया, इस प्रकार एक ही तीर्थ पर मंजुनाथ स्वामी, चन्द्रनाथ स्वामी, बाहुबली स्वामी और धर्म देवताओं की पूजा-आराधना एक साथ करने की परम्परा ने सर्व-धर्म-समन्वय का एक अनोखा पवित्र वातावरण यहाँ निर्मित कर दिया गया, प्राय: हर धर्म के मानने वाले यात्रियों का बड़ी संख्या में यहाँ नित्य आगमन होने लगा, उन सबके लिये विश्राम और भोजन की नि:शुल्क व्यवस्था करना हैगड़े का कर्तव्य बन गया, इस तीर्थ की कीर्ति दूरश्री दूर फैलने लगी, धीरे-धीरे दो सौ वर्ष बीत गये। सोलहवीं सदी में देवराज हैगड़े के समय पुष्पक्षेत्र उडुपी से सौदे मठ के पीठाधिपति श्री वादिराज स्वामीजी धर्मयात्रा करते हुए यहाँ पधारे, यहाँ के दान, धर्म आदि की उत्तम और उदार व्यवस्था देखकर वे बहुत प्रभावित हुए और अनायास उनके श्रीमुख से निकल पड़ा- ‘‘यह तो धर्मस्थल ही है।’’ बस, फिर उसी दिन से कुडुमा या मल्लारमाडी का नाम ‘‘धर्मस्थल’’ ही प्रचलित हो गया, लोग धीरे-धीरे स्थान का प्राचीन नाम भूलने लगे, आज तो वादिराज स्वामी का दिया हुआ यह ‘‘धर्मस्थल’’ नाम ही इस तीर्थ का जग-प्रसिद्ध नाम है, इस परम्परा के चौदहवें धर्माधिकारी श्री कुमारैया हैगड़े एक प्रभावशाली सुदर्शन महापुरूष थे, दूर-दूर तक उन्हें राज मान्यता और सम्मान प्राप्त होता था, उस समय कृष्णराज वाडियार तृतीय मैसूर के महाराजा थे, श्री कुमारैया जी का महाराजा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, वे अनेकों बार मैसूर महाराजा के अतिथि हुये और उन्हें धर्म का महत्व समझाया। मलय प्रदेश और विशेष कर समुद्र तटीय कर्नाटक की शताब्दियों पुरानी भक्ति प्रेरित लोग कला ‘‘यक्षगान’’ सत्रहवीं शताब्दी में लुप्तप्राय हो चुकी थी। श्री कुमारैया जी ने अपने कार्यकाल में उसे नव-जीवन प्रदान किया, उन्होंने यक्षगान के रूप को सँवारा, गाँव-गाँव से कलाकारों को बुला कर धर्मस्थल में उन्हें आश्रय दिया, मंच-प्रदर्शन के लिए मण्डली को अनेक वाद्ययन्त्र बनवा कर प्रदान किये, अनेक प्रकार के वस्त्र, आभूषण, अलंकार और आयुध उन्हें उपलब्ध कराये, इस प्रकार मुकारैया जी हैगड़े ने इस भूमि भाग की एक दुर्लभ कला-परम्परा को समाप्त होने से बचाया, उन्होंने यक्षगान में दशावतार तथा महाभारत और रामायण के कई प्रसंगों को जोड़कर यक्षगान को जन समुदाय के लिए रोचक और शिक्षाप्रद बनाया। सन् १९१२ में जब कुमारैयाजी पुन: मैसूर गये तब धर्मस्थल की उस यक्षगान मण्डली को अपने साथ ले गये, मैसूर में मण्डली के द्वारा कई प्रदर्शन किए गये, जिन्हें वहाँ भारी सराहना मिलती रही। मैसूर महाराज ने पूरी मण्डली को बहुत से उपहार आदि देकर प्रोत्साहित किया, उन्होंने यक्षगान मण्डली को स्थायी रूप से मैसूर में रोकने की इच्छा व्यक्त की, परन्तु कुमारैयाजी ने शेष यात्रा के लिए उपयोगी बताकर अपनी मण्डली को साथ ही रखा, मण्डली के कुछ कलाकारों को अवश्य उन्होंने मैसूर महाराज के आश्रय में छोड़ दिया, जिनके वंशज अभी भी वहाँ यक्षगान की परम्परा को जीवित रखे हुए हैं, कुमारैया जी से प्रभावित होकर वाडियार महाराज ने श्रवणबेलगोल मठ के लिए उसी समय एक ग्राम दान में दिया। मैसूर से कुमारैया जी कोडगू गये और कई दिन तक वहाँ के राजा वीरराजेन्द्र के अतिथि रहे, राजा ने इस यात्रा की स्मृति स्वरूप अनेक उपहार और अस्त्र शस्त्र कुमारैया जी को भेंट किये। यात्रा मार्ग में स्थान-स्थान पर यक्षगान के कार्यक्रम होते रहे, उस प्रदर्शन के माध्यम से जन-जन की भक्ति-भावना प्रोत्साहित होती रही, इस प्रकार कुमारैया जी हैगड़े की वह मैत्री-यात्रा ‘‘धर्म-यात्रा’’ में परिवर्तित हो गयी। श्रवणवेलगोल के गोमटेश्वर बाहुबली सहित अनेक जिनालयों का दर्शन इस यात्रा में प्राप्त हुआ, १८३० में कुमारैया जी का देहावसान हो गया, उनके स्थान पर चन्दैया चतुर्थ को ‘हैगड़े’ पद प्राप्त हुआ। श्री चन्दैया हैगड़े (चतुर्थ) का कार्यकाल सन् १८३० में प्रारम्भ हुआ, विद्यमान धर्माधिकारी धर्मभूषण, परोपकार, धुरन्धर, अभिनव चामुण्डराय डॉ. वीरेन्द्र हैगड़े अपनी परम्परा के इक्कीसवें धर्माधिकारी हैं, उनकी सम्पूर्ण परम्परा का क्रम इस प्रकार है- धरती पर एक मात्र धर्मस्थल-जहां पर भव्यात्मा का है हार्दिक स्वागत श्रीयुत मंजैयाजी हैगड़े (१९१८-१९५५) धर्मस्थल के सत्रहवें धर्माधिकारी श्री धर्मपाल हैगड़े के आकस्मिक अवसान के उपरान्त उनकी माताजी ने उत्तराधिकारियों के रूप में एक परिवार के दो बालकों, चन्दैया और मंजैया को एक साथ गोद लिया था, दो बालकों को दत्तक बनाने का कोई उदाहरण कहीं सुना भी नहीं गया, यह एक असाधारण घटना थी, इसका क्या अभिप्राय था यह जानने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है। दत्तक विधि के समय दोनों बालक अवयस्क थे। चन्दैया जी १३ वर्ष के थे और मंजैया जी ८ वर्ष के थे, तब चन्दैया जी को हैगड़े पीठ पर आसीन करा कर उनके मातुल पद्मशेट्टी को परमर्शदाता बनाकर उनके कार्यकाल का प्रारम्भ हुआ, ये पद्मशेट्टी मंजैया हैगड़े (तृतीय) के पिता थे। १९१८ ईस्वी में जब श्रीचन्दैया जी हैगड़े का निधन हुआ, तब उनके पुत्र रत्नवर्म मात्र छ: माह के शिशु थे, इस कारण चन्दैया जी के निधन उपरान्त मंजैया जी को धर्माधिकारी पीठ पर आसीन कराया गया, सन् १९५५ तक तैंतीस वर्ष वे इस पीठ पर रहे, उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक प्रकार से श्री क्षेत्र की महिमा में अभिवृद्धि करने का प्रयत्न किया। कई शताब्यिों से क्षेत्र पर दीपावली के एक माह पश्चात् पाँच दिन का ‘‘दीपोत्सव’’ मनाने की परम्परा चली आ रही थी, मंजैया जी ने इस वार्षिक उत्सव के साथ कला संगीत-सम्मेलन, सर्वधर्म सम्मेलन और कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की आयोजना जोड़कर इसे एक नवीन गरिमा से मंडित कर दिया, उनके द्वारा प्रारम्भ की गई यह परम्परा कई गुने विस्तार के साथ आज भी धर्मस्थल में चल रही है, उन आयोजनों के माध्यम से सभी धर्मों का सन्देश जन-जन तक पहुँचता  है, साहित्यकारों, संगीतज्ञों और कलाकारों को प्रोत्साहन मिलता है और देवस्थान को प्रसिद्धि प्राप्त होती है। ११-१२ वर्षों का काल एक ‘‘युग’’ माना जाता है, सम्भवत: धर्मपीठ पर तीन युग पूर्ण करने के उपलक्ष्य में श्री मंजैया हैगड़े ने एक ऐसे समारोह का संकल्प किया, जिसे आयोजित करने वाले लोग इतिहास के पृष्ठों पर बहुत विरले ही पाये जाते हैं, उन्होंने ‘‘नडावली’’ उत्सव आयोजित किया, यह छठवीं शताब्दी में महाराजा हर्षवर्धन द्वारा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर आयोजित ‘‘सर्वस्वदान’’ की तरह का आयोजन था, इसमें मंजैया जी ने अपना सब कुछ दान में देने की घोषणा की थी। डी.एम. कालेज उजिरे में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.एन. नागराज पूवणी ने अपने स्मृति कोश में बताया है कि नडावली-उत्सव के समय चन्द्रनाथ स्वामी मंदिर में पंचकल्याणक महा-पूजा का आयोजन किया गया था, श्री रत्नवर्म और उनकी धर्मपत्नी रत्नम्मा जी देवेन्द्र और शची के रूप में उस उत्सव का संचालन कर रहे थे, मंजैया जी हैगड़े ने चन्द्रनाथ स्वामी मंदिर के समीप अपने घर की सारी वस्तुएँ निकाल कर रख दी थी, अनेक गाँवों के लोग एकत्र हुए थे और जिसे जो मन भाता वह उस वस्तु को उठा कर अपने घर ले जाता था, किसी को कोई रोक-टोक नहीं थी, तरह-तरह के बर्तन, अन्न, वस्त्र और आभूषण उस सामग्री में सम्मिलित थे, सन् १९५१ की पन्द्रह से बाईस फरवरी तक पूरे सप्ताह यह अनुष्ठान चलता रहा। धर्मस्थल में बाहुबलि प्रतिष्ठापना के स्वप्नदर्शी दंपतीस्वर्गीय रत्नवर्माजी हैगड़े एवं श्रीमती रत्नम्माजी श्री मंजैया हैगड़े कलाप्रेमी और कला संरक्षक तो थे ही, वे स्वयं एक उत्कृष्ट कलाकार भी थे, उन्होंने स्वयं अपनी कुंचिका से अनेक बहुरंगे चित्रों की रचना की, उनके कुछ चित्र अभी भी धर्मस्थल के वसन्त-महल और मंजूषा संग्रहालय में सुरक्षित हैं, भगवान बाहुवली के जीवन पर मंजैया जी द्वारा बनाये कुछ चित्र-फलक श्रवणबेलगोल में भी रखे हैं जिन्हें १९८१ में गोमटेश्वर सहस्त्राब्दी प्रतिष्ठापना एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव के अवसर पर विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया था, पीठासीन धर्माधिकारी श्री मंजैया के द्वारा चित्र-फलकों पर बाहुबली का चित्रांकन उस तथ्य को भी समर्थित करता है कि धर्मस्थल में बाहुबली में बाहुबली की मान्यता सदैव प्रवर्तमान रही है, सभी धर्माधिकारियों ने चन्द्रनाथ मन्दिर में प्रतिदिन स्वामी के साथ बाहुबली प्रतिमा की भी पूजा-आराधना की है और समय-समय पर उनके उपदेशों को रेखांकित और प्रचारित करने के प्रयत्न किये हैं। मंजैयाजी को अपने सुकार्यों के बल पर दक्षिण कन्नड़ जिले में जननायक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हो गई थी, उन्हें दो बार मद्रास विधान-परिषद का सदस्य भी मनोनीत किया गया था, अपने कार्यकाल में उन्होंने लोक-कल्याण के अनेक कार्य इस जिले में कराये, बीच में किन्हीं अज्ञानियों के द्वारा धर्मस्थल के आस-पास धर्म के नाम पर कुछ प्राणियों की बलि दी जाने लगी थी, उन्होंने संबंधित लोगों को धर्म का मर्म समझाया, जीव दया का महत्व बताया और अपने अधिकार क्षेत्र में बलि-प्रथा बंद कराने में सफलता प्राप्त की। इस प्रकार ३७ वर्ष का यशपूर्ण कार्यकाल पूरा कर १९५५ में मंजैयाजी दिवंगत हुए, उनके उपरान्त श्री रत्नवर्माजी ने अपनी ३७ वर्ष की परिपक्व आयु में धर्माधिकारी का पद ग्रहण किया। १५५ वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम में हुई घोषणा जैन विश्व भारती लाडनूं की सेवा मुनि देवेंद्र कुमार जी को मिली पीलमेडू, कोयंबटूर: जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महाकुंभ १५५ वें मर्यादा महोत्सव के समारोह का आयोजन कोयंबटूर के कोडशिया के परिसर में बने विशाल प्रवचन हॉल में शांतिदूत, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल महामंत्रोच्चार के साथ शुभारंभ कर पुनीत संघीय परंपरा का निर्वाह करते हुए आचार्य भिक्षु द्वारा लिखित मर्यादा पत्र को स्थापित किया एवं विधिवत् १५५वें मर्यादा महोत्सव की उद्घोषणा की। मर्यादा घोष व गीत : पूज्यप्रवर द्वारा १५५वें मर्यादा महोत्सव की उद्घोषणा के पश्चात मुनि दिनेश कुमार जी ने मर्यादा घोष लगाते हुए मर्यादा समवसरण के विशाल पंडाल को गुंजायमान किया। ‘भीखण जी स्वामी भारी मर्यादा बाँधी संघ में’ इस मर्यादा गीत का समवेत स्वर में संगान किया। सेवा पर विशेष वक्तव्य : मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी ने एक कथानक के माध्यम से सेवा के महत्त्व पर प्रकाश डाला, आपने कहा कि आज के दिन मंगलभावना करती हूँ कि हम सबको सेवा का अवसर मिले, आचार्यप्रवर के समान सेवा करने वाला दूसरा नहीं, सेवा वही कर सकता है, जिसके मन में करुणा के भाव हो। सेवा की अर्जी : शासन गौरव साध्वी कल्पलता जी ने साध्वियों को और सेवा का अवसर देने की प्रार्थना की, आपने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मसंघ में बचपन और बुढ़ापा दोनों सुरक्षित हैं। मुनि कुमार श्रमण जी ने साधुओं की ओर से सेवा की अर्ज करते हुए कहा कि जहाँ त्राण है, वहाँ कोई चिंता नहीं। साधु-साध्वियों की सेवा आचार्य की सेवा होती है, एक पुस्तक में प्रकाशित तेरापंथ की सेवाओं का मूल्यांकन अन्य संघों ने किस तरह किया है, उसकी जानकारी दी। सेवार्थी आराध्यों की सेवा : सेवा के महत्त्व को उजागर करते हुए आज के पावन अवसर पर आचार्यप्रवर ने फरमाया कि हमारी मर्यादाओं में एक कार्य है, सेवा की व्यवस्था, जिस धर्मसंघ में सेवा की व्यवस्था और सेवा का आश्वासन नहीं, वह धर्मसंघ वृद्धि नहीं कर सकता, सेवा से संघ वृद्धिगत हो सकता है, हमारे धर्मसंघ में सेवा-केंद्र बने हैं, उन केंद्रों में सापेक्षा सेवाग्राही साधु-साध्वी रखे जाते हैं, उनकी सेवा की व्यवस्था भी की जाती है, सेवाग्राही हैं, तो सेवादायी भी हैं, जो स्वस्थ हैं वे कम से कम सेवा ले और ज्यादा से ज्यादा सेवा दें, चाहे साधु हो, श्रावक परावलंबिता कम रहे, परवश होना दु:ख व स्ववश होना सुख है, सेवा से साधु तीर्थंकर नाम गौत्र का बंधन कर सकता है, हमारे साधु-साध्वियाँ किस तरह से सेवा केंद्रों में सेवा देते हैं, साधुता के पात्र हैं। गुरुकुलवास में भी सेवा देते हैं। सेवा के अनेक प्रकार होते हैं, जैसे व्याख्यान देना, पात्री रंगना, कपड़े सिलना आदि, शरीरगत सेवा जो वृद्धों-ग्लानों की होती है, वो विशेष सेवा होती है, यह सेवा का महत्त्वपूर्ण आयाम है। माला फेरना, ध्यान करना, पढ़ने-लिखने को गौण कर सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिए। सेवा लेने वाले भी हमारे आराध्य हैं, हमारे आराध्य तभी प्रसन्न होंगे जब इन सेवार्थी आराध्यों की सेवा होगी। सेवा केंद्रों की नियुक्तियाँ : पूज्यप्रवर ने सेवा केंद्रों की चाकरी फरमाते हुए कहा कि हमारे तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक सेवा केंद्र हैं, सभी साधु-साध्वियों ने अपनी सेवा भावना व्यक्त की, अच्छी बात है, उनके अनुरोध का सम्मान करता हूँ, समय पर उपयोग किया जाएगा, हम सबकी सेवा भावना पुष्ट रहे। लाडनूं के लिए : हमारे धर्मसंघ में जो सेवा केंद्र हैं उनमें लाडनूं प्राचीन सेवा केंद्र है, बहुत पुराना सेवा केंद्र है, बचपन से मैं उस केंद्र को बाल मुनि अवस्था से देखता आ रहा हूँ वो हवेलियाँ सेवा केंद्र की जिसमें कभी-कभी गुरुदेव तुलसी ने भी वहाँ प्रवास किया था मैं सबसे पहले साध्वियों के इस लाडनूं केंद्र में साध्वी कमलप्रभा जी बोरज आगामी वर्ष के लिए सेवा का दायित्व संभालें। बीदासर के लिए : हमारा दूसरा सेवा केंद्र जिसे समाधी केंद्र की संज्ञा प्राप्त है वह है-बीदासर। बीदासर हमारा एक थली का अच्छा क्षेत्र है, श्रीमद्जयाचार्य का कृपा पात्र और परमपूज्य मघवागणी जैसे रत्न उत्पन्न हुए, जिन्हें वीतरागकल्प कहा गया है। श्रीमद्जयाचार्य के उत्तराधिकारी थे और कितने वे शांत स्वभाव के कोमल रहे होंगे और उनकी बहन भी गुलाबाजी जैसी महान साध्वी हुई बीदासार हमारे मघवागणी से जुड़ा हुआ रहा है, जयाचार्य का जहाँ प्रवास होता रहा है, हमारे ४३ साधुसाध्वियां एक साथ बीदासर की धरती पर दीक्षित हुए थे, इस बीदासर की भूमि में वहाँ के लिए दो सिंघाड़ों की नियुक्ति करना चाहूँगा, साध्वी सुप्रभा जी और साध्वी उर्मिला कुमारी जी, ये दोनों अग्रणी सिंघाड़े बीदासर साध्वी केंद्र की सेवा का दायित्व आगामी वर्ष में संभालें। गंगाशहर के लिए : गंगाशहर सेवा केंद्र जो गुरुदेव तुलसी की महाप्रयाण भूमि है यह थली का एक सुरंगा क्षेत्र है। हमारे धर्मसंघ के वयोवृद्ध मुनि राजकरण जी स्वामी जो बहुश्रुत परिषद के सदस्य हैं, वहाँ विराजमान हैं, वे स्वस्थ रहें, उनका स्वाध्याय का क्रम जप, तप जो भी है चलता रहे, खूब अच्छी आराधना होती रहे और साधना चलती रहे, स्वास्थ्य का ध्यान रखें, जो साध्वियों का सेवा केंद्र है, उसे साध्वी अमितप्रभा जी एवं साध्वी गुप्तिप्रभा जी, दोनों सिंघाड़े द्वारा आगामी वर्ष में गंगाशहर के सेवा केंद्र का दायित्व संभालें। श्रीडूंगरगढ़ के लिए : श्रीडूंगरगढ़ भी हमारा थली का अच्छा श्रद्धालु क्षेत्र है और वहाँ हमारी साध्वियाँ विराजमान हैं, सेवाग्राही साध्वियाँ वहाँ के लिए साध्वी पावनप्रभा जी का सिंघाड़ा, इस आगामी वर्ष हेतु श्रीडूंगरगढ़ सेवा केंद्र की सेवा का दायित्व संभालें। राजलदेसर के लिए : राजलदेसर जहाँ परमपूज्य गुरुदेव तुलसी ने मुनि नथमल जी टमकोर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, राजलदेसर सेवा केंद्र के लिए साध्वी विनयश्री जी श्रीडूंगरगढ़ को मैं आगामी सेवा वर्ष में सेवा के लिए नियुक्त करता हूँ। छापर के लिए : छापर हमारा संतों का सेवा केंद्र है और छापर ऐसा क्षेत्र है जो परमपूज्य कालूगणी की जन्मभूमि है जो हमारे दो गुरुओं के गुरु थे, गुरुदेव तुलसी व गुरुदेव महाप्रज्ञ जी जो हमारे गुरु हैं, इन दोनों के वे गुरु थे, जहाँ कालूगणी की जन्मशताब्दी का समारोह गुरुदेव तुलसी ने मनाया था और छापर में मुझे कभी चातुर्मास भी करना है, ऐसी मेरी भावना है, छापर में अभी जो हमारे संत हैं उनकी सेवा के लिए मुनि तत्त्वरुचि जी, जो दो वर्षों से सेवा में हैं, तो मैं चाहूँगा कि तीसरा वर्ष भी वही छापर सेवा केंद्र में सेवा का दायित्व संभालें। जैन विश्व भारती, लाडनूं के लिए : जैन विश्व भारती एक बड़ी महत्त्वपूर्ण संस्था है, मन रमणीय कारिणी संस्था है, जहाँ शिक्षा, सेवा, साहित्य, ध्यान, योग कितने-कितने आयाम उस संस्था से जुड़े हुए हैं, मान्य विश्वविद्यालय जैन विश्व भारती संस्थान से जुड़ा हुआ है, जहाँ हमारी समणियों का मुख्यालय है, वे यहाँ साधना करती हैं और समणियाँ साध्वियों की सेवा भी करती हैं, हमारे समण हैं भी संतों की सेवा में अपना योगदान देते रहे हैं, समण श्रेणी भी हमारी अनेक रूपों में सेवा देने वाली है। जैन विश्व भारती में हमारे संत सेवाग्राही हैं और जैन विश्व भारती गुरुदेव तुलसी ने चातुर्मास करने की कृपा की थी। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी चातुर्मास करने की कृपा की थी, लाडनूं का ही एक अंग है जैनों का गौरव है ‘जैन विश्व भारती’ यहाँ के सेवा केंद्र के लिए मैं हमारे मुनि देवेंद्र कुमार जी को आगामी वर्ष के लिए सेवा के लिए नियुक्त करता हूँ। उपकेंद्र हिसार के लिए : हिसार जो सेवा का मूल केंद्र तो नहीं है किंतु उसे सेवा का उपकेंद्र मान लें, अस्थायी रूप में, जहाँ हमारे कितने-कितने साधु-साध्वियाँ चिकित्सा के लिए जाते रहते हैं, वहाँ जो साध्वियाँ विराजमान हैं, उनको भी सेवा की जरूरत पड़ती है, वहाँ के लिए साध्वी यशोधरा जी के सिंघाड़े को आगामी सेवा वर्ष में हिसार सेवा उपकेंद्र में नियुक्त करता हूँ इस तरह हमारे सेवा भाव पुष्ट रहें, सेवा अच्छी चले, सभी प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें, सेवादायी साधु-साध्वियाँ मनोभाव से सेवा दें। जय तिथि पत्रक भेंट : जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित जय तिथि पत्रक तथा मित्र परिषद (कोलकाता) द्वारा प्रकाशित, तिथि दर्पण व तिथि पत्रक श्रीचरणों में भेंट किया गया। विकास परिषद के सदस्य पद्मचंद पटावरी ने श्रावक समाज को आह्वान करते हुए सेवा की बात कही, स्थानीय तेयुप व महिला मंडल ने सुमधुर गीत का संगान किया तथा व्यवस्था समिति अध्यक्ष विनोद लुणिया ने आगंतुक सभी श्रावक-श्राविकाओं के प्रति आभार व्यक्त किया गया, कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।

हेग्गडे परिवार द्वारा सेवित धर्मसाधना पीठ: धर्मस्थल 0

हेग्गडे परिवार द्वारा सेवित धर्मसाधना पीठ: धर्मस्थल

भारत में जैनधर्म प्राचीन काल से विद्यमान है। विशेषत: दक्षिण भारत में और उसमें भी कर्नाटक में दीर्घ काल से जैनसत्ता प्रभावी होने के कारण उन राजकर्ताओं ने जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया। विशेषत: दक्षिण कन्नड जिले में राणी अब्बक्का एवं उसके पूर्व भी अनेक जिनमंदिर एवं साधनास्थलियों का निर्माण हुआ। कर्नाटक के दक्षिण कन्नड जिले के इन घाटियों में बसे मूडबिद्री, वेणूर, वाईनाड, कारकल ऐसे अनेक क्षेत्रों में धर्मस्थल तीर्थक्षेत्र ने अपना विशेष स्थान बनाया हुआ है, कर्नाटक के मेंगलोर जिले में बेल्तंगडी तालुका में धर्मस्थल यह क्षेत्र अपनी अतिशयता एवं हेग्गडे परिवार की भक्ति से एवं सुचारु रुप से चलायी जा रही व्यवस्था से विश्वप्रसिद्ध हो चुका है। धर्मस्थल क्षेत्र को ५०० वर्ष का प्राचीन हतिहास है। १५ वीं शती के प्रारंभ में मल्लारमाडी नाम का एक जैनधर्मी सामंत परिवार नेल्लियाडी बीडु नाम के हेग्गडे जी के घर में रहता था। बिरमण्ण पेंर्गडे एवं अंबूदेवी बल्लाळ्ति इन दोनों का नाम था, इस परिवार ने अपने निवासस्थान के निकट चंद्रनाथ स्वामी बसदि का निर्माण किया, वे अपनी दानशूरता के लिए प्रसिद्ध थे, इसी वजह से यह स्थान कुडुम अर्थात् हमेशा देनेवाला स्थान इस नाम से प्रसिद्ध हो गया, एक दिन धर्मदेव मानव के रूप में घोड़े एवं हाथियों पर अपना वैभव लेकर नलियाडी बीडु को आये, उनका इस दांपत्य ने आवोभगत के साथ स्वागत किया एवं दान देकर प्रसन्न किया, प्रसन्न होकर उन्होंने उन्हें अनेकानेक आशीर्वाद दिये, इन पति-पत्नियों ने उनकी पूजा की एवं इस परिवार ने अपना स्थान दूसरी जगह बना लिया, उस मंदिर के निकट ही सर्व धर्म समभाव हेतु एक विशाल मंदिर की स्थापना हुई, धर्मदेव के आदेशानुसार दो कुलीन व्यक्तियों को पूजनादि कार्य के लिए स्थापित किया गया, यह कार्य श्रद्धापूर्वक चलता रहा और अनेक पीढियों तक कार्य चलते हुए धन की अपार वृद्ध यहां पर हुई। हेग्गडे दंपति परंपरा से यहां पर उत्सवदि करने लगे। इस कुडुम गाव में श्री चंद्रनाथ स्वामी, श्री मंजुनाथ, चारदेव एवं अण्णप्प देव इन सबकी पूजा होने लगी, उसी काल से अनोखे धर्मसंगम की शुरुवात हुई एवं यह क्षेत्र धर्मस्थल रूप में प्रसारित हुआ, सन् १४३२ में बिरमण्ण पेंगडे जी का जब स्वर्गवास हुआ तब उनके उत्तराधिकारी पद्यम हेग्गडे स्थापित हुए। १६वीं शती में सौदे (वर्तमान स्वादी) स्थान के आदिराज स्वामी यहां पर पधारे थे। हेग्गडे परिवार ने उन्हें भिक्षाग्रहण करने के लिए निवेदन किया, किन्तु जहाँ मंजुनाथ की प्रतिमा देवों द्वारा स्थापित है वहाँ हम भिक्षा नहीं लेते, यह कहकर उन्होंने भिक्षा के लिये मना किया, इस पर हेग्गडे जी ने स्वामी जी से अपनी प्रतिमा पर धर्मसंस्कार करने का निवेदन किया उसी अनुसार सब कार्य संपन्न हुआ, वादिराज स्वामी उत्सव और दान से प्रसन्न हुए, उन्होंने उस ग्राम का धर्मस्थल नामकरण किया, सन् १९०३ में कुडुम गाव धर्मस्थल इस नाम से शासन के शासनपत्र में स्थापित हुआ, तबसे लेकर आज तक हेग्गडे परिवार इस स्थान को धर्मस्थल एवं दानशीलता का क्षेत्र के रूप में इनका विस्तार करने में तन-मन-धन से सतत कार्यशील है। सन १८३० से १९५५ तक हेग्गडे परिवार के वंशजों ने मंदिर में अनेक निर्माण कार्य किए और अनेक सार्वजनिक कार्य जैसे विविध वस्तुएँ, प्रदर्शन, सर्वधर्म सम्मेलन इस कल्याणकारी परंपरा की शुरुआत की। श्रीमान् रत्नवर्म हेग्गडे जी ने सन १९५५ से १९६८ तक में धर्मस्थळ में बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गंगा, कावेरी और नर्मदा नाम से सुसज्जित धर्मशालाएँ, १२ हॉल और परिवार के लिए छोटे भवनों का भी निर्माण किया। त्यागी-व्रतियों के लिए संन्यासिकट्टे नाम से त्यागी भवन का निर्माण किया, उजिरे ग्राम में कला, विज्ञान और वाणिज्य मंजुनाथेश्वर कॉलेज और धर्मस्थळ में हायस्कूल का निर्माण किया, उन्होंने अपने क्षेत्र में अनेक त्यागियों को रखकर धर्मस्वाध्याय भी किया, उन्होंने अनेक सर्वधर्म सम्मेलन आयोजित किए। शृंगेरी के जगद्गुरु जी ने उन्हें राजमर्यादा एवं कोवियार मठ के स्वामीजी ने उन्हें धर्मवीर पदवी से विभूषित किया था, रत्नवर्म जी ने कारकल में बनी हुई भगवान बाहुबली की मूर्ति की तरह सन १९६७ में भ. बाहुबली की ३९ फीट की मूर्ति बनाने का कार्य प्रारंभ किया, यह स्व. रत्नवर्म जी द्वारा किया हुआ सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था, किन्तु इस कार्य के पूर्ण होने से पूर्ण होने से पूर्व ही हेग्गडे जी स्वर्गवासी हुए। रत्नवर्म जी अधूरा कार्य श्री वीरेंद्र हेग्गडे जी ने पूरा किया, पिता की मृत्यु के पश्चात् केवल २० वर्ष की आयु में वीरेंद्र जी ने इस पदभार को संभाला, इसके साथ उन्होंने केवल अपने माता-पिता का संकल्प पूरा नहीं किया, अपितु अनेक अन्य कार्य कर इस क्षेत्र का नाम उज्ज्वल किया, उन्होंने भगवान बाहुबली की मूर्ति का कार्य पूर्ण कर उसे पहाड़ पर स्थापित कराया एवं सन १९८२ में आचार्यश्री विद्यानंद जी मुनिराज के सान्निध्य में प्रतिष्ठापना कर महामस्तकाभिषेक संपन्न कराया और बंटवाल के आदीश्वर स्वामी बसदि का कार्य पूर्ण किया। कर्नाटक, महाराष्ट्र, तामिलनाडू जैसे अनेक राज्यों में जैन मंदिरों के साथ अन्य मंदिरों का भी कार्य पूर्ण किया। युरोप, अमेरिका, रूस आदि अनेक विदेशी स्थान जाकर भी भारत देश एवं जैनधर्म का नाम रोशन किया, अनेक स्थानों का पंचकल्याण प्रतिष्ठापना स्थापना की, अनेक मंदिर-मस्जिद एवं चर्च आदियों को बृहत्दान दिया, सामूहिक विवाह पद्धति का प्रारंभ किया, अनेकों स्थान पर अस्पताल, स्कूल, कॉलेज आदि स्थापित किए, इस दानवीर परिवार ने ४ प्राथमिक स्कूल, २ हायस्कूल, ११ कॉलेज एवं ९ नये संस्थान स्थापित किए हैं, यात्रियों के लिए अनेक यात्रीनिवास बनवाये, अनेक इंजिनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज, आयुर्वेदिक कॉलेज, नॅचरोपथी कॉलेज आदि स्थापन कर बीमार लोगों की सेवा की। वीरेंद्र हेग्गडे जी ने अनेक गावों को दत्तक लेकर वहाँ पर सभी सुविधाओं का निर्माण किया, इस कार्य से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री एवं बाद में पद्मविभूषण पदवी से भी सन्मानित किया, लंदन की संस्था ने उनके इस कार्य हेतु अतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। वीरेंद्र हेग्गडे जी ने अनेक उत्सव शुरु किए हैं, धर्मस्थल का लक्ष दीपोत्सव विश्व में प्रसिद्ध है, कार्तिक एकादशी से लेकर अमावस्या तक यह उत्सव चलता है, अंतिम दिन चंद्रप्रभु स्वामी जी के समवसरण की पूजा की जाती है। महाद्वार निकटस्थ पहाड़ पर २७६ सीढियाँ चढकर ऊपर जाने पर भगवान बाहुबली स्वामीजी का दर्शन होता है, उनके समक्ष ३० फीट ऊँचा स्तंभ है एवं इस पर यक्ष प्रतिमा स्थापित है, इस मूर्ति की स्थापना करते हुए उन्हें चामुंडराय पदवी से विभूषित किया गया था। धर्मस्थल में निवास एवं भोजन की उत्कृष्ट व्यवस्था है। हेग्गडे जी के निवासस्थान के निकट कार्यालय, भंडारगृह एवं अन्नपूर्णा नाम से भोजनालय है, यहाँ पर एक ही समय हजारों लोग भोजन करते हैं, यहाँ की साफ सुथरी एवं सुंदर व्यवस्था के लिए इस क्षेत्र का नाम ग्रिनीज बुक ऑफ रेकॉर्ड में दर्ज है, नेत्रावती एवं वैशाली नाम की धर्मशाला में अत्यंत कम किराए पर उपलब्ध की जाती है, यहाँ का म्युझियम, नगर की सफाई एवं अन्य सभी रचनाएँ मन को लुभाती है, नगर दर्शन एवं धर्मलाभ के लिए इस क्षेत्र का अवश्य दर्शन करें। – प्रा. डॉ. महावीर प्रभाचंद्र शास्त्री प्राकृत-संस्कृत विभाग प्रमुख वालचंद महाविद्यालय, सोलापुर भगवान पाश्र्वनाथ जी का अतिशय क्षेत्र कमठाण जैन धर्म भारत वर्ष का अत्यन्त प्राचीन धर्म माना जाता है, क्रिस्त के जन्म से चार सौ साल पहले मौर्य चक्रवर्ती चंद्रगुप्त को कर्नाटक प्रांत का श्रवणबेलगोला में मानसिक शुद्धि के लिए आश्रय देकर जीवन रक्षण किया था, जैन धर्म बाहर के ठाट-बाट से उपर उठकर भीतरी शुद्धि को महत्व देने वाला धर्म है, जैन धर्म ने उत्तर भारत में जन्म लेकर सारे संसार को अहिंसा का संदेश दिया, दक्षिण भारत के कर्नाटक में जैन धर्म का डंका बजा, कर्नाटक का इतिहास इसका गवाह है, जैन धर्म का मूल तत्व अहिंसा का पालन तथा आत्म दर्शन है। कर्नाटक का मुकुट स्थान बीदर जिल्हा धर्म समन्वय का संगम स्थान है, यहाँ अलग-अलग धर्म के मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिद, बुद्धस्तूप तथा जैनों के चैत्यालय भी हैं, बीदर जिल्हे के बहुत से गावों में आज भी जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां पाई जाती है। बीदर केन्द्र स्थान से ग्यारह किलोमीटर दूरी पर कमठाण ग्राम के पश्चिम दिशा की ओर भगवान पाश्र्वनाथ जी का अति प्राचीन मंदिर हैं, बसवकल्याण तालुके के मिरखल, हुमनाबाद तालुका के केन्द्र स्थान पर पुरातन जैन मंदिर आज भी मौजूद हैं। भाल्की, औराद नगर में भी जैनों के जीर्ण-शीर्ण मंदिर और मूर्तियाँ पाई जाती हैं, बीदर से १८ किलोमीटर की दूर पर स्थित काडवाद ग्राम में सिद्धेश्वर मंदिर के बाहरी प्रांगण में आज भी भगवान महावीर की मूर्ति हमें देखने को मिलती है। कमठाण बीदर जिल्हे का एक बड़ा गाँव है, इस गाँव का इतिहास कर्नाटक के प्राचीन इतिहास से जुड़ा हुआ है। रट्ट वंश के राज्यभार के समय में यह एक बहुत बड़ा खेड़ा गाँव था। कमठाण आज बीदर जिल्हे का एक बड़े गाँव के रूप में जाना जाता है, इस ग्राम के रास्ते में कर्नाटक का बहुत बड़ा पशु वैदिक महाविद्यालय बसा हुआ है, पुरातन काल से इस ऐतिहासिक गाँव में पुरातन विठल मंदिर, वीरशैवों का पुरातन मठ तथा ग्यारहवी शताब्दी के भगवान पाश्र्वनाथ जी का मंदिर देखने को मिलता है। ११सौ साल पुराना यह पट्टा राज वंश के राज द्वारा निर्मित जैनों के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथजी के ध्यान मग्न पदमासन की ४१ फीट ऊंची काले पाषाण की नयन मनोहर सुंदर मूर्ति आज भी दर्शनार्थियों को जैन धर्म का अहिंसा संदेश मौन वृत्त से दे रहा है, देखनेवालों को ऐसा प्रतीत होता है कि साक्षात तीर्थंकर मौनव्रत धारण कर तपस्या में जीवंत बैठे हुए हैं। करीब डेढ़ एकर की विशाल पटस्थल पर स्थित यह अतिशय क्षेत्र यात्रियों का यात्रा स्थल बन गया है, इस पुण्य परिसर में ३५ आम के वृक्ष यात्रार्थियों को ठंडी हवा प्रदान कर छांव देने को तत्पर हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा का प्रवेश द्वार बड़ा ही शुभकारी होता हैं, यह जानकर उत्तर दिशा के सड़क और महाद्वार का काम होना बाकी है, पूर्व में भी एक महाद्वार है, मंदिर के सामने ३५ फीट ऊंची मानस्तंभ बहुत ही मनमोहक एवं सुंदर है। भगवान पाश्र्वनाथजी के गर्भ गृह के नीचे गुफा को अच्छी ढंग से मरम्मत करके वहां पर कांच का सुंदर काम करवाया गया है, यहाँ पर बैठ कर ध्यान करने से मन को शांति मिलती है, ऐसा कहा जाता है। भगवान पाश्र्वनाथ जी के गर्भ गृह तथा शिखर में भी बड़े ही सुंदर ढंग से कांच का काम करवाया गया है, यहां पर भगवान पाश्र्वनाथजी का प्रतिदिन पंचामृत अभिषेक कराया जाता है, इसके लिए एक शाश्वत पूजा निधि का आयोजन करते हैं, जिसमें करीब ४०० सदस्य हैं, सदस्यता अभियान जारी है, सदस्यता शुल्क ५०१ रु. है, यहां पर पहले जैनों की पाठशाला और छात्रावास था, ऐसा लोग कहते हैं, गुरुकुल में विद्या प्राप्त बहुत से लोग अभी भी बीदर जिल्हे में मिलते हैं, अत: वैसा ही छात्रावास कमठाण अतिशय क्षेत्र परिसर में पुन: स्थापित कर नि:सहाय जैन छात्रों को विद्यादान करने हेतु पंच कमेटी ने निर्णय लेकर ‘श्रुतज्ञान छात्रावास’ नाम से एक छात्रावास निर्माण करने का संकल्प लेकर, उसके लिए स्केच तैयार कराकर इस्टीमेट भी बनवाया है, यहां पर २०० लोगों को बैठने की व्यवस्था वाला एक सुन्दर प्रवचन मंदिर और ५०० व्यक्तियों की क्षमतावाली सभा गृह का निर्माण कार्य भी पूरा हो गया है, अगर दानियों से उदार हस्त से दान मिलता रहा तो यहाँ की पंच कमेटी कुछ ही समय में आधे अधुरे सभी कार्य पूर्ण कर इसे एक प्रेक्षणीय स्थान तथा जैनों का पवित्र यात्रा स्थान बनाने में देर नहीं लगेगी। भगवान पाश्र्वनाथजी की मूर्ति १९८९ फरवरी तक जमीन में बनी गुफा में थी, जिसे प. पू. आ. श्री १०८ श्रुतसागर मुनिमहाराज जी ने गुफा के उपरी भाग में एक सुंदर संगमरमरी के वेदी बनवा कर उस पर माघ शुक्ल ५, १९८७ को प्रतिस्थापित करवाया, तबसे इस मूर्ति की प्रभावना और बढ़ गई है, हमेशा यात्रार्थी आकर दर्शन लाभ लेकर जाते हैं, हर साल यहाँ पर माघ शुक्ला ५ से ७ तक तीन दिन बड़े हर्षोल्लास से वार्षिक रथयात्रा महोत्सव मनाया जाता है। आंध्र, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों से हजारों की संख्या में यात्रार्थी इस अवसर पर आकर पुण्य प्राप्ति के भागीदार बनते हैं, बीदर नगर के तथा पूरे जिल्हे के जैन समुदाय एकजुट होकर इस क्षेत्र की उन्नति के लिए रात दिन मेहनत कर रहा है, यहां पर यात्रार्थी और दर्शनार्थियों के सुविधा के लिए विश्रांतिगृह, भोजनगृह, पकवानगृह, शौचालय और पानी की सुविधा की गई है, इस गाँव में जैनों के सिर्फ दो ही परिवार बसे हुए हैं, जो मंदिर को यथा संभव स्वच्छ तथा सुव्यवस्थित रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और पधारे दर्शनार्थियों को यथा योग्य सेवा और जरुरी सहुलियत उपलब्ध कराते हैं। तीर्थ के विकास में सहयोग करने से पूण्यार्जन होता है -आचार्यश्री विश्वरत्न सागरजी राजगढ़: किसी भी जैन तीर्थ के विकास में सहयोग करने से पूण्यार्जन होता हैं, पूण्योदय से ही मानव जीवन का कल्याण होता हैं एवं परिवार में सुख शांति आती हैं, वहीं तीर्थ विकास में अवरोध उत्पन्न करने से कर्मों का बंधन होता है। अमीझरा तीर्थ विकास का स्वप्न आचार्यश्री नवरत्न सागरसूरिश्वर जी ने कहा था, अब हम सबकी जवाबदारी हैं कि मालवा की इस धरोहर की देखरेख कर आचार्यश्री के स्वप्न को पूर्ण करना हैं। उक्त प्रेरणादायी उदबोधन आचार्यश्री विश्वरत्न सागर सूरिश्वरजी ने अमीझरा तीर्थ पर आयोजित ध्वजारोहण समारोह को संबोधित करते हुए दिखे, आपने कहा कि जिनशासन की असीम अनुकंपा से मालवा क्षेत्र में अनेक धरोहर है। भगवान पाश्र्वनाथ के १०८ मूल स्थानों में से एक अमीझरा तीर्थ है, इस तीर्थ के जीर्णोद्धार के लिए पूरी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। ट्रस्ट मण्डल की जवाबदारी है कि वह इसे मूर्तरूप प्रदान कर तीर्थ का विकास प्रारंभ करें, इसके पूर्व वार्षिक ध्वजारोहण के लिए ध्वजा का चल समारोह लाभार्थी परिवार शांतिलाल मोतिलाल पोसित्रा परिवार के निवास से आचार्यश्री की निश्रा में प्रारंभ हुआ, नगर के मुख्य मार्गों से होता हुआ तीर्थ परिसर पहुंचा, यहां पर विधिपूर्वक ध्वजारोहण की प्रक्रिया विधिकारक दर्शन चौहान (उन्हेल) ने पूरी की, ध्वजा को लेकर लाभार्थी परिवार ने मंदिर की तीन परिक्रमा भी की। लाभार्थी परिवार व अतिथियों का बहुमान अमर ध्वजा एवं स्वामीवात्सल्य के लाभार्थी पोसित्रा परिवार के प्रफूल जैन, राजेश जैन, विशाल जैन का बहुमान ट्रस्टी राजेश जैन (उज्जैन), दिलीप फरबदा, सुरेश कांग्रेसा एवं ट्रस्ट के विधि सलाहकार महेंद्र सुंदेचा एडव्होकेट ने शॉल श्रीफल व मोतियों की माला से भेंट कर किया। लाभार्थी परिवार की महिला श्रीमती अनिता प्रफूल, विद्या राजेश का बहुमान रूपाली कोठारी रिंगनोद व अन्य महिलाओं ने किया। समारोह के अतिथि जिला पंचायत सदस्य कमल यादव, प्रवीण गुप्ता धार, सुधीर जैन इंदौर एवं नितिन चौहान राजगढ़ का बहुमान किया गया। ऋषभदेव मोतिलाल ट्रस्ट राजगढ़ की ओर से संदिप जैन ने कार्यक्रम में सहभागिता की। धार की ओर किया विहार: ध्वजारोहण समारोह के तुरंत आचार्यश्री ने अपने मुनिमंडल सहित धार शहर के लिए प्रस्थान किया। विहार सेवा प्रमुख सुनिल फरबदा ने बताया कि धार में आयोजित भक्तांबर प्रतिष्ठा महोत्सव सहभागिता करेंगे, आचार्यश्री की १२ फरवरी तक धार में स्थिरता रहेगी, इसके बाद आप उज्जैन की और विहार करेंगे। उज्जैन शहर में मालवा के प्रसिद्ध जैन तीर्थ अवंतिका पाश्र्वनाथ प्रतिष्ठा महोत्सव को निश्रा प्रदान करेंगे, स्मरणीय यह है कि आचार्यश्री एक दिन पूर्व ही शनिवार शाम को अमीझरा तीर्थ पहुंचे थे, इस दौरान तीर्थ परिसर पर आचार्यश्री आगवानी नवरत्न परिवार के राष्ट्रीय संयोजक राजेश जैन, ट्रस्टी राजेश पोसित्रा, विशाल जैन, पुखराज जैन व पेढ़ी के कर्मचारियों द्वारा की गई। जीव दया के लिए दान की घोषणा जैन समाज की परपंरा रही है, किसी भी धार्मिक आयोजन में अबोल पशु-पक्षियों के लिए धनराशि संग्रहित करते हैं, आचार्यश्री की प्रेरणा से इस समारोह में भी अनेक दानदाताओं ने १००८ रूपये के प्रत्येक अंश के मान से दान देने की घोषणा की, इसमें मालवांचल के अनेक गुरूभक्तों ने सहभागिता की, विशेष रूप से अमीझरा ट्रस्ट के कर्मचारियों ने भी अबोल पशुओं के लिए दान देकर अनुमोदनीय कार्य किया है। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन वीरेंद्र जैन पत्रकार राजगढ़ ने किया। जवानों की शहादत पर राजनीति ना करें सभी राजनेता एक होकर पाक को सबक सिखायें -विनायक लुनिया जबलपुर/इंदौर/उज्जैन/कोलकाता: जम्मू कश्मीर में आतंकी हमला में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों के शहादत पर राजनीति रंग दिखाना जारी हो गया है, जिस पर आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन के संगठन अध्यक्ष विनायक अशोक लुनिया एवं संगठन राष्ट्रीय अध्यक्ष सचिन कासलीवाल द्वारा समस्त पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षों/शीर्ष नेतृत्व को एक पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों के शहादत पर राजनीति ना करते हुए भारत के पक्ष में एक मत हो पाकिस्तान को सबक सिखाने और कड़ी कार्यवाही करने की अपील की। पत्र में संगठन राष्ट्रीय अध्यक्ष सचिन कासलीवाल ने कहा कि बहुत हुयी बातचीत, अब भारत को माँ भवानी के रूप में आतंकियों व घर में छुपे गद्दारों का सर काटकर माँ भवानी को अर्पण करने का समय आ गया है। आतंकी हमला पर पाक का समर्थन करने वालो को बीच चौराहे पर फांसी दे सरकार – आदित्य नारायण संगठन के संस्थापक समिति सदस्य आदित्य नारायण बैनर्जी ने जम्मू कश्मीर से बड़े नेताओं के बयान आने के साथ ही कहा कि आतंकी हमला शामिल पाक का समर्थन करने वालों को बीच चौराहे पर लाकर फांसी से लटका दे सरकार, साथ ही श्री बैनर्जी ने कहा कि हर रोज पाक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक होना चाहिए और कश्मीर हमारा है ये पाक को बता देना चाहिए। श्री बैनर्जी सहित लुनिया व कासलीवाल ने अपने ट्वीटर व फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट शेयर करते हुए यह बात कही व साथ ही देश भर के समस्त राजनीतिक पार्टीयों को ईमेल कर के शहीदों के शहादत पर राजनीति ना करें, कठिन वक्त में सरकार के साथ मिल कर पाक के खिलाफ कड़े कदम उठाने की अपील की। – आल मीडिया जर्नलिस्ट सोशल वेलफेयर एसोसिएशन ७०६७०५२१३३ आचार्य महाश्रमण मुंबई में करेंगे २०२३ का चातुर्मास मुंबई : तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण ने वर्ष २०२३ का चातुर्मास मुंबई में करने की घोषणा की है, इस घोषणा से मुंबई श्रावक समाज में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी है। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा अध्यक्ष नरेंद्र तातेड़ के नेतृत्व में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर कोयंबतूर में करीब २०० श्रावकों की उपस्थिति में मुंबई श्रावक समाज को सेवा का अवसर मिला। कोयंबतूर में पूरे मुंबई श्रावक समाज की ओर से गुरूदेव से मुंबई में चातुर्मास का निवेदन किया गया। मर्यादा महोत्सव के महाकुंभ में नेमाजी के. लाल ने मुंबई में गुरूदेव का २०२३ का चातुर्मास करने की घोषणा की, यह घोषणा होते ही मुंबई श्रावक समाज खुशी से झूम उठा। मुंबई सभा मंत्री विजय पटवारी ने कहा कि गुरूदेव के प्रति जितनी कृतज्ञता ज्ञापित की जाए उतनी कम है, इसके साथ ही २०१९ का आगम मनीषी प्रोफेसर मुनि महेंद्र कुमार स्वामी का चातुर्मास कांदिवली तेरापंथ भवन, शासन साध्वी कैलाशवति का आचार्य महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल कालबादेवी एवं साध्वी अणिमा का चातुर्मास ठाणे तेरापंथ भवन में घोषित किया। महाराष्ट्र में भगवान महावीर संशोधन केंद्र चिकलठाणा (महाराष्ट्र): औरंगाबाद महानगर निगम वार्ड क्र. १०३, वेदान्तनगर में भ. महावीर संशोधन वेंâद्र के लिये, महानगर निगम के विशेष सभा में ४ करोड ७ लाख रू. की राशी घोषित की गई है। वेदान्तनगर के ६ हजार ८८४ चौरस मिटर, खुली जगह पर १ हजार १० चौरस मीटर की दुमंजली इमारत का निर्माण होगा, इस इमारत में योग हॉल, भंडार कक्ष, प्रशासकिय कार्यालय, ग्रंथालय, एवम विपश्यना हॉल निर्माण किया जायेगा। लिफ्ट एवम् ए.सी. की सुविधा रहेगी। महापौर (मेअर) मंद कुमार घोडेले इस विषय पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। महाराष्ट्र में ही नहीं भारत वर्ष के बीच औरंगाबाद महानगर निगम एक ऐसा निगम है जिसने भ. महावीर संशोधन केंद्र का निर्माण किया है। सर्वसाधारण सभा में पंचायत कार्यकारिणी का चुनाव चिकलठाणा (महाराष्ट्र): खंडेलवाल दिगम्बर जैन पंचायत पाश्र्वनाथ मंदिर, राजाबाजार औरंगाबाद के वार्षिक सर्वसाधारण सभा में विद्यमान अध्यक्ष ललित बबनलालजी पाटणी, सचिव अशोक तिलोकचंदजी अजमेरा का सर्वसम्मति से एक बार फिर से चुनाव हुआ है। उपाध्यक्ष पद पर विनोद लोहाडे तथा सह सचिव पद पर नरेंद्र अजमेरा का निर्विरोध चुनाव हुआ है। पंचायत विश्वस्त मंडल पर महावीर पाटणी, चांदमल चांदीवाल, अ‍ॅड. एम.आर. बडजाते, प्रकाश अजमेरा, दिलीप ठोले आदि का चुनाव हुआ है। पत्रकार एम.सी. जैन ने सभी का अभिनंदन किया है।

तेरापंथ धर्मसंघ की नई घोषणाएं: उत्सव 0

तेरापंथ धर्मसंघ की नई घोषणाएं: उत्सव

कोयंबटूर: अध्यात्म की संस्कृति के संस्कृत मंदिरों की नगरी से सुविख्यात दक्षिण भारत के तमिलनाडु प्रांत की ‘मेन्वेस्टर ऑफ साउथ’ के नाम से प्रसिद्ध कोयंबटूर नगरी, इसी नगरी के सुविशाल ट्रेड फेयर सेंटर कोडिशिया के ब्लॉ क-डी का वातानुकूलित भव्य हॉल में आयोजित हुए १५५वें मर्यादा महोत्सव को त्रिदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य व अंतिम माघ शुक्ला सप्तमी का दिन, एक स्वर्णिम उजास लिए हुआ था। मर्यादा महोत्सव को त्रिदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य व अंतिम माघ शुक्ला सप्तमी का दिन, एक स्वर्णिम उजास लिए हुए था। मर्यादा महोत्सव के उल्लास से उल्लासित चतुर्विध धर्मसंघ का आज मानो श्रद्धातिरेक तब चरम पर पहुँच गया, जब तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें सम्राट अपनी धवल सेना के साथ लगभग बारह बजे मर्यादा समवसरण में पहुँचे। पूरा वातावरण ‘जय-जय ज्योतिचरण-जय-जय महाश्रमण’ के नारों से गूँज उठा, हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों के मोबाइल हवा में एक साथ ऐसे उठे कि मानो अंतस को प्रकंपित करने वाला यह दुर्लभ क्षण कभी हाथों से निकल न जाए। मंच पर पट्टासीन होकर जयकारा हेतु उठे दोनों हाथों से आचार्यप्रवर ने विशाल जनमेदिनी की अभिवंदना को स्वीकार किया, अगले ही क्षण में प्राप्त होने वाले रोचक दृश्यों की अभिलाषा से पूरा पंडाल शांत हो गया। नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ पूज्यप्रवर ने आज के महाकुंभ के मुख्य दिन का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। गुरु इंगित पाकर मुनि दिनेश कुमार जी ने कार्यक्रम का संयोजन अपने हाथ में लिया एवं सर्वप्रथम मर्यादा घोष व मर्यादा गीत द्वारा उपस्थित जनसमूह को एक लय और एक रस में बाँध दिया। तीनों धवल सेनाओं की ओजस्वी प्रस्तुति हुयी : कार्यक्रम का आगाज करते हुए तेरापंथ के सम्राट की तीनों धवल सेनाओं-समणीवृंद, साध्वीवृंद एवं संतवृंद द्वारा संघभक्ति की हुँकार भरते हुए क्रमश: जोशीले गीतों की समवेत स्वरों में मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुई, ऐसे नयनाभिराम दृश्य के स्वागत में उपस्थित जनसमूह के दोनों हाथ ‘ॐ अर्हम्’ की हर्ष ध्वनि से लहरा उठे। संघ महानिदेशिका का प्राग्वक्तव्य : असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ एक गौरवशाली संघ है, इसकी गरिमा का साक्ष्य है, आज का नजारा। एक आचार्य की सन्निधि में किस तरह पूरा धर्मसंघ उपस्थित है, जो संघ में दीक्षित हो जाता है, लाखों-लाखों लोगों के जीवन का आद्य है, ‘एक आचार, एक विचार और एक नेतृत्व’ तीर्थंकरों की आज्ञा अनुपालना। आचार्यों ने धर्मसंघ का संपोषण किया है, एक तत्त्व, सैद्धांतिक, एक ही बात का चिंतन, एक ही आचार है, ऐसा है, तेरापंथ धर्मसंघ। पूर्वाचार्यों को विनयांजलि व धर्मसंघ के नाम संदेश : तेरापंथ धर्मसंघ को अपना कुशल नेतृत्व प्रदान करने वाले महातपस्वी महाश्रमण जी ने अपना मंगल उद्बोधन प्रारंभ करने से पूर्व संघीय मर्यादा के प्रति विशेष सम्मान में पट्ट से नीचे उतरे, पूरे चतुर्विध धर्मसंघ को खड़े रहने का इंगित प्रदान करते हुए स्वयं खड़े रहते हुए अपने उद्बोधन में फरमाया कि आज हमारे धर्मसंघ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ का मर्यादा महोत्सव के वार्षिक आयोजन का मुख्य दिवस है, हमारे धर्मसंघ का जन्म, स्थापना, उद्भव लगभग २५८ वर्ष पूर्व आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा वि.सं. १९१७ को हुआ था। परम पावन आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ की प्रेरणा थे, आचार्य थे, गुरु थे, मैं उनके प्रति श्रद्धा से प्रणत हूँ, उनके बाद आचार्यश्री भारमल जी से लेकर आचार्यश्री कालूगणी तक कुल आठ आचार्य हुए हैं, जिनको मैंने प्रत्यक्ष नहीं देखा है। आचार्यश्री कालूगणी तक कुल आठ आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी इन दो आचार्यों के पावन चरणों में रहने का मौका मिला, सभी अतीत के दसों आचार्यों को प्रणत होता हुआ वंदन करता हूँ। गुरुद्वय को विशेष विनयांजलि, हमारा धर्मसंघ आध्यात्मिक दर्शन पर आधारित है, सम्यक् दर्शन पर खड़े संगठन की नींव मजबूत होती है। हमारा धर्मसंघ सामाजिक या राजनीतिक पार्टी का संगठन नहीं है, धार्मिक है, अध्यात्म पर आधारित है, हम सब जो इसके सदस्य हैं, सबमें आत्म-निष्ठा, आत्म-कल्याण की परिपुष्ट भावना रहे, हमारा ज्ञान-दर्शन-चारित्रिक स्वास्थ अच्छा रहे। महामहिम हमारा संघ : आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि आस्था का सूत्र है- वह सत्य ही सत्य है जो निशंक है, जो जिनेंद्र द्वारा प्रज्ञप्त है, हम मोक्ष की ओर आगे बढ़ें, हमारी यह आत्म-साधना वैयक्तिक नहीं संघबद्ध रही है, संघ हमारा आश्रय है, शरण है। हमारा धर्मसंघ महामहिम संघ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, सभी साधु-साध्वियों को वंदन करता हूँ, इनका संघ के प्रति सम्मान आदर का भाव है, इनकी संघ-निष्ठा पुष्ट रहे, आगे भी अच्छी रहे, तुच्छ बातों के लिए विचलन का भाव न आए। शरीर छूटे तो छूटे पर संघ हमारा न छूटे, हमारे संघ को नंदनवन कहा गया है, संघ की सेवा करने का भाव रखें। वृद्ध, ग्लान साधु-साध्वियाँ जो सेवा सापेक्ष हैं, उनकी सेवा करते रहें। हमारी शक्ति का उपयोग यथोचित संघ निष्ठा में होता रहे, जहाँ संघ होता है, वहाँ अनुशासन की व्यवस्था होती है, हमारे धर्मसंघ में आचार्य सर्वोपरि होते हैं, यह हमारी वैधानिक व्यवस्था है। साधु-साध्वी, समण श्रेणी, श्रावक-श्राविकाएँ एक आचार्य, एक गुरु की आज्ञा में रहें, आचार्य जो आज्ञा निर्देश करें, उसका पालन होना चाहिए। आज्ञा बिना पत्ता भी न हिले, हमारी गुरु के प्रति आज्ञानिष्ठा पुष्ट रहे, ये आज्ञा आत्मा के लिए है। आचार निष्ठा भी रहे, साधु-साध्वियों के तेरह नियम हैं, वे उनके प्रति एवं चारित्र के प्रति जागरूक रहें। समण श्रेणी अपने आचार के प्रति एवं श्रावक समाज भी अपने व्रतों के प्रति जागरूक रहे। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि धर्मसंघ की अपनी मर्यादा है, उसके प्रति जागरूक रहें, हम मर्यादा का मान रखेंगे तो मर्यादा हमारा मान रखेगी। मर्यादा महोत्सव का संबंध वि.सं. १९५९ के आचार्य भिक्षु के लिखत के साथ है, यह लिखत (मर्यादा-पत्र) हमारा गणछत्र है। पूज्यप्रवर ने आचार्यप्रवर द्वारा मारवाड़ी भाषा में लिखित मूल पत्र का अक्षरश: वाचन किया, बाद में पूज्यप्रवर द्वारा स्व-रचित गीत का सूमधुर संगान किया गया। ज्ञान चेतना वर्ष : आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के शुभारंभ से पूर्व साधु-साध्वी को विशेष प्रेरणा देते हुए आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि महाप्रज्ञ श्रुताराधना का सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम शुरू किया है, इससे ज्ञानाराधना, श्रुताराधना बढ़ाई जा सकती है, गुरूकुलवासी व बर्हिविहारी साधु-साध्वी, समण श्रेणी भी इससे जुड़ सकती है। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जन्तशताब्दी को मैं ‘ज्ञान चेतना वर्ष’ घोषित करता हूँ। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा लिखित संस्कृत ग्रंथ संबोधि का, जिसके अनुकूलता हो याद करने का प्रयास करें। सौलह अध्याय हैं, श्रावक-श्राविकाएँ, छोटे बालक-बालिकाएँ भी कंठस्थ करने का प्रयास करें। महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी की शुरूआत ३० जून, १,२ जुलाई के त्रिदिवसीय कार्यक्रम जो बैंगलोर में है एवं समापन हैदराबाद में करने का भाव है, कार्यक्रम जो इससे संबंधित हैं वे विभिन्न क्षेत्रों व गुरूकुल में हो सकते हैं, महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समिति के अध्यक्ष हंसराज बेताला नियुक्त किए गए हैं, ये समिति संयममय, आध्यात्मिक कार्यक्रम चलाने पर ध्यान दें। समणी दीक्षा : पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि अब समणी दीक्षा को समाप्त कर मुमुक्षु बहनों को सीधे साध्वी दीक्षा देने का अनिश्चित काल तक भाव है, अनिश्चित काल तक समण-समणी दीक्षा बंद की जा रही है। पारदर्शिता रहे : धर्मसंघ की संस्थाओं को पारदर्शिता की प्रेरणा देते हुए पूज्यप्रवर ने आगे कहा कि अनेक संस्थाएँ हैं, वे आध्यात्मिक धार्मिक कार्यों में विशेष ध्यान दें। सभी में प्रामाणिकता बनी रहे। पारदर्शिता रहे। कच्चे का काम, दो नंबर का काम न हो। सब काम पक्के में हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। कोई भवन निर्माण आदि का कार्य हो, तो उसमें कानून के उल्लंघन से बचें और अवैध निर्माण से बचें, ताकि पाप-कर्मों से बचा जा सके। अनेक गतिविधियाँ : पूज्यप्रवर ने आगे कहा कि ज्ञानशाला महासभा की गतिविधि है, अच्छी चले। संख्या के साथ गुणात्मक वृद्धि हो, जहाँ ज्ञानशाला नहीं है वहाँ खोलने का प्रयास करें, हमारे सामने उपासक श्रेणी है, अणुव्रत, जीवन-विज्ञान, प्रेक्षाध्यान आदि गतिविधियाँ खूब अच्छी प्रगति करें। घोषणाओं से चकित, हर्षित हुआ धर्मसंघ : नित कई घोषणाओं से सबको चकित करने वाले करूणा के सागर आचार्यप्रवर ने मर्यादा महोत्सव के पावन अवसर पर आगामी यात्रा के बारे में फरमाया कि मैंने केलवा चातुर्मास में तीन चातुर्मास, दो मर्यादा महोत्सव एवं एक अक्षय तृतीया से ज्यादा घोषित करने का अनिश्चित काल के लिए प्रतिबंध लगाया था, वह आज समाप्त किया जा रहा है, अब यात्रा के संबंध में बात करनी है। २०२२ का चातुर्मास कालूगणि की जन्मभूमि छापर में : नई घोषणाओं का क्रम चालू करते हुए पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि पहली बात, मेरे सामने छापर है। छापर से मैंने चातुर्मास लिया था, अब उसका निर्णय कर देता हूँ कि छापर चातुर्मास कब करना है, इतना सुनते ही पूरा समवसरण पूज्यप्रवर की अगली पंक्ति सुनने के लिए शांत हो गया। सर्वप्रथम पूज्यप्रवर ने परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, आचार्य भिक्षु सहित पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को वंदना, जयपुर विराजित श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री सुमेरमल जी को वंदन तथा साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी को अभिवंदन करते हुए फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२२ पर चातुर्मास कालूगणी की जन्मभूमि छापर में करने का भाव है, इतना सुनते ही पूरा वातावरण ‘ॐ अर्हम्’ के नाद से गूँज उठा। छापरवासी फूले नहीं समा रहे थे। मुंबई के प्रति भी मेरे मन में भावना है : छापर चातुर्मास की घोषणा के बाद पूज्यप्रवर ने एक और अप्रत्याशित घोषणा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए फरमाया कि अब दूसरी बात मेरे सामने मुंबई भी है, वहाँ के लोग यदा-कदा अर्ज करते आए हैं, यहाँ भी आए हुए होंगे, तो मुंबई के प्रति भी मेरे मन में भावना है और भावना यह कि मुंबई भी मुझे कभी जाना चाहिए। यह सुन उपस्थित मुंबईवासी पूज्यप्रवर के समक्ष आकर खड़े हो गए, पूरा वातावरण शांत हो, अपने नयनों से अपलक पूज्यप्रवर को निहार रहे थे कि पूज्यप्रवर मुंबईवासियों की झोली में क्या देंगे। परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री को अभिवंदन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव और समय की अनुकूलता के आधार पर सन् २०२३ का चातुर्मास मुंबई में करने का भाव है। ‘ॐ अर्हम्’ के घोष के साथ सभी शब्दातीत हो एक-दूसरे का चेहरा देख हर्षाभिव्यक्ति व्यक्त कर रहे थे। मर्यादा महोत्सव छत्तीसगढ़ के रायपुर में : मर्यादा महोत्सव की घोषणा के क्रम की शुरूआत करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि सामने मर्यादा महोत्सव है और उसके लिए छत्तीसगढ़ सामने है तो मैं छत्तीसगढ़ के लिए भी कुछ कहना चाहता हूँ। अनेक क्षेत्रों से मर्यादा महोत्सव की आस लगाए हुए छत्तीसगढ़वासी मंच के समक्ष उपस्थित होने लगे। परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवादन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र काल और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२१ का मर्यादा महोत्सव रायपुर (छत्तीसगढ़) में करने का भाव है। मंच के सामने पंचरंगा पट्टा धारण किए हुए बड़ी संख्या में उपस्थित रायपुरवासी इस घोषणा से झूम उठे। मघवागणी की जन्मस्थली बीदासर में वृहद मर्यादा महोत्सव : पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि भीलवाड़ा तक मैंने कह दिया है अब प्रश्न है कि भीलवाड़ा के बाद हमें कहाँ जाना है तो उस विषय में मैं कुछ कहना चाहता हूँ, इसे सुनते ही चीतांबावासी (जिन्हें मेवाड़ का प्रथम मर्यादा महोत्सव की बक्शीस मिली हुई है) माथे पर मेवाड़ी पगड़ी पहने हुए आगे आने लगे तथा कुछ उन क्षेत्रों से भी लोग उपस्थित हुए, एक और अप्रत्याशित घोषणा करते हुए परमप्रभु भगवान महावीर को नमन, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों को तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवंदन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२२ का मर्यादा महोत्सव मघवागणी की जन्मस्थली बीदासर करने का भाव है, इसके पश्चात् बीदासरवासियों की अर्ज पर इसे वृहद् मर्यादा महोत्सव घोषित कर दिया। एक तरफ हर्ष का वातावरण तो दूसरी ओर चितांबावासियों को सांत्वना देते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि अभी प्रतीक्षा करें। २०२३ का मर्यादा महोत्सव बायतू में : मौके का फायदा उठाते हुए मुनि रजनीश कुमार जी (बायतू) पूज्यप्रवर के समक्ष जाकर निवेदन किया कि बायतू में आपश्री का मर्यादा महोत्सव घोषित किया हुआ है, अब सन् बोलने की कृपा कराएँ। मुनि रजनीश कुमार जी की अर्ज पर पूज्यप्रवर ने हर्षाभिव्यक्ति व्यक्त की और कहा कि हमारे मुनि रजनीश जी कह रहे हैं तो मैं यह भी कह देता हूँ। परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी को अभिवंदन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और अनुकूलता के आधार पर सन् २०२३ का मर्यादा महोत्सव बायतू में करने का भाव है, गुरूकृपा का आर्शीवाद पाकर सभी गद्गद हो गए। अनेक अक्षय तृतीयाओं की घोषणा : परमप्रभु भगवान महावीर का स्मरण, पूर्ववर्ती दसों आचार्यों तथा श्रद्धेय मंत्री मुनिश्री को वंदन, साध्वीप्रमुखाश्री जी का अभिवादन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आगामी अनेक अक्षय तृतीयाओं के बारे में बताना चाहता हूँ कि सन् २०२० की अक्षय तृतीया औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में करने का भाव है। सन् २०२१ की अक्षय तृतीया इंदौर (मालवा) में करने का भाव है। सन् २०२२ की अक्षय तृतीया सरदारशहर (पूर्व में ही) कह दिया है। बंद करते-करते और लगा दिया ताला : चतुर्विध धर्मसंघ पर घोषणाओं की अनुग्रह वृष्टि करने के बाद पूज्यप्रवर ने हाथों से इशारा करते हुए फरमाया कि अब घोषणाओं पर ताला लगा देते हैं, तभी कुछ निवेदन पर पुन:पूज्यप्रवर ने कहा कि अभी तो ताला हाथ में लिया है, बंद नहीं किया है, चाबी तो अभी भी हाथ में है, तो मैं कहना चाहता हूँ कि बायतू चातुर्मास के बाद अहमदाबाद जाने का भाव है और प्रेक्षा विश्व भारती व अहमदाबाद को एक मानते हुए लगभग तीन सप्ताह का वहाँ प्रवास करने का भाव है और इसके बाद सन् २०२३ की अक्षय तृतीया सूरत में करने का भाव है। इसके बाद पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जो ताला हाथ में लिया था उसे बंद करके विराम दे रहा हूँ। सन् २०२० की संपन्नता तक के लिए चातुर्मास, मर्यादा महोत्सव व अक्षय तृतीया आदि की घोषणा के लिए विराम देता हूँ। कुछ अवशिष्ट घोषणाएँ : शेष बची घोषणाओं को पूर्ण करते हुए पूज्यप्रवर ने घोषणा की कि- – नागपुर आने का भाव है। – सन् २०२० का वर्धमान महोत्सव गदग में करने का भाव है – हुबली मर्यादा महोत्सव प्रवेश माघ कृष्णा चतुर्दशी, दिनांक २३ जनवरी, २०२० को प्रात: ६:५१ बजे संस्कार स्कूल में करने का भाव है और हुबली से विहार माघ कृष्णा अष्टमी, २ फरवरी, २०२० को प्रात: ९:५१ बजे करने का भाव है। – बैंगलुरू चातुर्मासिक प्रवेश १२ जुलाई, २०१९ को लगभग प्रात: ९:३१ पर एवं वहाँ से प्रस्थान १३ नवंबर, २०१९ को प्रात: ९:२१ पर करने का भाव है। – भीलवाड़ा चातुर्मास में प्रवास आदित्य विहार, तेरापंथ नगर के निकट में करने का भाव है। दीक्षाओं की घोषणा : संयम प्रदाता आचार्यश्री ने बैंगलुरू में आयोजित होने वाले दीक्षा समारोह में दीक्षार्थियों के नाम की घोषणा करते हुए फरमाया कि आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी प्रारंभ के बाद ३ जुलाई, २०१९ को बैंगलुरू में:- – मुमुक्षु ऋषभ बुरड़ को मुनि दीक्षा देने का भाव है। – मुमुक्षु अजिता, मुमुक्षु प्रज्ञा, मुमुक्षु प्रतिभा, मुमुक्षु प्रेक्षा, मुमुक्षु वंदना को साध्वी दीक्षा देने का भाव है। – समणी वंâचनप्रज्ञा, समणी प्रगतिप्रज्ञा, समणी यशस्वीप्रज्ञा, समणी धृतिप्रज्ञा, समणी गंभीरप्रज्ञा, समणी प्रसस्तप्रज्ञा, समणी अखिलप्रज्ञा और समणी स्वेतप्रज्ञा को श्रेणी आरोहण करते हुए साध्वी दीक्षा देने का भाव है। मुमुक्षु खुशबू की समणी दीक्षा घोषित है, उनको समणी दीक्षा के तत्काल बाद साध्वी दीक्षा देने का भाव है। हाजरी वाचन व साधु-साध्वी, समण श्रेणी की पंक्ति का विहंगम दृश्य मर्यादा महोत्सव के अवसर पर बड़ी हाजरी का वाचन किया जाता है, जिसमें सभी साधु-साध्वियाँ व समण श्रेणी के सदस्य पंक्तिबद्ध दीक्षा ज्येष्ठत्व क्रम से खड़े होकर लेखपत्र व पूज्यप्रवर द्वारा उच्चारित भाषावली का उच्चारण किया जाता है, आज के इस दृश्य का अद्भुत नजारा था, पंडाल में उपस्थित जनता अपने-अपने मोबाइल फोन से इस विहंगम दृश्य को कैद कर रहे थे। पूज्यप्रवर के आव्हान पर पुन: सभी मंच पर आसीन होने के लिए बढ़े। १५५वें मर्यादा महोत्सव कोयंबटूर में साधुओं की संख्या ४९, साध्वियाँ ७५, समणियाँ ७५ व समण १-कुल २०० की उपस्थिति हुई, स्वयं पूज्यप्रवर ने अपने मुखारविंद से यह जानकारी दी, इसके पश्चात् पूज्यप्रवर ने उपस्थित श्रावकश्राविकाओं को श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन करवाया। संघगण के पश्चात् अंत में पूज्यवर ने त्रिदिवसीय १५५वें मर्यादा महोत्सव के कार्यक्रम के समापन की घोषणा की, कार्यक्रम का सफल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। स्थानकवासी जैन श्री संघ की उपाधि से सम्मानित कर्मठ समाजसेवी व उद्योगपति हीरालाल साबद्रा नवी मुंबई: परिचय एवं शिक्षा श्री हिरालाल साबद्रा राजस्थान के पाली जिले के अडसलाई से हैं, आपके पूर्वज करीब १००-१५० साल पहले महाराष्ट्र में आये, आपका जन्म महाराष्ट्र के नाशिक जिले का एक नगर लासलगाव में हुआ। बचपन में ही मां-बाप का साया छूट गया। नगर से शहर में पढाई के लिये जाने वाले आप पहले युवक थे। आपको केमिकल इंजिनिअरिंग की पढाई के लिये मुंबई के माटुंगा में प्रवेश मिला। आपके द्वारा अग्निशमन रसायनों का शोध प्रबंध के लिए गत दिनों आपको मलेशिया में अंतरराष्ट्रीय साउथ कोरिया युनिव्हर्सिटी से डॉक्टरेट पदवी की प्रदान हुयी। कार्यक्षेत्र: भारत देश में अग्निरोधक रसायनों का निर्माण नहीं होता था और रसायनों का आयात होता था, आपने रसायनशास्त्र की पढाई की थी इसलिये अनुसंधान किया और लगातार वर्षों की मेहनत परिक्षणों के बाद अग्निरोधक केमिकल्स के निर्माण में उपलब्धि मिली, इस उपलब्धि के कारण भारत सरकार ने आपके कार्यों की सराहना की एवम् ‘उद्योग रत्न’ अवार्ड से राष्ट्रपति (स्व.) डॉ. जेलसिंग के हाथों राष्ट्रपति भवन में सत्कार एवम् सन्मान के साथ नवा़जा गया। भारत सरकार ने फ्रांस में दुनिया के सर्वप्रथम झांग बनाने वाली शास्त्रज्ञ के साथ आदान प्रदान प्रणाली के अंतर्गत बातचीत के लिये आपको फ्रांस यात्रा के लिये अधिकृत किया गया, आपने वहां जाकर तंत्रज्ञान हासिल किया और फिर झाग बनानेवाली रसायनों का उत्पादन भारत में शुरू कर दिया। शिक्षा प्राप्त के बाद दस साल नौकरी की, फिर एक मित्र के साथ भागीदारी में व्यवसाय किया, तत्पश्चात खुद का व्यवसाय ‘केव्ही फायर केमिकल इंडिया प्रायवेट लिमिटेड’ के नाम से नई मुंबई में १९८९ को शुरू किया और उसे विस्तारित करने हेतु आपने नाशिक जिल्हा के देहात मुंढेगाव में बड़े पैमाने पर सन २००० में फैक्ट्री स्थापित की, आज आप ९० परिवारों का पालन पोषण कर रहे हैं। रसायनों के उत्पादन में आपने स्वदेशी एवम् बहुद्देशीय संस्थाओं से मान्यता प्राप्त की और भारत के सभी क्षेत्रों के साथ दुनिया के ४५ से अधिक देशों में आप अग्निरोधक उत्पादन को निर्यात कर रहे हैं। धार्मिक एवम् सामाजिक संस्थानों द्वारा किये जा रहे कार्य: न्यु बॉम्बे स्थानकवासी जैन संघ वाशी के आप संघपति एवम् अध्यक्षता की जिम्मेदारी गत लगातार २० सालों से निभा रहे हैं। नई मुंबई जैन ट्रस्ट दिगम्बर-श्वेताम्बर मूर्तिपूजक-स्थानकवासी व तेरापंथ की सामुहिक संस्था है, उसके आप ट्रस्टी हैं, नई मुंबई शहर में रहने वाले चारों जैन पंथ का एकमंच स्थापित है, जिस संगठन को आप बड़ी जिम्मेदारी से निभा रहे हैं। महावीर इंटरनेशनल के आप सदस्य हैं और समाजोपयोगी कार्यक्रम में आप रहयोगी रहते हैं। जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑरगेनाइजेशन (जितो) के आप फाऊन्डर चीफ पँटर्न हैं तथा नई मुंबई जितो चॅप्टर के मार्गदर्शक हैं। जैन एज्युकेशन सोसायटी वडाला के आप आजीवन सदस्य हैं और आर्थिक सहयोग प्रदान करते रहते हैं। जैन इंजिनियर्स सोसायटी के आप सक्रिय सहयोगी सदस्य एवम् आयोजित कार्यक्रम में सहयोगी रहते हैं। अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फरेंस के आप राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य हैं। ‘जैन जागृती सेंटर’ वाशी के सहयोगी सदस्य और शैक्षणिक कार्यों में हमेशा योगदान देते हैं। ऑल इंडिया भ्रष्टाचार और अपराध मुक्त भारत की नई मुंबई शाखा के प्रमुख हैं। मानव अधिकार के अंतर्गत कार्पोरेट सोशल एवम् पर्यावरण संस्था वाशी शाखा के प्रमुख हैं। मान सम्मान: भारतरत्न: भारत सरकार की और से ‘उद्योग रत्न’ पुरस्कार से राष्ट्रपति डॉ. जैलसिंग ने राष्ट्रपति भवन में सन्मानित किया, यह पुरस्कार आपको ‘‘अग्निशमक’’ रसायनों का भारत में सर्वप्रथम विकसित करने के लिये दिया गया। सद्भावना पुरस्कार: जैन समाज के सभी संप्रदायों को एकसाथ जोड़ कर नई मुंबई के सभी सदस्यों में भाइचारा एवं सहयोग बढाने के लिये आपको ‘सिटीझन इंटिग्रेशन पीस सोसायटी’ की ओर से सदभावना पुरस्कार दिया गया। लाईफ टाईम अचिव्हमेंट अवार्ड: अग्निशमन क्षेत्र में आपके द्वारा लगातार चार दशकों से सेवा देने के कारण इन्स्टिट्यूट ऑफ फायर इंजिनियर्स एवम् फायर प्रोटेक्शन मन्युफॅक्चर्स असोसिएशन की और से आपको लाईफ टाईम अचिव्हमेंट अवार्ड का पुरस्कार दिया गया। जैन समाज भुषण: नई मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने आपके द्वारा किए जा रहे समाज सेवा कार्यों के लिये श्री गणेश नाईक पूर्व मंत्री महाराष्ट्र राज्य द्वारा समाजभूषण की पदवी दी गयी। जैन गौरव: आपकी सेवायें एवम् समाजकार्य के लिए ‘नाशिक जिल्हे की शान’ नाशिक जिल्हा गौरव समिती की और से ‘जैन गौरव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। ओसवाल समाज संघटक: मुंबई ओसवाल समाज की संस्था ‘‘ओसवाल उत्कर्ष मंडल’’ की अध्यक्षता के कार्यकाल में आपने मुंबई, नई मुंबई के सभी परिवारों को जोड़ा एवम् एक सुंदर निर्देशिका का निर्माण किया, आपको समाज संगठन के कारण सन्मान एवम् अभिमान पत्र दिया गया। शैक्षणिक कार्य: आपने ब्लू बेल इंटरनेशनल नामक नई मुंबई में सर्वप्रथम प्ले स्कूल और नर्सरी का निर्माण किया और नई मुंबई के बच्चों के लिये शिक्षा संस्कार का महान कार्य किया। मुंबई के बाहर से आने वाली लड़कियों के लिये ‘‘कमला लेडीज होस्टेल’’ की सुविधा प्रदान की। ऐसी कई उपलब्धियों को प्राप्त करने वाले श्री हिरालाल साबद्रा के कार्यों को पढ कर हम सभी श्री साबद्रा जी की अनुमोदना करें, उनके पद चिन्हों पर चलते हुए तीर्थंकर महावीर से मनोकामना करें कि श्री हिरालाल साबद्रा दिर्घायु रहें। -जिनागम

जैन समाज को सम्मानित करने वाला भारतीय जाँबाज अभिनंदन 0

जैन समाज को सम्मानित करने वाला भारतीय जाँबाज अभिनंदन

विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ३८ वर्षीय भारतीय वायुसेना के पायलट है, आपका जन्म-दिवस २१ जून को १९८१ को हुआ। आपका पूरा नाम ‘अभिनंदन वर्तमान’ है, जबकि दक्षिण भारत में आपका नाम, ‘अभिनंदन वर्थमान’ बोला जाता है। दक्षिण भारत में ‘त’ को ‘थ’ बोला जाता है जैसे ‘हिंदुस्तान’ को ‘हिंदुस्थान’ कहा जाता है, कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आपका नाम ‘अभिनंदन वर्धमान’ प्रकाशित किया गया है। पारिवारिक पृष्ठभूमि आपके दादा भी भारतीय वायुसेना में थे, उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था, आपके पिता एस वर्तमान भारतीय वायुसेना में एयरमार्शल थे, आपकी पत्नी सेवानिवृत्त स्क्वाड्रन लीडर तन्वी मारवाह ने भी भारतीय वायुसेना में १५ वर्षों तक सेवाएँ दी हैं। विंग कमांडर अभिनंदन व उनकी पत्नी तन्वी मारवाह बचपन के साथी थे, दोनों पांचवीं कक्षा से एक-दूसरे से परिचित थे। दोनों ने कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी की डिग्री भी एक साथ ली थी, विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान एक पुत्र के पिता हैं। आपका भाई भी वायुसेना में अपनी सेवाएँ दे रहा है, अभिनंदन की तीन पीढियाँ भारतीय सेना से जुड़ी हुई हैं। शिक्षा: अभिनंदन ने अपनी १०वीं कक्षा तक की प्रारम्भिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय बेंगलुरु से प्राप्त की। उच्च शिक्षा दिल्ली में पूरी की है, उस समय उनके पिता भी भारतीय वायुसेना में थे और दिल्ली में ही भारतीय वायुसेना में पदस्थ थे, इसलिए पूरा परिवार यहीं रहा करता था। अभिनंदन खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के छात्र रहे हैं। अभिनंदन को मिग -२१ विमान बहुत प्रिय है और वह इस विमान के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को उनके लड़ाकू विमान के क्षतिग्रस्त होने पर २७ फरवरी २०१९ को पाकिस्तानी सेना ने अपनी हिरासत में ले लिया था, दो दिनों से अधिक पाकिस्तानी हिरासत में रखने के बाद ‘पाकिस्तान’ ने ‘जिनेवा संधि’ के अंतर्गत विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को १ मार्च २०१९ को छोड़ दिया व भारत ससम्मान भिजवा दिया। घर लौटने पर वायुसेना ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की वापसी पर प्रसन्नता व्यक्त की और बताया कि भारत पहुंचते ही अभिनंदन ने कहा, ‘अपने देश आकर बहुत अच्छा लग रहा है।’ विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान के घर लौटने पर सम्पूर्ण देश ने उनका हार्दिक स्वागत किया, पूरा देश उन्हें एक ‘जाँबाज’ सिपाही के रूप में देख रहा है। कोई उनकी तुलना हनुमान से कर रहा है तो कोई उन्हें ‘वायुवीर’ कह कर अलंकृत कर रहा है, उनके सकुशल घर लौटने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित अनेक नेताओं ने प्रसन्नता जताई है। मेजर जनरल (डॉ.) गगनदीप बक्शी (सेवानिवृत) ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की घर वापसी पर प्रसन्नता व्यक्त की, साथ ही आतंकवाद के समाधान पर यह संदेश भी दिया, ‘देश में एक वर्ग ऐसा है जो शांति में नोबल पुरस्कार पाने की होड़ में लगा हुआ है, इसी वजह से वह आतंकियों के सफाए को भी मानवाधिकार हनन करार देता है। एंटी टेरोरिस्ट फ्रंट के संस्थापक बिट्टा ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को ‘जिंदा शहीद’ की संज्ञा दी, उन्होंने कहा है कि अभिनंदन ने एक मिसाल कायम की है और वे पूरे देश के लिए विशेषत: नयी पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा-दााोत हैं। बिट्टा १९९३ में युवक कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनके दफ्तर के बाहर एक कार में आरडीएक्स बम रख दिया गया था, जैसे ही बिट्टा बाहर आए, रिमोट कंट्रोल से आतंकवादियों ने विस्फोट कर दिया, इस हमले में बिट्टा सहित २५ लोग बुरी तरह घायल हो गए थे और ९ लोगों की मौत हो गई थी, इस घटना के बाद से बिट्टा को ‘जिंदा शहीद’ कहा जाने लगा और उन्होंने आतंकवादियों के विरुद्ध देश में आवाज़ उठायी, बिट्टा आतंकवाद के कट्टर विरोधी हैं, वे देश में शहीदों के बच्चों को मुफ्त पढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। मिग-२१ से अभिनंदन का पुराना रिश्ता पाकिस्तान द्वारा हिरासत में लिए गए विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान का मिग-२१ लड़ाकू विमान से काफी पुराना रिश्ता रहा है, वर्तमान के एक पारिवारिक मित्र ने शुक्रवार बताया कि उनके पिता एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) सिंहकुट्टी वर्तमान भी मिग-२१ उड़ा चुके हैं और वह भारतीय वायुसेना के टेस्ट पायलट रहे हैं। वह पांच साल पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्होंने बताया कि अभिनंदन के दादा भी भारतीय वायुसेना में थे। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में १९६९-७२ के दौरान अभिनंदन के पिता के साथ पढ़ने वाले विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रकाश नावले ने बताया कि वह अभिनंदन से सबसे पहले तब मिले थे, जब अभिनंदन तीन साल के थे, उन्होंने कहा, ‘मैं और अभिनंदन के पिता हैदराबाद के हकीमपेट में लड़ाकू प्रशिक्षण के लिए तैनात थे। नावले ने कहा, ‘वर्तमान का परिवार बहुत ही भला और सीधा सादा है। अभिनंदन के पिता बेहद सज्जन हैं। पेशे से डॉक्टर उनकी पत्नी शोभा भी एक भारतीय सांस्कृतिक महिला हैं। अभिनंदन की बहन अदिति फ्रांस में रहती हैं और उनके पति एक फ्रांसीसी नागरिक हैं। मर्यादा महोत्सव पर विशेष मर्यादा बंधन नहीं, मुक्ति का द्वार है बंधन में रहना किसी को पसंद नहीं है, आज का आदमी खुलावट पसंद करता है, आदमी ही नहीं, पशु-पक्षी भी बंधन पसंद नहीं करते, एक तोता भले वह सोने के पिंजरे में रहता है किंतु खुली हवा में उड़ान भरना ज्यादा पसंद करता है, पिंजरा उसे कैदखाने जैसा लगता है। एक लोककथा है कि कोई कौआ उड़ता-उड़ता चिड़ियाघर में आ गया, वहाँ पिंजरे में कैद एक बत्तख के पास आया और बोला-बत्तख भाई! तुम बड़े भाग्यशाली हो, तुम्हारा पूरा शरीर सफेद है, मन को मोहने वाला है। बत्तख बोला-कौआ भाई! मेरे से ज्यादा भाग्यशाली तो तोता है जिसका शरीर मेरे से ज्यादा खुबसूरत आभा बिखेर रहा है, उसके सिर और चौंच की छटा तो बड़ी निराली है। कौआ तोते से मिला और उसके मनमोहक रूप को देखकर उसके भाग्य की सराहना करने लगा। तोते ने कौए से कहा-‘तूम एक बार मोर को देख लो, उस जैसा रंग-बिरंगा और आकर्षक रूप कहीं नजर नहीं आएगा, दुनिया में सबसे ज्यादा भाग्यशाली तो वह है। वह मोर के पास गया, उसके शरीर से सुंदरता टपक रही थी, वह उसके भाग्य के गुणगान करने लगा। मोर ने कौए को टोकते हुए कहा-मैं तो दुर्भागी हूँ जो इस कैदखाने में रहता हूँ। कौए ने जिज्ञासा की, कि फिर कौन है पक्षियों में सबसे ज्यादा भाग्यशाली? मोर ने कहा-सबसे ज्यादा भाग्यशाली तू है जो खुले आकाश में उड़ान भरता है, कौआ उसके मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर सहम गया और काँव-काँव करता हुआ उड़कर वृक्ष की किसी डाली पर बैठ गया। पक्षी ही नहीं, कोई भी प्राणी बंधन में रहना नहीं चाहता, हर व्यक्ति स्वतंत्र और अपने ढंग से जीना चाहता है। ऊपर का नियंत्रण वह पसंद नहीं करता, नियम और मर्यादाएँ उसे बंधन लगती हैं। रोक-टोक में रहने को वह गुलामी समझता है। एक छोटे बच्चे ने अपने पापा से कहा-पापा! मम्मी हर वक्त मेरे पर रोक-टोक करती रहती है, मैं सुनता-सुनता तंग आ गया हूँ, यह रोक-टोक कब बंद होगी, उसका पिता बोला-बेटा! मम्मी रोक-टोक तो मैं भी सुनता हूँ, तू तो अभी बच्चा है, छोटा बच्चा भी नियंत्रण में रहना नहीं चाहता, इस स्वतंत्रता के युग में तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित होने वाला हर मुनि नियंत्रण को सहर्ष स्वीकार करता है, वह मर्यादा में रहने को गुलामी नहीं मानता, यही कारण है कि तेरापंथ में गुरू का अनुशासन शिष्य की प्रगति का द्वार बन जाता है। मर्यादाओं का सृजन करके स्वच्छंदाचार को समाप्त करने के लिए आचार्य भिक्षु ने एक जीवंत ब्रह्मास्त्र तैयार कर दिया, वे अध्यात्मयोगी ही नहीं, व्यवहारविद् भी थे। आने वाला समय कैसा होगा, उसकी नब्ज को उन्होंने पहचान लिया था, वे जिस संघ को छोड़कर आए थे वहाँ की स्थितियों का भी वे अध्ययन कर चुके थे। संघ को दीर्घजीवी और स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने समय-समय पर मर्यादाओं का निर्माण किया, उन्होंने मर्यादा निर्माण के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लिखा-शिष्य, वस्त्र और साताकारी क्षेत्र का ममत्व करके अनंत जीवन अब तक नरक निगोद में चले गए, इसलिए शिष्य आदि की ममता मिटाने और चारित्र को निर्मल निरतिचार रखने के लिए मैंने ये मर्यादाएँ बनाई हैं। वि.सं. १८३२ में उन्होंने सबसे पहला मर्यादा पत्र लिखा। भगवान महावीर के समय ७ पदों की व्यवस्था थी, उसमें परिवर्तन करके आचार्य भिक्षु ने पहली धारा बना दी, ‘सब साधु-साध्वियाँ एक आचार्य की आज्ञा में रहें’ पूर्ववर्ती संघ में विहार, चातुर्मास संत अपनी मजमर्जी से करते थे, उस पर रोक लगाते हुए दूसरी धारा बना दी कि ‘साधु-शिष्याओं की खींचातान को मिटाने के लिए तीसरी धारा बना दी कि कोई भी अपना-अपना शिष्य-शिष्या न बनाएँ। साधु-साध्वियों की गुणवत्ता और तेजस्विता को महत्त्व देने के लिए चौथी धारा सर्वशक्तिसंपन्न आचार्य के लिए बना दी कि आचार्य भी योग्य व्यक्ति को दीक्षित करें, दीक्षित करने पर भी कोई अयोग्य निकले तो उसे गण से अलग कर दें। उत्तराधिकार को लेकर कोई समस्या खड़ी न हो इसके लिए पाँचवीं धारा बना दी कि आचार्य अपने गुरूभाई या शिष्य को अपना उत्तराधिकारी चुने, उसे सब साधु-साध्वियाँ सहर्ष स्वीकार करें। संघ की मजबूती के लिए आचार्य भिक्षु ने अपने जीवन काल में कई मर्यादाएँ बनाई, उनका लिखा हुआ अंतिम मर्यादा पत्र वि.सं. १८५६ माघ शुक्ला, सप्तमी, शनिवार का है। आचार्य का एक विश्लेषण होता है-द्रव्य, क्षेत्र, कला और भाव के ज्ञाता। आचार्य भिक्षु का जीवन इसका मूर्तरूप था, वे जानते थे, भविष्य में समय और स्थितियों को देखकर आचार्य को मर्यादाओं में परिवर्तन या संशोधन भी करना आवश्यक हो सकता है, इस दृष्टि से उन्होंने एक धारा बना दी कि आगे जब कभी भी आचार्य आवश्यक समझे तो वे इन मर्यादाओं में परिवर्तन या संशोधन करे और आवश्यक समझे तो कोई नई मर्यादा करें। पूर्व मर्यादाओं में परिवर्तन या संशोधन हो अथवा कोई नई मर्यादा का निर्माण हो, उसे सब साधु-साध्वियाँ सहर्ष स्वीकार करें, इस धारा के आधार पर ही अढ़ाई सौ वर्ष से अधिक कालखंड में समय-समय पर तेरापंथ धर्मसंघ में मर्यादाओं में परिवर्तन और संशोधन भी होते रहे हैं। यह आचार्य भिक्षु की दूरदर्शी सोच का ही परिणाम है कि उन्होंने संघ को रूढ़िग्रस्त नहीं बनने दिया, नवीनता के लिए सदा द्वार खुले रखे। तेरापंथ धर्मसंघ आज जिन ऊँचाइयों को छू रहा है, उसके पीछे एकमात्र कारण ये मर्यादाएँ हैं। मर्यादा की नींव पर खड़े इस तेरापंथ को कहीं तनिक भी खतरा नहीं है। व्यक्ति अपने जीवन की सुरक्षा चाहता है तो उसे मर्यादा को बहुमान देना चाहिए, जो बंधन मानकर मर्यादा की अवहेलना करता है वह स्वयं ही अवहेलना का पात्र बन जाता है। पदयात्रा करते समय सड़क की एक ओर गाड़ियों के लिए एक सुंदर वाक्य लिखा था-‘व्यक्ति मर्यादित, जीवन सुरक्षित’ इस वाक्य में एक प्रेरणा छिपी है कि व्यक्ति जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसे मर्यादा में रहना चाहिए। रेलगाड़ी पटरी पर चलती है उसे कोई खतरा नहीं होता, वह थोड़ी भी अगर इधर-उधर हो जाती है तो दुर्घटना घटित हो सकती है। नदी दो तटों के बीच में बहती है, बड़ी उपयोगी लगती है, उसमें भी जब बाढ़ आ जाती है, अपनी मर्यादा में नहीं रहती है तो वह प्रलयंकारी रूप धारण कर लेती है, इसी तरह सर्दी, गर्मी, वर्षा, हवा आदि प्राकृतिक स्थितियाँ भी मर्यादा के अनुरूप होती है तो लोगों को आरामदायक लगती है, सीमा तोड़ने पर ये भी परेशानी का कारण बन जाती है।मर्यादा को भार नहीं, व्यक्ति गले का हार समझे। हार बंधन नहीं होता, वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाने वाला होता है। मर्यादा को बंधन नहीं, मुक्ति का द्वार समझें। स्वतंत्रता वरदान है किंतु स्वच्छंद व्यक्ति के लिए वह अभिशाप भी है। हम स्वतंत्र बनना चाहते हैं तो मर्यादा को जीवन में बहुमान दें। हम भाग्यशाली हैं, जिन्हें आचार्य भिक्षु द्वारा मर्यादाओं का मंत्र मिला। चतुर्थ आचार्य श्रीमद् जयाचार्य ने उन मर्यादाओं को महोत्सव का रूप दे दिया। हर वर्ष माघ शुक्ला सप्तमी को वह महोत्सव वर्तमान आचार्य की सन्निधि में आयोजित होता है। मर्यादा का महोत्सव अमर रहे, हम सदा यह मंगलकामना करते हैं। – शासनश्री मुनि विजय कुमार अनुशासन का प्रतीक मर्यादा महोत्सव मर्यादा वह मशाल है जो जिंदगी को जगमगा देती है, मर्यादा वह पतवार है जो जिंदगी की नाव को उस पार पहुँचा देती है, मर्यादा वह उष्मा है जो शीतकाल की ठंडी बयार को सहने की क्षमता प्रदान करती है। मर्यादा वह कथ्य है, जो उच्छृंखल वृत्तियों पर नियंत्रण करती है। मर्यादा का अर्थ व्रत, नियम, संकल्प, संविधान आज की भाषा में कानून होता है। कोई भी सभा, संस्था, समाज, संघ का नियम के अभाव में समुचित विकास नहीं कर सकता, जहाँ समूह होगा वहाँ नियंत्रण होगा। आचार्यश्री हेमचंद्राचार्य जी ने मनुष्य के समूह को समाज कहा है। पशुओं के समूह को झुंड कहते हैं। मनुष्य चिंतनशील प्राणी है, उसमें नियंत्रण की क्षमता होती है, जहाँ समाज है वहाँ अनुशासन है, जहाँ संघ है वहाँ मर्यादा है। अनुशासन व्यवस्था और मर्यादा में संघबद्ध साधना के अनिवार्य तत्त्व हैं, जहाँ साधना संघबद्ध होती है वहाँ अनुशासन जुड़ जाता है। आज्ञा से संचालित संघ ‘संघ’ होता है, शेष प्राणहीन अस्थियों का ढाँचा मात्र है। अनुशासन और विनय के आधार पर धर्मसंघों ने बहुत विकास किया है। विकास की उसी श्रृंखला में एक नाम है-तेरापंथ। तेरापंथ के आद्य प्रणेता आचार्य भिक्षु थे, वे अनुशासन के सूत्रधार थे, तेरापंथ के संस्थापक थे, मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उन्होंने अपने संघ को सुदृढ़ बनाने के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया, संघ की एकता व अखंडता के लिए समय-समय पर विविध विधान बनाए, उन मर्यादाओं का निर्माण तेरापंथ धर्मसंघ का संविधान बन गया। आचार्य भिक्षु ने मर्यादाओं का निर्माण ही नहीं किया, उन्होंने स्वयं मर्यादित जीवन जीया, वे संगठनकार थे, संगठन को मजबूत बनाने की अद्भुत क्षमता उनमें थी, कानून बनाने वाले बहुत होंगे अपितु उस पर चलने वाले विरले ही मिलेंगे, प्रजातंत्र की पावन प्रणाली में नेताओं की परिभाषा बदलती जा रही है, वह कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं, ये नेता बिना तेल के दीपक कब तक जलाएँगे, हर शासक का जीवन निज पर शासन फिर अनुशासन होना चाहिए। २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है, उस दिन भारत वर्ष का संविधान लागू हुआ, संविधान के साथ अणुव्रत को जोड़ दिया जाता तो देश का कायाकल्प हो जाता, देश की एकता व अखंडता में जो विघटन की स्थिति पैदा हो रही है, उसका एक कारण है कानून का पूरा पालन नहीं किया जाना, पद की लोलुपता भी, आकांक्षा भी संगठन में विघटन उत्पन्न करती है, कुछ स्वार्थी तत्त्व भी ऐसे हैं जो राष्ट्रहित को गौण करते हैं, पद एक है और उम्मीदवार अनेक हैं, वहाँ स्थिति जटिल हो सकती है। आचार्य भिक्षु ने पदलिप्सा को समाप्त करने के लिए एक नियम बनाया, कोई भी साधु-साध्वी पद का उम्मीदवार नहीं बन सकता, शिष्य-शिष्याएँ नहीं बना सकता, पद की आकांक्षाओं पर नियंत्रण स्थापित हो गया, यह तेरापंथ धर्मसंघ की केंद्रीय मर्यादा है, शेष संविधान इसकी परिधि में है। ‘संघे शक्ति कलियुगे’। कलियुग हो या सतयुग, शक्ति संघ में होती है, यह एक आचार्य के नेतृत्व को स्थापित करने वाली मर्यादा है, एक सूत्र का सूचक है यह गुरू और एक विधान वाला धर्मसंघ है, तेरापंथ धर्मसंघ की आधारशीला है-मर्यादा। मर्यादा और अनुशासन की दृष्टि से आज का वातावरण विषाक्त बनता जा रहा है, कोई किसी के अनुशासन में चलना नहीं चाहता, अनुशासन को बंधन मानने वाला, उसका मूल्याकंन नहीं करता उसके अर्थ नहीं समझता। एक युवक शादी करके घर आया, पत्नी नहीं थी, उसने खाना बनाया, भोजन में घी का प्रयोग अधिक किया। युवक भोजन करने बैठा, सब्जी में घी ज्यादा था। पत्नी पढ़ी-लिखी बी.ए. पास थी। वह अंग्रेजी भाषा में अनभिज्ञ था, उसने अपनी पत्नी से कहा कि घी उपयोग कम किया करो, पत्नी कान पकड़कर बोली, सॉरी! पति ने चिल्लाते हुए कहा-सॉरी-सॉरी कर रही हो तुझे क्या पता कमाई गोरी होती है वह युवक समझ नहीं सका सॉरी का अर्थ क्या है? उसने सॉरी का अर्थ सरल आसान समझा, जब तक मर्यादा का अर्थ नहीं समझोगे, उसका पालन नहीं करोगे, मर्यादा से लाभान्वित नहीं हो सकते। मर्यादा ह्रदय से कृत होती है, मर्यादा विकास के द्वार खोलती है, उससे व्यक्ति सफलता के शिखर पर आरोहण कर सकता है, मर्यादाओं के प्रति सदन आस्थाओं का विषय उपक्रम है। मर्यादा महोत्सव विक्रम संवत् १९२१ माघ शुक्ला सप्तमी को प्रथम मर्यादा महोत्सव जयाचार्य जी ने बालोतरा राजस्थान में आयोजित किया था, तब से यह दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है, इस समय मर्यादा पत्र का वाचन संविधान का संशोधन तथा नई मर्यादाओं का निर्माण भी होता है, देश-विदेशों से हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ एवं सैकड़ों साधु-साध्वियाँ समण-समणियाँ एकत्रित होते हैं। साधु-साध्वियाँ गुरू के समक्ष अपने अतीत का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। आचार्य श्री चातुर्मास की घोषणा करते हैं, साधु-साध्वियाँ खड़े होकर इसे विनम्रतापूर्ण शिरोधार्य करते हैं। विनय, अनुशासन, समर्पण का अनूठा दृश्य होता है। मर्यादा महोत्सव अनुशासन का प्रतीक है। वर्ष २०१९ आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में मर्यादा महोत्सव विराट रूप में मनाया गया, तमिलनाडु के कोयंबटूर की पावन धरा पर आयोजित समारोह में आचार्यश्री चातुर्मासों की घोषणा की, लोगों में उत्सुकता थी, हमें किसका पावन प्रवास प्राप्त होने वाला है, भक्तगण भी अपनी भावना आचार्यश्री के समक्ष रखते हैं, उनकी प्रार्थना गुरूदेव ध्यान से सुनते हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। गुरू की नजर पाकर श्रावक-श्राविका निहाल हो जाते हैं। आचार्यश्री भिक्षु की मौलिक मर्यादाओं का वाचन तथा उच्चारण होता है। साधु-साध्वियाँ खड़े होकर समवेत स्वरों में उच्चारण करते हैं, सारा कार्यक्रम व्यवस्थित, अनुशासित, सुचारू ढंग से संपादित होता है। वर्तमान युग में मर्यादा अनुशासन की अत्यंत अपेक्षा है, हर व्यक्ति, हर परिवार, हर समाज मर्यादा में रहे, अनुशासित रहे, मर्यादित जीवन जीए, यह मर्यादा का आव्हान है। मर्यादा प्राण है, लोग सोचते हैं मर्यादा से हमारी आजादी खो जाती है, ज्यादा हमारे जीवन में जड़ता के बीज बो जाती है, अपने छोटे से जीवन का छोटा-सा अनुभव यह है जो मर्यादा को स्वीकारता है उसका जीवन सुंदर हो जाता है। – शासनश्री साध्वी कुंथुश्रा वीतराग विज्ञान यथार्थ धर्म वाग्वर अञ्चल के जैन-अजैन में सद्भावना युक्त भीलूड़ा ग्राम में प्रवासरत प.पू. साध्याय तपस्वी वैज्ञानिक श्रमणाचार्य श्री कनकनन्दी गुरूवर ससंघ निश्रा में आचार्य श्री के वैज्ञानिक शिष्यों ने विशेष अध्यात्मिक विज्ञान का बोध प्राप्त किया। प्रात:कालीन सत्र में आचार्य श्री ने क्वाण्टम, स्ट्रींग, प्रकाश, सिद्धान्त, अनन्त सप्तभंगी, ज्ञान चेतना आदि बहुआयामी विषयों का समीक्षात्मक बोध देते हुए कहा कि विज्ञान सत्य पथ पर होते हुए अभी पूर्ण सत्य को प्राप्त नहीं किया है। गुरूदेव ने शाश्वतिक सत्य का ज्ञान देते हुए कहा कि वीतराग विज्ञान ही यथार्थ धर्म है। माध्याह्निक सत्र में उपस्थित ग्राम व अंचल के भक्त-शिष्यों व वैज्ञानिक जनों ने भी गुरूदेव के प्रति श्रद्धा भक्ति भाव अभिव्यक्ति के माध्यम से गुरूदेव के आध्यात्मिक गुणों की पूजा प्रशंसा अनुमोदना की। क्वांटम मैकेनिक्स के वैज्ञानिक डॉ.पी.एम. अग्रवाल ने कहा कि गुरूदेव श्री संघ की पवित्र लक्ष्य युक्त उत्तम साधना आदर्श है एवं आपके साहित्य से अध्यात्म की गहराई मिल रही है। कृषि वैज्ञानिक डॉ.एस.एल. गोदावत ने आचार्य श्री को शान्त, उदार, अद्वितीय सन्त प्रवर बताते हुए आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में समयसार के स्वाध्याय का संस्मरण सुनाते हुए प्रभावी स्वरचित आध्यात्मिक कविता सुनाई, जिसे सुनकर आचार्य श्री संघ व श्रोता, भाव विभोर हुए। वैज्ञानिक डॉ. एन.एल. कच्छारा ने विश्वधर्म संसद के शिखर सम्मेलन का संस्मरण सुनाया, उनकी स्वरचित कृति “Living system in jainism” का विमोचन भी आचार्य श्रीसंघ के कर कमलों से हुआ। आचार्यश्री सृजित साहित्य के ग्रंथालय के कार्यकत्र्ता छोटूलाल चित्तौड़ा ने भी अपने भाव व्यक्त किए। अन्त में सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री ने क्रान्तिकारी अध्यात्म बोध देते हुए कहा कि मैं स्वयं अमृत कलश हूँ सम्पूर्ण धर्म-पञ्च परमेष्ठी स्वयं में स्थित है, शक्ति की अभि-व्यक्ति होने पर शाश्वत सुख प्राप्त होता है। गुरूदेव ने बताया जो स्व-आत्मा को नहीं जानते, ऐसे न्यायाधीश, दार्शनिक, वैज्ञानिक का भी आध्यात्मिक आयाम वृक्ष-कीट पतंग जैसा ही है। गुरूदेव ने कहा कि स्व उद्धार से पर उद्धार भी सहज होता है। उपस्थित भव्य जीवों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपकी भावना-भक्ति-शक्ति उत्तरोत्तर वृद्धि हो, शाश्वत आनन्द प्राप्त हो, ऐसी मंगल भावना करता हूँ। -श्रमण मुनि सुविज्ञसागर